इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्दी के कहानी पाठ उन्नीस ‘ Aryabhatta ( आर्यभट )’ के सारांश को पढ़ेंगे।
19 आर्यभट
(पाठ्श्ययपुस्तक विकास समिति)
पाठ का सारांश-प्रस्तुत पाठः ‘आर्यभट’ में महान खगोलशास्त्री आर्यभट के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला गया है। उन्होंने ही सर्वप्रथम यह बताया कि सूर्य स्थिर है और पृथ्वी अपनी धूरी पर चक्कर लगाती है।
मानव कल्पनाशील प्राणी है। इसी कल्पनाशीलता के कारण आर्यभट ने आकाश . में विद्यमान ग्रह-नक्षत्रों के रूप-रंग, आकार तथा रचना को जानने का प्रयास किया होगा। इसी प्रयास के फलस्वरूप आज मानव धरती पर बैठे-बैठे कुछ नक्षत्रों में घटनेवाली घटनाओं को जानने में समर्थ हुआ है।
ऐसे तो हजारों वर्ष पूर्व भी ग्रह-नक्षत्रों के विषय में विस्तार से चिन्तन-मनन किया गया, लेकिन सर्वप्रथम आर्यभट ने ही इस बात का खुलासा किया कि तारामंडल स्थिर है और पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है जिसे वैज्ञानिकों ने सहर्ष स्वीकार किया। इसके पहले ऐसी मान्यता थी कि पृथ्वी स्थिर है।
महान ज्योतिषी आर्यभट का जन्म 476 ई. में गोदावरी एवं नर्मदा के बीच अवस्थित अश्मक प्रदेश में हुआ था। वे लोगों में व्याप्त अंधविश्वास को दूर करने तथा उत्तर भारत के ज्योतिषियों के विचारों का अध्ययन करने पाटलिपुत्र आये तथा इस नगर से थोड़ी दूर पर एक आश्रम वेधशाला’ की स्थापना की। इसमें ताँबे, पीतल तथा लकड़ी के तरह-तरह के यंत्र थे। इन्हें ज्योतिष सम्राट कहा जाता था । गणित पर भी इनकी अच्छी पकड़ थी। ये स्वतंत्र विचार के व्यक्ति थे। इन्होंने अनेक पुरानी मान्यताओं का खंडन कर नवीन मतों की स्थापन की। इन्होंने अपने अनुभवों को ‘आर्यभटीयम्’ नामक ग्रंथ में संकलित किया। इस ग्रंथ की रचना के समय इनकी उम्र 23 वर्ष थी। इस ग्रंथ में गणित एवं ज्योतिष दोनों ही समाहित हैं। यह महान ग्रंथ मात्र दो सौ बयालीस पंक्तियों एवं इक्कीस श्लोकों में निबद्ध है। Aryabhatta kahani
आर्यभट्ट ने ग्रहण पर अपना विचार प्रकट करते हुए कहा कि जब पथ्वी की लाश चन्द्रमा पर पड़ती है तो चन्द्रग्रहण और चन्द्रमा की छाया जब पृथ्वी पर पडती तो सूर्य ग्रहण होता है। चन्द्रमा में अपना प्रकाश नहीं होता वह सूर्य के प्रकाश से चार है। आर्यभट के अध्ययन से लोगों ने यह जान लिया था कि चन्द्रमा के प्रकट होने पूरा गायब होने के मध्य एक निश्चित समय होता है। सूर्य, चाँद तथा नक्षत्र जिन I से यात्रा करते हैं, उन्हें रविमार्ग कहा जाता है। इसी मार्ग के आधार पर बारह राशियों (मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ तथा मीन) का विभाजन हुआ है। Aryabhatta kahani
आर्यभट की सबसे बड़ी उपलब्धि शून्य का उपयोग है, जिसके आधार पर बड़ीसे-बड़ी संख्या लिखी जाती है। इस शून्य का कम्प्यूटर तथा अंतरिक्ष गणना में विशेष महत्त्व है। कुछ विद्वानों के मतानुसार शून्य का ज्ञान सर्वप्रथम आर्यभट ने ही दिया । इन्होंने अपनी पुस्तक में अंकगणित, बीजगणित एवं रेखागणित के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है। आज से डेढ़ हजार वर्ष पूर्व ही इन्होंने बताया कि यदि वृत्त का व्यास ज्ञात है तो उसकी परिधि मालूम की जा सकती है। इसी प्रकार ज्यामिति के क्षेत्र में त्रिकोण की तीन भुजाओं, उसके कोणों का अध्ययन कर कोण. की सममिति की नई खोज की। विद्वानों की मान्यता है कि रेखागणित को यूनानी गणितज्ञ यूक्लिड की ज्यामिती पर आधारित भले ही मानते हों, लेकिन इसकी विस्तृत जड़ें ‘आर्यभटीय’ में देखी जा सकती हैं। स्पष्ट है कि आर्यभट ने ही सर्वप्रथम विश्व को नक्षत्रों की सही जानकारी दी। Aryabhatta kahani
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