पाठ का सारांश
बिहार के लोक विभूतियों में सर्वश्रेष्ठ भगवान बुद्ध को ज्ञान मिला था कि वीणा के तारों को इतना मत कसो कि वह टूट जाय और इतना ढीला भी मत कर दो कि उससे संगीत ही न निकले। इससे स्पष्ट होता है कि बुद्ध के समय भी बिहार वीणा के मर्म से परिचित था। चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में गायन तथा नृत्य में प्रवीण गणिकाओं के संरक्षण विधान के संबंध में लिखा है। समुद्रगुप्त वीणा बजाने में इतने निपुण थे कि उन्हें ‘संगीत मार्तण्ड’ कहा जाता था । मिथिला के राजा हरि सिंह देव के दरबारी आचार्य ज्योतिरीश्वर ठाकुर ने अपने ग्रंथ ‘वर्ण रत्नाकर’ में संगीत-शास्त्र का उल्लेख किया है। इसी प्रकार कवि वाणभट्ट ने लोकसंगीत गायन का वर्णन किया है। तात्पर्य कि प्राचीन बिहार में लोकसंगीत एवं शास्त्रीय संगीत का काफी सम्मान था। मुगल साम्राज्य के बिखरने के बाद तानसेन के अनेक शिष्यों को हथुआ, बेतिया, दरभंगा, डुमराँव, बनैली, टेकारी. गिद्धौर के राजदरबारों में सम्मानपूर्ण आश्रय मिला था। इन्होंने ही बिहार में अनेक अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार पैदा किए। उस समय यहाँ ध्रुपद गायन की परंपरा थी। पं. शिवदयाल मिश्र जैसे ध्रुपद गायक नेपाल से आए थे। बिहार के प्रमुख शास्त्रीय गायन ध्रुपद, ख्याल तथा ठुमरी थे। ध्रुपद गायन के विकास में दरभंगा, बेतिया तथा डुमराँव घराने का महत्त्वपूर्ण योगदान था। बेतिया के राजा गज सिंह ने ध्रुपद गायक चमारी मलिक एवं कंगाली मलिक को कुरुक्षेत्र से लाकर ध्रुपद गायन आरंभ कराया। इस प्रकार कुंज बिहारी मिश्र, श्यामा मलिक, उमाचरण मलिक, गोरख मिश्र, बच्चा मलिक, शंकर लाल मिश्र तथा काले खाँ आदि ध्रुपद गायकों में प्रमुख थे। बेतिया के राजाओं का इस गायन के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है। दरभंगा घराने को तो ध्रुपद गायन में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति मिली।
Class 9 Second Hindi Chapter 2 बिहार की संगीत-साधना
दरभंगा घराने के रामचतुर मलिक ध्रुपद, ठुमरी तथा दादरा गायन के सर्वश्रेष्ठ गायक माने जाते हैं। इनका जन्म दरभंगा जिले के आमता गाँव में सन् 1805 में हुआ था। पं. सियाराम तिवारी दूसरे अन्तर्राष्ट्रीय ध्रुपद गायक थे। इनके गायन का विकास विष्णु देव पाठक तथा लल्लन सिंह जैसे पखावजवादकों की देख-रेख में हुआ। दरभंगा घराने के ही पं. रघुवीर मलिक एवं पं. विदुर मलिक प्रसिद्ध ध्रुपद गायक है। bihar ki sangeet sadhna class 9 hindi
धनगाँई के ध्रुपद परिवारों का संबंध डुमराँव राजघराने से था, इसलिए इसे डुमराँव घराना के नाम से प्रसिद्धि मिली। इस राजदरबार के प्रमुख गायक पं. धनारंग दुबे, बच्चू दूबे, पं. सुदीन पाठक, रामप्रसाद पांडेय आदि थे। रामप्रसाद पाण्डेय के गायन की प्रशंसा रवीन्द्र ठाकुर ने भी की थी। शास्त्रीय गायन के ‘ख्याल’ में कुमार श्यामानन्द सिंह ने सर्वाधिक प्रसिद्धि पाई। वे संगीत प्रेमी के साथ-साथ विलियर्ड नामक खेल के चैम्पियन भी थे। बिहार के ख्याल गायकों में मुंगेर के पं. चन्द्रशेखर खाँ. जाकिर हुसैन, उस्ताद हुसैन भी प्रमुख थे। ठुमरी गायन में जगदीप मिश्र, गुल मोहम्मद खाँ, राम प्रसाद मिश्र तथा उनके पुत्र गोवर्धन मिश्र ने ठुमरी गायन को काफी प्रसिद्धि दिलाई। अठारह उन्नीसवीं शताब्दी में पटना सिटी में पेशेवर नर्तकी जोहरा तथा कुछ अन्य गतका ठुमरी गायन में उत्कर्ष पर थी। मुजफ्फरपर की पन्नाबाई ठुमरी एवं दादरा गाना काफी प्रसिद्ध थीं। पूर्वी क्षेत्र के ठुमरी गायकों में प्राण फुकने वाले रामप्रसाद था। अतिरिक्त बिन्दा प्रसाद गौड़, विदुर मलिक, रघु झा के नाम भी उल्लेखनीय है।
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बिहार की धरती ने गायन के साथ ही वाद्ययंत्रों को भी अपनी साधना तथा मौलिक प्रतिभा से सजाया है। पखावज, सारंगी, इसराज, सितार, सरोद, शहनाई. तबला. बाँसुरी आदि के एक से बढ़कर एक कलाकार यहाँ पैदा हुए है। यथा-पखावज वादन में विष्णुदेव पाठक तथा शत्रुंजय प्र. को महारत हासिल थी तो सारंगी में मियाँ बहादर खाँ. किशोरी प्रसाद मिश्र, शिवदास मिश्र, हाकिम मिश्र आदि प्रसिद्ध हैं तो इसराज तंतुवाद्य के पंडित चंद्रिका दुबे राष्ट्रीय ख्याति के वादक हो चुके हैं। इसी प्रकार सितारवादन में सुदीन पाठक, पं. रामेश्वर पाठक आदि थे। तबला वादन में पटना के अजय ठाकुर सिद्धहस्त वादक थे तो शहनाई में बिस्मिल्ला खाँ का नाम गौरव के साथ लिया जाता है। मुज्तबा हुसैन शहनाई तथा बाँसुरी के प्रसिद्ध उस्ताद थे। उन्होंने 1990 ई. में ऑल इण्डिया इंटर कॉलेजिएट सांस्कृतिक समारोह में स्वर्णपदक पाया था। bihar ki sangeet sadhna class 9 hindi
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आज संगीत में पं. गोवर्धन मिश्र, अभय नारायण मलिक, संगीत कुमार नाहर, रामजी मिश्र एवं प्रेम कुमार मलिक ने देश-विदेश में बिहार का गौरव बढ़ाया है तो राजकुमार नाहर, सुधीर पाण्डेय, योगेन्द्र यादव तथा विनोद पाठक ने तबला वादन में नई पीढ़ी को गौरवान्वित किया है।