इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल के पाठ 11 ‘अंतर्राष्ट्रीय व्यापार ( Antrashtriy byapar class 12th Notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे।
अध्याय 11
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
वर्ष 1950-51 में, भारत का वैदेशिक व्यापार का मूल्य 1,214 करोड़ रूपए था, जो कि वर्ष 2016-17 में बढ़कर 44,29,762 करोड़ रूपए हो गया। भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वस्तुओं के संघटकों में समय के साथ बदलाव आए हैं। इसमें कृषि तथा समवर्गी उत्पादों का हिस्सा घटा है, जबकि पेट्रोलियम तथा अपरिष्कृत उत्पादों एवं अन्य वस्तुओं में वृद्धि हुई है।
परंपरागत वस्तुओं के व्यापार में गिरावट का कारण मुख्यतः कड़ी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा है। कृषि उत्पादों के अंतर्गत कॉफी, काजू, दालों आदि जैसी परंपरागत वस्तुओं के निर्यात में गिरावट आई है।
भारत के आयात–संघटन के बदलाते प्रारूप
भारत ने 1950 एवं 1960 के दशक में खाद्यानों की गंभीर कमी का अनुभव किया है। उस समय आयाती की प्रमुख वस्तुएँ खाद्यान्न, पूँजीगत माल, मशीनरी एवं उपस्कर आदि थे।
1970 के दशक के बाद हरित क्रांति में सफलता मिलने पर खाद्यान्नों का आयात रोक दिया गया। लेकिन 1973 में आए ऊर्जा संकट से पेट्रोलियम (पदार्थों) के मूल्य में उछाल आया फलतः आयात बजट भी बढ़ गया। खाद्यान्नों के आयात की जगह उर्वरकों एवं पेट्रोलियम ने ले ली।
पेट्रोलियम तथा इसके उत्पादों के आयात में तीव्र वृद्धि हुई है। इसे न केवल ईधन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है बल्कि इसका प्रयोग उद्योगों में एक कच्चे माल के रूप में भी होता है।
व्यापार की दिशा
भारत के व्यापारिक संबंध विश्व के अधिकांश देशों एवं प्रमुख व्यापारी गुटों के साथ हैं। भारत का उद्देश्य आगामी पाँच वर्षो के दौरान अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अपनी हिस्सेदारी को दुगुना करने का है।
भारत का अधिकतर विदेशी व्यापार समुद्री एवं वायु मार्गों द्वारा संचालित होता है। हालाँकि, विदेशी व्यापर का छोटा सा भाग सड़क मार्ग द्वारा नेपाल, भूटान, बांग्लादेश एवं पाकिस्तान जैसे पड़ोसी राज्यों में सड़क मार्ग द्वारा किया जाता है।
Antrashtriy byapar class 12th Notes
क्या आप इन दोनों तटों पर पत्तनों की अवस्थिति की भिन्नता के कारणों का पता लगा सकते हैं।
वर्तमान में, भारत में 12 प्रमुख और 200 छोटे या मझोले पत्तन हैं। आंतरिक प्रदेशों में रेलवे के विस्तार ने स्थानीय बाजारों को क्षेत्रीय बाजारों और क्षेत्रीय बाजारों को राष्ट्रीय बाजारों तथा राष्ट्रीय बाजारों को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से जोड़ने की सुगमता प्रदान की। यह प्रवृत्ति 1947 तक बनी रही।
देश के विभाजन से भारत के दो अति महत्वपूर्ण पत्तन अलग हो गए। कराची पत्तन पाकिस्तान में चला गया और चिटगाँव पत्तन तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और अब बांग्लादेश में चला गया।
आज भारतीय पत्तन विशाल मात्रा में घरेलू के साथ-साथ विदेशी व्यापार का निपटान कर रहे हैं। अधिकतर पत्तन आधुनिक अवसंरचना से लैस हैं।
कच्छ की खाड़ी के मुँहाने पर अवस्थित कांडला पत्तन को देश के पश्चिमी एवं उत्तर-पश्चिमी भाग की जरूरतों को पूरा करने और मुंबई पत्तन पर दबाव को घटाने के लिए एक प्रमुख पत्तन के रूप में विकसित किया गया है। इस पत्तन को विशेष रूप से भारी मात्रा में पेट्रोलियम, पेट्रोलियम उत्पादों एवं उर्वरकों को ग्रहण करने के लिए बनाया गया है।
मुंबई एक प्राकृतिक पत्तन और देश का सबसे बड़ा पत्तन है। यह पत्तन मध्यपूर्व, भूमध्य सागरीय देशों, उत्तरी अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका तथा यूरोप के देशों के सामान्य मार्ग के निकट स्थित है यह पत्तन 20 कि.मी. लंबा तथा 6-10 कि.मी. चौड़ा है। जिसमें 54 गोदियाँ और देश का विशालतम टर्मिनल हैं।
जवाहरलाल नेहरू पत्तन को न्हावा-शेवा में मुंबई पत्तन के दबाव को कम करने के लिए एक अनुषंगी पत्तन के रूप में विकसित किया गया था। यह भारत का विशालतम कंटेनर पत्तन है।
जुआरी नदमुख के मुँहाने पर अवस्थिति मार्मागाओ पत्तन गोवा का एक प्राकृतिक बंदरगाह है।
न्यू मंगलौर पत्तन कर्नाटक में स्थित है और लौह-अयस्क और लौह-सांद्र के निर्यात की जरूरतों को पूरा करता है।
बेंवानद कायाल, जिसे ‘अरब सागर की रानी‘ (क्वीन ऑफ अरेबियन सी) के लोकप्रिय नाम से जाना जाता है, के मुँहाने पर स्थित कोच्चि पत्तन भी एक प्राकृतिक पत्तन है।
यह केरल, दक्षिणी कर्नाटक तथा दक्षिण-पश्चिमी तमिलनाडु की आवश्यकताओं को पूरा करता है।
कोलकाता पत्तन हुगली नदी पर अवस्थित है जो बंगाल की खाड़ी से 128 कि.मी. स्थल में अंदर स्थित है।
कोलकाता पत्तन हुगली नदी द्वारा लाई गई गाद की समस्या से भी जुझता रहा है जो कि उसे समुद्र से जुड़ने का मार्ग प्रदान करती है।
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हल्दिया पत्तन कोलकाता से 105 कि.मी. अंदर अनुप्रवाह (डाउनस्ट्रीम) पर स्थित है। इसका निर्माण कोलकाता पत्तन की संकुलता को घटाने के लिए किया गया है।
पारादीप पत्तन कटक से 100 कि.मी. दूर महानदी डेल्टा पर स्थित है। इसका पोताश्रय सबसे गहरा है जो भारी पोतों के निपटान के लिए सर्वाधिक अनुकूल है।
विशाखापट्नम आंध्र प्रदेश में एक भू-आबद्ध पत्तन है जिसे ठोस चट्टान एवं बालू को काटकर एक नहर के द्वारा समुद्र से जोड़ा गया है।
चेन्नई पत्तन–पूर्वी तट पर स्थित यह सबसे पुराने पत्तनों में से एक है। यह एक कृत्रिम पत्तन है जिसे 1859 में बनाया गया था। तट के निकट उथले जल के कारण यह पत्तन विशाल पोतों के लिए अनुकूल नहीं है।
तमिलनाडु में नई विकसित एन्नोर पत्तन चेन्नई के उत्तर में 25 कि.मी. दूर चेन्नई पत्तन के दबाव को कम करने के लिए बनाई गई है।
तूतीकोरिन पत्तन का विकास भी चेन्नई पत्तन के दबाव को कम करने के लिए किया गया था।
हवाई अड्डे
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वायु परिवहन एक महत्तवपूर्ण भूमिका निभाता है। इन्हें लंबी दूरी वाले उच्च मूल्य वाले या नाशवान सामानों को कम समय में ले जाने व निपटाने के लिए लाभ प्राप्त होते हैं। देश में 25 अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे कार्य कर रहे हैं।
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