इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्दी के कहानी पाठ दस ‘ .Varsha Bahar ( वर्षा बहार )’ के सारांश को पढ़ेंगे।
10.कुंभा का आत्मबलिदान
पाठ का सारांश- प्रस्तुत कहानी ‘कुम्भा का आत्मबलिदान’ में बूंदी के हाडाही कुंभा के राष्ट्रप्रेम का वर्णन किया गया है। 10.Kumbh ka Atma Balidan class 7 Saransh
बूंदी राजपूतों की एक छोटी रियासत थी। वहाँ के निवासी हाड़ा जाति के नाम अपनी मातृभूमि के प्रति पूर्ण समर्पित थे। एकबार चित्तौड़ के महाराणा ने सैन्य-शति के बल पर उस पर अधिकार करना चाहा। बूंदी के वीरों ने उसका मुँह तोड़ जवाब दिया। अपमानजनक अपने पराजय से राणा तिलमिला उठे। इसी क्रोधावेग में उन्होंने प्रतिज्ञा कर ली कि बूंदी विजय के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करूँगा। राणा की इस प्रतिज्ञा से सभी परेशान हो गए, क्योंकि पुन: बूंदी पर आक्रमण करना इतना आसान नहीं था। इसके लिए पूरी तैयारी करनी पड़ती, जिसमें काफी समय लगने की संभावना थी। राणा अपनी प्रतिज्ञा पर अटल थे, इसलिए मंत्री ने एक उपाय सोचा कि बूंदी का एक नकली किला बनाया जाए और राणा उसे जीत कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर लें। सबको यह योजना पसंद आई। मैदान में बूंदी का नकली किला बनाया जाने लगा। इसी समय चित्तौड़ सेना का एकं हाड़ा सैनिक जंगल से शिकार करके लौटा। किला की बनावट एवं सजावट दी के किले के समान देख उसके मन में मातृभूमि बूंदी के प्रति सम्मान का भाव जाग उठा और उसके मन में बार-बार यह उठने लगा कि ‘आखिर बूंदी का यह नकली किला क्यों बनाया जा रहा है ? .. … अपनी जिज्ञासा की शांति के लिए वह कारीगर के पास पहुँचा। कारीगर से सारी बातें जानने के बाद उसका स्वाभिमान मातृभूमि के अपमान का प्रतिकार करने के लिए उद्वेलित करने लगा। उसने निश्चय कर लिया कि जब तक हाड़ा वीर जीवित है तब • तक बूंदी को कोई अपमानित नहीं कर सकता। चित्तौड़वासी हाड़ा वीरों के इस विरोध से बिलकुल बेखबर थे। इसलिए राणा जब नकली किले में घुसना चाहा कि अपने अधीनस्थ हाड़ा सैनिकों के विरोध का सामना करना पड़ा। इस विरोध का कारण जानने के लिए जैसे ही राणा का सेनापति आगे बढ़ा कि अंदर से हाड़ा राजपूत वीर कंभा का गर्जन सुनाई पड़ा, “सेनापति जी, खबरदार! हमारे प्राण रहते इस किले में पैर नहीं रख सकते । “सेनापतिजी ! मातृभूमि तो मातृभूमि होती है। प्राण देकर भी इसकी रक्षा करना वीरों का कर्तव्य है।” हमने राणा का नमक खाया है उनके लिए हम प्राण दे सकते हैं, लेकिन किसी के हाथों मातृभूमि का अपमान सहन नहीं कर सकते । लाख प्रयास के बावजूद वह हाडा वीर अपने प्रण पर मोर्चाबंदी किए अटल रहा। अन्तत: बूंदी के बीस-पच्चीस वीरों ने हाड़ा कुंभा के नेतृत्व में मातृभूमि के सम्मान की रक्षा में अपने प्राण की बाजी लगा दी। राणा की जीत तो हुई, लेकिन हाड़ा वीर कुंभा के बलिदान ने यह सिद्ध कर दिया कि राणा जीतकर भी हार गया, क्योंकि कुंभा एवं उसकी टोली के वीरों ने मातृभूमि की आनबान की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर किए थे। इसलिए कोई-कोई जीत हार से भी बदतर होती है और कोई हार जीत से भी अधिक शानदार । अत: कुंभा का आत्मबलिदान किसी शानदार जीत से अधिक गौरवपूर्ण है। इसीलिये मैथिली शरण गुप्त ने लिखा है “जिसे न अपने देश और निज जाति का अभिमान है, वह नर नहीं निरा पशु है और मृतक समान है।” 10.Kumbh ka Atma Balidan class 7 Saransh
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