इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 12 राजनीतिज्ञ विज्ञान अध्याय 4 सत्ता के वैकल्पिक केन्द्रके सभी टॉपिकों के बारे में जानेंगे। अर्थात इस पाठ का शॉर्ट नोट्स पढ़ेंगे। जो परीक्षा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। Satta ke vaikalpik kendra class 12 notes
अध्याय 4
सत्ता के वैकल्पिक केन्द्र
परिचय
1990 के दशक के शुरू में विश्व राजनीति में दो-ध्रुवीय व्यवस्था के टूटने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि राजनैतिक और आर्थिक सत्ता के वैकल्पिक केंद्र कुछ हद तक अमरीका के प्रभुत्व को सीमित करेंगे। यूरोप में यूरोपीय संघ और एशिया में दक्षिण-पूर्ण एशियाई राष्ट्रों के संगठन (आसियान) का उदय दमदार शक्ति के रूप में हुआ।
इन्होंने अपने-अपने इलाकों में अधिक शांतिपूर्ण और सहकारी क्षेत्रीय व्यवस्था विकसित करने तथा इस क्षेत्र के देशों की अर्थव्यवस्थाओं का समूह बनाने की दिशा में भी काम किया।
यूरोपीय संघ
1945 के बाद यूरोप के देशों में मेल-मिलाप को शीतयुद्ध से भी मदद मिली। अमरीका ने यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए जबरदस्त मदद की। इसे मार्शल योजना के नाम से जाना जाता है। अमेरिका ने ‘नाटो’ के तहत एक सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को जन्म दिया। मार्शल योजना के तहत 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना की गई जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप देशों को आर्थिक मदद दी गई।
1949 में गठित यूरोपीय परिषद् राजनैतिक सहयोग के मामले में एक अगला कदम साबित हुई।
1957 में यूरोपीयन इकॉनामिक कम्युनिटी का गठन हुआ। सोवियत गुट के पतन के बाद
1992 में इस प्रक्रिया की परिणति यूरोपीय संघ की स्थापना के रूप में हुई। यूरोपीय संघ के रूप में समान विदेश और सुरक्षा नीति, आंतरिक मामलों तथा न्याय से जुड़े मुद्दों पर सहयोग और एकसमान मुद्रा के चलन के लिए रास्ता तैयार हो गया।
यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह ही काम करने लगा है। हाँलाकि यूरोपीय संघ का एक संविधान बनाने की कोशिश तो असफल हो गई लेकिन इसका अपना झंडा, गान, स्थापना-दिवस और अपनी मुद्रा है।
यूरोपीय संघ का आर्थिक, राजनैतिक, कूटनीतिक तथा सैनिक प्रभाव बहुत जबरदस्त है। 2016 में यह दुनिया की दुसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी
इसकी मुद्रा यूरो अमरीकी डालर के प्रभुत्व के लिए खतरा बन सकती है। विश्व व्यापार में इसकी
हिस्सेदारी अमरीका से तीन गुनी ज्यादा है इसकी आर्थिक शक्ति का प्रभाव इसके नजदीकी देशों पर ही नहीं, बल्कि एशिया और अफ्रीका के दूर-दराज के मुल्कों पर भी है।
यूरोपीय संघ के दो सदस्य देश ब्रिटेन और फ्रांस सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं।
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सैनिक ताकत के हिसाब से यूरोपीय संघ के पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना है। इसका कुल रक्षा बजट अमरीका के बाद सबसे अधिक है। यूरोपीय संघ के दो देशों-ब्रिटेन और फ्रांस के पास परमाणु हथियार हैं
550 परमाणु हथियार हैं। अंतरिक्ष विज्ञान और संचार प्रौद्योगिकी के मामले में भी यूरोपीय संघ का दुनिया में दूसरा स्थान है।
यूरोपीय संघ आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक मामलों में दखल देने में सक्षम है।
डेनमार्क और स्वीडन ने मास्ट्रिस्ट संधि और साझी यूरोपीय मुद्रा यूरो को मानने का प्रतिरोध किया। इससे विदेशी और रक्षा मामलों में काम करने की यूरोपीय संघ की क्षमता सीमित होती है।
दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संगठन
(आसियान)
बांडुंग सम्मेलन और गुटनिरपेक्ष आंदोलन वगैरह के माध्यम से एशिया और तीसरी दुनिया के देशों में एकता कायम करने के प्रयास अनौपचारिक स्तर पर सहयोग और मेलजोल कराने के मामले में कारगर नहीं रहे थे। इसी के चलते दक्षिण-पूर्व एशियाई संगठन (आसियान) बनाकर एक वैकल्पिक पहल की।
1967 में इस क्षेत्र के पाँच देशों ने बैंकॉक घोषणा पर हस्ताक्षर करके ‘आसियान’ की स्थापना की। ये देश थे इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर और थाईलैंड।
विकास को तेज करना और उसके माध्यम से सामाजिक और सांस्कृति विकास हासिल करना था। कानून के शासन और संयुक्त राष्ट्र के कायदों पर आधारित क्षेत्रीय शांति और स्थायित्व को बढ़ावा देना भी इसका उद्देश्य था। बाद के वर्षो में ब्रुनेई दारूरसलाम, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया भी आसियान में शामिल हो गए तथा इसकी सदस्य संख्या दस हो गई।
अनौपचारिक, टकरावरहित और सहयोगात्मक मेल-मिलाप का नया उदाहरण
पेश करके आसियान ने काफी यश कमाया है और इसको ‘आसियान शैली’ (ASEANay) ही कहा जाने लगा है।
2003 में आसियान ने आसियान सुरक्षा समुदाय, आसियान आर्थिक समुदाय और आसियान सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय नामक तीन स्तम्भों के आधार आसियान समुदाय बनाने की दिशा में कदम एठाए
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आसियान सुरक्षा समुदाय क्षेत्रीय विवादों को सैनिक टकराव तक न ले जाने की सहमति पर आधारित है। 2003 तक आसियान के सदस्य देशों ने कई समझौते किए जिनके द्वारा हर सदस्य देश ने शांति निश्पक्षता, सहयोग, अहस्तक्षेप को बढ़ावा देने और राष्ट्रों के आपसी अंतर तथा संप्रभुता अधिकारों का सम्मान करने पर अपनी वचनबद्धता जाहिर की।
आसियान क्षेत्र की कुल अर्थव्यवस्था अमरीका, यूरोपीय संघ और जापान की तुलना में काफी छोटी है पर इसका विकास इन सबसे अधिक तेजी से हो रहा है।
आसियान ने निवेश, श्रम और सेवाओं के मामले में मुक्त व्यापार क्षेत्र (FTA) बनाने पर भी ध्यान दिया है। इस प्रस्ताव पर आसियान के साथ बातचीत करने की पहल अमरीका और चीन ने कर भी दी है।
आसियान तेजी से बढ़ता हुआ एक महत्पूर्ण क्षेत्रीय संगठन है।
आसियान द्वारा अभी टकराव की जगह बातचीत को बढ़़ावा देने की नीति से ही यह बात निकली है। इसी तरकीब से आसियान ने कंबोडिया के टकराव को समाप्त किया, पूर्वी तिमोर के संकट को सम्भाला है
भारत ने दो आसियान
सदस्यों, मलेशिया, सिंगापुर और थाईलैंड के साथ मुक्त व्यापार का समझौता किया है। 2010 में आसियान-भातर मुक्त व्यापार क्षेत्र व्यवस्था लागू हुई।
यह एशिया का एकमात्र ऐसा क्षेत्रीय संगठन है जो एशियाई देशों और विश्व शक्तियों को राजनैतिक और सुरक्षा मामलों पर चर्चा के लिए राजनैतिक मंच उपलब्ध कराता है।
चीनी अर्थव्यवस्था का उत्थान 1978 के बाद से चीन की आर्थिक सफलता को एक महाशक्ति के रूप में इसके उभरने के साथ जोड़कर देखा जाता है। आर्थिक सुधारों की शुरूआत करने के बाद से चीन सबसे ज्यादा तेजी से आर्थिक वृद्धि कर रहा है और माना जाता है कि इस रफ्तार से चलते, हुए 2040 तक वह दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति, अमरीका से भी आगे निकल जाएगा।
इसकी विशाल आबादी, बड़ा भू-भाग, संसाधन, क्षेत्रीय अवस्थिति और राजनैतिक प्रभाव इस तेज आर्थिक वृद्धि के साथ मिलकर चीन के प्रभाव को कई गुना बढ़ा देते 1949 में माओ के नेतृत्व में हुई साम्यवादी क्रांति के बाद चीनी जनवादी गणराज्य की स्थापना के समय यहाँ की आर्थिकी सोवियत
मॉडल पर आधारित थी।
इसने विकास का जो मॉडल अपनाया उसमें खेती से पूँजी निकाल कर सरकारी नियंत्रण में बड़े उद्योग खड़े करने पर जोर था।
चीन ने आयातित सामानों को धीरे-धीरे घरेलू स्तर पर ही तैयार करवाना शुरू किया।
अपने नागरिकों को शिक्षित करने और उन्हें स्वास्थ सुविधाएँ उपलब्ध कराने के मामले में चीन सबसे विकसित देशों से भी आगे निकल गया। अर्थव्यवस्था का विकास भी 5 से 6 फीसदी की दर से हुआ। लेकिन जनसंख्या में 2-3 फीसदी की वार्षिक वृद्धि इस विकास दर पर पानी फेर रही थी
इसका औद्योगिक उत्पादन पर्याप्त तेजी से नहीं बढ़ रहा था। विदेशी व्यापार न के बराबर था और प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी।
चीन ने 1972 में अमरीका से संबंध बनाकर अपने राजनैतिक
और आर्थिक एकांतवास को खत्म किया। 1973 में प्रधानमंत्री चाऊ एनलाई ने कृषि, उद्योग, सेना और विज्ञान-प्रोद्यौगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण के चार प्रस्ताव रखे। 1978 में तत्कालीन नेता देंग श्याओपेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों और ‘खुले द्वार की नीति’ की घोषणा की।
चीन नेअर्थव्यवस्था को चरणबद्ध ढंग से खोला।
1982 में खेती का निजीकरण किया गया और उसके बाद 1998 में उद्योगों का।
नयी आर्थिक नीतियों के कारण चीन की अर्थव्यवस्था को अपनी जड़ता से उबरने में मदद मिली। कृषि के निजीकणर के कारण कृषि-उत्पादों तथा ग्रामीण आय में उल्लेखनीय बढोत्तरी हुई।
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उद्योग और कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धी-दर तेज रही। व्यापार के नये कानून तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों (स्पेशल इकॉनामिक जोन SEZ) के निर्माण से विदेश-व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। चीन पूरे विश्व में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए सबसे आकर्षक देश बनकर उभरा। चीन के पास विदेशी मुद्रा का अब विशाल भंडार है
चीन 2001 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल हो गया।
चीन की आर्थिकी में तो नाटकीय सुधार हुआ है लेकिन वहाँ हर किसी को सुधारों का लाभ नहीं मिला है। चीन में बेरोजगारी बढ़ी है और 10 करोड़ लोग रोजगार की तलाश में है। वहाँ महिलाओं के रोजगार और काम करने के हालात उतने ही खराब हैं जितने यूरोप में 18वीं और 19वीं सदी में थे। इसके अलावा पर्यावरण के नुकसान और भ्रष्टाचार के बढ़ने जैसे परिणाम भी सामने आए। गाँव
क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर चीन एक ऐसी जबरदस्त आर्थिक शक्ति बनकर उभरा है
1997 के वित्तीय संकट के बाद आसियान देशों की अर्थव्यवस्था को टिकाए रखने में चीन के आर्थिक उभार ने काफी मदद की है। लातिनी अमरीका और अफ्रीका में निवेश और मदद की इसकी नीतियाँ बताती हैं कि विकासशील के रूप में उभरता जा रहा है।
चीन के साथ भारत के संबंध
पश्चिमी साम्राज्यवाद के उदय से पहले भारत और चीन एशिया की महाशक्ति थे।
चीनी राजवंशों के लम्बे शासन में मंगोलिया, कोरिया, हिन्द-चीन के कुछ इलाके और तिब्बत इसकी अधीनता मानते रहे थे। भारत के भी अनेक राजवंशों और साम्राज्यों का प्रभाव उनके अपने राज्य से बाहर भी रहा था।
अंग्रेजी राज से भारत के आजाद होने और चीन द्वारा विदेशी शक्यिों को निकाल बाहर चीन द्वारा विदेशी शक्तियों को निकाल बाहर करने के बाद यह उम्मीद जगी थी कि ये दोनों मुल्क साथ आकर विकासशील दुनिया और खास तौर से एशिया के भविष्य को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। कुछ समय के लिए ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई ‘ का नारा भी लोकप्रिय हुआ।
आजादी के तत्काल बाद 1950 में चीन द्वारा तिब्बत को हड़पने तथा भारत-चीन सीमा पर
बस्तियाँ बनाने के फैसले से दोनों देशों के बीच संबंध एकदम गड़बड़ हो गए। भारत और चीन दोनों देश अरूणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों और लद्दाख के अक्साई-चीन क्षेत्र पर प्रतिस्पर्धी दावों के चलते 1962 में लड़ पड़े। 1962 के युद्ध में भारत को सैनिक पराजय झेलनी पड़ी और
1970 के दशक के उत्तरार्द्ध में चीन का राजनीतिक नेतृत्व बदला। चीन की नीति में भी अब वैचारिक मुद्दों की जगह व्यावहारिक मुद्दे प्रमुख होते गए इसलिए चीन भारत के साथ संबंध
सुधारने के लिए विवादास्पद मामलों को छोड़ने को तैयार हो गया। 1981 में सीमा विवादों को दूर करने के लिए वार्ताओं की श्रृखला भी की गई।
शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद से भारत-चीन संबंधों में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
दोनों ही खुद को विश्व-राजनीति की उभरती शक्ति मानते हैं और दोनों ही एशिया की अर्थव्यवस्था और राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहेंगे।
दोनों देशों ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में परस्पर सहयोग और व्यापार के लिए सीमा पर चार पोस्ट खोलने के समझौते भी किए हैं। 1999 से भारत और चीन के बीच व्यापार 30 फीसदी सालाना की दर से बढ़ रहा है।
चीन और भारत के बीच 1992 में 33 करोड़ 80 लाख डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था जो 2017 में बढ़कर 84 अरब डॉलर का हो चुका है।
वैश्विक धरातल पर भारत और चीन ने विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठनों
के संबंध में एक जैसी नीतियाँ अपनायी हैं। 1998 में भारत के परमाणु हथियार परीक्षण को कुछ लोगों ने चीन से खतरे के मद्देनजर उचित ठहराया था। लेकिन इससे भी दोनों के बीच संपर्क कम नहीं हुआ।
पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम में भी चीन को मददगार माना जाता है। बांग्लादेश और म्यांमार से चीन के सैनिक संबंधों को भी दक्षिण एशिया में भारतीय हितों के खिफाल माना जाता है। पर इसमें से कोई भी मुद्दा दोनों मुल्कों में टकराव करवा देने
लायक नहीं माना जाता।
चीन और भारत के नेता तथा अधिकारी अब अक्सर नयी दिल्ली और बीजिंग का दौरा करते हैं।
परिवहन और संचार मार्गो की बढ़ोत्तरी, समान आर्थिक हित तथा एक जैसे वैश्विक सरोकारों के कारण भारत और के बीच संबंधों को ज्यादा सकारात्मक तथा मजबूत बनाने में मदद मिली है।
जापान
सोनी,पैनासोनिक, कैनन, सुजुकी, होंडा, ट्योटा और माज्दा जैसे प्रसिद्ध जापानी ब्रांडों उच्च प्रौद्योगिकी के उत्पाद बनाने के लिए इनके नाम मशहूर हैं। जापान के पास प्राकृतिक संसाधन कम हैं और वह ज्यादातर कच्चे माल का आयात करता है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जापान ने बड़ी तेजी से प्रगति की।
2017 में जापान की अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। एशिया के देशों में अकेला जापान ही समूह-7 के देशों में शामिल है। आबादी के लिहाज से विश्व में जापान का स्थान ग्यारहवाँ है। परमाणु बम की विभीषिका झेलने वाला एकमात्र देश जापान है। जापान संयुक्त राष्ट्रसंघ के बजट में 10 प्रतिशत का योगदान करता है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के बजट में अंशदान करने के लिहाज से जापान दूसरा सबसे बड़ा देश है। 1951 से जापान का अमरीका के साथ सुरक्षा-गठबंधन है।
जापान का सैन्य व्यय उसके सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1 प्रतिशत है
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दक्षिणय कोरिया
कोरियाई प्रायद्वीप विश्व युद्ध के अंत में दक्षिण कोरिया (रिपब्लिक ऑफ कोरिया) और उत्तरी कोरिया (डेमोक्रेटिक पीपुल्स) रिपब्लिक ऑफ कोरिया) में 38 वें समानांतर के साथ-साथ विभाजित किया गया था। 1950-53 के दौरान कोरियाई युद्ध और शीत युद्ध काल की गतिशीलता ने दोनों पक्षों के बीच प्रतिद्वंदिता को तेज कर दिया। अंतत: 17 सितंबर 1991 को दोनों कोरिया संयुक्त राष्ट्र के सदस्य बने। इसी बीच दक्षिण कोरिया एशिया में सत्ता के केंद्र के रूप में उभरा। 1960 के दशक से 1980 के दशक के बीच, इसका आर्थिक शक्ति के रूप में तेजी से विकास हुआ, जिसे ”हान नदी पर चमत्कार” कहा जाता है।
2017 में इसकी अर्थव्यवस्था दुनिया में ग्यारहवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और सैन्य खर्च में इसका दसवां स्थान है।
सैमसंग, एलजी और हुंडई जैसे दक्षिण कोरियाई ब्रांड भारत में प्रसिद्ध हो गए हैं। भारत और दक्षिण कोरिया के बीच कई समझौते उनके बढ़ते वाणिज्यिक और सांस्कृतिक संबंधो को दर्शाते हैं।
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Thank you so much sir aapne itna acha notes provide kiya.☺️☺️