इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड के कक्षा 10 के अर्थशास्त्र के पाठ एक ‘अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास (Arthvyavastha Evam Iske Vikas Ka Itihas)‘ के सभी महत्वपूर्ण टॉपिक को पढ़ेंगें।
1. अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास
15 अगस्त, 1947 को मिली आजादी से पहले लगभग 200 वर्षो तक भारत अंग्रेजी शासन का गुलाम था। उस समय भारत को सोने की चिड़ियाँ कहा जाता था। लेकिन अंग्रेजी शासन ने सोने की इस चिड़ियाँ का भरपूर शोषण किया तथा जमकर लूटा, जिसके कारण भारत में आर्थिक विकास की गति मंद या नगण्य रही। अंग्रेजी शासन के 200 वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था में कोई विकास नही हुआ।
उपनिवेश – जब कोई भी देश किसी बड़े समृ़द्धशाली राष्ट्र के शासन के अंतर्गत रहता है और उसके समस्त आर्थिक एवं व्यवसायिक कार्यों का निर्देशन एवं नियंत्रण शासक देश का होता है तो ऐसे शासित देश को शासक देश का उपनिवेश कहा जाता है। भारत करीब 200 वर्षों तक ब्रिटिश शासन का एक उपनिवेश था।
अर्थयवस्था का अर्थ
हमारी वे सभी क्रियाएँ, जिनसे हमें आय प्रप्त होती हैं, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं अर्थव्यवस्था एक ऐसा तंत्र या ढाँचा हैं जिसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ सम्पादित कि जाती है, जैसे-कृषी, उद्योग, व्यापार बैंकिंग, बीमा, परिवहन तथा संचार आदि।
प्रत्येक अर्थव्यवस्था दो प्रमुख कार्य संपादित करती हैं-
1.लोगों की आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करती है।
2.लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करती हैं।
आर्थर लेविस के अनुसार अर्थवयवस्था का अर्थ किसी राष्ट्र के सम्पूर्ण व्यवहार से होता है जिसके आधार पर मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए वह अपने संसाधनों का प्रयोग करता है।
ब्राउन के अनुसार अर्थव्यवस्था आजीविका अर्जन की एक प्रणाली है।
दूसरे शब्द में, अर्थव्यवस्था आर्थिक क्रियाओं का एक ऐसा संगठन है जिसके अन्तर्गत लोग कार्य करके अपनी आजीविका चलाते है।
अर्थव्यवस्था समाज की सभी आर्थिक क्रियाओं का योग है।
Arthvyavastha Evam Iske Vikas Ka Itihas
अर्थव्यवस्था की संरचना या ढाँचा
अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ अथवा गतिविधियाँ सम्पादित की जाती हैं, इन क्रियाओं को मोटे तौर पर तीन भागों में बाँटा जाता है-
1.प्राथमिक क्षेत्र
2.द्वितीयक क्षेत्र
3.तृतीयक क्षेत्र या सेवा क्षेत्र
4.प्राथमिक क्षेत्र- प्राथमिक क्षेत्र को कृषि क्षेत्र भी का जाता है। इसके अंर्तगत कृषि, पशुपालन, मछली पालन, जंगलो से वस्तुओं को प्राप्त करना जैसे व्यवसाय आते हैं।
5.द्वितीयक क्षेत्र- द्वितिय क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र भी कहा जाता हैं। इसके अंर्तगत खनिज व्यवसाय, निर्माण-कार्य, जीवनोपयोगी सेवाएँ, जैसे- गैस और बिजली आदि के उत्पादन आते हैं।
6.तृतीयक क्षेत्र या सेवा क्षेत्र- तृतीयक क्षेत्र को सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत बैंक एवं बीमा, परिवहन, संचार एवं व्यापार आदि क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। ये क्रियाएँ प्राथमिक एवं द्वितियक क्षेत्रों की क्रियाओं को सहायता प्रदान करती हैं। इसलिए इसे सेवा क्षेत्र कहा जाता हैं।
अर्थव्यवस्था के प्रकार
विश्व में निम्न तीन प्रकार की अर्थव्यवस्था पाई जाती हैं-
1.पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाः- पूँजीवादी अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जहाँ उत्पादन के साधनां का स्वामित्व एवं संचालन नीजी व्यक्तियों के पास होता है जो इसका उपयोग अपने निजी लाभ के लिए करते हैं। जैसेः-अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि।
2.समाजवादी अर्थव्यवस्थाः- समाजवादी अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था हैं जहाँ उत्पादन के साधनां का स्वामित्व एवं संचालन देश की सरकार के पास जाता है जिसका उपयोग सामाजिक कल्यान के लिए किया जाता है। चीन, क्युबा आदि देशों मे समाजवादी अर्थव्यवस्था हैं।
3.मिश्रत अर्थव्यवस्थाः- मिश्रत अर्थव्यवस्था पूँजीवादी तथा समाजवादी अर्थव्यवस्था
का मिश्रण है। मिश्रित अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जहाँ उत्पादन के साधनों का स्वामित्व सरकार तथा निजीं व्यक्तियों के पास होता है।
अर्थव्यवस्था का विकास
अर्थव्यवस्था के विकास का एक लम्बा इतिहास है। अर्थव्यवस्था का विकास एक पौधां की विकास की तरह होता है। जिस तरह एक पौधे का क्रमशः विनाश होते जाता हैं और परिपक्वता कि स्थिति में उससे फल डाली आदि का उपयोग मानव हित में होता है। ठीक उसी तरह एक अर्थव्यवस्था का आदिम काल से अब तक विकस हुआ है। अर्थव्यवस्था में हुए परिवर्तन हम अर्थव्यवस्था के विकास कि कहानी कह सकते हैं।
भारत में योजना आयोग का गठन 15 मार्च 1950 को किया गया था। आयोग के अध्यक्ष पदेन भारत के प्रधानमंत्री होते हैं। समान्यतः काम- काज एक उपाध्यक्ष के देख-रेख में होता है। जिसकी सहायता के लिए आयोग के आठ सदस्य होते हैं।
राष्ट्रीय विकास परिषद् भारत में राष्ट्रीय विकास परिषद् का गठन 6 अगस्त 1952 को किया गया था। इसका गठन आर्थिक नियोजन हेतु राज्य सरकारों तथा योजना आयोग के बीच ताल-मेल तथा सहयोग का वातावरण बनाने के लिए किया गया था। राष्ट्रीय विकास परिषद् में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री इसके पदेन सदस्य होते हैं।
मौद्रिक विकास की संक्षिप्त कहानी
1.वस्तु विनिमय प्रणाली- वस्तु से वस्तु का लेन-देन
2.मौद्रिक प्रणाली- मुद्रा से वस्तु एवं सेवाओं का विनिमय
3.बैंकिग प्रणाली- बैंक के माध्यम से चेक के द्वारा विनियम के क्रिया का संपादन
4.कोर बैंकिग प्रणाली के अंतर्गत एक संकेत से एक व्यक्ति के खाते से दूर अवस्थित दूसरे व्यक्ति को उसी बैंक के माध्यम से पैसा का हस्तानांनतरण
5.ए.टी.एम प्रणाली- प्लास्टिक के एक छोटे से कार्ड पर अंकित सुक्ष्म संकेत के आधार पर कहीं भी तथा किसी भी समय निर्धारित बैंक के केन्द्र से पैसे निकालने की सुविधा।
6.डेबिट कार्ड- बैंक द्वारा दिया गया प्लास्टिक का कार्ड जिसके द्वारा बैंक में अपनी जमा राशि के पैसे का उपयोग करना।
7.क्रेडिट कार्ड- बैंक द्वारा जारी किया गया प्लास्टिक का एक कार्ड जिसके आधार पर उसके धारक द्वारा पैसे अथवा वस्तु प्राप्त कर लेना।
Arthvyavastha Evam Iske Vikas Ka Itihas
आर्थिक विकास की माप एवं सूचकांक
राष्ट्रीय आय- आर्थिक विकास के एक प्रमुख सूचक राष्ट्रीय आय को माना जाता है। किसी देश में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य के योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता हैं। सामान्य तौर पर जिस देश का राष्ट्रिय आय अधिक होता है वह देश विकसित कहलाता हैं और जिस देश का राष्ट्रिय आय कम होता हैं। वह देश अविकसित कहलाता हैं।
प्रति व्यक्ति आयः- आर्थिक विकास की माप करने के लिए प्रति व्यक्ति आय को सबसे उचित सुचकांक माना जाता है। प्रति व्यक्ति आय देश मे रहते हुए व्यक्तियों कि औसत आय होती है। राष्ट्रीय आय देश कि कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता हैं, वह प्रति व्यक्ति आय कहलाता है। फार्मूले के रूप में-
प्रतिव्यक्ति आय = राष्ट्रीय आय/कुल जनसंख्या
विश्व बैंक की विश्व विकास रिपोर्ट 2006 के अनुसार जिन देशों की 2004 में प्रतिव्यक्ति आय 453000 रूपये प्रतिवर्ष या इससे अधिक है, वह विकसित देश हैं और वे देश जिनकी प्रति व्यक्ति आय 37000 रूपये या इससे कम है उन्हें विकासशील देश कहा गया है। भारत विकासशील (निम्न आय वर्ग) वाले देश में आता है, क्योंकि 2004 के अनुसार भारत की प्रतिव्यक्ति वार्षिक आय 28000 रूपये थी।
2000-2003 के आंकड़े के अनुसार पंजाब के प्रतिव्यक्ति वार्षिक आय 26000, केरल की 22800 तथा बिहार की मात्र 5700 थी।
मानव विकास सूचकांक- यूएनडीपी द्वारा मानव विकास रिपोर्ट विभिन्न देशों की तुलना लोगों की शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति और प्रति व्यक्ति आय के आधार पर करती है।
मानव विकास सूचकांक के तीन सूचक हैं-
1.जीवन आशा
2.शिक्षा प्राप्ति तथा
3.जीवन-स्तर।
2004 के लिए विभिन्न देशों की मानव विकास सूचकांक
2004 में 177 देशों के लिए मानव विकास सूचकांक की गणना की गई थी। जिसमें भारत का स्थान 126वां है। नार्वे का पहला स्थान तथा ऑस्ट्रेलिया का तीसरा स्थान है। इसका मतलब है कि भारत में मानव विकास मध्यम स्तर का है।
Arthvyavastha Evam Iske Vikas Ka Itihas
बिहार के विकास की स्थिति
बिहार का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। यही पर गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। महावीर ने शांति के संदेश यहीं से दिया था। चन्द्रगुप्त, अशोक, शेरशाह, गुरुगोविंद सिंह, बाबू कुँवर सिंह, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म बिहार से ही हुआ है। महात्मा गाँधी ने चम्पारण आंदोलन की शुरूआत यहीं से किया था। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने ‘संपूर्ण क्रांति‘ का नारा इसी बिहार से दिया था, फिर भी बिहार काफी पिछे है। साधनों के मामले में धनी होते हुए भी बिहार की स्थिति दयनीय है। इसे पिछड़े राज्यों में गिना जाता है।
बिहार के पिछड़ेपन के कारण
1.तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या
2.आधारित संरचना का अभाव
3.कृषि पर निर्भरता
4.बाढ़ तथा सूखा से क्षति
5.औद्योगिक पिछड़ापन
6.गरीबी
7.खराब विधि व्यवस्था
8.कुशल प्रशासन का अभाव
बिहार के पिछड़ेपन को दूर करने के उपायः- आर्थिक विकास की गति को तेज करके ही बिहार की स्थिति में सुधार किया जा सकता हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ0 ए0 पी0 जे0 अब्दूल कलाम ने कहा था कि बिहार के विकास के बिना भारत का विकास संभव नही है।
1.बिहार में पिछड़ेन को दूर करने के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं।
2.जनसंख्या पर नियंत्रण- बिहार के पिछड़ेपन का मुख्य कारण जनसंख्या है। यहाँ जनसंख्या घनत्व भारत के सभी राज्यों में प्रथम स्थान पर है। जनसंख्या को नियंत्रण कर बिहार के पिछड़ेपन को दूर किया जा सकता है।
3.कृषि का तेजी से विकास- यहाँ ज्यादातर भागों में परम्परागत तरीके से ही खेती की जाती है। कृषि में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर कृषि का विकास किया जा सकता है।
4.बाढ़ पर नियंत्रण- बिहार के पिछड़ेपन का मुख्य कारण बाढ़ है। यहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ आ जाते हैं। हमेशा उत्तर बिहार बाढ़ से ग्रस्त रहता है। इसके स्थाई निदान से बाढ़ पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
5.आधारिक संरचना का विकासः- बिहार में बिजली की काफी कमी है। अतः बिजली का उत्पादन बढ़ाया जाए। सड़क व्यवस्था में सुधार लाया जाए। शिक्षा एवं स्वास्थ सुविधाओं में सुधार लाया जाए जिससे विकास की प्रक्रिया और अधिक बढ़ सके।
उद्योगों का विकास- बिहार में उद्योगों का विकास कर इसके पिछड़ेपन को दूर किया जा सकता है।
6.गरीबी दूर करनाः- बिहार मे गरीबी का सबसे अधिक प्रभाव हैं। गरीबी रेखा के नीचे लगभग 42 प्रतिशत से भी अधिक लोग यहाँ जीवन-वसर कर रहें हैं। इनके लिए रोजगार की व्यवस्था की जाए स्व-रोजगार को बढ़ावा देने के लिए इन्हे प्रशिक्षण दिया जाता है।
7.शांत व्यवस्था की स्थापनाः- बिहार मे शांति की का माहौल कायम कर व्यक्तियों में विश्वास जगाया जा सकता है तथा आर्थिक विकास की गति को तेज किया जा सकता हैं।
8.स्वच्छ तथा इमानदार प्रशासनः- बिहार के आर्थिक विकास के लिए स्वच्छ, कुशल तथा इमानदार प्रशासन जरूरी हैं।
9.केन्द्र से अधिक मात्रा में संसाधनों का हस्तांतरण- भारत सरकार बिहार को आर्थिक सहायता तथा विशेष राज्य का दर्जा देकर इसके पिछड़ेपन को दूर किया जा सकता है।
देश के आर्थिक विकास में बिहार के विकास की भूमिकाः- बिहार देश का एक बड़ा राज्य हैं। भौगोलिक क्षेत्रफल तथा जनसंख्या दोनों ही दृष्टिकोण से बिहार का स्थान भारत में अपना एक अलग महत्व रखता हैं। इसलिए कहा जाता है की यदि भारत का विकास करना है तो बिहार का विकास करना आवश्यक हैं।
बिहार देश का एक ऐसा राज्य है जहाँ अत्यधिक उर्वरक भूमि है। हिमालय से निकलने वाली नदियों में लगातार जल प्रवाह होता रहता है। यहाँ धरती के नीचे कम सतह पर ही जल प्राप्त हो जाते हैं। यदि बिहार की नदियों को परस्पर जोड़ कर जल संसाधन के उपयोग की योजना लागू कर दिया जाए तो उत्तरी बिहार को बाढ़ की विभीषिका से बचाया जा सकता है तथा दक्षिणी बिहार को सिंचाई की सुविधा द्वारा सूखे से बचाया जा सकता है।
देश के आर्थिक विकास के प्रत्येक क्षेत्र में बिहारीयों का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। हाल के वर्षों में बिहार के विकास में गति आई है। केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन ने बिहार का वर्तमान विकास दर 11.03 प्रतिशत माना है जो देश में गुजरात 11.5% के बाद दूसरा हैं। यदि देश और बिहार कंधा में कंधा मिलाकर विकास की क्रिया के वर्तमान दौर को कारगर करें तो इक्कीसवीं शताब्दी में आर्थिक दृष्टिकोण से भारत विश्व के अग्रणी देशों में आ जाएगा। अतः स्पस्ट है कि देश के आर्थिक विकास में बिहार के आर्थिक विकास की भूमिका महत्वपूर्ण हैं।
मूलभूत आवश्यकताएँ एवं विकास का संबंध
देश के नागरिकों के रहने के लिए मकान, खाने के लिए रोटी तथा शरीर ढ़कने के लिए कपड़ा उनकी न्यूनतम मूलभूत आवश्यकता है। देश की बढ़ती हुई जनसंख्या विकास के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा है। समुचित न्यायपूर्ण सार्वजनिक वितरण प्रणाली से लोगों को खाने के लिए रोटी उप्लठब्ध हो सकता है। देश में रोजगार के द्वारा नागरिको को आय में वृद्धि की जा सकती है। जिससे उन्हें कपड़ा और मकान उपलब्ध होगा। देश के ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब मजदूरों के लिए राष्ट्रव्यापी रोजगार देने कि योजना बनाई गई है। यह योजना राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत शुरू कि गई है। इसे संक्षेप में नरेगा कहा जाता हैं। ग्रामीण रोजगार देने की इस स्कीम को विश्व का सबसे बड़ा रोजगार योजना माना जाता हैं।
गरीबी रेखाः- गरीबी को निर्धारित करने के लिए योजना आयोग द्वारा सीमांकन किया गया है। गरीबी-रेखा कैलोरी मापदंड पर आधारित है। ग्रामिण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्रो में 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन निर्धारित किया गया है। अर्थशास्त्र में गरीबी की माप की यह एक काल्पनिक रेखा है। इस रेखा के नीचे के लोगों को गरीबी रेखा के नीचे माना जाता है। इसे संक्षेप में BPL भी कहा जाता है।
Read More – click here
Arthvyavastha Evam Iske Vikas Ka Itihas Video – click here
Class 10 Science – click here
Class 10 Sanskrit – click here