इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत के पाठ चौदह ‘शास्त्रकारा: (Shastrakara VVI Subjective Questions)’ के महत्वपूर्ण विषयनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
उत्तर- शास्त्र मनुष्य को कर्तव्य-अकर्तव्य का बोध कराता है। शास्त्र ज्ञान का शासक होता है। सुकर्म-दुष्कर्म, सत्य-असत्य आदि की जानकारी शास्त्र से ही मिलती है।
3. भारतीय दर्शनशास्त्र और उनके प्रवर्त्तकों की चर्चा करें।(2020A І)
उत्तर- भारतीय दर्शनशास्त्र छः हें। सांख्य-दर्शन के प्रवर्तक कपिल, योग-दर्शन के प्रवर्तक पतञ्जलि, न्याय-दर्शन के प्रवर्तक गौतम, वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक कणाद, मीमांसा-दर्शन के प्रवर्तक जैमिनी तथा वेदांत-दर्शन के प्रवर्तक बादरायण ऋषि हैं।
4. ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत कौन-कौन शाखा तथा उनके प्रमुख ग्रन्थ कौन से हैं? (2018A)
उत्तर- ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत खगोल विज्ञान, गणित आदि शास्त्र हैं। आर्यभटीयम, वृहत्संहिता आदि उनके प्रमुख ग्रन्थ हैं।
5.कल्प ग्रन्थों के प्रमुख रचनाकारों का नामोल्लेख करें।(2018A)
उत्तर- कल्प ग्रन्थों के प्रमख रचनाकार बौधायन, पारद्वाज, गौतम, वशिष्ठ आदि हैं।
6. शास्त्र मनुष्यों को किन-किन चीजों का बोध कराता है?(2013A,2014A)
उत्तर- शास्त्र मनुष्यों को कर्तव्य और अकर्तव्य का बोध कराता है। यह सत्य-असत्य और सही काम तथा गलत कामों के बारे में जानकारी देता है।
7.वेदांग कितने हैं? सभी का नाम लिखें। (2013A, 2015C)
8. शास्वकाराः पाठ में किस विषय पर चर्चा की गई है? (2013A)
उत्तर- शास्त्रकारा: पाठ में शास्त्रों के माध्यम से सदगुणों को ग्रहण करने की प्रेरणा है। इससे हमें अच्छे संस्कार की सीख मिलती है। यश प्राप्त करने की शिक्षा भी मिलती है।
9. शास्त्रकाराः’ पाठ के आधार पर संस्कृत की विशेषता बताएँ। (2016A)
उत्तर- ‘शास्त्रकाराः’ पाठ के अनुसार भारतीय ज्ञान-विज्ञान संस्कृत शास्त्रों में वर्णित है। संस्कृत में ही वेद, वेदांग, उपनिषद् तथा दर्शनशास्त्र रचित हैं। इस प्रकार संस्कृत लोगों को कर्तव्य-अकर्तव्य, संस्कार, अनुशासन आदि की शिक्षा देता है।
10. ‘शास्वकारा:’ पाठ के आधार पर शास्त्र की परिभाषा अपने शब्दों में लिखें।(2017A)
उत्तर- सांसारिक विषयों से आसक्ति या विरक्ति, स्थायी, अस्थायी या कृत्रिम उपदेश जो लोगों को देता है उसे शास्त्र कहते हैं। यह मानवों के कर्तव्य और अकर्तव्य का बोध कराता है। यह ज्ञान का शासक है।
इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत के पाठ तेरह ‘विश्वशान्तिः (Viswa Shanti VVI Subjective Questions)’ के महत्वपूर्ण विषयनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
1. “विश्वशान्तिः’ पाठ का मुख्य उद्देश्य क्या है ? अथवा, “विश्वशान्तिः’ पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?(2014A) उत्तर— विश्वशान्तिः शब्द का शाब्दिक अर्थ ‘विश्व की शान्ति’ है। शान्ति भारतीय दर्शन का मूल तत्व है। इस पाठ का उद्देश्य व्यक्ति, समाज, और राष्ट्रों को आपसी द्वेष, असंतोष आदि से दूर कर शान्ति, सहिष्णुता आदि का पाठ पढाना है।
2. राष्ट्रसंघ की स्थापना का उद्देश्य स्पष्ट करें (2020A І) उत्तर- राष्ट्रसंघ की स्थापना का उद्देश्य दो देशों के बीच संभावित विश्व युद्ध को रोकना है। यह समय-समय पर दो देशों के तनाव को रोकता है।
3. विश्वशांति का सूर्योदय कब होता है? (2020A І) उत्तर- जब शंकटकाल में फंसे एक देश दूसरे देश की मदद करते हैं तथा राहत साम्रगी भेजते हैं, तो विश्वशांति का सूर्योदय होता है।
4. ‘विश्वशान्तिः’ पाठ के आधार पर उदार-हृदय पुरुष का लक्षण बतावें।(2016A)
उत्तर- ‘विश्वशान्तिः’ पाठ के अनुसार उदार-हृदय पुरुष का लक्षण है कि वह किसी को पराया नहीं समझता, जबकि उसके लिए सारी धरती ही अपनी है। उदार-हृदय वाले के लिए सारा संसार कुटुम्ब के सामान है।
5. विश्वशान्तिः पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें। उत्तर—आज विश्वभर में विभिन्न प्रकार के विवाद छिड़े हुए हैं। देशों में आंतरिक और बाह्य अशांति फैली हुई है। सीमा, नदी-जल, धर्म, दल इत्यादि को लेकर लोग स्वार्थप्रेरित होकर असहिष्णु हो गये हैं। इससे अशांति का वातावरण बना हआ है। इस समस्या को उठाकर इसके निवारण के लिए पाठ में वर्तमान स्थिति का निरूपण किया गया है।
6. विश्व में शांति कैसे स्थापित हो सकती है? उत्तर- विश्व में शांति का आधार एकमात्र परोपकार है। परोपकार की भावना मानवीय गुण है। संकटकाल में सहयोग की भावना रखना ही लक्ष्य हो, तभी हम निर्वैर , सहिष्णुता और परोपकार से शांति स्थापित कर सकते हैं।
7. वर्तमान में विश्व की स्थिति का वर्णन करें? उत्तर—आज संसार के प्रायः सभी देशों में अशान्ति व्याप्त है। किसी देश में अपनी आन्तरिक समस्याओं के कारण कलह है तो कहीं बाहरी। एक देश के कलह से दूसरे देश खुश होते हैं। कहीं अनेक राज्यों में परस्पर शीत युद्ध चल रहा है। वस्तुतः इस समय संसार अशान्ति के सागर में डूबता-उतराता नजर आ रहा है। आज विश्व विनाशक शस्त्रों के ढेर पर बैठा है।
8. अशांति के मूल कारण क्या हैं ? अथवा, विश्व अशान्ति का क्या कारण है? तीन वाक्यों में उत्तर दें। (2011A, 2015A, 2017A) उत्तर– वास्तव में अशांति के दो मूल कारण हैं-द्वेष और असहिष्णता । एक देश दुसरे देश की उन्नति देख जलते हैं, और इससे असहिष्णुता पैदा होती है। ये दोनों दोष आपसी वैर और अशांति के मूल कारण हैं।
9. संसार में अशांति कैसे नष्ट हो सकती है? उत्तर- अशांति के मूल कारण हैं- द्वेष और असहिष्णुता । स्वार्थ से ही अशांति बढती है । अशांति को वैर से नहीं रोका जा सकता। करुणा और मित्रता से ही वैर नष्ट कर संसार में शांति लाई जा सकती है।
इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत के पाठ बारह ‘कर्णस्य दनवीरता (Karnsya Danveerta VVI Subjective Questions)’ के महत्वपूर्ण विषयनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
‘कर्णस्य दानवीरता’ में कर्ण के कवच और कुण्डल की विशेषताएँ क्या थीं? (2018A)
उत्तर- कर्ण का कवच और कुण्डल जन्मजात था। जब तक उसके पस कवच और कुण्डल रहता, दुनिया की कोई शक्ति उसे मार नहीं सकती थी। कवच और कुण्डल उसे अपने पिता सूर्य देव से प्राप्त थे, जो अभेद्य थे।
दानवीर कर्ण के चरित्र पर प्रकाश डालें ?
अथवा, कर्ण की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन करें। (2020A І, 2018A)
उत्तर- दानवीर कर्ण एक साहसी तथा कृतज्ञ (उपकार माननेवाला) आदमी था। वह सत्यवादी और मित्र का विश्वासपात्र था। दुर्योधन द्वारा किए गए उपकार को वह कभी नहीं भला। उसका कवच-कुण्डल अभेद्य था फिर भी उसने इंद्र को दानस्वरूप दे दिया। वह दानवीर था। कुरुक्षेत्र में वीरगति को पाकर वह भारतीय इतिहास में अमर हो गया।
कर्ण कौन था एवं उसके जीवन से हमें क्या शिक्षा मिलती है? (2020A І)
उत्तर- कर्ण कुंती का पुत्र था। महाभारत के युद्ध में उसने कौरव पक्ष से लड़ाई की। इस पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दान ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है, क्योंकि केवल दान ही स्थिर रहता है। शिक्षा समय-परिवर्तन के साथ समाप्त हो जाती है। वृक्ष भी समय के साथ नष्ट हो जाता है। इतना ही नहीं, जलाशय भी सूखकर समाप्त हो जाता है। इसलिए कोई मोह किए बिना दान अवश्य करना चाहिए।
4. दानवीर कर्ण ने इन्द्र को दान में क्या दिया ? तीन वाक्यों में उत्तर दें।(2011C)
अथवा, ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महत्ता को बताएं।(2016A)
उत्तर- दानवीर कर्ण ने इन्द्र को अपना कवच और कुण्डल दान में दिया । कर्ण को ज्ञात था कि यह कवच और कण्डल उसका प्राण-रक्षक है। लेकिन दानी स्वभाव होने के कारण उसने इन्द्ररूपी याचक को खाली लौटने नहीं दिया ।
5. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के नाटककार कौन हैं ? कर्ण किनका पुत्र था तथा उन्होंने इन्द्र को दान में क्या दिया? (2011A)
उत्तर—’कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के नाटककार ‘भास’ हैं। कर्ण कुन्ती का पुत्र था तथा उन्होंने इन्द्र को दान में अपना कवच और कुण्डल दिया।
6. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर इन्द्र के चरित्र की विशेषताओं को लिखें। (2011A, 2015A)
अथवा, ‘कर्णस्य दानवीरता पाठ के आधार पर इन्द्र की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख करें। (2018A)
उत्तर- इन्द्र स्वर्ग का राजा है किन्तु वह सदैव सशंकित रहता है कि कहीं कोई उसका पद छीन न ले। वह स्वार्थी तथा छली है। उसने महाभारत में अपने पुत्र अर्जुन को विजय दिलाने के लिए ब्राह्मण का वेश बनाकर छल से कर्ण का कवच-कुण्डल दान में ले लिया ताकि कर्ण अर्जुन से हार जाए।
7. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महिमा का वर्णन करें।
अथवा, ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान के महत्व का वर्णन करें।(2016A, 2018C)
उत्तर– कर्ण जब कवच और कुंडल इन्द्र को देने लगते हैं तब शल्य उन्हें रोकते हैं। इसपर कर्ण दान की महिमा बतलाते हुए कहते हैं कि समय के परिवर्तन से शिक्षा नष्ट हो जाती है, बड़े-बड़े वृक्ष उखड़ जाते हैं, जलाशय सूख जाते हैं, परंतु दिया गया दान सदैव स्थिर रहता है, अर्थात दान कदापि नष्ट नहीं होता है।
8. कर्णस्य दानवीरता पाठ कहाँ से उद्धत है। इसके विषय में लिखें।
उत्तर- ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ भास-रचित कर्णभार नामक रूपक से उद्धृत है। इस रूपक का कथानक महाभारत से लिया गया है। महाभारत युद्ध में कुंतीपुत्र कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध करता है। कर्ण के शरीर में स्थित जन्मजात कवच और कुंडल उसकी रक्षा करते हैं। इसलिए, इन्द्र छलपूर्वक कर्ण से कवच और कुंडल मांगकर पांडवों की सहायता करते हैं।
9. कर्ण के प्रणाम करने पर इन्द्र ने उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद क्यों नहीं कहा?
उत्तर- इन्द्र जानते थे कि कर्ण को युद्ध में मरना अवश्य संभव है। कर्ण को यदि दीर्घायु होने का आशीर्वाद दे देते, तो कर्ण की मृत्यु युद्ध में संभव नहीं थी। वह दीर्घायु हो जाता। कुछ नहीं बोलने पर कर्ण उन्हें मूर्ख समझता। इसलिए इन्द्र ने उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद न देकर सूर्य, चंद्रमा, हिमालय और समुद्र की तरह यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया।
10. कर्ण ने कवच और कंडल देने के पूर्व इन्द्र से किन-किन चीजों को दानस्वरूप लेने के लिए आग्रह किया? (2018A)
उत्तर- इन्द्र कर्ण से बड़ी भिक्षा चाहते थे। कर्ण समझ नहीं सका कि इन्द्र भिक्षा के रूप में उनका कवच और कुंडल चाहते हैं। इसलिए कवच और कंडल देने से पूर्व कर्ण ने इन्द्र से अनुरोध किया कि वे सहस्र गाएँ, हजारों घोडें, हाथी, अपर्याप्त स्वर्ण मुद्राएँ और पृथ्वी (भूमि), अग्निष्टोम फल या उसका सिर ग्रहण करें
11.‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर- ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दान ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है, क्योंकि केवल दान ही स्थिर रहता है। शिक्षा समय-परिवर्तन के साथ समाप्त हो जाती है। वृक्ष भी समय के साथ नष्ट हो जाता है। इतना ही नहीं, जलाशय भी सूखकर समाप्त हो जाता है। इसलिए कोई मोह किए बिना दान अवश्य करना चाहिए।
कर्णस्य दानवीरता पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें। (2012C)
उत्तर- यह पाठ संस्कृत के प्रथम नाटककार भास द्वारा रचित कर्णभार नामक एकांकी रूपक से संकलित किया गया है। इसमें महाभारत के प्रसिद्ध पात्र कर्ण की दानवीरता दिखाई गयी है। इन्द्र कर्ण से छलपूर्वक उनके रक्षक कवचकुण्डल को मांग लेते हैं और कर्ण उन्हें दे देता है। कर्ण बिहार के अद्भराज्य (मुंगेर तथा भागलपुर) का शासक था। इसमें संदेश है कि दान करते हुए मांगने वाले की पृष्ठभूमि जान लेनी चाहिए, अन्यथा परोपकार विनाशक भी हो जाता है।
13. इन्द्र ने कर्ण से कौन-सी बड़ी भिक्षा माँगी और क्यों?
उत्तर- इन्द्र ने कर्ण से बड़ी भिक्षा के रूप में कवच और कुंडल माँगी। अर्जुन की सहायता करने के लिए इन्द्र ने कर्ण से छलपूर्वक कवच और कुंडल माँगे, क्योंकि जब तक कवच और कुंडल उसके शरीर पर विद्यमान रहता, तब तक उसकी मृत्यु नहीं हो सकती थी। चूँकि कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध कर रहे थे, अतः पांडवों को युद्ध में जिताने के लिए कर्ण से इन्द्र ने कवच और कुंडल की याचना की।
14. शास्त्रं मानवेभ्यः किं शिक्षयति?(2018A)
उत्तर- शास्त्र मनुष्य को कर्तव्य-अकर्तव्य का बोध कराता है। शास्त्र ज्ञान का शासक होता है। सुकर्म-दुष्कर्म, सत्य-असत्य आदि की जानकारी शास्त्र से ही मिलती है।
कर्ण की दानवीरता का वर्णन अपने शब्दों में करें। (2011C, 2014A, 2015C)
उत्तर- कर्ण सूर्यपुत्र है । जन्म से ही उसे कवच और कुण्डल प्राप्त है। जबतक कर्ण के शरीर में कवच-कुण्डल है तब तक वह अजेय है। उसे कोई मार नहीं सकता है। कर्ण महाभारत युद्ध में कौरवों के पक्ष में युद्ध करता है। अर्जुन इन्द्रपुत्र हैं। इन्द्र अपने पुत्र हेतु छलपूर्वक कर्ण से कवच और कुण्डल माँगने जाते हैं। दानवीर कर्ण सूर्योपासना के समय याचक को निराश नहीं लौटाता है। इन्द्र इसका लाभ उठाकर दान में कवच और कुण्डल माँग लेते हैं। सब कुछ जानते हुए भी इन्द्र को कर्ण अपना कवच और कुंडल दे देता है।
इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत के पाठ ग्यारह ‘व्याघ्रपथिककथा (Vyaghra Pathik Katha VVI Subjective Questions)’ के महत्वपूर्ण विषयनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
Vyaghra Pathik Katha VVI Subjective Questions Sanskrit Cha[ter 11 व्याघ्रपथिककथा (बाघ और पथिक की कहानी) लेखक- नारायण पण्डित
लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20-30 शब्दों में) ____दो अंक स्तरीय 1. ‘व्याघ्रपथिककथा’ के आधार पर बतायें कि दान किसको देना चाहिए ? (2018A) उत्तर- दान गरीबों को देना चाहिए। जिससे कोई उपकार नहीं कराना हो, उसे दान देना चाहिए। स्थान, समय और उपयुक्त व्यक्ति को ध्यान में रखकर दान देना चाहिए।
2. सोने के कंगन को देखकर पथिक ने क्या सोचा ?(2020A ІІ) उत्तर- पथिक ने सोने के कंगन को देखकर सोचा कि ऐसा भाग्य से ही मिल सकता है, किन्तु जिस कार्य में खतरा हो, उसे नहीं करना चाहिए। फिर लोभवश उसने सोचा कि धन कमाने के कार्य में खतरा तो होता ही है। इस तरह वह लोभ से वशीभूत होकर बाघ की बातों में आ गया।
3. धन और दवा किसे देना उचित है ? (2020A І) उत्तर- व्याघ्रपथिककथा पाठ के माध्यम से बताया गया है कि धन उसे देना उचित है, जो निर्धन हो तथा दवा उसे देना उचित है, जो रोगी हो अर्थात् धनवान को धन देना और निरोग को दवा देना उचित नहीं है।
4. ‘व्याघ्रपथिककथा’ कहाँ से लिया गया है? इसके लेखक कौन हैं तथा इससे क्या शिक्षा मिलती है? (2017A) उत्तर- ‘व्याघ्रपथिककथा’ हितोपदेश ग्रंथ के मित्रलाभ खण्ड से ली गई है। इसके लेखक ‘नारायण पंडित’ जी हैं। इस कथा के द्वारा नारायणपंडित हमें यह शिक्षा देते हैं कि दुष्टों की बातों पर लोभ में आकर विश्वास नहीं करना चाहिए । सोच समझकर ही काम करना चाहिए। इस कथा का उद्देश्य मनोरंजन के साथ व्यावहारिक ज्ञान देना है।
5. नारायण पंडित रचित व्याघ्रपथिककथा पाठ का मूल उद्देश्य क्या है? उत्तर- व्याघ्रपथिककथा का मूल उद्देश्य यह है कि हिंसक जीव अपने स्वभाव को नहीं छोड़ सकता। इस कथा के द्वारा नारायण पंडित हमें यह शिक्षा देते हैं कि दुष्ट की बातों पर लोभ में आकर विश्वास नहीं करना चाहिए। सोच-समझकर ही काम करना चाहिए। इस कथा का उद्देश्य मनोरंजन के व्यावहारिक ज्ञान देना है।
6. व्याघ्रपथिककथा’ को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए। अथवा, व्याघ्रपथिककथा के लेखक कौन हैं? इस पाठ से क्या शिक्षा मिलती ? पाँच वाक्यों में उत्तर दें। (2012A) उत्तर- यह कथा नारायण पण्डित रचित हितोपदेश के नीतिकथाग्रन्थ के मित्रलाभखण्ड से ली गयी है। इस कथा में एक पथिक वृद्ध व्याघ्र द्वारा दिये गये प्रलोभन में पड़ जाता है। वृद्ध व्याघ्र हाथ में सुवर्णकंगन लेकर पथिक को अपनी ओर आकृष्ट करता है। पथिक निर्थन होने के बावजूद व्याघ्र पर विश्वास नहीं करता । तब व्याघ्र द्वारा सटीक तर्क दिये जाने पर पथिक संतुष्ट होकर कंगन ले लेना उचित समझता है। स्नान कर कंगन ग्रहण करने की बात स्वीकार कर पधिक महाकीचड़ में गिर जाता है और वृद्ध व्याघ्र द्वारा मारा जाता है। इस कथा में संदेश और शिक्षा यही है कि नरभक्षी प्राणियों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए और अपनी किसी भी समस्या का समाधान ऐसे व्यक्ति द्वारा नजर आये तब भी उसके लोभ में नहीं फँसना चाहिए ।
7.व्याघ्रपथिककथा से क्या शिक्षा मिलती है?(2015A, 2015C) अथवा, व्याघ्रपथिककथा में मूल संदेश क्या है? उत्तर- इस कथा के द्वारा नारायण पंडित हमें यह शिक्षा देते हैं कि दुष्ट की बातों पर लोभ में आकर विश्वास नहीं करना चाहिए। सोच-समझकर ही काम करना चाहिए। नरभक्षी (जो मनुष्य को आहार के रूप में खाता है।) प्राणियों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए और अपनी किसी भी समस्या का समाधान ऐसे व्यक्ति द्वारा नजर आये तब भी उसके लोभ में नहीं फँसना चाहिए। इस कथा का उद्देश्य मनोरंजन के साथ व्यावहारिक ज्ञान देना है।
8.पथिक वृद्ध बाघ की बातों में क्यों आ गया? उत्तर- पथिक ने सोने के कंगन की बात सुनकर सोचा कि ऐसा भाग्य से ही मिल सकता है, किन्तु जिस कार्य में खतरा हो, उसे नहीं करना चाहिए। फिर लोभवश उसने सोचा कि धन कमाने के कार्य में खतरा तो होता ही है। इस तरह वह लोभ से वशीभूत होकर बाघ की बातों में आ गया।
9.व्यापथिककथा पाठ का पांच वाक्यों में परिचय दें। उत्तर- यह कथा नारायण पंडित रचित प्रसिद्ध नीतिकथाग्रन्थ ‘हितोपदेश’ के प्रथम भाग ‘मित्रलाभ’ से संकलित है। इस कथा में लोभाविष्ट व्यक्ति की दुर्दशा का निरूपण है। आज के समाज में छल-कपट का वातावरण विद्यमान है, जहाँ अल्प वस्तु के लोभ से आकृष्ट होकर लोग अपने प्राण और सम्मान से वंचित हो जाते हैं। एक बाघ की चाल में फंसकर एक लोभी पथिक उसके द्वारा मारा गया।
10.सात्विक दान क्या है? पठित पाठ के आधार पर उत्तर दें।(2018A) उत्तर- उपयुक्त स्थान, समय एवं व्यक्ति को ध्यान में रखकर दिया गया दान सात्विक होता है।
11.बद्ध बाघ ने पथिकों को फंसाने के लिए किस तरह का भेष रचाया? उत्तर- वृद्ध बाघ ने पथिकों को फंसाने के लिए एक धार्मिक का भेष रचाया । उसने स्नान कर और हाथ में कुश लेकर तालाब के किनारे पथिकों से बात कर उन्हें दानस्वरूप सोने का कंगन पाने का लालच दिया ।
12.वृद्ध बाघ पथिक को पकड़ने में कैसे सफल हुआ था? अथवा, बाघ ने पथिक को पकड़ने के लिए क्या चाल चली? उत्तर- वृद्ध बाघ ने एक धार्मिक का भेष रचकर तालाब के किनारे पथिकों को सोने का कंगन लेने के लिए कहा । उस तालाब में अधिकाधिक कीचड़ था। एक लोभी पथिक उसकी बातों में आ गया। बाघ ने लोभी पथिक को स्वर्ण कंगन लेने से पहले तालाब में स्नान करने के लिए कहा। उस बाघ की बात पर विश्वास कर जब पथिक तालाब में घुसा, वह बहुत अधिक कीचड़ में धंस गया और बाघ ने उसे पकड़ लिया तथा मारकर खा गया।
इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत के पाठ दस ‘मंदाकिनीवर्णनम् (Mandakini Varnanam VVI Subjective Questions)’ के महत्वपूर्ण विषयनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
Class 10th Sanskrit Chapter 10 Mandakini Varnanam VVI Subjective Questions मंदाकिनीवर्णनम् लेखक – महर्षि बाल्मीकि
लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20-30 शब्दों में) ____दो अंक स्तरीय 1. मंदाकिनी का वर्णन करने में ‘राम’ सीता को किन-किन रूपों में संबोधित करते हैं? उत्तर- ‘परमपावनी’ गंगा’ की शोभा से वशीभूत (वश मे होना) ‘राम’ सीता को इसकी सुन्दरता का निरीक्षण करने के लिए अपने भाव प्रकट करते हैं; हे सीते ! प्रिये ! विशालाक्षि ! शोभने । आदि संबोधन से संबोधित करते हैं।
2. मनुष्य को प्रकृति से क्यों लगाव रखना चाहिए? उत्तर- प्रकृति ही मनुष्य को पालती है, अतएव प्रकृति को शुद्ध होना चाहिए। यहाँ महर्षि वाल्मीकि प्रकृति के यथार्थ रूप का वर्णन करके मनुष्य को लगाव रखने का संदेश देते हैं। इससे हमारा जीवन सुखमय एवं आनंदमय होगा।
3. मंदाकिनीवर्णनम् से हमें क्या संदेश मिलता है? उत्तर- मंदाकिनीवर्णनम् महर्षि वाल्मीकि के द्वारा रचित रामायण के अयोध्याकांड के 95 सर्ग से संकलित है। इससे हमें यह संदेश मिलता है कि प्रकृति हमारे चित्त को हर लेती है तथा इससे पर्यावरण सुरक्षित रहता है। प्रकृति की शुद्धता के प्रति हमें हमेशा ध्यान देना चाहिए।
4. मन्दाकिनी वर्णनम् पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें। अथवा, ‘मन्दाकिनी’ का वर्णन अपने शब्दों में करें। उत्तर- वाल्मीकीय रामायण के अयोध्याकाण्ड की सर्ग संख्या-95 से संकलित इस पाठ में चित्रकूट के निकट बहने वाली मन्दाकिनी नामक छोटी नदी का वर्णन है। इस पाठ में आदिकवि वाल्मीकि की काव्यशैली तथा वर्णन क्षमता अभिव्यक्त हुई है। वनवास काल में जब राम, सीता और लक्ष्मण एक साथ चित्रकूट जाते हैं, तब मंदाकिनी की प्राकृतिक सुंदरता से प्रभावित हो जाते है। वे सीता से कहते हैं कि यह नदी प्राकृतिक संपदाओं से घिरी होने के कारण मन को आकर्षित कर रही है। यह नदी रंग-बिरंगी छटा वाली और हंसों द्वारा सुशोभित है। ऋषिगण इसके निर्मल जल में स्नान कर रहे हैं। श्रीराम सीता को मन्दाकिनी का वर्णन सुनाते है ।
5. श्रीराम के प्रकृति सौंदर्य बोध पर अपना विचार लिखें।(2020A І) उत्तर- वनवास काल में जब राम, सीता और लक्ष्मण एक साथ चित्रकूट जाते हैं, तब श्रीराम मंदाकिनी की प्राकृतिक सुंदरता से प्रभावित हो जाते है। वे सीता से कहते हैं कि यह नदी प्राकृतिक संपदाओं से घिरी होने के कारण मन को आकर्षित कर रही है। यह नदी रंग-बिरंगी तटों वाली और हंसों द्वारा सुशोभित है। ऋषिगण इसके निर्मल जल में स्नान कर रहे हैं। श्रीराम सीता को मन्दाकिनी का वर्णन सुनाते है।
इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत के पाठ नौ ‘स्वामी दयानन्द: (Swami Dyanand VVI Subjective Questions)’ के महत्वपूर्ण विषयनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
Swami Dyanand VVI Subjective Questions Sanskrit Chapter 9 स्वामी दयानन्द:
लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20-30 शब्दों में) ____दो अंक स्तरीय 1. स्वामी दयानन्द कौन थे ? समाज सुधार के लिए उन्होंने क्या किया?(2016A) उत्तर- स्वामी दयानन्द समाजसुधारक थे। उन्होंने समाज की गलत रीतियों को लोगों के साथ मिलकर दूर करने का प्रयास किया तथा डीएवी शिक्षण संस्था स्थापित की।
2. स्वामी दयानन्द समाज के महान् उद्धारक थे, कैसे? (तीन वाक्यों में उत्तर दें।) (2014C, 2015A) अथवा, स्वामी दयानन्दः पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें। (2011A) अथवा, स्वामी दयानन्द का जन्म कहाँ हुआ था? समाज सुधार के लिए उन्होंने क्या किया? (2011A) उत्तर- स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म गजरात प्रांत के टंकारा नामक गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्नीसवीं शताब्दी ईस्वी में मुख्य समाजसुधारकों में स्वामी दयानन्द अती प्रसिद्ध हैं। इन्होंने रूढ़ीग्रस्त समाज और विकृत धार्मिक व्यवस्था पर कठोर प्रहार करके आर्य समाज की स्थापना की। जिसकी शाखाएँ देश-विदेश में शिक्षा सुधार के लिए भी प्रयत्नशील रही है। शिक्षा व्यवस्था में गुरुकुल पद्धति का पुनरुद्धार करते हुए इन्होंने आधुनिक शिक्षा के लिए डीएवी (दयानन्द एंग्लो वैदिक) विद्यालय जैसी संस्थाओं की स्थापना की।
3. स्वामी दयानन्द ने अपने सिद्धांतों के कार्यान्वयन हेतु क्या किया?(2018C) उत्तर- आधुनिक भारत के समाज और शिक्षा के महान उद्धारक स्वामी दयानंद भारतीय समाज में फैली हुई अस्पृश्यता, धर्मकार्यों में आडम्बर आदि अनेक विषमताओं को दूर करने का प्रयास किया। भारतवर्ष में इन्होंने राष्ट्रीयता को लक्ष्य बनाकर भारतवासियों के लिए पथप्रदर्शक का काम किया। दूषित प्रथा को खत्म कर शुद्ध तत्व ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया । वैदिक धर्म एवं सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रंथ की रचना कर भारतवासियों को एक नई शिक्षा नीति की ओर अभिप्रेरित किया।
4. स्वामी दयानन्द ने अपने सिद्धांतों के कार्यान्वयन हेतु क्या किया?(2018C) उत्तर- आधुनिक भारत के समाज और शिक्षा के महान उद्धारक स्वामी दयानंद भारतीय समाज में फैली हुई अस्पृश्यता, धर्मकार्यों में आडम्बर आदि अनेक विषमताओं को दूर करने का प्रयास किया। भारतवर्ष में इन्होंने राष्ट्रीयता को लक्ष्य बनाकर भारतवासियों के लिए पथप्रदर्शक का काम किया। दूषित प्रथा को खत्म कर शुद्ध तत्व ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया । वैदिक धर्म एवं सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रंथ की रचना कर भारतवासियों को एक नई शिक्षा नीति की ओर अभिप्रेरित किया।
5. वैदिक धर्म के प्रचार के लिए स्वामी दयानन्द ने क्या किया? उत्तर- वैदिक धर्म और सत्य के प्रचार के लिए स्वामी दयानन्द ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया । वेदों के प्रति सभी अनुयायियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए उन्होंने वेदों के उपदेशों को संस्कृत एवं हिंदी में लिखा।
6.मध्यकाल में भारतीय समाज में फैली कुरीतियों का वर्णन अपने शब्दों में करें। (2018A) उत्तर- मध्यकाल में अनेक गलत रीति-रिवाजों से भारतीय समाज दूषित हो गया था। जातिवाद, छूआछूत, अशिक्षा, विधवाओं की दुर्गति आदि अनेक उदाहरण थे, जो भारतीय समाज को अंधेरा की ओर ले जा रहे थे। दलित हिन्दुओं ने समाज में अपमानित होकर धर्मपरिवर्तन शुरू कर दिये थे।
7. स्वामी दयानन्द ने समाज के उद्वार के लिए क्या किया? (2015A) उत्तर- स्वामी दयानन्द ने समाज के उद्धार के लिए स्त्री शिक्षा पर बल दिया और विधवा विवाह हेतु समाज को प्रोत्साहित किया। उन्होंने बाल विवाह समाप्त करवाने, मूर्तिपूजा का विरोध और छुआछूत समाप्त कराने का प्रयत्न किया।
8. आर्यसमाज की स्थापना किसने की और कब की? आर्य समाज के बारे में लिखें। उत्तर- आर्यसमाज की स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1885 में मुंबई नगर में की। आर्यसमाज वैदिक धर्म और सत्य के प्रचार पर बल देता है। यह संस्था मूर्तिपूजा का विरोध करती है । आर्यसमाज ने नवीन शिक्षा-पद्धति को अपनाया । डी. ए. वी. नामक विद्यालयों के समूह की स्थापना की। आज इस संस्था की शाखाएं-प्रशाखाएँ देश-विदेश के प्रायः हरेक प्रमुख नगर में अवस्थित हैं।
9. स्वामी दयानन्द मूर्तिपूजा के विरोधी कैसे बने? (2013A, 2015C) अथवा, स्वामी दयानन्द को मूर्तिपूजा के प्रति अनास्था कैसे हुई?(2018A) उत्तर- स्वामी दयानन्द के माता-पिता भगवान शिव के उपासक थे। महाशिवरात्रि के दिन शिव-पार्वती की पूजा इनके परिवार में विशेष रूप में मनाई जाती थी। एक बार महाशिवरात्रि के दिन इन्होंने देखा कि एक चूहा भगवान शंकर की मूर्ति के ऊपर चढ़कर उनपर चढ़ाए हुए प्रसाद को खा रहा है। इससे उन्हें विश्वास हो गया कि मूर्ति में भगवान नहीं होते। इस प्रकार वे मूर्तिपूजा के विरोधी हो गए।
10. महाशिवरात्रि पर्व स्वामी दयानन्द के जीवन का उदबोधक कैसे बना?(2018C) उत्तर- एक बार महाशिवरात्रि के दिन शिव-उपासना के समय इन्होंने देखा कि एक चूहा भगवान शंकर की मूर्ति के ऊपर चढ़कर उनपर चढ़ाए हुए प्रसाद को खा रहा है। इससे उन्हें विश्वास हो गया कि मूर्ति में भगवान नहीं होते । इस प्रकार वे मूर्तिपूजा के विरोधी हो गए और वेदों का अध्ययन कर सत्य का प्रचार करने लगे। इस प्रकार शिवरात्रि पर्व उनके जीवन का उद्बोधक बना ।
इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत के पाठ आठ ‘कर्मवीरकथा (Karmveer Katha VVI Subjective Questions)’ के महत्वपूर्ण विषयनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
Karmveer Katha VVI Subjective Questions Sanskrit Chapter 8कर्मवीरकथा (कर्मवीर की कहानी) कर्मवीर – कर्तव्य में वीर, परिश्रमी, कर्मवान
लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20-30 शब्दों में) ____दो अंक स्तरीय 1. कर्मवीरकथाका पाँच वाक्यों में परिचय दें। उत्तर- इस पाठ में एक पुरुषार्थी की कथा है, वह निर्धन एवं दलित जाति में जन्म जैसे विपरीत परिवेश में रहकर भी प्रबल इच्छाशक्ति तथा उन्नति की उत्कट कामना के कारण उच्च पद पर पहुँचता है। यह कथा किशोरों में आत्मविश्वास और आत्मसम्मान उत्पन्न करती है, विजय के पथ को प्रशस्त करती है। ऐसे कर्मवीर हमारे आदर्श हैं।
2. रामप्रवेशरामका चरित्र-चित्रण करें। अथवा, रामप्रवेशराम की जीवनी पर प्रकाश डालें। अथवा, कर्मवीर कौन था? उनकी सफलता की कहानी पाँच वाक्यों में लिखें। उत्तर- रामप्रवेशराम ‘कर्मवीरकथा’ का प्रमुख पात्र हैं। इनका जन्म बिहार राज्य अन्तर्गत भीखनटोला में हुआ है। कभी खेलों में संलग्न रहनेवाले रामप्रवेशराम अध्यापक का सान्निध्य पाकर विद्य अध्ययन में जुट गए। गुरु का आशीर्वाद और मेहनत उनकी सफलता की सीढ़ी बनते गये। धन के अभाव के बीच भी उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा। विद्यालय स्तर से लेकर प्रतियोगिता परीक्षाओं में प्रथम स्थान प्राप्त करते गए। केन्द्रीय लोकसेवा आयोग परीक्षा में उत्तीर्ण होकर उन्होंने समाज के समक्ष अपना आदर्श प्रस्तुत कर दिया । उनकी प्रशासन क्षमता और संकट काल में निर्णायक सामर्थ्य सभी को आकर्षित करते हैं।
3. कर्मवीरकथा से हमें क्या शिक्षा मिलती है? (2014A) अथवा, कर्मवीरकथा‘ से क्या शिक्षा मिलती है? (2018A) उत्तर- कर्मवीर शब्द से ही आभास होने लगता है कि निश्चय ही कोई ऐसा कर्मवीर है जो अपनी निष्ठा, उद्यम, सेवाभाव आदि के द्वारा उत्तम पद को प्राप्त किये हुए है। प्रस्तुत पाठ में एक ऐसे ही कर्मवीर की चर्चा है जो अभावग्रस्त जीवन-यापन करते हुए भी स्नेहिल शिक्षक का सान्निध्य पाकर विविध बाधाओं से लड़ता हुआ एक दिन शीर्ष पद को प्राप्त कर लेता है। मनुष्य की उत्साही, निष्ठा, सच्चरित्रता आदि गुण उसे निश्चय ही सफलता की सीढ़ियों पर अग्रसारित करते हैं। अत:, हमें भी उत्साही, निष्ठा(दृढ निश्चय) आदि को आधार बनाकर सत्कर्म पर बने रहना चाहिए।
4. कर्मवीरकथा से हमें क्या शिक्षा मिलती है? (2014A) अथवा, कर्मवीरकथा‘ से क्या शिक्षा मिलती है? (2018A) उत्तर- कर्मवीर शब्द से ही आभास होने लगता है कि निश्चय ही कोई ऐसा कर्मवीर है जो अपनी निष्ठा, उद्यम, सेवाभाव आदि के द्वारा उत्तम पद को प्राप्त किये हुए है। प्रस्तुत पाठ में एक ऐसे ही कर्मवीर की चर्चा है जो अभावग्रस्त जीवन-यापन करते हुए भी स्नेहिल शिक्षक का सान्निध्य पाकर विविध बाधाओं से लड़ता हुआ एक दिन शीर्ष पद को प्राप्त कर लेता है। मनुष्य की उत्साही, निष्ठा, सच्चरित्रता आदि गुण उसे निश्चय ही सफलता की सीढ़ियों पर अग्रसारित करते हैं। अत:, हमें भी उत्साही, निष्ठा(दृढ निश्चय) आदि को आधार बनाकर सत्कर्म पर बने रहना चाहिए।
5. रामप्रवेशराम की चारित्रिक विशेषताएँक्या थी?(2018C) उत्तर- कर्मवीरकथा का प्रमुख पात्र रामप्रवेश राम है। रामप्रवेशराम दलित परन्तु लगनशील और परिश्रमी बालक है। गुरु का सानिध्य पाकर, विद्याध्ययन में लग गया । गुरु का आशीर्वाद और मेहनत से सफलतारूपी सीढ़ी चढ़ने लगा। धन के अभाव में भी अध्ययनरत रहा। विद्यालय और महाविद्यालय की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। केन्द्रीय लोक सेवा आयोग की परीक्षा में उत्तीर्ण होकर समाज के समक्ष आदर्श प्रस्तुत किया। उसकी प्रशासनिक क्षमता और संकटकाल में निर्णय लेने की कुशलता सबों का ध्यानाकर्ष करता है।
6. रामप्रवेशराम की चारित्रिक विशेषताएँक्या थी?(2018C) उत्तर- कर्मवीरकथा का प्रमुख पात्र रामप्रवेश राम है। रामप्रवेशराम दलित परन्तु लगनशील और परिश्रमी बालक है। गुरु का सानिध्य पाकर, विद्याध्ययन में लग गया । गुरु का आशीर्वाद और मेहनत से सफलतारूपी सीढ़ी चढ़ने लगा। धन के अभाव में भी अध्ययनरत रहा। विद्यालय और महाविद्यालय की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। केन्द्रीय लोक सेवा आयोग की परीक्षा में उत्तीर्ण होकर समाज के समक्ष आदर्श प्रस्तुत किया। उसकी प्रशासनिक क्षमता और संकटकाल में निर्णय लेने की कुशलता सबों का ध्यानाकर्ष करता है।
7. रामप्रवेश का जन्म कहाँ हुआ था? उन्होंने देश की सेवा से कैसे यश अर्जित की? (2016A) उत्तर- रामप्रवेशराम का जन्म भीखनटोला नाम के गाँव में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रशासन क्षमता तथा संकट के समय निर्णय लेने की सामर्थ्य से देश की सेवा कर यश अर्जित किया।
8. रामप्रवेश राम किस प्रकार केंद्रीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में सफल हुआ? उत्तर- रामप्रवेशराम एक कर्मवीर एवं निर्धन छात्र था। वह कष्टकारक जीवन जीते हुए अध्ययनशील था। वह पुस्तकालयों में अध्ययन किया करता था। केंद्रीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने में सफल रहा।
9. रामप्रवेशराम की प्रारंभिक शिक्षा के विषय में आप क्या जानते हैं? उत्तर- रामप्रवेशराम भीखनटोला गाँव का रहनेवाला एक दलित बालक था। उस बालक को एक शिक्षक ने अपने विद्यालय में लाकर शिक्षा देना प्रारंभ किया। बालक रामप्रवेशराम शिक्षक की शिक्षणशैली से आकृष्ट हुआ और शिक्षा को जीवन का परम लक्ष्य माना। विद्या अध्ययन में रात-दिन लग गया और अपने वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त करने लगा।
इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत के पाठ सात ‘नीतिश्लोका: (Niti Sloka VVI Subjective Questions)’ के महत्वपूर्ण विषयनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
Class 10th Sanskrit Chapter 7 Niti Sloka VVI Subjective Questions नीतिश्लोका: (नीति संबंधी श्लोक) लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20-30 शब्दों में) ____दो अंक स्तरी 1. नीतिश्लोकाः पाठ के आधार पर पण्डित के लक्षण बताएँ ? (2018A) उत्तर- जिसके कर्म को शर्दी, गर्मी, भय, भावुकता, समपन्नता अथवा विपन्नता बाधा नहीं डालता है, उसे ही पंडित कहा गया है तथा सभी जीवों के आत्मा के रहस्य को जानने वाले, सभी कार्यों को जानने वाला और मनुष्यों के उपाय को जानने वाले व्यक्ति को पंडित कहा जाता है।
2. अपनी प्रगति चाहनेवाले को क्या करनाचाहिए?(2018A) उत्तर- अपनी प्रगति चाहनेवाले को निद्रा, तंद्रा, भय, क्रोध, आलस और देर से काम करने की आदत को त्याग देना चाहिए।
3. नीतिश्लोकाः पाठ के आधार परमुर्खकालक्षण लिखें। (2018C) उत्तर- ‘नीतिश्लोकाः’ पाठ में महात्मा विदुर ने मूर्ख मनुष्य के तीन लक्षण बतलाए हैं। ऐसा व्यक्ति जो बिना बुलाए आता है तथा बिना पूछे ही अधिक बोलता है और अविश्वासी पर विश्वास करता है।
4. ‘नीतिश्लोकाः‘ पाठ में नरक के कितनेद्वार हैं? उसका नाम लिखें। उत्तर- ‘नीतिश्लोका:’ पाठ के आधार पर नरक के तीन द्वार हैं – काम, क्रोध और लोभ।
5. नरकस्य त्रिविधं द्वारं कस्य नाशनम् ? हिन्दी में उत्तर दें। (2014A) उत्तर- नरक जाने के तीन रास्ते हैं- काम, क्रोध तथा लोभ। इनसे आत्मा नष्ट हो जाती है। इन तीनों को छोड़ देना चाहिए।
6. नीतिश्लोकाः पाठ के अनुसार कौन-सा तीन वस्तुत्याग देना चाहिए? (2013A) उत्तर- नीतिश्लोक पाठ के अनुसार नरक के तीन द्वार काम, क्रोध और लोभ हैं। इसे त्याग देना चाहिए।
7. नीचमनुष्य कौन है? पठित पाठ के आधार पर स्पष्टकरें। उत्तर- जो बिना बुलाये हुए प्रवेश करता है, बिना पूछे हुए बहुत बोलता है, अविश्वासी पर विश्वास करता है ऐसा पुरुष ही नीच श्रेणी में आता है।
8. ‘नीतिश्लोकाः‘ पाठ के आधार पर स्त्रियों की क्याविशेषताएँ हैं? उत्तर- स्त्रियाँ घर की लक्ष्मी हैं। ये पूजनीय तथा महाभाग्यशाली हैं। ये महापुरूषों को जन्म देनेवाली होती है। इसलिए स्त्रियाँ विशेष रूप से रक्षा करने योग्य होती हैं।
9. नीतिश्लोकाः के आधार पर कैसा बोलनेवालेव्यक्ति कठिन से मिलते हैं? उत्तर- नीतिश्लोकाः पाठ में कहा गया है कि सत्य (कल्याणकारी) लेकिन अप्रिय बातों को कहनेवाले और सुननेवाले व्यक्ति इस संसार में बड़ी कठिनाई से मिलते हैं।
10. ‘नीतिश्लोकाः‘ पाठ के आधार पर नराधम केलक्षण लिखें।(2012C) उत्तर- बिना बुलाए हुए प्रवेश करता है, बिना पूछे हुए बहुत बोलता है, अविश्वसनीय व्यक्ति पर विश्वास करता है। ये नराधम के लक्षण हैं। अर्थात् मनुष्यों में नीच होते हैं।
11. ‘नीतिश्लोकाः‘ पाठ के आधार पर सुलभ औरदुर्लभ कौन है? उत्तर- सदा प्रिय बोलनेवाले, अर्थात जो अच्छा लगे वही बोलनेवाले मनुष्य सुलभ हैं। अप्रिय ही सही उचित वचन बोलने वाले तथा सुननेवाले मनुष्य दोनों ही प्रायः दुर्लभ हैं।
12. ‘नीतिश्लोकाः‘ पाठ में मुढचेतानराधमकिसे कहा गया है?(2011A, 2014A) उत्तर- जिन व्यक्तियों का स्वाभिमान मरा हुआ होता है, जो बिना बुलाए किसी के यहाँ जाता है, बिना कुछ पूछे बक-बक करता है। जो अविश्वसनीय पर विश्वास करता है ऐसा मूर्ख हृदयवाला मनुष्यों में नीच होता है। अर्थात् ऐसे ही व्यक्ति को ‘नीतिश्लोकाः’ पाठ में मूढचेतानराधम कहा गया है।
13. ‘नीतिश्लोकाः‘ पाठ से हमें क्या संदेश मिलता है? उत्तर- ‘नीतिश्लोकाः’ पाठ महात्मा विदुर-रचित ‘विदुर-नीति’ से उद्धृत है। इसमें महाभारत से लिया गया चित्त को शांत करनेवाला आध्यात्मिक श्लोक हैं। इन श्लोकों में जीवन के यथार्थ पक्ष का वर्णन किया गया है। इससे संदेश मिलता है कि सत्य ही सर्वश्रेष्ठ है। सत्य मार्ग से कभी नहीं विचलित नहीं होना चाहिए।
14. ‘नीतिश्लोकाः पाठ के आधार पर मनुष्य के षड् दोषों का हिन्दी में वर्णनकरें। अथवा, अपना विकास चाहने वाले को किन-किन दोषों को त्याग देना चाहिए? अथवा, छ: प्रकार के दोष कौनहैं? पठितपाठ के आधार पर वर्णन करें। (2016A, 2012A, 2014C) उत्तर- मनुष्य के छ: प्रकार के दोष निद्रा, तन्द्रा, भय, क्रोध, आलस्य तथा दीर्घसूत्रता ऐश्वर्य (विकास) प्राप्ति में बाधक बननेवाले होते हैं। जो पुरुष ऐश्वर्य चाहते हैं। उन्हें इन दोषों को त्याग देना चाहिए ।
15. ‘नीतिश्लोकाः‘ पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है? उत्तर- विदुर-नीति से नीतिश्लोकाः पाठ उद्धत है। इसमें महात्मा विदुर ने मन को शांत करने के लिए कुछ श्लोक लिखे हैं। इन श्लोकों से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सांसारिक सुख थोड़ी देर के लिए है, लेकिन आध्यात्मिक सुख स्थायी है। सुंदर आचरण से हम बुरे आचरण को समाप्त कर सकते हैं। काम, क्रोध, लोभ और मोह को नष्ट करके नरक जाने से से बच सकते हैं।
16.नीतिश्लोकाः पाठ का पाँच वाक्यों मेंपरिचय दें। उत्तर- इस पाठ में व्यासरचित महाभारत के उद्योग पर्व के अंतर्गत विदुरनीति से संकलित दस श्लोक हैं। महाभारत युद्ध के आरंभ में धृतराष्ट्र ने अपनी चित्तशान्ति के लिए विदुर से परामर्श किया था। विदुर ने उन्हें स्वार्थपरक नीति त्याग कर राजनीति के शाश्वत(जो कभी न बदले) पारमार्थिक (जो हमेशा एकरूप और एकरस रहे) उपदेश दिये थे। इन्हें ‘विदुरनीति’ कहते हैं। इन श्लोकों में विदुर के अमूल्य उपदेश भरे हुए हैं।
इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत के पाठ छ: ‘भारतीय संस्कारा: (Bhartiya Sanskara VVI Subjective Questions) (भारतीयों के संस्कार) ‘ के महत्वपूर्ण विषयनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
Sanskrit Chapter 6 Bhartiya Sanskara VVI Subjective Questions भारतीय संस्कारा: (भारतीयों के संस्कार)
लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20-30 शब्दों में) ____दो अंक स्तरीय 1. शैक्षणिक संस्कार कौन-कौन से हैं?(2018A) उत्तर- शैक्षणिक संस्कार में अक्षरारंभ, उपनयन, वेदारंभ, मुंडन, समावर्त्तन संस्कार आदि होते हैं।
2. ‘भारतीयसंस्काराः‘.पाठ के आधार स्पष्ट करें कि संस्कारकितने हैं तथा उनके नामक्या है ? (2017A) अथवा, संस्कार कितने प्रकार के हैं औरकौन-कौन ? अथवा, सभी संस्कारों के नाम लिखें। (2018C) उत्तर- संस्कार कुल सोलह हैं । जन्म पूर्व तीन हैं – गर्भाधान, पुंसवन और सीमन्तोनयन संस्कार होते हैं। शैशवावस्था में छः संस्कार होते हैं – जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म और कर्णबेध । पाँच शैक्षणिक संस्कार हैं – अक्षरारम्भ, उपनयन, वेदारम्भ, केशान्त और समावर्तन । यौवनावस्था में विवाह संस्कार होता है तथा व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका अन्त्येष्टि संस्कार किया जाता है।
3. संस्कार किसे कहते हैं ? विवाह संस्कारका वर्णन करें। पाँच वाक्यों में उत्तर दें। (2012C) उत्तर- व्यक्ति में गुणों के धारण को संस्कार कहते हैं। संस्कार का वास्तविक अर्थ ‘शुद्ध होना’ है। वैसे कुल सोलह संस्कार माने गए हैं। विवाह संस्कार होने पर ही वस्तुतः मनुष्य गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता है। विवाह एक पवित्र संस्कार है जिसमें अनेक प्रकार के कर्मकाण्ड होते हैं। उनमें वचन देना, मंडप बनाना, वधू के घर वरपक्ष का स्वागत, वर-वधू का एक-दूसरे को देखना, कन्यादान, अग्निस्थापना, पाणिग्रहण, लाजाहोम, सप्तपदी, सिन्दूरदान आदि मुख्य हैं।
4. ‘भारतीयसंस्कारा:’ पाठ में लेखक क्या शिक्षा देना चाहता है ? उत्तर- लेखक इस पाठ से हमें यह शिक्षा देना चाहता है कि संस्कारों के पालन से ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है। संस्कारों का उचित समय पर पालन करने से गुण बढ़ते हैं और दोषों का नाश होता है। भारतीय संस्कृति की विशेषता संस्कारों के कारण ही है। लेखक हमें सुसंस्कारों का पालन करने का संदेश देते हैं।
5. भारतीय जीवन में संस्कार का क्या महत्वहै? उत्तर- भारतीय जीवन में प्राचीन काल से ही संस्कार ने अपने महत्व को संजोये रखा है। यहाँ ऋषियों की कल्पना थी कि जीवन के सभी मुख्य अवसरों में वेदमंत्रों का पाठ, बड़ों का आशीर्वाद, हवन एवं परिवार के सदस्यों का सम्मेलन होना चाहिए। संस्कार दोषों को दूर करता है। भारतीय जीवन दर्शन का महत्वपूर्ण स्रोतस्वरूप संस्कार है।
6. केशान्त संस्कार को गोदान संस्कार भी कहा जाता है, क्यों? (2018A) उत्तर- केशान्त संस्कार में गुरु के घर में ही शिष्य का प्रथम क्षौरकर्म (हजामत) होता था। इसमें गोदान मुख्य कर्म था। अतः साहित्यिक ग्रंथों में इसका दूसरा नाम गोदान संस्कार भी प्राप्त होता है।
7. ‘भारतीयसंस्काराः’पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें। उत्तर- ‘भारतीय संस्काराः’ पाठ भारतीय संस्कारों का महत्व बताता है। भारतीय जीवन-दर्शन में क्षौर कर्म (मुण्डन), उपनयन, विवाह आदि संस्कारों की प्रसिद्धि है। छात्रगण संस्कारों का अर्थ तथा उनके महत्त्व को जान सकें, इसलिए इस स्वतंत्र पाठ को रखा गया है। इससे दोष दूर होता है तथा गुण प्राप्त होता है।
8. ‘भारतीयसंस्कारा; पाठ के आधार पर बताएं कि संस्कार कितनेहैं। तथा जन्मपूर्व संस्कारों का नाम लिखें। (2016C) उत्तर- भारतीय संस्कारः पाठ के आधार पर संस्कार 16 प्रकार के होते हैं। जन्मपूर्व संस्कार तीन हैं- गर्भाधान, (2) पुंसवन और (3) सीमान्तोनयन ।
9. ‘भारतीयसंस्काराः‘ पाठ में लेखक का क्या विचार है? उत्तर- भारतीयसंस्कारा: पाठ में लेखक का विचार है कि मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण सुसंस्कार से ही होता है। इसलिए विदेशों में भी सुसंस्कारों के प्रति उन्मुख और जिज्ञासु हैं।
10. विवाहसंस्कार का वर्णन करें। अथवा, विवाह संस्कार में कौन-कौन से मुख्य कार्य किये जाते है?(2015A) अथवा, विवाह संस्कार का वर्णन अपने शब्दों में करें।(2018A) उत्तर- विवाह संस्कार से ही लोग गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते हैं। विवाह को एक पवित्र संस्कार माना गया है, जिसमें अनेक प्रकार के कर्मकाण्ड होते हैं। उनमें वाग्दान, मण्डप-निर्माण, वधू के घर में वर पक्ष का स्वागत, वर-वधू का परस्पर निरीक्षण, कन्यादान, अग्निस्थापन, पाणिग्रहण, लाजाहोम, सिन्दरदान इत्यादि कई कर्मकांड शामिल हैं। सभी क्षेत्रों में समान रूप से विवाहसंस्कार का आयोजन होता है।
11. शिक्षासंस्कार का वर्णन करें। अथवा, शक्षणिकसंस्कार कितनेहै ? (2014C) उत्तर- शिक्षासंस्कारों में अक्षरारंभ, उपनयन, वेदारंभ, मुण्डन संस्कार और समावर्तन संस्कार आदि आते हैं। अक्षरारंभ में बच्चा अक्षर-लेखन और अंक-लेखन आरंभ करता है। उपनयन संस्कार में गुरु के द्वारा शिष्य को अपने घर में लाना होता है। वहाँ शिष्य शिक्षा नियमों का पालन करते हए अध्ययन करते हैं। केशान्त (मुण्डन) संस्कार में गुरु के घर में प्रथम क्षौरकर्म अर्थात् मुण्डन होता है तथा समावर्तन संस्कार का उद्देश्य शिष्य का गुरु के घर से अलग होकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करना होता है।
12. भारतीय संस्कार का वर्णन किस रूप मेंहुआ है ? उत्तर- भारतीय संस्कृति अनठी है। जन्म के पूर्व संस्कार से लेकर मृत्यु के बाद अन्त्येष्टि संस्कार तक 16 संस्कारों का अनुपम उदाहरण संसार के अन्य देशों में नहीं है। यहाँ की संस्कृति की विशेषता है कि जीवन में यहाँ समय-समय पर संस्कार किये जाते हैं। आज संस्कार सीमित एवं व्यंग्य रूप में प्रयोग किये जा रहे हैं। संस्कार व्यक्तित्व की रचना करता है। प्राचीन संस्कृति का ज्ञान संस्कार से ही उत्पन्न होता है। संस्कार मानव में क्रमशः परिमार्जन (शुद्धिकरण), दोषों को दूर करने और गुणों के समावेश करने में योगदान करते हैं।
13. पठित पाठ के आधार पर भारतीय संस्कारोंका वर्णन अपनी मातृभाषा में करें। उत्तर- भारतीय जीवन में प्राचीनकाल से ही संस्कारों का महत्त्व है। संस्कारों के सम्बन्ध में ऋषियों को कल्पना थी कि जीवन के प्रमुख अवसरों पर वेदमंत्रों का पाठ, गुरुजनों के आशीर्वाद, होम और परिवार के सदस्यों का सम्मेलन होना चाहिए। इन संस्कारों के उद्देश्य हैं मानव जीवन से दुर्गुणों को दूर करना और सद्गुणों का आह्वान करना। जन्म पूर्व तीन-गर्भाधान, पुंसवन और सीमन्तोनयन, संस्कार होते हैं, शैशवावस्था में छ: संस्कार होते हैं-जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म और कर्णवेधा पाँच शैक्षणिक संस्कार हैं-अक्षरारम्भ, उपनयन, वेदारम्भ, केशान्त और समावर्तन। यौवनावस्था में विवाह संस्कार होता है तथा व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका अन्त्येष्टि संस्कार किया जाता है। इस प्रकार भारतीय जीवन में कुल सोलह संस्कारों का प्रावधान किया गया है।
14. “संस्काराः प्राय: पञ्चविधाःसन्ति। जन्मपूर्वाः त्रयः।शैशवाः षट्, शैक्षणिकाः पञ्च, गृहस्थ-संस्कार-विवाहरूपःएकः मरणोत्सर संस्कारश्चैकः।“ (i) यहउक्तिकिस पाठ की है? (ii) जन्मपूर्व संस्कार कितने हैं? (iii) ‘गृहस्थ-संस्कार‘ कौन हैं? (2016A) उत्तर-(i) यह उक्ति भारतीयसंस्कारा: पाठ की है। (ii) जन्मपूर्व संस्कार तीन हैं। (iii) ‘गृहस्थ-संस्कार’ विवाह है।
इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत के पाठ तीन ‘अलसकथा (Alas Katha VVI Subjective Questions)’ के महत्वपूर्ण विषयनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
Chapter 3 Alas Katha VVI Subjective Questions अलसकथा (आलसी की कहानी) लेखक-विद्यापति
लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20-30 शब्दों में) ____दो अंक स्तरीय 1. ’अलसकथा’ से क्या शिक्षा मिलती है ? (2011C, 2015A, 2020A І) अथवा, ’अलसकथा’ पाठ के लेखक कौन हैं तथा उस कथा से क्या शिक्षा मिलती है?(2016A) उत्तर- मैथिली कवि विद्यापति रचित ’अलसकथा’ में आलसियों के माध्यम से शिक्षा दी गयी है कि उनका भरण-पोषण करुणाशीलों के बिना संभव नहीं है। आलसी काम नहीं करते, ऐसी स्थिति में कोई दयावान् ही उनकी व्यवस्था कर सकता है। अतएव आत्मनिर्भर न होकर दूसरे पर वे निर्भर हो जाते हैं। आलस एक शत्रु है, उसे त्याग देना चाहिए।
2. अलसशाला के कर्मियों ने आलसियों की परीक्षा क्यों ली ?(2020A ІІ) उत्तर- अलसशाला में बहुत सारे बनावटी आलस ग्रहण कर अन्न और वस्त्र प्राप्त करने लगे, जिससे अलसशाला का खर्च बढ गया । अधिक व्यय को देखकर को देखकर वहाँ के कर्मियों ने आलसियों की परीक्षा ली।
3. अलसशला के कर्मियों ने आलसियों को आग से कैसे और क्यों निकाला ?(2020A ІІ) उत्तर- अलसशाला में बनावटी आलस ग्रहण कर लोग अन्न और वस्त्र ग्रहण करने लगे। तब वहाँ के कर्मियों ने अलसशाला में आग लगा दिया। वहाँ लगे आग को देखकर कृत्रिम आलसी भाग गये, लेकिन चार आलसी वहीं सोये रह गये। शोरगुल के बाद भी चारों आलसी सोये अवस्था में बातचीत कर रहे थे। वहाँ के कर्मियों ने सोचा कि अगर इन्हें नहीं निकाला जायेगा, तो ये जल जायेंगे। इसलिए अलसशाला के कर्मियों ने चारों आलसियों को उनके बाल पकडकर बाहर निकाला।
4. अलसशाला में आग लगने पर क्या हआ?(2018A) उत्तर- अलसशाला में आग लगने पर सभी धूर्त आलसी भाग गए। चार आलसी सोये हुए बातें कर रहे थे। फैली आग को देखकर नियोगी पुरुषों ने चारों आलसियों के बाल पकड़कर खींचते हुए बाहर निकाला।
5. मिथिला राज्य का मंत्री कौन था ? उन्होंने कृत्रिम आलसी की परीक्षा कैसे ली तथा अग्निलग्न घर देखकर कितने आलसी बच गये? (2016C) उत्तर- मिथिला का मंत्री वीशेश्वर था। उन्होंने घर में आग लगाकर कृत्रिम आलसी की परीक्षा ली। अग्निलगन देखकर चार आलसी बच गए।
6. विद्यापति कौन थे ? उन्होंने किस ग्रंथ की रचना की? पठित पाठ के आधार पर लिखें। उत्तर- विद्यापति एक महान मैथली कवि एवं लेखक थे। इन्होंने पुरुष परीक्षा नामक ग्रंथ की रचना की। संस्कृत भाषा में लिखित पुरुष परीक्षा में कथारूप में अनेक मानवीय गुणों के महत्व का वर्णन है तथा दोष के निराकरण के लिए शिक्षा दी गयी है। विद्यापति लोकप्रिय मैथिलकवि थे। ये संस्कृत ग्रंथों के रचयिता भी थे। इनकी ख्याति मैथली विषयों के साथ-साथ संस्कृत विषयों में अत्यधिक थी।
7. विद्यापति कौन थे ? उन्होंने किस ग्रंथ की रचना की? पठित पाठ के आधार पर लिखें। उत्तर- विद्यापति एक महान मैथली कवि एवं लेखक थे। इन्होंने पुरुष परीक्षा नामक ग्रंथ की रचना की। संस्कृत भाषा में लिखित पुरुष परीक्षा में कथारूप में अनेक मानवीय गुणों के महत्व का वर्णन है तथा दोष के निराकरण के लिए शिक्षा दी गयी है। विद्यापति लोकप्रिय मैथिलकवि थे। ये संस्कृत ग्रंथों के रचयिता भी थे। इनकी ख्याति मैथली विषयों के साथ-साथ संस्कृत विषयों में अत्यधिक थी।
8. अलसकथा’ का क्या संदेश है? अथवा, ’अलसकथा’ पाठ में किस पर चर्चा की गयी है?(2016A) उत्तर- अलसकथा का संदेश है कि आलस्य एक महान रोग है। जीवन में विकास के लिए व्यक्ति का कर्मठ होना अत्यावश्यक है। आलस्य शरीर में रहनेवाला महान शत्रु है जिससे अपना, परिवार का और समाज का विनाश अवश्य ही होता है।
9. किनकी क्या-क्या गतियाँ हैं? पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।(2018A) उत्तर- गति को यहाँ विशेष रूप से विश्लेषित किया गया है। स्त्री, पुरुष एवं बच्चों की गतियाँ अलग-अलग हैं। स्त्रियों की गति पति हैं, बच्चों की गति माँ है तथा आलसियों की गति कारुणिकता (दयालुता) है। अर्थात् स्त्रियों की जीवनभंगिमा उसके पति पर निर्भर करती है। बच्चों की जीवनवृत्ति उसकी माँ ही होती है। आलसियों की जीवनवृत्ति दयालुओं पर ही निर्भर होती है।
10. अलसकथा पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें। उत्तर- यह पाठ विद्यापति द्वारा रचित पुरुषपरीक्षा नामक कथाग्रन्थ से संकलित एक उपदेशात्मक लघु कथा है। विद्यापति ने मैथिली, अवहट्ट तथा संस्कृत तीनों भाषाओं में ग्रन्थ-रचना की थी। पुरुषपरीक्षा में धर्म, अर्थ, काम इत्यादि विषयों से सम्बद्ध अनेक मनोरंजक कथाएँ दी गयी हैं। अलसकथा में आलस्य के निवारण की प्रेरणा दी गयी है। इस पाठ से संसार की विचित्र गतिविधि का भी परिचय मिलता है।
11. आलसशाला के कर्मचारियों ने आलसियों की परीक्षा क्यों और कैसे ली? (2018C) उत्तर- अलसशाला में आलसियों की सुख-सुविधाओं को देखकर कम आलसी एवं कृत्रिम आलसियों की भीड़ जुटी थी, जिससे अलसशाला का खर्च बेवजह बढ़ गया था। अतः अलसशाला के व्यर्थ खर्च को रोकने तथा सही आलसियों की पहचान के लिए अलसशाला में आग लगा दी गई, जिससे नकली आलसी भाग खड़े हुए।
12. चारों आलसियों के वार्तालाप को अपने शब्दों में लिखें।(2018A) उत्तर- चारों आलसी निश्चय ही अपने आलसपन को सिद्ध कर रहे थे। एक ने मुंह ढंककर कहा-अरे हल्ला कैसा? दूसरे ने कहा-लगता है इस घर में आग लग गई है। तीसरे ने कहा-कोई धार्मिक व्यक्ति नहीं है, जो पानी से भींगे वस्त्रों से ढंक दे। चौथे ने कहा-अरे बक-बक करनेवालों ! कितनी बातें करते हो ? चुपचाप क्यों नहीं रहते हो !
13. विद्यापति कौन थे? उन्होंने किस ग्रन्थ की रचना की तथा ’अलसकथा’ में किसकी कहानी है ? छः वाक्यों में लिखें।(2017A) उत्तर- विद्यापति एक महान कवि एवं लेखक थे। इन्होंने पुरुष परीक्षा नामक ग्रंथ की रचना की। संस्कृत भाषा में लिखित पुरुष परीक्षा में कथारूप में अनेक मानवीय गुणों के महत्व का वर्णन है। दोष के निराकरण के लिए शिक्षा दी गयी है। विद्यापति एक लोकप्रिय मैथिलकवि थे। ये संस्कृत ग्रंथों के रचयिता थे। उनकी ख्याति संस्कृत विषयों में अत्यधिक थी।
14. चारों आलसी पुरुष आग से किस प्रकार बचना चाहते थे? अथवा, ’अलस कथा’ पाठ के आधार पर बताइए कि आलसी पुरुषों को किसने और क्यों निकाला?(2014A) उत्तर- चारों आलसी पुरुष आग लगने पर भी घर से नहीं भागे। शोरगुल सुनकर वे जान गए थे कि घर में आग लगी हुई है। वे चाहते थे कि कोई धार्मिक एवं दयालु व्यक्ति आकर हमारे ऊपर भींगे हुए वस्त्र या कंबल डाल दे। जिससे आग बुझ जाए और वे लोग बच जाएँ। चूँकि आलसी व्यक्ति आग से बचने के लिए भी नहीं भाग सके इसलिए नियोगी पुरुष ने उनकी प्राण रक्षा के लिए उन्हें घर से बाहर किया।
15. अलसकथा का सारांश लिखें।(2012A) उत्तर- मिथिला में वीरेश्वर नामक मंत्री था। वह स्वभाव से दानशील और दयावान था। वह अनाथों और निर्धनों को प्रतिदिन भोजन देता था। इससे आलसी भी लाभान्वित होते थे। आलसियों को इच्छित लाभ की प्राप्ति को जानकर बहुत से लोग बिना परिश्रम तोन्द बढ़ानेवाले वहाँ इकट्ठे हो गए। इसके पश्चात् आलसियों को ऐसा सुख देखकर धूर्त लोग भी बनावटी आलस्य दिखाकर भोजन प्राप्त करने लगे। इसके बाद अत्यधिक धन-व्यय देखकर शाला चलाने वाले लोगों ने विचार किया कि छल से कपटी आलसी भी भोजन प्राप्त करते हैं। यह हमलोगों की गलती है। अतः उन आलसियों का परीक्षण करने हेतु उन्होंने आलसशाला में आग लगाकर हल्ला कर दिया। इसके बाद घर में लगी आग को बढ़ती हुई देखकर सभी धूर्त्त भाग गये। लेकिन चार पुरुष अग्नि का आभास पाकर भी अपने स्थान पर वैसे ही बने रहकर बात करने लगे कि उन्हें कोई इस अग्नि से निकाल देता। अंततः व्यवस्थापक इस संबंध में उनकी आपस की वार्तालाप को सुनकर बढ़ी हुई आग की ज्वाला से रक्षण हेतु उन्हें निकाल दिया। आलसियों की पहचान करते हुए उन्होंने पाया कि आलसी स्वयं अपना पोषण नहीं कर सकते। वे दयावान लोगों की दया पर ही जीवित रह सकते हैं। अतः उन्हें मदद की पूर्ण जरूरत है। इसके बाद उन चारों आलसियों को पहले से अधिक चीजें मंत्री देने लगे।