Class 6th Hindi Text Book Solutions
6. तुम कल्पना करो(गोपाल सिंह ‘नपाली‘)
सप्रसंग व्याख्याएँ/आशय
1 अब घिस गई समाज की तमाम नीतीयाँ
अब घिस गई मनुष्य की अतीत रीतियाँ
हैं दे रही चुनौतियाँ तुम्हें कुरीतियाँ
निज राष्ट्र के शरीर के सिंगार के लिए
तुम कल्पना करो, नवीन कल्पना करो,
सप्रसंग व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि गोपाल सिंह ‘नेपाली‘ विरचित ‘तुम कल्पना करो‘ पाठ से ली गई है। इसमें कवि ने देशवासियों को नये ढंग से देश को व्यवस्थित करने का संदेश दिया है।
कवि का कहना है कि समाज की सारी पुरानी नीतियाँ बेकार हो गई हैं। हमारे पुराने रीति-रिवाज महत्वहीन हो गए हैं। हम अपनी कुरीतियों के कारण ही पराधीन हुए। इसलिए सारी रूढ़िगत परम्पराओं को तोड़ हम अपने राष्ट्र-निर्माण के लिए एकजुट हों। कवि के कहने का भाव है कि हम कुरीति एवं कुनिति के कारण ही गुलाम हुए। इसलिए इस गुलामियों को नष्ट करके हम राष्ट्र के नव-निर्माण में लग जाएँ।
2. जंजीर टूटती कभी न अश्रु-धार से
दुख-दर्द दुर भागते नहीं दलार से
हटती न दसता पुकार से, गुहार से
इस गङग् तीर बौठ आज राष्ट्र श्क्ति की
तुम कामना करो, किशेर कामना करो,
तुम कामना करो।
सप्रसेग व्याख्या- प्रस्तुत गद्यांश कविवर गोपाल सिंह ‘नेपाली‘ द्वारा लिखित कविता ‘तुम कल्पना करो‘ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इसमें कवि ने देशवासियों को शक्ति के विषय में कहा है।
कवि का कहना है कि अधिकार की प्राप्ति अनुनय-विनय गिड़गिड़ाने से नहीं होती। गुलामी अथवा बंधन से मुक्ति पाने के लिए पराक्रमी होना अवश्यक होता है। जैसे रोग (पीड़ी) से मुक्ति पाने के लिए दवा अवश्यक होती है, मात्र लाड़-प्यार से पीड़ा नहीं मिटती, वैसे ही सिर्फ प्राथना से गुलामी का बंधन नष्ट नहीं होता, इस बंधन को तोड़ने के लिए व्यक्ति को प्राण बाजी लगानी पड़ती है। अपने पराक्रम का परिचय देना होता है। शक्ति के समक्ष ही दुनिया झुकती है। इसलिए कवि ने हमें गंगा की कसम खाकर आजादी की प्राप्ति के लिए देश की बलिवेदी पर मर मिटने का संकल्प लेने का संदेश दिया है।
3. जो तुम गए स्वदेश की जवानियाँ र्गइं
चिन्तौड़ के प्रताप की कहानियाँ र्गइं
आजाद देश रक्त की रवानियाँ गईं
अब सूर्य चंद्र से समृध्दि, ऋध्दि – सिध्दि की
तुम याचना करो दरिद्र याचना करो
तुम याचना करो।
आश्य- कवि गोपाल सिंह ‘नेपाली‘द्वारा लिखित कविता ‘तुम कल्पना करो‘ से उद्धृत प्रस्तुत पंक्तिया के माध्यम से यह संदेश दिया है कि व्यक्ति का स्वाभिमान ही उसकी असली शक्ति होता है। स्वाभिमान रहित व्यक्ति मृतवत् होता है। इसलिए महाराणा प्रताप ने स्वाभिमान की रक्षा के लिए जंगल की खाक छानना पसंद किया, लेकिन अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। कवि के कहने का तात्पर्य है कि यदि देशवासी राष्ट्रीय गौरव की रक्षा नहीं करते हैं तो आजादी की लड़ाई में देशभक्तों द्वारा बहाया गया खून व्यर्थ साबित होगा। इसलिए हमें अपने देश को समृद्ध बनाने का हर संभव प्रयास करना है।
4. आकाश है स्वतंत्र है, स्वतंत्र मेखला
यह क्षेृग्ड़ भी स्वतंत्र ही खड़ा बना ढाला
हैं जलप्रपात काटता सदैव क्षृंखला
आनन्द – शोक जन्म और मृत्यु के लिए
तुम योजना करो स्वतंत्र योजना करो
तुम योजना करो।
आश्य- प्रस्तुत पंक्तियाँ पाठ्पुस्तक में संकलित कवि गोपाल सिहं ‘नेपाली‘ द्वारा लिखित कविता ‘तुम कल्पना करो‘ से लिया गया है। इसमें कवि ने स्वतंत्रता के विषय में अपना विचार प्रकट किया है। कवि का कहना है। कि आकाश स्वतंत्र है, पहाड़ो की श्रृंखला स्वतंत्र है तथा पर्वत की चोटी भी स्वतंत्र है। झरना अपनी राह बनाने के लिए स्वतंत्र है। साथ ही सुख-दुःख, जन्म-मृत्यु शाश्वत है। ऐसी स्थिति में हमें भी स्वतंत्रतापुर्वक जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। कवि के कहने का तात्पर्य है कि स्वतंत्र वातावरण में जीना ही हमारा लक्ष्य हो, क्योंकि पराधीनता की स्थिति में व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं होता।
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