Class 6th Hindi Text Book Solutions
19. बसन्ती हवा (केदारनाथ अग्रपरल)
भावार्थ- बसन्त ऋतु की हवा बड़ी निराली और मस्तानी होती है। वह निश्चिन्त होकर बड़ी मस्ती बहती है। वह किसी उद्देश्य, इच्छा या आशा से नहीं बहती। उसे किसी से न दोस्ती है और न ही किसी से दुश्मनी। वसन्ती हवा जब चलती है तो राह में पड़ने वाले शहर, गाँव, टोला, नदी, हरे-भरे खेत आदि सभी मस्ती मंे झुमने लगते हैं।
वसन्त की मतवाली हवा कभी महुए के पेड़ को हिलाती है, तो कभी आम के पेड़ को झकझोरती है। वसन्त ऋतु में कोयल की मधुर कूक भी सुनाई पड़ती है। वसन्ती हवा खेतों में लगे गेहूँ, तीसी, अरहर आदि के पौधों को हिलाती-डुलाती है। अरहर की पकी छीमियों के दाने झरने लगते हैं। वसन्ती हवा अपने स्पर्श से सभी वस्तुओं को झूमती-हिलती देख खुशी से खिलखिला पड़ती है। उसे हँसते देखकर सभी दिशाएँ, लहलहाते खेत, चमचमाती धूप, यहाँ तक कि सम्पूर्ण सृष्टि (संसार) हँसने लगती है। ऐसी होती है बसन्त की हवा।
आशय
1.जहाँ से चली मैं, जहाँ को गई मैं
शहर, गाँव, बस्ती, नदी, रेत, निर्जन,
हरे खेत, पोखरा,
झुलती चली मैं, झमती चली मैं
हवा हूँ, हवा मैं, वसंती हवा हूँ।
आशय- केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित ‘बसन्ती हवा‘ शीर्षक कविता में बतलाया गया है कि बसन्त ऋतु की हवा में बड़ी मादकता और मस्ती होती है। जब यह चलती है तो इसके स्पर्श से इसकी राह में पड़ने वाले शहर, गाँव, मुहल्ले-टाले, नदी, बालू भरे मैदान, निर्जन स्थान, हरे-भरे खेत, तलाब सभी मस्ती में झुमने लगते हैं। सब में एक विशेष मादकता छा जाती है।
2. हँसी जोर से मैं, हँसी सब दिशाएँ,
हँसे लहलहाते, हरे खेत सारे,
हँसी चमचमाती भरी धूप प्यारी,
वसंती हवा में, हँसी सृष्टि सारी
हवा हूँ, हवा मैं, वसंती हवा हूँ
आशय – प्रस्तुत अवतरण केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित ‘बसन्ती हवा‘ शीर्षक कविता से अवतरित है। इन पंक्तियों में कवि ने बताया है कि बसन्त आनन्द और मस्ती का प्रतीक होता है। वसन्त ऋतु के आगमन से दसों दिशाएँ प्रसन्न हो जाती हैं। पेड़-पौधे, नदी-नाले , खेत-खलिहान, पशु-पक्षी यहाँ तक कि सारी दुनिया आनन्द से पुलक उठती है। बसन्त की हवा के स्पर्श से संसार की सारी वस्तुओं को आनन्द प्राप्त होता है।
अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर
पाठ से:
प्रश्न 1. बसंन्ती हवा ने अपने आपको दुसरे मुसाफिरों से अलग क्यों बताया ?
उत्तर- बसन्ती हवा ने अपने-आपको दुसरे मुसाफिरों से अलग इसलिए बताया क्योंकि वसंती हवा का अपना कोई मंजिल या लक्ष्य नहीं है। वह जिधर चाहती है, उधर घूम जाती है। न कोई इसका घर है और न ही कोई उद्देश्य, जबकि किसी मुसाफिर का निश्चित लक्ष्य होता है। वह किसी निश्चित उद्देश्य से कहीं जाता है। उसका मार्ग भी निश्चित होता है। किन्तु वसंती हवा का कोई मार्ग नहीं है, कोई अन्तिम पड़ाव नहीं हैं। यह मस्तमौला के समान चलती रहती है।
प्रश्न 2. इस पाठ में कवि ने खेत-खलिहानों के हँसने की बात कही है। ऐसा उसने क्यों कहा?
उत्तर- इस पाठ में कवि ने खेत-खलिहानों के हँसने की बात इसलिए कही है, क्योंकि इस समय लहलहाते पौधे से खेत हरे-भरे रहते हैं। सरसों में पीले-पीले फूल निकल आते हैं, अलसी के नीले फूल खिल जाते हैं वसंती हवा के चलने पर लहलहाते खेत और चमचमाती धूप हँसने लगती है। लगता है, वसंती हवा का स्पर्श पाकर सभी दिशाएँ हँस रही हों। अर्थात् पौधो के हिलने-डुलने से एक अद्भुत दृश्य उपस्थित हो जाता है। इसीलिए कवि ने ऐसी बात कही है।
प्रश्न 3. ‘बसंती हवा‘ का कौन-सा अंश आपको सबसे ज्यादा प्रभावित करता है?
उत्तर-‘‘जहाँ से चली मैं ……….. बसंती हवा हूँ।‘‘ मुझे अधिक प्रभावित करती है, क्योंकि इसमें बसंती हवा की मादकता एवं मस्ती का वर्णन है। यह चलती है तो इसके स्पर्श से राह में पड़ने वाले शहर, गाँव, मुहल्ले, टोले, नदी, रेतीले, मैदान, निर्जन, स्थान, हरे-भरे खेत, तालाब सभी मस्ती में झुमने लगते हैं। सारा वातावरण मधुमय हो जाता है। लगता है, वसंती हवा के स्पर्श से सारी सृष्टि में नवचेतना का संचार हो गया हो। सबमें एक अजीब मादकता आ गई हो।
पाठ से आगे:
प्रश्न 1. वसंत का आगमन कब होता है? इस ऋतु में आप कैसा अनुभव करते हैं?
उत्तर- बसंत का आगमन शरद ऋतु के अंत में अर्थात् जनवरी के मध्य में होता है। हिन्दी महीना की गणना के अनुसार इस ऋतु का आगमन बसंत पंचमी के दिन से माना जाता है। इस ऋतु के आते ही प्रकृति में एक नया सौंदर्य छा जाता है। पेड़-पौधे फूल-पत्ते से लद जाते हैं। वातावरण मह-मह हो जाता है। इस समय न तो अधिक गर्मी पड़ती है और न ही जड़ा होता है। समशीतोष्ण वातावरण के कारण यह अच्छा लगता है।
(वास्व में बसंत का आरम्भ चैत्र से होता है जो बैशाख की पूर्णिमा तक रहता है।)
प्रश्न 2. इस पाठ को पढ़ने के बाद हवा के प्रति आपके मन में किस प्रकार के भाव उठते हैं ? लिखिए।
उत्तर- इस पाठ को पढ़ने के बाद हवा के प्रति मेरे मन में यही भाव बनता है कि वसंती हवा अनोखी, मस्तमौली, बेफ्रिक, निडर तथा अजीब है। यह अपनी इच्छानुकूल अपना रूप बदल लेती है।
प्रश्न 3. सरस्वती पूजा को वसंत पंचमी के नाम से भी जानते हैं। सरस्वती पूजा पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर- बसंत पंचमी के दिन सांस्कृतिक पर्व के रूप में सरस्वती का पूजन किया जाता है। प्रातःकाल से ही विद्यालय को सजाया जाता है। सरस्वती विद्या एवं बुद्धि की देवी कहलाती है इसलिए हर शिक्षित एवं सुसंस्कृत लोग विद्या की देवी की आराधना श्रद्धा एवं विश्वास से करते हैं। क्योंकि इसी देवी की कृपा से बाल्मीकि, व्यास, कालिदास, सूरदास, तुलसीदास आदि वरेण्य हुए हैं। दूसरी बात परमेश्वर की महती शक्तियाँ हैं-काली, लक्ष्मी तथा सरस्वती। शक्ति के लिए काली की, धन के लिए लक्ष्मी की तथा ज्ञान (विधा) के लिए सरस्वती की पूजा की परम्परा हैं। इसे लोग माघ महीने के शुक्ल पक्ष पंचमी को पूर्ण उल्लास से मनाते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि ज्ञान-शक्ति सारी शक्तियों से श्रेष्ठ होती है। जिन पर इनकी कृपा हो जाती है, उसका जीवन धन्य हो जाता है। उसे युग-युग तक लोग याद करते हैं। विद्या को न कोई बाँट सकता है, न छीन सकता है। अपंग भी सरस्वती की आराधना की डॉ॰ चन्द्रा के समान महान् पद पर आसीन हो सकता है। लेकिन इसे पाने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है। विद्या अमूल्य धन होती है। यह पैसे से नहीं, कठिन परिश्रम से प्राप्त होती है।
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