इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 9 के अंग्रेजी Part-1 के पाठ 2 ‘उच्च शिखर को छूना (Scaling Great Height class 9 in Hind) के अर्थ को पढ़ेंगे।
2. SCALING GREAT HEIGHTS
(उच्च शिखर को छूना)
Santostr’s parents were affluent landowners who could afford to send their children to the best schools, even to the country’s capital New Delhi, which was quite close by. But, in line with the prevailing custom in the family, Santosh had to make do with the local village school. So, she decided to fight the system in her own quiet way when the right moment arrived. And the right moment came when she turned sixteen. At sixteen most of the girls in her village used to get married. Santosh was also under pressure from her parents to do the same A marriage as early as that was the last thing on her mind. She threatened her parents that she would never marry if she did r proper education. She left home and got herself enrolled in a school in Delhi. When her parents refused to pay for her education, she politely informed them of her plans to earn money by working part time to pay her school fees. Her parents then agreed to pay for her education.
वाक्यार्थ—संतोष के माता-पिता धनी परिवार से संबध रखते थे। वे अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में शिक्षा के लिए भेजने में सक्षम थे । यहाँ तक कि वे देश की राजधानी रीति-रिवाज के अनुसार संतोष को गाँव के विद्यालय में ही शिक्षा लेनी पड़ी। इसलिए उसने परिस्थिति से मुकाबला करना सही समझा जब तक कि सही समय न आ गया। सही अवसर तब आया जब वह सोलह वर्ष की हुई। सोलह वर्ष की उम्र में गाँव की प्रायः लड़कियों की शादी हो जाया करती थी। संतोष पर भी शादी करने का दबाव पड़ने लगा।
इतने कम उम्र में विवाह संतोष के लिए दुखद था। उसने अपने माता-पिता को धमकाया कि वह तब तक विवाह नहीं करेगी जब तक सही शिक्षा प्राप्त नहीं कर लेती है। उसने अपना घर छोड़ा तथा दिल्ली के एक स्कूल में दाखिला ले लिया। जब उसके माता-पिता ने उसके स्कूल की फीस देने से इनकार कर दिया तब उसने अपने मातापिता को विनयपूर्वक कहा कि मैं खाली समय में बाहरी काम करके स्कूल की फीस अदा कर दूँगी। तब उसके माता-पिता ने उनसे शिक्षा के लिए पैसा देना मंजूर किया।
Wishing always to study “a bit more” and with her father slowly getting used to her urge for more education, Santosh passed the high school examinations and went to Jaipur. She joined Maharani College and got a room in Kasturba Hostel. Santosh remembers, “Kasturba Hostel faced the Aravalli Hills. I used to watch villagers from my room, going up the hill and suddenly vanishing after a while. One day I decided to check it out myself. I found nobody except a few mountaineers. I asked if I could join them. To my pleasant surprise, they answered in the affirmative and motivated me to take to climbing.”
Then there was no looking back for this determined young girl. She saved money and enrolled in a course at Uttarkashi’s Nehru Institute of Mountaineering. “My college semester in Jaipur was to end in April but it ended on the nineteenth of May. And I was supposed to be in Uttarkashi on the twenty-first. So, I did not go back home; instead, I headed straight for the training. I had to write a letter of apology to my father without whose permission I had got myself enrolled at Uttarkashi.”
Thereafter, Santosh went on an expedition every year. Her climbing skills matured rapidly. Also she developed a remarkable resistance to cold and the altitude. Equipped with an iron will, physical endurance and an amazing mental toughness, she proved herself repeatedly. The culmination of her hard work and sincerity came in 1992, just four years after she had shyly asked the Aravalli mountaineers if she could join them. At barely twenty years of age, Santosh Yadav scaled Mt. Everest, becoming the youngest woman in the world to achieve the feat. If her climbing skills, physical fitness, and mental strength impressed her seniors, her concern for others and desire to work together with them found hera special place in the hearts of follow climbers.
During the 1992 Everest Mission, Santosh Yadav provided special care to a climber who lay dying at the South Col. She was unfortunately unsuccessful in saving him. However, she managed to save another climber, Mohan Singh, who would have met with the same fate had she not shared her oxygen with him.
वाक्यार्थ—वह हमेशा पढ़ने में तत्पर रहती थी जिसके आदी उसके पिता भी हो गए थे। संतोष हाई स्कूल की परीक्षा पास की और जयपुर गई। वहाँ महारानी कॉलेज के कस्तूरबा हॉस्टल में उसने एक कमरा लिया। संतोष याद करती है कि “कस्तूरबा हॉस्टल का रुख अरावली पहाड़ी की ओर था। मैं प्रायः गाँव के लोगों को अपने कमरे से देखती रहती थी की वे पहाड़ी पर चढ़ते और अचानक गायब हो जाते थे। एक दिन वहाँ जाकर मैने देखने का निश्चय किया। मैने सिवाय कुछ पर्वतारोहियों के अलावा वहाँ किसी को नहीं पाया । मैंने पूछा क्या मैं इनसे जुड़ सकती हूँ। मुझे आश्चर्य तथा आनन्द हुआ के मैं उनके साथ पर्वतारोहण कर सकती हूँ।
उस दिन के बाद दृढ़ निश्चयी लड़की ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसने पैसा बचाकर उत्तरकाशी के नेहरू इन्स्टीच्युट ऑफ मॉनटेनियरिंग के एक कोर्स में प्रवेश ले लिया। “मेरे कॉलेज का सत्र जयपुर में अप्रैल के अन्त में समाप्त हो रहा था लेकिन यह उन्नीस मई को समाप्त हुआ। इस प्रकार मैं इक्कीस मई को उत्तरकाशी में थी। इस कारण मैं घर नहीं लौटी और सीधा प्रशिक्षण के लिए निकल पड़ी। इसके लिए मुझे एक क्षमा पत्र अपने पिता को लिखना पड़ा क्योंकि बगैर उनकी आज्ञा के मैने उत्तरकाशी में प्रवेश लिया था।” . उसके बाद, संतोष प्रत्येक वर्ष साहसिक यात्रा पर जाती। उसकी पर्वतारोहण की कला परिपक्व होने लगी। साथ ही उसे ठंढ तथा ऊँचाई पर रहना आसान लगने लगा। दृढ़ इच्छा, शारीरिक क्षमता तथा जुझारू इच्छाशक्ति के कारण उसने हमेशा अपने आप को परिपक्व साबित किया। 1992 में उसके कठिन परिश्रम का चरमोत्कर्ष तब पहुँचा जब उसे अरावली पर्वतारोहियों के साथ जुड़ने के लिए कहा गया । मात्र बीस वर्ष की आयु में संतोष यादव ने माउण्ट एवरेस्ट की चोटी पर पहुँच कर विश्व की सबसे कम उम्र की महिला बनी। उसकी चढ़ने की कला, शारीरिक चुस्ती तथा मानसिक शक्ति उनके बड़ों को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
1992 में एवरेस्ट मिशन के दौरान संतोष यादव ने विषय सहायता साऊथ कॉल के पर्वतारोहियों को पहुँचाया। लेकिन वह उनलोगों को नहीं बचा सकी जबकि दूसरे पर्वतारोहियों को वह बचाने में सफल रही। दूसरा पर्वतारोही, मोहन सिंह वह भी उसी परिस्थिति में मिले लेकिन वह अपने ऑक्सीजन के साथ उनसे साझा नहीं कर सकी।
Within twelve months, Santosh found herself a member of an Indo Nepalese Women’s Expedition that invited her to join them. She then scaled the Everest a second time, thus setting a record as the only woman to have scaled the Everest twice, and securing for herself in India a unique place in the annals of mountaineering. In recognition of her achievements, the Indian government bestowed upon her one of the nation’s top honours, the Padmashri.
Describing her feelings when she was literally on top of the world’, Santosh has said, “It took some time for the enormity of the moment to sink in… Then I unfurled the Indian tricolour and held it aloft on the roof of the world. The feeling is indescribable. The Indian flag was flying on top of the world. It was truly a spiritual moment. I felt proud as an Indian.”
Also a fervent environmentalist, Santosh collected and brought down 500 kilograms of garbage from the Himalayas.
वाक्यार्थ-बारह महीनों में संतोप पडो नेपालिज महिला पर्वतरोहिया की सदस्य बनी तथा उन्होंने इसे जुड़ने को आमंत्रित किया। उन्होंने दूसरी बार एवरेस्ट पर चढ़ाई का मन बनाया। इस प्रकार उसने किसी भी महिला द्वारा दो बार चढ़ाई का कीर्तिमान स्थापित किया। भारतीय पर्वतारोहण के इतिहास में गुश्री यादव का अलग स्थान है। उसके इस कार्य के लिए भारत सरकार ने भारत का सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से उसे सम्मानित किया।
अपने अनुभव का वर्णन करते हुए संतोष ने कहा “इस विशाल कार्य को करने में मुझे कुछ समय लगा” तब जाकर मैने भारत का तिरंगा झंडा विश्व के शीर्ष पर लहराया । वास्तव में यह एक आत्मिक क्षण था। मुझे भारतीय होने पर गर्व है।
पर्यावरण प्रेमी होने के कारण संतोष 500 किलोग्राम कूड़ा-करकट जमा कर हिमालय न नीचे लाई।
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