Bihar Board Class 12th Psychology Objective Questions & Notes Solutions (मनोविज्ञान)

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Bihar Board Class 12th Psychology Objective Questions

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Class 12th Psychology MCQ Questions मनोविज्ञान के वस्‍तुनिष्‍ठ प्रश्‍नोत्तर

Bihar Board Class 12th Psychology Objective Questions in Hindi

BSEB Bihar Board Class 12th Psychology Objective Questions मनोविज्ञान

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BSEB Bihar Board Class 9 Social Science Economics Solutions Chapter 6. कृषक मजदूर

Bihar Board Class 9 Economics कृषक मजदूर Text Book Questions and Answers 

6. कृषक मजदूर

अभ्यास के प्रश्न तथा उनके उत्तर

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
सही उत्तर का संकेताक्षर (क, , , घ) लिखें :

1. 2001 में बिहार में कृषक मजदूरों की संख्या थी
(क) 48%
(ख) 42%
(ग) 52%
(घ) 26.5%

2. 1991 में बिहार में कृषक मजदूरों की संख्या थी
(क) 26.1%
(ख) 37.1%
(ग) 26.5%
(घ) 37.8%

3. बिहार के कृषक मजदूर हैं :
(क) अशिक्षित
(ख) शिक्षित
(ग) ज्ञानी
(घ) कुशल

4. सामान्यतः कृषक मजदूर को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है :
(क) तीन
(ख) दो
(ग) चार
(घ) पाँच

5. ऐसे मजदूर जिनके पास खेती करने के लिए अपनी कोई भूमि नहीं होती है उन्हें कहते हैं ” :
(क) छोटा किसान
(ख) बड़ा किसान
(ग) भूमिहीन मजदूर
(घ) जमींदार

उत्तर : 1. (क), 2. (ख), 3. (क), 4. (क), 5. (ग) ।

II. रिक्त स्थानों को भरें :
1. जो मजदूर कृषि का कार्य करते हैं उन्हें हम …………… मजदूर कहते हैं ।
2. क्वेसने ने कहा था कि, दरिद्र कृषि, दरिद्र राजा, दरिद्र …………. ।
3. बिहार में अधिकांश कृषक मजदूर ……………. एवं पिछड़ी जातियों के हैं।
4. बिहार में अब कृषि कार्यों में ……………… का प्रयोग होने लगा है।
5. बिहार के कृषक मजदूर रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर …………….. कर रहे हैं ।

उत्तर- 1. कृषक, 2. देश, 3. अनुसूचित जाति, 4. मशीनियों या यंत्रों, 5. पलायन ।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न :

( उत्तर 20 शब्दों में दें)

प्रश्न 1. कृषक मजदूर से हमारा क्या मतलब है ?
उत्तर – कृषक मजदूर से मतलब है कि वह मजदूर कृषि कार्यों में कार्यरत है । इस काम से मिले फुर्सत के समय कोई अन्य कार्य भी कर लेता है ।

प्रश्न 2. कृषक मजदूर को कितने भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर – कृषक मजदूरी को तीन भागों में बाँटा जा सकता है।

प्रश्न 3. भूमिहीन मजदूर किसे कहते हैं ?
उत्तर – भूमिहीन मजदूर उसे कहते हैं जिसके पास कुछ भी कृषि भूमि नहीं है ।

प्रश्न 4. बंधुआ मजदूर की परिभाषा दें ।

उत्तर- ऐसे कृषक मजदूर, जो किसी ऋण के चलते मालिक के यहाँ आजन्म या ऋण चुकाने तक बिना मजदूरी लिए केवल भोजन पर मजदूरी करते हैं, ‘बंधुआ मजदूर कहलाते हैं ।

प्रश्न 5. पलायन का अर्थ बतावें ।
उत्तर- अपने पैतृक स्थान को छोड़कर कहीं अन्यत्र चले जाने की स्थिति को ‘पलायन” कहते हैं ।

प्रश्न 6. भूदान आन्दोलन पर प्रकाश डालें ।
उत्तर –विनोबा भावे ने भूपतियों से कुछ भूमि दान में माँगी थी, ताकि उसे भूमिहीन कृषक मजदूरों में बाँट दी जाय। इसी को ‘भूदान आंदोलन’ कहा गया । बहुतों ने जमीन दी थी, लेकिन उसका कोई उपयोग नहीं हो सका । विनोबा जी के मरते ही आन्दोलन भी मर गया। भूमि भूपतियों के पास नहीं रह गई ।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :

(उत्तर 100 शब्दों में दें)

प्रश्न 1. बिहार में कृषक मजदूरों की वर्तमान दशा एवं समस्याओं का वर्णन करें ।
उत्तर – बिहार में कृषक मजदूरों की वर्तमान दशा अत्यन्त दयनीय है । कृषि में उन्हें सालों भर काम नहीं मिलता। वर्ष के अधिकांश महीनों में वे बेकार ही बैठे रहते हैं । कृषि कार्य से जो आय प्राप्त हुई रहती है उससे सदैव गृह खर्च चल नहीं पाता । फलतः उन्हें ऋण लेना पड़ता है। वे ऋण चुका नहीं पाते । ब्याज भी बढ़ता जाता है । फलतः वे ऋणग्रस्तता से तबाह रहते हैं । इनका सारा जीवन गरीबी, बेकारी, शोषण, उत्पीड़न तथा अनिश्चितता में गुजर जाता है। इनकी सामाजिक स्थिति भी ठीक नहीं रहती । कहीं- कहीं तो उनके साथ गुलामों जैसा व्यवहार किया जाता है ।
कृषक मजदूरों को अनेक समस्याओं से जूझना पड़ता है । उन्हें मजदूरी कम दी जाती है। रोजगार भी मौसमानुसार ही मिल पाता है। ये आर्थिक दृष्टि से कमजोर होते हैं, जिससे मालिक मनमाने घंटों तक काम करवाते हैं । तात्पर्य कि इनका शोषण होता है। ऋणग्रस्तता हो तो ये तबाह रहते ही हैं, इनके आवास भी आरामदेह नहीं होते। इन्हें सहायक धंधों का अभाव है ।

प्रश्न 2. बिहार में कृषक मजदूरों की संख्या तेजी से क्यों बढ़ती जा रही है? इनकी दशा में सुधार लाने के उपाय बतावें । ?
उत्तर – बिहार में कृषक मजदूरों की संख्या इसलिए तेजी से बढ़ती जा रही है, कि बिहार के सभी कारखाने एक-एक कर बन्द हो गए। डालमिया नगर जो लगभग कारण टाटानगर से मुकाबला कर रहा था, कर्मचारियों और कर्मचारी नेताओं की महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ गया । ऊब कर प्रबंधन ने हाथ खड़े कर दिए और कारखाना बन्द हो गया। अविभाजित बिहार में चार कागज के कारखाने थे, वे सभी बन्द पड़े हैं। कटिहार का जूट कारखाना और माचिस कारखाना भी बन्द पड़े हैं। बिहार के लगभग सभी चीनी कारखाने बन्द पड़े हैं । कुछ चीनी कारखाने अविभाजित सारण तथा चम्पारण जिलों के भी बन्द हो गए हैं । कुछ ही चालू हालत में हैं । मढ़ौरा के मार्टन मिल भी बन्द हैं। पटना और गया (नवादा) जिले के दोनों चीनी मिल बन्द हैं। इन मिलों के बंद हो जाने के कारण इनके कर्मचारी बेकार होकर कृषक मजदूर बन गए। इनके वंशज भी कृषि मजदूर ही बनते हैं । यही कारण है कि बिहार में कृषि मजदूरों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है । इनकी दशा में सुधार के उपाय है कि बन्द कारखानों को चालू करवाया जाय। नए-नए उद्योगों की स्थापना हो ।

प्रश्न 3. विहार में मजदूरों की समस्याओं के समाधान के लिए आवश्यक उपायों पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – बिहार में मजदूरों की समस्याओं के समाधान के लिए आवश्यक उपायों में कुछ प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं :

(i) कृषि आधारित उद्योगों का विकास – विहार में कृषि मजदूरों की समस्याओं का समाधान करना है तो कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ाना होगा। चीनी मिल तथा जूट मिलों को चालू करना होगा ।

(ii) लघु एवं कुटीर उद्योग का विकास- राज्य में लघु और कुटीर उद्योगों के विकास पर ध्यान दिया जाये । लघु उद्योगों को कामगारों में वृद्धि करने की अनुमति दी जाय ।

(iii) न्यूतम मजदूरी का उचित क्रियान्वयन हो— सरकार न्यूनतम मजदूरी तो निश्चित कर देती है, लेकिन उसका उचित पालन हो रहा है या नहीं, यह देखने का कोई जहमत नहीं उठाता ।

(iv) काम के घंटे निश्चित किए जायँ — एक मजदूर को एक दिन में कितने घंटे काम करना है, इसको निश्चित किया जाय । यदि अधिक समय तक काम कराया जाता है तो उसका उचित भुगतान किया जाय ।

(v) काम की दशाओं में सुधार – कृषि मजदूरों के काम की दशा में सुधार किया जाय। समय-समय पर उन्हें मजदूरी सहित छुट्टी दी जाय । दुर्घटना होने पर मुआवजा का प्रावधान हो ।

प्रश्न 4. कृषि मजदूरों की दशा सुधारने के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयासों पर प्रकाश डालें ।
उत्तर– कृषि मजदूरों की दशा सुधारने के लिए सरकार द्वारा निम्नलिखित उपाय किए गए हैं :

(i) न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण – बिहार सरकार ने न्यूनतम मजदूरी अधिनियम को कृषि मजदूरों पर भी लागू किया है।

(ii) भूमिहीनों को मकान के लिए जमीन — भूमिहीन मजदूरों के पास निवास के लिए अपनी जमीन होनी चाहिए। इसी को ध्यान में रखकर सरकार ने फैसला किया है कि उन्हें मकान के लिए मुफ्त में जमीन दी जायगी ।

(iii) भूदान आन्दोलन में मिली जमीन का बँटवारा — सरकार ने भूदान में मिली जमीन के बँटवारे का निश्चय किया है । हदवन्दी में प्राप्त जमीन भी कृषि मजदूरों को ही दी जाएगी ।

(iv) बंधुआ मजदूरों को राहत – 1976 में एक अधिनियम बनाकर सरकार ने बंधुआ मजदूरों को रखने से मना कर दिया। न माननेवाले अनेक मालिकों को गिरफ्तार कर सजा दी गई ।

(v) पुराने ऋणों से मुक्ति – भूमिहीन कृषि मजदूरों के हित में कानून बनाकर पुराने ऋणों से उन्हें मुक्ति दिला दी गई। अब बहुत हद तक उनकी ऋणग्रस्तता समाप्त हो गई है ।

प्रश्न 5. बिहार में कृषक मजदूरों के पलायन से उत्पन्न समस्याओं पर प्रकाश डालें । इसका निदान कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर – बिहार से कृषक मजदूरों के पलायन से अनेक समस्याएँ सामने आई हैं। उनके यहाँ से अन्य राज्यों में चले जाने के कारण बिहार में कृषि मजदूर नहीं मिलते। यहाँ उनकी कमी हो गई है। अतः एक ओर तो कृषक परेशानी झेल रहे हैं और दूसरी ओर पलायन करनेवाले मजदूरों की स्थिति भी अच्छी नहीं कही जाएगी। असम, महाराष्ट्र आदि राज्यों में इनको बाहरी व्यक्ति कहकर मारा-पीटा जाता है और वहाँ से भाग जाने को कहा जाता है। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में इनसे अधिक घंटों तक काम कराया जाता है और मजदूरी में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं होती । बहुत बार ऐसा होता है कि आय प्राप्त कर लौटते समय इनका धन छीन लिया जाता है। रेल में नशा- खिलकर लूट लिया जाता है । ये एड्स जैसे बीमारियों के शिकार तक हो जाते हैं ।
इस समस्या का निदान है कि बिहार में ही रोजगार के अवसर बढ़ाए जायें । बन्द कारखानों को चालू कराया जाय और नये-नये कारखाने खोले जाएँ । लघु उद्योगों को अनुमति दी जाय कि वे 20 से 25 कर्मचारी तक रख सकते हैं। श्रम विभाग उन्हें तंग नहीं करेगा ।

परियोजना कार्य (Project Work ) :
1. अपने गाँव के 10 कृषक मजदूर परिवारों का आर्थिक सर्वेक्षण करें ।
2. पलायन कर रहे किसी एक परिवार की कहानी लिखें ।
3. पलायन कब, कहाँ और कैसे होता है? उस पर एक संक्षिप्त नुक्कड़ नाटक प्रसिद्ध लोकगीतकार भिखारी ठाकुर के संदर्भ में प्रस्तुत करें ।
उत्तर-संकेत : ये परियोजना कार्य हैं । इसे छात्र स्वयं करें ।

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BSEB Bihar Board Class 9 Social Science Economics Solutions Chapter 5. कृषि, खाद्यान्न सुरक्षा एवं गुणवत्ता

Bihar Board Class 9 Economics कृषि, खाद्यान्न सुरक्षा एवं गुणवत्ता Text Book Questions and Answers

5. कृषि, खाद्यान्न सुरक्षा एवं गुणवत्ता

अभ्यास के प्रश्न तथा उनके उत्तर

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
निर्देश : सही उत्तर का संकेताक्षर (क, ख, ग, घ) लिखें।

1. बिहारवासियों के जीवन निर्वाह का मुख्य साधन है :
(क) उद्योग
(ख) व्यापार
(ग) कृषि
(घ) इनमें से कोई नहीं

2. राज्य में सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिंचाई साधन है :
(क) कुएँ एवं नलकूप
(ख) नहरें
(ग) तालाब
(घ) नदी

3. बाढ़ से राज्य में बर्बादी होती है :
(क) फसल की
(ख) मनुष्य एवं मवेशी की
(ग) आवास की
(घ) इन सभी की

4. अकाल से राज्य में बर्बादी होती है :
(क) खाद्यान्न फसल की
(ख) मनुष्य एवं मवेशी की
(ग) उद्योग की
(घ) इनमें से किसी की नहीं

5. शीतकालीन कृषि किसे कहा जाता है ?
(क) भदई
(ख) खरीफ या अगहनी
(ग) रबी
(घ) गरमा

6. सन् 1943 में भारत के किस प्रांत में भयानक अकाल पड़ा ?
(क) बिहार
(ख) राजस्थान
(ग) बंगाल
(घ) उड़ीसा

7. विगत वर्षों के अंतर्गत भारत की राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान :
(क) बढ़ा है
(ख) घटा है.
(ग) स्थिर है
(घ) बढ़ता-घटता है

8. निर्धनों में भी निर्धन लोगों के लिए कौन-सा कार्ड उपयोगी है ?
(क) बी. पी. एल. कार्ड
(ख) अंत्योदय कार्ड
(ग) ए. पी. एल. कार्ड
(घ) इनमें से कोई नहीं

9. निम्नलिखित में कौन खाद्यान्न के स्रोत हैं ?
(क) गहन खेती नीति
(ख) आयात नीति 
(ग) भंडारण नीति
(घ) इनमें सभी

10. गैर सरकारी संगठन के रूप में बिहार में कौन-सा डेयरी प्रोजेक्ट कार्य कर रहा है ?
(क) पटना डेयरी
(ख) मदर डेयरी
(ग) अमूल डेयरी
(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर— 1. (ग), 2. (क), 3. (घ), 4. (क), 5. (ख), 6. (ग), 7. (ख), 8. (ख), 9. (घ), 10. (क) ।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :
1. बिहार राज्य में कृषि ………….. जनसंख्या के आजीविका का साधन है।
2. बिहार में कृषि की …………… निम्न है ।
3. बिहार की कृषि के लिए सिंचाई ……………….. महत्व रखती है ।
4. राज्य में बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र ………………….. है ।
5. बफर स्टॉक का निर्माण ………………. करती है ।
6. निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों के लिए …………… कार्ड है ।
7. भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ ………………. है ।
8. औद्योगिक श्रमिक की दैनिक आवश्यकता ……………… कैलोरी है ।
9. दिल्ली में ………………… डेयरी कार्य करती है।
10. हरित क्रांति ……………. से प्रभावित होकर भारत में लागू की गयी ।

उत्तर- 1. बहुसंख्यक, 2. उत्पादकता, 3. अत्यधिक, 4. काफी अधिक 5. सरकार, 6. बी० पी० एल०, 7. कृषि, 8. 3600, 9. मदर, 10. मैक्सिको ।

III. सही कथन में टिक (/) तथा गलत कथन में क्रास (x) करें ।
1. बिहार की अर्थव्यवस्था में उद्योग सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । (गलत)
    (सही यह है कि बिहार की अर्थव्यवस्था में कृषि सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं ।)
2. बिहार की कृषि अत्याधुनिक है । (गलत)
     (सही यह है कि बिहार की कृषि परम्परागत है ।)
3. राज्य में बाढ़ग्रस्त क्षेत्र काफी अधिक है । (सही)
4. कृषि उद्योग के लिए कच्चे माल की आपूर्ति करती है । (सही)
5. एक अध्यापक की दैनिक आवश्यकता कम से कम 2600 कैलोरी है । (सही)
6. खाद्यान्न की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए अधिक कैलोरी युक्त खाद्य पदार्थों की उपज पर विशेष ध्यान की आवश्यकता नहीं है । (गलत)
    (सही यह है कि खाद्यान्न की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए अधिक कैलोरीयुक्त खाद्य पदार्थों की उपज पर विशेष ध्यान की आवश्यकता है ।)
7. ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा लाल बहादुर शास्त्री ने दिया । (सही)
8. कृषि भारत एवं बिहार का आर्थिक इंजन है । (सही)

IV. लघु उत्तरीय प्रश्न :

(उत्तर 20 शब्दों में दें)

प्रश्न 1. बिहार की कृषि के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए चार उपाय बताएँ ।
उत्तर – बिहार की कृषि के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए चार उपाय निम्नलिखित हैं।
(i) जनसंख्या की वृद्धि पर नियंत्रण रखी जाय ।
(ii) सिंचाई व्यवस्था सुनिश्चित की जाय ।
(iii) बाढ़ नियंत्रण तथा बेहतर जल प्रबंधन किया जाय ।
(iv) उन्नत एवं बेहतर कृषि तकनीक का उपयोग हो ।

प्रश्न 2. खाद्य फसल एवं नकदी फसल में अंतर बताएँ ।
उत्तर — खाद्य फसल उसे कहते हैं, जिनका उपयोग खाने के लिए होता है । जैसे— गेहूँ, जौ, धान, दलहन, तेलहन, सब्जी आदि ।
नगदी फसल उसे कहते हैं जिनको बेचकर नकद पैसा प्राप्त हो । जैसे— गन्ना, जूट, चाय, आम, लीची, केला आदि ।

प्रश्न 3. कौन लोग खाद्य असुरक्षा से अधिक गस्त हो सकते हैं?
उत्तर – समाज के अधिक गरीब लोग खाद्य असुरक्षा से मस्त हो सकते हैं। कारण कि इनके पास इतना धन नहीं रहता कि फसल कटाई के समय ही खाद्यान्न खरीदकर रख सके। लेकिन आपदाकाल में धनी लोग भी खाद्य असुरक्षा से मस्त हो सकते हैं।

प्रश्न 4. क्या आप मानते हैं कि हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना दिया है? कैसे ?
उत्तर- हाँ, हम मानते हैं कि हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना दिया है। इसके लिए किसानों ने प्रयास किया और सरकार ने भी सहयोग दिया। उन्नत बीज, रासायनिक उर्वरक के साथ कीटनाशियों के उपयोग से अकस्मात कृषि उपज बढ़ गई थी। इसी को हरित क्रांति नाम दिया गया था ।

प्रश्न 5. सरकार बफर स्टॉक क्यों बनाती है ?
उत्तर- किसी आपदा के समय खाद्यान्न की कमी नहीं होने पावे, इसलिए सरकार बफर स्टॉक बनाती है। सरकार किसानों से उनकी आवश्यकता से फाजिल अन्न को ‘भारतीय खाद्य निगम द्वारा न्यूनतम समर्थित मूल्य पर खरीदकर उसको भंडार में रखवाती है।

प्रश्न 6. सार्वजनिक वितरण प्रणाली से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – सरकार भारतीय खाद्य निगम द्वारा अनाज खरीदवाकर उसको भंडार में रखवाती है तो अपने द्वारा खुलवाई दुकानों से सामान्य गरीबों के हाथ बिकवाती है। इससे, गरीबों को उचित मूल्य पर खाद्यान्न मिल जाता है । इसी प्रणाली को ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ कहते हैं।

प्रश्न 7. राशन कार्ड कितने प्रकार के होते हैं ? चर्चा करें ।
उत्तर – राशन कार्ड तीन प्रकार के होते हैं । वे हैं :
(क) अंत्योदय कार्ड, (ख) बी. पी. एल. कार्ड तथा (ग) ए. पी. एल. कार्ड । अंत्योदय कार्ड गरीबों में भी सबसे गरीबों के लिए है। बी. पी. एल. कार्ड निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों के लिए तथा अन्य सामान्य लोगों के लिए ए. पी. एल. कार्ड हैं ।

V. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :

(उत्तर 100 शब्दों में दें)

प्रश्न 1. बिहार की अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका की विवेचना करें
उत्तर – कृषि ही बिहार का प्रधान व्यवसाय है। बिहार की कुल आय का लगभग 80% भाग कृषि ही देती है। चीनी मिलों को खुराख गन्ना कृषि से ही मिलती है। चीनी मिलों के अलावा यहाँ अन्य उद्योगों का अभाव है। झारखंड के अलग हो जाने के कारण बिहार उद्योग विहीन हो गया है। बिहार का बड़ा उद्योग – केन्द्र डालमियानगर अब ध्वस्त हो चुका है। कागज के दो कारखाने उत्तर बिहार में हैं, किन्तु श्रम अधिकारियों की मनमानी तथा मजदूर यूनियनों की तानाशाही रवैये से दोनों बन्द हैं। दरभंगा के कागज कारखाने को चलाने के लिए अनेक प्रयास हुए, किन्तु सफलता नहीं मिली। इस कारण बिहार की अर्थव्यवस्था का कुल भार कृषि पर ही आ पड़ा है। लेकिन कृषि कार्य करनेवाले मजदूरों को वर्ष भर काम नहीं मिलने के कारण वे दूसरे राज्यों में चले जाते हैं । कृषि से आय और बाहरी मजदूरी की आय को मिलाकर किसी प्रकार गुजारा हो जाता इस प्रकार स्पष्ट है कि बिहार की अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान है ।

प्रश्न 2. बिहार की खाद्यान्न- फसल और उसके प्रकार की विस्तार से चर्चा करें।
उत्तर—बिहार की खाद्यान्न फसल और उनके प्रकार निम्नलिखित हैं :
धान, गेहूँ, जौ, मक्का, ज्वार, बाजरा, चना, अरहर आदि। इन फसलों को चार वर्गों में रखा गया है : (i) भदई, (ii) अगहनी, (ये दोनों खरीफ फसलें हैं), (iii) रबी तथा (iv) गरमा ।

(i) खरीफ भदई—इसके तहत धान, मक्का, मडुआ, बाजरा प्रमुख हैं ।

(ii) खरीफ अगहनी—इसके तहत धान की प्रमुखता है जो अगहन में काटा जाता है। अगहनी धान उत्तम माना जाता है ।

(iii) रबी- रबी फसलों में गेहूँ, जौ, चना, मटर, सरसों, अरहर आदि की प्रमुखता है ।

(iv) गरमा—गरमा गर्मी की फसल है। इसके लिए सिंचाई की व्यवस्था आवश्यक होती है। इस फसल में धान, मक्का, चीना, प्याज आदि की प्रमुखता है I

प्रश्न 3. जब कोई आपदा आती है तो खाद्य पूर्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है ? चर्चा करें ।
उत्तर-जब कोई आपदा आती है तो खाद्य पूर्ति एकाएक रुक जाती है। इस समय गरीब हों या धनी, सभी खाद्य असुरक्षा से कुप्रभावित होते हैं। इसी समय सरकार बफर स्टॉक का उपयोग करती है । वह कुछ खाद्यान तो मुफ्त में बाँटती है और कुछ सार्वजनिक वितरण की दुकानों से बिकवाती है । सरकार अनाज का बफर स्टॉक क्यों रखती है, इसी समय उसकी उपयोगिता’सिद्ध होती है। लेकन आपदाग्रस्त सभी लोगों को खाद्यान्न मिल सके इसके लिए सरकारी अधिकारियों को ईमानदारी बरतनी पड़ती है। मुँहदेखी काम नहीं होना चाहिए । असमर्थ, समर्थ सबके पास खाद्यान्न पहुँचा देना सरकारी अधिकारियों की ही ज़िम्मेदारी है। वे चाहें तो गौर-सरकारी स्वयंसेवी संस्थाओं से भी मदद ले सकते हैं। आपदाग्रस्त लोगों को पका पकाया तैयार भोजन मिले तो बहुत अच्छा।

प्रश्न 4. गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार ने क्या किया ? सरकार की ओर से शुरू की गई किन्हीं दो योजनाओं की चर्चा कीजिए ।
उत्तर—गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार अनेक योजनाएँ चालू कर रखी है। लेकिन उनमें से निम्नलिखित महत्वपूर्ण हैं :
(i) काम के बदले अनाज कार्यक्रम तथा (ii) अंत्योदय अन्न योजना ।

(i) काम के बदले अनाज कार्यक्रम — काम के बदले अनाज देश भर में चलाई गई है। इसी कारण इसे राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम कहा जाता है । यह योजना 14 नवम्बर, 2004 को पूरक श्रम रोगजार के सृजन को तीव्र करने के उद्देश्य से देश के 150 सर्वाधिकं पिछड़े जिलों में आरंभ की गई। यह योजना उन जिलों के सभी गरीब मजदूरों के लिए है जो काम की खोज में हैं या बेकार बैठे हुए हैं। लेकिन शर्त है कि उन्हें शारीरिक श्रम के लिए तैयार हों ।

(ii) अंत्योदय अन्न योजना—अंत्योदय अन्न योजना दिसम्बर, 2000 में आरम्भ की तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आनेवाले निर्धनता रेखा नीचे आनेवाले परिवारों में से एक करोड़ परिवारों की पहचान की गई। सम्बद्ध राज्यों के ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारियों द्वारा सर्वेक्षण के बाद ऐसे परिवारों, की पहचान की गई थी। इन परिवारों को दो रुपये किलो गेहूँ तथा तीन रुपये किलो चावल दिया जाता है। प्रत्येक परिवार को उक्त दर पर 35 किलोग्राम अनाज मुहैया कराया जाता है।

प्रश्न 5. खाद्य और संबंधित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में गैर-सरकारी संगठन की भूमिका पर एक टिप्पणी लिखें ।
उत्तर- भारत में गैर-सरकारी संगठन खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। खासकर देश के दक्षिणी तथा पश्चिमी भागों में ऐसे संगठनों का अधिक जोर है । उन भागों में खासतौर पर सहकारी समितियों का गठन किया गया है। उन्हीं समितियों के माध्यम से गरीबों को सस्ती दर पर अनाज मुहैया कराया जाता है। ये सहकारी समितियाँ ईमानदारीपूर्वक काम करने का दावा करती हैं। उनकी ईमानदारी पर विश्वास कर ही सरकार उनको सस्ती दर पर अनाज दे देती है । ये समितियाँ उन्हीं अनाजों का वितरण करती हैं । दिल्ली की मदर डेयरी दिल्ली के निवासियों को सस्ती दर पर दूध तथा सब्जियाँ उपलब्ध कराती है। पटना में यह काम सुधा डेयरी करती है । शहरों में सस्ती दरपर शुद्ध दूध प्राप्त करना एक कठिन समस्या है, लेकिन ये डेयरियाँ ऐसा करके देश की बड़ी सेवाकर रही हैं । ये डेयरियाँ श्वेत क्रांति लाती हैं। सरकार द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में ‘अनाज बैंकों’ की स्थापना की गई है। सरकार द्वारा गैर सरकारी संगठनों को खाद्य- सुरक्षा के लिए क्षमता बढ़ाने का प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करती है

(नोट : वास्तव में दूध के उत्पादन की बढ़ोत्तरी को ऑपरेशन फ्लड कहा गया था और श्वेत क्रांति अंडा के उत्पादन की बढ़ोत्तरी के लिए ।)

VI. टिप्पणी लिखें :

(i) न्यूनतम समर्थित कीमत, (ii) सब्सिडी (अनुदान), (iii) बी० पी० एल० कार्ड, (iv) बफर स्टॉक, (V) जन वितरण प्रणाली ।

(i) न्यूनतम समर्थित कीमंत — न्यूनतम समर्थित कीमत वह कीमत है, जिसे किसानों से अनाज खरीदने के लिए सरकार निर्धारित करती है । इसका लाभ यह होता है कि किसानों को अनाज उपजाने में जो खर्च होता है उससे अधिक कीमत मिल जाती है और वह भी एकसाथ। इसके पहले विचौलिए बनिए जो किसानों को कम मूल्य देकर उन्हें ठगते थे और उनका शोषण करते थे, उनसे किसानों को राहत मिल गई है। अब उन्हें अपने उत्पादों को उचित मूल्य मिल जाता है ।

(ii) सब्सिडी (अनुदान) — सब्सिडी या अनुदान वह रकम है, जिसे सरकार किसानों या कुटीर उद्योग चलानेवालों को देती है। ट्रैक्टर, सिंचाई के साधन तथा अन्य यंत्रों को खरीदने में कुछ अनुदान देती है । कुटीर उद्योग वालों को अपने उद्योग चलाने के लिए जाने वाले ऋणों पर 15 से 20 प्रतिशत यों ही अनुदान में दे देती है। बिहार में 1980 तक लघु उद्योग चलनेवालों के लगनेवाली पूँजी का 15 प्रतिशत अनुदान देती थी ।

(iii) बी० पी० एल० कार्ड – बी. पी. एल. कार्ड गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत करनेवालों को दिया जाता है। इस कार्ड के सहारे वे सस्ती दर पर गेहूँ, चावल, चीनी और किरासन तेल प्राप्त कर सकते हैं । इससे गरीबों को बहुत राहत मिल गई है। उन्हें तो अवश्य लाभ मिलता यदि बीच में अधिकारी और मुखिया आदि लोग टांग न अड़ावें । जहाँ के अधिकारी और मुखिया ईमानदार हैं वहाँ वे गरीब अधिक लाभान्वित होते हैं ।

(iv) बफर स्टॉक—सरकार F.C.I. के माध्यम से उनके गोदामों में कुछ अनाज सुरक्षित रखती है, जिसे बफर स्टॉक कहा जाता है। बफर स्टॉक से लाभ है कि बाढ़, सूखा, भूकंप, सुनामी जैसी आपदाओं के समय सरकार इसी स्टॉक के अनाज से आपदा ग्रस्त लोगों की सहायता करती है। कभी तो ये अनाज मुफ्त में और कभी अत्यंत कम मूल्य पर दिया जाता है ।

(v) जन वितरण प्रणाली- जन वितरण प्रणाली वह प्रणाली है, जिसके तहत सरकार अनाज, चीनी, किरासन तेल आदि अति आवश्यकता की वस्तुओं को लोगों को उपलब्ध कराती है। इसके लिए सरकार देश भर में दुकानदारों को नियुक्त करती है और उन्हें बेचने के एवज में कुछ कमीशन देती हैं। इससे गरीबों को कहीं दूर नहीं जाना पड़ता और उन्हें निकट में ही ये सामान मिल जाते हैं । सरकार द्वारा निर्धारति दर पर उन्हें सामान बेचने पड़ते हैं ।

परियोजना कार्य (Project Work ) :
1. आपके आस-पास किस तरह की फसलों की खेती होती है ?
2. पता करें कि किसी राहत शिविर में प्राकृतिक आपदा के पीड़ितों को किस तरह की मदद दी जाती है ?
3. कोसी नदी का जल स्तर बढ़ जाने के कारण बिहार के कौन-कौन से जिले अधिक प्रभावित हुए हैं ? चित्र द्वारा इसे प्रदर्शित करें ।
4. क्या आपने अकाल पीड़ितों को कभी (धन, खाद्य सामग्री, कपड़ों, दवाओं आदि के रूप में) सहायता की है ?
5. अपने पास-पड़ोस के राशन की दुकान का चित्र द्वारा दिखाएँ एवं वहाँ से प्राप्त होने वाली सामग्रियों की सूची बनाएँ ?
6. राशन की दुकानें क्यों जरूरी है ? राशन कार्ड से आपके परिवार ने हाल में कौन-सी वस्तु (मात्रा एवं मूल्य सहित) खरीदी है ? वर्णन करें ।

उत्तर- संकेत : परियोजना कार्य को छात्र स्वयं करें ।

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BSEB Bihar Board Class 9 Social Science Economics Solutions Chapter 4. बेकारी | Bekari Class 9th Solutions

Bihar Board Class 9 Economics बेकारी Text Book Questions and Answers

4. बेकारी

अभ्यास के प्रश्न तथा उनके उत्तर

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
निर्देश: सही उत्तर का संकेताक्षर (क, ख, ग, घ ) लिखें।

1. देश की प्रमुख आर्थिक समस्या है :
(क) उच्च शिक्षा
(ख) खाद्यान्न की प्रचुरता
(ग) क्षेत्रीय समानता
(घ) गरीबी तथा बेकारी

2. भारत के ग्रामीण क्षेत्र में पाई जाती है :
(क) शिक्षित बेकारी
(ख) औद्योगिक बेकारी
(ग) अदृश्य बेकारी
(घ) चक्रीय बेकारी

3. बेकारी वह स्थिति है जब :
(क) पूर्णतः इच्छा से काम नहीं करते
(ख) हम आलस्य से काम नहीं करते
(ग) हमें इच्छा एवं योग्यता होते हुए भी काम नहीं मिलता
(घ) हम अशिक्षित एवं अपंग होते हैं

4. बिहार में पाई जानेवाली बेरोगजारी है ?
(क) संघर्षणात्मक
(ख) चक्रीय
(ग) अदृष्य
(घ) इनमें से कोई नहीं

5. बिहार के ग्रामीण क्षेत्र में पाई जाती है :
(क) औद्योगिक बेकारी
(ख) चक्रीय बेकारी
(ग) अदृश्य एवं मौसमी बेकारी
(घ) इनमें से कोई नहीं

6. बिहार में अशिक्षितों की संख्या करीब निम्न में कितना प्रतिशत है ?
(क) 53 प्रतिशत
(ख) 40 प्रतिशत
(ग) 65 प्रतिशत
(घ) 47 प्रतिशत

उत्तर : 1. (घ), 2. (ग), 3. (ग), 4. (ग), 5. (ग), 6. (क) ।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :
1. बेकारी वह स्थिति है जब काम चाहनेवाले तथा योग्य व्यक्ति को रोजगार ………… नहीं होता ।
2. गरीबी तथा …………… भारत की प्रमुख समस्याएँ हैं ।
3. ऐच्छिक बेकारी उस स्थिति को कहते हैं जब कोई व्यक्ति प्रचलित मजदूरी पर काम ………….चाहता है।
4. छिपी हुई बेकारी की स्थिति में श्रमिक की सीमांत उत्पादकता नगण्य या …………… होती है ।
5. भारत में शिक्षित बेरोजगारी का एक प्रमुख कारण दोपपूर्ण …………… है ।
6. बिहार में छुपी हुई एवं ………………… बेकारी पाई जाती है।-
7. बिहार में बेरोजगारी का एक कारण …………….. शिक्षा का अभाव है ।

उत्तर—1. उपलब्ध, 2. बेरोजगारी और बेकारी, 3. करना नहीं, 4. अल्प; कम या नहीं, 5. शिक्षा व्यवस्था, 6. सामयिक या मौसमी, 7. तकनीकी या पेशेवर ।

III. सही कथन को टिक (/) तथा गलत कथन को क्रॉस (x) करें ।
1. भारत में बेकारी गंभीर रूप धारण कर रही है (सही)
2. बेकारी वह स्थिति है जब व्यक्ति को इच्छा एवं योग्यता रहते हुए भी रोजगार प्राप्त नहीं होता । (सही)
3. भारत में शिक्षित लोगों में बेकारी नहीं हैं । (गलत)
     (सही यह है कि भारत में शिक्षितों में भी बेकारी है ।)
4. भारत में रोजगार में लगे व्यक्ति भी न्यून रोजगार के शिकार हैं। (सही)
5. भारत में पिछले वर्षों में रोजगार का अस्थायीकरण हुआ है । (सही)
6. भारत के ग्रामीण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अदृश्य बेकारी वर्तमान है। (सही)
7. भारत में शिक्षित लोगों में बढ़ती हुई बेकारी चिंता का विषय नहीं है । (गलत)
     (सही. यह है कि यह चिंता का विषय है ।)
8. बेकारी दूर करने की दिशा में पंचवर्षीय योजना आंशिक रूप से सफल हुई है। (सही)
9. बिहार में लोग छुपी हुई बेकारी एवं न्यूनरोजगार के शिकार है। (सही)
10 बिहार के ग्रामीण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अदृश्य बेकारी वर्तमान है। (सही)
11. बिहार में बेकारी की समस्या लगातार घट रही है । (गलत)
      (सही यह है कि बिहार में बेकारी की समस्या लगातार बढ़ रही है ।)
12. पेशेवर शिक्षा, स्वरोजगार एवं कृषि आधारित उद्योगों के विकास द्वारा बेकारी दूर करने में मदद मिलेगी । (सही)

IV. लघु उत्तरीय प्रश्न :

(उत्तर 20 शब्दों में दें)

प्रश्न 1. आप बेरोजगारी से क्या समझते हैं ?
उत्तर— शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ रहने और काम करने की इच्छा के बावजूद प्रचलित मजदूरी पर काम का नहीं मिलना बेरोजगारी है ।

प्रश्न 2. छिपी हुई बेकारी से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर—जो काम 10 व्यक्तियों से ही पूरा हो सकता है और उस काम में 15 आदमी लगे हों तो समझिए कि यहाँ छिपी हुई बेकारी है ।

प्रश्न 3. न्यून रोजगार की समस्या का वर्णन करें ।
उत्तर— न्यून रोजगार की समस्या के कारण हैं कि देश में नए-नए रोजगारों का सृजन नहीं हो रहा है। न ही गाँवों में और न शहरों में । इसका निदान शीघ्र संभव नहीं, बिहार में तो और भी नहीं ।

प्रश्न 4. भारत में रोजगार प्राप्ति की समस्या का वर्णन करें ।
उत्तर—भारत में रोजगार प्राप्ति की समस्या इस कारण है कि यहाँ तकनीकी शिक्षा तथा प्रशिक्षण का अभाव है । यदि युवकों को किसी तकनीकी काम में प्रशिक्षित कर दिया जाय तो देश में इसकी समस्या रहेगी या नहीं । अजय और विजय इसमें उदाहरण हैं ।

प्रश्न 5. शिक्षित लोगों में बढ़ती हुई बेकारी का मुख्य कारण क्या है ?
उत्तर—शिक्षित लोगों में बढ़ती हुई बेकारी का मुख्य कारण यह है कि शिक्षा सुविधाओं का अभाव, दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति । इसी कारण आज मैट्रिक, स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्रीधारी अनेक युवक-युवतियाँ रोजगार पाने में असमर्थ हैं ।

प्रश्न 6. शिक्षा को पेशेवर बनाने से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर— शिक्षा को पेशेवर बनाने से मतलब है कि शिक्षा के माध्यम से कोई ऐसी तकनीक सिखाई जाय कि शिक्षा प्राप्त करते ही व्यक्ति किसी-न-किसी पेशे से जुड़ जाय । डॉक्टर, वकली, अध्यापक बनना और उसकी पढ़ाई करना पेशेवर शिक्षा ही है ।

प्रश्न 7. बेरोजगारी के चार कारणों का वर्णन करें ।
उत्तर- बेराजेगजारी के चार कारण निम्नलिखित हैं :
(i) अत्यधिक जनसंख्या, (ii) अशिक्षा, (iii) कृषि का पिछड़ापन तथा (iv) पूँजी का अभाव ।

प्रश्न 8. बिहार में ग्रामीण बेकारी के समाधान के लिए कुछ उपाय बताएँ ।
उत्तर—बिहार में ग्रामीण बेकारी के समाधान के लिए सरकार अनेक उपाय कर रही है। ग्रामीण युवा स्वरोजगार प्रशिक्षण योजना, ग्रामीण महिला एवं बाल विकास योजना, जवाहर समृद्धि योजना जैसी अनेक योजनाएँ चलाई जा रही हैं, ताकि ग्रामीण बेकारी का समाधान हो सके ।

V. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :

( उत्तर 100 शब्दों में दें)

प्रश्न 1. बेकारी की परिभाषा दें । भारत में बेकारी के प्रमुख कारण क्या हैं ? समाधान के सुझाव दें ।
उत्तर—योग्यता और काम करने की इच्छा रहते हुए यदि व्यक्ति को प्रचलित मजदूरी पर काम न मिले तो उसी स्थिति को बेकारी कहा जाता है ।
भारत में बेकारी के प्रमुख कारणों में निम्नलिखित बहुत ही प्रमुख हैं :

(i) जनसंख्या में वृद्धि — जनसंख्या की वृद्धि से उतने को काम का प्रबंध करना सरकार के लिए कठिन हो रहा है । .

(ii) अशिक्षा — अशिक्षा भी बेकारी को बढ़ावा देने में एक कारण बन रही है । शिक्षित व्यक्ति कोई भी काम ढंग से कर सकता है, जिसके आय अर्जित हो ।

(iii) कृषि का पिछड़ापन – कृषि का पिछड़ापन भी बेकारी का एक कारण है। यदि कृषि में सुधार हो तो उसमें बहुत आदमी को काम मिल सकता है ।

(iv) उद्योगों का अभाव—आज भी भारत में उद्योगों का अभाव है । यदि उद्योग हैं भी तो खास-खास क्षेत्र में सिमटे हुए हैं ।

(v) सरकारी नीति की कमजोरी — सरकार की नीति है कि लघु उद्योगों में भी 9 या 10 व्यक्ति से अधिक रखने में मालिक को अनेक कानून की पेचिदगियों को झेलना पड़ता है। फलतः वे आवश्यकता रहने के बावजूद कम आमदनी से काम चला लेते हैं। उन्हें कम उत्पादन मंजूर है, लेकिन कानूनी पेचिदिगियों में फँसना मँजूर नहीं ।

समाधान के उपाय — समाधान के उपाय में महत्वपूर्ण है कि पहले हम जनसंख्या की वृद्धि पर रोक लगावें । देश में शिक्षा का विकास हो, खासकर तकनीकी शिक्षा का । कृषि को उन्नत बनाने का उपाय हो । उद्योगों, खासकर लघु उद्योगों तथा कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया जाय । लघु उद्योगों में कर्मचारी रखने की सीमा बढ़ाई जाय, इस शर्त के साथ कि मालिकों को तंग नहीं किया जाएगा ।

प्रश्न 2. भारत में बेकारी की समस्या पर एक लेख लिखें । बेकारी की समस्या को कैसे दूर किया जा सकता है ?
उत्तर—भारत में बेकारी की समस्या सुरसा के मुँह की तरह विकराल रूप लेती जा रही है। वर्ष दो वर्ष के अन्दर जितने रोजगार का सृजन होता है, उतने से दूनी जनसंख्या उस वर्ष देखी जाती है । जैसा कि हमें माल्थस ने बताया था कि रोजगार का सृजन अंकगणितीय माध्यान से होता है लेकिन जनसंख्या की वृद्धि ज्यामितीय माध्यम से होती है, फलतः 25 वर्षों में किसी देश में यदि रोजगार का सृजन 1/2 होता है तो जनंसख्या में वृद्धि दूनी हो जाती है। इसका फल होता है कि देश बेकारी के चंगुल से निकल नहीं पाता। छोटे-छोटे शहरों में लघु उद्योगें की कमी है। यदि वहाँ लघु उद्योग हैं भी तो सरकारी नीति ऐसी है कि एक खास सीमा से कर्मचारी बढ़ाने पर उसे अनेक कानूनी फंदों में फँसना पड़ता है । यदि 9-10 कर्मचारी के स्थान पर 20-25 कर्मचारी रखने की छूट दे दी जाय तो बहुत लोग उसमें खप जाएँगे । लेकिन सरकार को निर्देश देना पड़ेगा कि श्रम विभाव के लोग मालिक को तंग नहीं करें। इससे बहुत हद तक बेकारी की समस्या दूर जो जाएगी। गाँवों में कुटीर उद्योग को बढ़ावा दिया जाय। उन्हें कम ब्याज पर बिना घुस के ऋण मिल जाय। उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं को सरकार खरीद ले और उन्हें बड़े शहरों में बेंचे ।

प्रश्न 3. भारत में पाई जानेवाली विभिन्न प्रकार की बेकारी का विवरण दें। इसके समाधान के लिए आप क्या सुझाव देंगे ।
उत्तर – भारत में मुख्यतः दो प्रकार की बेकारी पाई जाती है :
(i) ग्रामीण बेकारी तथा (ii) शहरी बेकारी ।
इन दोनों में भी कुछ प्रकार निम्नलिखित हैं :
ग्रामीण बेकारी :

(i) मौसमी बेकारी –मौसमी बेकारी का अर्थ है कि मौसमानुकूल काम मिलता है और शेष समय बैठना पड़ जाता है ।

(ii) छिपी हुई बेकारी- छिपी हुई बेकारी का तात्पर्य है कि बाहर से देखने में ऐसा लगता है कि व्यक्ति को काम मिला है लेकिन वह मजबूरी में कर रहा है। कारण किं वह काम उसकी योग्यता के अनुकूल नहीं है ।

(iii) प्रच्छन्न बेकारी – प्रच्छन्न बेकारी से तात्पर्य है कि जिस काम को 10 आदमी ही निबटा सकते हैं उसमें 15 आदमी लगे हैं। वहाँ 5 आदमी प्रच्छन्न बेकारी से रहे होते हैं 1

शहरी बेकारी :

(i) शिक्षित बेकारी – शिक्षित युवक डिग्रियाँ धामे दरवाजे दरवाजे भटक रहते हैं काम नहीं मिलता । यह शिक्षित बेकारी है ।

(ii) औद्योगिक बेकारी – औद्योगिक बेकारी इसलिए है क्योंकि लघु उद्योगों में एक सीमा से अधिक कर्मचारी रखने पर बंदिश है। यदि कोई मालिक ऐसा करता है तो उसे अनेक कानूनी पचड़ों में फँसना पड़ता है ।

(iii) तकनीकि बेकारी –– तकनीकि बेकारी का कारण है कि यहाँ तकनीकि शिक्षा का घोर अभाव है ।

बेकारी के समाधान के उपाय – ग्रामीण बेकारी का समाधान वहाँ कुटीर उद्योगों के विकास से संभव है। युवकों को कुछ ऐसे प्रशिक्षित किया जाय कि वे अपना रोजगार चला सकें। गाँवों में विकास के काम कराएँ जायँ जिससे बेकारी रुके । शहरों में लघु उद्योगों को अधिक कर्मचारी रखने की छूट दी जाय। इससे शिक्षित और औद्योगिक दोनों बेकारी दूर होगी। तकनीकि प्रशिक्षण केन्द्र खोले जाएँ ।

प्रश्न 4. ‘ समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रमके विशेष संदर्भ में विभिन्न रोजगार सृजन कार्यक्रमों का परीक्षण करें । इसके क्रियान्वयन में बताएँ ।
उत्तर- ‘समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम’ के विशेष संदर्भ में विभिन्न रोजगार सृजन कार्यक्रमों का परीक्षण करते हुए हम पाते हैं कि इसके तहत अनेक कार्यक्रम अपनाए गए हैं। इसके तहत ‘न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम’, ‘क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम’, ‘काम के बदले अनाज कार्यक्रम’ के अलावा समन्वित कार्यक्रम, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, ग्रामीण भूमिहीन रोजगार कार्यक्रम, जवाहर रोजगार योजना, प्रशिक्षण योजना आदि अनेक योजनाएँ हैं ।

उपर्युक्त सभी कार्यक्रमों का सार है राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (National Rural Employment Guarantee Yojana = NAREGA) चालू की गई है । यह योजना

2 फरवरी, 2006 को प्रधानमंत्री द्वारा भारत के 27 राज्यों में 2000 जिलों के 80,000 ग्राम पंचायतों में लागू किया गया। बिहार के 23 जिलों में यह योजना चालू है | अब इसका नाम बदलकर ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना’ कर दिया गया है। इसकी मुख्य बातें निम्नलिखित हैं :

(i) प्रत्येक परिवार को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों का रोजगार दिया जाएगा । (ii) न्यूनतम मजदूरी 60 रुपया प्रति व्यक्ति देय होगा । (iii) 15 दिनों तक रोजगार नहीं दिया गया तो बेरोजगारी भत्ता मिलेगा। (iv) रोजगार में 33 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी होगी । (v) काम के दौरान श्रमिक की आकस्मिक मृत्यु होने पर 25,000 रुपये क्षतिपूर्ति के रूप में परिवार को मिलेगा ।

प्रश्न 5. भारत में शिक्षित बेरोजगारी के कारणों का वर्णन करें । इस समस्या का निराकरण कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर – भारत में शिक्षित बेरोजगारी के अनेक कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है सरकारी उदासीनता । सरकार के अनेक विभाग में कर्मचारियों की भारी कमी है। आधी कुर्सियाँ खाली दिखती हैं । यही हालत प्राथमिक से लेकल उच्च विद्यालयों तक में शिक्षकों का अभाव है। सभी विषय पढ़ानेवाले शिक्षकों का अभाव । किसी वर्ग में सेक्शन तो 4 हैं लेकिन शिक्षक एक भी नहीं । बहाली की प्रक्रिया जटील है या सरकार उदासीन है । इस कारण विद्यालयों में शिक्षकों का अभाव है । वर्ग 3 से ही अंग्रेजी की पढ़ाई होती है, लेकिन सभी स्कूलों में अंग्रेजी पढ़ानेवाले शिक्षक नदारद हैं। एक ही शिक्षक को कई- कई विषय पढ़ाने पड़ते हैं । सरकारी कार्यालयों का हाल यह है जो कर्मचारी कार्यमुक्त होते हैं, उनके स्थान पर नई बहाली नहीं होती ।

इस समस्या के निराकरण के लिए सरकार को अपने में इच्छा शक्ति लानी होगी । निश्चय करना होगा कि जितने स्थान जहाँ भी रिक्त हैं, वहाँ के लिए बहाली कर दी जाय ।

प्रश्न 6. आप अदृश्य बेकारी से क्या समझते हैं ? समाधान के लिए उपाय बताएँ ।
उत्तर—अदृश्य बेकारी से मतलब है कि जहाँ कम कामगारों से ही काम पूरा हो जाना है, उसमें उससे अधिक कामगार लोग हैं। इसी को अदृश्य बेकारी कहते हैं ।

अदृश्य बेकारी के समाधान के उपाय – आदृश्य बेकारी के समाधान के लिए सरकारी और गैर-सरकारी दोनों तरह से उपाय किए जा रहे हैं। समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम, ग्रामीण भूमिहीन रोजगार कार्यक्रम, जवाहर रोजगार योजना आदि सरकारी उपाय हैं, जिससे बेकारों की संख्या को कम किया जा सके। सरकार ने एक और कारगर उपाय आरंभ किया है वह है राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (National Rural Employment | Guarantee Yojna = NAREGA), जिसे 2 फरवरी, 2006 से लागू किया गया है।

गैर सरकारी उपाय के अंतर्गत कुटीर उद्योग को बढ़ाने के उपाय हो रहा है। स्वरोजगार को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।

प्रश्न 7. बिहार में ग्रामीण बेरोजगारी की समस्या के प्रमुख कारण क्या हैं? आप इस कैसे दूर करेंगें?
उत्तर – बिहार में ग्रामीण बेरोजगारी के वे सभी कारण हैं, जो भारत के लिए हैं। यहाँ अधिक बेरोजगारी का कारण बिहार का बँटवारा भी है। बँटवारा के कारण सारे खनिज संसाधन तथा उद्योग सब झारखंड में चले गए और बिहार के हिस्से में रह गई कृषि। कृषि की भी हालत यह है कि उत्तर बिहार जहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ से तबाही में पड़ जाता है, वहीं दक्षिण बिहार सूखे से प्रभावित रहता है। गर्मी में नदियाँ सूख जाती हैं सिंचाई को कौन कहे, पीने के पानी के भी लाले पड़ जाते हैं । अभी-अभी तो कोसी ने कहर मचाया था उससे हजारों-हजार एकड़ भूमि पर बालू फैल गया। इससे वे ऐसे बन गए हैं कि कुछ भी उपजाना कठिन हो गया है। इस कारण बिहार में ग्रामीण बेरोजगारी बढ़ती जा रही है।

इसे रोकने के उपायों में पहली बात है कि नदियों पर बाँध बनाकर बाढ़ को रोका जाय । बाँध के पीछे जलाशय बनाकर बिजली पैदा की जा सकती है। दक्षिण बिहार में सूखे का सामना के लिए बरसाती पानी को रोक रखने का उपाय करना होगा । इसके लिए बड़े-बड़े तालाब खुदवाना पड़ेगा। पहाड़ी क्षेत्रों की घाटियों को घेरकर पानी एकत्र किया जा सकता है |

परियोजना कार्य (Project Work) :
1. आपके क्षेत्र में सबसे अधिक बेरोजगारी किस प्रकार की पायी जाती है उसके कारण को बताते हुए एक प्रोजेक्ट तैयार करें
2. आपके आस-पास के किसी एक परिवार में पायी जाने वाली बेकारी पर लेख तैयार करें ।
3. चित्रांकन के द्वारा प्रत्येक प्रकार के बेकारी को दर्शाएँ और इसे दूर करने के उपाय पर निबंध लिखें |
4. ग्रामीण महिलाओं के स्वरोजगार हेतु क्षेत्र में चलाए जा रहे सरकारी कार्यक्रम का विवरण तैयार करें तथा किसी एक महिला जो स्वरोजगार से जुड़ी हो उसका साक्षात्कार विवरण तैयार करें ।

उत्तर- संकेत : परियोजना कार्य को छात्र स्वयं करें ।

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BSEB Bihar Board Class 9 Social Science Economics Solutions Chapter 3. गरीबी | Garibi Class 9th Solutions

Bihar Board Class 9 Economics गरीबी Text Book Questions and Answers

3. गरीबी

अभ्यास के प्रश्न तथा उनके उत्तर

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
निर्देश : सही उत्तर का संकेताक्षर (क, ख, ग, घं) लिखें ।

1. बिहार में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करनेवाली ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से :
(क) कम है
(ख) बराबर है
(ग) अधिक है
(घ) इनमें से कोई नही

2. बिहार में 1999-2000 में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत था :
(क) 42.6
(ख) 44.3
(ग) 54.3
(घ) इनमें से कोई नहीं

3. भारत की प्रमुख आर्थिक समस्या नहीं है :
(क) आर्थिक विषमता
(ख) औद्योगिक विकास
(ग) गरीबी
(घ) औद्योगिक पिछड़ापन

4. गरीबी में बिहार राज्य का भारत के राज्यों में कौन-सा स्थान है ?
(क) पहला
(ख) दूसरा
(ग) तीसरा
(घ) चौथा

5. 2001 की जनगणना के अनुसार भारत के इन राज्यों में सबसे अधिक गरीबी कहाँ है ?
(क) उड़ीसा
(ख) झारखंड
(ग) प. बंगाल
(घ) उत्तर प्रदेश

6. गरीबी रेखा के नीचे रहना :
(क) अमीरी का द्योतक है
(ख) गरीबी का सूचक है
(ग) खुशहाली का सूचक है
(घ) इनमें से किसी का भी सूचक नहीं है

7. शहरी क्षेत्र के व्यक्तियों को प्रतिदिन कितनी कैलोरी भोजन की आवश्यकता पड़ती है ?
(क) 2400 कैलोरी
(ख) 2100 कैलोरी
(ग) 2300 कैलोरी
(घ) 2200 कैलोरी

8. निम्न में से कौन प्राकृतिक आपदा के अन्तर्गत आते हैं
(क) कृषि
(ख) उद्योग
(ग) बाढ़
(घ) इनमें से कोई नहीं

9. MPCE के द्वारा गरीबी रेखा का निर्धारण ग्रामीण क्षेत्रों में कितना रुपया प्रतिमाह किया गया :
(क) 328 रुपया
(ख) 524 रुपया
(ग) 454 रुपया
(घ) 354 रुपया

10. SGSY योजना की शुरुआत कब की गयी ?
(क) 2000 ई.
(ख) 1999 ई.
(ग) 2001 ई.
(घ) 1998 ई.

उत्तर- 1. (ग), 2. (क), 3. (ख), 4. (ख), 5. (क), 6. (ख), 7. (ख), 8. (ग), 9. ( क ), 10. (ख)।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
(i) बिहार आर्थिक दृष्टि से एक …………. राज्य है ।
(ii) योजना काल में गरीबी की रेखा से नीचे लोगों की प्रतिशत में ……… हुई है।
(iii) भारत में शहरी गरीबों की तुलना में ग्रामीण गरीबों की संख्या ……….. है।
(iv) जो लोग गरीबी रेखा के ऊपर रहते हैं उन्हें ………. कहा जाता है।
(v) जब निम्नतम जीवनयापन प्राप्त करने की असमर्थता हो तो उसे …………कहते हैं।
(vi) MPCE के द्वारा गरीबी रेखा का निर्धारण शहरी क्षेत्रों में ……….. रु. प्रतिमाह किया गया ।
(vii) 2007 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार भारत के ग्रामीण क्षेत्र में …………. करोड़ जनसंख्या गरीब है।

उत्तर— (i) पिछड़ा, (ii) कमी, (iii) अधिक, (iv) अमीर, (v) गरीबी, (vi) 454 रुपया, (vii) 17.

III. सही कथन में टिक (/) तथा गलत कथन में क्रास (x) करें ।
(i) राज्य में आधारभूत संरचना की कमी गरीबी का एक प्रमुख कारण है । (सही)
(ii) ग्रामीण गरीबी निवारण के लिए कृषि आधारित उद्योगों के विकास की आवश्यकता है । (सही)
(iii) जनसंख्या में वृद्धि देश की एक प्रमुख आर्थिक समस्या नहीं है। (x)
      (सही यह है कि जनसंख्या में वृद्धि देश की एक प्रमुख आर्थिक समस्या है ।)
(iv) केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा गरीबी रेखा की परिभाषा दी गयी । (सही)
(v) शहरी क्षेत्र के व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्र के व्यक्तियों की अपेक्षा कम काम करते हैं । (x)
      (सही यह है कि शहरी क्षेत्र के व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्र के व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक काम करते हैं ।)
(vi) ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिए प्रतिदिन 2400 कैलोरी भोजन की आवश्यकता है। (सही)

IV. निम्न संक्षिप्त शब्दों को पूर्ण रूपेण लिखें :

(क) ‘NSO
(ख) MPCE
(ग) SHG
(घ) SGSY
(ङ) JRY
(च) IRDP
(छ) MDMS
(ज) NREP
(झ) PMRY
(ञ) PMGY

उत्तर :
(क) NSO                – National Sample Organisation
(ख) MPCE            – Monthly Percapita Consuption Index
(ग) SHG               – Self Help Group
(घ) SGSY             – Swarnjayanti Gram Swarojgan Yojna
(ङ) JRY              – Jawahar Rojgar Yojna
(च) IRDP           – Integrated Rural Development Programme
(छ) MDMS       – Mid Day Meal Scheme
(ज) NREP         – National Rural Employment Programme
(झ) PRMY       – Prime Minister’s Rojagara Yojna
(ञ) PMGY        – Prime Minister’s Gramoday Yojna

V. लघु उत्तरीय प्रश्न :

( उत्तर 20 शब्दों में दें)

प्रश्न 1. योजना आयोग ने किस आधार पर गरीबी को परिभाषा दी है ?
उत्तर – योजना आयोग ने मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग अध्ययन के आधार पर गरीबी की परिभाषा दी है ।

प्रश्न 2. गरीबी के दो विशिष्ट मामले की विवेचना करें ।
उत्तर- गरीबी के दो विशिष्ट मामलों में पहला मामला है कि गरीब व्यक्ति भूखमरी से जूझता रहता है तथा दूसरा मामला है कि वह आश्रयहीनता का भी शिकार बनता है ।

प्रश्न 3. गरीबी रेखा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- गरीबी रेखा से तात्पर्य उस सीमा से है जिसके नीचे कोई व्यक्ति जीवन- निर्वाह करता है ।

प्रश्न 4. क्या आप समझते हैं कि गरीबी के आकलन का वर्तमान तरीका सही है ?
उत्तर—हाँ, मैं समझता हूँ कि गरीबी के आकलन का वर्तमान तरीका सही है ।

प्रश्न 5. किन-किन बातों से सिद्ध होता है कि भारतीय गरीब हैं ?
उत्तर— आय और उपभोग के स्तर के अध्ययन से सिद्ध होता है कि भारतीय गरीब हैं । चूँकि आय कम है अतः उपभोग की आवश्यक वस्तुएँ भी वे नहीं जुटा पाते ।

प्रश्न 6. गरीबी के कारणों में जनसंख्या वृद्धि की क्या भूमिका है?
उत्तर—गरीबी के कारणों में जनसंख्या वृद्धि एक प्रमुख भूमिका निभाती है । अधिक बच्चों के होने से अभिभावक न तो उनको उचित भोजन दे पाते हैं और न अच्छी शिक्षा । आय से अधिक व्यय से व्यक्ति गरीब से गरीबतर होते जाता है ।

प्रश्न 7. भारत में गरीबी के किन्हीं चार प्रमुख कारण बताएँ ।
उत्तर—भारत में गरीबी के प्रमुख चार कारण निम्नलिखित हो सकते है
(i) बेरोजगारी, (ii) आय की कमी, (iii) जनसंख्या में वृद्धि तथा (iv) कृषि का पिछड़ापन ।

प्रश्न 8. गरीबी निवारण के लिए किए गए सरकारी प्रयासों की संक्षिप्त चर्चा करें ।
उत्तर – गरीबी निवारण के लिए किए गए सरकारी प्रयास निम्नलिखित हैं : (i) प्राकृतिक साधनों का समुचित उपयोग, (ii) जनसंख्या पर नियंत्रण के उपाय, (iii) कृषि उत्पादन बढ़ाने के उपाय, (iv) पूँजी की व्यवस्था ।

प्रश्न 9. भारत में गरीबी- निदान के लिए गैर-सरकारी प्रयासों को बताएँ ।
उत्तर—भारत में गरीबी- निदान के लिए गैर-सरकारी प्रयास निम्नांकित हैं : (i) स्वरोजगार योजना का बढ़ावा देना, (ii) सामूहित खेती को बढ़ावा देना, (iii) सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा (iv) स्वयं सहायता समूह ।

प्रश्न 10. बिहार में ग्रामीण गरीबी को क्या स्थिति है ?
उत्तर—बिहार में ग्रामीण गरीबी की स्थिति यह है कि यह पूरे भारत में दूसरा जहाँ गरीबी सर्वाधिक है । पहला स्थान उड़ीसा का है। उड़ीसा के मुकाबले बिहार में गरीबी थोड़ी ही कम है । उड़ीसा का 47.2% है और बिहार का 42.6% है ।

प्रश्न 11. बिहार में ग्रामीण गरीबी के चार प्रमुख कारणों को बताएँ ।
उत्तर—बिहार में ग्रामीण गरीबी के चार प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं :
(i) ग्रामीण खेतीहर मजदूरों की अधिकता, (ii) सालों भर काम की व्यवस्था नहीं, (iii) असंगठित मजदूरों की अधिकता तथा (iv) बच्चों की अधिक संख्या ।

प्रश्न 12. बिहार में ग्रामीण गरीबो के निदान के किन्हीं पाँच उपायों को बताएँ ।
उत्तर—गरीबी के निदान के पाँच उपाय निम्नलिखित हैं :
(i) जनसंख्या की वृद्धि पर नियंत्रण रखा जाय, (ii) कृषि उत्पादन को बढ़ाया जाय, (iii) आय का समान वितरण हो, (iv) रोजगार के अवसर बढ़ाए जाएँ तथा (v) कुटीर उद्योगों को बढ़ावा मिले ।

VI. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :

( उत्तर 100 शब्दों में दें)

प्रश्न 1. भारत में गरीबी रेखा को किस प्रकार परिभाषित किया गया है ? इस परिभाषा के आधार पर भारत में गरीबी के विस्तार का क्या अनुमान लगाया जाता है ?
उत्तर—भारत में गरीबी रेखा को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में 328 रु. प्रतिमाह तथा शहरी क्षेत्रों में 454 रु. प्रतिमाह आय वाले परिवार गरीबी रेखा के नीचे माना जाता है ।

भारत में गरीबी के विस्तार का अनुमान — अनुमान लगाया गया है कि हाल के वर्षों में गरीबी में विस्तार न होकर गरीबों की संख्या में कमी आई है। वर्ष 1973-74 में ग्रामीण क्षेत्र में गरीबों की संख्या जहाँ 26.10 करोड़ थी वहीं क्रमशः घटते-घटते 2004- 05 में 17 करोड़ हो गई। शहरों में इसका अनुमान प्रतिशत ही लगाया गया है । 1973- 74 में शहरों में गरीबों की संख्या जहाँ 56.4 प्रतिशत थी, वहीं घटकर 2004-05 में 21.8 प्रतिशत रह गई । इस प्रकार हम देखते हैं कि सरकारी और गैर-सरकारी प्रयासों के परिणामस्वरूप गरीबों की संख्या में लगातार कमी होती जा रही है, जो देश के भविष्य के लिए शुभ लक्षण है । कारण कि भारत में गरीबी का अनुपात 1973 में लगभग 55. प्रतिशत थी, जो 1993 में घटकर 36 प्रतिशत तथा 2004 में लगभग 22 प्रतिशत पर आ गई । इस प्रकार अनुमान है कि भारत में गरीबी के विस्तार में लगातार कमी आती जा रही है ।

प्रश्न 2. भारत में गरीबी के कारणों की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर—भारत में गरीबी के अनेक कारण हैं, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं

(i) जनसंख्या में वृद्धि – जनसंख्या में वृद्धि भारत में गरीबी का मुख्य कारण है । स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की आबादी जहाँ 33 करोड़ थी वहीं 2001 में बढ़कर 102 करोड़ से भी अधिक हो गई, अर्थात तिगुना से भी अधिक ।

(ii) कृषि का पिछड़ापन – भारत एक कृषि प्रधान देश है किन्तु कहा जाता है कि इसमें यह आज भी पिछड़ा हुआ है । यद्यपि कृषि योग्य भूमि का विस्तार हुआ है

प्रश्न 3. बिहार में ग्रामीण गरीबी के मुख्य कारण कौन-कौन से हैं? इस समस्या के समाधान के उपाय बताएँ ।
उत्तर-संकेत : पृष्ठ 19-20 पर प्रश्नोत्तर 2 और 3 देखें । कारण और उपायज. जो भारत के लिए हैं, वही बिहार के लिए भी है।

परियोजना कार्य (Project Work) :

  1. एक गरीब परिवार की कहानी लिखें ।
  2. विभिन्न प्रकार के गरीबी को चित्र द्वारा दिखाएँ ।
  3. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम का अपने गाँव में मूल्यांकन करें ।
  4. ग्रामीण महिला के बीच गरीबी के प्रमुख कारणों को नुक्कड़ नाटक के द्वारा विद्यालय में प्रदर्शित करें
  5. अकाल एवं बाढ़ से उत्पन्न गरीबी के समय आपके गाँव में लोग कैसे जीविकोर्पाजन करते हैं । उसका वर्णन करें ।
  6. वर्ग स्तर पर गरीबी से संबंधित एक लेख प्रस्तुत करें ।
  7. आकाशवाणी एवं दूरदर्शन द्वारा प्रसारित होने वाली गरीबी पर एक कहानी को लिखें ।

उत्तर- संकेत : परियोजना कार्य को छात्र स्वयं करें ।

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BSEB Bihar Board Class 9 Social Science Economics Solutions Chapter 2. मानव एक संसाधन

Bihar Board Class 9 Economics मानव एक संसाधन Text Book Questions and Answers

2. मानव एक संसाधन

अभ्यास के प्रश्न तथा उनके उत्तर

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
निर्देश : सही उत्तर का संकेताक्षर (क, ख, ग, घ) लिखें ।

1. मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएँ हैं
(क) भोजन और वस्त्र
(ख) मकान
(ग) शिक्षा
(घ) इनमें सभी

2. निम्न में से कौन मानवीय पूँजी नहीं है ?
(क) स्वास्थ्य
(ख) प्रशिक्षण
(ग) अकुशलता
(घ) प्रबंधन

3. प्रो. अर्मत्य सेन ने प्राथमिक शिक्षा को मानव के लिए क्या बनाने पर जोर दिया ?
(क) मूल अधिकार
(ख) मूलं कर्त्तव्य
(ग) नीति-निर्देशक तत्व
(घ) अनावश्यक

4. जनगणना 2001 के अनुसार भारत की साक्षरता दर है :
(क) 75:9 प्रतिशत
(ख) 65.4 प्रतिशत
(ग) 54.2 प्रतिशत
(घ) 64.5 प्रतिशत

5. जनगणना 2001 के अनुसार मानव की औसत आयु निम्न में से क्या है ?
(क) 65.4 वर्ष
(ख) 60.3 वर्ष
(ग) 63.8 वर्ष
(घ) 55.9 वर्ष

6. बिहार राज्य के किस जिले की जनसंख्या सबसे अधिक है ?
(क) पटना
(ख) पूर्वी चम्पारण
(ग) मुजफ्फरपुर
(घ) मधुबनी

उत्तर—1: (घ), 2. (ग), 3. (क), 4. (ख), 5. (ग), 6. (क) ।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :
1. मानव पूँजी निर्माण से घरेलू उत्पाद (GDP) में …………. होती हैं।
2. ………….. संसाधन उत्पादन का सक्रिया साधन है ।
3. मानवीय साधन के विकास के लिए ………………. अनिवार्य हैं।
4. 2001 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या ………… करोड़ है ।
5. 2001 की जनगणना के अनुसार सबसे कम साक्षरता वाला राज्य ……………. है ।
6. बिहार में 2001 के जनगणना के अनुसार साक्षरता दर ……………. है।

उत्तर—1. वृद्धि, 2. मानव, 3. शिक्षा और प्रशिक्षण, 4. 102.70, 5. बिहार, 6. 47.53 प्रतिशत ।

III. एक वाक्य में उत्तर दें :

प्रश्न 1. मानव संसाधन क्या है ?
उत्तर—मानव संसाधन उत्पादन का मूल सूत्रधार और मानवीय पूँजी है ।

प्रश्न 2. मानव संसाधन में हमें निवेश की आवश्यकता क्यों पड़ती है ?
उत्तर—मानव संसाधन में हमें निवेश की आवश्यकता इसलिए पड़ती है कि देश कौशल और योग्यता से पूर्ण जो जाय ।

प्रश्न 3. साक्षरता और शिक्षा में क्या अंतर है ?
उत्तर – साक्षर व्यक्ति केवल कुछ पढ़ और लिख सकता है जबकि शिक्षा प्राप्त व्यक्ति कुशल और योग्य के साथ ज्ञानी भी होता हैं ।

प्रश्न 4. भौतिक और मानव पूँजी में दो अंतर बतावें ।
उत्तर : (i) भौतिक पूँजी उत्पादन का निष्क्रिय साधन है जबकि मानवीय पूँजी उत्पादन का सक्रिया साधन है ।
(ii) भौतिक पूँजी को उसके स्वामी से अगल किया जा सकता है लेकिन मानवीय पूँजी उस मानव से अलग नहीं की जा सकती ।

प्रश्न 5. विश्व जनसंख्या की दृष्टि से भारत का क्या स्थान है ?
उत्तर – विश्व जनसंख्या की दृष्टि से भारत का दूसरा स्थान है ।

प्रश्न 6. जन्म दर क्या है ?
उत्तर—देश में बच्चों के जन्म की औसत दर को, जो वार्षिक भी हो सकती है या दसवर्षीय भी, ‘जन्मदर’ है ।

प्रश्न 7. मृत्यु दर क्या है ?
उत्तर – देश में मृत्यु की औसत दर को, जो वार्षिक भी हो सकती है या दसवर्षीय भी, ‘मृत्यु-दर’ कहते हैं ।

प्रश्न 8. एक साक्षर व्यक्ति कौन है ?
उत्तर – एक साक्षर व्यक्ति वह है जो अपनी भाषा में पढ़-लिख सके ।

प्रश्न 9. प्रारंभिक (प्राथमिक) शिक्षा क्या है ?
उत्तर – जो शिक्षा प्रारंभ में दी जाती है, जो वर्ग एक से वर्ग पाँच तक की होती है प्रारंभिक या प्राथमिक शिक्षा है ।

प्रश्न 10. पेशेवर शिक्षा क्या है ?
उत्तर – पेशेवर शिक्षा उसे कहते हैं, जिसे प्राप्तकर कोई व्यक्ति शिक्षक, डॉक्टर या वकील जैसे पेशा अपनाता है, पेशेवर शिक्षा है ।

IV. संक्षिप्त रूप को पूरा रूप दें :

1. G.D.P.,     2. U.G.C.,    3. N.C.E.R.T.,   4. S.C.E.R.T.,   5. I.C.M.R.

उत्तर :
1. G.D. P. – Graduate Diploma Programme ( ग्रेजुएट डिप्लोमा प्रोग्राम)
2. U.G.C. – University Grants Commission (विश्व विद्यालय अनुदान आयोग )
3. N.C.E.R.T. – National Council of Educational Research and Training (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान   और प्रशिक्षण परिषद)
4. S.C.E.R.T. – State Council of Educational Research and Training (राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद)
5. I.C.M.R. – Indian Council of Medical Research (भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद)

V. लघु उत्तरीय प्रश्न :

(उत्तर 20 शब्दों में दें)

प्रश्न 1. मानव तथा मानव संसाधन को परिभाषित करें ।
उत्तर – सामान्य व्यक्ति को मानव कहते हैं लेकिन पर्याप्त शिक्षा प्राप्त कौशल और योग्यता से पूर्ण व्यक्ति को मानव संसाधन कहते हैं ।

प्रश्न 2. मानव संसाधन उत्पादन को कैसे बढ़ाता है ?
उत्तर- मानव संसाधन अपने कौशल तथा अपनी योग्यता का उपयोग कर उत्पादन को बढ़ाता है ।

प्रश्न 3. किसी देश में मानव-पूँजी के दो प्रमुख स्रोत क्या हैं?
उत्तर – किसी देश में मानव-पूँजी के दो प्रमुख स्रोत हैं : (क) शिक्षा एवं (ख) प्रशिक्षण ।

प्रश्न 4. किसी व्यक्ति को प्रशिक्षण देकर कुशल बनाना क्यों जरूरी है ?
उत्तर – किसी व्यक्ति को प्रशिक्षण देकर कुशल बनाना इसलिए जरूरी है ताकि देश में मानव पूँजी की वृद्धि हो ।

प्रश्न 5. भारत में जनसंख्या के आकार को एक बार चार्ट ग्राफ द्वारा स्पष्ट करें ।
उत्तर – भारत में जनसंख्या के आकार का बार चार्ट निम्नांकित है

 

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प्रश्न 6. बिहार के सबसे अधिक जनसंख्या वृद्धि वाले 5 जिलों के नाम लिखें ।
उत्तर – बिहार के सबसे अधिक जनसंख्या – वृद्धि वाले 5 जिले निम्नांकित हैं : (i) शिवहर (ii) पूर्णिया, (iii) नवादा, (iv) सहरसा तथा (v) जमुई ।

प्रश्न 7. बिहार के सबसे कम जनसंख्या वाले 5 जिलों के नाम लिखें ।
उत्तर – बिहार के सबसे कम जनसंख्या वाले 5 जिले निम्नांकित हैं :
(i) शिवहर (ii) शेखपुरा, (iii) लखीसराय, (iv) मुँगेर तथा (v) खगड़िया ।

प्रश्न 8. बिहार देश का सबसे कम साक्षर राज्य है । इसके मुख्य दो कारण लिखें।
उत्तर – बिहार देश का सबसे कम साक्षर राज्य है । इसके दो मुख्य कारण हैं :
(i) यहाँ के अभिभावकों में जागरूकता की कमी है ।
(ii) गरीबी के कारण बच्चों को कम उम्र में ही स्कूल भेजने के बजाय किसी नौकरी में लगा देते हैं ताकि परिवार की आय बढ़े ।

VI. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :

(उत्तर 100 शब्दों में दें)

प्रश्न 1. मानव संसाधन क्या है? मानव संसाधन को मानव पूँजी के रूप में कैसे परिवर्तित किया जाता है ?
उत्तर– ‘कौशल’ और ‘योग्यताओं’ से पूर्ण व्यक्ति को मानव संसाधन माना गया है। मानव संसाधन को मानव पूँजी के रूप में परिवर्तित करने का तरीका है कि उसके लिए निम्नलिखित व्यवस्थाएँ करनी पड़ती हैं :

(i) भोजन – पुष्टिकर भोजन से व्यक्ति का शारीरिक तथा मानसिक दोनों विकास होता है ।

(ii) वस्त्र—मौसमानुकूल अपने को मौसम की मार से बचाने के लिए वस्त्र की आपूर्ति आवश्यक है ।

(iii) आवास — अनुकूल और स्वास्थ्यकर आवास में रहकर ही व्यक्ति अपनी शिक्षा- दीक्षा पूर्ण कर सकता है

(iv) शिक्षा – मानव संसाधन को मानव पूँजी के रूप में शिक्षा ही परिवर्तित करती है । शिक्षा प्राप्त व्यक्ति को ही प्रशिक्षण दिया जाता सकता है ।

यदि मानव संसाधन को सूचना तकनीक और प्रबंधन में भी निपुण कर दिया जाय तो वह पूर्णतः मानव पूँजी में परिवर्तित हो जाएगा ।

प्रश्न 2. मानवीय पूँजी और भौतिक पूँजी में क्या अंतर है ? इसे तालिका द्वारा स्पष्ट करें । क्या मानवीय पूँजी भौतिक पूँजी से श्रेष्ठ है ?
उत्तर — मानवीय पूँजी और भौतिक पूँजी में निम्नांकित अंतर हैं :

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हाँ, मानवीय पूँजी भौतिक पूँजी से निश्चय ही श्रेष्ठ है। कारण की भौतिक पूँजी का उपयोग मानव पूँजी ही करती है ।

प्रश्न 3. भारत में मानवीय पूँजी निर्माण के विकास का परिचय दें ।
उत्तर-भारत में अनेक निकास योजनाएँ लागू और चालू होती रही हैं । इन विकास योजनाओं का अंतिम लक्ष्य यही होता है कि देश में मानवीय पूँजी का निर्माण हो सके । इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दीर्घकालिक आर्थिक सुधारों को सफल बनाने का प्रयास किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में देश में मानवीय पूँजी के विकास में सराहनीय सफलता मिली है । अनेक प्रकार से इसका पता चलता है :
(i) जनसंख्या सम्बंधी बेहतर सूचक, (ii) साक्षरता तथा शिक्षा के विकास में बढ़ोत्तरी, (iii) स्वास्थ्य सुविधाओं में बढ़ोत्तरी और बेहतरी, (iv) जीने की औसत आयु, (v) साक्षरता दर में वृद्धि, (vi) जन्म तथा मृत्यु दर में कमी आदि सब मानवीय विकास के सूचक हैं । इन सूचनाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि भारत में मानवीय पूँजी निर्माण के विकास में वृद्धि हुई है ।

प्रश्न 4. मानवीय साधनों के विकास में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवास की भूमिका की विवेचना करें ।
उत्तर—मानवीय साधनों के विकास में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवास की निम्नलिखित भूमिका है :

शिक्षा — मानवीय साधनों के विकास में शिक्षा का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है । शिक्षा वह माध्यम है, जिसकी सहायता से मानवीय साधनों का विकास होता था । मानवीय साधन से ही देश विकास की ओर बढ़ता है और शिक्षा उसे बल प्रदान करती है ।

स्वास्थ्य-स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है । मनुष्य की वास्तविक पूँजी उसका स्वास्थ्य ही है । स्वस्थ व्यक्ति ही अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकता है । स्वास्थ्य सुधार के लिए ही सरकार राज्य मुख्यालय से लेकर जिला मुख्यालयों में भी अस्पताल की स्थापना करती है ।

आवास –आवास देखने में तो गौण लगता है, लेकिन है बहुत महत्वपूर्ण । यदि आवास उचित और स्वास्थ्यकर नहीं है तो न ही व्यक्ति ढंग से शिक्षित हो पाएगा और न स्वस्थ रह पाएगा ।
अर्थशास्त्र में इसे तीसरी अनिवार्य आवश्यकता मानी गयी है

प्रश्न 5. भारत की राष्ट्रीय जनसंख्या नीति पर संक्षित टिप्पणी लिखें ।
उत्तर- भारत की नौवीं पंचवर्षीय योजना में यह स्वीकार किया गया है कि ‘दीर्घकालीन विकास’ तथा जनसंख्या में घना सम्बंध है । यदि हमें विकास प्रक्रिया को चालू रखना है तो हमें जनसंख्या को बढ़ने से रोकना होगा। इसी के लिए 15 फरवरी, 2000 को भारत सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या नीति (National Population Policy) की घोषणा की थी । इस नीति के तहत जनसंख्या स्थिरीकरण को मौलिक आवश्यकता मानने पर जोर दिया गया । समान वितरण के साथ-साथ समय से सम्बद्ध तीन उद्देश्य को उचित ठहराया गया है । वे हैं : (क) तत्कालीन उद्देश्य, (ख) मध्यकालीन उद्देश्य तथा (ग) दीर्घकालीन उद्देश्य ।

(क) तत्कालीन उद्देश्य – तत्कालीन उद्देश्य के तहत गर्भनिरोधकों की आपूर्ति, तत्कालीन आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ शिशु स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने के लिए स्वास्थ्य संरचना, स्वास्थ्य सेवकों तथा समन्वित वितरण की व्यवस्था करनी है ।

(ख) मध्यकालीन उद्देश्य—मध्यकालीन उद्देश्य के तहत कुल प्रजनन दर को 2010 तक प्रतिस्थापन स्तर पर लाना है ।

(ग) दीर्घकालीन उद्देश्य – दीर्घकालीन उद्देश्य के तहत जनसंख्या को 2045 ई. तक उस स्तर पर स्थिर बनाने का उद्देश्य है, जो दीर्घकालीन विकास की जरूरतों के अनुरूप हो ।

परियोजना कार्य (Project Work ) :

I. प्रश्नावली द्वारा क्षेत्र की जनसंख्या संबंधी सूचनाओं को प्राप्त करें। (व्यक्तिगत अध्ययन द्वारा)
1. उत्तर दाता का नाम – …………..
2. उम्र – …………
3. शिक्षा – …………
4. लिंग – …………
5. परिवार के कुल सदस्यों की संख्या – ………..
6. परिवार के कुल पुरुषों की संख्या – …………
7. परिवार की कुल महिलाओं की संख्या – ………..
8. परिवार के कुल लड़कों की संख्या – …………
9. परिवार की कुल लड़कियों की संख्या – …………
10. परिवार की मासिक आमदनी – …………
11. परिवार की आय का मुख्य स्रोत – …………..

II. मानव पूँजी के स्रोत को वरीयता के अनुसार देते हुए एक चित्रमय नोट तैयार करें ।

III. देश की कुल जनसंख्या में राज्यों की भागीदारी प्रतिशत को एक वृत्त चित्र द्वारा दर्शायें ।

IV. भारत की जनसंख्या के प्रतिशत वृद्धि (दशकीय) को ग्राफ में बिंदुरेखीय द्वारा प्रदर्शित करें ।

उत्तर- संकेत : ये परियोजना कार्य हैं। इन्हें छात्र स्वयं करें ।

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BSEB Bihar Board Class 9 Social Science Economics Solutions Chapter 1 बिहार के एक गाँव की कहानी

Bihar Board Class 9 Economics बिहार के एक गाँव की कहानी Text Book Questions and Answers

1.बिहार के एक गाँव की कहानी

अभ्यास के प्रश्न तथा उनके उत्तर

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
निर्देश : सही उत्तर का संकेताक्षर (क, ख, ग, घ ) लिखें।

1. उत्पादन के प्रमुख साधन कितने हैं ?
(क) तीन
(ख) चार
(ग) पाँच
(घ) दो

2. उत्पाद का अर्थ है :
(क) नयी वस्तु का सृजन
(ख) उपयोगिता का सृजन
(ग) उपयोगिता का नाश
(घ) लाभदायक होना

3. उत्पादन का निष्क्रिय साधन है
(क) श्रम
(ख) संगठन
(ग) साहसी
(घ) भूमि

4. निम्नलिखित में से भूमि की विशेषता कौन-सी है ?
(क) वह नाशवान है
(ख) वह मनुष्य निर्मित है
(ग) उसमें गतिशीलता का अभाव है
(घ) उसमें समान उर्वरता है

5. अर्थशास्त्र में भूमि का तात्पर्य है :
(क) प्रकृति प्रदत्त सभी निःशुल्क वस्तुएँ
(ख) जमीन की ऊपरी सतह
(ग) जीमन की निचली सतह
(घ) केवल खनिज सम्पत्ति

6. निम्नलिखित में से कौन उत्पादक है ?
(क) बढई
(ख) भिखारी
(ग) उग
(घ) शराबी

7. उत्पादन का साधन है ?
(क) वितरण
(ख) श्रम
(ग) विनिमय
(घ) उपभोग

8. निम्नलिखित में कौन उत्पादन का साधन नहीं है ?
(क) संगठन
(ख) उद्यम
(ग) पूँजी
(घ) उपभोग

9. निम्नलिखित में से कौन पूँजी है ?
(क) फटा हुआ वस्त्र
(ख) बिना व्यवहार में लायी जानेवाली मशीन
(ग) किसान का हल
(घ) घर के बाहर पड़ा पत्थर

10. जो व्यक्ति व्यवसाय में जोखिम का वहन करता है, उसे कहते हैं ?
(क) व्यवस्थापक
(ख) पूँजीपति
(ग) साहसी
(घ) संचालक मंडल

11. निम्नलिखित में कौन श्रम के अंतर्गत आता है ?
(क) सिनेमा देखना
(ख) छात्र द्वारा मनोरंजन के लिए क्रिकेट खेलना
(ग) शिक्षक द्वारा अध्यापन
(घ) आनन्द के लिए संगीत का अभ्यास करना

उत्तर—1. (ग), 2. (ख), 3. (घ), 4. (ग), 5. (क), 6. (क), 7. (ख), 8. (घ), 9. (ग), 10. (ग), 11. (ग) |

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :
1. श्रम को उत्पादन का ……………. साधन कहा जाता है ।
2. शिक्षक के कार्य को …………….. श्रम कहा जाता है ।
3. ………….. अर्थव्यवस्था के भौतिक अथवा पूँजीगत साधन है ।
4. सभ्यता के विकास के साथ ही मनुष्य की ……………. बहुत बढ़ गई हैं
5. वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन विभिन्न साधनों के ……………. से होता है।
6. उत्पादन की नयी तकनीक की वजह से उत्पादन क्षमता में अपेक्षाकृत ………….. होती है ।

उत्तर- 1. सक्रिय, 2. मानसिक, 3. मशीन एवं औजार, 4. आवश्यकताएँ, 5. सहयोग, 6. वृद्धि या बढ़ोत्तरी ।

III. सही कथन में टिक (सही) तथा गलत कथन में क्रास (गलत) करें ।

1. अर्थशास्त्र में उत्पादन का अर्थ उपयोगिता का सृजन करता है ।                  (सही)
2. किसान के कार्य को मानसिक श्रम कहा जाता है।                                    (गलत)
     (सही यह है कि किसान के कार्य को शारीरिक श्रम कहा जाता है ।)
3. अर्थशास्त्र के प्रमुख तत्व प्राकृतिक साधन एवं भौतिक साधन हैं ।             (सही)
4. ब्रिटेन की आर्थिक व्यवस्था विकसित है ।                                                (सही)
5. भारतीय अर्थव्यवस्था एक मिश्रित अर्थव्यवस्था नहीं है ।                           (गलत)
     (सही यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है ।)

IV. स्तंभ के कथन का स्तंभ के कथन के साथ मिलान करें :

स्तंभ                                          स्तंभ
1. भूमि का पारिश्रमिक                        (क) लाभ
2. श्रम का पारिश्रमिक                        (ख) वेतन
3. पूँजी का पारिश्रमिक                       (ग) लगान
4. व्यवस्थापक का पारिश्रमिक           (घ) मजदूरी
5. साहसी का पारिश्रमिक                  (ङ) ब्याज

उत्तर : (1) → (ग), (2) (घ), (3) → (ङ), (4) → (ख), (5) (क) ।

V. लघु उत्तरीय प्रश्न :

(उत्तर 20 शब्दों में दें)

प्रश्न 1. उत्पादन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर—उत्पादन उसे कहते हैं, जिससे किसी वस्तु में उपयोगिता बढ़ जाय ।

प्रश्न 2. उत्पादन तथा उपभोग में अंतर कीजिए ।
उत्तर — उत्पादन से किसी वस्तु में उपयोगिता बढ़ती है, जबकि उपभोग से मानवीय आवश्यकताएँ संतुष्ट होती हैं ।

प्रश्न 3. उत्पादन के विभिन्न साधन कौन-कौन हैं ?
उत्तर—उत्पादन के विभिन्न साधन हैं : (i) भूमि, (ii) श्रम, (iii) पूँजी, (iv) व्यवस्था या संगठन तथा (v) उद्यम या साहस ।

प्रश्न 4. फतेहपुर गाँव के लोगों का मुख्य पेशा क्या है ?
उत्तर- फतेहपुर गाँव के लोगों का मुख्य पेशा कृषि कार्य है ।

प्रश्न 5. भूमि तथा पूँजी में अंतर करें ।
उत्तर — भूमि से तात्पर्य भूमि के साथ ही प्रकृति प्रदत्त सभी वस्तुओं से है, जिन्हें प्रकृति ने हमें दिया हैं, वहीं पूँजी धन के उस भाग को कहते हैं, जिसका और उत्पादन बढ़ाने में उपयोग किया जाता है ।

प्रश्न 6. “क्या सिंचित क्षेत्र को बढ़ाना महत्वपूर्ण है ।” क्यों ?
उत्तर—हाँ, सिंचित क्षेत्र को बढ़ाना महत्वपूर्ण है । क्योंकि सिंचाई की सुविधा बढ़ने से निश्चित रूप से उपज में वृद्धि होगी। किसान एक वर्ष के अंदर तीन-तीन फसल तक उपजा सकते हैं ।

VI. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :

(उत्तर 100 शब्दों में दें)

प्रश्न 1. उत्पादन की परिभाषा दीजिए। उत्पादन के कौन-कौन-से साधन हैं ? व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – मनुष्य अपने आर्थिक प्रयास से प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं की उपयोगिता में वृद्धि करता है । उसके इसी प्रक्रम को ‘उत्पादन’ कहते हैं ।
उत्पादन के पाँच साधन हैं : (i) भूमि, (ii) श्रम, (iii) पूँजी, (iv) व्यवस्था या संगठन तथा (v) उद्यम या साहस । इनकी व्याख्या निम्नांकित है :

(i) भूमि — उत्पादन के लिए ‘भूमि’ प्राथमिक आवश्यकता है। भूमि के बिना किसी प्रकार का उत्पादन हो ही नहीं सकता। भूमि उत्पादन का एक निष्क्रिय तथा स्थिर साधन है। भूमि की खास विशेषता है कि इसके अंतर्गत प्रकृति प्रदत्त सभी वस्तुएँ – हवा, पानी,खान तथा खनिज तक आ जाते हैं ।

(ii) श्रम—श्रम उत्पादन का एक सक्रिय साधन है। भूमि की तरह श्रम के बिना भी कोई उत्पादन नहीं हो सकता । श्रम दो प्रकार के होते हैं : (क) शारीरिक श्रम तथा (ख) मानसिक श्रम । हलवाहे का श्रम शारीरिक है जबकि अध्यापक का श्रम मानसिक है ।

(iii) पूँजी – मनुष्य द्वारा उत्पादित धन के उस भाग को पूँजी कहते हैं, जिसका उपयोग और अधिक धन के उत्पादन के लिए किया जाता है। बीज, कच्चा माल, मशीन, कारखाने का मकान सब पूँजी के तहत आते हैं । पूँजी के बिना किसी भी प्रकार का उत्पादन चाहे वस्तु हो या सेवा हो ही नहीं सकता ।

(iv) व्यवस्था या संगठन — भूमि, श्रम और पूँजी जैसे उत्पादन के साधनों को एकत्र कर जो उत्पादन- कार्य कराता है, उसे व्यवस्था या संगठन कहते हैं । व्यवस्था या संगठन जितना ही अधिक क्रियाशील होगा उतना ही अधिक और बढ़िया उत्पादन होगा ।

(v) उद्यम या साहस- उत्पादन के लिए उद्यम या साहस का रहना अनिवार्य है । उत्पादन तो लाभ के लिए किया जाता है, लेकिन कभी-कभी उसे नुकसान भी होता है । इसी नुकसान या घाटे के लिए जो तैयार रहता है उसे उद्यमी या सहसी कहते हैं ।

प्रश्न 2. उत्पादन के साधनों में संगठन एवं साहसी की भूमिका का वर्णन कीजिए ।
उत्तर—उत्पादन के साधनों में संगठन एवं साहसी की भूमिका निम्नांकित है :

संगठन — भूमि, श्रम, पूँजी आदि उत्पादन के इन साधनों को एकत्र कर उन्हें उत्पादन कार्य में लगाना और उत्पादन करना, यह काम संगठन का है। संगठन को बाजार का अध्ययन करना होता है । उसे यह पता करना होता है कि बाजार में किस वस्तु की माँग है। कौन-सी वस्तु का उत्पादन किया जाय जो बाजार में बिक जाय । वस्तु के बिक जाने पर ही लाभ की आशा की जाती है । फिर यह भी ध्यान रखना होता है कि वस्तुओं को उतना ही उत्पादित किया जाय जो बिक जाय । यदि उत्पादन बड़े पैमाने पर करना है, तो संगठन को भी कारगर बनाना पड़ता है । यदि इस स्थान पर ऐसे व्यक्तियों को नियुक्त किया जाय, जो निष्क्रिय रूप से बैठे-बैठे वेतन उठाते हैं तो उत्पादन में घाटा निश्चित है ।

साहसी — उत्पादन का काम जोखिमों से भरा होता है। अच्छे-अच्छे संगठकों के रहते हुए भी कभी हानि की आशंका भी रहती हैं। भविष्य की अनिश्चितताओं का सामना करने के लिए तैयार रहने वाले को साहसी कहते हैं। आज की प्रतियोगिता से भरी बाजार- व्यवस्था में घाटा उठाने की तत्परता बड़े महत्व की बात है । वैसे साहसी लाभ के लिए ही साहस करता है, लेकिन उसे हानि भी हो सकती है ।

प्रश्न 3. फतेहपुर गाँव में कृषि कार्यों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें ।
उत्तर—फतेहपुर गाँव में मुख्य क्रिया कृषि है। कृषि के साथ ही पशुपालन, मुर्गी पालन, डेयरी आदि कृषि के ही अंग हैं। मिश्रित कृषि में ये सभी मिल जाते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि उत्पादन क्रिया में विभिन्न संसाधनों की आवश्यकता होती है। इन संसाधनों में प्राकृतिक संसाधन, मानव निर्मित वस्तुएँ, मानव प्रयास और मुद्रां सभी सम्मिलित हैं। गाँव में इन संसाधनों की कोई कमी नहीं है । महत्व इस बात में है कि वहाँ के लोग इन संसाधनों को किस प्रकार समायोजित करते हैं ।
           फतेहपुर गाँव अपने आप-पास के गाँवों और कस्बों से अच्छी प्रकार से जुड़ा हुआ हैं। इस कारण गाँव को किसी बात की कमी नहीं होती। गाँव में जो भी वस्तुएँ उत्पादित होती हैं उनकी खपत में भी आसानी होती है । कृषि से सम्बद्ध जिन संसाधनों की आवश्यकता होती है, उनकी पूर्ति आस-पास के गाँव कर देते हैं। कस्बों से भी सहयोग मिल जाता है। पटना शहर निकट में ही अवस्थित है तथा वहाँ के लिए आवागमन की सुविधा भी है । अतः डेयरी का दूध आसानी से बिक जाता है। कृषि कार्य से बचे समय का वहाँ से युवक पटना में कोई अन्य काम करके आय का अर्जन कर लेते हैं । यही कारण है कि वहाँ के लोग सुखी-सम्पन्न हैं। अधिकांश मकान पक्के हैं और कुछ ही मकान कच्चे हैं 1

प्रश्न 4. मझोले एवं बड़े किसान कृषि से कैसे पूँजी प्राप्त करते हैं ? वे छोटे किसानों से कैसे भिन्न हैं ?
उत्तर – मझोले किसान जहाँ कठिनाई से कृषि कार्य करते हैं, वहीं बड़े किसानों को कोई कठिनाई नहीं होती । मझोले किसान, जो कम भूमि के मालिक होते हैं, अपने श्रम और बुद्धि का उपयोग कर कृषि कार्य करते हैं और कुछ कठिनाई से ही सही, लेकिन किसी प्रकार परिवार का भरण-पोषण कर ही लेते हैं । पूँजी की कमी ये बैंक ऋण से पूरा कर लेते हैं। खेती के साथ एक-दो गाय या भैंस रखते हैं, जिससे दूध बेचकर नगदी भी प्राप्त कर लेते हैं । गोबर से खाद की समस्या हल हो जाती है ।
         बड़े किसानों को कोई कठिनाई नहीं होती । एक इनके पास स्वयं की पूँजी होती है और दूसरे इन्हें बैंक भी आसानी से ऋण दे देता है। ये अपनी उपज से अच्छी आय प्राप्तकर लेते हैं । कारण कि ये फसल की कटाई होते ही नहीं बेचते । ये अनाज का भंडारण करते हैं और जब बाजार भाव महँगा होता है, तब बेचते हैं । ये सिंचाई के साधन भी प्राप्त किए रहते हैं और कृषि में अधिकतर यंत्रों का उपयोग करते हैं ।
         छोटे किसानों से वे इस प्रकार भिन्न हैं कि छोटे किसानों को बैंक ऋणं नहीं देते, जिससे उन्हें गाँव के साहूकारों से ऋण लेते पड़ते हैं। साहूकार एक तो अधिकर दर पर ब्याज वसूलते हैं और दूसरे कम पारिश्रमिक पर उन्हें अपने खेतों में खटवाते हैं । उपज कटते ही वे उनसे खरीद लेते हैं और औने-पौने भाव लगाते हैं । फलतः छोटे किसानों को दुखों से कभी छुटकारा नहीं मिलता ।

परियोजना कार्य (Project Work ) :
1. फतेहपुर गाँव में बिजली के प्रसार ने किसानों की किस तरह से मदद की है ?
2. आप अपने गाँव या कस्बों के किन्हीं दो परिवारों के भूमि वितरण की एक सारणी बनाइए ।
3. एक ही भूमि पर उत्पादन बढ़ाने के अलग-अलग कौन-से तरीक हैं ? समझाने के लिए उदाहरणों का प्रयोग कीजिए ।
4. मझोले और बड़े किसान कृषि से कैसे पूँजी प्राप्त करते हैं ? वे छोटे किसानों से कैसे भिन्न हैं ?
5. सविता को किन शर्तों पर तेजपाल सिंह से ऋण मिला ? क्या ब्याज की कम दर पर बैंक से कर्ज मिलने पर सविता की स्थिति अलग होती ? बताएँ ।
6. आप अपने गाँवों में और अधिक गैर-कृषि कार्य प्रारंभ करने के लिए क्या कर सकते हैं ?

उत्तर- संकेत : ये परियोजना कार्य हैं। इसे छात्र स्वयं करें ।

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कक्षा 10 पाठ चार लोकतंत्र की उपलब्धियाँ – Loktantra Ki Uplabdhiya

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के कक्षा 10 के लोकतांत्रिक राजनीति के पाठ चार लोकतंत्र की उपलब्धियाँ (Loktantra Ki Uplabdhiya) के सभी महत्‍वपूर्ण टॉपिक को पढ़ेंगें।

Loktantra Ki Uplabdhiya
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Bihar Board Class 10 Political Science पाठ चार लोकतंत्र की उपलब्धियाँ

दुनिया के लगभग 100 देशों में लोकतंत्र किसी-न-किसी रूप में विद्यमान है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था सभी शासन व्यवस्थाओं से बेहतर है। इस व्यवस्था में सभी नागरकों को मिलने वाला समान अवसर, व्यक्ति एवं गरिमा आकर्षण के केन्द्र बिन्दु हैं।

लोकतांत्रिक सरकार लोगों के प्रति उत्तरदायी होती है।

लोकतंत्र में लोगों को चुनावों में भाग लेने और अपने प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार होता है।

चुनी हुई सरकार लोगों की आकांक्षाओं को पुरा करने में प्रभावी हो पाती है।

सरकार द्वारा लिए गए फैसले जनकल्याण के लिए होते हैं।

आर्थिक समृद्धि और विकास

लोकतांत्रिक व्यवस्था वैध एवं जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। इस व्यवस्था में सरकारें अच्छी होती हैं। इस व्यवस्था में आर्थिक खुशहाली और विकास होता है।

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सामाजिक विषमता और सामंजस्य

लोकतंत्र आपसी समझदारी और विश्वास बढ़ाने में मददगार होता है। यह शांतिपूर्ण जीवन जीने में सहायक होता है। यह जातीय टकरावों एवं सांप्रदायिक उन्मादों को रोकने में सहायक सिद्ध होता है। नागरिकों की गरिमा और उनकी आजादी की दृष्टि से अन्य शासन व्यवस्थाओं से सर्वोतम है।

सामाजिक विषमताओं एवं विभिन्नताओं के बीच आपसी समझदारी एवं सामंजस्य के निर्माण में लोकतंत्र, गैरलोकतांत्रिक व्यवस्थाओं से काफी आगे है।

भारतीय लोकतंत्र कितना सफल है?

यह सत्य है कि लोकतंत्र को कई प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ता है। इसलिए इसकी गति निश्चित ही धीमी होती है। न्याय में विलंब, विकास दर की धीमी रफ्तार के कारण ऐसा लगने लगता है कि लोकतंत्र बेहतर नहीं है। राजतंत्र एवं तानाशाही व्यवस्था में इसकी गति तेज तो होती है लेकिन उसमें जनकल्याण के तत्त्व गायब हो जाते हैं।

गैरलोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में जल्दी-जल्दी में लिए गए निर्णयों के दुष्परिणामों से जब हम मुखातिब होते हैं, तब ऐसा लगता है कि लोकतंत्र से बेहतर कोई शासन व्यवस्था नहीं है। भारतीय लोकतंत्र के 70 सालों की अवधि में हम काफी सफल हुए हैं। लोकतंत्र को बार-बार जनता की परीक्षाओं पर खरा उतरना पड़ता है। सही मायने में देखा जाए तो भारतीय लोकतंत्र सफल ही हुआ है।

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भारतीय लोकतंत्र के सफलता के कारण तत्व

बीते समय में भारतीय लोकतंत्र की साख पूरी दुनिया में बढ़ी है। अभी भारतीय लोकतंत्र परिपक्व नहीं हुआ है। इसके लिए आवश्यक है कि सर्वप्रथम जनता शिक्षित हो। शिक्षा ही जनता के भीतर जागरूकता पैदा कर सकती है।

भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक है कि सरकारें प्रत्येक नागरिक को यह अवसर प्रदान करें कि वे किसी-न-किसी अवसर पर बहुमत का हिस्सा बन सके। यह भी आवश्यक है कि व्यक्ति के साथ-साथ लोकतांत्रिक संस्थाओं के अंदर आंतरिक लोकतंत्र हो। लोकतांत्रिक संस्थाओं के अंदर भ्रष्टाचार समाप्त हो तभी ही भारतीय लोकतंत्र पूर्ण रूप से सफल होगा।

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कक्षा 10 लोकतंत्र में प्रतिस्पर्द्धा एवं संघर्ष – Loktantra Mein Pratispardha Evam Sangharsh

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के कक्षा 10 के लोकतांत्रिक राजनीति के पाठ तीन लोकतंत्र में प्रतिस्पर्द्धा एवं संघर्ष (Loktantra Mein Pratispardha Evam Sangharsh) के सभी महत्‍वपूर्ण टॉपिक को पढ़ेंगें।

Loktantra Mein Pratispardha Evam Sangharsh
Loktantra Mein Pratispardha Evam Sangharsh

Bihar Board Class 10 Political Science पाठ तीन लोकतंत्र में प्रतिस्पर्द्धा एवं संघर्ष

जनसंघर्ष के माध्यम से ही लोकतंत्र का विकास हुआ है। जब सत्ताधारियों और सत्ता में हिस्सेदारी चाहनेवालों के बीच संघर्ष होता है तो उसे लोकतंत्र में प्रतिस्पर्द्धा कहते हैं। कभी-कभी लोग बिना संगठन बनाए ही माँगों के लिए एकजुट होने का निर्णय करते हैं। ऐसे समुहों को जनसंघर्ष या आंदोलन कहा जाता है। लोकतंत्र में राजनीतिक दल, दबाव-समूह और आंदोलनकारी समूह सरकार पर दबाव बनाते हैं।

लोकतंत्र में जनसंघर्ष की भूमिका

लोकतंत्र को मजबूत बनाने एवं उसे सुदृढ़ करने में जनसंघर्ष की महत्‍वपूर्ण भूमिका होती है। अंग्रेजों से भारत को मुक्‍त कराने के लिए भारतीयों ने जनसंघर्ष किया था। 19वीं शताब्‍दी के सातवें दशक में अनेक सामाजिक जनसंघर्ष की उत्‍पति हुई जिसने लोकतंत्र के मार्ग को प्रशस्‍त किया।

1971 में सत्ता का दूरूपयोग करके संविधान के बुनियादी ढाँचे में परिवर्तन का प्रयास किया। 1975 में आपातकाल लागू कर दिया गया जिसके विरोध में जनसंघर्ष तेज हुए जिसके कारण लोकतंत्र विरोधी सरकार को हटा कर 1977 में जनता पार्टी की सरकार की स्थापना हुई। इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि लोकतंत्र में जनसंघर्ष की महत्वपूर्ण भूमिका हेती है।

जनसंघर्ष सरकार को तानाशाह होने एवं मनमाना निर्णय से रोकते हैं क्योंकि लोकतंत्र में संघर्ष होना आम बात होती है। यदि सरकार फैसले लेने में जनसाधारण के विचारों को अनदेखी करती है तो ऐसे फैसले के खिलाफ जनसंर्घष होता है।

बिहार में छात्र आंदोलन

1971 में सत्तारूढ़ काँग्रेस ने ‘गरीबी हटाओ‘ का नारा देकर लोकसभा में बहुतम हासिल कर सत्ता में आया, लेकिन देश में सामाजिक-आर्थिक दशा में कोई सुधार नहीं हुआ। भारत की अर्थव्यवस्था लड़खड़ाने लगी जिससे देश में असंतोष का माहौल फैल गया। 1974 में बिहार में बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के कारण यहाँ की छात्रों ने सरकार के विरूद्ध आंदोलन छेड़ दिया जिसे छात्र आंदोलन के नाम से जाना जाता है। जिसका नेतृत्व लोकनायक ‘जयप्रकाश नारायण‘ ने किया। जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया। 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गाँधी के निर्वाचन को अवैधानिक करार दिया। इससे स्पष्ट हो गया कि इंदिरा गाँधी अब सांसद नहीं रही। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में इंदिरा गाँधी के इस्तिफे के लिए दबाव डालना प्रारंभ किया। उन्होंने अपने आह्वान में सेना और पुलिस तथा सरकारी कर्मचारीयों को भी सरकार का आदेश नहीं मानने का निवेदन किया। इंदिरा गाँधी ने अपने विरूद्ध षड्यंत्र मानते हुए देश में 25 जून 1975 को आपातकाल लागू करते हुए जयप्रकाश नारायण सहित सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को जेल में डाल दिया।

18 महीने के आपातकाल के बाद 1977 में चुनाव हुआ जिसमें जनता पार्टी को बहुमत प्राप्त हुआ। इस प्रकार काँग्रेस हार गई। 1980 में जनता पार्टी की सरकार गिर गई और फिर से 1980 में कांग्रेस की सरकार बनी।

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सूचना के अधिकार का आंदोलन

सूचना के अधिकार आंदोलन की शुरूआत झारखंड के एक छोटे से गाँव से शुरू हुआ था। जिससे सरकार को 2005 में ‘सूचना के अधिकार‘ अधिनियम लाया गया जो जन आंदोलन की सफलता का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।

नेपाल में लोकतांत्रिक आंदोलन

नेपाल में लोकतंत्र 1990 के दशक में कायम हुआ। वहाँ के राजा को औपचारिक रूप से राज्य का प्रधान बनाया गया लेकिन वास्तविक रूप से जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि द्वारा ही शासन किया जाता था। 2005 में नेपाल के राजा ज्ञानेन्द्र ने तत्कालीन प्रधानमंत्री को अपदस्थ कर दिया तथा जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को भंग कर दिया जिससे नेपाल में अप्रैल 2006 में आंदोलन खड़ा हुआ, जिसका एक मात्र उद्देश्य शासन की बागडोर राजा के हाथ से लेकर जनता के हाथ में सौंपना था।

जिसके फलस्वरूप 24 अप्रैल 2006 को राजा ज्ञानेन्द्र ने सर्वदलीय सरकार और एक नयी संविधान सभा के गठन की बात स्वीकार कर ली और पुनः संसद बहाल हुई।

इस तरह से, नेपाल के लोगों द्वारा लोकतंत्र बहाली के लिए किए गए संघर्ष पूरे विश्व के लिए एक प्रेरणा के स्त्रोत है।

राजनीतिक दल का अर्थ- राजनीतिक दल का अर्थ ऐसे व्यक्तियों के किसी भी समूह से है जो एक समान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्य करता है। व्यक्तियों का समूह जब राजनीतिक दल के रूप में संगठित होता है तो उनका उद्देश्य सिर्फ ‘सत्ता प्राप्त करना‘ या ‘सत्ता को प्रभावित करना‘ होता है। भारत में दलीय व्यवस्था की शुरूआत 1885 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना से मानी जाती है। विश्व में सबसे पहले राजनीतिक दलों की उत्पत्ति ब्रिटेन से हुई।

राजनीतिक दलों का कार्य

लोकतांत्रिक देशों में राजनीतिक दल जीवन के एक अंग बन चुके हैं। इसीलिए उन्हें ‘लोकतंत्र का प्राण‘ कहा जाता है।

  1. नीतियाँ एवं कार्यक्रम तय करना- राजनीतिक दल जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए नीतियाँ एवं कार्यक्रम तैयार करते हैं।
  2. शासन का संचालन- राजनीतिक दल चुनाव में बहुमत पाकर सरकार का निर्माण करते हैं।
  3. चुनवों का संचालन- राजनीतिक दल अपनी नीतियाँ जनता के पास रखते हैं और अपने उम्मीदवारों को खड़ा करने और हर तरीके से उन्हें चुनाव जीताने का प्रयास करते हैं। इसीलिए, राजनीतिक दल का एक प्रमुख कार्य चुनवों का संचालन भी है।
  4. सरकार एवं जनता के बीच मध्यस्थ का कार्य- राजनीतिक दल जनता और सरकार के बीच मध्यस्थता का काम करती है। राजनीतिक दल ही जनता की समस्याओं और आवश्कताओं को सरकार के सामने रखते हैं।

भारत में प्रमुख राजनीतिक दलों का परिचय

भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक दल के दो स्वरूप हैं- राष्ट्रीय राजनीतिक दल और राज्य स्तरीय या क्षेत्रीय राजनीतिक दल

वैसे राजनीतिक दल जिसकी नीतियाँ राष्ट्रीय स्तर के होते हैं, उसे राष्ट्रीय राजनीतिक दल कहते हैं।

वैसे राजनीतिक दल जिसकी नीतियाँ राज्य स्तरीय या क्षेत्रीय होती है। इसे क्षेत्रीय या राज्य स्तरीय राजनीतिक दल कहते हैं।

राष्ट्रीय राजनीतिक दल और राज्य स्तरीय राजनीतिक दल का निर्धारण निर्वाचन आयोग करता है।

राष्ट्रीय राजनीतिक दल की शर्त- लोकसभा या विधानसभा के चुनावों में 4 या अधिक राज्यों द्वारा कुल डाले गए वैध मतों का 6 प्रतिशत प्राप्त करने के साथ लोकसभा में कम-से-कम 4 सीटों पर विजयी होना आवश्यक है या लोकसभा में कम से कम दो प्रतिशत अर्थात् 11 सीटों पर विजयी होना आवश्यक है जो कम से कम तीन राज्यों से होना चाहिए।

राज्य स्तरीय दल की मान्यता प्राप्त करने के लिए उस दल को लोकसभा या विधान सभा के चुनावों में डाले गए वैध मतों का कम-से-कम 6 प्रतिशत मत प्राप्त करने के साथ-साथ राज्य विधानसभा की कम-से-कम 3 प्रतिशत सीटें या 3 सीटें जीतना आवश्यक है।

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भारत में राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दल

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस- भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना 1885 में हुई। यह एक धर्म निरपेक्ष पार्टी है। यह विश्व के पुराने राजनीतिक दलों में से एक है। यह स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कई वर्षों तक देश पर शासन किया।

भारतीय जनता पार्टी- 1980 में भारतीय जनसंघ के स्थान पर भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ। भारतीय जनता पार्टी का प्रथम अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी थे। इस पार्टी का मुख्य लक्ष्य भारत की प्राचीन संस्कृति और मूल्यों से प्रेरणा लेकर आधुनिक भारत का निर्माण करना है। यह पार्टी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा देता है तथा समान नागरिक संहिता लागू करने के पक्षधर है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सी०पी०आई०)- भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना 1925 में एम०एस० डांगे ने की। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र में आस्था रखती है और साम्प्रदायिकता का विरोध करती है। इस पार्टी का जनाधार केरल, पश्चिम बंगाल और बिहार आदि राज्यों में है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी (सी०पी०आई०)- 1964 में साम्यवादी दल का विभाजन हो गया और एक नए दल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म हुआ। यह दल लेनिन के विचारों में आस्था रखते हुए समाजवाद, धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतंत्र का समर्थन करता है। इस दल के नेता किसानों और मजदूरों की तानाशाही कायम करना चाहते हैं।

बहुजन समाज पार्टी ( बसपा )- बसपा की स्थापना 1984 में श्री काशीराम ने किया। इस पार्टी का मुख्य विचारधारा दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को एकजुट कर सत्ता प्राप्त करना है।

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कक्षा 10 सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली – Satta Mein Sajhedhari Ki Karyapranali

Satta Mein Sajhedhari Ki Karyapranali

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के कक्षा 10 के लोकतांत्रिक राजनीति के पाठ दो ‘सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली (Satta Mein Sajhedhari Ki Karyapranali) के सभी महत्‍वपूर्ण टॉपिक को पढ़ेंगें।

Satta Mein Sajhedhari Ki Karyapranali
Satta Mein Sajhedhari Ki Karyapranali

Bihar Board Class 10 Poitical Science पाठ दो सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली – Satta Mein Sajhedhari Ki Karyapranali

इस पाठ में हमलोग भारत के संघीय व्यवस्था का अध्ययन करेंगें। सत्ता के विकेन्द्रीकरण के सबसे निचले स्तर की व्यवस्था स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था करेंगे। बिहार में पंचायती राज पर भी एक नजर डालेंगे।

जब जाति, धर्म, रंग, भाषा आदि पर आधारित मानव समुहों को उचित पहचान एवं सत्ता में साझेदारी नहीं मिलती है तो उनके असंतोष एवं टकराव से सामाजिक विभाजन, राजनैतिक अस्थिरता, सांस्कृतिक टकराव एवं आर्थिक गतिरोध उत्पन्न होते हैं।

विभिन्न भाषायी एवं जातिय समूह को शासन में उचित प्रतिनिधित्व मिल सके। इसके विपरित श्रीलंका में सŸाधारी सिंहली समुदाय के हितो की निरंतर उपेक्षा की जिसमें तमिलों और सिंहलियों के बीच के टकराव ने भीषण गृह युद्ध का रूप ले लिया। इससे यह भी स्पष्ट होता हैं कि विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच सत्ता का विभाजन उचित हैं क्योकिं इसमें विभिन्न सामाजिक समूहो को अभिव्यक्ति एवं पहचान मिलती हैं। उनके हितों एवं जरूरतों का सम्मान होता हैं। इसमें विभिन्न समाजिक समूहो के बीच टकराव की संभावना क्षीण हो जाती हैं। अतः सत्ता में साझेदारी की व्यवस्था रातनैतिक समाज की एकता, अखंडता एवं वैद्यता की पहली शर्त हैं।

लम्बे समय से यह मान्यता चली आ रही थी कि राजनैतिक सŸा का बँटवारा नही हो सकता हैं। शासन की शक्ति किसी एक व्यक्ति या व्यक्ति के समूह के हाथों में रहनी चाहिए। अगर शासन की शक्तियों का बँटवारा होता है तो निर्णय की शक्ति भी बिखर जाती हैं। ऐसी स्थिति में निर्णय लेना एवं उसे लागू कराना असम्भव होगी लेकिन लोकतंत्र ने सŸा विभाजन को अपना मूल आधार बनाकर इस मान्यता का खंडन कर दिया।

लोकतंत्र में सरकार की सारी शक्ति किसी एक अंग में सीमित नहीं रहती बल्कि सरकार के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता का बँटवारा होता है। यह बँटवारा सरकार के एक ही स्तर पर होता हैं। उदाहरण के लिए सरकार के तीनों अंगों- विधायिका, कार्यापालिका एवं न्यायपालिका के बीच सत्ता का बँटवारा होता हैं और ये सभी अंग एक ही स्तर पर अपनी-अपनी शक्तियों का प्रयोग करके सत्ता में साझेदारी बनते हैं। सत्ता के ऐसे बँटवारे से किसी एक अंग के पास सत्ता का जमाव एवं उसके दुरूपयोग की संभावना खत्म हो जाती है। विश्व के बहुत सारे लोकतंत्रिक देशों जैसे- अमेरिका, भारत आदि में यह व्यवस्था अपनाई गई।

सरकार के एक स्तर पर सत्ता के ऐसे बँटवारे को हम सत्ता का क्षैतिज वितरण कहतें हैं।

इस तरह की व्यवस्था में पूरे देश के लिए एक सामान्य सरकार होती है। प्रांतीय और क्षेत्रीय स्तर पर अलग सरकारें होती हैं। दोनों के बीच सत्ता के स्पष्ट बँटवारे की व्यवस्था संविधान या लिखित दस्तावेज के द्वारा की जाती हैं।

सत्ता के इस बँटवारे को आमतौर पर संघवाद के नाम से जाना जाता है।

हम संघीय शासन व्यवस्था की विशेषताओं को निम्नलिखित रूप से अंकित कर सकते है-

  • संघीय शासन व्यवस्था में सर्वोच्च सत्ता केन्द्र सरकार और उसकी विभिन्न आनुसंगिक इकाइयों के बीच बँट जाती है।
  • संघीय शासन व्यवस्था में दोहरी सरकार होती है एक केन्द्रीय स्तर की सरकार जिसके अधिकार क्षेत्र में राष्ट्रीय महत्व के विषय होती हैं। दूसरे स्तर पर प्रांतीय या क्षेत्रीय होते हैं। जिनके अधिकार क्षेत्र में स्थानीय महत्व के विषय होते हैं।
  • प्रत्येक स्तर की सरकार अपने क्षेत्र में स्वायता होती है और अपने-अपने कार्यों के लिए लोगों के प्रति जवाबदेह या उत्तरदायी है।
  • अलग-अलग स्तर की सरकार एक ही नागरिक समूह पर शासन करती है।
  • नागरिकों की दोहरी पहचान एवं निष्ठाएँ होती है वे अपने क्षेत्र के भी होते हैं और राष्ट्र के भी। जैसे कि हममें से कोई बिहारी, बंगाली और मराठी होने के साथ-साथ भारतीय भी होता है।
  • दोहरे स्तर पर शासन की विस्तृत व्यवस्था एक लिखित संविधान के द्वारा की जाती हैं।
  • एक स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था की जाती है। इसे संविधान एवं विभिन्न स्तरों की सरकारों के अधिकारों की व्यवस्था करने का भी अधिकार होता है तथा यह केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच अधिकारों और शक्ति के बँटवारे के संबंध में उठनेवाले कानूनी विवादों को भी हल करता है।

भारत में संघीय शासन व्यवस्था

भारत में संघीय व्यवस्था के तहत कानून बनाने का अधिकार को तीन सूचियों में बाँट दिया गया है। संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची।

  • संघ सूची पर देश के लिए कानून बनाने का अधिकार है, राज्य सूची पर राज्य को तथा समवर्ती सूची पर देश और राज्य दोनों को कानून बनाने का अधिकार है।
  • जो विषय इन तीनों सूचियों में नहीं आते हैं, वैसे अवशिष्ट या बचे हूए विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केन्द्र सरकार को दे दिया जाता है।
  • भरतीय संविधान को कठोर बनाया गया है, ताकि केन्द्र और राज्य के बीच अधिकारों के बँटवारे में आसानी से एवं राज्यों की सहमति के बिना फेर बदल नहीं किया जा सके।
  • स्वतंत्र एवं सर्वोच्च न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है जिसे संविधान की व्याख्या, केन्द्र और राज्य के झगड़े-निपटाने के साथ केन्द्र और राज्य सरकार के द्वारा बनाए गए कानूनों की जाँच करने उन्हें संविधान के विरूद्ध या गैर कानूनी घोषित करने की भी शक्ति प्राप्त होती हैं।
  • सरकार चलाने एवं अन्य जिम्मेवारीयों के निर्वाहन के लिए जरूरी राजस्व की उगाही के लिए केन्द्र एवं राज्यां को कर लगानें एवं संसाधन जूटाने ंका अधिकार प्राप्त हैं।

भाषानीति

  • भारत में बहुत सी भाषाएँ बोली जाती हैं। श्रीलंका में भाषागत भेदभाव राजनैतिक अस्थिरता का बहुत बड़ा कारण रहा है। इसलिए भारतीय संविधान में हिन्दी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया गया, क्योंकि यह आबादी के 40 प्रतिशत लोगों की भाषा है। इसके साथ ही अन्य भाषाओं के प्रयोग, संरक्षण एवं संवर्धन के उपाय किए गए।
  • केन्द्रीय सरकार की शक्ति- किसी राज्य के अस्तित्व और उसकी भौगोलिक सीमाओं के स्थायित्व पर संसद का नियंत्रण है। वह किसी राज्य की सीमा या नाम में परिवर्तन कर सकती है। पर इस शक्ति का दुरूपयोग रोकने के लिए प्रभावित राज्य के विधानमंडल को भी विचार व्यक्त करने का अवसर प्रदान किया है।
  • संविधान में केन्द्र को अत्यंत शक्तिाली बनानेवाले कुछ आपातकालीन प्रावधान हैं जिसके लागू होने पर वह हमारी संघीय व्यवस्था को केन्द्रीयकृत व्यव्स्था में बदल देते हैं।
  • राज्यपाल राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किसी विधेयक को राष्ट्रति की मंजूरी के लिए तथा राज्य सरकार को हटाने तथा विधानसभा भंग करने की सिफारिश भी राष्ट्रपति को भेज सकता है।
  • विशेष परिस्थति में केन्द्र सरकार राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बना सकती है।
  • भारतिय प्रशासनिक व्यवस्था इकहरी है। इसमें चयनित पदाधिकारी राज्यों के प्रशासन का कार्य करते हैं लेकिन राज्य न तो उनके विरूद्ध कोई अनुशासनात्मक कारवाई कर सकता है, न ही उन्हे सेवा से हटा सकतें हैं।
  • संविधान के दो अनुच्छेद 33 एवं 34 संघ सरकार की शक्ति के उस स्थिति में काफी बढ़ा देते है जब देश के किसी क्षेत्र में सैनिक शासन लागू हों। संसद को अधिकार मिल जाता है कि ऐसी स्थिति में वह केन्द्र या राज्य के किसी अधिकारी के द्वारा शांति व्यवस्था बनाएँ रखने या उसकी बहाली के लिए किए गए किसी कार्य को कानून जायज कारार दे सके।

बिहार में पंचायती राज व्यवस्था की एक झलक 

राष्ट्रीय स्तर पर पंचायती राज्य प्रणाली की विधिवत शुरूआत बलवंत राय महता समीति की अनुशंसाओ के आधार पर 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले से हुई थी। 1959 में ही आंध्र प्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई।

बलवंत राय मेहता समिति ने पंचायत व्यवस्था के लिए त्रि-स्तरीय ढाँचा का सुझाव दिया-

  1. ग्राम स्तर पर पंचायत
  2. प्रखंड स्तर पर पंचायत समिति या क्षेत्रिय समिति
  3. जिला स्तर पर जिला परिषद।

पूरे देश में पंचायती राज व्यवस्था में एकरूपता लाने के उद्देश्य से सन् 1991 में 73वाँ संविधान विधेयक संसद में लाया गया जो 22-23 दिसम्बर 1992 को क्रमशः लोकसभा एवं राज्य सभा द्वारा पारित हो गया। फलतः संविधान के एक नए भाग 9 में पंचायत शिर्षक के अंतर्गत पंचायती राज्य अधिनियम को सम्मिलित किया गया। इसमें 13 अनुच्छेदों वाला एक नया अनुच्छेद 243 रखा गया हैं। इस संसोधन द्वारा एक नई अनुसुची (ग्यारह अनुसुची) जोडी गई हैं।

बिहार में पंचायती राज का स्वरूप त्रिस्तरीय

क. ग्राम पंचायत

 ख. पंचायत समिति

 ग. जिलर परिषद

कार्यकाल-  पाँच वर्षीय

राज्य सरकार 7000 की औसत आबादी पर ग्राम पंचायती की स्थापना को आधार मानती हैं। एक पंचायत क्षेत्र लगभग 500 की आबादी पर वार्डों में विभक्त होता है, जिनकी संख्या समान्तया 15-16 तक होती है। वार्ड सदस्य प्रत्येक मतदाता द्वारा चुने जाते हैं। ग्राम पंचायतों का प्रमुख मुखिया होता है और उसकी सहायता के लिए एक उपमुखिया का पद सृजित किया गया है। हर पंचायत में राज्य सरकार की ओर से एक पंचायत सेवक नियुक्त होते है, जो सचिव की भूमिका निभाते हैं।

बिहार पंचायती राज अधिनियम 2006 के तहत महिलाओ के लिए सम्पूर्ण सीटां मे आधा सीट अर्थात 50 प्रतिशत के आरक्षण का प्रावधान है। ग्राम पंचायतों का प्रधान मुखिया होता हैं। मुखिया या उपमुखिया अपने पद से स्वयं हट सकते हैं या हटाये जा सकते हैं। स्वेच्छा से हटने के लिए उन्हे जिला पंचायती राज पदाधिकारी को त्यागपत्र देना पड़ता हैं। यदि ग्राम पंचायतो के सदस्य दो-तिहाई बहुमत से मुखिया के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित करें तो मुखिया-उपमुखिया अपने पद से हटाए जा सकते हैं।

ग्राम पंचायत के सामान्य कार्य-

  1. 1. पंचायत क्षेत्र के विकास के लिए वार्षिक योजना तथा वार्षिक बजट तैयार करना।
  2. 2. प्राकृतिक विपदा में सहायता करने का कार्य।
  3. सार्वजनिक सम्पत्ति से अतिक्रमण हटाना।
  4. स्वैच्छिक श्रमिकों को संगठित करना और सामुदायिक कार्यों में स्वैच्छिक सहयोग करना।

ग्राम पंचायत की शक्तियाँ-

  1. संपत्ति अर्जित करने, धारण करने और उसके निपटने की तथा उसकी संविदा करने की शक्ति
  2. वार्षिक कर जैसे- जल कर, स्वच्छता कर, मेलों-हाटों में प्रबंध कर, वाहनों के निबंधन पर फीस तथा क्षे़त्राधिकार में चलाए व्यवसायों नियोजनों पर कर
  3. राज्य वित्त आयोग की अनुशंसा पर संचित निधि से सहायक अनुदान प्राप्त करने का अधिकार।

ग्राम पंचायत के आय के श्रोत-

  1. कर स्त्रोत- होल्डिंग, व्यवसाय, व्यापार, पेशा और नियोजन।
  2. फीस और रेंट- वाहनों का निबंधन, तीर्थ स्थानों, हाटों और मेलों, जलापूर्ति, गलियों ओर अन्य स्थानों पर प्रकाश, शौचालय और मूत्रालय।
  3. वित्तीय अनुदान- राज्य वित्त आयोग की अनुशंसा के आधार पर राज्य सरकार द्वारा पंचायतों को संचित निधि से अनुदान भी दिया जाता है।

ग्राम पंचायत के प्रमुख अंग-

  1. ग्राम सभा 2. मुखिया 3. ग्राम रक्षादल/दलपति 4. ग्राम कचहरी

ग्रामसभा- यह पंचायत की व्यवस्थापिका सभा है। ग्राम पंचायत क्षेत्र में रहनेवाले सभी व्यस्क स्त्री-पुरूष जो 18 वर्ष से अधिक उम्र के हैं, ग्रामसभा के सदस्य होंगे। ग्रामसभा की बैठक वर्ष भर में कम से कम चार बार होगी। मुखिका ग्रामसभा की बैठक बुलाएगा और इसकी अध्यक्षता करेगा।

ग्राम रक्षादल- यह गाँव की पुलिस है। इसमें 18 से 30 वर्ष की आयु वाले युवक शामिल हो सकते हैं। सुरक्षा दल का एक नेता होता है जिसे दलपति कहते हैं। इसके ऊपर गाँव की रक्षा और शांति का उत्तरादायित्व रहता है।

ग्राम कचहरी- यह ग्राम पंचायत की अदालत है जिसे न्यायिक कार्य दिए गए हैं। बिहार में ग्राम पंचायत की कार्यपालिका और न्यायपालिका को एक-दूसरे से अलग रखा गया है। प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक ग्राम कचहरी होता है जिसमें प्रत्यक्ष निर्वाचित एक सरपंच तथा इसमें प्रत्येक 500 की आबादी के हिसाब से निर्वाचित पंच होते हैं। इनका कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है। ग्राम कचहरी को दिवानी और फौजदारी दोनों क्षेत्रों में अधिकार प्रदान किए गए हैं। सरपंच सभी प्रकार के अधिकतम 10 हजार तक के मामले की सुनवाई कर सकता है। ग्राम कचहरी में एक न्याय मित्र और एक न्याय सचिव भी होता है। न्याय मि़त्रों एवं न्याय सचिवों के पद का निर्माण बिहार सरकार द्वारा किया गया है। न्याय मित्र सरपंच के कार्यों में सहयोग देता है, जबकि न्याय सचिव ग्राम कचहरी के कागजातों को देखता है।

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( ख ) पंचायत समिति

पंचायत समिति पंचायती राज्य व्यवस्था का दूसरा या मध्य स्तर है। यह ग्राम पंचायत और जिला परिषद् की बीच की कड़ी है। बिहार में 5000 की आबादी पर पंचायत समीति चुने जाने का प्रावधान है।

यह अपने बीच एक प्रमुख और एक उपप्रमुख का निर्वाचन करते हैं। पंचायत समीति का प्रधान अधिकारी होता है। पंचायत समिति के सदस्यों के कार्यों का जाँच-पड़ताल करता है और प्रखंड विकास पदाधिकारी पर नियंत्रण रखता है।

प्रखंड विकास पदाधिकारी पंचायत समिति का पदेन सचिव होता है। वह प्रमुख के आदेश पर पंचायत समिति का बैठक बुलाता है।

पंचायत समिति के कार्य- पंचायत समिति सभी ग्राम पंचायतों की वार्षिक योजनाओं पर विचार-विमर्ष करती है और समेकित योजना को जिला परिषद् में प्रस्तुत करती है। सामुदायिक विकास कार्य एवं प्राकृतिक आपदा के समय राहत का प्रबंध करना भी इनकी जिम्मेदारी होती है।

जिला परिषद्- बिहार में जिला परिषद् पंचायती राज व्यवस्था का तीसरा स्तर है। 50000 की आबादी पर जिला परिषद् का एक सदस्य चुना जाता है। जिला परिषद् के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत जिला की सभी पंचायत समितियाँ आती है। इसका कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।

प्रत्येक जिला परिषद् का एक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष होता है जिसे वह अपने सदस्यों में से चुनते हैं।

बिहार पंचायती राज अधिनियम 2005 के द्वारा महिलाओं के लिए संपूर्ण सीटों में आधा सीट 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा अत्यंत पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की गई है।

बिहार में नगरीय शासन.व्यवस्था

बिहार में नगरों एवं कस्बों में स्थानीय स्वशासन का एक गौरवशाली इतिहास रहा है । मनुस्मृति और महाभारत में इनका उल्लेख मिलता है । यूनानी विद्वान मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक

में मगध साम्राज्य की राजधानी श्पाटलीपुत्रश् के नगरपालिका संगठन के बारे में विस्तार पूर्वक लिखा है । चाणक्य जो चंद्रगुप्त का प्रधानमंत्री थाए उसकी पुस्तक श्अर्थशास्त्रश् में भी पाटलिपुत्रश् के नगर प्रशासन का वर्णन किया । स्वतंत्रता.प्राप्ति के बाद नगरपालिका प्रशासन का पूरी तरह से पुनर्गठन और सुधार किया गया है।

भारतीय संसद ने 74वाँ संविधान संशोधन 1992 पारित करके नगरीय स्वशासन व्यवस्था को सर्वप्रथम संवैधानिक मान्यता प्रदान की है। नगरपालिका के कार्यक्षेत्र विषय संविधान की 12वीं अनुसूची में उल्लिखित है।

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नगरीय शासन व्यवस्था में तीन प्रकार की संस्थाएँ हैं-

  1. नगर पंचायत
  2. नगर परिषद् और
  3. नगर निगम।

1. नगर पंचायत- ऐसे स्थान जो गाँव से शहर का रूप लेने लगते हैं वहाँ स्थानीय शासन चलाने के लिए नगर पंचायत का गठन किया जाता है। जिस शहर की जनसंख्या 12,000 से 40,000 के बीच होती है वहाँ नगर पंचायत की स्थापना कि जाती है। नगर पंचायत के लिए आवश्यक शर्त यह है कि वहाँ के वयस्कों की तीन चौथाई जनसंख्या कृषि से भिन्न कार्य में संलग्न हो। नगर पंचायत के सदस्यों की संख्या 10 से 37 तक होती है, जो वार्डों से मतदाताओं द्वारा चुनते हैं। सदस्यों का कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है। नगर पंचायत का एक अध्यक्ष ओर एक उपाध्यक्ष होता है जो अपने सदस्यों के बीच चुने जाते हैं।

2. नगर परिषद्- नगर पंचायत से बड़े शहरों में नगर परिषद् का गठन किया जाता है। वैसे शहर जिसकी जनसंख्या कम-से-कम 2,00000 से 3,00000 के बीच होती है, वहाँ नगर परिषद् की स्थापना की जाती है। नगर परिषद् के लिए आवश्यक शर्त यह है कि वहाँ पूरी जनसंख्या की तीन चौथाई भाग कृषि छोड़ अन्य कार्य में लगे हो।

नगर परिषद् के अंग- नगर परिषद् के तीन अंग होते हैं-

  1. नगर पर्षद्
  2. समितियाँ
  3. अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष और
  4. कार्यपालक पदाधिकारी।

1. नगर पर्षद- नगर परिषद् का एक प्रमुख अभिकरण नगर पर्षद होता है। इसके सदस्य पार्षद या कमिश्नर कहलाते हैं। इसकी संख्या कम से कम दस और अधिक से अधिक 40 होती है। पार्षद का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है। इसके 80 प्रतिशत सदस्य निर्वाचित और 20 सदस्य मनोनित होते हैं। नगर पर्षद के सदस्य अपने में से एक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव करते हैं।

2. समितियाँ- नगर परिषद् के कार्यों को सुचारू रूप से संचालन के लिए नगर परिषद् की कई समितियाँ होती है। समितियों को नगर पर्षद नियुक्त करती है। इसमें 3 से 6 सदस्य होते हैं।

3. अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष- बिहार के प्रत्येक नगर परिषद् में एक मुख्य पार्षद (अध्यक्ष) एवं उपमुख्य पार्षद (उपाध्यक्ष) होता है। इन दोनों का चुनाव नगर पर्षद के सदस्यों द्वारा होता है। नगर पार्षद नगर परिषद् का प्रधान होता है। वह उनके सभी कार्यों की देखभाल करता है। मुख्य पार्षद अपने शहर का प्रथम नागरिक समझा जाता है।

4. कार्यपालक पदाधिकारी- प्रत्येक नगर में एक कार्यपालक पदाधिकारी का पद होता है। इसकी नियुक्ति राज्य सरकार करती है। नगर परिषद् के प्रशासन को चलाने वाला यह प्रधान अधिकारी होता है।

नगर परिषद् के कार्य-

नगर परिषद् के दो तरह के कार्य हैं अनिवार्य एवं ऐच्छिक। अनिवार्य कार्य ऐसे कार्य होते हैं, जिसे नगर परिषद् को करना जरूरी होता है। ऐच्छिक कार्य ऐसे कार्य हैं जिन्हें नगर परिषद् आवश्यकतानुसार करता है। नगर परिषद् के अनिवार्य कार्य निम्नलिखित हैं.

1.नगर की सफाई कराना

2. सड़कों एवं गलियों में रोशनी का प्रबंध करना

3. पीने के पानी की व्यवस्था करना

4. सड़क बनाना तथा उसकी मरम्मत करना

5. नालियों की सफाई करना ।

6. प्राथमिक शिक्षा का प्रबंध करना, जैसे स्कूल खोलना और उसे चलाना

7. टीके लगाने तथा महामारी से बचाव का उपाय करना

8. मनुष्यों एवं पशुओं के लिए अस्पताल खोलना

9. आग से सुरक्षा करना

10. श्मशान घाट का प्रबंध करना

11. जन्म एवं मृत्यु का निबंधन करना एवं उनका लेखा-जोखा रखना ।

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ऐच्छिक कार्य-

1. नई सड़क बनाना

2. गलियों एवं नालियाँ बनाना

3. शहर के गंदे इलाके को बसने योग्य बनाना

4. गरीबों के लिए घर बनवाना

5. बिजली का प्रबंध करना।

6. प्रदर्शनी लगाना

7. पार्क, बगीचा एवं अजायबघर बनाना

8. पुस्‍तकालय की व्‍यवस्‍था करना।

नगर परिषद के आय के स्त्रोत- नगर परिषद् विभिन्न प्रकार के कर वसुलती है। जैसे, मकान कर, पानी कर, रोशनी कर, नाला कर, मनोरंजन कर आदि। इसके अतिरिक्त नगर के बाहर से नगर में बिक्री के लिए पर नगर परिषद् सीमा कर वसुलती है जिसे आमतौर पर चंगी कहा जाता है।

शहर में चलने वाली बैलगाड़ी, टमटम, साइकिल, रिक्सा आदि पर भी नगर कर वसूल करती है। इसके अलावे राज्य सरकार समय-समय पर अनुदान भी देती है।

3. नगर निगम- जैसा कि हम जानते हैं कि राज्यों में नगरों के स्थानीय शासन के लिए तीन प्रकार की संस्थाएँ होती है। इन तीनों संस्थाओं में नगर निगम बड़े-बड़े शहरों में स्थापित की जाती है। अर्थात् जिस शहर की जनसंख्या 3 लाख से अधिक होती है वैसे शहरों में नगर निगम की स्थापना की जाती है। भारत में सर्वप्रथम 1688 ई० में मद्रास (चेन्नई) नगर निगम की स्थापना की गई । बिहार में सर्वप्रथम पटना में 1952 में नगर निगम की स्थापना की गई। प्रत्येक नगर निगम को जनसंख्या के अनुरूप कई क्षेत्रों में विभक्त किया जाता है। जिसे वार्ड कहा जाता है। नगर निगम में वाडों की संख्या उस शहर के जनसंख्या पर निर्भर करता है । वार्डों के निर्धारण में आरक्षण के नियमों का पालन किया जाता है । जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अत्यंत पिछड़ों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जाती है । बिहार में नगर निगम में 50 प्रतिशत स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया गया है। बिहार में एक नगर निगम में वार्डों की न्यूनतम संख्या 37 और अधिकतम 75 हो सकती है। पटना नगर निगम में 72 वार्ड हैं, गया नगर निगम में 35, भागलपुर नगर निगम में 51, दरभंगा नगर निगम में 48, बिहार शरीफ नगर निगम में 46 एवं आरा नगर निगम में 45 वार्ड निर्धारित है।

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नगर निगम के प्रमुख अंग- बिहार में नगर निगम के प्रमुख अंग होते हैं

1. निगम परिषद 2. सशक्त स्थानीय समिति 3. परामर्शदात्री समितियों 4. नगर आयुक्त

1. निगम परिषद- समूचे नगर निगम क्षेत्र को विभिन्न क्षेत्रों (वार्डों) में बाँटा जाता है। इस तरह से विभक्त प्रत्येक क्षेत्रों से उस क्षेत्र के मतदाताओं द्वारा एक-एक प्रतिनिधि निर्वाचित होकर आते हैं। इन्हें वार्ड पार्षद या वार्ड काँसिलर कहते हैं। पार्षदों का कार्यकाल 5 वर्षा का होता है। निर्वाचित सदस्यों के अलावा विशेषहितों के प्रतिनिधि करने वाले समूह जैसे, चैम्बर ऑफ कामर्स, व्यापार संघ एवं निबंधित स्नातक के सदस्य भी परिषद् के सदस्य होते है। सभी निर्वाचित सदस्यों के साथ मनोनीत सदस्य मिलकर कई सहयोजित सदस्यों का चयन करत है। इसके अलावे आमंत्रित सदस्यों के रूप में उस नगर निगम क्षेत्र के सांसद, स्थानीय विधायक एवं स्थानीय पार्षद होते हैं। निगम परिषद की बैठक प्रत्येक महीने होती है। निगम परिषद् का प्रमुख कार्य नियम बनाना, निर्णय लेना तथा कर (टैक्स) लगाना है।

महापौर एवं उपमहापौर- निगम परिषद अपने सदस्यों के बीच से एक महापौर एवं उपमहापौर चुनती है। इन दोनों का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है। महापौर निगम परिषद् का सभापति होता है तथा निगम की बैठकों की अध्यक्षता करता है। साथ ही सशक्त स्थायी समिति की भी अध्यक्षता करता है। महापौर नगर का प्रथम नागरिक माना जाता है। इस नाते वह नगर में आये अतिथियों का स्वागत नगर की ओर से करता है। महापौर की अनुपस्थिति में नगर परिषद् के सभी कार्यभार उपमहापौर संपादन करते हैं।

2. सशक्त स्थानीय समिति- निगम परिषद् के बाद यह नगर निगम का दूसरा महत्त्वपूर्ण अंग होता है । महापौर एवं उपमहापौर भी इस समिति के सदस्य होते हैं । इस समिति की अध्यक्षता महापौर द्वारा की जाती है। निगम परिषद् के सभी प्रमुख कार्य सशक्त समिति द्वारा ही की जाती है। यह समिति कुछ कर्मचारियों की नियुक्ति करने के अतिरिक्त नगर आयुक्त पर भी नियंत्रण रखती है।

3. परामर्शदात्री समितियाँ- नगर निगम में कुछ परामर्शदायी समितियाँ भी होती है, जैसे शिक्षा समिति, बाजार एवं उद्यान समिति आदि। ये समितियां नगर निगम को सलाह देती है।

4. नगर आयुक्त- नगर निगम के इस पदाधिकारी की नियुक्ति बिहार सरकार द्वारा की जाती है। यह प्राय: भारतीय प्रशासनिक सेवा स्‍तर का पदाधिकारी होता है एवं नगर के सभी कर्मचारियों के कार्यों की देखभाल करता है। नगर आयुक्त कुछ कर्मचारियों की भी नियुक्त कर सकता है।

नगर निगम के प्रमुख कार्य- नगर निगम सुख-सुविधा के लिए अनेक कार्य करता है।

नगर निगम के कुछ प्रमुख कार्य-

1. नगर क्षेत्र की नालियों, पेशाब खाना, शौचालय आदि निर्माण करना।

2, कुड़ा-कर्कट तथा गंदगी की सफाई करना।

3. पीने के पानी का प्रबंध करना।

4. गलियों एवं उद्यानों की सफाई एवं निर्माण करना।

5. मनुष्यों तथा पशुओं के लिए चिकित्सा केन्द्र की स्थापना करना एवं छुआ-छुत जैसी बिमारी पर रोक लगाने का प्रयास करना।

6. प्रारंभिक स्तरीय सरकारी विद्यालयों, पुस्तकालयों, अजायबघर की स्थापना तथा व्यवस्था करना।

7. विभिन्न कलयाण केन्द्रों जैसे मृत केन्द्र, शिशु केन्द्र, वृद्धाश्रम की स्थापना एवं देखभाल करना।

8. खतरनाक व्यापारों की रोकथाम, खतरनाक जानवरों तथा पागल कुत्तों को मारने का प्रबंध करना।

9. दुग्ध-शाला की स्थापना एवं प्रबंध करना।

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