इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के पद्य भाग के पाठ 10 (Akshar Gyan) “अक्षर ज्ञान” के व्याख्या को पढ़ेंगे, इस कविता के कवि अनामिका है | इसमें बच्चों के अक्षर-ज्ञान की प्रारंभिक शिक्षण-प्रक्रिया के कौतुकपूर्ण वर्णन चित्रण द्वारा कवियित्री गंभीर आशय व्यक्त करती है।
10. अक्षर ज्ञान (Akshar Gyan)
लेखक परिचय
लेखक- अनामिका
जन्म- 17 अगस्त 1961 ई०, मुजफ्फरपुर (बिहार) उम्र- 59 वर्ष
इनके पिता श्यामनंदन किशोर बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर में हिंदी विभाग के अध्यक्ष थे।
कवियित्री अनामिका दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम० ए० और पी॰ एच॰ डी॰ करने के बाद सत्यवती कॉलेज दिल्ली में अध्यापन कार्य आरम्भ किया।
प्रमुख रचनाएँ- इन्होंने गद्य और पद्य दोनों में लेखन कार्य किया- गलत पत्तों की चिट्ठी अनुष्ठुप पोस्ट-एलिएट पोएट्री तथा स्त्रीत्व का मानचित्र आदि।
कविता परिचय- प्रस्तुत कविता समसामयिक कवियों की चुनी गई कविताओं की चर्चित श्रृंखला ‘कवि ने कहा‘ से संकलित है। इसमें बच्चों के अक्षर-ज्ञान की प्रारंभिक शिक्षण-प्रक्रिया के कौतुकपूर्ण वर्णन चित्रण द्वारा कवियित्री गंभीर आशय व्यक्त करती है।
10. अक्षर ज्ञान (Akshar Gyan)
चौखटे में नहीं अँटता
बेटे का ‘क‘
कबुतर ही है न-
फुदक जाता है जरा-सा !
कवियित्री अनामिका बच्चों के अक्षरज्ञान के बारे में कहती है कि जब माता-पिता बच्चों के अक्षर सिखाना आरंभ करते हैं तब बाल्यावस्था के कारण बच्चा बड़ी कठिनाई से ‘क‘ वर्ण का उच्चारण कर पाता है।
पंक्ति से उतर जाता है
उसका ‘ख‘
खरगोस की खालिस बेचैनी में !
गमले-सा टूटता हुआ उसका ‘ग‘
घड़े-सा लुढ़कता हुआ उसका ‘घ‘।
इसके बाद ‘ख‘ वर्ण की बारी आती है। इस प्रकार ‘ग‘ तथा ‘घ‘ वर्ण भी सिखता है। लेकिन अबोधता के कारण बच्चा इन वर्णों को क्रम से नहीं बोल पाता। कभी ‘क‘ कहना भूल जाता है तो कभी ‘ख‘। तात्पर्य यह कि व्यक्ति का प्रारंभिक जीवन सही-गलत के बीच झूलता रहता है। जैसे ‘क, ख, ग, घ‘ के सही ज्ञान के लिए बेचैन रहता है।
‘ङ‘ पर आकर थमक जाता है
उससे नहीं सधता है ‘ङ‘ ।
‘ङ‘ के ‘ड‘ को वह समझता है ‘माँ‘
और उसके बगल के बिंदू (.) को मानता है
गोदी में बैठा ‘बेटा‘
कवियित्री कहती है कि अक्षर-ज्ञान की प्रारंभिक शिक्षा पानेवाला बच्चा ‘क‘ वर्ग के पंचमाक्षर वर्ण ‘ङ‘ का ‘ट‘ वर्ग का ‘ड‘ तथा अनुस्वार वर्ण को गोदी में बैठा बेटा मान लेता है। बच्चा को लगता है कि ‘ड‘ वर्ण के आगे अनुस्वार लगने के कारण ‘ङ‘ वर्ण बन गया।
माँ-बेटे सधते नहीं उससे
और उन्हें लिख लेने की
अनवरत कोशिश में
उसके आ जाते हैं आँसु।
पहली विफलता पर छलके आँसु ही
हैं सायद प्रथमाक्षर
सृष्टि की विकास- कथा के।
कवियित्री कहती हैं कि बच्चा ‘ङ‘ वर्ण का सही उच्चारण नहीं कर पाता है। वह बार-बार लिखता है, ताकि वह उसकी सही उच्चारण कर सके, लेकिन अपने को सही उच्चारण करने में असमर्थ जानकर रो पड़ता है। तात्पर्य यह कि अक्षर-ज्ञान जीवन की विकास-कथा का प्रथम सोपान है। (Akshar Gyan)
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