इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 7 सामाजिक विज्ञान के पाठ 9 बाजार श्रृंखला : खरीदने-बेचने की कडि़याँ (Bajar Shrinkhala Kharidne ka Karya Class 7th Solutions)के सभी टॉपिकों के बारे में अध्ययन करेंगे।
9. बाजार श्रृंखला : खरीदने-बेचने की कडि़याँ
पाठ के अन्दर आए हुए प्रश्न तथा उनके उत्तर
प्रश्न 1. सलमा को सहकारी समिति से मखाना उपजाने के लिए तालाब क्यों नहीं मिल सका ? ( पृष्ठ 82 )
उत्तर— सहकारी समिति छोटे किसानों को तालाब नहीं देती। किसानों के बड़े तालाबों का हिस्सा खरीदना पड़ता है । इधर सलमा के पास पूँजी की कमी थी। उसे तो 15 कट्ठे के तालाब के लिये रिश्तेदारों से कर्ज लेना पड़ा। इस प्रकार पूँजी की कमी के कारण सलमा को सहकारी समिति से तालाब नहीं मिल सका ।
प्रश्न 2. सलमा सहकारी समिति से यदि तालाब लेती तो क्या फर्क पड़ता ? ( पृष्ठ 82 )
उत्तर—यदि सलमा सहकारी समिति से तालाब लेती तो तालाब प्रति एकड़ बहुत सस्ता पड़ता। गुड़ी रोपने और तैयार गुड़ी निकालने में भी उसका कम खर्च पड़ता । लावा बनाने की मजदूरी भी उसे कम देनी पड़ती । कारण कि सहकारी समिति वाले ये सभी काम थोक में करवाते हैं, जो सस्ता पड़ता है । एक बार तालाब मिल जाता तो 5 से 7 वर्षों तक उस पर सलमा का अधिकार बना रहता है। एक साल फसल काटी जाने पर दूसरे साल उसका घाटा निकल जाता। लेकिन सलमा के पास इतनी पूँजी नहीं थी ।
प्रश्न 3. सलमा को इस बार अच्छी फसल की उम्मीद क्यों थी ? (पृ. 82 )
उत्तर- सलमा को इस बार अच्छी फसल की उम्मीद इसलिये थी क्योंकि इस बार बाढ़ नहीं आयी थी । उसने मेहनत भी काफी की थी। उसने समय पर खाद, कीटनाशक तथा पर्याप्त पानी का प्रबंध कर रखा था ।
प्रश्न 4. सलमा ने मखाने की फसल के लिये क्या-क्या तैयारी की ?
उत्तर— सलमा ने मखाने की फसल की तैयारी में सर्वप्रथम राजकिशोर से 15 कट्ठे का तालाब 4000 रुपया सालाना पर किराया पर लिया। पूँजी के लिये रिश्तेदारों से कर्ज की उगाही की । आवश्यक मात्रा में बीज का प्रबंध किया । समय पर खाद दी, कीटनाशक दवा दी और पर्याप्त पानी का प्रबंध किया ।
प्रश्न 1. तालाब से गुड़ी निकालने का काम कौन करता है ? ( पृष्ठ 84 )
उत्तर—गुड़ी निकालने में पारंगत कुशल मजदूर गुड़ी निकालने का काम करते. हैं। ये अच्छे तैराक होते हैं । इन्हें सांस रोके रखने का अभ्यास करना पड़ता है ताकि ये तालाब की तली से गुड़ी’ निकाल सकें। गुड़ी निकालने के लिए कुछ देर तक सांस रोके रखना पड़ता है ।
प्रश्न 2. गुड़ी से मखाना कैसे बनाया जाता है ? समझाइए । (पृष्ठ 84 )
उनर—गुड़ी से मखाना उसी तरह बनाया जाता है जिस तरह ग्रामीण क्षेत्रों में भूंजा भूंजने का काम किया जाता है । पहले बालू को गर्म करते हैं । उस गर्म बालू को गुड़ी पर डाल कर खूब मिलाते हैं। इससे गुड़ी से लाता है। अभी भी लावा के ऊपर छिलका की एक परत जमी रहती है । उस परत को हटाने के लिए लकड़ी के तक्थे पर लावा को रख कर लकड़ी के हथौड़े से पीटते हैं। इससे साफ लांवा अलग हो जाता है, जिसे बाजार में भेजने के लिए बोरे में भर लेते हैं।
प्रश्न 3. मखाना बनाने तक सलमा ने किन-किन चीजों पर खर्च किया ? सूची बनाइए । ( पृष्ठ 84 )
उत्तर—मखाना बनाने तक सलमा ने जिन-जिन चीजें पर खर्च किया उनकी सूची निम्नलिखित हैं :
(i) तालाब का किराया, (ii) बीज पर व्यय, (iii) खाद पर व्यय, (iv) कीटनाशक पर खर्च, (v) पर्याप्त पानी का प्रबंध, (vi) गुड़ी निकालने पर खर्च, (vii) लावा बनवाने पर व्यय ।
प्रश्न 1. सलमा को मखाना बेचने की जल्दी क्यों थी ? (पृष्ठ 86)
उत्तर—सलमा को मखाना बेचने की जल्दी इस लिये थी क्योंकि इसके पास रखने की जगह नहीं थी । सबसे बड़ी बात कि उसे अपने रिश्तेदारों का कर्ज लौटाना था। तालाब का किराया भी देना था । यदि ये बातें नहीं रहतीं तो सलमा कुछ दिनों तक मखाना को रखे रहती और भाव बढ़ने पर उसे बेचती । तब उसे अच्छा मुनाफा होता ।
प्रश्न 2. सलमा ने जो सोचा था क्या उसे वह पूरा कर सकती है ? चर्चा करें । ( पृष्ठ 86 )
उत्तर — सलमा ने सोचा था कि इस बार के लाभ से वह अपने टूटे घर की मरम्मत करा लेगी। लेकिन इतने कम लाभ में वह मकान की मरम्मत नहीं करा पाएगी। इस प्रकार स्पष्ट है कि सलमा ने जो सोचा था उसे वह पूरा नहीं कर सकती है ।
प्रश्न 3. अपने आस-पास के अनुभवों द्वारा पता करें कि छोटे किसान अपना उत्पाद किन्हें बेचते हैं ? उन्हें किन समस्याओं का सामना करना होता है ? ( पृष्ठ 86 )
उत्तर— हमारे आस-पास अनेक छोटे किसान हैं । वे खेती तो करते हैं, लेकिन उनकी मेहनत के मुकाबले उन्हें लाभ नहीं हो पाता। वे महँगे खाद, बीज़ और पानी पर व्यय करते हैं । पूँजी नहीं रहने की स्थिति में इन सब कामों के लिये के साहूकारों से कर्ज लेते हैं जिस पर उन्हें अधिक ब्याज देना पड़ता है । उपज हुई तो उसे बेचने की जल्दी रहती है, क्योंकि कर्ज वापस करना रहता है। नतीजा होता है कि स्थानीय अढ़तिया के हाथ उपज को औने-पौने भाव पर बेच देते हैं। इस कारण उन्हें कोई मजदूरी नहीं करें तो भोजन खास लाभ नहीं हो पाता । यदि वे दूसरों के खेत में पर भी लाले पड़ जायँ ।
हो गया था और खरीददार कम थे। इस कारण कम ही भाव पर सलमा को अपना मखाना बेच देना पड़ा ।
प्रश्न 4. मखाने की खेती करने वाले किसान अपनी फसल को मंडी में खुद ले जाकर क्यों नहीं बेचते ? (पृष्ठ 86 )
उत्तर— मखाने की खेती करनेवाले किसानों को अपना तैयार मखाना बेचने की जान्दी रहती है। जैसे-जैसे मखाना तैयार होता है, वैसे-वैसे के बेचते जाते हैं। सभी उपज को वे एकत्र नहीं कर पाते। यही कारण है कि वे उसे मंडी में नहीं ले जा पाते यदि कोई ले भी गया तो मंडी के खरीददार उनके साथ वही रवैया अपनाते हैं जो स्थानीय खरीददार अपनाते हैं। इसी कारण वे अपनी फसल मंडी में नहीं ले जाते ।
प्रश्न 1. थोक व्यापारी और खुदरा व्यापारी में क्या अंतर है? (पृ. 87)
उत्तर— थोक व्यापारी खास-खास शहरों में एक स्थान पर होते हैं जबकि खुदरा व्यापारी शहरों से लेकर गाँवों तक में बिखरें होते हैं। थोक व्यापरी के पास जगह भी अधिक होती है और पूँजी भी । जबकि खुदरा व्यापारियों के पास जगह कम होती है और पूँजी भी कम होती है। थोक व्यापारी अपना माल थोक भाव में खुदरा व्यापारियों के हाथ बेचते हैं, जबकि खुदरा व्यापारी थोड़ा-थोड़ा अपने ग्राहकों के हाथ बेचते हैं, जिन्हें उपयोग करना होता है ।
प्रश्न 2. थोक व्यापारी और खुदरा व्यापारी में कौन अधिक कमाता है और क्यों ? ( पृष्ठ 87 )
उत्तर—थोक व्यापारी और खुदरा व्यापारी में थोक व्यापारी अधिक लाभ कमाता है। क्योंकि थोक व्यापारी पूँजी फँसाकर अधिक माल रखता है जबकि खुदरा व्यापारी थोड़ा-थोड़ा माल ले जाकर खुदरा ग्राहकों के हाथ बेचता है। थोक व्यापारी जहाँ महीना में लाखों का माल बेच लेता है वहीं खुदरा व्यापारी महीना में मुश्किल से हजार-पाँच सौ रुपये का माल बेच पाता है ।
प्रश्न 1. क्या इस बेहतर भाव का लाभ उत्पादक को प्राप्त हो सकता है ? यदि हाँ तो कैसे ? ( पृष्ठ 88 )
उत्तर — जिस बेहतर भाव पर बड़े शहरों के व्यापारी या मॉल है मालिक सामान बेच लेते हैं, इस बेहतर भाव पर उत्पादक किसी भी तरह नहीं बेच सकते हैं। कारण कि शहरों और मॉलों तक पहुँचने के पहले उत्पाद कई हाथों से गुजरता है । उत्पादक वहाँ और उस स्थिति में पहुँच ही नहीं सकता । हाँ की तो कोई कुंजाइश ही नहीं है ।
अभ्यास : प्रश्न तथा उनके उत्तर
प्रश्न 1. क्या सलमा को अपने मेहनत का उचित पारिश्रमिक प्राप्त हुआ ?यदि नहीं तो क्यों ?
उत्तर—नहीं, सलमा को अपने मेहनत का उचित पारिश्रमिक प्राप्त नहीं हुआ ? वह इसलिए क्योंकि जिस समय सलमा का मखाना तैयार हुआ उस समय उसका भाव बहुत गिर गया था। इसका एक कारण यह भी था कि अनुमान से अधिक उत्पादन
प्रश्न 2. आर्थिक रूप से सम्पन्न बड़े मखाना किसान अपनी फसल को कहाँ बेचेंगे ?
उत्तर – आर्थिक रूप से सम्पन्न बड़े मखाना उत्पादक किसान अपनी फसल को मंडी में ले जाकर बेचेंगे। वहाँ उन्हें ऊँचा भाव मिल जाएगा ।
प्रश्न 3. मखाना उत्पादक किसान एवं उनसे जुड़े मजदूरों के काम के हालात और उन्हें प्राप्त होने वाले लाभ या उनकी मजदूरी का वर्णन करें। क्या आप सोचते हैं कि उनके साथ न्याय होता है ?
उत्तर—मखाना उत्पादक किसान एवं उनसे जुड़े मजदूरों के काम के हालात बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता। दिन-दिन भर पानी में रहकर गुड़ी निकालना पड़ता है । इसके विपरीत गुड़ी से लावा निकालने के समय मजदूरों को आग के सामने रहकर ताप सहन करना पड़ता है। किसान पूँजी लगाते हैं। तालाब का किराया देते हैं। फसल खराब होने की जोखिम उठाते हैं। किसी-किसी काम में मेहनत भी करते हैं । इन सब बातों को देखते हुए उनके काम के हालात और मेहनत के अनुसार न तो उत्पादक किसानों को उतना लाभ प्राप्त होता है और न मजदूरों को ही कोई खास लाभ होता है ।
प्रश्न 4. पीने के लिये चाय बनाने में चीनी, दूध तथा चाय पत्ती का उपयोग होता है । आपस में चर्चा करें कि ये वस्तुएँ बाज़ार की किस श्रृंखला से होते हुए आप तक पहुँचती हैं ? क्या आप उन सब लोगों के बारे में सोच सकते हैं, जिन्होंने इन वस्तुओं के उत्पादन और व्यापार में मदद की होगी ?
उत्तर—चीनी तैयार करने में एक बड़ी श्रृंखला लगी होती है । किसान अपने खेतों में स्वयं या मजदूरों की सहायता से गन्ना के बीज बोते हैं । आवश्यकतानुसार खेतों की निकाई- गोढ़ाई और सिंचाई करनी पड़ती है। गन्ना तैयार होने पर उसे चीनी मिल में भेजना पड़ता है। मिल मालिक गन्ना का मूल्य चुकाते हैं ।
कारखाने में गन्ने की पेराई कर रस निकाला जाता है । फिर अनेक प्रक्रम कर चीनी बनाई जाती है। चीनी मिलों में हजारों मजदूर दिन-रात काम करते हैं। चीनी तैयार होने पर इसे बोरे में भरकर थोक विक्रेताओं के हाथ बेचा जाता है। थोक बिक्रेता खुदरा बिक्रेता चीनी ले जाते हैं, जिनसे हम खरीदकर उपयोग करते हैं।
दूध का उत्पादन ग्रामीण पशुपालक करते हैं। उनसे दूध की खरीद सहकारी समितियाँ करती हैं और शहर भेजती हैं । यहाँ इसका पैकेट बनाया जाता है और विभिन्न बूथों पर बेचा जाता है, जिनसे हम दूध खरीद कर अपने घरों में ले जाते हैं ।
चाय पत्ती बगानों में तैयार होती है। बगान मालिक पूँजीपति और उद्योगपति होते हैं । एक विशेष प्रक्रिया से चाय के पौधे उपजाए जाते हैं। एक बार पौधा लग
जाय तो सालों-साल उनसे पत्तियाँ तोड़ी जाती हैं। बागान में या उसके निकट ही पत्तियों को संसाधित किया जाता है। बिना संसाधित पत्ती किसी काम की नहीं होती ।
संसाधित हो जाने पर चाय पत्ती बाजार में थोक विक्रेताओं के पास भेजी जाती है। थोक विक्रेता उसे देश के बाजारों में भेजते हैं। खुदरा व्यापारी वहीं से चाय पत्ती लेते हैं, जिन्हें हम खरीद कर घरों में उपयोग करते हैं ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे एक कप चाय के लिए कितनी लम्बी श्रृंखला की आवश्यकता है ।
प्रश्न 5. यहाँ दिये गये कथनों को सही क्रम में सजाएँ और फिर नीचे बने गोलों में सही क्रम के अंक भर दें । प्रथम दो गोलों में आपके लिए पहले से ही अंक भर दिये गये हैं ।
1. सलमा मखाना उपजाती है ।
2. स्थानीय अढ़तिया पटना के थोक व्यापारी को बेचता है ।
3. आशापुर में मखाना का लावा बनवाने लाती है ।
4. खाड़ी के देशों को निर्यात करते हैं ।
5. दिल्ली के व्यापारियों को बेचते हैं।
6. मजदूर गुड़ियों को इकट्ठा करते हैं ।
7. सलमा आशापुर के आढ़तियों को मखाना बेचती है ।
8. आशापुर में गुड़ियों से लावा बनाया जाता है
9. खुदरा व्यापारी को बचेते हैं
10. उपभोक्ता को प्राप्त होता है ।
कुछ अन्य प्रमुख प्रश्न तथा उनके उत्तर
प्रश्न 1. ब्यापारी ने छोटे किसान को कम मूल्य क्यों दिया ?
उत्तर – व्यापारी ने छोटे किसान को कम मूल्य इसलिए दिया क्योंकि उसने स्वप्ना को कृषिकार्य के लिए कर्ज दिया था और उसने वादा करा लिया था कि उपज होने पर रूई उसी के हाथों उसे बेचना पड़ेगा। फलतः स्वप्ना बातों से बंधी हुई थी अतः व्यापारी ने मनमाना भाव लगा दिया ।
प्रश्न 2. आपके विचार से बड़े किसान अपनी रूई कहाँ बेचते होंगे ? उनकी स्थिति किस प्रकार छोटे किसानों से भिन्न है ?
उत्तर – मेरे विचार से बड़े किसान अपने रूई शहर के बड़े व्यापारियों के हाथ बेचते होंगे ताकि उन्हें बाजार भाव के अनुसार उचित मूल्य मिल सकेगा । बड़े किसानों की स्थिति छोटे किसानों से भिन्न इस प्रकार है कि बड़े किसानों के पास अपनी पूँजी होती है । उन्हें किसी से उधार लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती। यदि पड़ती भी है तो बैंक उन्हें ऋण मुहैया कर देते हैं, जिसे कम ब्याज देना पड़ता है। दूसरी ओर छोटे किसानों को साहूकारों से उनकी मनमानी शर्तों पर ऋण लेना पड़ता है ।
प्रश्न 3. कपड़ा बाजार में अग्रलिखित लोग क्या-क्या काम कर रहे हैं : व्यापारी, बुनकर, निर्यातक ।
व्यापारी–व्यापारी बुनकरों से कपड़ा लेते हैं और उन्हें सूत देते हैं । कपड़ा बनाने वाले बुनकरों को कपड़ा तैयार करने की मजदूरी भर मिलती है ।
बुनकर – कुछ बुनकर अपने सूत का बनाया कपड़ा भी लाते हैं, जिन्हें थोक व्यापारी खरीदते हैं । कुछ बुनकर सूत लेने और कपड़ा देने का काम करते हैं । ‘निर्यातक
निर्यातक– व्यापारियों से कंपड़ा खरीदते हैं और उनसे वस्त्र सिलवा कर निर्यात कर देते हैं या अपने देश के व्यापारियों के हाथों बेचते हैं ।
प्रश्न 4. बुनकर व्यापारियों पर किस-किस प्रकार से निर्भर होते हैं ?
उत्तर— बुनकर व्यापारियों पर इस प्रकार निर्भर होते हैं कि उनको सूत और डिजाइन का ऑर्डर व्यापारी ही देते हैं तथा तैयार कपड़े खरीदते हैं। जो बुनकर अपने सूत से कपड़े तैयार करते हैं, उन्हें भी व्यापारियों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। कारण कि उनका बुना कपड़ा व्यापारी ही खरीदते हैं
प्रश्न 5. यदि बुनकर सूत खरीदकर बुने हुए कपड़े बेचते हैं तो उन्हें तीन गुना अधिक कमाई होती है। क्या यह संभव है ?
उत्तर—यदि बुनकर सूत खरीदकर बुने हुए कपड़े बेचते हैं तो उन्हें तीन गुना अधिक कमाई होती है, यह संभव है। कारण कि जो बुनकर व्यापारियों से सूत लेकर उनके ऑर्डर के अनुसार कपड़े बुनते हैं तो उन्हें उनके द्वारा लगाए मूल्य पर कपड़े बेचने पड़ते हैं । इन्हें अपने मूल्य पर बेचने का अधिकार नहीं होता । वहीं जो बुनकर अपने सूत से कपड़े तैयार करता है तो उचित बाजार भाव पर बेचने का उसे अधिकार रहता है। अतः निश्चित ही उसे कमाई अधिक होती है भले ही वह तीन गुना नहीं हो, लेकिन कमाई अधिक होती अवश्य है
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