BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 4 हॉकी का जादूगर

Class 6th Hindi Text Book Solutions

4. हॉकी का जादूगर (मेजर ध्यानचंद)

पाठ का सरांश- प्रस्तुत संस्मरण ‘हॉकी का जादूगर‘ एक महान् खिलाड़ी के जीवन की आपबीती घटनाओं का लेखा-जोखा है। इसमें लेखक मेजर ध्यानचंद ने खेल की दुनिया में शीर्ष स्थान प्राप्त करने के विषय में प्रकट किया है।

ध्यानचंद का जन्म सन् 1904 में प्रयाग में एक साधारण परिवार में हुआ था। बाद में इनका परिवार झाँसी आकर बस गया। 16 वर्ष की उम्र में ये ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेट‘ में एक सिपाही के रूप में भर्त्ती हुए। हॉकी-खेल में इनकी रेजिमेंट का काफी नाम था। ध्यानचंद को इस खेल के प्रति कोइ रूचि नहीं थी, लेकिन रेजिमेंट के तत्कालीन मेजर तिवारी की प्रेणा ने इन्हें इस खेल के प्रति रूचि जगा दी। उस समय छावनी में हॉकी खेलने का कोई समय नहीं थी। धीरे-धीरे अपने कठिन अभ्यास से खेल में प्रविनता प्राप्त करते गए और इनके खेल में निखार आता गया।

इनके खेल में निखार आता गया, और इनकी तरक्की होती गई। सन् 1936 में बर्लिन ओलम्पिक में इन्हें कप्तान बन गय। इस ओलम्पिक में इनके खेलने के ढंग से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इन्हें ,हॉकी का जादूगर आरंभ कर दिया। इस समय लेखक सेना में लांसनायक के पद पर कार्यरत थे। इन्होंने  अपने संबंध में कहा कि खेल में सारा गोल इन्हीं के द्वारा नहीं बनाया जाता था, बल्कि उनकी हमेशा यही कोशिश रहती थी कि गेंद का गोल के पास ले जाकर अपने साथी खिलाड़ी को दे देना ताकि उसे गोल रकने का श्रेय मिल सके। इसी खेल भावना के कारण उन्होंने संसार के खेल-प्रमियों का दिल जीत लिया। इन्हें स्वर्ण पदक मिला था।

लेखक ने खेल के मैदान में घटनेवाली एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा है कि खेल के मैदान में लेखक जिस समय खेलते थे। तब मैदान में धक्का-मुक्की तथा मार-पीट होती थी। इस संबंध में सन् 1933 की एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा है-‘‘उन दिनों में पंजाब रेजिमेंट की ओर से खेल रहा था। एक दिन पंजाब रेजिमेंट और सैंपर्स एंड माइनर्स टीम के बीच मुकाबला हो रहा था। माइनर्स टीम के खिलाड़ी मुझसे गेंद छीनने की कोशिश करते, लेकिन उनकी हर कोशिश व्यर्थ साबित होती। इतने में एक खिलाड़ी गुस्से में आकर हॉकी मेरे सिर पर दे मारी। मुझे मैदान से बाहर पट्टी बाँधने के लिए ले जाया गया।‘‘ पुनः मैदान से लौटने पर मैंने उस खिलाड़ी की पीठ थपथपाते हुए कहा-‘‘ तुम चिन्ता मत करो, इसका बदला मैं जरूर लूँगा।‘‘ ध्यानचंद के इस कथन से वह खिलाड़ी भयभीत हो गया और इस भय के कारण वह पूरे खेल के दौरान विचलित रहा कि कब प्रहार होगा। उसकी इस कमजोरी का लाभ उठाते हुए, लेखेक ने छः गोल कर दिए खेल समाप्त होने पर उन्होंने उस खिलाड़ी की पीठ थपथपाते हुए कहा-दोस्त। खेल में इतना गुस्सा अच्छा नहीं होता। यदि तुम मेरे सिर पर नहीं मारते तो मैं दो ही गोल से हराता।‘‘

आज भी जब लोग मेरी सफलता का राज जानना चाहते हैं तो मेरा यही उत्तर होता है कि लगन, साधन और खेल भावना ही सफलता का असली राज है।

अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

पाठ से:

प्रश्न 1. ध्यानचंद किस खेल से संबंध रखते हैं?

उत्तर- ध्यानचंद हॉकी खेल से

प्रश्न 2. दूसरी टीम के खिलाड़ी ने ध्यानचंद को हॉकी क्यों मारी?

उत्तर- दूसरी टीम के खिलाड़ी ने ध्यानचंद को हॉकी इसलिए मारी, क्योंकि बार-बार प्रयास करने के बावजूद वह ध्यानचंद से गेंद नहीं छीन सका। इसी विफलता के कारण उसने उद्विग्नतावश ध्यानचंद को हॉकी दे मारी।

प्रश्न 3. ध्यानचंद अपनी सफलता का राज क्या बताया है?

उत्तर- ध्यानचंद अपनी सफलता का राज सच्ची लगन, साधन एवं खेलभावना को बताया है। उनका कहना है कि जब खिलाड़ी भावना से खेलता है तब हार-जीत पर सबको एक समान खुशी या दुःख होता है।

प्रश्न 4. दोस्त, खेल में इतना गुस्सा अच्छा नहीं लगताऐसा ध्यानचंद क्यों कहा?

उत्तर- पट्टी बाँधवाने के बाद पुनः मैदान वापस आने पर ध्यानचंद ने एक के बाद एक छः गोल करके विरोधी दल को हरा दिया। इसके बाद ध्यानचंद ने उस खिलाड़ी को पीठ थपथपाते हुए कहा कि मैंने अपना बदला ले लिया। यदि तुम मुझे नहीं मारते तो शायद मैं तुम्हें दो गोल से ही हराता। ध्यानचंद ने उसे शर्मिंदा करने तथा खेल भावना की सीख देने के लिए ऐसा कहा था।

प्रश्न 5. ध्यानचंद को कब से हॉकी का जादूगरकहा जाने लगा?

उत्तर- ध्यानचंद को सन् 1936 में बर्लिन में खेले गए ओलम्पिक खेल से प्रभावित होकर लोगों द्वारा इन्हें ‘हॉकी का जादूगर‘ कहा जाने लगा। कारण था कि इनके खेल में अद्भुत भावना थी। इसी टीम-भावना ने दुनिया के खेल-प्रमियों का दिल जीत लिया।

पाठ से आगे:

प्रश्न 1. अगर ध्यानचंद हॉकी नहीं खेलते तो वो क्या कर रहे हाते ?

उत्तर- अगर ध्यानचंद हॉकी नहीं खेलते तो वह भी अन्य लोगों की भाँति अपनी आजीविका चलाने के लिए खेती, नौकरी अथवा व्यसाय कर रहे होते, क्योंकि परिवार का खर्च वहन के लिए मनुष्य को कोई-न-कोई काम करना ही पड़ता है।

प्रश्न 2. ध्यानचंद के जगह अगर आप होते तो अपना बदला किस प्रकार लेते ?

उत्तर- ध्यानचंद की जगह मैं होता तो अपना बदला उसी प्रकार लेता जिस प्रकार ध्यान ने यह कहकर उस खिलाड़ी को भयभीत कर दिया कि ‘मैं इसका बदला जरूर लुँगा‘। यह सुनकर विपक्षी दल के उस खिलाड़ी के मन में भय बन गया कि खेलने के दौरान ध्यानचंद कभी हॉकी मार सकते हैं। इसलिए उसका ध्यान खेल से अधिक आत्मरक्षा लगा रहा और ध्यानचं ने उसकी कमजोरी लाभ उठाते हुए छः गोल कर दिए। ध्यानचंद ने विपक्षी दल को हराकर अपने पर मार का बदला लिया था।

प्रश्न 3. खेलते समय नोंक-झोंक क्यों हो जाती है?

उत्तर- खेलते समय नोंक-झोंक इसलिए हो जाती है, क्योंकि हर दल के खिलाड़ी अपनी टीम की जीत के लिए हर प्रकार के प्रयास करते हैं। इसी प्रयास के क्रम में गलती हो जाया करती है। इसी गलती के उद्भेदन पर नोंक-झोंक होती है।

प्रश्न 4. विजेता बनने के लिए मनुष्य में क्या-क्या गुण होने चाहिए।

उत्तर-विजेता बनने के लिए मनुष्य में लगन, साधना था खेल-भावना जैसे गुण होना चाहिए।

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