इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के संस्कृत द्रुतपाठाय (Second Sanskrit) के पाठ 5 (Sukeswarashtakam) “ शुकेश्वराष्टकम् ( शुकेश्वर अष्टक ) ” के अर्थ सहित व्याख्या को जानेंगे।
सनातनं पुरातनं परोपकार-साधनम्,
जनस्य कामपूरक मनोजगर्वखर्वकम्।
शुकेश्वरं नमाम्यहं शुकेश्वरं नमाम्यहम्
शुकेश्वरं नमान्यहं शुकेश्वरं नमाम्यहम् ।।
जगत्तमोविनाशकं सदाऽव्ययप्रदाकम्
सदाशयं सहायक, सदाशिवं सुनायकम् । शुकेश्वरं……
सतां सदा सुरक्षकं, दुराशयप्रवाधकम्
भजन्मनोविहारिणं, सदारिवन्दपीडकम् । शुकेश्वरं ………..
उमापितं सतीपति, नमामि तं महागतिम्
नमामि कालिकापति, नमामि तारिकापतिम् । शुकेश्वरं ……
जटायुतं त्रिलोचनं त्रिमार्गगामस्तकम्
गजस्य चर्मधारिणं त्रिशूलशस्वधारिणम् । शुकेश्वरं …..
नवेन्दुना सुभोभितं सुदिव्यपुष्पपूजितम्
मयूरगीततोषितं, सुभक्तिगीतर्कीतितम् । शुकेश्वरं ….
जलप्रियं महेश्वरं कृष: फलप्रदायकम्
जनेश्वरं शुकेश्वरं, सुभूमनित्यपालकम् । शुकेश्वरं …
सुबोधदं सुभक्तिपदं सुभुक्तिमुक्तिदायकम्
चतुष्फलप्रदायक, विशालरूपधारकम् । शकेश्वरं …..
इदं शुकेश्वराष्टकं तु वैद्यनाथकीर्तितम्
पठन्नरः सभक्ति यः, शिवो ददाति वाञ्छितम्। शुकेश्वरं ……….
अर्थ: सनातन स्वरूप, पुरातन स्वरूप परोपकार को साधने वाले भक्तों की इच्छा पूरा करने वाले और कामदेव के गर्व को चूर करने वाले शुकेश्वर महादेव को मैं प्रणाम करता हूँ। शुकेश्वर को मैं प्रणाम करता है, शुकेश्वर को प्रणाम करता हूँ, शकेश्वर को प्रणाम करता हूँ।
जगत के अज्ञानतारूपी तम को विनाश करने वाले, सदैव अक्षरता को प्रदान करने वाले सत्याचरण करने वालों के सहायक, सदाशिव, सुनायक शुकेश्वर को मैं प्रणाम करता हूँ।
सज्जनों के सदैव सुरक्षक दुश्चरित्रों के बाधक भजनेवालों के मन में बिहार करने वाले तथा दुश्मन समुद्र को सदैव पीड़ा देने वाले भगवान शुकेश्वर शिव को प्रणाम करता हूँ।
उमापति, सतीपति तथा महागति देने वाले भगवान शंकर को प्रणाम है। कालिकापति तारिकापति भगवान शुकेश्वर शिव को प्रणाम करता हूँ।
जटाधारी, त्रिलोचन, गंगा जल से जिनका मस्तक गीला रहता है, हाथी की खाल को धारण वाले, त्रिशूल नामक शस्त्र धारण करने वाले भगवान शुकेश्वर शिव को प्रणाम करता हूँ। द्वितीया के चन्द्रमा से शोभित सुन्दर दिव्य पुष्पों से पूजित होने वाले, मयूर के गीत से संतुष्ट होने वाले भक्ति के सुन्दर गायन करने वाले, भगबान शुकेश्वर शिव को प्रणाम करता हूँ।
जल के प्रिय, महेश्वर, कृषि में फल देने वाले मनुष्य के ईश्वर, शुक के ईश्वर, सहपात्रों को सदैव पालन करने वाले भगवान् शुकेश्वर शिव को मैं प्रणाम करता हूँ। .
सुन्दर ज्ञान देने वाले, सुन्दर भक्ति देने वाले, सुन्दर भोग देने वाले, भुक्ति देनेवाले, धर्म-अर्थ, काम-मोक्ष (चतुष्फल) को प्रदान करने वाले, विशाल रूप धारण करने वाले भगवान शुकेश्वर शिव को मैं प्रणाम करता हूँ।
वैद्यनाथ के द्वारा गाया गया यह शुकेश्वर अष्टक जो व्यक्ति भक्तियुक्त होकर पाठ करेगा उसे भगवान शिव मनोकामना पूरा कर देते हैं।
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