BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 9 बाल-लीला

Class 6th Hindi Text Book Solutions

9. बाल-लीला (बाल-वर्णन) (सुरदास)

कविता का भावार्थ- इस पद में श्रीकृष्ण के वाक्चातुर्य का वर्णन किया गया है। श्रीकृष्ण कुछ बड़े हो गए हैं। वे अपने संगी-साथियों के साथ खेलने जाते हैं और पास-पड़ोस के घर जाकर दही-मक्खन चुराकर खाते हैं। जब वे उनकी इस शरारत की शिकायत माँ यशोदा से करती हैं तो वह बचाव में तर्क देते हैं कि अरी माँ! मैने मक्खन नहीं खाया हैं, क्योंकि सवेरे होते तुम मुझे गाय चराने वृन्दावन भेज देती हो। मैं दिनभर गाय के पीछे जंगल में भटकता रहता हुँ, और शाम के समय घर वापस आता हुँ। साथ ही, मैं छोटा बालक हुँ, इसलिए मेरे हाथ छोटे हैं। अब तुम्हीं बताओ कि ऊँचाई पर टँगे सीके पर रखे मक्खन के बर्तन को मैं कैसे छू सकता हुँ। ये ग्वाल-बाल सभी मेरे पीछे पड़े हुए हैं। मुझे बदनाम करने के लिए वे जबर्दस्ती मेरे मुँह में मक्खन लेप देते हैं। हे माते! तुम भी कितनी भोली हो कि उनकी बातों पर विश्वास कर लेती हो। इससे मुझे लगता है कि तुम्हारे मन में कुविचार पैदा हो गए हैं। इसलिए तुम मुझे दुसरे का पुत्र जानकर ऐसा सोचती हो।

इसके बाद वह स्पष्ट होकर माँ यशोदा से कहते हैं कि यह लाठी तथा कंबल ले लो। तुमने मुझे बहुत सताया है। सुरदास जी कहते हैं कि माँ यशोदा श्रीकृष्ण की यह बात सुनकर मुस्कुराने लगती हैं तथा उन्हें उठाकर अपने गले लगा लेती हैं।

सप्रसंग व्याख्या

1. मैया मोरी, मैं नहीं माखन खायो।

भोर भयो गैयन के पाछे, मधुवन मोहि पठायो

चार पहर बंसीवट भटक्यो, सांझ परे घर आयो।।

व्याख्या- प्रस्तुत पद कवि सुरदास द्वारा लिखित है। इसमें कवि ने श्रीकृष्ण की वाक्पटुता पर प्रकाश डाला है। श्रीकृष्ण कुछ बड़े हा गए हैं। उनमें तर्क करने की क्षामता आ गई है। जब ब्रज की गोपियाँ श्रीकृष्ण के विरूद्ध शिकायत करती हैं कि वह घर-घर जाकर मक्खन-दही चुराकर खाता है तो वह माता यशोदा को यह तर्क देकर चुपकर देते हैं कि वह सवेरे गाय चराने चले जाते हैं। दिनभर गाय के पीछे भटकते रहते हैं तथा शाम को घर वापस आते हैं। साथ ही, वे छोटा बालक हैं, उनके हाथ छोटे हैं। फिर ऊँचाई पर टँगे सीके से मक्खन या दही का बर्तन कैसे उतार सकते हैं। ये सारे ग्वाल-बाल मेरे पीछे पड़े हुए हैं, वे मुझे बदनाम करने के लिए मेरे मुँह पर दही का लेप लगा देते हैं और तुम ऐसी भोली हो कि इनकी बातों पर विश्वास कर लेती हो। तुम्हारे इस व्यवहार से प्रतित होता है कि तुम्हारे मन में प्रति दुर्भावना पैदा हो गई है, क्योंकि मैं तुम्हारा पुत्र नहीं हुँ। इसी आक्रोश के आवेग में लाठी तथा कंबल लौटाते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं कि तुमने मुझे बहुत सताया है।

सुरदास जी कहते हैं कि श्रीकृष्ण की ऐसी रोषपूर्ण बाते सुनकर माँ यशोदा मुस्कुराते हुए उन्हें गले लगा लेती हैं।

अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

पाठ से:

प्रश्न 1. अपने साथियों द्वारा लगाये गए आरोपों को झुठा बताने के लिए कृष्ण अपनी माँ के सामने कौन-कौन से तर्क रखते हैं?

उत्तर- अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को झूठा साबित करने के लिए श्रीकृष्ण माँ यशोदा से कहते हैं-मैं सवेरे गाय चराने मधुवन चला जाता हुँ ? और शाम में घर वापस आता हुँ। फिर सीके पर रखे मक्खन के बर्तन को कैसे नीचे उतार सकता हुँ, हे माँ! ये ग्वाल-बाल मेरे पीछे पड़े हुए हैं। बदनाम करने के लिए मेरे मुँह पर मक्खन लेप देते हैं। तुम तो इतनी भोली हो कि इनकी झुठी बातों पर विश्वास कर लेती हो। श्रीकृष्ण के इन तर्कों से जब यशोदा संतुष्ट नहीं होती हैं तब माँ को यह कहकर निरूत्तर कर देते हैं कि मैं तुम्हारा बेटा नहीं हुँ। मुझे जन्म देने वाली माँ कोई और है। इसलिए मेरे प्रति तुम्हारे मन में भेदभाव की भावना पैदा हो गई है। इस कारण मेरी बातों पर तुम विश्वास नहीं करती।

प्रश्न 2. नीचे कुछ पंक्तियाँ दी गई हैं। उन्हें पढ़िए और बाल-लीला के पदों में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनका भावार्थ इन पंक्तियें में समाहित है:

(क) माँ मैं अभी बहुत छोटा हुँ, छोटी-छोटी मेरी बाँहें हैं, सींका (एक प्रकार की रस्सी बनी होती है जिस पर कुछ भी रखा जाता है) मैं किस तरह पा सकता हुँ। माँ! मेरे सभी दोस्त अभी दुश्मन बन बैठे हैं। मेरे मुँह पर जबरदस्ती माखन  लगा देते हैं।

(ख) माँ, अपनी लाठी और कंमल लो। तुने मुझे बहुत परेशान किया है इस पर यशोदा हँसकर कृष्णा को गले लगा लेती है।

उत्तर:

(क) ‘‘मैं बालक बहियन को छोटो, छींको केहि विधि पायो।

ग्वाल-बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो ।।‘‘

(ख) ‘‘यह लै अपनी लकुटी कमरिया, बहुतहिं नाच नचायो।

सूरदास, तब विहंसी जसोदा, लै उर कंठ लगायो।‘‘

पाठ से आगे:

प्रश्न 2. निम्नलिखित पद का अर्थ अपनी मातृभाषा में कीजिए।

(क) मैं बालक को छोटो, छींको केहि विधि पायो।

ग्वाल-बाल सब बैर परे हैं। बरबस मुख लपटायो।।

उत्तर- मैं तो बालक हुँ और मेरी बाहें भी छोटी है। फिर मैं छींका कैसे पकड़ सकता हूँ। सभी ग्वाल-बाल मुझसे बैर रखने लगे हैं। ये मेरे मुँह में जबरदस्ती दही लभेर देते हैं।

(ख) तू जननी मन की अति भोरी, इनके कहि पतियायो।

जिय तेरे कछु भेद उपजिहैं, जानि परायो जायो।।

उत्तर- माता तुम मन की बड़ी भोली हो, जा इनके कहने पर विश्वास कर लेती हो। मुझे लगता है कि तुम्हारे मन में भेद पैदा हो गया है, यह जानकर कि मैं किसी अन्य का जन्माया हुआ हूँ।

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BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 8 मंत्र

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8. मंत्र (प्रमचन्द)

पाठ का सारांश- प्रस्तुत कहानी प्रेमचन्द द्वारा लिखित है। इसमें कहानीकार ने डॉ॰ चड्ढा की निर्ममता तथा भगत की मानवता का मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया है।

संध्या का समय था। एक बूढ़ा, जो छः पुत्रों की मौत देख चुका था, सातवें पुत्र को डोली में सुलाकर डॉ॰ चड्ढा के औषधालय पर जाता है। उस समय चड्ढा टेनिस खेलने जाने के लिए तैयारी में लगे हुए थे। बुढ़े ने धीरे-धीरे आकर द्वार पर टंगी हुई चिक से अंदर झांका। उसे अंदर घुमने की हिम्मत नहीं होती है कि कोई डाँट न दे। डॉ॰ साहब ने अंदर से गरजते हुए पुछा -कौन ? बूढ़े ने गिड़गिडा़ते हुए कहा, ‘‘हुजूर! बड़ा गरीब आदमी हूँ। मेरा लड़का कई दिनों से बिमार है। कृपा करके एक नजर देख लें।, लड़का मर जाएगा। सात लड़को में से सिर्फ यही बचा है। छः पहले ही कालकवलित हो चुके है। हम रो-रोकर मर जाएँगे।‘‘ बूढ़े के लिए इंकार कर दिया कि ‘‘हम इस वक्त मरीजों को नहीं देखते। इसलिए कल सबेरे आना,‘‘ यह कहते हुए मोटर पर सवार हो जाते हैं। उनपर बूढ़े के निवेदन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। डोली जिधर से आई उधर लौट जाती है और बूढ़े का प्यारा रात भगवान का प्यारा हो जाता है। कई साल गुजर गए। डाक्टर साहब खुब यश और धन कमाया। उन्हें दो बच्चे थे-एक लड़का था एक लड़की। लड़की का विवाह हो चुका था। लड़का कॉलेज में पड़ता था। उसका नाम कैलाश था। कैलाश को साँप पालने,खिलाने तथा नचाने का शौक था। उसने तरह-तरह के साँप पाल रखें थे। आज उसका सालगिरह था। इस समारोह में कैलाश के सहपाठि एवं खास मित्र आमंत्रित थे, जिसमें मृणालिनी भी थी। कैलाश और मृणालिनी आपस में प्रेम करते थे। आज मृणालिनी ने साँप देखने की ठान ली। क्योंकि कैलाश ने कई बार साँप देखने के आग्रह को ठुकरा दिया था। मृणालिनी की जिद को कुछ और लोगों ने भी हवा दी। लाचार होकर वह मृणालिनी और अन्य मित्रों को लेकर साँप दरबे के आगे बीन बजाने लगा। वह एक-एक साँप निकलता और उसे हाथ में, गले में डाल लेता। इसी क्रम में किसी मित्र ने व्यग्य किया-इन साँपों के दाँत तोड़े हुए हैं। कैलाश हँसकर कहा-दाँत तोड़ डालना मदारियों का काम है। इनके दाँत नहीं तोड़े गए हैं। कहो तो दिखा दूँ। इसके बाद कैलाश एक अति जहरीले साँप को पकड़ते हुए कहा-इसका काटा तुरंत मर जाता है। इसके काटे की कोई दवा नहीं है। उसने जोश में आकर उस जहरीले साँप की गर्दन जोर से दबाई और मुँह खोलकर उसके दाँत सबको दिखा दिए। जोर से गर्दन दबाने के कारण साँप क्रोधित हो गया और जैसे ही कैलाश ने उसकी गर्दन ढीली कि की साँप ने उसकी अँगुली में दाँत गड़ा दिए। अँगुली से खून टपकने लगा। साँप वहाँ से भाग गया। कैलाश ने अँगुली में जड़ी पीसकर लगा ली। लेकिन उससे कोई लाभ नहीं हुआ। उसकी आँखें झपकने लगीं और होठों पर नीलापन दौड़ने लगा। कैलाश की हालत गंभीर देखकर सारे मेहमान कमरे में इकट्ठे हो गए। एक मंत्र झाड़नेवाला भी आया, लेकिन उसकी हालत देखका उसने कहा-‘‘अब क्या हो सकता है सरकार ? जो कुछ होना था, हो चुका।‘‘ घर में कोहराम मच गया। सभी रोने लगे। शहर से दूर एक बुढ़ा तथा बुढ़िया अंगीठी के सामने बैठे रात काट रहे थे। मिट्टी तेल की डिबिया ताक पर जल रही थी। किसी दरवाजे पर जाकर आवाज दी-‘‘भगत, भगत! क्या सो गए ? जरा किवाड़ खोलो।‘‘ भगत ने दरवाजा खोल दिया। एक आदमी अंदर जाकर बोला-‘‘कुछ सुना, डाक्टर चड्ढा के पुत्र को साँप ने काट लिया है। तुम चले जाओ। खुब पैसा मिलेगा।‘‘

बूढ़े ने कठोर भाव से सिर हिलाकर कहा-मैं नही जाता। मेरी बला से मरे। मेरा बेटा अन्तिम साँस गिन रहा था। मेरे लाख गिड़गिड़ाने पर उसे दया नहीं आई और मोटर पर सवार होकर चला गया। अब पता चलेगा कि बेटा गम क्या होता है ? अब मालूम होगा लाल को। हमारा क्या बिगड़ा। उसका राज सूना हो जाएगा, जिसके लिए सबका गला दबा-दबाकर धन जोड़ा है।‘‘

भगत अपनी बातों पर अटल रहा और वह आदमी लौट गया। भगत किवाड़ बंद करके चीलम पीने लगा। भगत के लिए पहला अवसर था कि समाचार पाकर भी नहीं गया। मौसम कैसा भी हो, लेन-देन का विचार मन में आया ही नहीं। लेकिन डाक्टर के निष्ठुर व्यवहार ने भगत को ऐसा बनने पर मजबूर कर दिया था। बुढ़िया सो गई तब भगत के अन्दर की मानवता जगने लगी। उसने धीरे दरवाजा खोला और चलना ही चाहता था की बुढ़िया की नींद टूट गई। उसने पूछा-‘‘कहाँ जाते हो ?‘‘ बूढ़े ने कहा-नींद नहीं आती। बुढ़िया ने कहा-मन तो चड्ढ़ा के लगा हुआ है तो नींद कैसे आएगी। बुढ़िया के सोते ही भगत ने धीरे से किवाड़ खोले और चड्ढ़ा के घर कि ओर चल पड़ा। उसके अन्तर्मन जल्दी-जल्दी चलने को प्रेरित कर रहा था। रास्ते में दो आदमी आपस में बातचीत करते आ रहे थे। कि डॉक्टर साहब का घर उजड़ गया। शब्द सुनते ही भगत के पैर और तेजी से बढ़ने लगे। मेहमान संत्वना देकर विदा हो गए, तभी भगत ने द्वार पर पहुँचकर आवाज दी। डॉक्टर साहब बाहर आए। एक बूढ़े आदमी को खड़ा देखा, जिसकी कमर झुकी हुई, पोपला मुँह, सफेद भौंहे थीं और लकड़ी के सहारे काँप रहा था।

भगत ने पूछा-भैया कहाँ है ? जरा मुझे दिखा दीजिए। डाक्टर ने कहा-चलो, देख लो, मगर तीन-चार घंटे हो गए। जो कुछ हाना था सो हो गया। भगत ने अन्दर जाकर कैलाश की हालत एक मिनट तक देखी, फिर मुस्कुराकर कहा-‘‘अभी कुछ नहीं बिगड़ा है बाबूजी! आप पानी का इंतजाम करवाइये।‘‘ लोग कैलाश को नहलाने लगे तथा भगत मंत्र पढ़ने लगा। एक बार मंत्र समाप्त होने पर वह एक जड़ी कैलाश को सूंघा देता था। यह क्रम देर तक चलता रहा। जब कैलाश ने लाल-लाल आँखें खोलीं अंगड़ाई ली और पीने को पानी मांगा तब भगत अपने घर की ओर चल पड़ा। मेहमान के चले जाने पर  डाक्टर अपनी पत्नी नारायणी से कहा-‘‘न जाने वह बूढ़ा कहाँ चला गया।‘‘ वह वही आदमी है, जिसने एक रोगी को लेकर आया था कि ‘‘अभी मेरे खेलने का समय है।‘‘ उस दिन की बात याद करके मुझे जितनी ग्लानि हो रही है, उसे प्रकट नहीं कर सकता। उसके पैरो पर गिरकर क्षमा माँगूगा, क्योंकि उसकी सज्जनता ने मुझे ऐसा आदर्श दिखा दिया है जो अब से जीवनपर्यंत मेरे सामने रहेगा।

सप्रसंग व्याख्याएँ

1. डॉक्टर ने उसकी बातों की ओर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने धीरे से चिक उठाई और वे बाहर निकलकर मोटर की तरफ बढ़ चले। बूढ़ा यह कहते हुए उनके पीछे दौड़ा ‘‘सरकार, बड़ा धरम होगा। हुजूर, दया कीजिए। लड़के को छोड़कर इस संसार में मेरा कोई नहीं है।‘‘

व्याख्या-प्रस्तुत पंक्तियाँ कहानी सम्राट प्रेमचन्द द्वारा लिखित कहानी ‘मंत्र‘ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इसमे कहानीकार ने डॉक्टर की कठोरता के माध्यम से यह बताने के प्रयास किया है किस प्रकार बड़े ओहदेवाले गरीबों तथा असहायों के साथ निर्मम व्यवहार करते हैं।

बूढ़ा भगत अपने बीमार पुत्र को लेकर डॉक्टर चड्ढ़ा के पास इसलिए जाता है कि उनके इलाज से उसका पुत्र बच जाएगा। क्योंकि पहले भी उसके छः पुत्रों की मौत हो चुकी थी। यह सातवाँ पुत्र था। भगत अपनी विवशता पूर्ण व्याकुलता से सुनता है, गिड़गिड़ाता है, लेकिन पद एवं पैसे के मद में वह डॉक्टर हृदयहीन बन जाता है। उसकी मानवता इस प्रकार मर चुकी होती है कि बूढ़े करूणापूर्ण क्रन्दन से भी द्रवित नहीं होती। इससे स्पष्ट होता है कि बड़े लोग निष्ठुर होते हैं।

2. आज उस दिन की बात याद करके मुझे जितनी ग्लानि हो रही है, उसे प्रकट नहीं कर सकता। मैं उसे अब खोज निकालूँगा और उसके पैरों पर गिरकर अपना अपराध क्षमा कराऊँगा।

व्याख्या- प्रस्तुत गद्यांश कहानी-सम्राट प्रेमचन्द द्वारा रचित कहानी ‘मंत्र‘ से लिया गया है। इसमें कहानीकार ने यह बताने का प्रयास किया है कि अपने दुःख से ही दुसरों के दुःख का अनुभव होता है।

डॉक्टर चड्ढा को बूढ़े की व्यथा एवं विकलता का अनुभव तब होता है जब उनका पुत्र सर्पदंश के कारण अन्तिम साँस गिन रहा था। बूढ़े के साथ किए गए व्यवहार को याद करके स्वयं आत्मग्लानि का अनुभव करता है। उसे लगता है कि उस दिन उसने बूढ़े के बीमार पुत्र का तिरस्कार करके घोर अन्याय किया था। क्योंकि जिसका पुत्र उसकी अनदेखी के कारण मौत के मुँह में समा गया, उसी व्यक्ति ने उसके पुत्र की जान बचाई। बूढ़े के पास व्यवहार से डाक्टर के हृदय की मानवता जाग जाती है। उसे लगता है कि मानवता से बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं होता। जिसमें यह गुण होता है, वही संसार में महान् होता है।

अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

पाठ से:

प्रश्न 1. डॉक्टर के लड़के कैलाश ने साँप को पाल रखा था। फिर भी साँप ने उसे क्यों काटा?

उत्तर- मनुष्य ही नहीं, पशु-पक्षी भी अपने जीवन की रक्षा चाहते हैं जब उसे अपने जीवन-हानि की आशंका होती है, वह प्रतिकार करने से नहीं चूकता। कैलाश द्वारा गर्दन दबाने पर साँप को लगा कि उसका पालक उसे मारना चाहता है। इसी भय के कारण आत्मरक्षार्थ साँप ने उसे काट लिया।

प्रश्न 2. डॉक्टर चड्ढा, बूढ़े व्यक्ति को क्यो खोज रहा था?

उत्तर- डॉक्टर चड्ढा बूढ़े व्यक्ति को इसलिए खोज रहा था, अपने द्वारा किए गए अमानवीय व्यवहार के लिए उससे क्षमा माँगे तथा उसके उपकार के बदले उसे पुरस्कार करे। क्योंकि बूढ़े भगत ने डॉक्टर के उजड़ रहें घर को बचाया था।

प्रश्न 3. डॉक्टर के लड़के कैलाश को साँप ने काट लिया। इस खबर को सुनकर बूढ़े व्यक्ति को नींद क्यों नहीं आ रही थी?

उत्तर- जब किसी व्यक्ति की मानवता जोर मारने लगती है तो उसका मन सहायता करने के लिए बेचैन उठता है। इसी कर्मनिष्ठा के कारण बूढ़े को नींद नहीं आ रही थी। अस्सी वर्ष के उसके जीवन में यह पहला मौका था कि ऐसा समाचार सूनकर वह दौड़कर न गया हो। लेकिन डॉक्टर की निर्ममता के कारण वह ऊहापोह की स्थिति में झूल रहा था कि वह क्या करे और क्या न करे। इसीलिए उसे नींद नहीं आ रही थी।

पाठ से आगे:

प्रश्न 1. डॉक्टर द्वारा बूढ़े के लड़के को दखने से इंकार करने पर बूढ़ा व्यक्ति कैसा महसूस कर रहा होगा-अपने शब्दों में लिखिए ?

उत्तर- डॉक्टर द्वारा बूढ़े के लड़के को देखने से इंकार करने पर बूढ़ा व्यक्ति दुःख के सागर में डूब गया होगा। उसे डॉक्टर की बात वज्रपात के समान प्रतीत हुआ होगा। उसे लगा होगा कि यह डॉक्टर नहीं चाण्डाल है। इसीलिए उसे मेरी व्यकुलता पर दया नहीं आ रही है। बूढ़ा अपने कलेजे पर पत्थर रखकर निराश मन से डोली लेकर वापस हुआ होगा।

प्रश्न 2. समाज में गरीबों का जीवन स्तर सुधारने के लिए क्या-क्या करना चाहेंगे ?

उत्तर-समाज में गरीबों का जीवन स्तर सुधारने के लिए सर्वप्रथम विद्यालयों एंव चिकित्सालयों की व्यवस्था करने का मैं प्रयास करूँगा, ताकि वे शिक्षा प्राप्तकर अपने अधिकार एवं कर्त्तव्य को समझें। उत्तम स्वास्थ्य के लिए किन बातों की आवश्यकता है, उसे समझें। अपने आस-पास को साफ-सूथरा रखें, इन सबकी प्राप्ति के लिए मैं उन्हें सुझाव दूँगा कि स्वस्थ एवं शिक्षित व्यक्ति ही जीवन का सही उपयोग करता है।

प्रश्न 3. इस पाठ में आपको किसका चरित्र सबसे अच्छा लगा और क्यों?

उत्तर- प्रस्तुत पाठ में उस बूढ़े भगत का चरित्र अच्छा लगा। क्योंकि वह मानवीय विशेषताओं से परिपूर्ण है। उसने मानवता की रक्षा के लिए निर्दयी डॉक्टर के पुत्र जान बचाने आधी रात होने के बावजूद चल पड़ता है। डॉक्टर के व्यवहार से खिन्न उसका मन प्रतिशोध से जलता तो है, लेकिन उसका मानवत चड्ढा के घर जाने के लिए उसे ललकारने लगती है। वह बिना किसी लोभ-लालच के उनके घर पहुँच जाता है तथा कैलाश को ठीक होते ही चुपचाप चल पड़ता है। उसका यह व्यवहार भगत को एक आदर्श मानव के पद पर स्थापित कर देता है।

प्रश्न 4. इस पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर- इस पाठ से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें किसी कीमत पर मानवता का त्याग नहीं करना चाहिए, क्योंकि मानवता ही मानव को मानव कहलाने के योग्य बनाती है। मानवता की रक्षा के लिए ही ईश्वर ने मानव को इस धरती पर जन्म दिया है। मनुष्य को हर हाल में मानवता की रक्षा करनी चाहिए।

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BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 7 पिता का पत्र पुत्र के नाम

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7. पिता का पत्र पुत्र के नाम (मोहन दास करमचन्द गाँधी)

पाठ का सारांश- प्रस्तुत पाठ ‘पिता का पत्र पुत्र के नाम में महात्मा गाँधी द्वारा प्रिटोरिया जेल से पुत्र के लिखे गए पत्र के विवरण है। इसमें लेखक ने पत्र को सही शिक्षा के विषय में बताया है।

जब गाँधी जी प्रिटोरिया जेल में कैद थे तो पुत्र द्वारा लिखा गया पत्र अंग्रजी में हुकूमत की पाबंदी के कारण उन्हें प्राप्त नहीं होता था। कुछ दिनों के बाद प्रतिमाह उन्हें एक पत्र लिखने तथा एक पत्र प्र्राप्त करने का अधिकार मिला तो उन्होंने अपने बारे में किसी प्रकार की चिन्ता न करने की सलाह देते हुए कहा कि ‘बा‘ तथ तुम लोग सवेरे दूध के साथ साबूदाना ले रहे होंगे और मेरे द्वारा डाली गई जिम्मेदारी का निर्वाह सुचारू रूप से कर रहे होंगे, मुझे ऐसी आशा है।

मैं जानता हुँ कि तुम्हें पढ़ाई में दिक्कत होती होगी, अक्षर-ज्ञान सही शिक्षा तो चरित्र-निर्माण और कर्तव्य का बोध है। तुम्हारी आधी शिक्षा इसी के द्वारा पूरी हो जाती है, क्योंकि तुम अपने दायित्व सफलतापूर्वक निभा रहे हो। साथ ही इस बात का ख्याल रखो कि ब्रह्यचर्य अश्रम त्याग एवं तपस्या का समय होता है। इसी अवस्था में बच्चों अपने दायित्व एवं कर्त्तव्य, आचार-विचार तथा सत्य-अहिंसा का प्रयोग आनन्दपूर्वक करना चाहिए। आमोद-प्रमोद एक निश्चित आयु में ही शोभा देता है। जीवन में सफलता उसे ही मिलता है जो अपनी आत्मा का, अपने आपका तथा ईश्वरीय शक्ति के महत्व को समझता है। अक्षर-ज्ञान तो साधन मात्र है, साक्ष्य जीवन की सच्चाई जानना है। यह भी याद रखना है कि गरीबी में ही असली सुख है। इसलिए खेत में घास निराने, गढ़े खोदने और कृषि यंत्र को सुव्यवस्थित रखो, ताकि एक किसान बन सको। इसी प्रकार संस्कृत, एवं गणित में भी रूचि रखना, क्योंकि बड़ी उम्र में संस्कृत, गणित सिखना कठिन है।

लेखक ने अपने पुत्र को हिन्दी, गुजराती तथा अंग्रेजी कविताओं एवं भजनों को संग्रह करने धैर्य न खोने और सद्गुणें को प्राप्त करने की सलाह दी। अन्त में, लेखक ने पुत्र को पैसे-पैसे का हिसाब रखने, नियमित रूप से सुबह-शाम प्रार्थना करने की भी सलाह दी, क्यो  कि इस नियमितता से व्यक्ति का व्यक्तित्व निखार पाता है। पत्र पढ़कर अच्छी तरह समझ लेने के बाद जितना लम्बा पत्र लिखना चाहो, लिखना।

तुम्हरा पिता

मोझदास

अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

पाठ से:

प्रश्न 1. गाँधी जी ने पत्र के माध्यम से अपने पुत्र को क्या शिक्षाएँ दी हैं

उत्तर- गाँधी जी ने पत्र के माध्यम से अपने पुत्र को दायित्व का निर्वाह शांतचित तथा आनन्दपूर्वक करने, सद्गुणों को ग्रहण करने, सुबह-शाम प्राथना करने, अचार-विचार में सत्य-अहिंसा के प्रयाग की चेष्टा करनी है खेत में घास निराने, गड्ढे खोदने तथा एक योग्य किसान बनने की शिक्षाएँ दी हैं।

प्रश्न 2. गाँधी जी असली शिक्षा किसे माना है ? उल्लेख कीजिए।

उत्तर- गाँधी जी ने असली शिक्षा चरित्र-निर्माण और कर्तव्य-बोध का माना है। उनका कहना है कि जब कोई व्यक्ति अपने दायित्व का निर्वाह ईमानदारीपूर्वक तथा शांतचित से करता है तो उसकी शिक्षा सही मानी जाती है, क्योंकि ऐसा व्यक्ति काम करते समय एक विशेष आनन्द का अनुभव करता है। इसी कारण गाँधी जी को अपने पिता की सेवा करने में आनन्द मिलता था।

प्रश्न 3. गाँधी जी के पत्र के माध्यम से किन तीन बातों को महत्वपूर्ण माना गया है?

उत्तर- गाँधी जी के पत्र के माध्यम से ‘अपनी आत्मा का, अपने आपका और ईश्वर का सच्चा ज्ञान प्राप्त करना‘ इन तीन बातें को महत्वपूर्ण माना है।

प्रश्न 4. ‘‘बा‘‘ उपनाम से किन्हें जाना जाता है?

उत्तर- ‘‘बा‘‘ उपनाम से गाँधी जी की पत्नी कस्तूरबा को जाना जाता है।

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BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 6 तुम कल्पना करो

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6. तुम कल्पना करो(गोपाल सिंह नपाली‘)

सप्रसंग व्याख्याएँ/आशय

1 अब घिस गई समाज की तमाम नीतीयाँ

अब घिस गई मनुष्य की अतीत रीतियाँ

हैं दे रही चुनौतियाँ तुम्हें कुरीतियाँ

निज राष्ट्र के शरीर के सिंगार के लिए

तुम कल्पना करो, नवीन कल्पना करो,

सप्रसंग व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि गोपाल सिंह ‘नेपाली‘ विरचित ‘तुम कल्पना करो‘ पाठ से ली गई है। इसमें कवि ने देशवासियों को नये ढंग से देश को व्यवस्थित करने का संदेश दिया है।

कवि का कहना है कि समाज की सारी पुरानी नीतियाँ बेकार हो गई हैं। हमारे पुराने रीति-रिवाज महत्वहीन हो गए हैं। हम अपनी कुरीतियों के कारण ही पराधीन हुए। इसलिए सारी रूढ़िगत परम्पराओं को तोड़ हम अपने राष्ट्र-निर्माण के लिए एकजुट हों। कवि के कहने का भाव है कि हम कुरीति एवं कुनिति के कारण ही गुलाम हुए। इसलिए इस गुलामियों को नष्ट करके हम राष्ट्र के नव-निर्माण में लग जाएँ।

2. जंजीर टूटती कभी न अश्रु-धार से

दुख-दर्द दुर भागते नहीं दलार से

हटती न दसता पुकार से, गुहार से

इस गङग् तीर बौठ आज राष्ट्र श्क्ति की

तुम कामना करो, किशेर कामना करो,

तुम कामना करो।

सप्रसेग व्याख्या- प्रस्तुत गद्यांश कविवर गोपाल सिंह ‘नेपाली‘ द्वारा लिखित कविता ‘तुम कल्पना करो‘ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इसमें कवि ने देशवासियों को शक्ति के विषय में कहा है।

कवि का कहना है कि अधिकार की प्राप्ति अनुनय-विनय गिड़गिड़ाने से नहीं होती। गुलामी अथवा बंधन से मुक्ति पाने के लिए पराक्रमी होना अवश्यक होता है। जैसे रोग (पीड़ी) से मुक्ति पाने के लिए दवा अवश्यक होती है, मात्र लाड़-प्यार से पीड़ा नहीं मिटती, वैसे ही सिर्फ प्राथना से गुलामी का बंधन नष्ट नहीं होता, इस बंधन को तोड़ने के लिए व्यक्ति को प्राण बाजी लगानी पड़ती है। अपने पराक्रम का परिचय देना होता है। शक्ति के समक्ष ही दुनिया झुकती है। इसलिए कवि ने हमें गंगा की कसम खाकर आजादी की प्राप्ति के लिए देश की बलिवेदी पर मर मिटने का संकल्प लेने का संदेश दिया है।

3. जो तुम गए स्वदेश की जवानियाँ र्गइं

चिन्तौड़ के प्रताप की कहानियाँ र्गइं

आजाद देश रक्त की रवानियाँ गईं

अब सूर्य चंद्र से समृध्दि, ऋध्दि – सिध्दि की

तुम याचना करो दरिद्र याचना करो

तुम याचना करो।

आश्य- कवि गोपाल सिंह ‘नेपाली‘द्वारा लिखित कविता ‘तुम कल्पना करो‘ से उद्धृत प्रस्तुत पंक्तिया के माध्यम से यह संदेश दिया है कि व्यक्ति का स्वाभिमान ही उसकी असली शक्ति होता है। स्वाभिमान रहित व्यक्ति मृतवत् होता है। इसलिए महाराणा प्रताप ने स्वाभिमान की रक्षा के लिए जंगल की खाक छानना पसंद किया, लेकिन अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। कवि के कहने का तात्पर्य है कि यदि देशवासी राष्ट्रीय गौरव की रक्षा नहीं करते हैं तो आजादी की लड़ाई में देशभक्तों द्वारा बहाया गया खून व्यर्थ साबित होगा। इसलिए हमें अपने देश को समृद्ध बनाने का हर संभव प्रयास करना है।

4. आकाश है स्वतंत्र है, स्वतंत्र मेखला

यह क्षेृग्ड़ भी स्वतंत्र ही खड़ा बना ढाला

हैं जलप्रपात काटता सदैव क्षृंखला

आनन्द – शोक जन्म और मृत्यु के लिए

तुम योजना करो स्वतंत्र योजना करो

तुम योजना करो।

आश्य- प्रस्तुत पंक्तियाँ पाठ्पुस्तक में संकलित कवि गोपाल सिहं ‘नेपाली‘ द्वारा लिखित कविता ‘तुम कल्पना करो‘ से लिया गया है। इसमें कवि ने स्वतंत्रता के विषय में अपना विचार प्रकट किया है। कवि का कहना है। कि आकाश स्वतंत्र है, पहाड़ो की श्रृंखला स्वतंत्र है तथा पर्वत की चोटी भी स्वतंत्र है। झरना अपनी राह बनाने के लिए स्वतंत्र है। साथ ही सुख-दुःख, जन्म-मृत्यु शाश्वत है। ऐसी स्थिति में हमें भी स्वतंत्रतापुर्वक जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। कवि के कहने का तात्पर्य है कि स्वतंत्र वातावरण में जीना ही हमारा लक्ष्य हो, क्योंकि पराधीनता की स्थिति में व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं होता।

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BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 5 हार की जीत

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5. हार की जीत (सुदर्शन)

सारांश- बाबा भारती को अपने घोड़े से बड़ा प्रेम था। बाबा भारती उसे ‘सुलतान‘ कहकर पुकारते थे। खड्गसिंह उस इलाके का भयंकर डाकू था। उसके कानों में भी ‘सुलतान‘ की प्रसिद्धि पहुँची।

एक दिन दोपहर को खड्गसिंह बाबा भारती के निकट पहुँचा। बाबा भारती के पुछने पर उसने बताया कि सुलतान की चाह ने उसे यहाँ खींच लाया है। बाबा भारती बड़ी उत्साह के साथ अपना घोड़ा दिखाया। घोड़े कि सुन्दरता और चाल ने तो खड्गसिंह के हृदय में ईर्ष्या उत्पन्न कर दी। वहाँ से जाते-जाते उसने कहा कि बाबाजी घोड़ा मैं आपके पास नहीं रहने दुँगा।

खड्गसिंह की बात से बाबा भारती डर गए। इस तरह कई माह बीत गए। बाबा भारती अब असावधान हो गए थे।

एक दिन शाम के समय बाबा भारती सुलतान के पीठ पर सवार होकर घुमने निकले। अचानक एक कराहती आवाज सुनकर उन्होंन घोड़े को रोक दिया। देखा, एक अपाहिज उनसे एक दया की भीख माँग रहा था। उसने निकट के गाँव तक पहुँचा देने की प्रर्थना की। बाबा भारती ने उसे घोड़े पर चढ़ा दिया और स्वयं लगाम पकड़कर चलने लगे। अचानक लगाम उनके हाथ से छूट गई। उन्होंने देखा कि खड्गसिंह उनका घोड़ा दौड़ाए लिए जा रहा है। उन्होंने खड्गसिंह से बस इतना ही कहा कि यह घोड़ा अब तुम्हारा हुआ, लेकिन इस घटना कि चर्चा किसी से मत करना, अन्यथा आज से कोई किसी गरीब की मदद नहीं करेगा। बाबा भारती की बात खड्गसिंह के हृदय को छू गई। उस समय वह वहाँ से चला तो गया, लेकिन रात को चुपचाप बाबा भारती के अस्तबल बाँध गया। रात के अंतिम समय में बाबा भारती जगे। उनके पाँव स्वतः अस्तबल की ओर बढ़ गए। घोड़े ने अपने मालिक के पैरों की आवाज पहचानकर हिनहिनना शुरू कर दिया। वे दौड़ते हुए, अस्तबल में घुसे और घोड़े के गले से लिपटकर रोने लगे। फिर संतोष के साथ उनके मुँह से निकला ‘‘अब कोई गरीबों की सहायता से मुँह न मोड़ेगा।‘‘

                 सप्रसंग व्याख्याएँ

1. सुलतान ऐसे चलता है, जैसे घटघटा को देखकर मोर नाचता हो।

सप्रसंग व्याख्या- प्रस्तुत गद्यांश सुदर्शन द्वारा लिखित कहानी ‘हार की जीत‘ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इसमें बाबा भारती के घोड़े सुलतान की विशेषता का वर्णन किया गया है।

लेखक का कहना है कि बाबा को अपना घोड़ा देखकर वैसा ही आनन्द मिलता था, जैसा आनन्द माँ को अपने बेटे से, किसान को अपने लहलहाते खेत से, गुरू को अपने शिष्य से तथा साहूकार को अपने देनदार को देखकर मिलता है, क्योंकि घोड़े की चाल ऐसी सधी हुई थी कि उसकी चाल देखकर बाबा उसी प्रकार झुम उठते थे, जिस प्रकार बादल की घटा देखकर मोर नाचने लगता है।

2. ‘‘ परन्तु तुम मेरी एक बात सुनते जाओ खड्गसिंह ! मैं एक प्राथना करता हुँ, अस्वीकार न करना, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा।‘‘

सप्रसंग व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ सुदर्शन द्वारा लिखित कहानी ‘ हार की जीत‘ शीर्षक पाठ से ली गई है। इसमें कहानीकार ने बाबा भारती की महानता पर प्रकाश डाला है।

जब खड्गसिंह घोड़ा लेकर भाग खड़ा होता है तो बाबा उसके इस व्यवहार से स्तब्ध रह जाते है। इसी स्बधता में उनके मुँह से आवाज निकलती है कि ‘‘खड्गसिंह इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना। क्योंकि लोग जब जान जाएँगे कि एक अपाहिज ने ऐसा विश्वास घात किया है तो निर्बल और असहायों पर विश्वास करना छोड़ देंगे।‘‘ फलतः मानवता का लोप हो जाएगा। इसी मानवता की रक्षा के लिए बाबा भारती ने डाकू खड्गसिंह से ऐसी बातें कहीं।

अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

पाठ से:

प्रश्न 1. बाबा भारती कौन थे ?

उत्तर- बाबा भारती एक संत थे, जो घर का त्यागकर गाँव के बाहर मंदिर में रहते थे और भगवान का भजन करते थे।

प्रश्न 2. बाबा भारती अपने घोड़े से किस प्रकार स्नेह करते थे ?

उत्तर- बाबा भारती अपने घोड़े से उसी प्रकार स्नेह करते थे, जिस प्रकार माँ अपने बेटे से, किसान अपने लहलहाते खेत से, गुरू अपने शिष्य से तथा मोर घटघटा से स्नेह करते हैं।

प्रश्न 3. बाबा भारती के घोड़े को देखने के लिए खड्गसिंह अधीर हो उठा ? घोड़ा देखने के बाद खड्गसिंह के दिमाग में क्या उथल-पुथल होने लगी ?

उत्तर- खड्गसिंह ने जब बाबा भारती के घोड़े की प्रसिद्धि सुनि तो वह उसे देखने के लिए अधीर हो उठा। घोड़े की सुन्दरता एवं चाल देखकर उसके हृदय पर साँप लोटने लगा। उसके दिमाग में घोड़े प्राप्ति की योजना बनने लगी कि किसी भी प्रकार इस घोड़े को प्राप्त किया जाए, क्योंकि साधु को ऐसी चीजों से क्या मतलब।

प्रश्न 4. खड्गसिंह ने बाबा भारती के घोड़े को पाने के लिए किस प्रकार के रूप बदला?

उत्तर- खड्गसिंह जानता था कि बाबा भारती स्वेच्छा से कभी भी सुलतान को नहीं देंगे। इसलिए उसने अपाहिज बनकर घोड़े को प्राप्त करने की योजना बनाई।

प्रश्न 5. पाठ के किन वाक्यों से पता चलता है कि बाबा भारती को अपने घोड़े पर गर्व था ?

उत्तर- ‘बाबा ने घोड़ा दिखाया गर्व से और खड्गसिंह ने घोड़ा देखा आश्चर्य से।‘

पाठ से आगे:

प्रश्न 1. ‘‘लोगों को यदि इस घटना का पता लग गया तो वे किसी अपाहिज पर विश्वास न करेंगे।‘‘ बाबा भारती के इस वक्तव्य का क्या अभिप्राय है ?

उत्तर- बाबा भारती मानवता का पुजारी तथा छल-कपट रहित व्यक्ति थे। वे गरीबों के प्रति सहानुभूति रखते थे। उनकी इस सज्जनता और मनुष्यता का गलत लाभ खड्गसिंह उठाना चाहता था। उसने असहाय अपाहिज बनकर घोड़ा हथिया लिया। इस पा बाबा भारती ने उससे प्रार्थना कि कि इस घटना की चर्चा वह किसी से न करे अन्यथा कोई किसी असहाय पर अविश्वास के कारण सहायता नहीं करेगा। अर्थात् इन असहायों एवं गरीबों पर से लोगों का विश्वास उठ जाएगा।

प्रश्न 2. खड्गसिंह ने चुपके से रात में सुलतान को वापस अस्तबल में बाँध दिये। ऐसा उसने क्यों किया?

उत्तर- खड्गसिंह को बाबा भारती साक्षात् देवता लगने लगे थे। वह सोचने लगा कि बाबा भारती के सोच कितने ऊँचे है ? उनमें त्याग कि कितनी भावना है ? गरीबों के प्रति कितना स्नेह है ? और इसी प्रभाव के कारण उसने सुलतान को पुनः बाबा भारती के अस्तबल में बाँध गया।

प्रश्न 3. बाबा भारती के किस व्यवहार से खड्गसिंह के सोच में परिवर्तन हुआ ?

उत्तर- बाबा भारती के उच्च विचार तथा गरीबों के प्रति दया भाव ने खड़गसिंह के सोच में परिवर्तन ला दिया। उसने सोचा जो घोड़ा बाबा भारती को प्राणों से बढ़कर प्यारा है, वह इस प्रकार छीन जाने पर भी दुःखी नहीं है। उन्हें चिन्ता है तो मात्र गरीबों के अविश्वास पर। गरीबों के प्रति इस प्रकार के व्यवहार से उसका विचार बदल गया।

प्रश्न 4. आपकी प्रिय वस्तु छिनने का प्रयास करे तो आप क्या करेंगे ?

उत्तर- मेरी प्रिय वस्तु कोई छिनने का प्रयास करेगा तो मैं उसका प्रतिकार करूँगा। मैं अपने प्राण रहते छीनने नहीं दुँगा। क्योंकि हर व्यक्ति को अपनी वस्तु की रक्षा का अधिकार है। इस अधिकार के लिए मैं जान की बाजी लगा दुँगा।

प्रश्न 5. अगर आपको बाबा भारती से घोड़ा लेना होता ता आप क्या करते ?

उत्तर-अगर मुझे बाबा भारती से घोड़ा लेना होता तो मैं उनसे अनुनय-विनय करता कि यह घोड़ा मुझे दे दीजिए। आपके लिए यह उपयोगी नहीं है साधु तो दुसरो के उपकार के लिए शरीर धारण करते है। सामान्य मनुष्य को सांसारिक वस्तुओं के प्रति आकर्षण होता है। इसलिए यह घोड़ा मुझे दे दीजिए।

प्रश्न 6. कहानी का कोई दुसरा शीर्षक क्या हो सकता है ?

उत्तर- डाकू खड्गसिंह का चित परिर्वतन‘ अथवा ‘बाबा भारती का दया भाव’।

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BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 4 हॉकी का जादूगर

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4. हॉकी का जादूगर (मेजर ध्यानचंद)

पाठ का सरांश- प्रस्तुत संस्मरण ‘हॉकी का जादूगर‘ एक महान् खिलाड़ी के जीवन की आपबीती घटनाओं का लेखा-जोखा है। इसमें लेखक मेजर ध्यानचंद ने खेल की दुनिया में शीर्ष स्थान प्राप्त करने के विषय में प्रकट किया है।

ध्यानचंद का जन्म सन् 1904 में प्रयाग में एक साधारण परिवार में हुआ था। बाद में इनका परिवार झाँसी आकर बस गया। 16 वर्ष की उम्र में ये ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेट‘ में एक सिपाही के रूप में भर्त्ती हुए। हॉकी-खेल में इनकी रेजिमेंट का काफी नाम था। ध्यानचंद को इस खेल के प्रति कोइ रूचि नहीं थी, लेकिन रेजिमेंट के तत्कालीन मेजर तिवारी की प्रेणा ने इन्हें इस खेल के प्रति रूचि जगा दी। उस समय छावनी में हॉकी खेलने का कोई समय नहीं थी। धीरे-धीरे अपने कठिन अभ्यास से खेल में प्रविनता प्राप्त करते गए और इनके खेल में निखार आता गया।

इनके खेल में निखार आता गया, और इनकी तरक्की होती गई। सन् 1936 में बर्लिन ओलम्पिक में इन्हें कप्तान बन गय। इस ओलम्पिक में इनके खेलने के ढंग से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इन्हें ,हॉकी का जादूगर आरंभ कर दिया। इस समय लेखक सेना में लांसनायक के पद पर कार्यरत थे। इन्होंने  अपने संबंध में कहा कि खेल में सारा गोल इन्हीं के द्वारा नहीं बनाया जाता था, बल्कि उनकी हमेशा यही कोशिश रहती थी कि गेंद का गोल के पास ले जाकर अपने साथी खिलाड़ी को दे देना ताकि उसे गोल रकने का श्रेय मिल सके। इसी खेल भावना के कारण उन्होंने संसार के खेल-प्रमियों का दिल जीत लिया। इन्हें स्वर्ण पदक मिला था।

लेखक ने खेल के मैदान में घटनेवाली एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा है कि खेल के मैदान में लेखक जिस समय खेलते थे। तब मैदान में धक्का-मुक्की तथा मार-पीट होती थी। इस संबंध में सन् 1933 की एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा है-‘‘उन दिनों में पंजाब रेजिमेंट की ओर से खेल रहा था। एक दिन पंजाब रेजिमेंट और सैंपर्स एंड माइनर्स टीम के बीच मुकाबला हो रहा था। माइनर्स टीम के खिलाड़ी मुझसे गेंद छीनने की कोशिश करते, लेकिन उनकी हर कोशिश व्यर्थ साबित होती। इतने में एक खिलाड़ी गुस्से में आकर हॉकी मेरे सिर पर दे मारी। मुझे मैदान से बाहर पट्टी बाँधने के लिए ले जाया गया।‘‘ पुनः मैदान से लौटने पर मैंने उस खिलाड़ी की पीठ थपथपाते हुए कहा-‘‘ तुम चिन्ता मत करो, इसका बदला मैं जरूर लूँगा।‘‘ ध्यानचंद के इस कथन से वह खिलाड़ी भयभीत हो गया और इस भय के कारण वह पूरे खेल के दौरान विचलित रहा कि कब प्रहार होगा। उसकी इस कमजोरी का लाभ उठाते हुए, लेखेक ने छः गोल कर दिए खेल समाप्त होने पर उन्होंने उस खिलाड़ी की पीठ थपथपाते हुए कहा-दोस्त। खेल में इतना गुस्सा अच्छा नहीं होता। यदि तुम मेरे सिर पर नहीं मारते तो मैं दो ही गोल से हराता।‘‘

आज भी जब लोग मेरी सफलता का राज जानना चाहते हैं तो मेरा यही उत्तर होता है कि लगन, साधन और खेल भावना ही सफलता का असली राज है।

अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

पाठ से:

प्रश्न 1. ध्यानचंद किस खेल से संबंध रखते हैं?

उत्तर- ध्यानचंद हॉकी खेल से

प्रश्न 2. दूसरी टीम के खिलाड़ी ने ध्यानचंद को हॉकी क्यों मारी?

उत्तर- दूसरी टीम के खिलाड़ी ने ध्यानचंद को हॉकी इसलिए मारी, क्योंकि बार-बार प्रयास करने के बावजूद वह ध्यानचंद से गेंद नहीं छीन सका। इसी विफलता के कारण उसने उद्विग्नतावश ध्यानचंद को हॉकी दे मारी।

प्रश्न 3. ध्यानचंद अपनी सफलता का राज क्या बताया है?

उत्तर- ध्यानचंद अपनी सफलता का राज सच्ची लगन, साधन एवं खेलभावना को बताया है। उनका कहना है कि जब खिलाड़ी भावना से खेलता है तब हार-जीत पर सबको एक समान खुशी या दुःख होता है।

प्रश्न 4. दोस्त, खेल में इतना गुस्सा अच्छा नहीं लगताऐसा ध्यानचंद क्यों कहा?

उत्तर- पट्टी बाँधवाने के बाद पुनः मैदान वापस आने पर ध्यानचंद ने एक के बाद एक छः गोल करके विरोधी दल को हरा दिया। इसके बाद ध्यानचंद ने उस खिलाड़ी को पीठ थपथपाते हुए कहा कि मैंने अपना बदला ले लिया। यदि तुम मुझे नहीं मारते तो शायद मैं तुम्हें दो गोल से ही हराता। ध्यानचंद ने उसे शर्मिंदा करने तथा खेल भावना की सीख देने के लिए ऐसा कहा था।

प्रश्न 5. ध्यानचंद को कब से हॉकी का जादूगरकहा जाने लगा?

उत्तर- ध्यानचंद को सन् 1936 में बर्लिन में खेले गए ओलम्पिक खेल से प्रभावित होकर लोगों द्वारा इन्हें ‘हॉकी का जादूगर‘ कहा जाने लगा। कारण था कि इनके खेल में अद्भुत भावना थी। इसी टीम-भावना ने दुनिया के खेल-प्रमियों का दिल जीत लिया।

पाठ से आगे:

प्रश्न 1. अगर ध्यानचंद हॉकी नहीं खेलते तो वो क्या कर रहे हाते ?

उत्तर- अगर ध्यानचंद हॉकी नहीं खेलते तो वह भी अन्य लोगों की भाँति अपनी आजीविका चलाने के लिए खेती, नौकरी अथवा व्यसाय कर रहे होते, क्योंकि परिवार का खर्च वहन के लिए मनुष्य को कोई-न-कोई काम करना ही पड़ता है।

प्रश्न 2. ध्यानचंद के जगह अगर आप होते तो अपना बदला किस प्रकार लेते ?

उत्तर- ध्यानचंद की जगह मैं होता तो अपना बदला उसी प्रकार लेता जिस प्रकार ध्यान ने यह कहकर उस खिलाड़ी को भयभीत कर दिया कि ‘मैं इसका बदला जरूर लुँगा‘। यह सुनकर विपक्षी दल के उस खिलाड़ी के मन में भय बन गया कि खेलने के दौरान ध्यानचंद कभी हॉकी मार सकते हैं। इसलिए उसका ध्यान खेल से अधिक आत्मरक्षा लगा रहा और ध्यानचं ने उसकी कमजोरी लाभ उठाते हुए छः गोल कर दिए। ध्यानचंद ने विपक्षी दल को हराकर अपने पर मार का बदला लिया था।

प्रश्न 3. खेलते समय नोंक-झोंक क्यों हो जाती है?

उत्तर- खेलते समय नोंक-झोंक इसलिए हो जाती है, क्योंकि हर दल के खिलाड़ी अपनी टीम की जीत के लिए हर प्रकार के प्रयास करते हैं। इसी प्रयास के क्रम में गलती हो जाया करती है। इसी गलती के उद्भेदन पर नोंक-झोंक होती है।

प्रश्न 4. विजेता बनने के लिए मनुष्य में क्या-क्या गुण होने चाहिए।

उत्तर-विजेता बनने के लिए मनुष्य में लगन, साधना था खेल-भावना जैसे गुण होना चाहिए।

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BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 3 चिड़िया

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3.चिड़िया
(आरसी प्रसाद सिंह)
सप्रसंग व्याख्या/आश्य

चिड़िया बैठी प्रेम-प्रीति की,

रीति हमें सिखलाती है।

वह जग के बंदी मानव को

मुक्ति-मंत्र बतलाती है।

व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ कविवर आरसी प्रसाद सिंह द्वारा रचित कविता ‘चिड़िया‘ शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि ने लोगों को प्रम के साथ रहने के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।

कवि का कहना है कि चिड़िया हमें हर मानव से प्रम करने की सलाह देती है तथा अपने समान सारे बंधनों को तोड़कर स्वतंत्रतापूर्वक जीने का संदेश देती है। कवि चिड़िया के माध्यम से यह बताना चाहता है कि पराधीनता से बढ़कर कोई दुःख नहीं है। इसलिए सारे देशवासी संगठित होकर परतंत्रता के बंधन से मुक्त होने का प्रयास करें और पक्षियों की भाँति स्वच्छंद होकर विचरण करें।

वे कहते हैं- मानव! सीखो,

तुम हमसे जीना जग में।

हम स्वच्छन्द और क्यों तुमने

डाली है बेड़ी पग में।

आशय- प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि आरसी प्रसाद सिंह द्वारा लिखित ‘चिड़िया‘ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं। इनमें कवि ने चिड़िया के माध्यम से मानव-समाज को यह संदेश दिया है कि मानव स्वार्थ के कारण गुलाम है। मानव को स्वार्थ त्यागकर पक्षी की भाँति मिलजुलकर स्वतंत्र वातावरण में जीने का प्रयास करना चाहिए। वे स्वार्थ के कारण लड़ते-झगड़ते हैं और फिरंगियों के गुलाम बने हुए हैं।

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BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 2 असलील चित्र  (कहानी)

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2. असली चित्र  (कहानी)

पाठ का सरांश-प्रस्तुत कहानी ‘असली चित्र‘ एक कंजूस सेठ की कहानी है। दक्षिण भारत में कृष्णदेव राय नाम के एक राजा थे। उनके राज्य में एक महाकंजूस सेठ राजा था। उसके पास अपार धन था, लेकिन कंजूसी के कारण वह एक पैसा भी खर्च करना नहीं चाहता था एकबार उसके मित्रो ने उसे एक कलाकार से अपना चित्र बनवाने को तैयार कर लिया। चित्रकार ने पुरी तत्परता से उसका चित्र बनाकर उसके सामने प्रस्तुत किया। चित्रकार ने अपने पारिश्रमिक के रूप में उस सेठ से एक सौ स्वर्ण मुद्राएँ माँगी। स्वर्णमुद्रा का नाम सुनते ही सेठ का कलेजा बैठ गया। उसने पैसे न देने के लिए अपना चेहरा बदलकर चित्रकार के समक्ष उपस्थित हुआ। इस प्रकार चित्रकार उसका चित्र बनाकर लाता था और वह हर बार अपना चेहरा बदल लेता था, क्योंकि सेठ चेहरा बदलने में निपुण था। सेठ इस व्यवहार से तंग आकर चित्रकार बनाया हुआ उसका चित्र लेकर वापस चला गया।

दुसरे दिन चित्रकार पुनः एक नया चित्र बनाकर लाया जो पिछले दिन के चेहरे से बिल्कुल मिलता था। तब सेठ ने अपना चेहरा फिर बदल लिया। चित्रकार उसकी इस कलाकारी से हतप्रभ हो गया। उसकी समझ में नहीं आया कि आखिर उससे भूल कहाँ हुई, इसलिए उसने पुनः चित्र बनाने का निर्णय किया। लेनि अगले चित्र के साथ भी वही हुआ जो पहले हुआ था। इस प्रकार वह कई दिनों तक नया-नया चित्र बनाता रहा और सेठ अपनी कलाकारी से उसे लज्जित करता रहा।

चित्रकार सेठ की इस चालाकी को भाँप गया कि वह अपनी कंजूसी के कारण कुछ भी देना नहीं चाहता है। अपनी मेहनत बेकार साबित होते देखकर उसने तेनालीराम से अपनी समस्या के समाधान लिए राय ली। तेनालीराम ने उसे आईना लेकर सेठ के पास जाने की सलाह दी तथा यह कहने को कहा कि आज आपका बिल्कुल सही चित्र लेकर आया हूँ, खुब मिलाकर देख लें। बस इतना भर करो और तुम्हारा काम चाँदी। अगले दिन चित्रकार तेनालीराम के कथानुसार आईना लेकर गया। आईना देखते ही सेठ बौखलाकर बोला, ‘‘अरे‘ यह चित्र कहाँ है ? यह तो आईना है। ‘‘ चित्रकार जवाब देते हुए कहा-सेठजी महाराज, आईना के सिवा आपकी असली सुरत और कौन बना सकता है ? अतएव मेरे चित्रों की कीमत एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ तुरंत दे दें। चित्रकार के इस उत्तर से समझ गया की यह तेनालीराम के सुझ है, इसलिए वह बिना किसी विलम्ब के एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ तेनालीराम के सामने प्रस्तुत कर दी। राजा को जब इस बात की जानकारी मिली तो वह हँसते-हँसते लोट-पोट हो गए।

अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

 प्रश्न 1. यह कहानी आपको कैसी लगी? इस संदर्भ में आप अपना तर्क (विचार) प्रस्तुत करें।

उत्तर- यह एक मनोरंजक कहानी है। इसमें एक कंजुस की चालाकी तथा तेनालीराम कि सूझ-बूझ का वर्णन है। कहानी आरंभ से ही पाठको के मन में जिज्ञासा जगाती है कि आखिर होता क्या है ? लेकिन तेनालीराम की सूझ-बूझ के समक्ष कंजूस सेठ को झुकना पड़ता है और स्वर्ण मुद्राएँ देनी पड़ती है। जिज्ञासाप्रधान होने के कारण कहानी पाठकों को विशेष आनन्द प्रदान करती है।

प्रश्न 2 इस कहानी का कौन-पात्र अच्छा लगा और क्यों ?  

उत्तर- ऐसे कहानी मनोरंजक एवं जिज्ञासा प्रधान है। इसके सभी पात्र अच्छे हैं। लेकिन तेनालीराम इस कहानी का ऐसा पात्र है जिसकी सूझ-बूझ के कारण कंजूस सेठ को अपनी कंजूसी का त्याग करना पड़ता है। और चित्रकार को उसके परिश्रम का पुरस्कार मिलना संभव होता है। यदि तेनालीराम नहीं होता तो कहानी का अन्त दुःखदायी होता। इसलिए तेनालिराम सबसे अच्छा पात्र लगा।

प्रश्न 3 तेनालीराम इस घाटना की खबर राजा को दी तो क्या हुआ?

उत्तर- इस घाटना की खबर तेनालीराम ने जब राजा को दी तो वे हँसते-हँसते लोट-पोट हो गए ।

प्रश्न 4. ‘‘एक कौड़ी खर्च करने में उसकी जान निकलती थी।‘‘ इस वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर-प्रस्तुत कहानी के माध्यम से कहानीकार ने यह स्पष्ट करना चाहता है कि कंजूस अपनी कंजूसी के कारण सम्पन्न होते हुए भी उपहास का पात्र बना रहता है। सभी उसे हेय दृष्टि से देखते हैं। उसका कहना होता है-‘‘चमड़ी जाय तो जाय पर दमड़ी न जाए।‘‘ इसलिए उसे एक कौड़ी भी खर्च करने में जान निकलने लगती है। प्रस्तुत कहानी का कंजूस सेठ भी एक ऐसा ही व्यक्ति है जो पैसे खर्च करने के नाम पर काँपने लगता है।

प्रश्न 5. रिक्त स्थानों को भरें:

(क) कंजूस सेठ ने चित्रकार से…………..देने का वादा किया।

(ख) यह कहानी राजा…………..के राज्य की है।

(ग) चित्रकार ने…………..से सलाह ली।

(घ) अंतिम दिन चित्रकार…………….लेकर सेठ के पास पहुँचा।

(ङ) तेनालीराम राजा कृष्णदेव राय के दरबार में…………….थे।

उत्तर- (क) उसके चित्र सौ स्वर्ण मुद्राएँ, (ख) कृष्णदेव राय, (ग) तेनालीराम, (घ) तेनालीराम के कहे अनुसार आईना, (ङ) विदूषक।

पाठ से आगे:

प्रश्न 1 चित्रकार के जगह आप हाते तो क्या करते ?

उत्तर- चित्रकार के जगह मैं होता तो वहीं करता जो चित्रकार ने किया। मैं भी तेनालीराम जैसे व्यक्ति के परामर्शानुसार काम करता, ताकि अपने परिश्रम का फल मिले और कंजूस सेठ को अपनी चालाकी का फल मिले।

प्रश्न 2. गप्प लगाने से नुकसान ज्यादा होता है या फायदा ? पाँच वाक्यों में लिखिए।

उत्तर- ‘गप्प लगाने‘ का अर्थ  बातचीत करना होता है, लेकिन यह बातचीत उद्देश्यपूर्ण न होकर निरूद्देश्यपूर्ण होती है। ऐसी बातचीत में समय की बर्बादी होती है। साथ ही, बेकार की बातें करने तथा सुनने से मन ऊब जाता है अतः गप्प लगाने से नुकसान ही होता है। फायदे की उम्मीद नहीं के बराबर होती है।

प्रश्न 3 बार-बार कंजूस सेठ द्वारा अपना चेहरा बदल लेने के बाद चित्रकार को सलाह किसने दी ? दी गई सलाह को कैसी लगी ? इस संदर्भ में अपनी राय दीजिए।

उत्तर- बार-बार कंजूस सेठ द्वारा अपना चेहरा बदल लेने के बाद चित्रकार को तेनालीराम ने सलाह दी। चित्रकार कंजूस सेठ के व्यवहार से क्षुब्ध हो गया था। उसे ऐसा प्रतीत होने लगा था कि उसका सारा परिश्रम व्यर्थ चला जाएगा, क्योंकि कंजूस हर बार अपना चेहरा बदल लेता था। लेकिन तेनालीराम की बुद्धिमता के सामने कंजूस सेठ को हार माननी पड़ी तथा चित्रकार को एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ देनी पड़ी। तेनालीरा की सलाह अति चतुराईपूर्ण थी। इसी सलाह के कारण चित्रकार की समस्या का समाधान हो सका।

प्रश्न 1. दिए गए शब्दों को संज्ञा के विभिन्न भेदों में छाँटकर लिखें। कृष्णदेव राय, चित्रकार, तेनालीराम, पानी, आईना, लोग, कंजूसी, दुध, ईमानदारी, गाय, पढ़ाई, वर्ग, हिमालय, मेला,

उत्तर: जातिवाचक संज्ञा -चित्रकार, आईना, लोग, गाय।

व्यक्तिवाचक संज्ञा -कृष्णदेव राय, तेनालीरा, हिमालय।

भाववाचक सेज्ञा -कंजूसी, ईमानदारी।

द्रव्यवाचक संज्ञा -पानी, दुध, चीनी, स्वर्ण मुद्रा।

समूहवाचक संज्ञा -वर्ग, मेला।

संकेत: ‘पढ़ना‘ क्रिया है।

प्रश्न 2 इन मुहावरों का वाक्य में प्रयोग करें:

पानी-पानी होना, काम चाँदी होना, हँसते-हँसते लोट-पोट होना,

हिम्मत हारना, भौंचक रह जाना।

उत्तर:

पानी-पानी होना (लज्जित होना)-सच्चाई प्रकट होने पर राजू पानी-पानी हो गया।

काम चाँदी होना (काम में सफल होना)-नौकरी मिलते ही मोहन का काम चाँदी हो गया।

हँसते-हँसते लोट-पोट होना (खूब हँसना)-बच्चे की बात सुनकर सभी हँसते-हँसते लोट-पोट हो गए।

हिम्मत हारना (पस्त होना, साहस खोना)-परीक्षा में फेल होते-होते अन्तत: वह हिम्मत हार बैठा।

भौंचक रह जाना (आश्चर्यचकित होना)-गणेश अपने छोटे भाई की करतूत सुनकर भौंचक रह गया।

प्रश्न 3 इनके विपरीतार्थक शब्द लिखिए:

अपार, नया, समझ, देर, सही।

उत्तर: शब्द          विपरीतार्थक शब्द

अपार          सीमित

नया            पुराना

निराशा          आशा

समझ           नासमझ

देर              सवेर, शीघ्र

सही             गलत

प्रश्न 4. निम्न शब्दों से वाक्य बनाएँ:

चित्रकार, पत्रकार, कलाकार, सलाहकार, नाटकार।

उत्तर: चित्रकार = राम एक अच्छा चित्रकार है।

पत्रकार = मोहन एक अच्छा पत्रकार है।

कलाकार = अच्छे कलाकार सबके प्रिय हो जाते हैं।

सलाहकार = बीरबल अकबर के सही सलाहकार थे।

नाटककार = नाटककार को सरकार ने पुरस्कार दिया।

कुछ करने को: 

1. तेनालीराम की ही तरह बीरबल और गोनू झा के किस्से भी प्रचलित हैं। अपनी कक्षा में वैसे किस्से सुनाईए।

2. अपने मित्रों के बिच इसी तरह की कोई रोचक कहानी सुनाइए और सुनिए।

3. इस कहानी को एकांकी के रूप में कक्षा में प्रस्तुत कीजिए।

संकेत: इस खंड के तीनों प्रश्नों को छात्र स्वयं करेंगे।

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BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 1 अरमान

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1.अरमान

(1.)जो लोग गरीब भिखारी हैं।,

जिन पर न किसी की छाया है।

हम उनको गले लबगाएँगे,

हम उनको सुखी बनाएँगे।

सप्रसंग व्याख्या-प्रस्तुत पंक्तियाँ रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित कविता ‘अरमान’ से शीर्षक कविता से उद्धृत हैं। इनमें कवि ने अपना हृदयोद्गार प्रकट किया है।

कवि का कहना है कि वह वैसे व्यक्तियों को गले लगाना चाहता है जो सदियों से उपेक्षित, असहाय तथा गरीबी की मार से पीड़ित, दुःखित तथा हताश हैं। वह ऐसे लोगों को सुखी बनाने का निर्णय इसलिए करता है, क्योंकि ऐसे लोगो के विकास के बिना देश का विकास नहीं हो सकता। देश का विकास तभी संमभव है जब सबको समान अवसर मिले। समानता, भ्रातृत्व तथा सहिष्णुता की भावना का विकास हो। कवि के कहने का भाव है कि गरीबों एवं असहायों के उत्थान के बिना हमारी शक्ति बढ़ नहीं सकती। इसलिए हम उन लोगों को ऊपर उठाने का प्रयास करें जो निर्धन एवं निःसहाय हैं।

(2.) रोको मत, आगे बढ़ने दो

आजादी के दीवाने हैं।

हम मातृभूमि की सेवा में,

अपना सर्वस्व लगएँगे।

सप्रसंग व्याख्या-प्रस्तुत पंक्तियाँ पाठ्यपुस्तक किसलय से संकलित रामनरेश त्रिपाठी द्वारा विरचित ‘अरमान‘ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसमें कवि ने वैसे लोगों को सावधान किया है जो आजादी के मार्ग पर चलने वालांे के विरोधी हैं। आजादी के मार्ग में रोड़ा बनकर बाधा डालने का प्रयास करते हैं।

कवि ऐसे लोगों को सतर्क करते हुए संदेश देता है कि ये आजादी के दीवाने हैं। उन्होंने अपनी मातृभूमि की खुशहाली के लिये अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया है। इन्हें कोई भी शक्ति अपने कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं कर सकती। इन्होंने मातृभूमि के उद्धार के लिए ही शरीर धारण किया है, इसलिए इन्हें अपने कर्मपथ पर बढ़ने दो, इनकी राह में रूकावट डालने का प्रयास मत करो। ये मातृभूमि के सच्चे सपूत हैं। कवि ने सच्चे देशभक्तों की विशेषताओं कि ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है।

(3.) हम उन वीरों के बच्चे हैं,

जो धुन के पक्के सच्चे थे।

हम उनका मान बढाएँगे,

हम जग मे नाम कमाएँगे।

सप्रसंग व्याख्या- प्रस्तुत पद्यांश कवि रामनरेश त्रिपाठी द्वारा लिखित कविता ‘आरमान‘ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसमें कवि अपने पूर्वजों की वीरता, धीरता तथा दृढ़ता की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है।

कवि का कहना है कि हम उन वीरों की संतान हैं जिन्होंने अपने प्राण की रक्षा के लिए अपने प्राण दे दिए, लेकिन अपने पथ से विचलित नहीं हुए। उन्होंने अपने शान तथा मान के लिए सर्वस्व का त्याग कर दिया। इसलिए हम भी उनकी यशोगाथा मे चार-चाँद लगाने का प्रयास करेंगे, ताकि पूर्वजों का मान बढ़े और विश्व यह बात स्वीकार करे कि भारतीय त्याग के प्रतिमूर्ति होते हैं। वे मातृभूमि के कल्याण के लिए ही शरीर धारण करते हैं। ऐसी स्थिति में, हमें अपने-आपको कर्तव्यपथ पर आरूढ़ रहने का प्रयास करना चाहिए, ताकि संसार हमें श्रद्धा के दृष्टि से देखता रहे।

अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

प्रश्न 1. प्रस्तुत कविता में गरीबों को गले लगाने एवं सुखी बनाने की बात क्यों की गयी है?

उत्तर- प्रस्तुत कविता में गरीबों को गले लगाने एवं सुखी बनाने की बात इसलिए की गई है क्योंकि इनके विकास के बिना देश का चहुमुखी विकास होना संभव नहीं है। किसी भी समाज अथवा राष्ट्र का विकास तभी होता है जब सारे देशवासी खुशहाल रहते हैं। जब वे भेदभाव से रहित होते हैं।

प्रश्न 2. इस कविता में हारे हुए व्यक्ति के लिए क्या कहा गया है ?

उत्तर- इस कविता में हारे हुए व्यक्ति के मन में उत्साह का संचार करने की बात की गई है। जो हताश-निराश व्यक्ति हैं उन्हें कर्मपथ पर बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाएगा, ताकि वे भी मातृभूमि के उद्धार में सहयोग दे सकें।

प्रश्न 3. इन पंक्तियों के भाव स्पष्ट कीजिए:

रोको मत, आगे बढ़ने दो, आजादी के दीवाने हैं।

हम मातृभूमि की सेवा में, अपना सर्वस्व लगाएँगे।

संकेत: पृष्ट 4 पर व्याख्या संख्या-2 देखें।

प्रश्न 4. बूढ़े और पूर्वजों का मान बढ़ाने के लिए हमें क्या करना चाहिए

उत्तर- बूढ़े और पूर्वजों का मान बढ़ाने के लिए हमें उनके बताए मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए। अपने आन-बान एवं शान के लिए रक्षा के लिए जान की बाजी लागा देनी चाहिए। हमारे पूर्वजों ने प्रण की रक्षा जान देकर की और अमरता प्रप्त की थी। हमें भी वैसा करना चाहिए।

पाठ से आगे:

प्रश्न 1 इस कविता में कौन-सा अंश ज्यादा झकझोरता है ? विवेचन कीजिए।

उत्तर- इस कविता का अंतिम अंश हमें झकझोरता है। यह अंश इस बात का संदेश देता है कि हम उन वीरों की संतान हैं, जिन्होंने अपने निश्चय का पालन दृढ़तापूर्वक किया तथा अपने महान त्याग का परिचय दिया था। फलतः उनकी यशोगाथा सम्पूर्ण संसार में फैल गई और विश्व को यह बात मानने पर मजबूर होना पड़ा कि भारतीय धुन के पक्के तथा दिल के सच्चे होते हैं। अतएव हमें भी अपने पूर्वजों के मान-समान बढ़ाने के लिए उन्हीं के समान त्यागी एवं कर्मठ बनने का प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 2. आपके भी कुछ शौक या अरमान होंगे, उनको पूरा करने के लिए आप क्या करना चाहेंगे ?

उत्तर- मैं एक अच्छा किसान बनना चाहता हूँ। यही मेरा शौक है और अरमान भी। मैं जानता हूँ कि देश में अनाज की भारी कमी हैं। इस कारण सभी कृषि उत्पाद दिनों-दिन महँगे होते जा रहे हैं। मैं समझता हूँ कि यदि सही रूप से देश-सेवक बनना है तो कृषि कार्य से बढ़कर देश सेवा का कोई काम हो ही नहीं सकता। यदि देश में अन्न होगा तभी देश के लोगों का पेट भरने को अन्न मिल सकता है। मेरी समझ में नहीं आता कि सभी लोग डॉक्टर और इंजीनियर ही बन जाएँगे तो कृषि कार्य-कौन करेगा। देश को अन्न कहाँ से मिलेगा। सब्जी कहाँ से मिलेगी। फल कहाँ से मिलेंगे। अतः मेरा दृढ़ विश्वास है कि कृषि कार्य करके ही मैं देश की सेवा कर सकूँगा।

प्रश्न 3. जन्मभूमि या मातृभूमि के प्रति कैसा लगाव होना चाहिए ?

उत्तर- जन्मभूमि या मातृभूमि के प्रति हमरा लगाव माता एवं पुत्र जैसा होना चाहिए। हमें अपनी मातृभूमि को सर्वोपरि मानना चाहिए, क्योंकि मातृभूमि के सम्मान से ही देशवासी का सम्मान बढ़ता है। इसलिए देशवासियों को इसकी सुरक्षा के लिए सदा प्रत्नशील रहना चाहिए।

प्रश्न 4. यदि आप चाहते हैं कि देश आप पर अभिमान करे तो इसके लिए आपको क्या काम करना होगा ?

उत्तर- देश हम पर अभिमान करे, इसके लिए हमें अपना सब कुछ मातृभूमि की बलिवेदी पर अर्पित करना होगा। देश की अस्मिता की रक्षा के लिए जान की बाजी लगानी होगी। हमारा देश सुरक्षित रहे, इसके लिए हमें सदा प्रयत्नशील रहना होगा।

व्याकरण:

प्रश्न 1. (क) रोको, मत जाने दो ।

(ख) रोको, मत जाने दो

उपर्युक्त वाक्यों में अल्पविराम चिह्न का प्रयोग अलग-अलग स्थानों पर हुआ है, जिससे उन वाक्यों का अर्थ बदल गया है। इस प्रकार के कुछ और वाक्य बनाइए

उत्तर- (क) खाओ, मत खाने दो।

(ख) खाओ मत, खाने दो।

(क) गाओ, मत गाने दो।

(ख) गाओ मत, गाने दो।

प्रश्न 2. अर + मान = अपमान । इस उदाहरण के आधार पर माननए शब्द बनाइए।

उत्तर: अप + मान = अपमान

अभि + मान = अभिमान

सम् + मान = सम्मान

बुद्धि + मान = बुद्धिमान

गति + मान = गतिमान

कुछ करने को:

प्रश्न 3 पता कीजिए कि देश के लिए किन-किन लोगों ने अपना सर्वस्व न्योछावर किया ?

उत्तर- देश के लिए महाराणा प्रताप, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, सुभाषचन्द्र बोस, मनमोहन मालवीय, जयप्रकाश नारायण आदि ने अपना सर्वस्व न्योछावर किया।

प्रश्न 2. हर व्यक्ति का अपना कोई-न-कोई अरमान होता है। आप अपने अरमान के बारे में दस पंक्तियों में लिखिए और अपने शिक्षक को सुनाइए।

    संकेत: ये परियोजना कार्य हैं। छात्र स्वयं लिखें।

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Bihar Board Text Book Solution Class 12th and 10th

इस website में हमलोग बिहार बोर्ड के कक्षा 6 से 12 तक के सभी विषयों के हल और Notes को जानेंगे। यह website मुख्‍य रूप से कक्षा 10 और 12 के बोर्ड परीक्षाओं के लिए काफी उपयोगी है। इस website में सभी विषयों के नोट्स के साथ pdf उपलब्‍ध कराया गया है।

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Class 10th Hindi Solutions Notes हिन्‍दी के सम्‍पूर्ण पाठ का व्‍याख्‍या
Bihar Board Class 10th Hindi Solutions गोधूलि भाग 2 गद्य खण्ड

Chapter 1 श्रम विभाजन और जाति प्रथा (निबंध)
Chapter 2 विष के दाँत (कहानी)
Chapter 3 भारत से हम क्या सीखें (भाषण)
Chapter 4 नाखून क्यों बढ़ते हैं (ललित निबंध)
Chapter 5 नागरी लिपि (निबंध)
Chapter 6 बहादुर (कहानी)
Chapter 7 परंपरा का मूल्यांकन (निबंध)
Chapter 8 जित-जित मैं निरखत हूँ (साक्षात्कार)
Chapter 9 आविन्यों (ललित रचना)
Chapter 10 मछली (कहानी)
Chapter 11 नौबतखाने में इबादत (व्यक्तिचित्र)
Chapter 12 शिक्षा और संस्कृति (निबंध)

Bihar Board Class 10th Hindi Godhuli Bhag 2
Bihar Board Class 10th Hindi Solutions गोधूलि भाग 2 पद्य खण्ड

Chapter 1 राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै
Chapter 2 प्रेम अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं
Chapter 3 अति सूधो सनेह को मारग है, मो अंसुवानिहिं लै बरसौ
Chapter 4 स्वदेशी
Chapter 5 भारतमाता
Chapter 6 जनतंत्र का जन्म
Chapter 7 हिरोशिमा
Chapter 8 एक वृक्ष की हत्या
Chapter 9 हमारी नींद
Chapter 10 अक्षर-ज्ञान
Chapter 11 लौटकर आऊँगा फिर
Chapter 12 मेरे बिना तुम प्रभु

Varnika Bhag 2 Hindi Book Solutions
Varnika Bhag 2 Class 10 Hindi Solutions Notes वर्णिका भाग 2 – कक्षा 10 हिन्दी

Chapter 1 दही वाली मंगम्मा (कन्नड़ कहानी)
Chapter 2 ढहते विश्वास (उड़िया कहानी)
Chapter 3 माँ (गुजराती कहानी)
Chapter 4 नगर (तमिल कहानी)
Chapter 5 धरती कब तक घूमेगी (राजस्थानी कहानी)

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Class 10th Sanskrit Solutions Notes संस्‍कृत के सम्‍पूर्ण पाठ का व्‍याख्‍या
Bihar Board Class 10th Sanskrit Solutions संस्‍कृत पीयूषम् द्वितीयो भाग: (भाग 2)

Chapter 1 मङ्गलम् (कल्‍याणकारी/शुभ)
Chapter 2 पाटलिपुत्रवैभवम् (पाटलिपुत्र का वैभव)
Chapter 3 अलसकथा (आलसी की कहानी)
Chapter 4 संस्कृतसाहित्ये लेखिकाः (संस्‍कृत साहित्‍य की लेखिकाएँ)
Chapter 5 भारतमहिमा (भारत की महिमा/बड़ाई)
Chapter 6 भारतीयसंस्काराः (भारतीयों के संस्‍कार)
Chapter 7 नीतिश्लोकाः (नीति संबंधी श्‍लोक)
Chapter 8 कर्मवीर कथाः (कर्मवीर की कहानी)
Chapter 9 स्वामी दयानन्दः (स्‍वामी दयानन्‍द)
Chapter 10 मन्दाकिनीवर्णनम् (मन्‍दाकिनी का वर्णन)
Chapter 11 व्याघ्रपथिककथाः (बाघ और पथिक की कहानी)
Chapter 12 कर्णस्य दानवीरता (कर्ण की दानवीरता)
Chapter 13 विश्वशांतिः (विश्‍व की शांति)
Chapter 14 शास्त्रकाराः (शास्‍त्र रचयिता)

Bihar Board Class 10th Sanskrit Piyusham Bhag 2
Bihar Board Class 10th Sanskrit Solutions संस्‍कृत पीयूषम् द्वितीयो भाग: (भाग 2) (अनुपूरक पुस्तक)

Chapter 1 भवान्यष्टकम्ज (भवानी अष्‍टक)
Chapter 2 यदेवस्य औौदार्यम् (जयदेव की उदारता)
Chapter 3 अच्युताष्टकम् (अच्‍युत अष्‍टक)
Chapter 4 हास्याकाणिकः (हँसाने वाला कथन)
Chapter 5 संसारमोहः (संसार से मोह)
Chapter 6 मधुराष्टकम् (मधुर अष्‍टक)
Chapter 7 भीष्म-प्रतिज्ञा (भीष्‍म की प्रतिज्ञा)
Chapter 8 वृक्षैः समं भवतु मे जीवनम् (संस्‍कृत के समान हो मेरा जीवन)
Chapter 9 अहो, सौन्दर्यस्य अस्थिरता (अहो, सौन्‍दर्य स्थिर नहीं है)
Chapter 10 संस्कृतेन जीवनम् (संस्‍कृत में जीवन)
Chapter 11 पर्यटनम् (पर्यटन)
Chapter 12 स्वामिनः विवेकानन्दस्य व्यथा (स्वामी विवेकानन्‍द की कहानी)
Chapter 13 शुकेश्वराष्टकम् (शुकेश्‍वर अष्‍टक)
Chapter 14 वणिजः कृपणता (बनिया की कँजूसी)
Chapter 15 जयतु संस्कृतम् (संस्‍कृत की जय हो)
Chapter 16 कन्यायाः पतिनिर्णयः (पति के कन्या का निर्णय)
Chapter 17 राष्ट्रस्तुतिः (राष्‍ट्र की प्रार्थना)
Chapter 18 सत्यप्रियता (सत्‍य के प्रिय)
Chapter 19 जागरण-गीतम् (जागरण गीत)
Chapter 20 समयप्रज्ञाः (समय की पहचान)
Chapter 21 भारतभूषा संस्कृतभाषा (भारत की शोभा संस्‍कृत भाषा है)
Chapter 22 प्रियं भारतम् (प्रिय भारत)
Chapter 23 क्रियताम् एतत् (ऐसा करें)
Chapter 24 नरस्य (नर का)
Chapter 25 धुवोपाख्यानत् (ध्रुव की कहानी)

Class 10th Social Science Solutions Notes सामाजिक विज्ञान प्रत्‍येक पाठ की सम्‍पूर्ण जानकारी
Bihar Board Class 10th Social Science History All Topics Notes
Bihar Board Class 10th History Solution इतिहास की दुनिया : भाग 2

Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद
Chapter 2 समाजवाद एवं साम्यवाद
Chapter 3 हिन्द-चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन
Chapter 4 भारत में राष्ट्रवाद
Chapter 5 अर्थव्यवस्था और आजीविका
Chapter 6 शहरीकरण एवं शहरी जीवन
Chapter 7 व्यापार और भूमंडलीकरण
Chapter 8 प्रेस-संस्कृति एवं राष्ट्रवाद

Bihar Board Class 10th Social Science Geography All Topics Notes
Bihar Board Class 10th Social Science Geography Solutions भारत : संसाधन एवं उपयोग (खण्ड-क)

Chapter 1 भारत : संसाधन एवं उपयोग
Chapter 1 (क) प्राकृतिक संसाधन
Chapter 1 (ख) जल संसाधन
Chapter 1 (ग) वन एवं वन्य प्राणी संसाधन
Chapter 1 (घ) खनिज संसाधन
Chapter 1 (ङ) शक्ति (ऊर्जा) संसाधन
Chapter 2 कृषि
Chapter 3 निर्माण उद्योग
Chapter 4 परिवहन, संचार एवं व्यापार
Chapter 5 बिहार : कृषि एवं वन संसाधन
Chapter 5 (क) बिहार : खनिज एवं ऊर्जा संसाधन
Chapter 5 (ख) बिहार : उद्योग एवं परिवहन
Chapter 5 (ग) बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण
Chapter 6 मानचित्र अध्ययन (उच्चावच निरूपण)

Bihar Board Class 10th Social Science Disaster Management Solutions आपदा प्रबन्धन (खण्ड-ख)

Chapter 1 प्राकृतिक आपदा : एक परिचय
Chapter 2 प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन : बाढ़ और सुखाड़
Chapter 3 प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन : भूकंप एवं सुनामी
Chapter 4 जीवन रक्षक आकस्मिक प्रबंधन
Chapter 5 आपदा काल में वैकल्पिक संचार व्यवस्था
Chapter 6 आपदा और सह-अस्तित्व

Bihar Board Class 10th Social Science Political Science All Topics Notes & Solutions
Bihar Board Class 10th Social Science Political Science Solutions राजनीति विज्ञान : लोकतांत्रिक राजनीति भाग 2

Chapter 1 लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी
Chapter 2 सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली
Chapter 3 लोकतंत्र में प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष
Chapter 4 लोकतंत्र की उपलब्धियाँ
Chapter 5 लोकतंत्र की चुनौतियाँ

Class 10th Social Science Economics Solutions All Topics Notes
Bihar Board Class 10th Social Science Economics Solutions : हमारी अर्थव्यवस्था भाग 2

Chapter 1 अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास
Chapter 2 राज्य एवं राष्ट्र की आय
Chapter 3 मुद्रा, बचत एवं साख
Chapter 4 हमारी वित्तीय संस्थाएँ
Chapter 5 रोजगार एवं सेवाएँ
Chapter 6 वैश्वीकरण
Chapter 7 उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण

Class 12th English Solution Rainbow Part 2 Notes हिन्‍दी के सम्‍पूर्ण पाठ का व्‍याख्‍या
Bihar Board Class 12th English Solution Notes Rainbow Part 2 in Hindi 100 Marks
Class 12 Rainbow Part 2 English Solutions Prose Section

Chapter 1 Indian Civilization and Culture
Chapter 2 Bharat is My Home
Chapter 3 A Pinch of Snuff
Chapter 4 I Have a Dream
Chapter 5 Ideas that have Helped Mankind
Chapter 6 The Artist
Chapter 7 A Child Born
Chapter 8 How Free is the Press
Chapter 9 The Earth
Chapter 10 India Through a Traveller’s Eyes
Chapter 11 A Marriage Proposal

Class 12 Rainbow Part 2 English Solutions Poetry Section

Chapter 1 Sweetest Love I do not Goe
Chapter 2 Song of Myself
Chapter 3 Now the Leaves are Falling Fast
Chapter 4 Ode to Autumn
Chapter 5 An Epitaph
Chapter 6 The Soldier
Chapter 7 Macavity : The Mystery Cat
Chapter 8 Fire-Hymn
Chapter 9 Snake
Chapter 10 My Grandmother’s House

Class 12th Hindi Solution Notes हिन्‍दी के सम्‍पूर्ण पाठ का व्‍याख्‍या
Bihar Board Class 12th Hindi Solution Notes with Lecture गद्य खण्ड

Chapter 1 बातचीत
Chapter 2 उसने कहा था
Chapter 3 संपूर्ण क्रांति
Chapter 4 अर्द्धनारीश्वर
Chapter 5 रोज
Chapter 6 एक लेख और एक पत्र
Chapter 7 ओ सदानीरा
Chapter 8 सिपाही की माँ
Chapter 9 प्रगीत और समाज
Chapter 10 जूठन
Chapter 11 हँसते हुए मेरा अकेलापन
Chapter 12 तिरिछ
Chapter 13 शिक्षा

Bihar Board Class 12th Hindi Digant Bhag 2 Solutions Notes with Lecture पद्य खण्ड

Chapter 1 कड़बक
Chapter 2 सूरदास के पद
Chapter 3 तुलसीदास के पद
Chapter 4 छप्पय
Chapter 5 कवित्त
Chapter 6 तुमुल कोलाहल कलह में
Chapter 7 पुत्र वियोग
Chapter 8 उषा
Chapter 9 जन-जन का चेहरा एक
Chapter 10 अधिनायक
Chapter 11 प्यारे नन्हें बेटे को
Chapter 12 हार-जीत
Chapter 13 गाँव का घर

Class 10th Non Hindi Solution Notes हिन्‍दी के सम्‍पूर्ण पाठ का व्‍याख्‍या
Bihar Board Class 10th Non Hindi Solution किसलय भाग 3
Kislay Hindi Book Bihar Class 8 Solutions with Notes & Lecture

Chapter 1 तू जिन्दा है तो
Chapter 2 ईदगाह
Chapter 3 कर्मवीर
Chapter 4 बालगोबिन भगत
Chapter 5 हुंडरू का जलप्रपात
Chapter 6 बिहारी के दोहे
Chapter 7 ठेस
Chapter 8 बच्चे की दुआ
Chapter 9 अशोक का शास्त्र-त्याग
Chapter 10 ईर्ष्या : तू न गई मेरे मन से
Chapter 11 कबीर के पद
Chapter 12 विक्रमशिला
Chapter 13 दीदी की डायरी
Chapter 14 पीपल
Chapter 15 दीनबन्धु ‘निराला’
Chapter 16 खेमा
Chapter 17 खुशबू रचते हैं हाथ
Chapter 18 हौसले की उड़ान
Chapter 19 जननायक कर्पूरी ठाकु
Chapter 20 झाँसी की रानी
Chapter 21 चिकित्सा का चक्कर
Chapter 22 सुदामा चरित
Chapter 23 राह भटके हिरन के बच्चे को