1. January Night class 10 Panorama English Reader | कक्षा 10 सेकंड अंग्रेजी पूस की रात

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 10 के अंग्रेजी Part-2 के पाठ एक ‘पूस की रात (January Night class 10 in Hind) के अर्थ को पढ़ेंगे। जिसके  लेखक प्रेमचंद्र जी है।

January Night class 10 in Hind

1. JANUARY NIGHT ( पूस की रात )
Prem Chand

PART – 1

HALKU came in and said to his wife, ‘The landlord’s come! Get the rupees you set aside, I’ll give him the money and somehow or other we’ll get along without it.’

Munni had been sweeping. She turned around and said, “But there’s only three rupees. If you give them to him where’s the blanket going to come from? How are you going to get through these January nights in the fields? Tell him we’ll pay him after the harvest , not right now.’

For a moment Halku stood hesitating. January was on top of them. Without a blanket he couldn’t possibly sleep in the fields at night. But the landlord wouldn’t be put off, he’d threaten and insult him, so what did it matter if they died in the cold weather as long as they could just take care. of his calamity right now? As he thought this he moved his heavy body (he gave the lie to his name) and came close to his wife. Trying to coax her he said, ‘Come on give it to me. I’ll figure out some other plan.’

Munni drew away from him. Her eyes angry, she said, “You’ve already tried “some other plan”. You just, tell me what other plan can be .found. Is somebody going to give you a blanket? God knows how many debts are always left over that we can’t pay off. What I say is, give-up this tenant farming! The work’s killing you, whatever you harvest goes to pay up the arrears, so why not finish with it? Were we born just to keep paying off debts? Earn some money for your own belly, give up that kind of farming. I won’t give you the money, won’t.

Sadly ! Halku said, “Then, I’ll have to put up with his abuse.’ Losing her temper, Munni said, ‘Why should he abuse you — is this his kingdom?

But as she said it her brows relaxed from the frown. The bitter truth in Halku’s word came charging at her like a wild beast.

She went to the niche in the wall, took out the rupees and handed them over to Halku. Then she said, ‘Give up farming this time. If you work as a hired labourer you’ll at least get enough food to eat from it. No one will be yelling insults at you. Fine work, farming someone else’s land! Whatever you earn you throw back into it and get insulted in the bargain.

Halku took the money and went outside looking as though he were tearing his heart out and giving it away. He’d saved the rupees from his work, paisa by paisa, for his blanket. Today he was going to throw it away. With every step his head sank lower under the burden of his poverty.

हिन्दी वाक्यार्थ—हल्क अन्दर आया और अपनी पत्नी से कहा, “जमींदार आया है। तुमने जो पैसा अलग रखा है, उसे दो मै उसे दे दूँगा और किसी भी तरह हम लोग इसके (कम्बल के) बगैर रह लेंगे।”

मुन्नी झाड़ लगा रही थी। वह मुड़ी और बोली, “लेकिन मेरे पास तो केवल तीन रुपये ही हैं। तुम इसे उसे (जमींदार को) दे दोगे तो कम्बल कहाँ से आयेगा? इस पूस की रात में तुम खेत में कैसे रहोगे ? उससे कह दो कि हमलोग पैदावार के बाद उसे दे देगे, अभी देना उचित नहीं है।”

एक मिनट के लिए हल्कू हिचकिचाकर खड़ा हो गया। पूस चरम पर है और बिना कम्बल के खेतों में रात में सोना संभव नहीं हो सकेगा। लेकिन जमींदार नहीं छोड़ेगा, उसने उसे धमकाया और बेइज्जत किया था। इसलिए क्या होगा, अपने दुर्भाग्य से हम ठंढ में मर ही न जायेंगे? ऐसा सोचकर उसने अपने भारी शरीर को घुमाया और अपनी पत्नी के नजदीक गया। उसे बहलाने की कोशिश करते हुए उसने कहा, “इसे मुझे दे दो। मैं दूसरी योजना पर विचार करता हूँ।” ।

मुन्नी उससे अलग हो गई । गुस्से से आँखें लालकर बोली, “तुमने पहले भी दूसरी योजना बनाने की कोशिश की थी, तुम शीघ्र बताओ, वह दूसरी योजना क्या है ? क्या

कोई तुम्हें कम्बल देने जा रहा है ? भगवान जाने कितने कर्ज अभी बाकी हैं। मैं इसे .. नहीं दे सकती।’

मैं कहती हूँ, किराये की खेती छोड़ दो। यह काम तुम्हें मार देगा। तुम जितना कमाते हो वह पुराना कर्ज चुकाने में ही चला जाता है। इसलिए इसके साथ इसे क्यों न खत्म कर दिया जाए ? क्या हम कर्ज लौटाने भर के ही पैदा करते है ? अपने पेट के लिए भी कुछ कमाओ। इस तरह की खेती छोड़ दो। मैं तुम्हें पैसा नहीं दूंगी, वह उदासी से बोली-नहीं दूंगी ! हल्कू ने कहा, “तब उसकी गाली सुननी पड़ेगी।” अपने गुस्सा को कम करते हुए मुन्नी ने कहा, “वह तुम्हें क्यों गाली देगा-क्या यह उसी का राज है ?”

लेकिन ऐसा कहते समय उसकी भौंहें सिकुड़ गई थीं। हल्कू की चूभन भरी बातों ने उसके गुस्से को शांत कर दिया था।

वह गई और दीवार के नीचे से पैसा निकालकर हल्कू को दे दिया। तब उसने कहा, “इस बार खेती छोड़ दो। यदि तुम कड़ी मेहनत करोगे तो तुम इससे खाने भर अन्न कमा लोगे। तब तुम्हें कोई बेईज्जत नहीं करेगा। अच्छा काम, इस प्रकार दूसरे के खेत को जोतना ! तुमने क्या कमाया, इसमें कितनी बेईज्जती उठानी पड़ी, सब भूल जाओ

 हल्कू पैसा लिया और सोचते हुए घर से बाहर चल दिया। वह अपनी दुर्दशा पर आँसू बहा रहा था। उसने इन पैसों को अपनी कमाई से पाई-पाईकर कम्बल खरीदने के लिए जमा किया था। आज वह इसे दूसरे को देने जा रहा था। हरेक कदम के साथ उसका दिमाग गरीबी के बोझ में डूब रहा था।

PART-11

A dark January night. In the sky even the stars seemed to be shivering. At the edge of his field, underneath a shelter of cane leaves, Halku lay on a bamboo cot wrapped up in his old burlap shawl, shivering. Underneath the cot, his friend Jabra, the dog, was whimpering with his muzzle pressed into his belly. Neither of them was able to sleep.

Halku curled up drawing his knees close against his chin and said, ‘Cold, Jabra? Didn’t I tell you, in the house you could lie in the paddy straw? So why did you come out here? Now you’ll have to bear the cold, there’s nothing I can do. You thought I was coming out here to eat puris and sweets and you came running on ahead of me. Now you can moan all you want.

Jabra wagged his tail without getting up, protracted his whimpering into a long yawn, and was silent. Perhaps in his canine wisdom he guessed that his whimpering was keeping his master awake.

Halku reached out his hand and patted Jabra’s cold back. “From tomorrow on stop coming with me or the cold will get you. This bitch of a west wind comes from nobody knows where bringing the icy cold with it. Let me. get up and fill my pipe. I’ve smoked eight pipefuls already but we’ll get through the night somehow. This is the reward you get for farming. Some lucky fellows are lying in houses where if the cold comes after them the heat just drives it away. A good thick quilt, warm covers, a blanket! Just let the winter cold try to get them! Fortune’s arranged everything very well. While we do the hard work somebody else gets the joy of it.’

He got up, took some embers from the pit and filled his pipe. Jabra got up too.

Smoking, Halku said. “If you smoke the cold’s just as bad, but at least you feel a little better.’

Jabra looked at him with eyes overflowing with love.

‘You have to put up with just one more cold night. Tomorrow I’ll spread some straw. When you bed down in that you won’t feel the cold.’

Jabra put his paws on Halku’s knees and brought his muzzle close. Halku felt his warm breath.

After he finished smoking, Halku lay down and made up his mind that however things were he would sleep now. But in only one minute his heart began to pound. He turned from side to side, but like some kind of witch the cold weather continued to torment him.

हिन्दी वाक्यार्थ पूस की अंधेरी रात । हालाँकि आसमान में तारे टिमटिमा रहे थे। उसने खेत के किनारे पर, सरकंडा के पतों से एक आश्रय बना रखा था जिसमें बाँस की चारपाई थी। हल्कू चारपाई पर आधी फटी पुरानी चादर ओढ़े सो गया….. काँपते रहा। चारपाई के नीचे उसका दोस्त जबरा नामक कुत्ता अपने थूथना को पेट में सटाकर कुँई-कुँई कर रहा था। उनमें से कोई भी सोने की स्थिति में नहीं था।

हल्कू अपने घुटने को मुँह की ओर घुमाया और कहा, “ठंढ है, जबरा? है न, क्यों जबरा मैं तुमसे कहता हूँ, घर में तुम धान के भूसा पर लेटते हो ? इसलिए तुम यहाँ क्यों आए हो? तुम्हें भी ठंढ में रहना पड़ रहा है। यहाँ मैं कुछ नहीं कर सकता। तुम सोचते थे कि मैं यहाँ पुड़ी और मिठाई खाने के लिए आया था और तुम मेरे पीछे दौड़ते चले आए। अब तुम जो चाहते हो उसे देखो।

जबरा बिना ऊपर उठाए अपनी पूँछ को हिलाया और बिना कोई आवाज किए जम्हाई ली और चुप हो गया। शायद वह सोचता था कि उसकी कुँई-कुँईं की आवाज उसके मालिक को नींद से जगा देगी।

हल्कू ने अपना हाथ बढ़ाकर जबरा की ठंढी पीठ को छुआ। कल से मेरे साथ आना बंद करो या ठंढ को झेलो। यह दर्द भरी पछुआ बर्फीली हवा अपने साथ कहाँ से इतनी ठंढ लाती है, किसी को नहीं मालूम । वह उठता है और चिलम को भरता है। मैं अभी तक आठ चिलम भरकर धूम्रपान कर चुका हूँ, फिर भी मैं किसी प्रकार से रात बिताऊँगा।

यह खेती करने का इनाम है। कुछ भाग्यशाली व्यक्ति अपने घरों में पड़े होंगे जहाँ ठंढ के आते ही उसे बाहर भगा देते हैं। आरामदेह गद्दा, गर्म चादरें, कम्बल ! भाग्यशाली लोग सभी चीजों का बखूबी प्रबंध करते हैं। जबकि कठिन परिश्रम हम करते हैं और आनंद वे प्राप्त कर लेते हैं।

वह उठ गया, गड्ढे से कुछ अंगारे लिया और अपने चिलम को भरा । जबरा भी उठ गया। धूम्रपान करते हुए हल्कू ने कहा, “यदि ठंढ में तुम धूम्रपान करते हो तो यह बुरा है, परन्तु कम से कम तुम हल्का आनंद महसूस करते हो।

 जबरा प्यार से उसकी ओर आँखें फाड़कर देख रहा था। तुम्हें एक रात और ठंढ में रहना है। कल मैं कुछ और पुआल फैला दूंगा। जब तुम उस पर सोओगे तो ठंढ महसूस नहीं करोगे।

जबरा अपने पंजों को हल्कू के ठेहुने पर रखा और जबड़े को नजदीक लाया। हल्कू उसकी साँस की गर्माहट महसूस कर रहा था।

धूम्रपान समाप्त करने के बाद हल्कू सो गया और सोंचने लगा कि वह कैसे सोयेगा। परन्तु मात्र एक ही मिनट में उसका दिल धड़कने लगा। वह इधर-उधर करवट बदलने लगा, परन्तु डायन की भाँति ठंढी हवा उसे पीड़ा पहुँचाने लगी।

When he could no longer bear it he gently picked Jabra up and patting his head, got him to fall asleep in his lap. The dog’s body gave off some kind of stink but Halku, hugging him tight, experienced a happiness he hadn’t felt for months. Jabra probably thought he was in heaven, and in Halku’s innocent heart there was no reseniment of his smell. He embraced him with the very same affection he would have felt for a brother or a friend. He was not crippled by the poverty which had reduced him to these straits at present. Rather it was as though this singular friendship had opened all the doors to his heart and brilliantly illuminated every atom of it.

Suddenly Jabra picked up the noise of some animal. This special intimacy had produced a new alertness in him that disdained the onslaught of the wind. Springing up, he ran out of the shelter and began to bark. Halku whistled and called him several times. But Jabra would not come back to him. He went on barking while he ran around through the furrows of the field. He would come back for a moment, then dash off again at once. The sense of duty had taken possession of him as though it were desire.

हिन्दी वाक्यार्थ-जब ज्यादा देर तक ठंढ को सहन नहीं कर सका तब उसने जबरा को ऊपर उठाया, उसके माथे को अपनी गोद में ले लिया। जबरा उसकी गोद में सो रह था। कुत्ते के शरीर से दुर्गन्ध आ रही थी, परन्तु हल्कू ने इसे जोर से सीने में सटाये रखा और ऐसा आनंद महसूस किया जो वह महीनों से महसूस नहीं किया था। जबरा शायद यह सोचता था कि वह स्वर्ग में है, और हल्कू के उदार हृदय में उसकी दुर्गध के लिए कोई नाराजगी नहीं थी। वह उसके साथ वैसे ही आलिंगन कर रहा था जैसे कोई अपने भाई या दोस्त के साथ करता है। वह गरीबी से पंगु नहीं हुआ था, जिसने उसे अभी इस संकीर्ण स्थिति में ला दिया था। वस्तुतः वह ऐसा था कि इस दोस्ती ने उसके हृदय के सारे दरवाजे खोल दिए थे और उसके हर पहलू को जगमगा दिया था।

अचानक जबरा को कुछ जानवरों के शोरगुल सुनाई दिए। यह घनिष्ठता उसके अंदर भीषण ठंढ के प्रति घृणा पैदा कर दी थी। वह तेजी से उठा, कुटिया से बाहर दौड़ा और भौंकने लगा। हल्कू ने सीटी बजाते हुए अनेक बार उसे बुलाया । परन्तु जबरा उसके पास वापस नहीं आया। वह खेत में हल से बने गढों में मूंकते हुए चारों ओर दौड़ने लगा कुछ समय पश्चात वह वापस आया, फिर वह अचानक दौड़ने लगा । कर्तव्य के प्रति उसकी जवाबदेही अधिकार का रूप ले लिया जबकि यह उसकी इच्छा पर था।

PART – III

Another hour passed. The night fanned up the cold with the wind. Halku sat up and bringing both knees tight against his chest hid his face between them, but the cold was just as biting. It seemed as though all his blood had frozen, that ice rather than blood filled his veins. He leaned back to look at the skies. How much of the night was still left! The Dipper had not yet climbed half the sky. By the time it was overhead it would probably be morning. Night was not even three hours gone.

Only a stone’s throw from Halku’s field there was a mango grove. The leaves had begun to fall and they were heaped in the grove. Halku thought, ‘If I go and get a pile of leaves I can make a fire of them and keep warm. If anybody sees me gathering the leaves in the dead of night they’ll think it’s a ghost. Of course there’s a chance some animals hidden in my field waiting, but I can’t stand sitting here any longer.’

He ripped up some stalks from a nearby field, made a broom out of them and picking up a lighted cowdung cake went toward the grove. Jabra watched him coming and ran to him wagging his tail.

Halku said, ‘I couldn’t stand it any more, Jabra. Come along, let’s go into the orchard and gather leaves to warm up with. When we’re toasted we’ll come back and sleep. The night’s still far from over.’

Jabra barked his agreement and trotted on toward the orchard. Under the trees it was pitch dark and in the darkness the bitter wind blew, buffeting the leaves, and drops of dew dripped from the branches.

Suddenly a gust carried the scent of henna blossoms to him. Where’s that sweet smell coming from, Jabra? Or can’t your nose make out anything as fragrant as this?

Jabra had found a bone lying somewhere and he was chewing on it. Halku set his fire down on the ground and began to gather the leaves. His hands were frozen, his bare feet numb. But he’d piled up a regular mountain of the leaves and by making a fire out of them he’d burn away the cold.

In a little while the fire was burning merrily. The flames leapt upward licking at the overhanging branches. In the flickering light the immense trees of the grove looked as though they were carrying the vast darkness on their heads. In the blissful sea of darkness the firelight seemed to pitch and toss like a boat.

Halku sat before the fire and let it warm him. After a while he took off his shawl and tucked it behind him, then he spread out both feet as though challenging the cold to do its worst. Victorious over the immense power of the winter, he could not repress his pride in his triumph.

He said to Jabra, ‘Well, Jabra, you’re not cold now, are you? Jabra barked as though to say, ‘How could I feel cold now?

“We should have thought of this plan before, then we’d never have become so chilled.’ Jabra wagged his tail. ‘Fine, now what do you say we jump over the fire? Let’s see how we manage it. But if you get scorched I’ve got no medicine for you.”

Jabra looked fearfully at the fire. “We mustn’t tell Munni tomorrow or there’ll be a row.’

With that he jumped up and cleared the fire in one leap. He got his legs singed but he didn’t care. Jabra ran around the fire and came up to him. Halku said, ‘Go on, no more of this, jump over the fire! He leaped again and came back to the other side.

हिन्दी वाक्यार्थ-दूसरे घंटे बीत गए । हवा के ठंढ से रात धुंधली लगने लगी। हल्कू अपने दोनों घुटनों को छाती के नजदीक लाया और अपना चेहरा दोनों घूटनों के बीच में ले गया; परन्तु ठंढ काटने को दौड़ रही थी। यह ऐसा लग रहा था, मानो उसके सारे खून बर्फ बन गए हों, बर्फीला खून उसकी नसों में दौड़ रहे हों। उसने आसमान में देखने के लिए पीछे मुड़ा। उस समय यह सिर के ऊपर था। संभवतः सुबह होगा। रात अभी तीन घंटा ही बीती थी।

 हल्कू के खेत के कुछ ही दूरी पर आम के एक छोटा बगीचा था। पत्तियों का गिरना शुरू हो गया था और वे गिरकर गढ्ढों में जमा हो रही थी। हल्कू सोचा, “यदि मैं जाऊँ

और पत्तियों का ढेर लगाकर उसमें आग लगा दूँ तो गर्मी लगने लगेगी। यदि मुझे कोई इस अँधेरी शांत रात में पतियाँ बटोरते देखेगा तो सोचेगा कि यह कोई भूत है। यह सही है कि वहाँ ही संभव है कि मेरे खेत में कुछ जानवर छिपकर इंतजार कर रहे थे, परन्तु मैं यह बहुत देर तक बैठकर खड़ा नहीं हो सकता।

उसने नजदीक के मैदान से कुछ डंठल तोड़कर चीरा और उससे झाड़ बनाया और गाय के गोबर को ढेर की तरफ बहार कर इकट्ठा किया। जबरा उसके पास आता और पूँछ हिलाता सब देख रहा था।

हल्कू ने कहा, “जबरा मैं ज्यादा देर खड़ा नहीं रह सकता। आओ बगीचे में चलते हैं और जलाने के लिए पत्तियाँ एकत्रित करते हैं। जब हम लोग आग में सेंक कर गरम हो जायेंगे तब वापस आकर सो जायेंगे। अभी बहुत रात बाकी है।

जबरा भूककर सहमति दी और दुलकी चाल से बगीचा की ओर चल दिया। पेड़ के नीचे घना अंधेरा था और अंधेरे में दुष्ट हवा बहकर पत्तियों को हिला रही थी और डालियों से ओस की बूंदे टपक रही थीं। अचानक हिना की सुगंध लिए खुशबू की आई। जबरा, यह सुगंध कहाँ से आ रही है ? तुम्हारी नाक से तो ऐसी सुगंध नहीं निकल रही है?” ___ जबरा को कहीं से हड्डी मिल गई कि जिसे वह चबा रहा था । हल्कू जमीन पर आग लगा दिया और पत्तियाँ बटोरना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में उसने विशाल ढेर लगा दिया। उसके हाथ बर्फ जैसा ठंढा हो गया था। नंगे पाँव सुन्न हो गए थे। परन्तु उसने लगातार पत्तियों का ढेर लगाया और उनमें आग लगाकर उसने ठंढ को जला दिया।

कुछ ही देर में आग तीव्रता से जल रही थी। आग की लपटें पेड़ों की शाखाओं को चाहते हुए उछाल मार रहे थे। हिलते हुए आग की लपटो के प्रकाश में बगीचे के पेड़ ऐसे दिख रहे थे मानो वे अपने माथे पर विशाल अंधेरा लिए हों। अंधेरे को आनंदायी समुद्र में आग की लपटें हिलकोरे खाते नाव के सदृश दिख रहे थे।

हल्कू आग के समीप बैठा और आग तापने लगा। कुछ देर बाद उसने अपना शाल उतारा और गठ्ठर बनाकर पीछे रख लिया, तब उसने अपने दोनों पैर फैलाए जैसे मानो ठंढ को वह चुनौती दे रहा हो कि आओ अब मेरा नुकसान करके दिखाओ। ठंढ की विशाल शक्ति पर विजय प्राप्त कर वह अपनी शानदार विजय को दबा नहीं सका।

उसने जबरा से कहा, “अच्छा जबरा, अब ठंढ नहीं लग रही है, तुम सहमत हो?” • जबरा भूका जैसे मानो वह कह रहा हो, “अब मैं कैसे ठंढ महसूस कर सकता हूँ?”

“हमलोगों को इस पर पहले ही विचार कर लेना चाहिए था, तब हमें ऐसी परेशानी कभी नहीं होती। जबरा ने अपनी पूँछ हिलायी। अच्छा, अब तुम क्या कहते हो? हम लोग आग के ऊपर से छलांग मारें ? देखो मैं कैसे ऐसा करता हूँ। लेकिन यदि तुम जल गया तो मेरे पास तुम्हारे लिए दवा नहीं है।”

जबरा ने डरकर आग को देखा।

हमलोग कल मुन्नी को नहीं बतायेंगे या एक रास्ता है।

इसके साथ ही वह उछला और एक ही छलांग में आग को पार कर गया। उसके पैर में जलन हुई परन्तु उसने ध्यान नहीं दिया । जबरा आग के चारों ओर दौड़कर उसके । पास आया। हल्कू ने कहा, “जाओ, इसके बाद नहीं, आग के ऊपर से कूदकर आओ ! वह पुनः उछला और दूसरी तरफ आ गया।

PART – IV

The leaves were all burned up. Darkness covered the orchard again. Under the ashes a few embers smouldered and when a gust of wind blew over them they stirred up briefly, then flickered out again.

Halku wrapped himself up in his shawl again and sat by the warm ashes humming a tune. The fire had warmed him through but as the cold began to spread he felt drowsy.

Jabra gave a loud bark and ran toward the field. Halku realised that this meant a pack of wild animals had probably broken into the field. They might be nilgai. He distinctly heard the noise of their moving around. Then it seemed to him they must be grazing; he began to hear the sound of nibbling.

He thought, ‘No, with Jabra around no animal can get into the field, he’d rip it to shreds. I must have been mistaken. Now there’s no sound at all. How could I have been mistaken?

He shouted, Jabra! Jabra! Jabra went on barking, and did not come to him.

Then again there was the sound of munching and crunching in the field. He could not have been mistaken this time. It really hurt to think about getting up from where he was. It was so comfortable there that it seemed intolerable to go to the field in this cold and chase after animals. He didn’t stir.

He shouted at the top of his lungs, ‘Hillo! Hillo! Hillo!

Jabra started barking again. There were animals eating his field just when the crop was ready. What a fine crop it was! And these cursed animals were destroying it. With a firm resolve he got up and took a few steps. But, suddenly a blast of wind pierced him with a sting like a scorpion’s so that he went back and sat again by the extinguished fire and stirred up the ashes to warm his chilled body. Jabra was barking his lungs out, the nilgai were devastating his field and Halku went on sitting peacefully near the warm ashes. His drowsiness held him motionless as though with ropes. Wrapped in his shawl he fell asleep on the warmed ground near the ashes.

When he woke in the morning the sun was high and Munni was saying, ‘Do you think you’re going to sleep all day? You came out here and had a fine time while the whole field was being flattened!

Halku got up and said, “Then you’ve just come from the field? “Yes, it’s all ruined. And you could sleep like that! Why did you bother to put up the shelter anyway?’

Halku sought an excuse. ‘I nearly died and just managed to get through the night and you worry about your crop. I had such a pain in my belly I can’t describe it.’

Then the two of them walked to the edge of their land. He looked: the whole field had been trampled and Jabra was stretched out underneath the shelter as though he were dead..

They continued to stare at the ruined field. Munni’s face was shadowed with grief but Halku was content.

Munni said, “Now you’ll have to hire yourself out to earn some money to pay off the rent and taxes.’

With a contented smile Halku said, “But I won’t have to sleep nights out here in the cold.’

हिन्दी वाक्यार्थ—सारी पत्तियाँ जल गई थीं। पुनः बगीचे में अंधेरा छा गया। राख के नीचे थोड़े अंगारे सुलग रहे थे और जब हवा के तेज झोंके उन पर से गुजरती तो वे जाग उठते थे, तब पुनः दहकने लगते थे।

हल्कू ने अपने शरीर को पुनः चादर से ढंक लिया और गरम आग के राख के पास बैठकर गुनगुनाने लगा। आग ने हालाँकि उसे गर्मी पहुँचाई परन्तु ठंढ निर्दयतापूर्वक फैलने लगी।

जबरा जोर से फूंकता हआ खेत की ओर दौड़ा। हल्कू ने विचार किया कि इसका मतलब है कि जंगली जानवरों का झुंड संभवतः खेत में घुस आया है। वे नीलगायें हो सकती हैं। वह साफ-साफ उनके घुमने की आवाज सुनी है। तब उसे ऐसा लगा कि वे निश्चित रूप से चर रहे हैं, वह कुतरने की आवाज सुनने लगा।

उसने सोचा, ‘नहीं, जबरा के रहते कोई जानवर खेत में नहीं घुस सकता। वह इन्हें टुकड़ा-टुकड़ा कर देगा। मुझसे निश्चित रूप से भूल हो रही है। अब कोई आवाज नहीं हो रही है। मुझसे कैसे भूल हो गई ?”

लेटकर चिल्लाया, “जबरा ! जबरा !”

जबरा भूकता रहा और उसके पास नहीं आया। तब पुनः खेत में चबाने और कुतरने की आवाज आने लगी। इस समय वह भ्रम में नहीं था। यह सचमुच चोट पहुँचाने वाला था कि वह वहाँ से कैसे उठ जाए। वहाँ इतना आराम था कि यह बड़ा ही कष्टदायक था कि इस ठंढ भरी रात में वह खेत में जाए और जानवरों को भगाए। वह हिल भी नहीं सका।

वह ऊँची आवाज में चिल्लाया, ‘हिलो ! हिलो ! हिलो! जबरा पुनः भूकने लगा। जानवर उसके खेत के उन पौधों को जब खा रहे जो पौधे अभी-अभी तैयार हुए थे। क्या सुंदर पौधे थे ! और ये दुष्ट जानवर उन्हें नष्ट कर रहे थे। दृढ़ निश्चय के साथ वह उठा और चंद कदम चला। परन्तु अचानक हवा के झोके ने बिच्छू की डंक के समान उसे भेद दिया। इसलिए वह वापस आ गया और पुनः बुझी आग के पास बैठ गया। वह अपने शरीर को गर्म करने के लिए राख को हटाने लगा। जबरा गला फाड़े भूक रहा था। नीलगायें उसके खेत को नष्ट कर रही थीं और हल्कू आकर गर्म राख के पास शांतिपूर्वक बैठा था। उसकी निद्रा ने उसे स्थूल बना दिया जैसे किसी को रस्सी से बाँध दिया गया हो। चादर में अपने को लपेट कर वह गर्म राख के नजदीक जमीन पर सो गया।

जब वह सुबह में जगा तो सूर्य ऊपर निकल चुका था और मुन्नी कह रही थी, “क्या तुम समझते हो कि तुम दिन भर सोते रहोगे? तुम यहाँ आ गये (फिर भी) इसी समय सारा खेत सपाट हो गया !’

हल्कू उठा और बोला, “क्या तुम अभी खेत में से आ रही हो?” हाँ, सब बर्बाद हो गए हैं। और तुम इस प्रकार सो रहे थे। तुम ठिकाना (झोपड़ी) बनाने के लिए परेशान क्यों हो रहे थे?’

हल्कू ने बहाना ढूंढ़ा । मैं रात में मर ही गया था और किसी तरह जोगाड़कर मैंने जान बचायी और तुमको अपनी फसल की चिन्ता है। मेरे पेट में इतना दर्द था कि मैं उसका बयान नहीं कर सकता।

तब वे दोनों अपने खेत के किनारे गए। उन्होंने देखा कि सारे खेत पैरों से कुचल दिए गए थे और जबरा ठिकाने (झोपड़ी) के नीचे ऐसा पैर फैलाकर लेटा था मानों वह – मर गया हो।

वे नष्ट खेत की ओर टकटकी लगाये लगातार देख रहे थे। मुन्नी का चेहरा दुःख से उदास था परन्तु हल्कू संतुष्ट था।

मुन्नी ने कहा, “अब तुम्हें किराया और टैक्स भरने के लिए बाहर जाकर मजदूरी – करनी होगी।’

संतुष्टि के मुस्कान के साथ हल्कू ने कहा, “परन्तु ठंढी रात में मैं यहाँ नहीं सो सकता हूँ।”

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कक्षा 7 संस्‍कृत पाठ 14 बोधगया ( मिश्रित व्याकरण) का अर्थ | Bodhgya class 7 sanskrit

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 7 संस्‍कृत के पाठ 14 ‘बोधगया ( मिश्रित व्याकरण)(Bodhgya class 7 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Bodhgya class 7 sanskrit

चतुर्दशः पाठः
बोधगया
( मिश्रित व्याकरण )

पाठ- परिचय – प्रस्तुत पाठ बाेधगया’ भगवान बुद्ध की ज्ञान-स्थली के रूप में प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि भगवान बुद्ध को पीपल वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यहाँ एक प्राचीन मंदिर है जिसमें बुद्ध की प्रतिमा है। यह स्थान निरंजना नदी के तट पर अवस्थित बोधगया के नाम से प्रसिद्ध है । इस स्थान की महत्ता के कारण दक्षिण-पूर्व एशिया के अनेक देशों ने अपने-अपने भव्य बुद्ध मंदिर यहाँ बनवाये हैं। बौद्ध धर्म के कारण इस स्थान को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है । यहाँ चौदह सौ वर्ष पुराना भगवान बुद्ध का मंदिर तथा बोधिवृक्ष अभी भी विद्यमान है। इसी धार्मिक महत्व एवं वर्तमान परिवेश का संक्षिप्त वर्णन इस पाठ में है।

विहारराज्यस्य गयामण्डले अवस्थितः बोधगया नाम ग्रामः अद्य महतीं प्रसिद्धिं प्राप्नोति । अत्र राजकुमारः सिद्धार्थः वैशाख – पूर्णिमायां बोधिं प्राप्तवान् । ततः परं सः भगवान् बुद्धः इति प्रसिद्धः । बौद्धधर्मस्य सर्वे उपासकाः बोधगयां प्रति श्रद्धां धारयन्ति । अद्य तत्र प्राचीनः अश्वत्थवृक्षः वर्तते । तस्यैव छायायां बुद्धः तपस्यां कृतवान् । तस्य वृक्षस्य समीपमेव बुद्धस्य प्राचीनं महाबोधि-

मन्दिरं वर्तते । मन्दिरं पद्मासने उपविष्टस्य बुद्धस्य पाषाणमूर्तिः वर्तते । प्रतिदिनं सहस्राधिका:

भक्ताः तस्य दर्शनाय आयान्ति ।

अर्थ — बिहार राज्य के गया जिले में स्थित बोध गया नामक गाँव आज बहुत प्रसिद्ध है । यहीं राजकुमार सिद्धार्थ को वैशाख पूर्णिमा के दिन ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उसके बाद वह भगवान बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हो गए। बौध धर्म मानने वाले सभी लोग बोधगया के प्रति श्रद्धा रखते हैं। आज भी वहाँ प्राचीन पीपल का वृक्ष विद्यमान है। उसी पेड़ की छाया में भगवान बुद्ध ने तपस्या की थी। उस पेड़ के समीप ही बुद्ध का प्राचीन महाबोधि मंदिर है। मंदिर में पद्मासन की मुद्रा में बैठे हुए बुद्ध की पत्थर मूर्ति है प्रतिदिन हजारों लोग उनके दर्शन के लिए आते हैं।

तस्य मन्दिरस्य परिसरः शान्तिमयः करुणायुक्तश्च वर्तते । बोधगयायां सम्प्रति विभिन्नानां देशानां निवासिभिः कृतानि बुद्धमन्दिराणि शोभन्ते । यथा— म्यांमार (बर्मा) – मन्दिरम् थाईमन्दिरम्, तिब्बतमन्दिरम्, जापानमन्दिरम् इत्यादि । तत्रैव मगधविश्वविद्यालयस्य मुख्यपरिसर : विशालः वर्तते । अधुना बोधगया रमणीयं दर्शनीयं स्थलम् । सम्पूर्णस्य परिसरस्य स्वच्छता परिवहनव्यवस्था च रमणीया वर्तते । वर्षं यावत् पर्यटका: बोधगयां गत्वा आत्मानं धन्यं मन्यन्ते । अत्र निरञ्जना नाम. नदी पार्श्वे प्रवहति । ग्रीष्मकाले सा शुष्यति । प्रशासनं बोधगयायाः विकासाय निरन्तरं प्रयासं करोति । वयमपि तत्र गत्वा परिसरस्य भ्रमणं कुर्याम |

अर्थ — उस मंदिर का आहाता (परिसर) शांतिमय और करुणा से युक्त है। इस समय बोधगया में विभिन्न देशों के निवासियों द्वारा निर्मित बौद्ध मंदिर शोभते हैं जैसे – म्यांमार (बर्मा), थाई, तिब्बत, जापान आदि के मंदिर विद्यमान हैं। वहीं मगध विश्वविद्यालय का विस्तृत परिसर है। इस समय बोधगया अति मनमोहक दर्शनीय स्थल है । सम्पूर्ण परिसर की स्वच्छता (सफाई) और परिवहन व्यवस्था प्रशंसनीय है। सालों भर पर्यटक बोधगया आकर अपने-आपको धन्य मानते हैं। इसी स्थान के पास निरंजना नदी बहती है जो गर्मी से सूख जाती है। सरकार बोधगया के विकास के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहती हैं । हमलोग भी वहाँ जाकर उस स्थान का आनन्द लें ।

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कक्षा 7 संस्‍कृत पाठ 13 परिहास-कथा (क्त्वा, क्तवतु.) का अर्थ | Parihas katha class 7 sanskrit

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 7 संस्‍कृत के पाठ 13 ‘परिहास-कथा (क्त्वा, क्तवतु)(Parihas katha class 7 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Parihas katha class 7 sanskrit

त्रयोदशः पाठः
परिहास-कथा
(क्त्वा, क्तवतु.)

पाठ-परिचय- प्रस्तुत पाठ ‘परिहास – कथा’ में लोकजीवन से सम्बद्ध, जनसामान्य में प्रचलित मिथिला के प्रसिद्ध हास्यकार गोनू झा की एक कथा वर्णित है। इनकी कहानियाँ मिथिला के घर-घर में कही तथा सुनी जाती है। इस कथा से मनोरंजन के साथ बुद्धि के उपयोग का उपदेश मिलता है। इस पाठ में एक भैंस की बँटवारे की कहानी का बड़ा ही मनोरंजक एवं विचारणीय प्रसंग का वर्णन है । 

एकदा मित्रयोर्मध्ये एकस्याः महिष्याः विषये अनुबन्धः अभवत् । तेन एकः तस्याः पूर्वार्धभागस्य स्वामी भवेत्, अपरः पश्चाद्भागस्य । पूर्वार्धभागस्य अधिकारी तु मूर्खः आसीत् । अपरस्तु चतुरः । महिष्याः पूर्वार्धभागे मुखं भवति । तस्य स्वामी महिषीं भोजनादिना सेवते । अपरार्धभागस्य स्वामी महिष्याः दुग्धं प्राप्नोति । इत्थं सर्वदा पूर्वार्धस्य अधिकारी एव वञ्चितः भवति स्म ।

स एकदा स्वमित्रं गोनू झा नामकं पण्डितं पृष्टवान् भोः ! किं करोमि ? सदा वञ्चितोऽस्मि । गोनू झा तस्मै समुचितं परामर्शः दत्तवान् । ततः स महिषीं भोजनेन वञ्चितां कृतवान् । महिषी अतीव कुपिता । ततः स तां दोहनकालेऽपि दण्डप्रहारेण कोपितवान् । अथ

अर्थ – एक बार दो मित्रों के बीच एक भैंस के विषय में समझौता हुआ। समझौते के अनुसार एक भैंस के अगले भाग का स्वामी हुआ तथा दूसरा भैंस के पिछले भाग का । अगले भाग का स्वामी मूर्ख था तो पिछले भाग का स्वामी होशियार था । मुँह भैंस के आगे की तरफ होता है, (इसलिए) आगे के भाग के स्वामी को खिलाना-पिलाना पड़ता (और) पिछले भाग का स्वामी भैंस का दूध प्राप्त करता है। इस आगे भाग के स्वामी को ही सदा दूध से वंचित होना पड़ता था । –

उसने एक बार अपने मित्र गोनू झा नामक पंडित से पूछा- हे मित्र ! क्या करूँ ? हमेशा ( मैं ) दूध से वंचित रहता हूँ । गोनू झा उसको उपयुक्त सलाह दी। उसके बाद उसने भैंस को खिलाना -पिलाना बन्द कर दिया। (इस कारण ) भैंस अति कुपित हो गई । तब उसने उस भैंस को दूध दूहने के समय लाठी मार कर कुपित कर दिया ।

महिषी कुपिता भूत्वा दोहनकाले पादप्रहारेण चतुरं मित्रं ताडितवती । स अकथयत् – भोः मित्र ! किमिदं करोषि ? मूर्खः पूर्वार्धस्वामी अवदत् – अहं महिष्याः पूर्वार्धस्य स्वामी । यत् मे रोचते तदेव करोमि । अनेन तव किम् ? चतुरः मूको जातः । इदं स्वधूर्ततायाः फलं ज्ञात्वा लज्जितश्च ।

ततः स पुनः महिषीविभाजनं निरर्थकं कथयित्वा तस्या महिष्याः भोजनदाने दुग्धग्रहणे च उभौ स्वामिनौ इति स्वीकृतवान् । तेन उभयोः लाभः । अतः विभाजनं निरर्थकं न शोभते इति

उपदेश: ।

अर्थ — इसके बाद भैंस क्रुद्ध ( क्रोधित) होकर दूध दूहने के समय पैर मारकर होशियार मित्र को घायल कर दिया। उसने (चतुरने) कहा – अरे मित्र ! यह क्या करते हो ? आगे भाग का स्वामी मूर्ख ने कहा- मैं भैंस के आगे भाग का स्वामी हूँ, जो मुझे अच्छा लगता है, इससे तुम्हें क्या ? (यह सुनकर ) चतुर मित्र चुप हो गया । वह अपनी धूर्त्तता का परिणाम मानकर लज्जित हो गया ।

तब उसने पुनः भैंस का बँटवारा व्यर्थ मानकर उस भैंस के खिलाने-पिलाने और दूध प्राप्त करना दोनों ने स्वीकार किया। उससे दोनों लाभान्वित हुए। क्योंकि निरर्थक बँटवारा अच्छा नहीं होता ऐसा उपदेश दिया ।

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कक्षा 7 संस्‍कृत पाठ 12 अरण्यम् (कृ, घृ, त्यज्, मुच्, स्था धातु के प्रयोग) का अर्थ | Aranyam class 7 sanskrit

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 7 संस्‍कृत के पाठ 12 ‘अरण्यम् (कृ, घृ, त्यज्, मुच्, स्था धातु के प्रयोग)(Aranyam class 7 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

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द्वादशः पाठः
अरण्यम्
(कृ, घृ, त्यज्, मुच्, स्था धातु के प्रयोग)

पाठ-परिचय- प्रस्तुत पाठ ‘अरण्यम्’ में पेड़-पौधे के महत्त्व एवं पर्यावरण की स्वच्छता के विषय में बताया गया है। पर्यावरण की शुद्धता पर ही जल, वायु तथा मिट्टी की शुद्धता निर्भर करती है। वृक्ष प्राण वायु छोड़ते हैं तथा दूषित वायु ग्रहण करते है। मानव का जीवन इन्हीं पेड़-पौधों पर निर्भर करता है । इसलिए पेड़ों की रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है । यदि ये पेड़-पौधे नहीं रहेंगे तो प्राणियों का भी अन्त हो जाएगा।

वृक्षाणां समूहः अरण्यं वनं वा भवति । अरण्ये प्रकृतिसंभवाः वृक्षाः भवन्ति । तत्र वन्याः प्राणिनः निवसन्ति । व्याघ्राः सिंहाः, भल्लुकाः, वानराः शृगालप्रभृतयः पशवः अरण्ये एव सहजरूपेण निवसन्ति ।

अरण्येषु विविधाः वनस्पतयः भवन्ति । तेभ्यः फलानि मिलन्ति । अरण्येभ्यः विविधाः

ओषधयश्च मिलन्ति । वनेभ्यः प्राप्तेभ्यः विविधेभ्यः काष्ठेभ्यो जनाः उपस्कराणां निर्माणं कुर्वन्ति ।

प्राणिनां प्राणरक्षायै वनम् अत्यावश्यकम् अस्ति । वयम् ऑक्सीजननामकं प्राणवायुं धारयामः कार्बनडाईऑक्साइड – नामकं दूषितं वायुं त्यजामः । वृक्षाः दूषितं वायुं गृह्णन्ति स्वच्छं वायुं च मुञ्चन्ति । इत्थं वृक्षाः परोपकारिणः सन्ति ।

अर्थ- वृक्षों का समूह वन अथवा जंगल कहलाता है। वन में प्राकृतिक रूप से उत्पन्न पेड़ होते हैं । उसमें जंगली जानवर बाघ, सिंह, भालू, बन्दर, सियार आदि स्वाभाविक रूप से ही रहते हैं ।

वन में अनेक प्रकार के पेड़-पौधे होते हैं। उससे फल मिलते हैं, अनेक प्रकार की औषधीय जड़ी-बूटियाँ मिलती हैं। वन से प्राप्त लकड़ियों से लोग उपस्कर आदि बनवाते हैं। प्राणियों (जीवों) की प्राणरक्षा के लिए वन (पेड़-पौधों) का होना अति आवश्यक है। हमलोग ऑक्सीजन नामक प्राणवायु साँस लेते हैं तथा कार्बनडाइऑक्साइड नामक दूषित वायु छोड़ते हैं । वृक्ष दूषित वायु ग्रहण करते हैं तथा शुद्ध वायु (ऑक्सीजन) छोड़ते हैं। इस प्रकार पेड़ परोपकारी होते हैं।

अधुना संसारे पर्यावरणप्रदूषणं निरन्तरं वर्धमानमस्ति । वायुप्रदूषणात् जनाः रुग्णाः भवन्ति । जीवनोपयोगिनां वस्तूनां मध्ये वायोः प्रथमं स्थानमस्ति । वायुं विना वयं क्षणमपि न जीवामः ।

वायुप्रदूषणं नाशयितुम् अरण्यम् आवश्यकम् । वृक्षाः संसारे सततं वर्धमानाम् उष्णतां वारयितुं क्षमाः । अरण्यं वर्षार्थं मेघान् आकर्षति । अनेन भूक्षरणं न्यूनं भवति। वन्यजीवा : संरक्षिता: तिष्ठन्ति ।

इदानीं जनाः तात्कालिकलाभाय वृक्षाणां छेदनं कुर्वन्ति । निरन्तरं वृक्षाणां कर्तनेन संसारस्य महती हानिः सञ्जाता । इयमेव स्थितिः स्यात् तर्हि सर्वं जीवनं प्रदूषणेन कठिनं भविष्यति । अतः वृक्षाणां संरक्षणं संवर्धनं च कर्तव्यम् ।

अर्थ — इस समय संसार में पर्यावरण प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। वायु प्रदूषण से लोग रोगी होते हैं । जीवनोपयोगी वस्तुओं में वायु का पहला स्थान है। हवा के बिना हम क्षण भर भी जीवित नहीं रह सकते हैं। वायु प्रदूषण नष्ट करने के लिए वन का होना आवश्यक है । संसार में बढ़ती हुई गर्मी रोकने में वृक्ष समर्थ होता है। वन वर्षा के लिए बादल को आकृष्ट करता है। इससे मिट्टी का कटना ( बहना) कम होता है । जंगली जीव सुरक्षित रहते हैं ।

इस समय क्षणिक लाभ के लिए वृक्ष को काटते हैं। लगातार वृक्ष को काटने से संसार को बड़ी हानि हो रही है । यदि इसी प्रकार की स्थिति रही तो प्राणियों का जीना कठिन हो जाएगा । इसलिए वन की सुरक्षा तथा पेड़ लगाना हमारा कर्तव्य है ।

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कक्षा 7 संस्‍कृत पाठ 11 डॉ० भीमराव अम्बेदकरः ( भूतकाल के प्रयोग लङ, क्त, क्तवतु) का अर्थ | Dr. Bhimrao Ambedkar class 7 sanskrit

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 7 संस्‍कृत के पाठ 11 ‘डॉ० भीमराव अम्बेदकरः ( भूतकाल के प्रयोग लङ, क्त, क्तवतु)(Dr. Bhimrao Ambedkar class 7 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Dr. Bhimrao Ambedkar class 7 sanskrit

एकादशः पाठः
डॉ० भीमराव अम्बेदकरः
( भूतकाल के प्रयोग लङ, क्त, क्तवतु)

पाठ- परिचय — प्रस्तुत पाठ में भारतीय संविधान के निर्माता तथा सामाजिक परिवर्तन के पुरोधा डॉ. भीमराव अम्बेदकर के व्यक्तित्व तथा कर्तृत्व का वर्णन किया गया है। इनका जन्म 1891 में मध्य प्रदेश के महू नामक गाँव में महार जाति में हुआ था । इन्होंने देश एवं विदेश में शिक्षा प्राप्त की। उनका महती योगदान भारत के संविधान निर्माण तथा शताब्दियों से वंचित वर्गों को सामाजिक अधिकार दिलाने में है। इनकी मृत्यु 1956 ई. में हुई ।

मध्यप्रदेशस्य महूनामके नगरे अप्रैलमासस्य चतुर्दशे दिवसे 1891

ई० वर्षे बाबासाहेब भीमराव अम्बेदकरः जातः । महार – जातौ तस्य जन्म अभवत् । जन्मतः एव भीमराव : मेधावी आसीत् । तस्य प्रारम्भिकी शिक्षा रत्नागिरिनगरस्य मराठीविद्यालये सतारा – नगरस्य प्राशासनिक विद्यालये च अभवत् । ततः मुम्बई – नगरे स्थितात् एलफिंस्टनविद्यालयात् 1907

ई० वर्षे भीमरावः प्रवेशिकापरीक्षाम् उत्तीर्णः । तत्रैव महाविद्यालये छात्रवृत्तिं गृहीत्वा स बी०ए० पर्यन्तम् अध्ययनं कृतवान् ।

अल्पकालं बड़ौदा महाराजस्य सेवायां स्थित्वा स महाराजात् वृत्तिं लब्ध्वा कोलम्बियाविश्वविद्यालयात् डॉक्टरोपाधिं प्राप्तवान् । विदेशेषु अनेकत्र स्वप्रतिभायाः प्रकाशनं कृत्वा भीमरावः प्रसिद्धो जातः । स विधिशास्त्रस्य महान् पण्डितः अभवत् । मुम्बई – नगरे कॉलेजशिक्षकः स नियुक्तः किन्तु शीघ्रमेव तत् पदम् अत्यजत् । लन्दननगरं च गत्वा अर्थशास्त्रे डी० एस-सी० इत्युपाधिं स प्राप्तवान् ।

अर्थ — बाबा साहेब भीमराव अम्बेदकर का जन्म मध्य प्रदेश के महू नामक नगर में 14 अप्रैल, 1891 ई. को महार जाति में हुआ । भीमराव जन्म (प्रारंभ) से ही मेधावी छात्र थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा रत्नागिरि के मराठी विद्यालय एवं सतारा नगर के प्रशासनिक विद्यालय में हुई। उसके बाद मुम्बई नगर में अवस्थित एलिफिंस्टन विद्यालय से प्रवेशिका परीक्षा पास की। उसी महाविद्यालय में आर्थिक सहायता (छात्रवृत्ति) लेकर वह बी. ए. तक शिक्षा प्राप्त की ।  

कुछ समय बड़ौदा महाराज की सेवा में रहकर वह महाराजा से आर्थिक सहायता प्राप्त कर कोलम्बिया विश्वविद्यालय से डॉक्टर की उपाधि प्राप्त की। विदेशों में अनेक स्थानों पर अपनी प्रतिभा का परिचय देकर भीमराव विख्यात हो गए। वह कानूनशास्त्र के महान विद्वान थे । मुम्बई नगर में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए किन्तु अतिशीघ्र उस पद का त्याग कर दिया और लन्दन जाकर अर्थशास्त्र विषय में डी.एस-सी. जैसी उपाधि प्राप्त की ।

भारतम् आगम्य दलितानाम् अस्पृश्यानां हिताय स महत्कार्यं कृतवान् । ग्रन्थरचनया स प्रतिभां प्रकाशितवान् । सामाजिककार्ये च स नेतृत्वं कृतवान् । भारतीयसंविधानस्य निर्माणे तस्य महद् योगदानं वर्तते । अनेकान् अधिनियमान् स्वीकृतान् कारयित्वा स भारतीयसमाजस्य समरूपतां प्रकटितवान् । जीवनस्य अन्तिमकाले स अनेकै: दलितैः सह बौद्धधर्मं गृहीतवान् । तस्य भास्वरं जीवनं 6 दिसम्बर 1956 ई० वर्षे समाप्तम्

भारतीयसमाजस्य विषमतां दृष्ट्वा भीमराव : अतीव पीडितः आसीत् । यद्यपि स्वयं सर्वं लब्धवान् किन्तु वञ्चिताः जनाः तस्य हृदये सदा तिष्ठन्ति स्म । अतः निरन्तरं विधिसम्मतेन संघर्षेण सः दलितानां हिताय आरक्षणव्यवस्थां संविधाने कृतवान् । स भारतस्य प्रथम: विधिमन्त्री आसीत्। सः मरणोत्तरं ‘भारतरत्नम्‘ इति राष्ट्रिय सम्मानं प्राप्तवान् । भारतीयः समाजः अस्य योगदानं कदापि

न विस्मरति ।  

अर्थ – भारत आकर दलित तथा अछूतों के

कल्याण के लिए वह महान् कार्य किया । ग्रन्थ रचना द्वारा उन्होंने अपनी विद्वत्ता का परिचय दिया और सामाजिक कार्यों की अगुआई की। भारतीय संविधान निर्माण में उनका महान् सहयोग है। अनेक अधिनियम पारित कराकर भारतीय समाज में समानता लाने का प्रयास किया। जीवन के अन्तिम क्षण में अनेक दलितों के साथ बौद्धधर्म ग्रहण किया । उनके यशपूर्ण जीवन की समाप्ति 6 दिसम्बर, 1956 ई. को हुई ।

भारतीय समाज में विषमता (भेदभाव) देखकर वह अति दुःखित थे । यद्यपि उन्हें सारी सुविधाएँ प्राप्त थीं लेकिन उपेक्षित लोगों के लिए वह सदा चिन्तित रहते थे । इसलिए सदा न्याय संगत संघर्ष के द्वारा दलितों के कल्याण के लिए संविधान में आरक्षण की व्यवस्था कराई । भारत का वह प्रथम कानून मंत्री बने । उनके मरने के बाद उन्हें ‘भारतरत्न’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। भारतीय समाज इनके योगदान को कभी नहीं भूल सकता है ।

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कक्षा 7 संस्‍कृत पाठ 10 दिनचर्या (दैनिक कार्यों की संस्कृत में अभिव्यक्ति) का अर्थ | Dincharya class 7 sanskrit

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 7 संस्‍कृत के पाठ 10 ‘दिनचर्या (दैनिक कार्यों की संस्कृत में अभिव्यक्ति)(Dincharya class 7 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

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दशमः पाठः
दिनचर्या
(दैनिक कार्यों की संस्कृत में अभिव्यक्ति)

पाठ – परिचय – प्रस्तुत पाठ ‘दिनचर्या’ में दैनिक कार्यों के विषय में बताया गया है कि नियमपूर्वक कार्य करनेवाले सुखी तथा स्वस्थ रहते हैं । हमारे शास्त्रकारों ने दैनिक कार्यक्रम को योजनाबद्ध तरीकों से करने की सलाह दी है। नियमानुसार कार्य करने से हर काम समय पर पूरा होता है जिस कारण मन शांत तथा प्रसन्न रहता है । जो व्यक्ति नियमबद्ध काम नहीं करते हैं उनका मन सदा अशांत रहता है । आहार-विहार अनियमित होने के कारण ऐसे व्यक्ति सदा दुःखी रहते हैं । इसलिए हर व्यक्ति को, विशेषतया छात्रों को अपनी दिनचर्या का पालन नियमपूर्वक करना चाहिए ।

अस्माकं जीवने आहार : विहारश्च मुख्यौ पक्षौ स्तः । आहारः भोजनम् इति वर्तते । विहार: अन्यः सर्वः क्रियाकलापः । उभयोः नियमाः सन्ति । तेषां पालनेन मानवजीवनं सुखमयं भवति । अनेन मानवस्य दिनचर्या निर्धारिता भवति ।

सामान्यतः प्रातःकाले सूर्योदयात् पूर्वमेव जागरणम् उचितम् । प्रकृतेः सर्वे प्राणिनः तथा कुर्वन्ति। पण्डिताः कथयन्ति यत् सूर्योदयात् पूर्वं ब्राह्ममुहूर्ते बुद्धिः अतीव प्रकाशते । अतः

बुद्धिकार्याणि तदा बहुमूल्यानि भवन्ति । प्रातः एव स्नानादि नित्यकर्म कर्तव्यम् । तेन सम्पूर्णं दिनं शक्ति: स्फूर्तिश्च भवतः । दिवसे यथाकालं स्वकीयं निर्धारितं कार्यं करणीयम् । छात्राः अध्ययनं कुर्वन्ति, गृहस्थाः गृहकार्यं कुर्वन्ति, कार्यालयेषु सर्वे स्व-स्व कार्यम् आचरन्ति । एवं दिवसस्य उपयोगः भवति । सायंकाले भ्रमणम् उद्यानगमनं वा शोभनं भवति । अनेन शरीरं मनश्च स्वस्थे जायेते । रात्रौ यथासमयं शयनम् उचितम |

अर्थ — हमारे जीवन में भोजन एवं भोजनेतर दोनों काम मुख्य पहलू हैं। आहार को भोजन कहते हैं । विहार के अन्तर्गत अन्य गतिविधियाँ आती हैं। दोनों जीवन के नियम हैं । इन नियमों का पालन करने से मानव का जीवन सुखमय रहता है। इससे मानव का दैनिक कार्यक्रम नियमबद्ध होता है ।

सामान्यतः सुबह में सूर्योदय से पहले ही उठना उचित है। प्रकृति के सभी प्राणी वैसा ही करते हैं। विद्वानों का कहना है कि सूर्योदय से पूर्व के समय ब्राह्म मुहूर्त में उठने से बुद्धि बढ़ती है । इसलिए बुद्धि द्वारा किए जाने वाले कार्य बहुमूल्य होते हैं। सुबह में ही स्नानादि नित्यकर्म करना उचित है। उससे दिनभर ताजगी बनी रहती है। दिन में समय पर अपना नियमित कार्य करना चाहिए। छात्र पढ़ाई-लिखाई करते हैं, गृहस्थ घरेलू कार्य करते हैं, कार्यालयों में सभी अपने-अपने कार्य में लग जाते हैं। इस प्रकार दिन का उपयोग होता है । सन्ध्या समय भ्रमण अथवा बागों में जाना लाभदायक होता है। इससे व्यक्ति स्वस्थ रहता है तथा मन प्रसन्न रहता है। रात में समय पर सोना चाहिए ।

प्रात:काले जलपानम् अल्पाहारः वा आवश्यकः । तस्मिन् फलानि, पेयानि तथा स्वच्छानि द्रव्याणि आवश्यकानि सन्ति । मध्याहने क्षुधानुसारेण अन्नं व्यञ्जनं च ग्रहणीयम् । अल्पभोजनं स्वास्थ्यकरं भवतिं । बहुभोजनं हानिकारकं जायते । सायंकाले दुग्धपानं फलाहारो वा करणीयः । रात्रौ च सुलभम् अल्पं भोजनं हितकरं भवति । शयनात् पूर्वं दन्तानां शोधनं, पादप्रक्षालनं, ईशवन्दनं च हितं भवति ।

अर्थ — सुबह में जलपान या अल्पाहार करना आवश्यक है । उसमें फल, पेय पदार्थ अथवा ताजा पदार्थ अवश्य होना चाहिए। दोपहार में क्षुधा (भूख) के अनुसार चावल अथवा रोटी, सब्जी लेना चाहिए। थोड़ा भोजन करना स्वास्थ्यकर होता है। अधिक भोजन करना हानिकारक होता है । सन्ध्या समय दूध तथा फलों को लेना चाहिए और रात में सुपाच्य एवं कम खाना लाभदायक होता है। सोने से पूर्व दाँतों को साफ करना, पैर धोना और ईश्वर की वंदना कल्याणकारी होता है ।

आयुर्वेद: कथयति युक्ताहारविहाराभ्यां नियतं दीर्घजीवनम् मिथ्याहारविहाराभ्यामस्वास्थ्यं चाल्पजीवनम्

अर्थ — आयुर्वेदशास्त्र में बताया गया है— नियमपूर्वक उपयुक्त आहार लेने तथा अन्य कर्मों को करने से व्यक्ति दीर्घजीवी होता है, किंतु अस्वाथ्यकर भोजन करने तथा अनियमित विहार से व्यक्ति अल्पजीवी होता है।

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कक्षा 7 संस्‍कृत पाठ 9 सुभाषितानि (षष्ठी विभक्ति के प्रयोग) का अर्थ | Subhashitani class 7 sanskrit

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 7 संस्‍कृत के पाठ 9 ‘सुभाषितानि (षष्ठी विभक्ति के प्रयोग)(Subhashitani class 7 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Subhashitani class 7 sanskrit

नवमः पाठः
सुभाषितानि
( षष्ठी विभक्ति के प्रयोग )

पाठ- परिचय — प्रस्तुत पाठ ‘सुभाषितानि’ में जीवनोपयोगी श्लोकों का संकलन विभिन्न संस्कृत ग्रंथों से किया गया है। ये श्लोक नीति, दैनिक व्यवहार, सदाचरण आदि की दृष्टि से अतिमहत्त्वपूर्ण हैं। ‘सुभाषित’ ‘सु’ तथा ‘भाष’ शब्दों के योग से बना है । ‘सु’ का अर्थ होता है ‘सुन्दर’ तथा ‘भाष्’ का अर्थ होता है— ‘कहना या कथन’ ये सुन्दर वचन या कथन अति उपयोगी अथवा महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं । सुन्दर वचन सुनकर मानव आह्लादित हो जाता है। ऐसे वचन कहने या सुनने से मन में अद्भुत् आनन्द का अनुभव होता है । इसलिए हर मानव को ऐसा वचन बोलना या सुनना चाहिए, जिससे जीवन मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिले।

1. विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन् ।
स्वदेशे पूज्यते रजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते 11

अर्थ — विद्वान् और राजा में कभी भी तुलना या समानता नहीं हो सकती है क्योंकि राजा की पूजा अपने देश में ही होती है किंतु विद्वान की पूजा सभी जगह होती है ।

2. उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये ।
पयःपानं भुजंगानां केवलं विषवर्धनम् ॥

अर्थ – जिस प्रकार दूध पिलाने पर भी सर्पों का विष बढ़ता ही है, घटता नहीं है, उसी प्रकार मूर्ख को उपदेश या सलाह क्रोध बढ़ाने वाला होता है अर्थात् जब मूर्ख को उपदेश दिया जाता है तो उसका क्रोध बढ़ जाता है, शांत नहीं होता ।

3. कोऽतिभारः समर्थानां किं दूरं व्यवसायिनाम् ।
को विदेशः सुविद्यानां कः परः प्रियवादिनाम् ॥

अर्थ- शक्ति सम्पन्न (सामर्थ्यवान् ) के लिए भार (बोझ) क्या है ? (कुछ नहीं) व्यापारी के लिए दूरी क्या है ? व्यापारियों के लिए दूर भी समीप जैसा होता है। विद्यावालों (विद्वानों) के लिए विदेश क्या है ? विद्वानों के लिए विदेश भी स्वदेश जैसा ही होता है। प्रिय बोलने वालों के लिए पराया कौन है ? प्रिय बोलने वालों के लिए कोई भी पराया नहीं होता है ।

4. केवलं व्यसनस्योक्तं भेषजं नयपण्डितैः ।
तस्योच्छेद-समारम्भो विषाद-परिवर्जनम् 

अर्थ – नीतिकार द्वारा कहा गया है कि बुरी आदतों का त्याग करना ही असली दवा है । जैसे ही ऐसा प्रयास आरंभ होता है, दुःख मिटने लगता है ।

5. गन्धेन गावः पश्यन्ति शास्त्रैः पश्यन्ति पण्डितः ।
चारैः पश्यन्ति राजानः चक्षुर्म्यामितरे जानाः ।।

अर्थ — गाएँ (पशु) गंध से पहचानती है कि यह हमारा बच्चा है । विद्वान शास्त्र- ज्ञान से जान जाते हैं कि कौन कैसा है ? राजा लोग अपने गुप्तचरों द्वारा पता लगा लेते हैं कि उसके प्रति लोगों का विचार कैसा है जिसे अन्य लोग आँखों से देखकर जान पाते हैं ।

6. आत्मनो मुखदोषेण बध्यन्ते शुकसारिकाः ।
बकास्तत्र न बध्यन्ते मौनं सर्वार्थसाधनम् ।।

अर्थ — तोता और मैना अपने बड़बोलेपन (मुखदोष) के कारण पिंजरबद्ध किया जाता है, वहीं मौन रहने के कारण बगुला को कोई नहीं पकड़ता ( मारता है। इसलिए नीतिकार का सुझाव है कि मौन रहने में ही कल्याण है, क्योंकि मौन रहने पर सारे मनोरथों की पूर्ति हो जाती है ।

7. अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥

अर्थ- तुच्छ विचारवाले अपना पराया में भेद करते हैं, लेकिन उदार विचार वाले सम्पूर्ण धरती को ही अपने परिवार जैसा समझते हैं । तात्पर्य यह कि नीच विचार के व्यक्ति ही भेदभाव की भावना से ग्रस्त होते हैं। महापुरुष तो सबको अपने भाई-बन्धु जैसा मानते हैं

8. कहलान्तानि हर्म्याणि कुवाक्यान्तं च सौहृदम् ।
कुराजान्तानि राष्ट्राणि कुकर्मान्तं यशो नृणाम् ॥

अर्थ — आपसी कलह से परिवार नष्ट हो जाता है, खराब बोली (वचन) से दोस्ती खत्म हो जाती है। मूर्ख राजा राष्ट्र का विनाश कर देते हैं तो कुकर्म से व्यक्ति की प्रतिष्ठा नष्ट हो जाती है ।

Subhashitani class 7 sanskrit

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कक्षा 7 संस्‍कृत पाठ 8 वसुधैव कुटुम्बकम् (अव्यय-प्रयोग) का अर्थ | Vasudhaiv ka prayog class 7 sanskrit

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 7 संस्‍कृत के पाठ 8 ‘वसुधैव कुटुम्बकम् (अव्यय-प्रयोग)(Vasudhaiv ka prayog class 7 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Vasudhaiv ka prayog class 7 sanskrit

अष्टमः पाठः
वसुधैव कुटुम्बकम्
(अव्यय-प्रयोग)

पाठ – परिचय — प्रस्तुत पाठ ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ में विश्वबन्धुत्व की भावना के महत्त्व एवं आवश्यकता की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है । आज विश्व अशान्ति के सागर में गोते लगा रहा है । सर्वत्र असंतोष महत्त्वाकांक्षा, ईर्ष्या आदि के कारण सामाजिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त है । ऐसी स्थिति में भारत की प्राचीन सामाजिक व्यवस्था की ओर सबका ध्यान जाता है कि भारत ने सारे विश्व को अपने परिवार जैसा समझा, सबके प्रति सम्मान का भाव रखा। इसी भावना से प्रेरित होकर विदेशियों ने भी इस भूमि को अपना मान लिया । इस विषम परिस्थिति में विश्व को अशांति से मुक्ति दिलाने का काम भारत ही कर सकता है ।

अधुना सम्पूर्णः संसारः अशान्तो वर्तते । देश: देशं प्रति, समाजः समाजं प्रति, मानवश्च मानवं प्रति द्वेषग्रस्ताः सन्ति । अस्य कारणमपि वर्तते । स्वार्थसिद्धिः स्वस्य सुखस्य कामना, महत्त्वाकांक्षा च परस्य शोषणाय कमपि प्रेरयति । सर्वे स्वसुखं वाञ्छन्ति, न कश्चित् परस्य सुखम् उत्कर्षं वा सहते । तेन अशान्तिः भवति । तद् दुःखकारणम् ।

अशान्तः मानवः राक्षसः इव भवति । यदि स देववत् भवेत् तदा संसारः शान्तः प्रसन्नः आनन्दमयश्च भविष्यति । तदा शस्त्रादीनां न आवश्यकता । एक: अपरं दृष्ट्वा प्रमुदितः भवेत् । यथा आत्मनः बन्धुं परिवारं वा मन्यते मनुष्यः तथैव अपरमपि जनं बन्धुं परिवारं मन्येत । सर्वे एकरूपाः एकस्य ईश्वरस्य सन्तानाः कथं भिन्नाः सन्ति ? यः सर्वेषु जनेषु आत्मभावनां धारयति स वस्तुतः देवः । अस्माकं लक्ष्यं तदेव भवेत् यत् सर्वे वयं परस्परं मित्ररूपाः बन्धुरूपाश्च भवेम । तदा मोहः द्वेषः शत्रुभावना च न भवेत् ।

अर्थ — इस समय सारा संसार अशांत है । एक देश दूसरे देश को, एक समाज दूसरे समाज को और एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को ईर्ष्या की दृष्टि से देखता है। इसका मुख्य कारण है, अपने हित की साधना, अपना सुख, ऊँची, आकांक्षा आदि । यह भावना दूसरों को कष्ट पहुँचाने की प्रेरणा देती है। सभी अपना ही सुख चाहते हैं, कोई दूसरों के सुख तथा उन्नति को सहन नहीं कर पाता। इससे अशांति होती है। यही दुख का कारण है ।

अशान्त (बेचैन) मानव दानव के समान होता है । यदि वह मानवता का पुजारी हो जाए तो सारा संसार सुखमय तथा आनन्दमय हो जाएगा । और शस्त्र (हथियार) आदि की जरूरत ही न रहेगी। एक-दूसरे को देखकर प्रसन्न हों। जिस प्रकार अपने परिवार को माना जाता है, उसी प्रकार दूसरे के परिवार को भी मानें। हम सभी समान रूपवाले एक ही ईश्वर की संतान हैं फिर आपस में भिन्नता कैसी ? जो सबको अपने समान मानता है, वह सचमुच देवतुल्य होता है । हमारा उद्देश्य वैसा ही हो कि हम सभी आपस में मित्रवत् तथा भाई के समान हों और तब किसी के प्रति भी लगाव, ईर्ष्या एवं शत्रुता की भावना नहीं हो ।

अद्य वैज्ञानिकस्य विकासस्य परिणामः वर्तते यत् संसार: अल्पीकृतः । अद्य एकस्मिन् देशे घटिता घटना सम्पूर्णं संसारं शीघ्रमेव प्रभावयति । वैश्वीकरणस्य प्रभावात् एकः उत्पाद : शीघ्रं सर्वेषु देशेषु गच्छति । अतः अद्य विश्वबन्धुत्वं प्रभूतम् आवश्यकमस्ति । उत्सवेषु समारोहेषु परस्परं मिलन्तः जनाः बन्धुत्वं दर्शयन्ति । तथैव राष्ट्रियेषु समारोहेषु विश्वसमारोहेषु च अद्यापि बन्धुत्वं वर्धते । अस्माकं शास्त्रेषु कथ्यते यत्र विश्वं भवत्येकनीडम् । अर्थात् यथा एकस्मिन् नीडे पक्षिणां परिवारो निवसति तथैव क्वचित् समारोहे, शिक्षास्थले, कार्यस्थले वा सर्वे एकनीडाः भवन्ति । यथा तत्र बन्धुत्वं वर्तते तथैव सामान्यजीवनेऽपि देशानां समाजानां वर्गाणां च मध्ये तदेवं एकनीडत्वं बन्धुत्वं च भवेताम् । तत्र स्वार्थः सर्वथा नश्यति, परमार्थः वर्धते । स्वदेश: परदेशश्च परमार्थतः एक एव । इदमेव उदारस्य जनस्य लक्षणमस्ति यत् स स्वस्य परस्य च विचारं न कुर्यात् । तथा च हितोपदेश:

अर्थ- आज वैज्ञानिक विकास के फलस्वरूप यह संसार छोटा हो गया है। इस समय किसी एक देश में घटित घटना अतिशीघ्र सारे संसार में फैल जाती है । वैश्वीकरण के प्रभाव से एक वस्तु अतिशीघ्र दूसरे देशों में पहुँच जाती है। इसलिए आज विश्वबंधुत्व की भावना की अतिआवश्यकता है । उत्सवों, समारोहों आदि में आपस में मिलते हुए लोगों में भाईचारे का भाव देखे जाते हैं। हमारे आर्ष ग्रंथों का संदेश है— ‘जहाँ संसार एक परिवार के समान रहता है। अर्थात् जिस प्रकार एक घोंसले में पक्षी का सारा परिवार रहता है, उसी प्रकार किसी उत्सव, शिक्षालय, समारोहों में सभी एक समान भाव से रहते हैं । जैसा भाईचारा उन समारोहों, उत्सवों में रहता है, वैसा ही भाईचारा सामान्य जीवन में, विभिन्न देशों, समाजों तथा विभिन्न वर्गों के बीच वही भाईचारा का भाव होना चाहिए । इससे स्वार्थ का नाश होता है और परोपकार की भावना बढ़ती है। देश-विदेश दोनों एक समान हो जाते हैं। यही भावना उदार लोगों (महापुरुषों) की पहचान है, क्योंकि ऐसे लोग अपना पराया का विचार नहीं रखते। और वैसा ही हितोपदेश में कहा गया है :

” अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्

उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥

अर्थ — तुच्छ विचारवाले ही अपना-पराया का भाव रखते हैं, महापुरुष तो सारे संसार को अपने परिवार अथवा भाई-बन्धु जैसा मानते हैं ।”

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कक्षा 7 संस्‍कृत पाठ 7 दीपोत्सवः (सप्तमी विभक्ति का प्रयोग) का अर्थ | Deepotsav class 7 sanskrit

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 7 संस्‍कृत के पाठ 7 ‘दीपोत्सवः (सप्तमी विभक्ति का प्रयोग)(Deepotsav class 7 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Deepotsav class 7 sanskrit

सप्तमः पाठः
दीपोत्सवः
(सप्तमी विभक्ति का प्रयोग )

पाठ-परिचय- प्रस्तुत पाठ ‘दीपोत्सव:’ में प्रसिद्ध उत्सव दीपावली का वर्णन है यह उत्सव कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इस उत्सव के अवसर पर लोग अपने-अपने घरों की सफाई करते हैं और रंग-रोगन करते हैं। दीपावली की संध्या को घरों को दीपों से सजाते हैं, पटाखे छोड़ते हैं तथा रात्रि में लक्ष्मी का पूजन करते हैं। लोग एक-दूसरे को मिठाई खिलाते हैं तथा शुभकामना प्रकट करते हैं । इस उत्सव के संबंध में मान्यता हैं कि जब भगवान श्रीराम आततायी रावण को मारकर अयोध्या लौटे तो अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। उसी दिन से इस उत्सव की परंपरा शुरू हो गई।

अस्माकं समारोहेषु दीपोत्सवः विशिष्टः । दीपोत्सवः सामान्यतः दीपावली दिवाली वा नाम्ना ज्ञायते । प्रकाशोत्सव : अयं बालानां चित्तानि हरति । गृहेषु, हट्टेषु चत्वरेषु, आपणेषु सर्वत्र दीपानां मालाः शोभन्ते ।

कार्तिकमासस्य अमावस्यायां तिथौ प्रतिवर्षं भारतीया इमम् उत्सवं समायोजयन्ति । शारदीय : अयम् उत्सवः । वर्षायाम् ऋतौ सर्वत्र वर्षाणां प्रभावेण अस्वच्छता, कीटपतंगानां प्रसारश्च भवति । यदा शरद् आयाति तदा जनाः स्वगृहं परिसरं च स्वच्छं कुर्वन्ति । ते गृहाणि सुधया लिम्पन्ति । कपाटगवाक्षादीन् रञ्जयन्ति । इतस्ततः क्षिप्तम् अपद्रव्यम् अपसारयन्ति । सर्वत्र निर्मलता निवसति ।

अर्थ – हमारे उत्सवों में दीपावली प्रमुख है । दीपोत्सव को ही सामान्यतः दीपावली या दिवाली कहते हैं । यह प्रकाशोत्सव बच्चों के मन को आनंद देने वाला होता है। घरों में, द्वारों पर, चौराहों पर, दुकानों में सभी जगह दीपों की माला शोभायमान होती है

भारतीय हर वर्ष कार्तिक महीना की अमावस्या के दिन इस उत्सव का आयोजन करते हैं । यह शरद्कालीन त्योहार है। वर्षा ऋतु में वर्षा के कारण सर्वत्र गंदगी तथा कीट-पतंगों की वृद्धि हो जाती है । जब शरद आता है तब लोग अपने-अपने घरों के आसपास की सफाई करते हैं । वे चूना से घरों की पुताई करते हैं । किवाड़ एवं खिड़कियों को रंगते हैं। इधर-उधर बिखरे गंदे पदार्थों को साफ करते हैं । सर्वत्र स्वच्छता छा जाती है ।

नवं वस्त्रं मिष्टान्नं च लब्ध्वा बाला मुदिताः भ्रमन्ति । ते पटाखाविस्फोटं कृत्वा आनन्दमनुभवन्ति। जनाः परस्परं शुभकामनां प्रकटयन्ति । सर्वत्र बन्धुभावः विराजते ।

रावणवधानन्तरं रामचन्द्रस्य अयोध्यागमने प्रथमः दीपोत्सवः आयोजितः इति जनश्रुतिः । तदा प्रभृति वयम् अस्य आयोजनं कुर्मः । अस्मिन् पर्वणि जना: रात्रौ स्व-स्वगृहं दीपमालिकया अलङ्कुर्वन्ति । धनस्य देवीं लक्ष्मीं पूजयन्ति । निर्धनतां निस्सारयन्ति । इयं रात्रिः सुखरात्रिः इति नाम्ना विख्याता । मिथिलायां बंगप्रदेशे च केचन देवीं कालिकां पूजयन्ति ।

वर्षाकाले वृद्धिम् उपगतानां कीटपतङ्गानां पुरा तैलवर्तिकाभिः विनाशो भवति स्म । तेन पर्यावरणं शुद्धं भवति स्म । अद्य तु वयं मोमवर्तिकानां विद्युद्दीपानां च प्रयोगं कुर्मः । उल्लासप्रकटनाय पटाखाविस्फोटः च भवति । अनेन वातावरणे दूषितः पदार्थः वर्धते । कीटा न नश्यन्ति । वातावरणं च विषयुक्तं भवति । ध्वनिप्रदूषणं चापि वर्धते । अतः सावधानेन भवितव्यम् । स्वरक्षणाय पर्यावरणरक्षणं परमं कर्तव्यम् ।

अर्थ — बच्चे नये वस्त्र तथा मिठाई पाकर अति प्रसन्नता से घूमते हैं । वे पटाखे छोड़कर अपनी खुशी का इजहार करते हैं। लोग आपस में एक-दूसरे को शुभकामना प्रकट करते हैं । सर्वत्र भाईचारे का भाव रहता है।

रावणवध के बाद जब श्रीराम अयोध्या वापस आए तो लोगों ने सर्वप्रथम दीपोत्सव मनाया था, ऐसी मान्यता है । उसके बाद से हम इस उत्सव का आयोजन करते आ रहे हैं। इस उत्सव पर लोग अपने घरों को रात में दीपों से सजाते हैं और धन की देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। निर्धनता ( दरिद्रता) को निकालते हैं । इस रात को सुखरात्रि के नाम से भी जाना जाता है । मिथिला तथा बंगाल में कुछ लोग काली की पूजा करते हैं ।

वर्षा की अवधि में बढ़े हुए कीट-पतंगों का नाश पहले तेल का दीपक जलाकर करते थे। उससे पर्यावरण शुद्ध होता था । इस समय तो मोमबत्ती एवं बिजली के बल्बों का उपयोग करते हैं। और अपनी खुशी का इजहार करने के लिए पटाखे छोड़ते हैं। इससे वातावरण में प्रदूषण बढ़ता है (लेकिन) कीड़े नहीं मरते हैं । वातावरण प्रदूषित हो रहा है और ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ता है। अतः (इन सबों का) सावधानी से प्रयोग होना चाहिए, क्योंकि आत्म रक्षा के लिए पर्यावरण को स्वच्छ रखना हमारा पुनीत कर्तव्य है ।

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कक्षा 7 संस्‍कृत पाठ 6 संख्याज्ञानम् ( संख्याज्ञान और पुष्प-परिचय) का अर्थ | Sankhtagyanam class 7 sanskrit

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 7 संस्‍कृत के पाठ 6 ‘संख्याज्ञानम् ( संख्याज्ञान और पुष्प-परिचय)(Sankhtagyanam class 7 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

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षष्ठः पाठः
संख्याज्ञानम्
( संख्याज्ञान और पुष्प-परिचय)

पाठ- परिचय- प्रस्तुत पाठ में बच्चों को 21 से 50 तक की संख्याओं के विषय में बताया गया है। हर भाषा में संख्या को भिन्न-भिन्न रूपों में प्रकट किया जाता है जैसे – हिन्दी में इक्कीस, अंग्रेजी में Twenty one तथा संस्कृत में एकविंशति कहते हैं । इन संख्याओं के ज्ञान से बच्चों को संस्कृत भाषा की संख्या समझने में आसानी होती है ।

अस्मिन् वर्गे पञ्चाशत् छात्राः सन्ति । एतेषु एकविंशतिः बालिकाः सन्ति । ततः नवविंशतिः ( ऊनत्रिंशत्) बालकाः वर्तन्ते । विद्यालयस्य उद्याने चत्वारिंशत् पाटलपादपाः, पञ्चत्रिंशत् यूथिकाः, पञ्चचत्वारिंशत् मल्लिकाः, त्रिंशत् कर्णिकाराः, द्वाविंशति: जपाः सन्ति । शरत्काले उद्यानस्य पञ्चविंशतिः अपि शेफालिकाः पुष्पाणि धारयन्ति । तानि पुष्पाणि प्रात:काले भूमौ विकीर्णानि भवन्ति । सरोवरे कमलपुष्पाणि सन्ति । अद्य चतुर्विंशतिः पुष्पाणि विकसितानि । अस्माकं देशे सम्प्रति अष्टाविंशतिः राज्यानि सन्ति । आकाशे सप्तविंशतिः नक्षत्राणि सन्ति । जैनाः कथयन्ति यत् महावीरवर्धमानात् पूर्वं त्रयोविंशतिः तीर्थंकराः अभवन् । पार्श्वनाथः त्रयोविंशतितमः तीर्थंकर : अभवत् । तेन पारसनाथपर्वतस्य प्रसिद्धिः ।

अर्थ — इस कक्षा में पचास छात्र हैं । इनमें इक्कीस लड़कियाँ हैं । इसके बाद उनतीस लड़के हैं । विद्यालय के बगीचे में चालीस गुलाब के, पैंतीस जूही के, पैंतालीस बेला के, तीस कनेर के तथा बाईंस अड़हुल के पौधे हैं । शरद् ऋतु में बगीचे के पचीस हरसिंगार के पौधे भी फूल धारण करते हैं । वे फूल सुबह में जमीन पर बिखरे हुए रहते हैं। सरोवर (तालाब) में कमल के फूल हैं। आज चौबीस ( कमल के फूल खिले हुए हैं। हमारे देश में इस समय अट्ठाईस राज्य हैं। आकाश में सताईस नक्षत्र हैं। जैन धर्मवालों का कहना है कि महावीर वर्धमान से पूर्व तेईस तीर्थंकर हुए। पार्श्वनाथ तेईसवें तीर्थंकर हुए। उनसे पारसनाथ पर्वत की ख्याति हई ।

अस्माकं मुखे द्वात्रिंशत् दन्ताः भवन्ति । एकस्मिन् मासे सामान्यत: त्रिंशत् दिवसाः भवन्ति । किन्तु जनवरी-मार्च – मई – जुलाई-अगस्त- अक्टूबर-दिसम्बर-मासेषु एकत्रिंशत् दिवसाः भवन्ति । फरवरीमासे अष्टाविंशतिः दिवसाः सन्ति किन्तु चतुर्थे वर्षे ते ऊनत्रिंशत् भवन्ति । मम

लेखनपुस्तिकायां चत्वारिंशत् पत्राणि सन्ति । अस्मिन् पुस्तके अष्टचत्वारिंशत् पृष्ठाः सन्ति । मम गणितपुस्तिकायां षट्चत्वारिंशत् एवं पत्राणि सन्ति । मम ग्रामे त्रयस्त्रिंशत् गृहाणि सन्ति । तव ग्रामे द्वाचत्वारिंशत् कूपाः सन्ति ।

अर्थ – हमारे मुँह में बत्तीस दाँत हैं। एक मास में सामान्यतः तीस दिन होते हैं। लेकिन जनवरी, मार्च, मई, जुलाई, अगस्त, अक्टूबर तथा दिसम्बर महीनों में इक्तीस दिन होते हैं। फरवरी महीने में अट्ठाईस दिन होते हैं लेकिन चौथे वर्ष में उनतीस दिन होते हैं। मेरी कॉपी में चालीस पन्ने हैं। इस पुस्तक में अड़तालीस पृष्ठ हैं। मेरी गणित की कॉपी छियालीस पन्ने ही हैं। मेरे गाँव में तैंतीस घर हैं । तुम्हारे गाँव में वियालीस कुएँ हैं ।

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