Bihar Board Class 9 Hindi Chapter 6 बिहार में नाट्यकला
पाठ का सारांश
मुगलकालीन शासन के अंतिम समय में कलाओं को विलासिता तथा व्यवसाय का साधन बना लिया गया था। नाटक के क्षेत्र में कोई गंभीर लेखन नहीं हो रहा था। पारसी थिएटर कम्पनियों की प्रस्तुतियों में उत्तेजनापूर्ण नाटक के अभिनय के साथ नर्तकियों के नृत्य, साजबाज तथा अश्लील प्रदर्शन हुआ करता था। उनका उद्देश्य पैसा कमाना था अर्थात् वे सस्ते मनोरंजन के विक्रेता थे। बिहार में विक्टोरिया नाटक, एलिफिंसटन नाटक मंडली आदि खूब लोकप्रिय हुई। बिहार बंधु’ नामक पत्रिका के संपादक केशवराम भट्ट इन थिएटर कंपिनयों से प्रभावित तो हुए किन्तु उनकी स्तरहीनता की कटु आलोचना की। इन्होंने 1876 ई. में ‘पटना नाटक मंडली’ नामक संस्था की स्थापना की। इसी संस्था से सोदेश्य रंगमंच का प्रारंभ होता है। भट्टजी स्वयं नाटक भी लिखते थे। इसके बाद पं. ईश्वरी प्रसाद शर्मा ने ‘मनोरंजन नाटक मंडली’ नामक नाट्य संस्था की स्थापना की तथा ‘सत्य हरिश्चन्द्र’ नाटक का सफल मंचन किया। बी. एन. कॉलेज के छात्रों ने शेक्सपियर के नाटकों का मंचन किया। महाराजा जगन्नाथ प्रसाद सिंह ‘किंकर’ ने ‘किंकर नाट्य कला मंच’ की स्थापना की। किंकर जी स्वयं चित्रकार, कवि तथा नाटककार थे। इन्होंने अपने किले के अंदर घुमावदार मंच बनवाया था। किंकर जी ने अपनी संस्था का नाम बदलकर ‘महालक्ष्मी थिएटर’ कर दिया तथा स्वरचित नाटक ‘पुनर्जन्म’ का मंचन अपने ही निर्देशन में किया। bihar me natya kala class 9 hindi
बिहार में नाटकों के मंचन का अखंड क्रम तब शुरू हुआ जब डा. एस. एम. घोषाल, डा. ए. के. सेन एवं ब्रज किशोर प्रसाद ने पटना इप्टा’ की स्थापना की। इसी के आस-पास अनिल मुखर्जी ने बिहार आर्ट थिएटर’ कालिदास रंगालय’ नामक प्रेक्षागृह आदि की स्थापना की। इसी प्रकार पं. जगन्नाथ शुक्ल ने भी बिहार में नाटक तथा रंगमंच के विकास में योगदान दिया था। लेकिन चतुर्भुज जी के एकल व्यक्तित्व ने जितने गहरे तक हिन्दी रंगमंच को प्रभावित किया, उतना उनके अन्य समकालीनों से न हो सका। स्व. पृथ्वीराज कपूर ने भी चतुर्भुज जी की प्रस्तुति तथा अनेक अभिनेताओं की खुली प्रशंसा की। इनके नाटक का विषय राष्ट्रीयता, सामाजिक विषमता का विरोध, नारी जागरण आदि होता था। इन्होंने जयशंकर प्रसाद लिखित ‘चन्द्रगुप्त’ नाटक का भी सफल मंचन किया था। इनकी नाट्य संस्था का नाम ‘मगध कलाकार’ था। bihar me natya kala class 9 hindi
इप्टा की प्रस्तुतियों में सामाजिक विषमता एवं उत्पीड़नों को रेखांकित किया गया। ‘पटना इप्टा’ को भरपूर गतिशीलता प्रदान करने वाले बजरंग वर्मा, श्याम सागर, परवेज अख्लर आदि थे। इप्टा की प्रस्तुतियों ने राष्ट्रव्यापी प्रशंसा पाई थी। तब कला संगम नामक नाट्य संस्था के माध्यम से प्यारे मोहन सहाय तथा सतीश आनंद ने निर्देशन एवं अभिनय दोनों क्षेत्रों में राष्ट्रीय स्तर की पहचान बना ली। bihar me natya kala class 9 hindi
चतुर्भुज जी ने अपनी रंग सक्रियता का प्रारंभ बख्तियारपुर में जिस संस्था की स्थापना के साथ किया था, उसका नाम बिहारी क्लब’ था। रंग मंच की दृष्टि से इन्होंने अनेक नाटक लिखे, जिसका मंचन स्वयं तथा अन्य संस्थानों द्वारा किये गये। ‘कलिंग विजय’ ‘अरावली का शेर’, मेघनाद’, कर्ण’, ‘जलियाँवाला बाग’ आदि नाटकों की व्यापक लोकस्वीकृति मिली। इस प्रकार चतुर्भुज जी, प्यारे मोहन सहाय तथा सतीश आनंद इन तीनों ने बिहारियों को हिन्दी रंगमंच को गगनचुम्बी ऊँचाई प्रदान की।
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प्यारे मोहन सहाय राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले प्रथम बिहारी थे। इन्होंने पटना में कला संगम’ की स्थापना की तथा मगध कलाकार’ एवं इप्टा द्वारा प्रारंभ की गई परंपरा को कला संगम’ के माध्यम से आधुनिकता के नये आयामों से परिचित कराया। सतीश आनंद ने बिहार की लोकशैलियों से हिन्दी नाटकों को जोड़ा, जिनमें विदेसिया की काफी चर्चा हुई। इनकी प्रतिभा अभिनय एवं निर्देशन के अलावा अनुवाद में भी अद्वितीय रही। इनके द्वारा ‘गोदान’ एवं ‘मैला आंचल’ का भी सफल मंचन किया गया था। इसके बाद नरेन्द्र नाथ पाण्डेय तथा परवेज अख्तर अभिनय तथा निर्देशन में लगातार ऊँचाइयाँ प्राप्त करते गए। पटना इप्टा में परवेज अख्तर, तनवीर अख्तर तथा जावेद अख्तर तीनों भाइयों ने निर्देशन, अभिनय तथा लेखन में उल्लेखनीय योगदान दिया। जावेद अख्तर महान अभिनेता के साथ ही नाटक लेखक भी है। नाटक लेखन में चतुर्भुज, जगदीशचन्द माथुर, रामवृक्ष बेनीपुरी, सिद्धनाथ कुमार आदि को बिहार ने जन्म दिया। इन्होंने रंगमच की दृष्टि से नाटक लिखे। रामेश्वर सिंह काश्यप का लोहा सिंह’ नाटक पूरे देश में अभूतपूर्व रहा। सिद्धनाथ कुमार रेडियो नाटककारों में उल्लेखनीय रहे हैं। इसी प्रकार कथाकार हृषीकेश सुलभ की ‘अमली’ माटी की गाडी’ ‘बटोही’ ‘धरती’ ‘आबा’ ने नाटय वैभव को राष्ट्रव्यापी गौरव से विभूषित किया है। बिहार के हिन्दी रंगमच का विकास पटना के अलावा आरा, मुजफ्फरपुर, मुंगेर, भागलपुर, पूर्णिया, बख्यितारपुर तथा पण्डारक आदि जगहों में होता रहा। बिहार में डोमकच तथा सामाचकेवा, भिखारी ठाकुर का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इन्होंने ‘विदेसिया शैली के माध्यम से समाज की अनेक विषमताओं तथा पीड़ाओं को उजागर किया। निष्कर्षतः पटना बिहार की राजधानी ही नहीं, सांस्कृतिक राजधानी भी रहा है। यहाँ कालिदास रंगालय, भारतीय नृत्य कला मंदिर, रवीन्द्र भवन जैसे प्रेक्षागृहों के’ अलावा भारतीय नृत्य कला मंदिर के मुक्ताकाश मंच की बिहार के नाट्य विकास में प्रमुख सहभागिता रही है।