कक्षा 7 संस्‍कृत पाठ 5 प्रहेलिकाः (सन्धि) का अर्थ | Prahelika class 7 sanskrit

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 7 संस्‍कृत के पाठ 5 ‘प्रहेलिकाः (सन्धि)(Prahelika class 7 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Prahelika class 7 sanskrit

पञ्चमः पाठः
प्रहेलिकाः
( सन्धि )

1. अपदो दूरगामी च, साक्षरो न च पंडितः ।

अमुखः स्फुटवक्ता च, यो जानाति सः पण्डितः ।।

अर्थ — जो पैर रहित है और दूर तक जाता है। पढ़ा लिखा है लेकिन विद्वान नहीं है । मुखरहित है लेकिन स्पष्ट बोलता है, उसे जो जानता है वह पण्डित (विद्वान) है बताओ यह क्या है ?

2. न तस्यादि न तस्यान्तः, मध्ये यस्तस्य तिष्ठति ।

ममाप्यस्ति तवाप्यस्ति, यदि जानासि तद् वद ॥

अर्थ — जिसके आरंभ तथा अन्त में ‘न’ अक्षर हो और दोनों ‘न’ के बीच में ‘य’ अक्षर हो, जो मुझे भी है और तुझे भी है । यदि जानते हो तो बताओ यह क्या है ?

3. नान्नं फलं वा खादामि न पिबामि जलं क्वचित् ।

चलामि दिवसे रात्रौ, समयं बोधयामि च ॥

अर्थ न तो मैं अन्न खाता हूँ न फल ही खाता हूँ। कहीं जल भी नहीं पीता हूँ।

मैं दिन-रात चलता रहता हूँ और समय बताता हूँ। बताओ क्या हूँ ?

4. मुखं कृष्णं वपुः क्षीणं, मञ्जूषायां च संवृत्तम् ।

घर्षणं मे दहत्याशु, रसवत्यां वसाम्यहम् ॥

अर्थ- मेरा मुँह काला है। शरीर दुबला-पतला है और मैं पेटी (डिब्बा) में बंद रहता हूँ । रगड़ने पर मैं अतिशीघ्र जलता हूँ तथा मैं रसोई में रहता हूँ। बताओ मैं क्या हूँ ?

5. तिष्ठामि पादेन बको न पड्डुः, दाता फलानां न कृतिने यत्नः ।

मौनेन जीवामि मुनिर्न मूकः सेव्योऽस्मि कोऽहं नृपतिर्न देवः ।।

अर्थ — मैं एक पैर पर खड़ा रहता हूँ, लेकिन न तो बगुला हूँ और न ही लँगड़ हूँ । फलों का दान करता हूँ लेकिन न तो कर्म करता हूँ और न ही परिश्रम करता हूँ सदा चुप (मौन) रहता हूँ लेकिन न तो साधु हूँ और न गूँगा। मैं सेवा कराने योग्य अर्थात् पूज्य हूँ परन्तु राजा या देवता नहीं हूँ । बताओ तो मैं क्या हूँ ?

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