2. निम्नलिखित सही वाक्यों के आगे (सही) व गलत वाक्यों के आगे (गलत) का चिह्न लगाओ । (i) तक्षशिला उत्तर-पश्चिम और मध्य के लिए आने-जाने का मार्ग था । (सही) (ii) सम्राट अशोक ने अपने संदेश पुस्तकों में लिखवाए थे । (गलत) (सही यह है कि सम्राट अशोक अपने संदेश शिलापट्टों पर खुदवाए थे ।) (iii) कलिंग बंगाल का प्राचीन नाम था । (गलत) (सही यह है कि कलिंग उड़िसा का प्राचीन नाम था ।) (iv) अशोक के धम्म में पूजा-पाठ करना अनिवार्य था । (गलत) (सही यह है कि अशोक के धम्म में गुरुओं और बड़ों का सम्मान करन अनिवार्य था ।) (v) 1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप नामक अंग्रेज विद्वान ने सर्वप्रथम ब्राम्ही लिपि को पढ़ा । (सही) (vi) अशोक के प्रशासन में प्रांतों को जिलों में बांटा गया था । (सही)
3. निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक वाक्य में दीजिए : (i) सम्राट अशोक की राजधानी कहाँ थी ? (ii) आज कलिंग भारत के किस राज्य में है ? (iii) अशोक के धम्म में निहित एक अच्छी बात को लिखें । (iv) राजस्व संग्रहकर्ता के क्या कांर्य थे ? (v) भारत का राष्ट्रीय चिह्न कहाँ से लिया गया है ? (vi) अशोक के ज्यादातर अभिलेख किस भाषा में लिखे गये हैं ?
उत्तर : (i) सम्राट अशोक की राजधानी पाटलिपुत्र थी । (ii) आज कलिंग भारत के उड़िसा राज्य में है (iii) अशोक के धम्म में निहित एक अच्छी बात है कि अपने बड़ों का आदर करो और उनकी आज्ञाओं का पालन करो । (iv) राजस्व संग्रहकर्ता का कार्य ‘कर’ इकट्ठा करना होता था । (v) भारत का राष्ट्रीय चिह्न सारनाथ के अशोक स्तम्भ से लिया गया है। (vi) अशोक के ज्यादातर अभिलेख पाली भाषा में लिखे गए हैं ।
4. अशोक के धम्म में निहित मानव मूल्यों को लिखें । उत्तर—अशोक के धम्म में निहित मानव मूल्य निम्नलिखित हैं : 1. साम्राज्य में जो अनेक धर्मों को मानने वाले थे, उनके आपसी टकराव को रोकना । 2. पशुबलि को रोकना । 3. दासों और नौकरों कों मालिकों के क्रूर व्यवहार से बचाना । 4. परिवारों के आपसी झगड़े तथा पड़ोसियों के बीच के झगड़ों को रोकना ।
5. आइए चर्चा करें :
प्रश्न (i) अशोक ने अपने विचार प्राकृत भाषा में ही क्यों खुदवाए ? उत्तर – चूँकि उस समय आम लोगों की भाषा प्राकृत भाषा ही थी, इसी कारण अशोक ने अपने विचार प्राकृत भाषा में ही खुदवाए ।
प्रश्न (ii) अशोक के प्रशासन की कौन-कौन सी बातें आज के प्रशासन में भी देखने को मिलती हैं। चर्चा करें । उत्तर—पहले के राजा के स्थान पर आज राष्ट्रपति राज्य के प्रधान हैं । (क) राष्ट्रपति की सहायता के लिए अनेक पदाधिकारी हैं । (ख) कोषाध्यक्ष तो हैं, लेकिन इनका नाम ट्रेजरर है और जहाँ राज्य का खजाना रहता है उसे ट्रेजरी कहते हैं । (ग) समाहर्ता आज भी हैं जो जिलों में रहकर राजस्व का संग्रह करते हैं । (घ) भू-राजस्व आज भी राज्य की आय का प्रमुख स्रोत है (ङ) प्रांत आज भी है लेकिन उन्हें ‘राज्य’ कहा जाता है ।
प्रश्न (iii) अशोक अपने से पहले आने वाले राजाओं से किन बातों में अलग लगता है ? उत्तर—अशोक अपने से पहले आने वाले राजाओं से इन बातों में भिन्न था कि कलिंग युद्ध के बाद वहाँ हुए रक्तपात को देख उसका हृदय परिवर्तन हो गया । अब वह तलवार के स्थान पर धर्म का सहारा लिया। इस प्रकार इसने धर्म प्रचारकों को भेज कर अपने मत का प्रचार किया। अब उसका सारा ध्यान प्रजा के दुःख- सुख की ओर मुड़ गया। बौद्ध धर्म का प्रचार जिनता अशोक काल में हुआ इतना बुद्ध के समय भी नहीं हुआ था ।
6. आइए करके देखें : संकेत : इस खंड के सभी प्रश्नों को शिक्षक की सहायता से छात्रों को स्वयं करना है ।
कुछ विशिष्ट प्रश्न तथा उनके उत्तर
प्रश्न 1. अशोक कौन था ? उत्तर—अशोक एक मौर्यवंशी प्रसिद्ध राजा था। इसके पिता का नाम बिन्दुसार तथा पितामह का नाम चन्द्रगुप्त था। चाणक्य की सहायता से चन्द्रगुप्त ने ही मौर्य वंश की नींव रखी थी।
प्रश्न 2. आप कैसे समझते हैं कि अशोक एक बड़े साम्राज्य का स्वामी बना गया था ? उत्तर — इतिहास में अशोक का ही एक साम्राज्य था, जिसे तीन राजधानियाँ रखनी पडी थीं। मुख्य राजधानी तो पाटलिपुत्र ही थी, लेकिन एक उपराजधानी तक्षशीला और एक उपराजधानी उज्जैन में थी । उपराजधानियों के गवर्नर राजकुमार हुआ करते थे। इसी कारण हम कह सकते हैं कि अशोक एक बड़े साम्राज्य का स्वामी बन गया था।
प्रश्न 3. नज़राना क्या था ? उत्तर—कर के अलावे जो उपहार प्रजा द्वारा या अधीनस्थ राजाओं द्वारा राजा को समर्पित किए जाते थे उसी धन को नजराना कहा जाता था।
प्रश्न 4. अशोक को एक अनोखा राजा क्यों कहा जाता है ? उत्तर—अशोक को एक अनोखा राजा इसलिए कहा जाता है क्योंकि विजय प्राप्ति के बाद भी उसे युद्ध से घृणा हो गई। एक विजयी राजा जिसे विजय पर विजय मिलती जा रही थी, युद्ध से मुँह मोड़कर धर्म के प्रचार-प्रसार में लग गया। वह चाहता तो साम्राज्य को और विस्तृत कर सकता था, लेकिन यह नहीं कर वह धर्म के प्रचार में लग गया।
प्रश्न 5. धम्म के प्रचार के लिए अशोक ने किन साधनों का प्रयोग किया ? उत्तर—धम्म के प्रचार के लिए अशोक ने ‘धम्म – महामात’ नामक अधिकारियों की नियुक्ति की । इनका काम था कि ये घूम-घूमकर लोगों को धम्म की शिक्षा दें । उसने धम्म से सम्बद्ध अपने संदेशों को शिलाओं और स्तम्भों पर खुदवा कर जहाँ- तहाँ स्थापित करवाया। अधिकारियों का कर्त्तव्य था कि वे संदेशों को, जो पढ़ नहीं सकते थे, उन लोगों को पढ़कर सुनाएँ और समझाएँ ।
प्रश्न 6. आपके अनुसार दासों और नौकरों के साथ बुरा व्यवहार क्यों किया जाता होगा ? क्या आपको लगता है कि सम्राट के आदेशों से उनकी स्थिति में सुधार हुआ होगा। अपने जवाब के लिए कारण बताइए । उत्तर – मेरे विचार से जो दास या नौकर ठीक ढंग से काम नहीं करते होंगे या मालिक के आदेशों की अवहेलना करते होंगे उन्हीं के साथ बुरा व्यवहार किया जाता होगा, सबके साथ नहीं। सम्राट के आदेश से उनकी स्थिति में कुछ सुधारतो हुआ होगा, लेकिन पूर्णतः रुका नहीं होगा। मैं ऐसा उत्तर इस कारण दे रहा हूँ कि आज भी जो अधिकार संविधान ने हमें दे रखे हैं उनका लाभ कमजोर वर्ग तक नहीं पहुँच पाता है। यही स्थिति उस समय भी होगी । सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के दासों और नौकरों को राजा के निषेधाज्ञा के बावजूद सताया जाता होगा।
प्रश्न 7. मौर्य साम्राज्य में विभिन्न काम-धंधों में लगे हुए लोगों की सूची बनाइए । उत्तर – मौर्य साम्राज्य में विभिन्न काम-धंधों में लगे लोगों की सूची : (i) किसान और पशुपालक (गाँवों में रहते थे) (ii) शिकारी तथा फल-फूल संग्राहक (जंगलों में रहते थे) (iii) व्यापारी (नगरों में रहते थे) (iv) शिल्पी या शिल्पकार (नगरों में रहते थे) (v) सरकारी कर्मचारी, (राज्य भर में फैले होते थे ।) मुख्य अधिकारी राजधानियों में रहते थे।
प्रश्न 8. यदि आपके पास अपना अभिलेख जारी करने की शक्ति होती तो आप कौन-सी चार राजाज्ञाएँ देते ? उत्तर – यदि मुझे अभिलेख जारी करने की शक्ति होती तो मैं निम्नलिखित चार राजाज्ञाएँ जारी करता : (i) राज्य में रहने वाले सभी लोगों को रोजगार मुहैया कराया जाय, जिससे वे अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकें। (ii) हर तरह की शिक्षा प्रदान करने की पर्याप्त व्यवस्था हो । (iii) पूरे देश में सड़कों का ऐसा जाल हो जो छोटे-छोटे गाँवों तक को नगरों से जोड़ सकें। (iv) हर राज्य में रोजगार की ऐसी व्यवस्था रहे कि लोगों को इसके लिए अन्य राज्यों में कम-से-कम भटकना पड़े।
Bihar Board Class 6 Social Science नये प्रश्न, नवीन वचिार Text Book Questions and Answers Naye Prashn, Naye Vichar Class 6th Solutions
8. नये प्रश्न, नवीन वचिार
अभ्यास : प्रश्न तथा उनके उत्तर
■ आइए याद करें : 1. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
(क) गौतम बुद्ध का जन्म कब हुआ था ? (i) 563 ई० पू० . (ii) 463 ई० पू० (ii) 540 ई० पू० (iv) 551 ई० पू०
(ख) जैन धर्म के संस्थापक कौन थे ? (i) पार्श्वनाथ (ii) ऋषभदेव (iii) महावीर (iv) गौतमबुद्ध
(ग) महावीर ने कब निर्वाण (निधन ) प्राप्त किया ? (i) 438 ई० पू० (ii) 468 ई० पू० (iii) 322 ई० पू० (iv) 298 ई. पू.
(घ) जल मंदिर कंहाँ अवस्थित है ? (i) पावापुरी (ii) राजगृह (iii) नालन्दा (iv) वैशाली
उत्तर—(क) → (i), (ख)→ (ii), (ग)→(ii), (घ)→(i).
2. खाली स्थानों को भरिए : (i) महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया । यह घटना …………… कहलाती है । (ii) बुद्ध ने जीवन जीने के लिए …………अपनाने की सलाह दी । (iii) नचिकेता की कहानी …………….से ली गई है । (iv) उपनिषदों में …………….. विषयों पर चर्चा मिलती है (v) महावीर के लिए ……………… शब्द का प्रयोग हुआ है (vi) बौद्ध और जैन संघों के अनुयायी ………………… मांग कर खाते थे ।
उत्तर : (i) धर्म चक्र प्रवर्तन, (ii) अष्टांगिक मार्ग या मध्यम मार्ग, (iii) कठोपनिषद, (iv) दार्शनिक, (v) जिन, (vi) भिक्षा ।
3. निम्नलिखित का उचित मिलान कीजिए । (i) बोधगया (क) बौद्ध धर्म का अनुयायी (ii) गार्गी (ख) उपनिषद् (iii) त्रि-रत्न (ग) एक प्रमुख स्त्री विचारक (iv) विचारों का संकलन (घ) जैन धर्म (v) बिम्बिसार (ङ) महात्मा बुद्ध
प्रश्न 4. गौतम बुद्ध के अनुसार दुःख क्यों होता है ? उत्तर — गौतम बुद्ध के जो वृद्धि है। एक इच्छा की पूर्ति के बाद मनुष्य और की कामना करने लगता है, अनुसार, दुःख का कारण इच्छाओं और लालसाओं की गलत है। उन्होंने ऐसी इच्छा को तृष्णा कहा है ।
प्रश्न 5. महावीर के उपदेशों को लिखें । उत्तर : महावीर के मुख्य उपदेश निम्नलिखित हैं : (i) सत्य जानने की इच्छा रखने वालों को अपना घर छोड़ देना चाहिए, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री । (ii) अहिंसा के नियमों का पालन कड़ाई से करना चाहिए । (iii) किसी भी जीव की न तो हत्या करनी चाहिए और न उसे कोई कष्ट देना चाहिए । (अहिंसा का यही मूलमंत्र है ) (iv) महावीर का मानना था कि सभी जीव जीना चाहते हैं और सभी को अपना जीवन प्रिय है ।
प्रश्न 6. उपनिषद में किन विचारों का उल्लेख है ? उत्तर—उपनिपदों के विचारक कठिन प्रश्नों का उत्तर देना चाहते थे । उनका मानना था कि विश्व में कुछ तो ऐसा है, जो कि स्थायी है और मृत्यु के बाद भी बचा रहता है । वास्तव में ये मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में जानना चाहते थे । इन्हीं में कुछ यज्ञों की उपयोगिता पर विचार करना चाहते थे । अंततः इन्होंने सिद्ध किया कि आत्मा और ब्रह्म में कोई अंतर नहीं है। ये एक ही हैं। इसी को ‘अद्वैतवाद’ कहा जाता है ।
बातचीत कीजिए / आइए चर्चा करें :
प्रश्न 7. क्या वास्तव में बुरे या अच्छे काम से कोई अंतर नहीं पड़ता है ? आप अपने आस-पास के उदाहरणों को ध्यान में रखकर चर्चा कीजिए । उत्तर— नहीं, किसी भी तरह विचारें तो अच्छे काम और बुरे काम में अन्तर पड़ता है । कोई बबूल बोकर आम की इच्छा करे, यह उसकी नादानी है। आम के लिए आम ही बोना पड़ेगा। लेकिन लोगों में स्वार्थ की प्रवृत्ति इतनी अधिक हो गई है कि सब जानते – बूझते हुए भी क्षणिक लाभ के लिए गलत काम कर बैठते हैं । इसका कारण धर्म का कुछ अवसान भी है और लोगों में आवश्यकता की वृद्धिं भी है । अफसर करोड़ों-करोड़ घुस में लेते हैं और सम्पत्ति एकत्र करते हैं । और अचानक एक दिन निगरानी विभाग का छापा पड़ता है, तब सब चल और अचल सम्पत्ति राज्य के खजाने में चली जाती है। अफसर ऐसा होते रोज देखते हैं, फिर भी घुसखोरी करते हैं। लगता है घुसखोरी वायरस की बीमारी की तरह फैल गई है।
कुछ करके देखिए / आओ करके देखें ।
प्रश्न 8. कुछ ऐसे विचारों का पता लगाइये जिन्होंने सुख सुविधाओं का त्याग कर समा के लोगों को एक नई दिशा दी ।
प्रश्न 9. उपद् में वर्णित कुछ ऐसी कहानियाँ का संकलन करें जिनके प्रमुख पात्र आके जैसा कोई बालक था ।
संकेत: दोनों प्रश्नों के उत्तर छात्रों को शिक्षक से मिलकर स्वयं करना है।
कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न तथा उनके उत्तर
प्रश्न 1. बुद्ध कौन थे और उनका पहला नाम क्या था ? उत्तर – बुद्ध एक शक्यवंशी राजा के पुत्र थे। इनका पहला नाम गौतम था ।
प्रश्न 2. गौतम को क्यों गृहत्याग करना पड़ा ? उत्तर— गौतम सत्य की खोज करना चाहते थे। ये चाहते थे कि पता चले कि मोक्ष की प्राप्ति कैसे हो सकती है।
प्रश्न 3. गौतम को कहाँ पर और कैसे ज्ञान प्राप्त हुआ ? उत्तर—गया नगर के निकट एक पीपल वृक्ष के नीचे बैठ कर गौतम ने घोर तपस्या की । शरीर सूखकर हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गया। तभी उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और तबसे वे बुद्ध कहलाने लगे । जिस वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, उसे बोधिवृक्ष कहा जाता है। उस स्थान का नाम बोध गया हो गया।
प्रश्न 4. बुद्ध को किस बात का ज्ञान प्राप्त हुआ ? उत्तर—बुद्ध को मोक्ष प्राप्ति के तरीके का ज्ञान प्राप्त हुआ। इस बात को वे घूम कर उपदेश द्वारा लोगों को समझाने लगे। उनका कहना था कि मोक्ष प्राप्ति का एक ही तरीका है कि जितना अपने पास हो, उतने से ही संतोष प्राप्त किया जाय। झूठ नहीं बोला जाय। किसी भी जीव को सताया नहीं जाय ।
प्रश्न 5. महावीर कौन थे ? इन्होंने किस धर्मे का प्रचार- प्रसार किया ? उत्तर—महावीर जैनों के चौबीसवाँ तीर्थकर थे। इन्होंने जैन-धर्म का प्रचार प्रसार
प्रश्न 6. बौद्ध धर्म और जैन धर्म में क्या अन्तर था ? उत्तर – बौद्ध धर्म सीधा-सादा और सबकी समझ में आने वाला धर्म था। इसलिए इसके समर्थकों की संख्या शीघ्र ही बढ़ गई। जैन धर्म थोड़ा कठिन था । इसलिए यह कुछ व्यापारियों तक ही सीमट कर रह गया।
प्रश्न 7. बौद्ध और जैन धर्म की शिक्षाओं में आप क्या समानता पाते हैं । चर्चा कीजिए । उत्तर— बौद्ध और जैन धर्म की शिक्षाओं में कोई असमानता नहीं है, है तो केवल समानता ही समानता है । अहिंसा, अस्तेय जैसी बातें दोनों में समान हैं। अंतर यह है कि भगवान बुद्ध अपनी शिक्षाएँ विस्तार से दी है जिसे अष्टांगिक मार्ग कहते हैं, वहीं महावीर ने संक्षेप में अपनी शिक्षाओं की बात कही जिसे ‘त्रिरत्न’ कहा जा जाय ।
प्रश्न 8. वैदिक धर्म के रहते हुए बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म फैल गया ? उत्तर—वैदिक धर्म में अनेक रूढियाँ प्रवेश कर गई थीं। ऊँच-नीच और छूआ- छूत का बर्ताव ऐसा था जैसे कि मनुष्य मनुष्य न होकर कोई घृणित है। अश्वमेध यज्ञ में घोड़े को मार दिया जाता था। धीरे-धीरे यज्ञ में पशुबलि की प्रथा इतनी बढ़ गई थी कि कोई गरीब किसी यज्ञ को करने का साहस ही नहीं कर सकता था । पशुबलि से लोग ऊब भी गए थे। इधर बौद्ध धर्म और जैनधर्म किसी जीव को मारना पाप समझता था। ये दोनों धर्म अहिंसा का पालन करने वाले थे। ये छुआ-छूत को भी गलत समझते थे। इस कारण लोग जल्द ही बौद्ध या जैन धर्म से प्रभावित हो जाते थे। वैदिक धर्म छोड़ने वालों और इन दोनों नए धर्मों को मानने वालों की संख्या बढ़ने लगी। इस प्रकार बौद्ध और जैन धर्म का शीघ्र ही फैलाव हो गया।
2. खाली स्थान भरिए : (क) अवन्ति का राजा …………. था । (ख) वज्जि संघ की राजधानी ……………. थी । (ग) पाटलिग्राम की स्थापना …………….. ने की । (घ) नन्दवंश के शासक ………… के समय सिकन्दर का भारत पर आक्रमण हुआ । (ङ) लिच्छवी ………. संघ का एक गण था ।
प्रश्न (क) राजा को कर की क्यों आवश्यकता पडी ? उस काल में कौन- कौन लोग कर चुकाते थे ?
उत्तर- राजा को राज्य की तथा राज्य के निवासियों की सुरक्षा के लिए सेना रखनी पड़ती थी। सेना के बल पर वे अपने शासन क्षेत्र को बढ़ाते भी थे । इसीलिए राजा को कर की आवश्यकता पड़ी। उस काल में कर चुकाने वाले लोग थे : कृषक, व्यापारी, शिल्पकार, प्रकार अन्य तरह से कमाई करने वाले लोग। कहा तो यहाँ तक जाता है कि आखेटक भी कर चुकाते थे ।
प्रश्न (ख) महाजनपदों के राजा अपनी राजधानी की किलाबंदी क्यों करते थे ? उत्तर—महाजनपदों के राजा अपनी राजधानी की किलाबन्दी इसलिए करते थे कि उन्हें सदा डर बना रहता था कि कोई राजा उस पर आक्रमण कर देगा। आक्रमणों से बचने तथा अपनी सुरक्षा के लिए वे राजधानी की किलाबन्दी करते थे ।
प्रश्न (ग) मगध के उत्थान में प्राकृतिक संसाधनों की मुख्य भूमिका क्या थी? उत्तर—वास्तव में मगध के उत्थान में प्राकृतिक संसाधनों की मात्र भूमिक ही नहीं थी, बल्कि महान भूमिका थी। मगध राज्य के उत्तरी भाग में अच्छे प्रकार के लोहे की प्राप्ति होती थी, जिनसे उत्तम स्तर के युद्धक हथियार बनाए जाते थे निकटस्थ जंगलों में बहुतायत से हाथी मिलते थे, जो युद्ध में सहायक होते थे । पाटलिग्राम या पाटलिपुत्र अनेक नदियों के संगम पर बसा था । उत्तर से घाघरा, गंगा, गंडक तथा अनेक छोटी-छोटी नदियाँ पाटलिपुत्र में पहुँचती थीं तो दक्षिण से पुनपुन और सोन अपनी सहायक नदियों के साथ यहाँ गंगा में मिल जाती थीं। इस कारण यह स्थान एक महान ‘पत्तन’ के रूप में विकसित हुआ । इस पत्तन का महत्त्व इतना था कि व्यापारियों ने पूजा के लिए यहाँ ‘पत्तन देंवी’ की स्थापना कर मन्दिर भी बनवा दिया । कालक्रम में ‘पत्तन देवी’, ‘पटन देवी’ हो गईं और इस स्थान का नाम ‘पटना’ पड़ गया । राजा को यहाँ के पतन से कर के रूप में भारी आय होती थी । चारों दिशाओं से व्यापारी अपनी व्यापारिक वस्तुओं के साथ यहाँ पहुँचते थे और खरीद-बिक्री करते थे और राज कर चुकाते थे। इस प्रकार हम देखते हैं मगध के उत्थान में प्रकृति या प्राकृतिक संसाधनों की अहम भूमिका थी ।
प्रश्न (घ) द्वितीय नगरीकरण के विकास पर चर्चा करें । उत्तर – सिंधु सभ्यतावाली प्रथम नगरीकरण के लुप्त हो जाने के बाद लगभग 600 ई. पू. में उत्तर भारत में द्वितीय नगरीकरण के विकास के प्रमाण पालि ग्रंथों में मिलते हैं। लगभग 62 नगरों के प्रमाण मिलते हैं, जिनमें वाराणसी (काशी), वैशाली, चम्पा, राजगृह (राजगीर), कुशीनगर ( कसया), कौशाम्बी, श्रावस्ती, पटलिग्राम (पटना) आदि नगर प्रमुख थे । आर्थिक, धार्मिक और राजनैतिक कारणों से इन नगरों का विकास हुआ, लेकिन धीरे-धीरे । नगरों में शासक अर्थात राजा, राजपदाधिकारी और सैनिकों की प्रधानता थी । नगरों में उपयोगी वस्तुओं का उत्पादन होता है, जिन्हें शिल्पी और कारीगर पूरा करते थे । पुरोहित, व्यापारी, शिल्पकार, मजदूर, सेवक और दासों के मुहल्ले अलग-अलग होते थे ।
4. आइए करके देखें :
प्रश्न (क) प्रश्न 3 (क) के आधार पर यह पता लगायें कि आज लोग किन-किन करों को चुकाते हैं ? उत्तर—आज जो कर दिया जाता है, उसकी सूची निम्नलिखित है : (i) भूमिकर (माल गुजारी), (ii) सिंचाई कर, (iii) शिक्षा कर, (iv) मकान कर, (v) जलकर, (vi) पेशा कर, (vii) बाजार और हाट या मेला पर कर, (viii) पशुओं की खरीद-बिक्री पर कर, (ix) आयकर, (x) आयात और निर्यात कर । अन्यान्य कर जैसे बैंक की बचत खाते में अपना कमाया हुआ और कर दिया हुआ धन रखे हैं, उस पर भी ब्याज कर, ठिकाना नहीं और कौन-कौन कर ?
प्रश्न (ख) “गणराज्यों के शासन में लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। आज के प्रजातंत्र में लोगों की भूमिका से इसकी तुलना करें । उत्तर — वर्तमान में लोकमत की भूमिका पहले से भी अधिक हो गई है। पहले स्त्रियों को ‘मत’ देने का अधिकार नहीं था, किन्तु आज है। आज वे स्वयं भी निर्वाचित होकर सदन की कार्यवाहियों में भाग ले सकती हैं। यदि मतदाता को उसके मन पर छोड़ दिया जाय तो आज लोकमत की भूमिका अति महत्त्वपूर्ण हो गई है ।
2. खाली स्थान भरिये : (क) आर्यों का विस्तार बिहार के …………….. नदी तक था । (ख) सबसे प्राचीन वेद …………. है । (ग) ऋग्वैदिक आर्य ………….. अनाज पैदा करते थे । (घ) इनामगाँव ………… बस्ती है 1 (ङ) वैदिक कबीले के प्रधान को ……….कहा जाता था ।
3. अपने उत्तर ‘हाँ‘ या ‘नहीं‘ में दें । (क) ऋग्वैदिक आर्य पशुपालन करते थे । (हाँ) (ख) आर्यों के जीवन में गाय एवं घोड़ा का महत्त्वपूर्ण स्थान था । (हाँ) (ग) वैदिक क्षेत्र तमिलनाडु तक विस्तृत था । (नहीं) (घ) आर्य लोग नगरों में निवास करते थे । (नहीं) (ङ) इनामगाँव के लोग मृतकों को जला देते थे । (नहीं)
संकेत : (ग) सही यह है कि वैदिक क्षेत्र गंडक नदी तक विस्तृत था । (घ) सही यह है कि आर्य लोग गाँवों में निवास करते थे । (ङ) सही यह है कि इनामगाँव के लोग मृतकों को दफन करते थे ।
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4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए ।
प्रश्न (क) वेदों के नाम लिखिए । उत्तर—वेद चार हैं। उनके नाम हैं (i) ऋग्वेद, (ii) यजुर्वेद, (iii) सामवेद तथा (iv) अथर्ववेद |
प्रश्न (ख) आर्य लोग भारत के किन-किन क्षेत्रों में निवास करते थे? उत्तर- आरंभ में आर्य सप्तसिंधु प्रदेश में रहा करते थे। आज वह क्षेत्र पाकिस्तान तथा पंजाब में है । बाद में संख्या बढ़ने पर ये पूरब की ओर बढ़ते-बढ़ते पूरी गंगा-यमुना की घाटी और दोआब में फैल गए। गंडक नदी तक उनके फैलाव के चिह्न मिलते हैं ।
प्रश्न (ग) उत्तरवैदिककालीन समाज का उल्लेख करें । उत्तर—ऋग्वैदिक काल के आर्यों का आर्थिक जीवन उत्तर वैदिक काल में पूर्णतः बदल गया। पहले जहाँ गाय को धन माना जाता था, अब कृषि कार्य करने के कारण खेत और अन्य पशु भी धन की श्रेणी में आ गए। उत्तर वैदिक काल में ही लोहे का उपयोग आरम्भ हुआ। पहले तो लोहा से युद्धक सामान बने लेकिन तुरंत बाद में कृषि कार्य के लिए औजार, हल, फाल, खुरुपी, हँसिया, कुदाल आदि बनने लगे कृषि कार्य मुख्य पेशा में शुमार था। ये खाद के लिए गोबर का उपयोग करते थे। इन्हें ऋतुओं का अच्छा ज्ञान था और ऋतु के अनुसार ही ये फसल लगाया करते थे । कृषि के अलावा धातु कर्म, धातु शोधन, रथकार, बढ़ई, चर्मकार, स्वर्गकार कुम्हार, व्यापारी आदि उत्तर वैदिक काल के ही देन हैं। उत्तर वैदिक काल के लोग ब्राह्मणों द्वारा प्रतिपादित यज्ञ-अनुष्ठान एवं कर्मकांडीय कृत्य किया करते थे ।
प्रश्न (घ) इनामगाँव के लोग मृतकों का अंतिम संस्कार किस प्रकार करते थे ? प्रकाश डालें । उत्तर—इनामगाँव के लोगों की महत्वपूर्ण पहलू मृतकों को दफन करने का तरीका था। मृत व्यक्ति को मिट्टी के बने संदूक में रखकर मकान के आँगन में ही गाड़ दिया जाता था। मृतकों को दफनाने वाला मकान बहुत बड़ा और बस्ती के बीच में अवस्थित था। मृतकों के साथ संदूक में मिट्टी के बर्तन, खाने-पीने की वस्तुएँ भी रखी जाती थीं। किसी-किसी संदूक से खुदाई के दौरान औजार- हथियार और गहने आदि भी मिले हैं ।
5. आइए चर्चा करें :
प्रश्न 1. आर्य जिन देवताओं की पूजा करते थे, उनकी सूची बनाएँ तथा यह बताएँ कि इनमें किन देवताओं की पूजा आजकल भी की जाती है। उत्तर—आर्य जिन देवताओं की पूजा करते थे, वे थे : (i) इन्द्र, (ii) वरुण, (iii) अदिति, (iv) अग्नि, (v) सोम, (vi) सूर्य तथा (vii) वायु । अदिति का अर्थ पृथ्वी होता हैं । इन मान्य देवताओं में से आज जिनकी पूजा होती है, वे हैं— (i) पृथ्वी, (ii) सूर्य, (iii) अग्नि, (iv) ‘वरुण’ जल के देवता के रूप में पूजे जाते थे, उनके स्थान पर आज ‘गंगा’ तथा सभी नदियों तथा कुओं की पूजा होती है। इनके साथ ही सूर्य तथा समय-समय पर वायु की भी पूजा होती है । तात्पर्य कि जिन प्राकृतिक वस्तुओं मनुष्य को लाभ होता है, वे सभी पूज्य जाने जाते हैं । वृक्ष हमारे जीवन के आधार हैं अतः वृक्षों में पीपल, बरगद, नीम की पूजा इसलिए होती है कि पीपल अधिक कार्बन डाइऑक्साइड का शोषण करता है और अधिक ऑक्सीजन छोड़ता है, ऐसे ही बरगद भी है। नीम वायु को शुद्ध रखता है और अवांछित वायरसों का नाश करता है। ये पूरे भारत में पूजे जाते हैं। स्थानानुसार विष्णु, शिव, शक्ति आदि की पूजा होती है । इनके अलावा असंख्य देवी-देवता पूजित हैं । स्थानानुसार कम, कहीं अधिक ।
प्रश्न 2. ऋग्वैदिक आर्य खेती नहीं करते थे? इसके कारण बताएँ। उत्तर—ऋग्वैदिक आर्य खेती इसलिए नहीं करते थे, क्योंकि वे गांय को ही सर्वस्व मानते थे । उनको चराने के क्रम में एक स्थान पर रुकते नहीं थे । इसी कारण ऋग्वैदिक आर्य कृषि नहीं करते थे फिर भी स्पष्ट नहीं है कि वे खेती नहीं करते थे । ऋग्वेद में एक शब्द ‘यव’ आया है, जिसे ‘जव’ के रूप में जाना गया है। हवन में अनेक वनस्पतियों के साथ ‘जब’ मिलाने की प्रथा थी, जो आज भी जारी है। यह हो सकता है कि वे खेती व्यापक रूप में नहीं, किन्तु अल्प रूप में अवश्य ही करते होंगे ।
6. आइए करके देखें :
प्रश्न 1. धार्मिक पुस्तकों की एक सूची बनायें तथा यह बतायें कि वे किस धर्म से संबंधित हैं ?
उत्तर : पुस्तकें धर्म, जिससे से सम्बद्ध हैं (i) सत्यार्थ प्रकाश : आर्य पद्धति से भटके लोगों को राह दिखाने के लिए (ii) श्रीमद्भगद्गीता : कर्त्तव्य से भागने वालों को नसीहत देने के लिए (iii) श्रीरामचरितमानस : सीता, राम और हनुमान को अपना ईष्ट मानने वालों के लिए (iv) कुरान (हिन्दी में ) : इस्लाम धर्म की संही व्याख्या । (v) बायबिल : ईसाई धर्म की प्रमुख पुस्तक
प्रश्न 2. कुछ ऐसे शब्द लिखें जो दो भाषाओं में समान रूप से उपयोग किये जाते हैं ।
उत्तर : संस्कृत – पितृ, मातृ । हिन्दी — पिता, माता । अंगरेजी – फादर, मदर ।
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कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न तथा उनके उत्तर
प्रश्न 1. पुराने समय में विद्यार्थी किस पद्धति से शिक्षा प्राप्त करते थे ? उत्तर – पुराने समय में विद्यार्थी गुरु के आश्रम में रहकर गुरु के निर्देशन में शिक्षा प्राप्त करते थे । वे सूक्तों को कंठस्थ करते थे । अंत में इन्हें कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ता था । परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर इन्हें घर जाने की अनुमति मिलती थी । वे इतनी जानकरी प्राप्त कर लेते थे कि घर आकर दूसरों को भी पढ़ा सके । शिक्षा प्राप्त युवक आदरणीय माने जाते थे ।
प्रश्न 2. आज जो हम किताबें पढ़ते हैं वह ऋग्वेद से कैसे भिन्न हैं ? उत्तर – आज जो किताबें हम पढ़ते हैं वे पहले हाथ से लिखी जाती हैं और उसके बाद प्रेसों में छापी जाती हैं। लेकिन ऋग्वेद के साथ ऐसी बातें नहीं थीं। ऋग्वेद के सूक्तों को गुरु अपने शिष्यों को कंठस्थ कराते थे। फिर जो लोग कंठस्थ किए रहते थे वे अपनी अगली पीढ़ी को कंठस्थ कराते थे। इस प्रकार यह सुन कर और बोलकर याद किया जाता था न कि पढ़कर। पढ़ना तो तब शुरू हुआ जब उसे पुस्तक के रूप में तैयार किया गया। मात्र आज से दो सौ वर्ष पहले सूक्त पुस्तक के रूप में तैयार किया गया था।
प्रश्न 3. पुरातत्त्वविद् कब्रों में दफनाए गए लोगों के बीच सामाजिक अन्ना का पता कैसे लगाते थे। उत्तर – पहले यह रिवाज था कि मृतक के कब्र में उसकी आवश्यकता की वस्तुएँ . यहाँ तक कि गुलाम भी गाड़ दिए जाते थे। धनी व्यक्ति के कब्र में सोने-चाँदी है बर्तन तक होते थे, वहीं गरीब मृतकों के कब्र में साधारण वस्तुएँ रखी जाती थी बर्तन मिट्टी के हुआ करते थे। इन्हीं वस्तुओं में अन्तर देखकर पुरातत्त्वविद क में दफनाए गए लोगों के बीच सामाजिक अन्तर का पता लगा लेते थे।
प्रश्न 4. एक राजा या रानी का जीवन दास या दासी के जीवन से कैसे भिन्न होता था ? उत्तर—इस काल के राजा और रानी बाद के राजाओं की तरह न तो महलो में रहते थे और न कर वसूलते थे। लेकिन सामान्यत: आराम का जीवन व्यतीत करते थे। दास या दासी को अपने मालिकों के मातहत रहना पड़ता था। उन्हें उन सभी कामों को करना पड़ता था, जो उनके मालिक उनसे कराना चाहते थे।
Bihar Board Class 6 Social Science प्रथम कृषक एवं पशुपालक Text Book Questions and Answers Pratham Krishak Evam Pashupalan Class 6th Solutions
4. प्रथम कृषक एवं पशुपालक
अभ्यास : प्रश्न तथा उनके उत्तर
आइए याद करें : 1. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
(क) सबसे पहले किस जानवर को आदमी ने पालतू बनाया ? (i) कुत्ता (ii) बंदर (iii) गाय (iv) बकरी
(ख) गेहूँ का प्राचीन साक्ष्य कहाँ से प्राप्त हुआ है ? (i) मेहरगढ़ (ii) चिराँद (iii) हल्लूर (iv) पैच्यमपल्ली
(ग) चावल का प्रमाण भारत में कहाँ से मिला है ? (i) कोल्डिहवा (ii) मेहरगढ़ (iii) चिराँद (iv) पैसरा
उत्तर— (क) → (i), (ख) → (i), (ग) → (i).
सुमेलित करें : चिराँद → उत्तर प्रदेश मेहरगढ़ → बिहार बुर्जहोम → पाकिस्तान कोल्डिहवा → कश्मीर उत्तर : चिरांद → बिहार मेहरगढ़ → पाकिस्तान बुर्जहोम → कश्मीर कोल्डिहवा → उत्तर प्रदेश
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आइए करके देखें :
प्रश्न (i) खेती की शुरुआत कैसे हुई ? उत्तर— भोजन की तलाश में शिकारी-संग्रहकर्त्ता मानव बड़े क्षेत्र में घूमा थे । सम्भवतः इसी क्रम में उन्होंने फूलने, फलने और पकने वाले पौधों का ज्ञान हुआ होगा। जमीन पर गिरे बीजों को आरंभिक मानव ने खाने के लिए बटोरा होगा। फिर उन बीजों को बोया होगा। जानवरों तथा चिड़ियों से इन पौधों की रक्षा की होगी। बीज पकने पर उन्हें काटा होगा और पौधों से दानों को अलग किया होगा । ये दाने उनके भोजन के अच्छे स्रोत साबित होने पर बड़े पैमाने पर उनको बोना शुरू किया होगा और इस प्रकार खेती की शुरुआत हुई होगी या हो गई होगी ।
प्रश्न (ii) मानव जीवन में खेती के बाद क्या परिवर्तन आया ? उत्तर—खेती की शुरूआत से मानव-जीवन में यह परिवर्तन आया कि उन्हें अन एक स्थान पर घर बना कर स्थायी रूप से रहना पड़ा । कारण कि फसल बोने और काटने के बीच लगभग छः महीने लग जाते थे। इस बीच खेत की सिंचाई करनी पड़ती थी। खेत में उग आए अवांछित घास-फूस को निकालना पड़ता होगा । जंगली पशुओ और पक्षियों से खेत को बचाने के लिए रखवाली करनी पड़ती होगी। फलतः अब उन्हें एक स्थान पर रहने की मजबूरी आई होगी और वे गाँव बसा कर रहने को विवश हुए होंगे। एक जगह अधिक लोगों का रहना इसलिए भी आवश्यक था कि खेती अकेले का काम नहीं है । इसके लिए समूह में लगना पड़ता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि खेती की शुरुआत से मानव जीवन में यह परिवर्तन आया कि वह गाँव बसा कर एक स्थान पर स्थायी रूप से रहने लगा । पशुपालन तो वह पहले से ही करते आ रहा था। अब गाय, भैंस के साथ बैल और भैंसा की देखभाल भी अच्छी तरह होने लगी ।
प्रश्न (iii) नवपापाणकालीन औजारों की विशेषता क्या थी ? उत्तर— नवपाषाणयुग के औजार थे तो पापाण के ही लेकिन ये पहले से अधिक उपयोगी थे। इनकी विशेषता थी कि इस युग के औजार आकार में छोटे, हल्के, दृढ़, पहले से अधिक धारदार एवं चमकदार थे ।
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आइए चर्चा करें :
प्रश्न (iv) पशुपालन से मानव को क्या-क्या लाभ हुआ? उत्तर – पशुपालन से नवपाषाणकालीन मानव को यह लाभ हुआ कि खेत जोतने के लिए बैल और भैंसा मिल गए। दूध, दही, घी के लिए गाय, भैंस और बकरी मिले। गाय और भैंस के नर बच्चे ही बैल और भैंसा बनते थे । बकरी के बच्चे खस्सी होते थे जिनका मांस बहुत स्वादिष्ट होता था और पचने में आसान भी ।
प्रश्न (v) नवपापाणयुगीन जीवन और आरंभिक मानव के जीवन में क्या अंतर था । उत्तर – नवपाषाणयुगीन मानव का जीवन में स्थायित्व आ गया था, क्योंकि वह खेती करता था और एक स्थान पर घर बनाकर गाँव बसा लिए थे जबकि इसके आरंभिक मानव घुमक्कड़ और शिकार पर जीवन निर्भर करने वाला था । इस प्रकार वह कम सुखी था । नवपाषाण युगीन मानव भोजन में अनाज, दाल के अलावा दूध, दही, घी का उपयोग करता था और यदाकदा मांस भी खा लेता था जबकि आरंभिक मानव मात्र कन्द-मूल फल और कच्चा मास पर निर्भर था । नवपापाणयुगीन मानव अन्न का संग्रह करता था और उपयोग से अधिक अनाज हाट-बाजारों में बेच दिया करता था, लेकिन आरंभिक मानव नित्य शिकार करता था और नित्य खाता था। आज खा लिया तो कल क्या खाएगा, यह निश्चित नहीं था ।
आइए करके देखें :
प्रश्न (vi) नवपापाणयुगीन मानव जिन फसलों से परिचित थे उनकी सूची बनाएँ और जिन फसलों से आप सभी परिचित हैं उसकी एक सूची बनाएँ, क्या आप नवपापाणयुगमीन फसलों से से ज्यादा फसलों के बारे में जानते हैं । उत्तर—नवपापाणयुगीन मानव मात्र गेहूँ, चावल और कुछ दालों से परिचित था जबकि आज जो हम जानते हैं, उसकी सूची बहुत लम्बी हो जाएंगी। निश्चित ही हम उनसे अनाजों के बारे में अधिक जानकारी रखते हैं ।
कुछ अन्य. महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर
प्रश्न 1. नवपाषाणकालीन पशु और आज के पशु में अंतर करें । उत्तर- नवपाषाणकालीन पशु और आज के पशु में निम्नलिखित अंतर हैं नवपाषाणकालीन पशु- -गाय, बैल, बकरी, सूअर, भैंस, भैंसा, कुत्ता, घोड़ा, गदहा । इसयुग में बैल, भैंसा, घोड़ा, गदहा अत्यन्त उपयोगी थे। गाय, भैंस, कुत्ता दोनों युग में समान रूप से उपयोगी थे और हैं । आज के पशु- गाय, बैल, बकरी, सूअर, भैंस, भैंसा, कुत्ता, घोड़ा, गदहा । आज बैल, भैंसा, घोड़ा, गदहा अनुपयोगी से हो गए हैं क्योंकि बैल भैंसा का स्थान ट्रैक्टर ने ले लिया है और घोड़ा गदहा का स्थान सायकिल और मोटरसायकिल ने ले लिया है ।
प्रश्न 2. पुरातत्त्वविद् ऐसा क्यों मानते हैं कि मेहरगढ़ के लोग पहले केवल शिकारी थे और बाद में उनके लिए पशुपालन ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया ? उत्तर—मेहरगढ़ में खुदाई के क्रम में सबसे नीचे अनेक प्रकार के जानवरों की हड्डियाँ मिली हैं। इससे ऐसा लगता है कि सर्वप्रथम यहाँ के लोग शिकारी जीवन व्यतीत करते थे। खुदाई में ऊपरी भाग में केवल भेड़ और बकरियों की हड्डियाँ मिली हैं। इससे ज्ञात होता है कि बाद में मेहरगढ़ वाले शिकारी जीवन त्याग कर पशुपालक जीवन व्यतीत करने लगे थे। इसका कारण यह हो सकता है कि भेड़ और बकरी एक साथ तीन से चार बच्चा तक देती हैं। उनसे दूध की प्राप्ति होती है। इस प्रकार ये पशु उनके चलते-फिरते भोज्य वस्तुओं के भंडार थे। पशुपालन से पशुपालकों को खाने के लिए मांस, पीने के लिए दूध तथा पहनने ओढ़ने के लिए चमड़ा की प्राप्ति होती रहती थी। इस प्रकार हम देखते हैं कि मेहरगढ़ के लोग पहले केवल शिकारी थे लेकिन बाद में पशुपालन उनके लिए अधिक महत्वपूर्ण हो गया ।
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2. खाली स्थान को भरें : (क) भीमवेतका …………. राज्य में है । (ख) आरंभिक मानव का मुख्य बसेरा ……………… था । (ग) पापाण काल के लोग मनोरंजन के लिए चित्र बनाते और ……………. करते थे । (घ) …………… साल पहले दुनिया की जलवायु गर्म होने लगी ।
उत्तर : (क) मध्य प्रदेश, (ख) गुफा, (ग) नृत्य, (घ) चौदह हजार ।
3. आइए विचार करें :
प्रश्न (i) मानव के आरंभिक काल को पापाण काल क्यों कहा जाता है ? उत्तर— मानव के आरंभिक काल को पाषाण काल इसलिए कहा जाता है कि उस समय का मानव पत्थरों का ही उपयोग अधिक करता था । उसका निवास पत्थर निर्मित पहाड़ों की गुफाओं में ही होता था । शिकार करने में वे जिन हथियारों का उपयोग करते थे वे सभी पत्थर के बने होते थे । जीवन-यापन में पत्थर का महत्वपूर्ण स्थान था । पत्थर का पर्याय पापाण ही होता है। इसी कारण उस काल को पापाण काल कहा जाता है ।
प्रश्न (ii) आरंभिक मानव इधर-उधर क्यों घूमते रहते थे ? उत्तर – आरंभिक मानव इधर-उधर घूमते रहते थे क्योंकि (i) किसी एक खास स्थान पर फल-फूल, जानवर आदि की उपलब्धता समाप्त हो जाने की स्थिति में इनकी तलाश में इन्हें वहाँ से दूसरे स्थान को जाना पड़ता था । (ii) जानवर अपना चारा ढूँढ़ने यदि कहीं चले जाते थे जो आरंभिक मानव भी उनको खोजने के लिए घूमा करता था । (iii) फल या फूल मौसमानुसार ही होते थे । फलतः उपयुक्त मौसम की तलाश या वैसे फल-फूलों की तलाश में आरंभिक मानव को घूमते रहना पड़ता था ।
प्रश्न (iii) मध्यपाषाण काल में क्या बदलाव आए ? उत्तर—मध्य पाषाण काल में पर्यावरणीय बदलाव आना शुरू हो गया । प्रमुख बदलाव यह आया कि तापमान में वृद्धि होने लगी । इसका परिणाम यह हुआ कि गेहूँ, जौ, मडुआ आदि अन्न के पौधे आपोआप उत्पन्न हो गए। अब माँस के साथ लोग अन्न भी खाने लगे। घास के मैदान भी निकल आए, जिससे शाकाहारी पशुओं की वृद्धि होने लगी । अब पत्थरों के औजार और अधिक सुगढ़, नुकीले और धारदार बनने लगे । पत्थर के औजारों में लकड़ी के बेंट लगने लगे थे ।
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4. आइए करके देखें :
प्रश्न (i) आरंभिक मानव पत्थर के औजारों से जो काम लेते थे, उनकी एक सूची बनाइए । क्या आपके घर में पत्थर के औजार का इस्तेमाल होता है? यदि होता है तो इससे क्या काम लिया जाता है ? उत्तर—आरंभिक मानव के औजार अधिकांश पत्थर के हुआ करते थे । पत्थर के अलावा जानवरों तथा मछलियों की हड्डियों का उपयोग औजार के रूप में होता था । औजारों से वे निम्नलिखित काम लिया करते थे : (i) माँस काटने में, (ii) जमीन खोदकर कंद और मूल निकालने में, (iii) चित्र बनाने में, (iv) छेद करने में, (v) शिकार पकड़ने और मछली पकड़ने के भी औजार होते थे । हाँ, हमारे घर में आज भी पत्थर के औजार का इस्तेमाल होता है । इनसे दो काम लिये जाते हैं : एक तो चक्की से अनाज पीसने का काम लिया जाता है, दूसरा सिल और बट्टे से मसाला पीसा जाता है । अभी हाल हाल तक पत्थर के बाट- बटखरों का उपयोग होता था ।
प्रश्न (ii) आरंभिक मानव के खाद्य पदार्थों की सूची बनाएँ और आज के भोजन सामग्री से उसकी तुलना करने पर आपको क्या बदलाव दिखता है । उत्तर—आरंभिक मानव के भोजन में निम्नलिखित खाद्य पदार्थ शामिल थे : (i) शिकार किए गए पशुओं के मांस । (ii) मछली और ऐसे ही अन्य जलीय जन्तु । (iii) कन्द, मूल और फल । (iv) पहले तो वे कच्चा माँस ही खाते थे, किन्तु आग के आविष्कार के बाद वे माँस को पकाकर या भून कर खाने लगे ।
आज के लोगों की भोजन सामग्री से उसकी तुलना करते हैं तब पाते हैं कि अब लोग शिकार नहीं करते बल्कि माँस-मछली खरीद कर खाते हैं। कन्द, मू और फल खोजे नहीं जाते बल्कि उपजाए जाते हैं तथा सामान्य लोग उन्हें बजार से खरीद कर खाते हैं। फल-मूलों में अब विविधता आ गई है। जहाँ आरंभिक मानव सेंक-पकाकर माँस खाता था वहीं आज अच्छी तरह तेल-मसाले और नमक मिलाक स्वादिष्ट बनाकर उन्हें खाया जाता है। अब खाद्यान्नों में भी विविधता आई है और उनके साथ दालों का भी उपयोग करते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि आरंभिक मानव और आज के मानव के भोजन में काफी बदलाव आ गया है
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प्रश्न (iii) आज के जीवन में इस्तेमाल किये जाने वाले औजारों की तुलना आरंभिक मानव के औजारों से करें और दोनों में क्या अन्तर और क्या समानता है ? बताएँ । उत्तर – आज के जीवन में अग्नेयास्त्रों का उपयोग होता है जबकि आरंभिक मानव पत्थरों से बने हथियार उपयोग करता था। हालाँकि दो अढ़ाई सौ वर्ष पहले तक तीर-तलवार, लाठी और भाले का उपयोग होता था, जो अब बेकार हो गये हैं । अब तो ऐसे-ऐसे शस्त्रास्त्र उपयोग होते हैं कि काफी दूरी से मिनटों में हजारों दुश्मनों को मारा जा सकता है । बम तो इनसे भी भयानक हैं । अतः आज के जीवन में इस्तेमाल किये जाने वाले औजारों और आरंभिक मानव के औजारों की हो सकती । अब के और तब के औज़ारों में आकाश-पाताल का अंतर है ।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर
प्रश्न 1. आदि मानव अर्थात आरंभिक मानव कौन था ? उत्तर – करोड़ों वर्ष पहले पृथ्वी पर जीवन का आविर्भाव हुआ और उसका आकार क्रमशः बदलता रहा। आज मनुष्य जिस रूप में है वह क्रमबद्ध विकास का परिणाम है। सबसे पहले पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाले मानव की प्रजाति का नाम ‘नियंडरथल’ था, जिनका आज से लगभग 35000 वर्ष पहले समूल नाश हो गया । उसके बाद जिस मानव की उत्पत्ति हुई, वह अंततः होमोसेपियन्स था, जिसे ज्ञानी मानव भी कहते हैं । वास्तव में यही आदि मानव था, जिसे आरंभिक मानव भी कहा जाता है ।
प्रश्न 2. आरंभिक मानव अपने विचार दूसरे व्यक्ति के सामने कैसे प्रकट करता था ? इसकी एक सूची बनाइए। आप अपने विचार दूसरों के सामने कैसे रखते हैं? उत्तर — आरंभिक मानवों में होमोइरेक्टस और नियंडरथल बोल नहीं सकते थे, लेकिन होमोसेपियन्स लोगों ने बोलने की कला विकसित कर ली थी। भाषा के नहीं रहने से वे अपने विचार चित्रों के सहारे व्यक्त करते थे । ऐसे चित्र जो मैंगनीज ऑक्साइड, गेरू, लकड़ी के कोयले से बनाए जाते थे । प्राकृतिक वस्तुओं को दर्शाने के लिए भूरे, पीले, लाल और काले रंग बनाए जाते थे। पशुओं में वे अधिकांश, बैल, गाय, भैंस, हिरण, मछली, पक्षी आदि के चित्र बनाते थे। पहाड़ की खोहों मै दीवारों और छत पर आज भी वे चित्र मौजूद हैं ।
प्रश्न 3. भारतीय उपमहाद्वीप पर लगभग 20 लाख वर्ष पहले रहनेवालों. को आज किस नाम से जाना जाता है ? उत्तर— भारतीय उपमहाद्वीप पर लगभग 20 लाख वर्ष पहले जो लोग रहते थे उन्हें आज हम शिकारी-खाद्य-संग्राहक के नाम से जाना जाता है ।
प्रश्न 4. शिकारी खाद्य-संग्राहकों के भोजन के मुख्य स्रोत क्या थे ? उत्तर—शिकारी-खाद्य-संग्राहकों के भोजन के मुख्य स्रोत थे पशु-पक्षी, गाछ-वृक्षों के फल-फूल तथा जमीन के अंदर से कन्दमूल ।
प्रश्न 5. शिकारी खाद्य-संग्राहक जल प्राप्ति के लिए क्या करते थे ? उत्तर— शिकारी-खाद्य-संग्राहक जल प्राप्ति के लिए नदियों, झरनों या किन्हीं जलाशयों, झीलों के आस-पास ही रहने का प्रयास करते थे।
प्रश्न 6. शिकारी-खाद्य-संग्राहकों के हथियार किस वस्तु के बने होते थे उत्तर—शिकारी-खाद्य-संग्राहकों के हथियार पत्थरों के बने होते थे।
प्रश्न 7. शिकारी-खाद्य-संग्राहकों का काल क्या माना जाता है ? उत्तर—शिकारी-खाद्य-संग्राहकों का काल 20 लाख वर्ष पहले से लेकर 14,000 वर्ष पहले के बीच के काल को माना जाता है।
Bihar Board Class 6 Social Science क्या, कब, कहाँ और कैसे ? Text Book Questions and Answers Kya Kab Kahan Aur Kaise Class 6th Solutions
2. क्या, कब, कहाँ और कैसे ?
अभ्यास : प्रश्न और उनके उत्तर
आइए याद करें : 1. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
(क) मिट्टी के बर्तन की प्राचीनता का निर्धारण किस विधि से करते हैं ? (i) कार्बन – 14 पद्धति (ii) ताप संदीप्ति विधि (iii) पोटैशियम-आर्गन विधि (iv) स्टोन हैमर विधि
(ख) उत्तर भारत को दक्षिण भारत से कौन पर्वत अलग करता है ? (i) हिमालय पर्वत (ii) विन्ध्य पर्वत (iii) पूर्वी घाट (iv) पश्चिमी घाट
(ग) चावल का प्राचीन प्रमाण कहाँ से मिला है ? (i) कोलडिहवा (ii) ब्रह्मगिरि (iii) मेहरगढ़ (iv) बुर्जहोम
उत्तर: (क)→ (i), (ख) → (ii), (ग) → (ii).
2. खाली स्थान भरिए : (क) ………….. क्षेत्र के अधीन विशाल साम्राज्य की स्थापना हुई । (ख) भौगोलिक दृष्टिकोण से भारत को ………….में विभाजित किया जा सकता है। (ग) …………. ने कुम्हरार नामक स्थान की खुदाई करवाई । (घ) आधुनिक काल का प्रारंभ …………… से हुआ । (ङ) महापापाणी संस्कृति का निर्माण ………….. भारत के लोगों ने किया ।
उत्तर— (क) मगध, (ख) चार भागों, (ग) डॉ. स्पूनर, (घ) 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध, (ङ) ब्रह्मागिरि नामक स्थान पर 3000 वर्ष पूर्व ।
III. निम्नलिखित का सुमेल कीजिए : खासी – अनाज का प्रमाण अफ्रीका – दक्षिण भारत मगध – महादेश महापाषणीक संस्कृति – प्रथम बड़ा साम्राज्य चोपानीमांडो – जनजाति
उत्तर : खासी – जनजाति अफ्रीका – महादेश मगध – प्रथम बड़ा साम्राज्य महापाषणीक संस्कृति – दक्षिण भारत चोपानीमांडो – अनाज का प्रमाण
आइए चर्चा करें :
प्रश्न 1. इतिहास के अध्ययन से हमें किस तरह की जानकारी होती है? उत्तर—इतिहास के अध्ययन से हमें अनेक तरह की जानकारी प्राप्त होती है । सबसे मुख्य बात कि इसके अध्ययन से हम अपने अतीत के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं । इतिहास हमें यह जानकारी देता है कि हमारे पूर्वज कौन थे, वे कहाँ रहते थे, क्या खाते थे, कैसे कपड़े पहनते थे । इतिहास के अध्ययन से हम शिकारियों, पशुपालकों, कृषकों, शासकों, व्यापारियों, पुजारियों, शिल्पकारों, कलाकारों, संगीतकारों, वैज्ञानिकों के जीवन के बारे में जानकारियाँ प्राप्त करते हैं ।
प्रश्न 2. पुरातत्त्व किसे कहते हैं? उत्तर – ‘पुरातत्त्व’ में दो शब्द हैं। ‘पुरा’ और ‘तत्त्व’ । ‘पुरा’ का अर्थ होता है पहले का अर्थात् पुराना । ‘तत्त्व’ का अर्थ होता है ‘वस्तु’ । इसका अर्थ हुआ कि पुरानी वस्तुएँ, जिन्हें पुरातत्त्वविदों ने जमीन की सतह या उसके अन्दर से खोज निकाला, उसे ‘पुरातत्त्व’ कहते हैं । पुरातात्त्विक वस्तुओं से उस समय के मनुष्यों के निषय में जानकारी मिलती है। पटना के संग्रहालय में अनेक पुरातात्त्विक वस्तुएँ सहेज कर रखी गई हैं।
प्रश्न 3. इतिहास के अध्ययन से अपने अतीत के बारे में क्या-क्या जानकारी मिलती है ? उत्तर- इतिहास के अध्ययन से अपने अतीत के बारे में बहुत कुछ जानकारी मिलती है। अतीत में हमारे पूर्वजों ने क्या किया और उसका फलाफल आज क्या मिल रहा है, इन बातों की तुलना करने में हम सक्षम हो जाते हैं। वर्तमान में भी क्या हो रहा है और जो हो रहा है उसका भविष्य में क्या फलाफल मिलने वाला है । वर्तमान में जो होता है उसका परिणाम आनेवाली पीढ़ियों को भोगना पड़ता है । कभी जयचंद ने जो किया उसका फलाफल आज के लोग भोग रहे हैं और आज जो लोग जयचंद की भूमिका निभा रहे हैं उसका फल आने वाली पीढ़ी भोगेगी । पता नहीं आज पृथ्वीराज कोई क्यों बनना नहीं चाहता । पन्द्रह बीस करोड़ को प्रसन्न रखने के लिए अस्सी- नब्बे करोड़ की उपेक्षा कर ये नेता क्या करना चाहते हैं, कैसा भारत बनाना चाहते हैं। क्या सबके साथ समान नीति नहीं अपनायी जा सकती । सबको समान रूप से देखा जाय और बराबरी के रूप में बात हो । जो भी हो, हमें इतनी समझ रखनी है कि इतिहास केवल अतीत के विषय में ही नहीं, बल्कि वर्तमान के विषय पर भी नजर रखते हुए भविष्य की दिशा दिखाता है। आज हम जिस दशा को प्राप्त हो रहे हैं, इसे हमारे पूर्वजों ने बनाया है। और आज जो हम करेंगे उसका फल हमारी अगली पीढ़ी भोगेगी। यदि हम आज का वृक्ष लगाएँगे तो वे आम खाएँगे और यदि बबूल बोएँगे तो उन्हें काँटे मिलेगे. इतिहास बनाने में वर्तमान की भूमिका बहुत अहम होती है ।
प्रश्न 4. अतीत की जानकारी जिन-जिन स्रोतों के माध्यम से हो सकती है. उनकी एक सूची बनाइए । उत्तर— उन स्रोतों की सूची जिनके माध्यम से हमें अतीत की जानकारी हो सकती है, निम्नलिखित है: (i) तालपत्र और भोजपत्र पर लिखी पाण्डुलिपियाँ, (ii) पत्थर या ताम्रपत्र पर खोदे गए अभिलेख, (iii) मिट्टी के बरतन खास कर भांड, हाँडी, कोटोरे, प्यालियाँ, (iv) धातु के सिक्के, (v) विभिन्न जन्तुओं की हड्डियाँ, (vi) वनस्पतियों के अवशेष, (vii) अन्न के दानें, (viii) लकड़ी या लकड़ी के कोयले, (ix) पकाई हुई ईंटें, (x) मूर्तियाँ, (xi) विभिन्न औजार तथा हथियार, (xii) धातु के बरतन, (xiii) आभूषण, (xiv) मिट्टी के खिलौने ।
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प्रश्न 5. देश का नाम भारत और इंडिया कैसे हुआ ? उत्तर – देश आर्यावर्त का नाम भारत शकुंतला दुष्यंत के पुत्र भरत के नाम पर हुआ । भरत तत्कालीन आर्यावर्त के चक्रवर्ती राजा थे । वे अत्यन्त न्यायी और लोकतांत्रिक विचारों के राजा थे। उनके आठ पुत्र हुए, किन्तु इनमें कोई राज्य का संचालन करने योग्य नहीं था । इसलिए उन्होंने अपनी प्रजा में से एक योग्य युवक का निर्वाचन किया और उसे राजा बनाया। यह निर्वाचन ग्राम प्रधानों ने की थी । भरत का यही वारिस माने हुए अपने पिता के नाम को अक्षुण्ण रखने के लिए देश का नाम ‘भारत वर्ष’ रख दिया । भरत कुरु वंश के थे लेकिन बहुत पीढ़ी पहले |
‘इण्डिया’ नाम यूनानियों की देन है। सिंधु नदी को उन्होंने ‘इण्डस’ कहा और उसकी घाटी में बसे देश को ‘इण्डिया’ कहा । इण्डिया नाम न केवल यूनान में बल्कि सम्पूर्ण यूरोप में फैल गया। जो भी यूरोपियन भारत आए इसे इण्डिया कहा । जवाहरलाल नेहरू, जो अंग्रेजों के इतने उपकृत थे कि उन्होंने इण्डिया नाम को भी चलने दिया। यह आश्चर्य कि बात है कि एक ही देश के तीन नाम हैं—भारत, इण्डिया तथा हिन्दुस्थान ।
प्रश्न 6. काल निर्धारण की कार्बन – 14 पद्धति को बताइए । उत्तर—काल निर्धारण की कार्बन – 14 पद्धति इस सिद्धांत पर आधारित है कि मनुष्य हो या कोई अन्य जीव-जन्तु या पेड़-पौधे की मृत्यु के बाद कार्बन – 14 का ह्रास होने लगता है। जैसे-जैसे समय बितता है, वैसे-वैसे वह घटते जाता है । यहाँ तक कि पादप या जन्तु की मृत्यु के 5130 वर्ष का उसकी मात्रा उसमें आधी रह जाती है । इसी आधार पर उसका काल निर्धारण किया जाता है । इतिहास लेखन में यह विधि बड़े काम की सिद्ध हुई है ।
आइए करके देखें :
प्रश्न 7. पुरातत्त्वविदों द्वारा उत्खनन में प्राप्त वस्तुओं की सूची बनाइए । उत्तर— पुरातत्वविदों द्वारा उत्खनन में प्राप्त की गई वस्तुओं की सूची : (i) पत्थर के हथियार, (ii) मानव निवास वाले खोहों के अन्दर की चित्रकारी, (iii) मिट्टी की पकाई हुई बर्तन, भांड, हांड़ी, प्याला एवं ईंट, (iv) पत्थर की बनी इमारतों के अवशेष, (vii) विभिन्न जानवरों, पक्षियों और मछलियों की हड्डियाँ, (viii) अनाज के दाने, (v) कांसा के औजार और हथियार, (vi) कांसे के बर्तन, आभूषण, मूर्तियाँ और सिक्के (ix) कपड़ों के अवशेष ।
प्रश्न 8. भारत के मानचित्र पर निम्नलिखित स्थानों को दिखाइये (1) नर्मदा नदी, (2) गंगा नदी, (3) विंध्य पर्वत, (4) सतपुड़ा पहाड़ियाँ ।
उत्तर :
कुछ अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर
प्रश्न 1. निम्नलिखित तिथियों को वर्तमान पूर्व (बी० सी०) में बदलिए । 8000 बी०सी०, 6500 बी०सी०, 2200 बी०सी० उत्तर : (i) 8000-2010 = 5990 J (ii) 6500-2010 = 3990 ई. पू. (iii) 2200-2010 = 190 ई. पू.
प्रश्न 2. पुरातत्त्वविद् खण्ड के बारे में पता लगाइए। उनके द्वारा प्राप्त किए जाने वाले वस्तुओं की एक सूची बनाइए । उत्तर – यदि सही-सही पुरातत्त्वविद खंड का पता करना होगा तो हमें इस अध्याय में बताए गए काल खंड के बहुत पहले जाना होगा। हमें आज से लगभग 10 हजार वर्ष या इससे भी पहले जाना होगा, जिसे पाषाण काल कहा जाता है । तब मनुष्य और वनमानुप में कोई अधिक अंतर नहीं था । आदमी चलने के लिए पैर के साथ हाथ का भी उपयोग करता था। शिकार किये गए पशुओं का कच्चा मास खाता था । यह पुरापाषाण काल था । बाद में नवपाषाण काल आया, जिस काल में मनुष्य ने बहुत उन्नति की। उसने आग का आविष्कार कर लिया और उसे संजो कर रखने लगा। आग से उसे दो लाभ हुए। पहला कि माँस को पकाकर खाने लगा। दूसरे कि जंगली जानवर आग से डरते थे । इसलिए अपने निवास के निकट आग जलाकर रखने लगा । इसा काल में इसने चक्र बनाया। इससे भी दो लाभ हुए। वह चाक पर सुडौल मिट्टी के बर्तन गढ़ने लगा और उसने चक्के से पहिया बना कर गाड़ी बना ली। सबसे पहला पालतू पशु उसका कुत्ता था । वह शिकार में मदद करता था तथा रात में आवास की पहरेदारी करता था। बाद में बकरी, भेड़, घोड़ा, बैल, – गाय आदि भी पाले जाने लगे। अब उसने खेती करना और अन्न उपजाना शुरू किया। इसके लिए उसे एक जगह गाँव बनाकर बसना आवश्यक हो गया । इस प्रकार पुरातत्त्वविद खंड को हम छः खंडों में बाँट सकते हैं । (i) पुरापाषाण काल, (ii) नवपाषाण काल, (iii) नदी घाटी काल, (iv) प्राचीन काल, (v) मध्य काल तथा (vi) आधुनिक काल । इतिहास में इन सभी काल खंडों का अपना महत्त्व है । इन्हीं कालखंडों के बीच मानव जाति ने खड़ा होकर चलना सीखा । पशुपालन के साथ खेती करना सीखा और गाँव बसाए । गाँव कस्बों में बदले और कस्बा नगर में परिवर्तित हो गया । चन्द्रगुप्त मौर्य के काल तक मानव ने कांफी उन्नति कर ली थी। भारतीय उपमहाद्वीप के अन्दर ही उसने एक बड़े साम्राज्य की स्थापना की जो चन्द्रगुप्त द्वितीय, जिसे विक्रमादित्य भी कहा जाता है और जिसने शकों को हराया था— साम्राज्य कायम रहा। यह प्राचीनकाल खंड 800 ई. तक रहा। इसके बाद से लेकर 12वीं सदी तक के काल को मध्य काल कहते हैं । इसी काल में तुर्कों ने भारत भूमि पर पैर रखा । तब तक भारत के राजाओं की एकता छिन्न-भिन्न हो चुकी थी । कोई भी तुर्कों का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं था । फलतः वे दिल्ली सल्तनत कायम करने में सफल हो गए। उनका नेता मुहम्मद गोरी था । वह अपने तो यहाँ नहीं रहा, लेकिन अपने एक विश्वस्त कर्मचारी को सुल्तान बनाकर अपने देश चला गया । तब से भारत में गुलाम वंश कायम हुआ जो इब्राहिम लोदी तक कायम रहा । गुलाम वंश इसलिए कि पहला सुल्तान मुहम्मद गोरी का कर्मचारी अर्थात् गुलाम था । इसके बाद मुगल वंश का शासन कायम हुआ, जो अंग्ररेजों के आने तक रहा। 1947 में भारत को स्वतंत्र कर अंग्रेज अपने देश चले गए। तब से देश में कांग्रेसी राज कायम हुआ । बीच में दो-तीन टर्म छोड़ लगातार कांग्रेस का ही शासन रहा । इन्दिरा गाँधी के देहावसान के बाद पुनः भारत में गुलाम वंश का आरंभ हुआ । इन्दिरा गाँधी के बाद प्रधानमंत्री बनने वाले राजीव गाँधी राज्य कर्मचारी थे । उनके बाद मनमोहन सिंह भी राज्यकर्मचारी रह चुके हैं । अतः आज भी यहाँ गुलाम वंश का ही शासन है । अब आगे देखना है ।
Bihar Board Class 6 Social Science हमारा अतीत Text Book Questions and Answers Hamara Atit Class 6th Solutions
1. हमारा अतीत
अभ्यास : प्रश्न और उनके उत्तर
1. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न (क) इतिहास शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई? (i) यूनानी (ii) लैटिन (iii) अंग्रेजी (iv) हिन्दी
उत्तर- (ii) लैटिन
प्रश्न (ख) जिस काल का लिखिंत विवरण उपलब्ध होता है उसे क्या कहा जाता है ? (i) प्रागैतिहासिक काल (ii) ऐतिहासिक काल (iii) प्राचीन काल (iv) मध्य काल
उत्तर- (ii) ऐतिहासिक काल
प्रश्न (ग) अशोक ने अपने अभिलेख किस लिपि में खुदवाये ? (i) देवनागरी (ii) ब्राह्मी लिपि (ii) फारसी लिपि (iv) रोमन लिपि
उत्तर- (ii) ब्राह्मी लिपि
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2. खाली स्थान को भरें (1) ……………… को इतिहास का जनक मानते हैं। (2) प्राचीन वस्तुओं के तिथि निर्धारण को ………… कहते हैं। (3) अशोक के अभिलेख ……………. में है। (4) मेगास्थनीज एक …………………. था। (5) सारनाथ में …………………. स्थित है।
उत्तर- (1) हेरोडोटस को इतिहास का जनक मानते हैं। (2) प्राचीन वस्तुओं के तिथि निर्धारण को कार्बन-पद्धति कहते हैं। (3) अशोक के अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है। (4) मेगास्थनीज एक विजेता था। (5) सारनाथ में अशोक स्तम्भ स्थित है।
III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें
प्रश्न (क) इतिहास किसे कहते हैं ? उत्तर- अतीत की घटनाओं का क्रमबद्ध रूप से संकलित विवरण इतिहास कहलाता है।
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हमारे अतीत के प्रश्न उत्तर
प्रश्न (ख) अतीत को जानने में इतिहास किस तरह सहायक है ? उत्तर- इतिहास का अर्थ है जाँच-पड़ताल । अतीत की घटनाओं का क्रमबद्ध तरीकों से संकलित करना इतिहास है। जब हम अतीत की जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो “इतिहास’ ही बताता है कि किस समय की वस्तु है। जब मनुष्य को लिखना नहीं आता था उस समय की जानकारी भी हमें इतिहास से ही प्राप्त होती है। संस्कृति, सभ्यता कब, कहाँ और कैसे विकसित हुई. लोग कब खेती करना सीखे, कब चक्कों का आविष्कार किये, किस प्रकार व्यापार करते थे। नगरों और राज्यों की स्थापना कैसे हुई, सारी जानकारी जो अतीत में थी, इतिहास से ही प्राप्त होती है । कार्बन 14 (C14)जो वैज्ञानिक पद्धति है, इस माध्यम से जानकारी प्राप्त की जाती है कि वस्तु कितना पुराना है।
प्रश्न (ग) अनेकता में एकता से आपका क्या तात्पर्य है ? उत्तर- अनेकता का यहाँ तात्पर्य है कि भिन्न-भिन्न जाति, धर्म, भाषा, . वेश-भूषा तथा आचार-विचार के लोग एक देश या राज्य में हैं तो कहते हैं अनेकता और इन सारी अनेकताओं के बावजूद सब साथ-साथ हैं तो एकता है। अर्थात् मानव की अनेक प्रजातियों मिलकर एक विशिष्ट संस्कृति का निर्माण करें तो इसे अनेकता में एकता कहते हैं।
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प्रश्न (घ) अशोक ने पूरे साम्राज्य में एकता स्थापित करने के लिए क्या किया? उत्तर- अशोक ने अभिलेख बोल-चाल की भाषा एवं ब्राह्मी लिपि में खुदवाये, भिन्न-भिन्न धर्म और प्रजाति के लोगों से एक समान व्यवहार किया, अपने शासन काल में उच्च और निम्न वर्ग के लिए एक होन व्यवस्था. थी। के दो भाग हैं । इतिहास हमें बताता है कि भारत में सभ्यता और संस्कृति कब और कैसे, कहाँ विकसित हुई । मनुष्य ने प्राकृतिक संसाधनों की खोज कैसे की, किस प्रकार गाँव, नगर और राज्यों की स्थापना हुई । अपनी समस्याओं के निदान के लिए नये-नये आविष्कार किस प्रकार किये । वर्तमान का बदलाव अतीत की ही देन है।
प्रश्न (ङ) अतीत के गौरव को कायम रखने के लिए हमें क्या करना चाहिए? उत्तर- अतीत को ठीक से समझना बहुत जरूरी है। प्राचीन काल में लोगों ने प्रत्येक क्षेत्र में किस प्रकार प्रगति और उपलब्धियाँ हासिल की। कितनी कठिनाइयों का सामना करते हुए सफलता प्राप्त की । हमें सुन्दर भविष्य के निर्माण में प्रेरणा मिलती है। हमें वर्तमान को सुखद बनाना, विकसित बनाना है तो अतीत को सही ढंग से समझना होगा। हमें अतीत के गौरव को कायम रखने के लिए अन्धविश्वास में, दुराग्रहों, जाति-प्रथा एवं सम्प्रदायवाद जैसी कुरीतियों को दूर करना होगा।
पाठ का सारांश
इतिहास के अध्ययन से प्राचीन भारत की सभ्यता और संस्कृति की जानकारी मिलती है।
कृषि के विकास और मानव जीवन की स्थिरता की कहानी इतिहास में वर्णित है।
भारत का अतीत एक प्रकार से केन्द्रीयकरण एवं विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्तियों के बीच निरन्तर संघर्ष की कहानी है।
भारतीय शासकों ने विदेशों में साम्राज्य फैलाने की कोशिश कभी नहीं की।
भारत में अनेकता में एकता सदैव से वर्तमान है।
सम्पूर्ण भारत पर शासन करने वाले राजा अपने को चक्रवर्ती की उपधि से विभूषित किया है।
अशोक, समुद्रगुप्त आदि कई चक्रवर्ती सम्राट हुए ।
सारनाथ में अशोक स्तंभ है ।
इतिहास शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द हिस्टोरिया से हुई है, जिसका अर्थ है, जाँच पड़ताल द्वारा जानकारी प्राप्त करना ।
भारत ने पूरे विश्व को शिक्षा साहित्य और गणित के क्षेत्र में मार्गदर्शन दिया है।
यूनान के हेरोडोटस को इतिहास का जनक माना जाता है।
कार्बन-14 पद्धति प्राचीन अवशेषों के काल निर्धारण की वैज्ञानिक पद्धति है।
इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 7 सामाजिक विज्ञान इतिहास के पाठ 8. क्षेत्रीय संस्कृतियों का उत्कर्ष (Kshetriya Sanskritiyon ka Utkarsh Class 7th Solutions)के सभी टॉपिकों के बारे में अध्ययन करेंगे।
8. क्षेत्रीय संस्कृतियों का उत्कर्ष
अभ्यास : प्रश्न तथा उनके उत्तर
प्रश्न 1. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें : (i) उर्दू एक ………. भाषा है । (मिश्रित/एकल / मधुर) (ii) उर्दू की उत्पत्ति ……….. शताब्दी में हुयी । (ग्यारहवीं / चौदहवीं / बारहवीं) (iii) उर्दू का शाब्दिक अर्थ है ……………. । (घर/महल / शिविर / खेमा) (iv) इरानी लोग सिंधु को ……….. कहते थे । (हिन्द / हिन्दू/हिन्दी) (v) तुलसीदास ने ……….. की रचना की । (महाभारत / मेघदुतम् / रामचरितमानस) (vi) पहाड़ी चित्रकला ……….. क्षेत्र में विकतिस हुयी । (मध्य भारत / उत्तर पश्चिम हिमालय/राजस्थान)
उत्तर : (i) मिश्रित, (ii) ग्यारहवीं, (iii) शिविर, (iv) हिन्दू, (v) रामचरिमानस, (vi) उत्तर-पश्चिम हिमालय ।
प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें
प्रश्न (a) उर्दू का विकास कैसे हुआ ? उत्तर – उर्दू का विकास एक अपभ्रंश भाषा के रूप में हुआ । इसमें अनेक भाषाओं के शब्द मिले हैं, जैसे : अरबी, फारसी तथा तुर्की । इसी कारण उर्दू को एक मिश्रित भाषा कहते हैं ! इसकी लिपि फारसी है, लेकिन व्याकरण हिन्दी-अंग्रेजी जैसा ही है।
प्रश्न (b) लौकिक साहित्य के बारे में पाँच पंक्तियों में बताइए । : उत्तर—लौकिक साहित्य में ‘ढोला-मारुहा’ नामक काव्य लिखा गया। इसमें ढोला नामक राजकुमार और मारवाणी नामक राजकुमारी की प्रणय लीला का वर्णन है । इस काव्य में महिलाओं के कोमल भावों का मार्मिक वर्णन किया गया है। इसी काल के लौकिक साहित्य के रचनाकारों में अमीर खुसरु भी हैं । अमीर खुसरु ने पहेलियों से हिन्दी के भंडार को भरा ।
प्रश्न (c) ‘रहीम कौन थे ? उनके द्वारा रचित किसी एक दोहा को लिखें। उत्तर – रहिम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। ये अकबर के दरबार के नवरत्नों में एक थे । इनकी अधिक पहचान कृष्ण भक्त कवि के रूप में है । इन्होंने हिन्दी में अनेक कविताओं की रचना की। इनकी एक प्रसिद्ध रचना का अंश निम्नलिखित है :
रहिमन विपदा तू भली, जो थोड़े दिन होई । हित अनहित या जगत में जान पड़े सब कोई ॥
प्रश्न (d) ‘हम्जानामा‘ क्या है? उत्तर— ‘हम्जानामा’ मुगलकाल का बना चित्रों का एक अलबम है। मुगलों ने चित्रकला की जिस शैली की नींव डाली वह मुगल चित्रकला के नाम से प्रसिद्ध हुई । ‘हम्जानामा’ मुगल शैली की ही एक अदभुत कृति है । यह ऐसी पाण्डुलिपि है, जिसमें 1200 चित्र हैं। सभी चित्र स्थूल और चटकीले रंगों में कपड़े पर बने हुए हैं ।
प्रश्न (e) पहाड़ी चित्रकला में किन-किन विषयों पर चित्र बनाये जाते थे ? उत्तर—पहाड़ी चित्रकला में विशेष रूप से सामाजिक विषय चुने गये । चित्र सामाजिक विषयों पर ही बने । बच्चियों को गेंद खेलते, संगीत के साज बजाते, पक्षियों या पशुओं के साथ मनोरंजन करते हुए चित्र बनाये जाते थे । राजा-महाराजाओं का अकेले या दरबारियों के साथ बैठे हुए चित्र बनाये जाते थे । प्राकृतिक दृश्यों के चित्र भी बने । पत्तों और फलों से लदे वृक्षों के चित्र सराहनीय हैं। पहाड़ी चित्रकला में इन्हीं विषयों पर चित्र बनाये जाते थे ।
प्रश्न (f) गजल और कव्वाली में अंतर बताएँ । उत्तर – सल्तनत काल में दो प्रकार की गायन शैली का विकास हुआ – पहला था गजल और दूसरा कव्वाली । गजल को अरबी भाषा में स्त्रीलिंग माना जाता है, जबकि हिन्दी मैं इसे पुंलिंग मानते हैं। ग़जल का शाब्दिक अर्थ है अपने प्रेम पात्र से वार्ता । एक गजल में कम-से-कम पाँच और अधिक-से-अधिक ग्यारह शेर होते थे । इसके संग्रह को दीवान कहा जाता है । गजलें चूँकि शृंगार रस में लिखी होती थीं, जिस कारण इसका गायन संगीत प्रेमियों को अच्छा लगता था । सूफियों को भी गजल प्रिय रहा ।
कव्वाली का चलन विशेषतः सूफी गायकों में था। ‘कौल’ का अर्थ है कथन । इसको गाने वाला कव्वाल कहलाता था । यही शैली कौव्वाली कहलायी । कौव्वाली गाते हुए गायक भक्तिमय हो जाता था । उसके समक्ष लगता था कि अल्ला सामने आ गया हो । गाते-गाते वे झूमने और नाचने लगते थे।
चर्चा करें :
प्रश्न 1. क्षेत्रीय भाषा एवं साहित्य के विकास का क्या महत्व हैं ? उत्तर- सोलहवीं शताब्दी से क्षेत्रीय भाषाओं में लेखन कार्य होने लगा था । सत्रहवीं शताब्दी के आते-आते इसमें काफी परिपक्वता आ गई। संगीतमय काव्य भी रचे गये । बंगला, उड़िया, हिन्दी, राजस्थानी तथा गुजराती भाषाओं के काव्य में राधाकृष्ण एवं गोपियों की लीला तथा भागवत की कहानियों का भरपूर उपयोग हुआ। इसी काल में मल्लिक मुहम्मद जायसी ने हिन्दी में ‘पद्मावत’ लिखा। इसका बंगला में भी अनुवाद हुआ । अब्दुर्रहीम खानखाना ने कृष्ण को सामने रख अनेक काव्यमय रचनाएँ कीं ।
तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना अवधी में की जिसमें भोजपुरी शब्दों का उपयोग हुआ है। सूरदास ने ब्रज भाषा में कृष्ण के बाल रूप का वर्णन किया । यह इनका महत्वपूर्ण योगदान था ।
दक्षिण भारत में मलयालम भाषा की साहित्यिक परम्परा का प्रारंभ मध्यकाल में ही हुआ । महाराष्ट्र में एकनाथ और तुकाराम ने मराठी भाषा में काफी कुछ लिखा ।
बिहार अनेक भाषाओं का क्षेत्र है। यहाँ की कुछ भाषाएँ पूरे देश में बोली- समझी जाती हैं। बिहार के चन्द्रेश्वर मध्यकाल के नामी टीकाकार थे। इन्होंने सूफी संतों से प्रभावित होकर धर्म की व्याख्या की। खासकर बिहार हिन्दी भाषी क्षेत्र है । यहाँ हिन्दी की उत्पत्ति संस्कृत के अपभ्रंश के रूप में हुई । अन्य भाषाओं में, जिन्हें शुद्ध क्षेत्रीय कहा जा सकता है, वे हैं भोजपुरी, मगही, मैथिली और उर्दू आदि । मैथिली भाषा को कवि कोकिल विद्यापति ने बहुत ऊँचाई पर पहुँचा दिया। मंडन मिश्र तथा भारती मिथिला की ही देन थे । भोजपुरी का क्षेत्र बहुत विस्तृत है ।
प्रश्न 2. आपके घर में जो भाषा बोली जाती है? उसका प्रयोग लिखने में कब से शुरू हुआ ? उत्तर—मैं अपने घर में भोजपुरी भाषा बोलता हूँ । लेखन में इसका आरम्भ कबीर के समय से हुआ। स्वतंत्रता संग्राम के समय अनेक महाकाव्य भोजपुरी में रचे गए । बटोहिया, फिरंगिया और कुँवर सिंह महाकाव्य अधिक प्रशंसित रहे हैं । महेन्द्र मिश्र तथा भिखारी ठाकुर भोजपुरी के महान गीतकार रह चुके हैं। आज तो भोजपुरी भाषा का काफी विकास हो चुका है ।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न तथा उनके उत्तर
प्रश्न 1. पता लगाएँ कि क्या आपके नगर / गाँव में शूरवीरों/वीरांगनाओं की परम्परा रही है । यदि हाँ तो ये परम्पराएँ राजपूतों के वीरतापूर्ण आदर्शों से कितना समान है ? उत्तर – हमारे नगर के निकट में ही जगदीशपुर है। 1857 की क्रांति में वहाँ के अस्सी वर्षीय योद्धा बाबू कुँवर सिंह ने क्रांति में अद्भुत वीरता का परिचय दिया। भले ही वे वीरगति को प्राप्त हो गए लेकिन अंग्रेजों के हाथ नहीं लग सके। उनकी यह वीरता पूर्णतः राजपूती परम्परा को आगे बढ़ानेवाली थी ।
प्रश्न 2. मुख्य नृत्यों में से किसी एक नृत्यरूप के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करें । उत्तर—मुख्य नृत्यों में एक कत्थक नृत्य है जो आज भी काफी प्रचलित है। इस नृत्य में नर्तकी या नर्तक किसी आख्यान को कथा के रूप में नृत्य के भाव द्वारा प्रदर्शित करते हैं । दर्शक इस नृत्य से श्रवण तथा दर्शन दोनों का लाभ प्राप्त करते हैं । बीच-बीच में नर्तक कुछ बोल कर भी नृत्य पर प्रकाश डाल देते हैं । कथा या कथन से ही इस नृत्य का ‘कत्थक’ नाम पड़ा है ।
प्रश्न 3. आपके विचार से द्वितीय श्रेणी की कृतियाँ लिखित रूप में क्यों नहीं रखी जाती थीं? उत्तर – मेरे विचार से द्वितीय श्रेणी की कृतियाँ इसलिए लिखित रूप में नहीं रखी जाती थीं क्योंकि उनपर समय का कुछ उल्लेख नहीं रहता था । दूसरी ओर प्रथम श्रेणी की कृतियों में समय का उल्लेख रहता था। खासकर पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध और अठारहवीं शताब्दी के मध्य भाग के बीच लिखी गई हैं। दूसरी श्रेणी की कृतियाँ चूँकि मौखिक कही-सुनी जाती थीं, अतः लिखित रूप देने की आवश्यकता भी महसूस नहीं हुई ।
प्रश्न 4. पता लगाएँ कि पिछले दस सालों से कितने नए राज्य बनाए गए हैं। क्या इनमें प्रत्येक राज्य एक अलग क्षेत्र है ? उत्तर—पिछले दस सालों में तीन नए राज्य बनाए गए हैं। वे हैं— छत्तीसगढ़, झारखंड तथा उत्तरांचल । छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश से निकलकर बना है। इनमें कोई विशेष क्षेत्रीयता की बात नहीं है। झारखंड, बिहार से कटकर बना है। इसे जनजातीय क्षेत्र समझा जाता है, लेकिन आबादी के ख्याल से जनजातीय लोग कम और गैर जनजातीय लोग अधिक हैं । उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश से कट कर बना है। यह एक पहाड़ी क्षेत्र है तथा यहाँ हिन्दी के साथ गढ़वाली भाषा का प्रचलन भी है। अधिकतर धार्मिक स्थल उत्तरांचल में ही अवस्थित हैं ।
इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 7 सामाजिक विज्ञान इतिहास के पाठ 7. सामाजिक-सांस्कृतिक विकास (Samajik Sanskritik Vikas Class 7th Solutions)के सभी टॉपिकों के बारे में अध्ययन करेंगे।
7. सामाजिक-सांस्कृतिक विकास
अध्याय में अंतर्निहित प्रश्न और उनके उत्तर
प्रश्न : आप बता सकते हैं कि इस्लाम धर्म अपने साथ खाने-पीने और पहनने की कौन-कौन सी चीजें साथ लेकर आया ? ( पृष्ठ 116) उत्तर—इस्लाम धर्म अपने साथ पहनने के लिये कुर्ता-पायजामा, सलवार – समीज, लुंगी, कमीज अचकन आदि लाये, जिन्हें हिन्दुओं ने भी अपना लिया । इस्लाम खाने की चीजों में हलवा, समोसा, पोलाव, बिरयानी आदि लाये, जिसे हिन्दू भी खाते हैं ।
प्रश्न : विभिन्न धर्मों के समानताओं एवं असमानतों को चार्ट के माध्यम से बताएँ । ( पृष्ठ 113 ) उत्तर :
इन छोटी-मोटी समानता या असमानता किसी तरह मेल-जोल में बाधक नहीं बनतीं । सभी मिल-जुलकर रहते हैं ।
प्रश्न: आप अपने शिक्षक या माता-पिता की सहायता से पाँच-पाँच हिन्दू देवी-देवताओं, सूफी एवं भक्ति संतों से जुड़े स्थलों की सूची बनाइए । उत्तर :
अभ्यास : प्रश्न तथा उनके उत्तर
आइए याद करें :
1. सिंध विजय किसने की ? (क) मुहम्मद-बिन-तुगलक (ख) मुहम्मद बिन कासिम (ग) जलालुद्दीन अकबर (घ) फिरोशाह तुगलक
2. महमूद गजनी के साथ कौन-सा विद्वान भारत आया ? (क) अल-बहार (ख) अल जवाहिरी (ग) अल-बेरूनी (घ) मिनहाज उस सिराज
3. भारत में कुर्ता-पायजामा का प्रचलन किनके आगमन से शुरू हुआ ? (क) ईसाई (ख) मुसलमान (ग) पारसी (घ) यहूदी
4. अलवार और नयनार कहाँ के भक्त संत थे ? (क) उत्तर भारत (ख) पूर्वी भारत (घ) महाराष्ट्र (घ) दक्षिण भारत
5. मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह कहाँ है ? (क) दिल्ली (ख) ढाका (ग) अजमेर (घ) आगरा
उत्तर : 1. (ख), 2. (ग), 3. (ख),
प्रश्न 2. इन्हें सुमेलित करें : (क) निजामुद्दीन औलिया (1) बिहार (ख) शंकर देव (2) दिल्ली (ग) नानकदेव (3) असम (घ) एकनाथ (4) राजस्थान (ङ) मीराबाई (5) महाराष्ट्र (च) संत दरिया साहब (6) पंजाब
प्रश्न 1. भारत में मिली-जुली संस्कृति का विकास कैसे हुआ ? प्रकाश डालें । उत्तर—1206 में दिल्ली सल्तनत की स्थापना के बाद बौद्धिक और आध्यात्मिक स्तर पर हिन्दू और मुसलमानों का सम्पर्क बना। इसके पूर्व जहाँ भारत के लोग तुर्क – अफगानों को एक लुटेरा और मूर्ति भंजक समझते थे, अब शासक के रूप में स्वीकारने लगे । इस भावना को फैलाने में उन भारतीयों की याददाश्त भी थीं, जिन्हें मालूम था कि कभी अफगानिस्तान पर भारत का शासन था । अतः यहाँ के लोग अफगानों को गैर नहीं मानते थे। खासकर बिहार में, क्योंकि अशोक बिहार का ही था। अलबरूनी, जो महमूद गजनी: के साथ भारत आया था, यहाँ रहकर संस्कृत की शिक्षा ली और हिन्दू धर्मग्रंथों और विज्ञान का अध्ययन किया। उसने यहाँ के सामाजिक जीवन को भी निकट से देखा । खूब सोच-समझकर उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘किताब-उल-हिन्द’ लिखी । दूसरी ओर अनेक सूफी संत और धर्म प्रचारक भारत के विभिन्न नगरों में बसने लगे। इससे इन दोनों धर्मों को मानने वालों के बीच पारस्परिक आदान-प्रदान और समन्वय का वातावरण बना ।
मुस्लिम शासकों, खासकर मुगलों द्वारा स्थापित राजनीतिक एकता का सबसे बड़ा प्रभाव हिन्दू भक्त संतों एवं सूफी संतों के मेल मिलाप बढ़ने पर दोनों ने इस भावना का प्रचार किया कि भगवान एक है। ईश्वर और अल्लाह में कोई फर्क नहीं । सभी धर्म के लोगों की चरम अभिलाषा खुदा तक पहुँचने की होती है। तुम खुद में खुदा को देखो ।
आगे चलकर एक के पहनावे और खानपान को दूसरे ने अपनाया । राज काज हिस्सा लेने वाले हिन्दू भी फ़ारसी पढ़ने लगे और पायजामा और अचकन का व्यवहार करने लगे। इसी प्रकार भारत में मिली-जुली संस्कृति का विकास हुआ ।
प्रश्न 2. निर्गुण भक्त संतों की भारत में एक समृद्ध परम्परा रही है । कैसे ? उत्तर – रामानन्द के अनुयायियों का एक अन्य वर्ग उदारवादी अथवा निर्गुण सम्प्रदाय कहलाता है । इन निर्गुण भक्त संतों ने ईश्वर को तो माना लेकिन उसके किसी रूप को मानने से इंकार कर दिया । ये निसकार ईश्वर में विश्वास करते थे । निर्गुण भक्त संतों ने, जाति-पात, छुआछूत, ऊँच-नीच, मूर्ति-पूजा का घोर विरोध किया। ये कर्मकांडों में भी विश्वास नहीं करते थे । निर्गुण भक्त संतों में कबीर को सर्वाधिक प्रमुख संत माना जाता है। ये एक मुखर कवि के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। कबीर इस्लाम और हिन्दू – दोनों धर्म के माहिर जानकार थे । इन्होंने दोनों धर्मों के ढकोसलेबाजी की घोर भर्त्सना की । इनके विचार ‘साखी’ और ‘सबद’ नामक ग्रंथ में संकलित हैं । इन दोनों को मिलाकर जो ग्रंथ बना है उसे ‘बीजक’ कहते हैं ।
कबीर के उपदेशों में ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म और इस्लाम धर्म, दोनों के आडम्बरपूर्ण पूजा-पाठ और आचार-व्यवहार पर कठोर कुठारापात किया गया । यद्यपि इन्होंने सरल भाषा का उपयोग किया किन्तु कहीं-कहीं रहस्यमयी भाषा का भी उपयोग किया है। ये राम को तो मानते थे लेकिन इनके राम अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र नहीं थे । इन्होंने अपने राम के रूप का इन शब्दों में बताया है :
” दशरथ के गृह ब्रह्म न जनमें, ईछल माया किन्हा । ‘ इन्होंने दशरथ के पुत्र राम को विष्णु का अवतार मानने से भी इंकार किया : चारि भुजा के भजन में भूल पड़ा संसार । कबिरा सुमिरे ताहि को जाकि भुजा अपार ।। गुरु नानक देव तथा दरिया साहेब निर्गुण भक्त संतों की परम्परा में ही थे ।
प्रश्न 3. बिहार के संत दरिया साहेब के बारे में आप क्या जानते हैं? लिखें । उत्तर—दरिया साहब का कार्य क्षेत्र तत्कालीन शाहाबाद जिला था, जिसके अब चार जिले-भोजपुर, रोहतास, बक्सर और कैमूर हो गये हैं ।
विचार से दरिया साहेब एकेश्वरवादी थे। इनका मानना था कि ईश्वर सर्वव्यापी है तथा वेद और पुराण दोनों में ही उसी का प्रकाश है। ईश्वर को दरिया साहब ने निर्गुण और निराकार माना। इन्होंने अवतार और पूजा-पाठ को मानने से इंकार कर दिया। इन्होंने मात्र प्रेम, भक्ति और ज्ञान को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना । इनके अनुसार प्रेम के बिना भक्ति असंभव है और भक्ति के बिना ज्ञान भी अधूरा है। इनका कहना था कि ईश्वर के प्रति प्रेम पाप से बचाता है और ईश्वर की अनुभूति में सहायक बनता है । ये मानते थे कि ज्ञान पुस्तकों में नहीं है, बल्कि चेतना में निहित है, जबकि विश्वास ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण मात्र है। दरिया साहब ने जाति-प्रथा, छुआछूत का विरोध किया । इनके विचारों पर इस्लाम का एवं व्यावहारिक पहलुओं पर निर्गुण भक्ति का प्रभाव दिखाई देता है। इनको मानने वालों में दलित वर्ग की संख्या अधिक थी ।
दरिया साहब के विचारों को मानने वालों की संख्या आज के भोजपुर, बक्सर, रोहतास और भभुआ जिलों में अधिक थी। उन्होंने वहाँ मठ की भी स्थापना की। इनके मानने वालों की संख्या वाराणसी में भी कम नहीं थी ।
दरिया साहब के क्या उपदेश थे, उसे निम्नांकित अंशों से मिल सकते हैं “एक ब्रह्म सकल घटवासी, वेदा कितेबा दुनों परणासी । “ “ब्रह्म, विसुन, महेश्वर देवा, सभी मिली करहिन ज्योति सेवा । “ “तीन लोक से बाहरे सो सद्गुरु का देश | “ “तीर्थ, वरत, भक्ति बिनु फीका तथा पड़ही पाखण्ड पथल का पूजा ।” दरिया साहब को बहुत हद तक कबीर का अनुगामी कहा जा सकता है
प्रश्न 4. मनेरी साहब बिहार के महान सूफी संत थे । कैसे? उत्तर – मनेरी साहब का पूरा नाम था ‘हजरत मखदुम शरफुद्दीन याहिया मनेरी ।” बिहार में फिरदौसी परम्परा के संतों में मनेरी साहब का विशेष महत्व है। भारत में मिली- जुली संस्कृति की जो पवित्र धारा सूफी संतों ने बहायी, उस संस्कृति को बिहार में मजबूत करने का काम मनेरी साहब ने ही किया । इन्होंने संकीर्ण विचारधारा का न केवल विरोध किया, बल्कि जाति-पाति एवं धार्मिक कट्टरता का भी विरोध किया । इन्होंने समन्वयवादी संस्कृति के निर्माण का सक्रिय प्रयास किया । इनके प्रयास से फिरदौसी परम्परा को बिहार में काफ़ी लोकप्रियता मिली । मनेरी साहब ने मनेर से सुनारगाँव, जो अभी बांग्लादेश में पड़ता है, तक की यात्रा की और ज्ञानार्जन किया। इसके बाद ये राजगीर तथा बिहारशरीफ में तपस्या करते हुए धर्म प्रचार में भी लीन रहे । फारसी भाषा में उनके पत्रों के दो संकलन मकतुबाते सदी एवं मकतुबात दो ग्रंथ प्रमुख हैं ।
मनेरी साहब ने हिन्दी में भी बहुत लिखा है, जिसमें इन्होंने ईश्वर को अपने सूफियाना ढंग से व्यक्त किया है । इन्होंने इस लेख में अपने को प्रेयसी तथा ईश्वर या अल्ला को प्रेमी माना है ।
मनेरी साहब का मजार मनेर में न होकर बिहार शरीफ में है। इनकी मजार बगल में ही उनकी माँ बीबी रजिया का भी मजार है । बीबी रजिया सूफी संत पीर जगजोत की बेटी थीं ।
प्रश्न 5. महाराष्ट्र के भक्त संतों की क्या विशेषता थी? उत्तर—महाराष्ट्र के भक्त संतों की विशेषता को जानने के लिये हमें 13वीं सदी से 17वी सदी तक ध्यान देना होगा। भक्त संतों की परम्परा के जन्मदाता रामानुज थे जो दक्षिण भारत के थे । उन्हीं के उपदेशों को भक्त संतों ने दक्षिण भारत से लेकर महाराष्ट्र तक फैलाया। महाराष्ट्र में 13वीं सदी में नामदेव ने भक्ति धारा को प्रवाहित किया, 17वीं सदी में तुकाराम ने आगे बढ़ाया। इस बीच हम भक्त संतों की एक समृद्ध परम्परा को देखते हैं । इन भक्त संतों ने ईश्वर के प्रति श्रद्धा, भक्ति एवं प्रेम के सिद्धान्त को लोकप्रिय बनाया। इन संतों ने धार्मिक आडम्बर, मूर्ति पूजा, तीर्थ, व्रत, उपासना और कर्मकाण्डों का घोर विरोध किया और कहा कि यह सब कुछ नहीं, केवल दिखावा मात्र है । इन्होंने आर्यों की वर्ण व्यवस्था को भी मानने से इंकार कर दिया और जाति-पाति, ऊँच-नीच के भेदभाव का घोर विरोध किया । इनके अनुयायियों ने सभी जाति के लोगों, महिलाओं और मुसलमानों को भी शामिल किया ।
महाराष्ट्र के इन संतों ने भक्ति की यह परम्परा पंढरपुर में विट्ठल स्वामी को जन- जन के ईश्वर और आराध्य के रूप में स्थापित किया । ये विट्ठल स्वामी विष्णु के हीएक रूप श्रीकृष्ण थे । महाराष्ट्रीय भक्त संतों की रचनाओं में सामाजिक कुरीतियों पर करारा प्रहार किया गया । इन्होंने सभी वर्णों, जातियों, यहाँ तक कि अंत्यज कहे जाने वाले दलितों को भी समान दृष्टि से देखा । इन भक्त संतों ने अपने अभंग द्वारा सामाजिक व्यवस्था पर ही प्रश्न चिह्न खड़ा कर दिया ।
संत तुकाराम ने अपने अभंग में लिखा : जो दीन-दुखियों, पीड़ितों को अपना समझता है वही संत है क्योंकि ईश्वर उसके साथ है । ऐसे ही विचार अन्य भक्ति संतों ने अपने अभंग में लिखा ।
विचारणीय मुद्दे :
प्रश्न 1. मध्यकालीन भक्त संतों में कुछ अपवादों को छोड़कर एक समान विशेषताएँ थीं। कैसे ? उत्तर—मध्यकालीन भारत में भक्त आंदोलन के उद्भव और विकास में कई परिस्थितियाँ जिम्मेदार थीं। वैदिक पंडा-पुरोहित कर्मकांडों को आधार बनाकर जनता का शोषण करते थे । जो कर्मकांडों के व्यय को वहन करने योग्य नहीं थे, उन्हें नीच करार दिया गया। इस कारण समाज में दलितों की संख्या बढ़ गई । इन्हीं बुराइयों को दूर करने में भक्त संत लगे रहे । यद्यपि आगे चलकर इनमें भी दो मतावलम्बी हो गये, लेकिन धर्म सुधार की जिस मकसद से ये संत बने थे उसमें कोई अन्तर नहीं आया । इसलिये कहा गया है कि कुछ अपवादों को छोड़कर भक्त संतों की एक समान विशेषताएँ थीं ।
प्रश्न 2. शंकराचार्य ने भारत को सांस्कृतिक रूप से एक सूत्र में बाँधा । कैसे ? उत्तर- शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में मठों का निर्माण कर भारत को सांस्कृतिक रूप में एक सूत्र में बाँधने का काम किया। वे चारों मठ थे :
उत्तर में बद्रीकाश्रम, दक्षिण में शृंगेरी, पूरब में पुरी तथा पश्चिम में द्वारिका । इस प्रकार हर भारतीय जीवन में एक बार इन मठों में जाकर पूजा अर्चना करना अपना एक कृत्य मानने लगा। इससे सम्पूर्ण भारत धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से एक सूत्र में बँध गया। उस शंकराचार्य को आदि शंकराचार्य कहते हैं । अभी हर मठ के अलग- अलग शंकराचार्य होते हैं, ताकि परम्परा कायम रहे। एक शंकराचार्य की मृत्यु के बाद दूसरे शंकराचार्य नियुक्त हो जाते हैं ।
प्रश्न 3. क्या आपके गाँव के पुजारी मध्यकालीन संतों की तरह कर्मकांड, जात-पात, आडम्बर आदि का विरोध करते हैं? अगर नहीं तो क्यों ? उत्तर— ग्रामीण क्षेत्रों में अभी बहुत बदलाव नहीं आया है। अभी भी यहाँ के पुजारी कर्मकांड, जातपात, आडम्बर आदि का विरोध नहीं करते। कारण कि यदि वे ऐसा करें.. तो उनकी रोजी ही समाप्त हो जाय। दूसरी बात है कि गाँव के ऊँची जातियाँ उनका समर्थन भी करती हैं। इसलिये कानून की परवाह किये बिना वे लगातार लकीर के फकीर बने हुए | आर्य समाज का जबतक बोलबाला था तब तक इसमें कुछ कमी आई थी। लेकिन अब वे निरंकुश हो गये हैं। सरकार भी कुछ नहीं कर पाती ।
प्रश्न 4. क्या आपने हिन्दू और मुसलमानों को साथ रहते हुए देखा है? उनमें क्या-क्या समानताएँ हैं? उत्तर—मैं तो जन्म से ही हिन्दू और मुसलमानों को साथ-साथ रहते हुए देखा है। हमने देखा ही नहीं है, बल्कि साथ-साथ रहे भी हैं और आज भी साथ-साथ रह रहे हैं अभी का आर्थिक जीवन इतना पेचिदा हो गया है कि बिना एक-दूसरे का सहयोग लिये हम एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। हम सभी साथ-साथ है। कभी-कभी कुछ राजनीतिक कारणों से विभेद-सा लगता है, लेकिन अन्दर से सभी साथ-साथ हैं । कुछ राजनीतिक दल तो ऐसे हैं जो एक होने ही नहीं देना चाहते हैं ? सदैव लड़ाते रहना चाहते हैं। वे यही दिखाने में मशगूल रहते हैं कि कौन पार्टी कितना मुसलमानों की हितैषी है। लेकिन इस धूर्तता को मुसलमान भी समझ गये हैं । इसका उदाहरण अभी बिहार और गुजरात है। अब राजनीतिक आधार पर वोट पड़ने लगे हैं । धर्म और जाति के आधार पर नहीं ।
प्रश्न 5. सांस्कृतिक रूप से सभी धर्मावलम्बियों को और करीब लाने के लिये आप क्या-क्या करना चाहेंगे, जिससे सौहार्दपूर्ण माहौल बने ? उत्तर – सांस्कृतिक रूप से सभी धर्मावलम्बियों को और करीब लाने के लिये हम सभी मिलजुलकर संस्कृत उत्सव मनाएँगे । उनके शादी-विवाह आदि खुशी के मौके पर उनको अपने यहाँ बुलाएँगे और उनके बुलावे पर उनके यहाँ जाएँगे। ऐसा करना क्या है, सदियों से ऐसा होता भी आया है और अभी भी हो रहा है। यदि राजनीतिक नेता चुप रहें तो कहीं कोई कड़बड़ी नहीं होगी ।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न तथा उनके उत्तर
प्रश्न 1. बसवन्ना ईश्वर को कौन-सा मंदिर अर्पित कर रहा है? उत्तर – बसवन्ना ईश्वर को अपने शरीररूपी सोने के मंदिर को अर्पित कर रहा है। उसके अनुसार चूँकि शरीर के अन्दर आत्मारूपी परमात्मा का वास है और परमात्मा अविनाशी है, अतः यह मंदिर कभी गिरनेवाला नहीं । ईंट-पत्थर के मंदिर एक दिन समाप्त हो जाएँगे, लेकिन यह मंदिर सदा खड़ा रहेगा ।
प्रश्न 2. शंकर या राजानुज के विचारों के बारे में कुछ और पता लगाने का प्रयत्न करें । उत्तर—शंकर ने मात्र पाँच वर्ष की आयु में सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था तथा उसी समय से उनमें वैराग्य की भावना जागृति हो गई थी । वे संन्यासी बन गए । भारत लिए शंकर की सर्वश्रेष्ठ देन उनके द्वारा स्थापित चार मठ हैं जो भारत के चार छोरों पर अवस्थित हैं। भारत को एक सूत्र में बाँधे रखने के विचार से उन्होंने ऐसा किया होगा ।’
रामानुज वैष्णव सम्प्रदाय से संबंधित थे। इनकी परम्परा में इनके शिष्य रामानन्द हुए जो राम के अनन्य भक्त थे। कबीर रामानन्द को ही अपना गुरु मानते थे ।
प्रश्न 3. नाथपंथियों, सिद्धों और योगियों के विश्वासों और आचार- व्यवहारों का वर्णन करें । उत्तर – नाथपंथियों, सिद्धों और योगियों ने लगभग समान बातों पर ही जोर दिया। उनके विचार से केवल एक निराकार प्रभु का चिंतन-मनन करना चाहिए। वे रुढ़िवादी कर्मकांडों का विरोध करते थे । उन्होंने मोक्ष के लिए योगासन, प्राणायाम जैसी क्रियाओं के द्वारा मन को एकाग्र रखने की बात कही । ये तीनों उत्तर भारत में, खास तौर से तथाकथित निम्न जातियों में विशेष मान्य हुए । इन्होंने रुढ़िवादी धर्म की आलोचना की, भक्ति मार्ग. के लिए आधार तैयार किया, जो आगे चलकर काफी लोकप्रिय हुआ ।
प्रश्न 4. कबीर द्वारा अभिव्यक्त प्रमुख विचार क्या-क्या थे? उन्होंने इन विचारों को कैसे अभिव्यक्त किया ?, उत्तर — कबीर धार्मिक परम्पराओं और बाह्माडंबरों के प्रबल विरोधी थे । उन्होंने हिन्दू और इस्लाम दोनों धर्मों के दिखावा का मजाक उड़ाया । उनकी कविता की भाषा ठेठ स्थानीय है, जिसे किसी हद तक हिन्दी भी माना जा सकता है। वैसे उसमें भोजपुरी शब्दों की भरमार है। उनकी कविताओं को समझना आसान तो था, लेकिन कुछ गूढ़ कथनों को समझना विद्वानों के लिए भी कठिन होता है। वे निराकार परमेश्वर में विश्वास रखते थे । उन्होंने अल्लाह और ईश्वर में कोई भेद नहीं माना। इसको पाने के लिए उन्होंने मंदिर और मस्जिद में जाने के बजाय अपने दिल में ढूँढने की सलाह दी ।
प्रश्न 5. सूफियों के प्रमुख आचार-व्यवहार क्या थे? उत्तर – सूफी संत अपने खानकाहों में मिलजुलकर बैठते थे, जहाँ शाही घरानों के अलावा अभिजातवर्ग के लोग भी शामिल होते थे। सूफी गवैये खास तौर पर कौव्वाली गाते थे, जिसमें खुदा की वन्दना को विशेष ध्यान रखा जाता था। ये गाते-गाते इतना भाव-विभोर हो जाते थे कि इनकी आँखों से आँसू निकल आते थे। औलियाओं के दरगाह सूफियों के मुख्य केन्द्र माने जाने लगे। इनमें अजमेर स्थित ख्वाजा मुइउद्दीन चिश्ती का मजार विशेष प्रसिद्ध हो गया। आगे चलकर ये चमत्कारिक शक्तियों का प्रदर्शन भी करने लगे, जो इनकी प्रारंभिक मुख्य धारा के विपरीत था । ये एक अल्लाह में विश्वास तो करते थे, लेकिन पीर और औलिया भी इनकी परम्परा में सम्मिलित हो गए ।
प्रश्न 6. आपके विचार से बहुत-से गुरुओं ने उस समय प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा प्रथाओं को अस्वीकार क्यों किया? उत्तर—पन्द्रहवीं-सोलहवीं शताब्दियों में अनेक गुरु और संत हुए। इन्होंने पहले से चली आ रही धार्मिक पाखंडपूर्ण विश्वासों तथा प्रथाओं को इसलिए अस्वीकार किया कि इससे समाज में भेदभाव बढ़ने का डर था, जिससे समाज टूट भी सकता था। तुलसीदा ने हिन्दुओं में फैले सम्प्रदायवाद का विरोध किया, तथा वैष्णव, शैव और शाक्तों के झगड़ों को शांत किया। उन्होंने बताया कि ये तीनों एक ही शक्ति के अलग-अलग रूप हैं और इन बातों को लेकर समाज में मत भिन्नता की बात बेमानी है। सूरदास, कबीरदास, मीराबाई, गुरु नानक देव आदि सभी ने रूढ़िवादी परम्पराओं का विरोध किया । मीराबाई और सूरदास कृष्ण को अपना आराध्य मानते थे ।