7. LOVE DEFILED (दूषित प्रेम)
By Giridhar Jha
The writer is a senior journalist and script writer based in Patna. An alumnus of Patna University, he is at present the Bihar correspondent of Mail Today, a daily newspaper of the India Today group being published from New Delhi, Formerly a News Editor of the Patna edition of the Hindustan Times, he is known for his incisive reporting on different subjects written in beautiful prose. The present story ‘Love Defiled’ was published in 1996 in the Hindustan Times (Delhi edition).
“If I become an IAS officer, dearie, I’ll marry you,” I sounded maudlin as I clasped her hand tightly. She flashed her disarmingly endearing smile; put her other hand on mine the gently said with a glint in her eyes, “….and if for some reason, you don’t, then I’ll marry you.”
It was so typical of her-witty to the hilt, understanding to a fault. For eight years, we lived our lives together, becoming in the process emotional anchor for each other. We laughed, we cried, we fought and we invariably kissed and patched up. We were more than platonic lovers, taking things as they came. Separation was the last thing on our minds and we were labelled as the “made-for-each-other” couple whose formal alliance was a foregone conclusion.
Destiny, howevei, had other ideas. Faced with parental opposition and bellicose kin, I developed cold feet when it came to tying the knot with the girl I had so passionately loved. My early jibes at those who loved and parted when it came to the crunch stared in my face as I cooked up thousand and one excuses to snap my ties with her.
Having had an impartial assessment of my grey cells, coupled with my inability to burn the midnight oil, I had already decided to spare the bureaucracy from myself, falling back upon journalism which my girlfriend always wanted me to pursue,
A beauty who never failed to turn many heads, she was least conscious of her charms which often made me realise that her real beauty was actually not visible to the naked eyes. Her simplicity ran contrary to my proclivity of overdoing things. Tall, boorish and just short of being called an anthropologist’s delight, my insecurities made me more voluble about my seemingly non-existent qualities. The louder I talked about my virtues, the faster I made a fool of myself.
Still she was the only one who understood me, overlooked my shortcomings and made me feel confident about myself. For many years, I visualised my life as totally barren without her. She was my life force, my source of inspiration and my alter ego, all rolled into one. Little wonder I felt part of myself being sliced off when I decided to say goodbye.
हिन्दी वाक्यार्थ— “यदि मैं आई. ए. एस. ऑफिसर हो जाऊँगा प्रिये, तुमसे शादी करूँगा, उसके हाथ को खींचकर मैंने कहा। उसने निरस्त्र करने वाले नेत्रों से मुझे मुस्कुराकर देखा, अपना दूसरा हाथ मुझपर रखा और शालीनता से आँखों में एक झलक लाकर कहा “… और यदि किसी कारणवश तुम नहीं भी बन सके, मैं (फिर भी) तुमसे शादी करूंगी।” ____ यह उसका बड़ा आदर्श रूप था। समझ का फेर, गलती को समझते हुए। आठ वर्षों तक, हम अपना जीवन साथ-साथ गुजारे, एक-दूसरे के लिए लंगर बनकर । हम हंसे रोये, लड़े और आलिंगन किए और समय बिताये। हमलोग वहाँ आनंद के प्रेम में सभी चीजों का सामना किया। अलगाव हमारे दिमाग में अंतिम वस्तु थी और निष्कर्षतः एक-दूजे के लिए बनकर जिन्दगी बिताया।
किस्मत को कुछ और मंजूर था। पारिवारिक विवाद का सामना किया, मैंने अपने कदमों को रोका, जब लड़की जिसको मैं भावुकता से प्रेम करता था, के साथ कठिन समस्या आई । मेरे अंदर उस पर जो मुझे प्रेम करती थी और दुःख-सुख में हाथ बटाती थी, ऐसी अभिक्रिया आई कि मेरे चेहरे पर ऐसा लगने लगा कि वह यदि सामने आयी तो दाँतों से चबा जाऊँगा। मैं हजारों को खाना बना डालूँगा और मेरी एक गलती ने मुझे उससे मिलने से सदा के लिए रोक दी।
मेरी पूरी कोशिका में निष्पक्ष निर्धारण था, मेरी अज्ञानता के साथ जुड़कर मध्यरात्रि के तेल को जला दिया, मैंने अपने आप नौकरशाही छोड़ने का निर्णय किया, पत्रकारिता में वापस आने का निर्णय किया जिसे मेरी दोस्त हमेशा जारी रखते देखना चाहती थी।
संदरता जो कभी भी बहुतों को सर मोड़कर देखने को मजबूर करने में नहीं चूकती थी, वह अपने आकर्षण पर कम ही ध्यान देती थी जो मुझे अक्सरहाँ महसूस कराती थी कि उसकी असली सुंदरता नग्न आँखों से नहीं दिखती थी। उसकी शालीनता मुझे किसी चीजों को उद्घोपित करने में लालचीपना के कारण प्रतिकूल थी। लम्बी, भांदू और ठीक छोटा अस्तित्व मानव काल के इतिहासकार को आनंद प्रदान करती है। मेरी शंकाएँ मुझे मेरी बिना अस्तित्व के गुण के बारे में अधिक वाचाल बनाती थीं। मैं अपने सद्गुणों के बारे में जोर से बातें करता, तेजी से मैं अपने आपको मूर्ख बनाता। _फिर भी, वह अकेली थी, जिसने मुझको समझा, कमजोरियों को देखा और मुझे अपने आप को महसूस करने लायक बनाया। बहुत वर्षों तक उसके बगैर मैंने अपने जीवन को बंजर देखा। वह मेरी जीवन की ताकत थी, प्रेरणा की स्रोत थी और अहंकार को बदलने वाली थी, सभी एक बार में चला गया। मैं अपने आप में थोड़ा आश्चर्य महसूस किया जब मैंने गुडबाय कहने का निर्णय लिया।
She was wearing a canary yellow dress, my favourite, when I called her for the last time. With myriad thoughts crowding my mind, I entered the restaurant with trepidation, rehearsing flimsy excuses, adding lachrymose sentimentality to my side of the story — so ingenuously laced with all kinds of mundane reasons, ranging from caste, creed, culture and language to sheer helplessness, my tragic flaw of character and our stormy future.
She heard my cock-and-bull story patiently, never showed any emotions and insisted on footing the bill. “You don’t have any complaints, dear?” I asked with moist eyes and choked voice, all affected. She clasped my hand with both hands. “How can I have complaints against a man who has given me so many moments of happiness? I think if you are happy this way, I should not be so mean as not to feel happy for you. Goodbye, and take care.”
That was the last I saw of her. I fought shy of inviting her to my wedding and never mentioned about her to my wife. Her dad had been transferred in the meantime and the story of my romance appeared to be part of my cherished memory. My ‘life’ for eight years seemed dead until a phone call brought back cascades of nostalgic sentiments.
She was on the other side of the line, exactly two years later, inviting me to her wedding reception. I had realised my monumental folly of having let go of her and I resolved to attend her wedding, unescorted by my better-half, of course. As I shook hands with her husband, a handsome IAS officer, at her reception, she flashed her disarmingly endearing smile: “Meet my husband! How strange, he wanted to be a journalist.”.
I struggled to retain my plastered grin when her hubby told me: “Thanks, but for you I would not have got her. Still, I wonder why on earth did she have to leave a guy like you?”
For a while it looked as though I had lost all reasons to live. Here was a woman who was ditched by me, and yet had no hesitation in not only giving me a clean chit but also telling her husband about her past prior to embarking upon the conjugal life.
For the first time in my life, I realised I was also ugly from within and despite our eight years of togetherness, her goodness had not rubbed off on me in any way.
हिन्दी वाक्यार्थ- जब मैने उरो अन्तिम बार बलाया तो उसने मेरी पसंद की कनरी की पीला पोशाक पहन रखी थी। मन-मस्तिष्क में असंख्य चिंतन के साथ में व्याकुलता से तुच्छ क्षमा, जो फिर से सुनाई पड़ रही थी, मेरी तरफ से कहानी ग गहन भावनाए, जोड़ रही थी, के साथ रोस्टेरेन्ट में प्रवेश किया-इतना निष्कपट भाव से कि मर चारा तरफ सभी प्रकार के सांसारिक कारण, जाति का बंधन, धर्मपत, संस्कृति और ‘भापा मजबूरी को पूर्णता प्रदान करने के लिए काफी थे, मेरे दाख से भरा चारित्रिक कमी और हमारे तूफानी भविष्य के लिए भी।
उसने मेरी अविश्वसनीय कहानी को धैर्यपूर्वक मना, कभी कोई भावनाएं उसके, चेहरे पर नहीं थीं और रेस्टोरेन्ट के बिल के पैसे देने के लिए भी आग्रह किया। प्रिय, क्या तुम्हें कोई शिकायत है ?” मैंने उससे नम नेत्रों तथा थरथराती आवाज में पूछा। उसने मेरा हाथ अपने दोनों हाथों में पकड़ लिया। “मैं उस व्यक्ति के खिलाफ काई शिकायत कैसे कर सकती हूँ, जिसने मुझे बहुत सारे खुशी के पल दिए है ?” में
सोचती हूँ कि तुम इस प्रकार खुश रहो, मुझे भी ऐसा नहीं समझाना चाहिए कि मैं | तुम्हारे लिए खुश न रहूँ। नमस्कार अपना ख्याल रखना।” ____ वह अंतिम समय था जब मैने उसे देखा था। मैंने उसे जब अपनी शादी में बुलाया | तो उसे देखा और अपनी पत्नी के बारे में कुछ भी नहीं बताया। उसके पिताजी का | भी स्थानान्तरण उसी समय हो गया था और मेरी प्रेम कहानी, आशा धारण करने वाली कहानी का हिस्सा के रूप में प्रकट हुई । मेरे आठ वर्षों का ‘जीवन’ मृत लगने लगा, लेकिन एक फोन रेगिस्तान में जल की धारा के रूप में प्रकट हुआ।
वह फोन पर दूसरी तरफ थी, ठीक दो साल बाद वह मुझे अपनी शादी के स्वागत
समारोह में आमंत्रित कर रही थी। मैंने निमंत्रण में जाने पर मूर्खता महसूस किया था फिर भी उसकी शादी में जाने का निश्चय कर लिया। बिल्कुल आधा मन से। जैसा
कि मैंने उसके आई. ए. एस. पदाधिकारी पति से हाथ मिलाया उसने निशस्त्र करने __ वाली आँखों से देखा और प्रेमपूर्वक मुस्कुरायी। “मेरे पति से मिलो। कैसा संयोग है, ये पत्रकार बनना चाहते थे।”
मैंने कठिनाई से दिखावा में अपने दाँतों को दिखाते हुए हँसने का प्रयास करता रहा जब उसके पति ने मुझसे कहा, “धन्यवाद लेकिन आपके लिए मैंने इससे शादी नहीं की है। फिर भी, मुझे आश्चर्य है इस धरती पर इसने आपके जैसे विलक्षण व्यक्ति को कैसे छोड़ दिया ?”
कुछ पल के लिए ऐसा लगा कि मैंने जिन्दा रहने का सभी कारण खो दिया है। यहाँ एक औरत, जो मेरे द्वारा धोखा दी गई है और उसको मझे निर्दोष बनाने में उसे कोई हिचक नहीं हो रही थी, बल्कि पति से बीते पूर्ववर्ती बातों को भी बता रही थी, जो उसके दाम्पत्य जीवन में विष घोल सकता था। ___मैंने अपने जीवन में पहली बार महसूस किया, मैं भी नासमझ था जो आठ वर्षों तक साथ-साथ रहकर भी उसकी अच्छाई मुझे किसी भी तरह से प्रभावित नहीं कर सकी थी।