इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 9 के अंग्रेजी Part-1 के पाठ एक ‘मैं पुन: नृत्य कर रही हूँ (“I’m going to dance again” class 9 in Hind) के अर्थ को पढ़ेंगे।
1. “I’m going to dance again”
(मैं पुन: नृत्य कर रही हूँ)
April 20, 1975. Bombay’s Rang Bhawan was full, the audience waiting impatiently. In the green room, Sonal Mansingh anxiously looked into the mirror and saw beads of perspiration shining on her face. Her hands and feet were cold.
She had felt like this once before – on her maiden performance in Bangalore. But that was fourteen years ago Since then she had danced in India and abroad, she had been praised by everyone.
Today, however, Sonal was making a new start; this was the first time she would dance in public after a car accident in which she had been seriously injured just eight months earlier. Had her struggle to dance again been worth it? She pulled herself together, and with quick jingling
steps was on the stage. The spotlights were on her, she bowed, hands folded, and began her performance.
वाक्यार्थ- 20 अप्रैल, 1975 को बम्बई का रंगभवन अधीरता से प्रतीक्षा करते हुए दर्शकों से खचाखच भरा था। नेपथ्यशाला में सोनल मानसिंह ने बड़ी उत्सुकता से आईने में अपना चेहरा देखा । उसने अपने चेहरे पर पसीने की कुछ बूंदें देखीं। उसके हाथ और पैर भावशून्य थे।
एकबार ऐसे ही बंगलोर में अपने प्रथम प्रदर्शन के समय उसे ऐसा अनुभव हुआ था। परं यह चौदह वर्ष पहले हुआ था। तबसे वह भारत और विदेशों में नाच चुकी थी। सबों ने उसकी सराहना की थी।
तो भी आज सोनल की नई शुरुआत थी; यह पहला मौका था जब वह खुले आम, प्रकट रूप से लोगों के सामने मोटर-दुर्घटना के बाद नाचने जा रही थी। आठ महीने पहले मोटर दुर्घटना में वह बुरी तरह से घायल हो गई थी। क्या नाचने के लिए किए गये अपने संघर्ष के योग्य वह बन सकी थी या नहीं? उसने अपनी भावनाओं पर काबू पा लिया और तीव्र गति से धुंघरूओं को छनकाती हुई स्टेज पर पहुँच गई। प्रकाशबिन्दु उसके चेहरे पर थी, लोक प्रसिद्धि उसपर निर्भर थी। दोनों हाथ जोड़े उसने झुककर प्रणाम किया और अपना प्रदर्शन आरंभ किया।
In August 1974, Sonal Mansingh felt on top of the world. Trained at first in Bharat Natyam, she had mastered cult style and then had turned to Odissi. Now she was among the country’s best classical dancers.
She was in Germany that month, teaching a course in Indian classical dance. Late on the evening of the 24″, she and her fiance, George Lechner, were driving at 110 kph down a wet, lonely road. They suddenly saw a deer standing in the middle of the road. Lechner jammed on the brakes. The car slipped sideways, swung around, then turned over and rested on its roof. Lechner, trapped between the seat and the wheel, fainted.
“Sonal, are you all right?” He mumbled as he regained consciousness. There was no answer. He groped about in the darkness. There was no one beside him. As he struggled to free himself, a car pulled up and four men jumped out. They forced open a door of the car and dragged Lechner out. “Where is Sonal?” He asked.
Fetching torches from their car, the men began searching for Sonal. They found her about four meters away, on the road, She was still, eyes closed, as if asleep. Lechner was about to pick her up and say, “Let’s get going” but he hesitated. “She doesn’t look quite alive, “he said to himself. Then sprinkled water on Sonal’s face. She shook her head. “I’m cold,” she groaned. “Please put a shawl on me”. Saying this, she fainted,
At that moment, a police car arrived, and soon an ambulance was called. The ambulance men lifted Sonal carefully on to a stretcher and rushed her to the Municipal Hospital. In the emergency room she was given injections to ease the pain and then hurried to the X-ray room.
वाक्यार्थ-1974 के अगस्त महीने में सोनल मानसिंह दुनिया की सबसे ऊँचाई पर थी। शुरू में उसको भरतनाट्यम् नृत्य का प्रशिक्षण दिया गया। इस कठिन शैली के नृत्य में उसने निपुणता प्राप्त कर ली। उसके बाद वह ओडिसी नृत्य की ओर मुड़ी। अब वह देश की सर्वश्रेष्ठ शास्त्रीय नृत्यांगनाओं में गिनी जाने लगी। . उसी महीने में वह जर्मनी में भारतीय शास्त्रीय नृत्य के पाठ्यक्रम की शिक्षा दे रही थी। 24 तारीख की देर संध्या समय वह और उसका होनेवाला पति जॉर्ज लेचनर 110 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से आर्द्र एकान्त सड़क पर मोटर चला रहे थे। सड़क के बीच में अचानक उनलोगों ने एक हिरण को खड़ा देखा । लेचनर ने ब्रेक मारी ! मोटरगाड़ी फिसलकर किनारे चली गई, घूम गई और उसके बाद उलट गई। यह अपने अग्रभाग पर खड़ी थी। लेचनर सीट और चक्के (चालन-चक्के) के बीच में फँस गया और मूर्छित हो गया । जब उसे होश आया तो उसने बुदवुटाकर कहा- “सोनल, क्या तुम सकुशल हो ?” कोई उत्तर नहीं मिला । अंधकार में उसने उसे खोजने के लिए चारों ओर टटोला । उसके बगल में कोई नहीं था। उसने ज्यांही अपने को मुक्त करने के लिए हाथ-पाँव मारा, एक कार आकर वहाँ रुक गई और चार आदमी उससे वाहर कूद कर निकले। उनलोगों ने कार के दरवाजे को तोड़कर खोल दिया और लेचनर को खींचकर बाहर निकाला। . उसने पूछा, “सोनल कहाँ है ?”
उनलोगों ने अपने कार से टॉर्च लाकर सोनल को खोजना आरंभ कर दिया। उनलोगों ने उसे चार मीटर दूर सड़क पर पड़ी पाया। वह निश्चल थी, उसकी आँखें बंद थीं। ऐसा लगता था मानो सोई हुई हो। लेचनर उसे उठाने को कहने ही वाले थे कि “अव हम लोग चलें।’ लेकिन वे हिचकिचा गये। उन्होंने अपने मन में सोचा, “सोनल जीवित नजर नहीं आती। लोगों ने सोनल के मुँह पर पानी छिड़का। उसने अपना सिर हिलाया। उसने कराह कर कहा, “मुझे ठंढ लग रही है। कृपा कर मेरे ऊपर एक शाल डाल दें।” ऐसा कहकर वह वेहोश हो गई।
उसी समय, पुलिस की एक कार वहाँ पहुँची। शीघ्र ही ऐम्बुलेंस (रोगी-वाहन) बुलाया गया ! ऐम्बुलेंस के लोगों ने सोनल को बड़ी सावधानी से स्ट्रेचर पर उताकर रखा। (वे) तुरंत उसे म्युनिसिपल अस्पताल ले गये। आपातकक्ष में उसे सूई दी गई जिससे उसका दर्द कम हो जाए और तब उसे एक्स-रे कक्ष में ले जाया गया।
The X-rays showed that Sonal had been badly injured and had many broken bones. Her twelfth vertebra, four ribs and a collar-bone were fractured. Luckily her spinal cord had not been damaged in the crash. “She’d better be taken to the University Surgical Clinic at Erlangen,” the doctor advised Lechner. “They have better facilities.”
At Erlangen the doctors wanted to operate on her at once, and put Sonal into a cast. But, though semi-conscious Sonal shook her head saying “no” to an operation. “No operation, please, unless it is really necessary,” Lechner told them. Two days later, Sonal was out of danger and she was put in a cast. This cast covered her from neck to hip and weighed four kilos.
The surgeon drew Lechner aside. “She is in no danger,” he said. “But temporarily she has lost the use of her knees, toes, ankles and elbows, it will take months of exercises and hard work on Sonal’s part before she can use them.”
Twelve days later, the doctors agreed to allow Lechner to take Sonal to Montreal, where he worked. On the evening of their arrival at Montreal, friends visited them and were shocked at Sonal’s condition. “The doctors don’t know if Sonal will dance again,” Lechner told them.
She will need great strength and will power to get well again.” One of his friends suggested him to consult Dr. Pierre Gravel, a well-known Montreal doctor
Gravel agreed to come immediately. But until he had studied the medical report and observed Sonal for several days, he couldn’t say anything.
वाक्यार्थ—एक्स-रे रिपोर्ट से पता चला कि सोनल बुरी तरह से घायल हो गई है और उसकी कई हड्डियाँ टूट गई हैं। उसकी बारहवीं कशेरुका, चार पसलियाँ और एक हँसली टूट गई हैं। भाग्यवश उसका मेरुरज्जु धमाके के साथ गिरने से भी क्षतिग्रस्त नहीं हुआ था। डॉक्टर ने लेचनर को सलाह दी, अच्छा होगा कि इसे इरलैंजेन के विश्वविद्यालयीय शल्य चिकित्सालय या निदानगृह ले जाया जाय , वहाँ ज्यादा अच्छी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। . – इरलैंजेन में डॉक्टरों ने उसका आपरेशन तुरंत करना चाहा और सोनल को प्लास्टर या धातु की बनी किसी चीज पर जो टूटी हुई हड्डी को सहारा देने के लिए होती है, रखना चाहा । लेकिन अर्द्धचेतन अवस्था में भी सोनल ने अपना सिर हिलाया और आपरेशन नहीं करने के लिए कहा। लेचनर ने उनलोगों को कहा- “कृपा कर ऑपरेशन . नहीं कीजिए जबतक कि यह वास्तव में अतिआवश्यक न हो।’ दो दिनों के बाद सोनल खतरे से बाहर हो गई और उसे प्लास्टर कर दिया गया। यह सहारा उसकी गर्दन से नितम्ब तक डाल दिया गया जो चार किलो वजन का था। • शल्य चिकित्सक ने लेचनर को अलग हटाया और कहा, “सोनल को अब कोई खतरा नहीं है। लेकिन तत्काल थोड़े दिनों के लिए अस्थायी रूप से वह घुटने, पैर की उँगलियों, टखनों और कोहनियों का प्रयोग नहीं कर सकती है। इन सबों को काम में लाने के पहले उसे महीनों तक अभ्यास और कठिन श्रम करना होगा।’ .. बारह दिनों के बाद डॉक्टरों ने (लेचनर को) सोनल को मानट्रियल ले जाने की अनुमति देने में सहमति प्रकट की। वह (लेचनर) मानट्रियल में ही काम करता था। मानट्रियल में उनके पहुँचने पर शाम में उसके मित्र उसके यहाँ गये और सोनल की हालत देखकर (उन्हें) बहुत संदमा लगा। लेचनर ने उनलोगों से कहा- “डॉक्टरों को पता नहीं है कि सोनल फिर नाच सकेगी या नहीं ? उसे अच्छा होने के लिए बहुत ताकत और • संकल्प शक्ति की आवश्यकता है।” उसके मित्रों में से एक ने उसे सलाह दी कि वह मानट्रियल के सुप्रसिद्ध डॉक्टर पाइरे ग्रेवेल से सलाह ले। । ग्रेवेल ने तुरंत आना स्वीकार कर लिया। लेकिन जबतक कि वे उसके मेडिकल रिपोर्ट और उसे बहुत दिनों तक अच्छी तरह देख न लें वे कुछ कहने में असमर्थ थे ।
Sonal knew that soon she would be able to walk normally again. But she was growing more fearful that she would never dance again. “What am I alive for?” she thought. “Dancing is my life.” For days, she lay on her bed, simply staring at the ceiling. Her mind was sometimes desperate with thoughts of the future. Her appetite had gone, and her nights were often sleepless.
Finally, Dr. Gravel gave his opinion. He examined her, then stood looking at her seriously. Sonal’s heart sank. “I am afraid,” he began that you may be able to dance again.” He gave her a broad smile.
Not believing her ears, Sonal made him repeat what he had said, going over the words again and again. “I’m alive again,” she thought. “No mater what happens, I’m going to dance again.”
After three months, the cast was removed. Now came the period of hard work. For Sonal had to begin exercising. But every time Sonal moved, her muscles, after five months of disuse, hurt badly. Sometimes the pain was so great that she nearly fainted and was on the point of giving up. But years of dancing had given her great mental discipline. She continued her exercises knowing she would dance again.
Gradually, she learnt to move her toes, then her ankles and knees and then her body. Slowly, her health improved. She put on weight, she gained more control over her body. Six months after the accident, she began the basic dance steps that she had first learnt as a child nearly twenty-five years earlier. She lifted one foot and stamped it on the floor. She repeated the action with the other foot. But she couldn’t keep it up. Her eyes filled with tears at her own helplessness. The next day, however, she managed it twice.
In March, Gravel agreed to let her return to India. He refused to be paid for his services. “Watching you recover was enough,” he said. After a week with her parents in Bombay, Sonal flew to New Delhi to begin serious practice at home. On the first day, with the musicians sitting around her, she couldn’t hold back her tears. Neither could anyone else.
Practising thirty minutes a day at first, Sonal gradually increased it to forty-five minutes, an hour, two hours. As the days went by, her body seemed lighter and her dancing slowly gained its former grace. A month later, she was ready At Rang Bhavan, Sonal danced as she had never danced before. She danced for two and half hours. The crowd was delighted. When the music ended, she stood still, tears streaming down her face. I have done it, I have done it,” she kept repeating to herself. “I have found myself again.”
Sonal married George Lechner in August 1975. Today she coaches classes at her dance academy in New Delhi and performs regularly both at home and abroad. “I now realise how precious life is,” she says. “Each of my recitals is a prayer and a thanks-giving.”
वाक्यार्थ—सोनल जानती थी कि वह शीघ्र ही सामान्य रूप से चलने में फिर समर्थ हो जायगी। लेकिन उसे बराबर भय लगा रहता था कि शायद वह फिर नाच नहीं सकेगी। उसने सोचा, “फिर जीने से क्या लाभ ? नृत्य ही तो मेरा जीवन है।” कई दिनों तक वह अपने बिछावन पर पड़ी छत को एकटक निहारती रहती। अपने भविष्य की चिन्ता से कभी-कभी उसके मस्तिष्क में निराशा भर जाती थी। उसकी भूख गायब हो गई थी और ज्यादातर (अधिकांश समय) उसे रात को नींद नहीं आती थी। अंत में डॉक्टर प्रैवेल ने अपनी राय सुनाई। उन्होंने उसको जाँचा और तब. बड़ी गम्भीरता से उसकी ओर देखते हुए खड़े रहे। सोनल का हृदय बैठ गया। जब उन्होंने कहा— “मुझे डर है।” लेकिन उन्होंने फिर कहा, “हो सकता है तुम नाचने में समर्थ हो सकोगी।” उन्होंने लम्बी मुस्कान भरी। अपने कान पर उसे विश्वास नहीं हुआ, इसलिए सोनल ने उन्हें उसे दुहराने को कहा, उसी शब्द पर बार-बार उसने सोचा, “मैं पुनः जीवित हो गई हूँ। चाहे जो कुछ हो, मैं पुनः नाचूँगी।”.
तीन महीने के बाद सहारा हटा दिया गया। अब कठिन परिश्रम का समय आ गया। सोनल को अब अभ्यास करना था। लेकिन हर बार जब सोनल पाँच महीने से प्रयोग में नहीं आ सकने वाली अपनी माँसपेशियों को हिलाती थी तो उसे बड़े जोरों का दर्द होता था। कभी-कभी दर्द इतना भयानक होता था कि वह प्रायः मूर्छित जैसी हो जाती थी और लगता था कि अब अभ्यास छोड़ देगी। लेकिन वर्षों के नृत्य ने उसे मानसिक आत्मनियंत्रण प्रदान किया था। उसने अपना अभ्यास जारी रखा, यह जानकर कि वह पुनः नाच सकेगी।
धीरे-धीरे उसने अपने पाँव की अंगुलियों को हिलाना शुरू किया। उसके बाद अपने टखनों, घुटनों और तब अपने शरीर को हिलाना शुरू किया। धीरे-धीरे उसका स्वास्थ्य सुधर गया। उसने वजनदार चीजों को पहनना शुरू किया। उसने अपने शरीर पर ज्यादा नियंत्रण हासिल कर लिया। दुर्घटना के छः महीने बाद उसने प्रारंभिक नृत्य-पग संचालन आरंभ कर दिये, जो उसने एक शिशु के रूप में पच्चीस साल पहले सीखा था। उसने एक पैर उठाया. और उसे सतह पर पटका । उसने दूसरे पैर से भी इसी तरह का कार्य दुहराया। लेकिन वह अपने साहस को बनाये रखने में असमर्थ रही। अपनी कमजोरी के कारण उसकी आँखों में आँसू भर गये। तो भी दूसरे दिन उसने इसे दो बार किया।
मार्च के महीने में अवेल ने उसे भारत लौटने की अनुमति दे दी। अपनी सेवा के लिए उन्होंने कोई फीस नहीं ली। उन्होंने कहा- “तुम्हें अच्छा होते देखना ही काफी है।” एक सप्ताह तक अपने माता-पिता के साथ बम्बई में रहने के बाद सोनल घर पर खूब अभ्यास आरंभ करने के लिए दिल्ली चली गई। पहले दिन, जब संगीतकार लोग उसके चारों ओर बैठे हुए थे, वह अपने आँसुओं को नहीं रोक सकी। दूसरे लोग भी रो पड़े। पहले उसने तीस मिनट तक अभ्यास किया। धीरे-धीरे 45 मिनट तक अभ्यास किया, फिर एक घंटा, फिर दो घंटे तक अभ्यास करती रही । जैसे-जैसे दिन गुजरते गये, उसका शरीर हल्का लगने लगा और उसके नत्य ने पहले की मनोहरता को प्राप्त कर लिया। एक महीने बाद वह (नाचने में) समर्थ हो सकी। – रंगभवन में सोनल ने ऐसा नृत्य दिखाया, जैसा उसने पहले कभी नहीं दिखाया था । वह ढाई घंटे तक नाचती रही। सारी भीड़ देखकर आनंदमग्न हो गई। जब संगीत का कार्यक्रम समाप्त हुआ, वह निश्चल खड़ी रही और आँसुओं की धार बहती चली गई। उसने स्वयं इस बात को बार-बार दुहराया, “मैंने प्राप्त कर लिया, फिर मैंने प्राप्त कर लिया। मैंने अपने आप को पुनः प्राप्त कर लिया। अगस्त 1975 में जॉर्ज लेचनर से सोनल का विवाह हो गया। आजकल वह नई दिल्ली में नृत्य अकादमी में नृत्य सिखाती है और नियमित रूप से घर पर या विदेशों में अपना नृत्य प्रदर्शन करती है। वह कहती है, “मुझे अब महसूस होता हैं कि जीवन . कितना मूल्यवान है। मेरा हर प्रदर्शन या संगीत समारोह एक प्रार्थना और साधुवाद है।”\
“I’m going to dance again” class 9
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