इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड के कक्षा 10 के भूगोल के आपदा प्रबंधन के इकाई छ: का पाठ ‘आपदा और सह-अस्तित्व’ (Aapda aur Sah Ashtitav) के महत्वपूर्ण टॉपिक को पढ़ेंगें।
इकाई-6
आपदा और सह-अस्तित्व (Aapda aur Sah Ashtitav)
बाढ़, सुखाड़, चक्रवात, भूकम्प, ज्वालामुखी विस्फोट, सुनामी, भूस्खलन, हिमस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओ का होना स्वभाविक हैं, इसे रोका नही जा सकता हैं। हाँ, इसके मुकाबले के लिए हमे सदैव तैयार रहना चाहिए और आपदा पूर्व ही तैयारी करनी चाहिए ताकि कम से कम क्षति हो सके और अधिक से अधिक लोगो को जान माल की सुरक्ष मिल सके।
भूकम्प :
भूकंप एक बहुत बड़ी एवं अत्यंत विनाशकारी प्राकृतिक आपदा है। भूकम्प आने पर कुछ ही देर में इतनी बर्बादी हो जाती हे जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा के लिए सुरक्षित आवासीय या सार्वजनिक भवन के निर्माण के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर अवश्य ध्यान देना चाहिए :
1.भवनों को आयताकार होना चाहिए और नक्शा साधारण होना चाहिए।
2.लम्बी दीवारों का सहारा देने के लिए ईंट-पत्थर या कंक्रीट के कालम होने चाहिए।
3.नींव को मजबूत एवं भूकंप अवरोधी होनी चाहिए।
4.दरवाजे खिड़कियों की स्थिति भूकम्प अवरोधी होनी चाहिए।
5.गलियों एवं सड़कों को चौड़ा होना चाहिए तथा दो भवनों के बीच प्रर्याप्त दूरी होनी चाहिए।
भूस्खन :
भूस्खलन के पाँच रूप होते हैं 1. बारिश के पानी के साथ मिट्टी और कचड़े का नीचे आना, 2. कंकड़-पत्थरों का खिसकना, 3. कंकड़-पत्थर का गिरना, 4. चट्टानों का खिसकना तथा 5. चट्टानों का गिरना।
भूस्खलन के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए।
1.ढ़ालवा स्थानों पर आवासों का निर्माण न करना।
2.मिट्टी की प्रकृति के अनुरूप उपयुक्त नींव बनाना।
3.सड़कों, नहर निर्माण एवं सिंचाई के क्रम में इस बात का ध्यान रखना कि प्राकृतिक जल की निकासी न रूके।
4.इसकों रोकने के लिए दीवारों का निर्माण करना चाहिए।
5.अधिक-से-अधिक पेड़ लगाना चाहिए।
सुनामी :
सुनामी के कारण बडी हानि जान-माल की होती है। यह तटीय क्षेत्रों में खेतों को बंजर बना देता है।
सुनामी को न ही रोका जा सकता है और इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके लिए निम्नलिखित तरिके अपनाना चाहिए।
1.जहाँ सुनामी की लहरें अक्सर आती है, वहाँ लोगों को तट से दूर बसने के लिए प्रोत्साहन देना।
2.समुद्र तटीय भाग में घना वृक्षारोपण कर सुनामी के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
3.नगरों एवं पत्तनों को बचाने के लिए कंक्रीट अवरोधक का निर्माण करना चाहिए।
4.सुनामीटर द्वारा समुद्रतल में होने वाली हलचल का पता लगाते रहना चाहिए।
5.तटीय क्षेत्रों में मकान ऊँचे स्थान पर और तट से करीब दो सौ मीटर की दूरी पर बनाना चाहिए।
बाढ़ :
बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है लेकिन इससे होने वाली तबाही से भी बचा जा सकता है।
इससे राहत पाने के लिए सबसे पहले बाढ़ प्रभावित क्षेत्रोंका मानचित्र तैयार करें। इन क्षेत्रों में बड़े विकास योजना की अनुमति नहीं देना चाहिए। जलजमाव वाले क्षेत्रों में भवन निर्माण नहीं करना चाहिए। आवास के लिए ऊँचे सुरक्षित स्थानों को चुनना चाहिए। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में वनों का अधिक विकास करना चाहिए। नदियों के दोनों तटों पर तट बंध का निर्माण करके बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों को बहुत हद तक सुरक्षा प्रदान किया जा सकता है।
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में नहरों का जाल बिछा कर इसके विभिषिका को कम करने के साथ-साथ सिंचाई भी किया जा सकता है।
ऐसे फसलों या प्रजातियों का विकास करना चाहिए जो बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में भी पैदा की जा सकता है।
सुखाड :
सुखाड़ एक ऐसी आपदा है, जो अचानक नहीं आता है। बल्कि यह संकेत देकर आता है। इसके अंत की अवधि नहीं होती है।
सुखाड़ तीन प्रकार के होते हैं :
1.सामान्य सुखाड़, 2. कृषि सुखाड़ और 3. मौसमी सुखाड़
सबसे खतरनाक मौसमी सुखाड़ को माना जाता है। सुखाड़ के समय जल के अभाव से न केवल मिट्टी की नमी समाप्त हो जाती है, बल्कि सभी प्राणियों को जान तक बचाना मुश्किल हो जाता है। अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। खाद्यान्नों की भारी कमी हो जाती है।
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