इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के इतिहास (History) के पाठ 4 ( Bharat Me Rastravad ) “भारत में राष्ट्रवाद” के बारे में जानेंगे । इस पाठ में भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन बताया गया है ।
4. भारत में राष्ट्रवाद ( Bharat Me Rastravad )
भारत में राष्ट्रवाद (Bharat Me Rastravad) के उदय के कारणः
राजनीतिक कारण
भारत में राष्ट्रवाद (Bharat Me Rastravad) : 19वीं शताब्दी में भारत में राष्ट्रीय चेतना का उदय मुख्य रूप से अंग्रजी शासन व्यवस्था का परिणाम था।
भारत में राष्ट्रीय चेतना जागृत करने में विभिन्न कारणों का योगदान रहा परन्तु सभी किसी-न-किसी रूप में ब्रिटेन सरकार की प्रशासनिक नीतियों से संबंधित थी।
- 1878 ई॰ में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिटन ने ‘वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट‘ पारित कर प्रेस पर कठोर प्रतिबंध लगा दिया।
- 1879 में ‘आर्म्स एक्ट‘ के द्वारा भारतीयों के लिए अस्त्र-शस्त्र को रखना गैर कानूनी घोषित कर दिया गया।
- 1883 में ‘इलबर्ट बिल‘ का पारित होना। इस बिल का उद्देश्य भारतीय और यूरोपीय व्यक्तियों के फौजदारी मुकदमों की सुनवाई सामान्य न्यायालय में करना था और उस विशेषाधिकार को समाप्त करना था, जो यूरोप के निवासियों को अभी तक प्राप्त था और जिसके अर्न्तगत उनके मुकदमें सिर्फ यूरोपीय जज ही सुन सकते थे। यूरोपीय जनता ने इसका विरोध किया जिसके कारण सरकार को इस बिल को वापस लेना पड़ा।
- 1899 में लार्ड कर्जन ने ‘कलकत्ता कॉपरेशन‘ एक्ट पारित किया जिसमें नगर पालिका में निर्वाचित सदस्यों की संख्या में कमी और गैर निर्वाचित सदस्यों की संख्या में वृद्धि की गई।
- 1904 में विश्वविद्यालय अधिनियम द्वारा विश्वविद्यालय पर सरकारी नियंत्रण बढ़ा दिया जाना।
- 1905 में बंगाल विभाजन कर्जन के द्वारा सम्प्रदायिकता के आधार पर कर देना।
- 1910 में इंडियन प्रेस एक्ट पारित कर उत्तेजित लेख छापने वाले को दंडित करना।
आर्थिक कारण
- नकदी फसलों की उगाही अपनी मनमानी किमतों पर करना।
- उद्योग क्षेत्रों में मजदूरों, कामगारों को मुसीबतों का सामना करना
- 1882 में सूती वस्त्रों पर से आयात शुल्क हटा लेना।
- भारत में औद्योगीकरण की समस्या।
- अधिक भू-राजस्व (लगान) वसुलना।
सामाजिक कारण
- अंग्रेजों के द्वारा भारतीयों को हेय दृष्टि से देखना।
- रेलगाड़ी में, क्लबों में, सड़कों पर और होटलों में अंग्रेज भारतीय के साथ दुर्व्यवहार करना।
- इंडियन सिविल सर्विस में भारतीयों के साथ भेद-भाव करना।
धार्मिक कारण
- धर्मसुधार आंदोलन
- धर्म के प्रति लोगों में निष्ठा की भाव को जागृत करना।
- बहुत सारे धर्म सुधारकों ने एकता, समानता एवं स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाना।
- प्रथम विश्वयुद्ध के कारण और परिणाम का भारत से अंतर्सम्बन्ध
- तिलक और गांधी जैसे राष्ट्रवादी नेताओं ने ब्रिटिश सरकार के युद्ध प्रयासों में हर संभव सहयोग दिया, क्योंकि उन्हें सरकार के स्वराज सम्बन्धी आश्वासन पर पूरा भरोसा था।
- युद्ध के आगे बढ़ने के साथ ही भारतीयों का भ्रम टूटा।
- 1915-17 के बीच एनी बेसेन्ट और तिलक ने आयरलैण्ड से प्रेरित होकर भारत में होमरूल लीग आंदोलन आरंभ किया।
- तीन सफल सत्याग्रह चम्पारण, खेड़ा और अहमदाबाद आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुआ।
प्रभाव
- बेरोजगारी
- महंगाई
- विदेशी वस्तुओं पर आयात शुल्क का कम करना।
- रौलेट एक्ट का पारित होना।
- भारत में राष्ट्रवाद का उदय।
- खिलाफत आंदोलन की शुरूआत।
- राष्ट्रीय आंदोलन में गांधीवादी चरण।
रॉलेट एक्ट : बढ़ती हुई क्रांतिकारी घटनाओं एवं असंतोष को दबाने के लिए लार्ड चेम्सफोर्ड ने न्यायाधीस सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में एक समिति की नियुक्ति की।
समिति की अनुशंसा पर 25 मार्च, 1919 ई॰ को रॉलेट एक्ट पारित हुआ। इसके अर्न्तगत एक विशेष न्यायालय के गठन का प्रावधान था जिसके निर्यण के विरूद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती थी। किसी व्यक्ति को अमान्य साक्ष्य और बिना वारंट के भी गिरफ्तार किया जा सकता था।
जालियांवाला बाग हत्याकांड :
- रॉलेट एक्ट के विरोध में 6 अप्रैल, 1919 ई॰ को देशव्यापी हड़ताल के बाद 9 अप्रैल, 1919 ई॰ को दो स्थानीय नेताओं डॉ॰ सत्यपाल एवं किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया।
- इनके गिरफ्तारी के विरोध में 13 अप्रैल, 1919 ई॰ को जालियांवाला बाग में एक सार्वजनिक सभा बुलाई गई थी। जहाँ जिला मजिस्ट्रेट जनरल ओ डायर ने बिना किसी चेतावनी के शांतिपूर्वक चल रही सभा पर गोलियां चलाकर 1000 लोगों की हत्या कर दी। बहुत से लोग घायल भी हुए। इस घटना को जालियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है।
खिलाफत आंदोलन
- इस्लाम के प्रमुख को ‘खलिफा‘ कहा जाता था।
- मुस्लमान ‘खलिफा‘ को धार्मिक और अध्यात्मिक नेता मानते थे।
- ऑटोमन साम्राज्य का शासक तुर्की का सुल्तान इस्लामिक संसार का खलिफा हुआ करता था।
- प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटेन के खिलाफ तुर्की के पराजय के फलस्वरूप ऑटोमन साम्राज्य को विघटित कर दिया गया।
- तुर्की के सुल्तान को अपने शेष प्रदेशों में भी अपनी सत्ता के प्रयोग से वंचित कर दिया गया।
- 1920 के प्रारंभ में भारतीय मुसलमानों ने तुर्की के प्रति ब्रिटेन की अपनी नीति बदलने के लिए बाध्य करने हेतु जोरदार आंदोलन प्रारंभ किया जिसे ‘खिलाफत आंदोलन‘ कहा जाता है।
- भारत के मुस्लमान तुर्की के साथ किए जाने वाले दुर्व्यवहार के कारण खिलाफत आंदोलन की शुरुआत की।
- खिलाफत आंदोलन अली बन्धुओं ( शौकत अली और मोहम्मद अली ) ने प्रारंभ किया था।
- नवम्बर 1919 में महात्मा गाँधी अखिल भारतीय खिलाफत आंदोलन के अध्यक्ष बने।
- महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन (दिसम्बर 1919) में समर्थन पाकर यह आन्दोलन काफी सशक्त हो गया।
- गांधी जी ने इसे हिन्दू-मुस्लिम एकता के महान अवसर के रूप में देखा। (Bharat Me Rastravad)
तीन सूत्री माँग पत्र :
- तुर्की के सुलतान ( खलिफा ) को पर्याप्त लौकिक अधिकार प्रदान किया जाए ताकि वह इस्लाम की रक्षा कर सके।
- अरब प्रदेश को मुस्लिम शासन ( खलिफा ) के अधीन किया जाए।
- खलिफा को मुस्लमानों के पवित्र स्थलों का संरक्षक बनाया जाए।
17 अक्टूबर 1919 ई॰ को पूरे भारत में खिलाफत दिवस मनाया गया।
असहयोग आन्दोलन ( 1920-22 )
असहयोग आंदोलन के कारण:
- खिलाफत का मुद्दा।
- पंजाब में सरकार की बर्बर कार्रवाइयों के विरूद्ध न्याय प्राप्त करना।
- स्वराज प्राप्ति करना।
- 1 अगस्त, 1920 ई॰ को महात्मा गाँधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई।
12 फरवरी, 1922 को गांधीजी के निर्णनयानुसार आन्दोलन को स्थगित कर दिया गया।
इस आंदोलन में दो तरह के कार्यक्रम को अपनाया गया।
- अंग्रेजी सरकार को कमजोर करने और नैतिक रूप से पराजित करने के लिए उपाधियों और अवैतनिक पदों का त्याग करना, सरकारी और गैर सरकारी समारोहों का बहिष्कार करना, सरकारी स्कूलों एवं कॉलेजों का बहिष्कार करना, विधान परिषद के चुनावों का बहिष्कार, विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के साथ-साथ मेसोपोटामिया में नौकरी से इन्कार करना शामिल था।
- न्यायालय के स्थान पर पंचों का फैसला मानना, राष्ट्रीय विद्यालयों एवं कॉलेजों की स्थापना, स्वदेशी को अपनाना, चरखा खादी को लोकप्रिय बनाना।
- आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय विद्यालयों, जामिया मिलिया इस्लामिया, अलिगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और काशी विद्यापीठ जैसी शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना हुई
- मोतीलाल नेहरू और चितरंजन दास जैसे बड़े-बड़े बैरिस्टर ने अपनी चलती वकालत छोड़कर आंदोलन में नेतृत्व प्रदान किया। प्रिंस ऑफ वेल्स का स्वागत 17 नवम्बर, 1921 को मुम्बई में राष्ट्रव्यापी हड़ताल के साथ किया गया।
- सरकार ने आंदोलन को गैर कानूनी करार देते हुए लगभग 30000 आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार किया।
- गिरफ्तारी के विरोध में गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की धमकी दी।
- उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा में राजनितिक जुलूस पर पुलिस द्वारा फायरिंग के विरोध में भीड़ ने थाना पर हमला करके 5 फरवरी, 1922 ई॰ को 22 पुलिसकर्मियों की जान ले ली।
- 12 फरवरी, 1922 को गाँधीजी के निर्णनयानुसार आन्दोलन को स्थगित कर दिया गया।
- गाँधीजी को ब्रिटिश सरकार द्वारा मार्च, 1922 ई॰ में गिरफ्तार करके 6 वर्षों के कारावास की सजा दी गई। (Bharat Me Rastravad)
परिणाम :
- असहयोग आंदोलन के अचानक स्थगित हो जाने और गांधीजी की गिरफ्तारी के कारण खिलाफत के मुद्दे का भी अंत हो गया।
- हिन्दु-मुस्लिम एकता भंग हो गई तथा सम्पूर्ण भारत में साम्प्रदायिकता का बोलबाला हो गया।
- न ही स्वराज की प्राप्ति हुई और न ही पंजाब के अन्यायों का निवारण हुआ।
- इन असफलताओं के बावजूद इस आंदोलन ने महान उपलब्धि हासिल की।
- कांग्रेस और गांधी में सम्पूर्ण भारतीय जनता का विश्वास जागृत हुआ।
- समूचा देश पहली बार एक साथ आंदोलित हो उठा।
- चरखा एवं करघा को भी बढ़ावा मिला।
सविनय अवज्ञा आंदोलन
- गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत दांडी यात्रा से की।
- 12 मार्च, 1930 ई॰ को साबरमती आश्रम से अपने 78 अनुयायियों के साथ दांडी समुद्र तट तक ऐतिहासिक यात्रा शुरु की।
- 24 दिनों में 250 किलोमीटर की पदयात्रा के पश्चात् 5 अप्रैल को वे दांडी पहुँचे।
- 6 अप्रैल को समुद्र के पानी से नमक बनाकर कानुन का उल्लंघन किया।
आंदोलन का कार्यक्रम-
- हर जगह नमक कानुन का उल्लघंन किया जाना।
- छात्रों स्कूल एवं कॉलेजों का बहिष्कार करना।
- विदेशी कपड़ों को जलाया जाना चाहिए।
- सरकार को कोई कर नहीं अदा किया जाना चाहिए।
- औरतों को शराब के दुकानों के आगे धरना देना चाहिए।
- वकील अदालत छोडें तथा सरकारी कर्मचारी पदत्याग करें।
- हर घर में लोग चरखा काटें तथा सूत बनायें।
- इन सभी कार्यक्रमों में सत्य एवं अहिंसा को सर्वोपरि रखा जाए तभी पूर्ण स्वराज की प्राप्ति हो सकती है।
गांधी-इरविन पैक्ट :
- सविनय अवज्ञा आंदोलन की व्यापकता ने अंग्रेजी सरकार को समझौता करने के लिए बाध्य किया।
- सरकार को गांधी के साथ समझौता करनी पड़ी। जिसे ‘गांधी-इरविन पैक्ट‘ के नाम से जाना जाता है। इसे ‘दिल्ली समझौता‘ के नाम से भी जाना जाता है।
- यह समझौता 5 मार्च, 1931 को गांधीजी और लार्ड इरविन के बीच हुई।
- इसके तहत गांधी जी ने आंदोलन को स्थगित कर दिया तथा द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने हेतु सहमत हो गए।
- गांधीजी ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया, परन्तु वहाँ किसी भी मुद्दे पर सहमति नहीं बन सकी। अतः वह निराश वापस लौट गए।
- दूसरी ओर ब्रिटिश सरकार ने दमन का सिलसिला तेज कर दिया था। तब गांधीजी ने दुबारा सविनय अवज्ञा आंदोलन को प्रारंभ किया।
- इसमें पहले जैसा धार एवं उत्साह नहीं था, जिससे 1934 ई॰ में आंदोलन पूरी तरह वापस ले लिया।
चम्पारण आन्दोलन
- बिहार के नील उत्पादक किसानों की स्थिति बहुत दयनीय थी।
- यहाँ नीलहे गोरों द्वारा तीनकठिया व्यवस्था प्रचलित थी, जिसमें किसानों के अपने भूमि के 3/20 हिस्से पर खेती करनी पड़ती थी। यह समान्यतः उपजाऊ भूमि होती थी।
- किसान नील की खेती करना नहीं चाहते थे क्योंकि इससे भूमि की उर्वरता कम हो जाती थी।
- 1908 में तीनकठिया व्यवस्था में सुधार लाने की कोशिश की थी, परन्तु इससे किसानों की गिरती हुई हालत में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
- नीलहों के इस अत्याचार से किसान त्रस्त थे।
- इसी समय 1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में चम्पारण के ही एक किसान राजकुमार शुक्ल ने सबका ध्यान समस्या की ओर आकृष्ट कराया तथा महात्मा गांधी को चम्पारण आने का अनुरोध किया।
- किसानों की माँग को लेकर 1917 में महात्मा गाँधी ने चंपारण आंदोलन की शुरुआत की।
- गांधीजी के दबाव पर सरकार ने ‘चम्पारण एग्रेरीयन कमेटी‘ का गठन किया। गांधीजी भी इस कमेटी के सदस्य थे।
- इस कमेटी के सिफारिश पर ब्रिटीश सरकार ने किसानों पर से तीनकठिया व्यवस्था और अन्य कर भी समाप्त कर दिया।
खेड़ा आन्दोलन
- गुजरात के खेड़ा जिला में किसानों ने लगान माफी के लिए आंदोलन चलाया।
- महात्मा गाँधी ने लगान माफी के लिए किसानों की माँग का समर्थन किया क्योंकि 1917 में अधिक बारिस के कारण खरिफ की फसल को व्यापक क्षति पहुँची थी।
- लगान कानुन के अन्तर्गत ऐसी स्थिति में लगान माफी का प्रावधान नहीं था।
- 22 जून, 1918 को यहाँ गाँधीजी ने सत्याग्रह का आह्वान किया, जो एक महीने तक जारी रहा।
- इसी बीच रबी की फसल होने तथा सरकार द्वारा भी दमनकारी उपाय समाप्त करने से स्थिति काफी बदली और गाँधीजी ने सत्याग्रह समाप्त करने की घोषणा कर दी।
- इस सत्याग्रह के द्वारा गुजरात के ग्रामीण क्षेत्र में भी किसानों में अंग्रेजों की शोषण मूलक कानूनों का विरोध करने का साहस जगा।
मोपला विद्रोह
- आधुनिक केरल राज्य के मालाबार तट पर किसानों का एक बड़ा विद्रोह हुआ, जिसे मोपला विद्रोह कहा जाता है।
- मोपला स्थानिय पट्टेदार और खेतिहर थे, जो इस्लाम धर्म के अनुयायी थे, जबकि स्थानीय ‘नम्बूदरी‘ एवं ‘नायर‘ भू-स्वामी उच्च जातीय हिन्दू थे।
- अन्य भू-स्वामीयों की तरह उन्हें भी सरकारी संरक्षण प्राप्त था और पुलिस एवं न्यायालय इनका समर्थन करती थी।
- 1921 में एक नयी स्थिति उत्पन्न हुई जब कांग्रेस ने किसानों के हित में भूमि एवं राजस्व सुधारों की मांग की और खिलाफत आंदोलन को समर्थन दे दिया।
- इस नई स्थिति से उत्साहित हो कर मोपला विद्रोहियों ने एक धार्मिक नेता अली मुसालियार को अपना राजा घोषित कर दिया और सरकारी संस्थाओं पर हमले आरंभ कर दिए।
- परिस्थिति की गंभिरता को देखते हुए अक्टूबर 1921 में विद्रोहियों के खिलाफ सैनिक कार्रवाई आरम्भ हूयी।
- दिसम्बर तक दस हजार से अधिक विद्रोही मारे गए और पचास हजार से अधिक बन्दी बना लिए गए।
- इस प्रकार यह विद्रोह धीरे-धीरे समाप्त हो गया।
बारदोली सत्याग्रह
- फरवरी 1928 ई॰ में गुजरात के बारदोली ताल्लुका में लगान वृद्धि के खिलाफ किसानों में असंतोष की भावना जागृत हुई।
- सरकार द्वारा गठित ‘बारदोली जाँच आयोग‘ की सिफारिशों से भी किसान असंतुष्ट रहे और उन्होंने सरकार के निर्णय के विरूद्ध आंदोलन छेड़ा।
- इसमें सरदार बल्लभ भाई पटेल की निर्णायक भूमिका रही। इसी अवसर पर उन्हें सरदार की उपाधि दी गई।
- किसानों के समर्थन में बम्बई में रेलवे हड़ताल हुयी।
- के॰ एम॰ मुंशी और लालजी नारंगी ने आंदोलन के समर्थन में बम्बई विधान परिषद् की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया।
- सरकार को ब्लूमफील्ड और मैक्सवेल के नेतृत्व में नई जाँच समिति का गठन करना पड़ा।
- नई जाँच समिति ने इस वृद्धि को अनुचित माना।
- अन्ततः सरकार को लगान की दर कम करनी पड़ी।
- यह आंदोलन सफल ढंग से सम्पन्न हुआ।
मजदूर आन्दोलन
- यूरोप में औद्योगीकरण और मार्क्सवादी विचारों का प्रभाव भारत में भी पड़ा, जिसके फलस्वरूप औद्योगिक प्रगति के साथ-साथ मजदूर वर्ग में चेतना जागृत हुयी।
- 1917 में अहमदाबाद में प्लेग की महामारी के कारण मजदूरों को शहर छोड़कर जाने से रोकने के लिए मिल मालिकों ने उनके वेतन में वृद्धि कर दी, लेकिन महामारी खत्म होने पर समाप्त कर दी गई।
- 1920 को कांग्रेस पार्टी ने ‘ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस‘ की स्थापना की।
- राष्ट्रीय आंदोलन में मजदूरों का समर्थन जारी रहा। (Bharat Me Rastravad)
जनजातीय आंदोलन
- 19वीं शताब्दी की तरह 20वीं शताब्दी में भारत के अनेक भागों में आदिवासी आंदोलन होते रहे।
- जैसे 1916 के रम्पा विद्रोह, 1914 के खोंड विद्रोह, 1914 से 1920 ई. तक जतरा भगत के नेतृत्व के कई विद्रोह हुए।
भारतीय राजनीतिक दल
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ऐलेन ऑक्ट्रोवियन ह्यूम ने किया।
- इसके प्रथम अध्यक्ष व्योमेशचन्द्र बनर्जी थे।
- इसकी स्थापना 1885 ई. में हुई।
वामपंथ/कम्युनिस्ट पार्टी
- 1920 ई. में एम. एन. राय ने ताशकंद में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की।
मुस्लिम लीग :
- सर आगा खां के नेतृत्व में 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना की नींव रखी।
- ढाका में 30 सितम्बर 1906 को एक सम्मेलन बुलाया गया जहाँ इसका नाम बदलकर ‘ऑल इंडिया मुस्लिम लीग‘ रखा गया।
- इसका उद्देश्य मुसलमानों को सरकारी सेवाओं में उचित अनुपात में स्थान दिलाना एवं न्यायाधीशों के पदों पर भी मुसलमानों को जगह दिलाना।
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