इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 7 संस्कृत के पाठ 13 ‘परिहास-कथा (क्त्वा, क्तवतु)(Parihas katha class 7 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।
त्रयोदशः पाठः
परिहास-कथा
(क्त्वा, क्तवतु.)
पाठ-परिचय- प्रस्तुत पाठ ‘परिहास – कथा’ में लोकजीवन से सम्बद्ध, जनसामान्य में प्रचलित मिथिला के प्रसिद्ध हास्यकार गोनू झा की एक कथा वर्णित है। इनकी कहानियाँ मिथिला के घर-घर में कही तथा सुनी जाती है। इस कथा से मनोरंजन के साथ बुद्धि के उपयोग का उपदेश मिलता है। इस पाठ में एक भैंस की बँटवारे की कहानी का बड़ा ही मनोरंजक एवं विचारणीय प्रसंग का वर्णन है ।
एकदा मित्रयोर्मध्ये एकस्याः महिष्याः विषये अनुबन्धः अभवत् । तेन एकः तस्याः पूर्वार्धभागस्य स्वामी भवेत्, अपरः पश्चाद्भागस्य । पूर्वार्धभागस्य अधिकारी तु मूर्खः आसीत् । अपरस्तु चतुरः । महिष्याः पूर्वार्धभागे मुखं भवति । तस्य स्वामी महिषीं भोजनादिना सेवते । अपरार्धभागस्य स्वामी महिष्याः दुग्धं प्राप्नोति । इत्थं सर्वदा पूर्वार्धस्य अधिकारी एव वञ्चितः भवति स्म ।
स एकदा स्वमित्रं गोनू झा नामकं पण्डितं पृष्टवान् भोः ! किं करोमि ? सदा वञ्चितोऽस्मि । गोनू झा तस्मै समुचितं परामर्शः दत्तवान् । ततः स महिषीं भोजनेन वञ्चितां कृतवान् । महिषी अतीव कुपिता । ततः स तां दोहनकालेऽपि दण्डप्रहारेण कोपितवान् । अथ
अर्थ – एक बार दो मित्रों के बीच एक भैंस के विषय में समझौता हुआ। समझौते के अनुसार एक भैंस के अगले भाग का स्वामी हुआ तथा दूसरा भैंस के पिछले भाग का । अगले भाग का स्वामी मूर्ख था तो पिछले भाग का स्वामी होशियार था । मुँह भैंस के आगे की तरफ होता है, (इसलिए) आगे के भाग के स्वामी को खिलाना-पिलाना पड़ता (और) पिछले भाग का स्वामी भैंस का दूध प्राप्त करता है। इस आगे भाग के स्वामी को ही सदा दूध से वंचित होना पड़ता था । –
उसने एक बार अपने मित्र गोनू झा नामक पंडित से पूछा- हे मित्र ! क्या करूँ ? हमेशा ( मैं ) दूध से वंचित रहता हूँ । गोनू झा उसको उपयुक्त सलाह दी। उसके बाद उसने भैंस को खिलाना -पिलाना बन्द कर दिया। (इस कारण ) भैंस अति कुपित हो गई । तब उसने उस भैंस को दूध दूहने के समय लाठी मार कर कुपित कर दिया ।
महिषी कुपिता भूत्वा दोहनकाले पादप्रहारेण चतुरं मित्रं ताडितवती । स अकथयत् – भोः मित्र ! किमिदं करोषि ? मूर्खः पूर्वार्धस्वामी अवदत् – अहं महिष्याः पूर्वार्धस्य स्वामी । यत् मे रोचते तदेव करोमि । अनेन तव किम् ? चतुरः मूको जातः । इदं स्वधूर्ततायाः फलं ज्ञात्वा लज्जितश्च ।
ततः स पुनः महिषीविभाजनं निरर्थकं कथयित्वा तस्या महिष्याः भोजनदाने दुग्धग्रहणे च उभौ स्वामिनौ इति स्वीकृतवान् । तेन उभयोः लाभः । अतः विभाजनं निरर्थकं न शोभते इति
उपदेश: ।
अर्थ — इसके बाद भैंस क्रुद्ध ( क्रोधित) होकर दूध दूहने के समय पैर मारकर होशियार मित्र को घायल कर दिया। उसने (चतुरने) कहा – अरे मित्र ! यह क्या करते हो ? आगे भाग का स्वामी मूर्ख ने कहा- मैं भैंस के आगे भाग का स्वामी हूँ, जो मुझे अच्छा लगता है, इससे तुम्हें क्या ? (यह सुनकर ) चतुर मित्र चुप हो गया । वह अपनी धूर्त्तता का परिणाम मानकर लज्जित हो गया ।
तब उसने पुनः भैंस का बँटवारा व्यर्थ मानकर उस भैंस के खिलाने-पिलाने और दूध प्राप्त करना दोनों ने स्वीकार किया। उससे दोनों लाभान्वित हुए। क्योंकि निरर्थक बँटवारा अच्छा नहीं होता ऐसा उपदेश दिया ।
Parihas katha class 7 sanskrit
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