तत्वों का आवर्त वर्गीकरण | Periodic classification of Elements in Science

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 10 विज्ञान के पाठ 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण (Periodic classification of Elements in Science) के सभी टॉपिकों के बारे में अध्‍ययन करेंगे।

Periodic classification of Elements in Hindi

Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण

तत्‍वों के आवर्ती वर्गीकरण की आवश्यकता क्यों ?

प्रारंभ में जब बहुत ही कम तत्‍व ज्ञात थे तब उनके गुणों का अलग-अलग अध्ययन करने में कोई विशेष कठिनाई नहीं होती थी। किंतु जब एक-एक करके बहुत-से तत्‍वों का आविष्कार हुआ तो उनके गुणों का अलग-अलग अध्ययन करने में कठिनाई महसुस होने लगी। अब तक 111 तŸवों का आविष्कार हो चुका है।

तत्‍वों के वर्गीकरण के लाभ-

तत्‍वों के वर्गीकरण से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं-

  1. इसमें तत्‍वों के गुणों का अध्ययन नियमित तरीके से किया जा सकता है।
  2. सभी तत्‍वों के गुणों का अलग-अलग अध्ययन करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। किसी समुह के एक विशिष्ट तत्‍व के गुणों की जानकारी हो जाने पर उस समुह के अन्य तत्‍वों के गुणों का अनुमान लगाया जा सकता है।
  3. किसी समूह के तŸवों के गुणों में होनेवाले क्रमिक परिवर्तन को समझना आसान हो जाता है।
  4. इससे विभिन्न समुहों के तŸवों के पारस्परिक संबंध की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

डोबरेनर के त्रियक-

19वीं शताब्दी के प्रारंभ में जर्मन रसायनज्ञ जॉन डोबरेनर ने रासायनिक दृष्टि से सदृश तŸवों को तीन-तीन समूहों में वर्गीकृत किया। ये समुह त्रियक कहलाते हैं। इन्होंने त्रियक के नियम की घोषणा की जिसके अनुसार-

   त्रियक के तत्‍वों को उनके परमाणु द्रव्यमानों के क्रम में सजाने पर मध्यवर्ती तत्‍व का परमाणु द्रव्यमान किनारे वाले शेष दोनों तत्‍वों के परमाणु द्रव्यमानों का औसत होता है।

इसे ‘डोबरेनर का त्रियक‘ भी कहते हैं।

न्यूलैंड्स का अष्टक नियम- यदि तत्‍वों को उनके बढ़ते हुए परमाणु द्रव्यमानों के क्रम में सजाया जाए तो किसी भी तत्‍व से प्रारंभ करने पर आठवें तत्‍व के गुण पहले तत्‍व के गुणों के समान होते हैं, जैसा कि संगीत का आठवाँ स्वर पहले स्वर के समान होता है।

अष्टक के दोष-

    न्यूलैंड्स का अष्टक नियम हल्के तत्‍वों (कैल्सियम तक) के लिए ही लागु होता है, भारी तŸवों के लिए नहीं, क्योंकि कैल्सियम के बाद प्रत्येक आठवें तत्‍व के गुण प्रथम तत्‍व के गुण से भिन्न होते हैं।

    न्यूलैंड्स का अनुमान था कि प्रकृति में सिर्फ 56 तत्‍व ही हैं और आगे चलकर अन्य तत्‍वों का आविष्कार नहीं होगा। किंतु, यह अनुमान गलत निकला। आगे चलकर अन्य बहुत-से नए तत्‍वों के आविष्कार हुए जिनके आचरण अष्टक नियम के प्रतिकुल थे।

    अक्रिय गैसों का आविष्कार हो जाने पर नवम् तत्‍व प्रथम तत्‍व के समान गुण वाला होता है, न कि आठवाँ।

मेंडलीव का आवर्त नियम-

न्यूलैंड्स के अष्टक नियम से प्रेरित होकर 1869 में रूसी रसायनज्ञ दमित्री मेंडलीव ने तत्‍वों के भौतिक और रासायनिक गुणों का गहन अध्ययन करके तत्‍वों के वर्गीकरण की एक नई प्रणाली विकसित की। तत्‍वों के उनके बढ़ते हुए परमाणु द्रव्यमानों के क्रम में सजाकर उन्होंने देखा कि

  1. तत्‍वों के गुणों में क्रमिक परिवर्तन होता है,
  2. तत्‍वों के एक निश्चित संख्या के बाद लगभग समान गुणवाले तŸव पाए जाते हैं।

   अपने निष्कर्षों के आधार पर मेंडलीव ने एक नियम का प्रतिपादन किया जिसे मेंडलीव का आवर्त नियम कहते हैं।

मेंडलीव के आवर्त नियम के अनुसार-

   तत्‍वों के भौतिक व रासायनिक गुण उनके परमाणु द्रव्यमानों के आवर्तफलन होते हैं, दूसरे शब्दों में यदि तŸवों को उनके बढ़ते हुए परमाणु द्रव्यमानों के क्रम में सजाया जाए तो एक निश्चित संख्या के बाद समान गुणवाले तत्‍व पाए जाते हैं।

मेंडलीव की आवर्त सारणी की मुख्य विशेषताएँ-

  1. वर्ग और उपवर्ग

   आवर्त सारणी की उदग्र स्तंभों को वर्ग कहते हैं। इन्हें रोमण अंकों द्वारा निरूपित किया गया है। प्रत्येक वर्ग को । और ठ , दो उपवर्गों में बाँटा गया है।

  1. आवर्त

    आवर्त सारणी की क्षैतिज कतारें आवर्त कहलाती हैं। सारणी में 1 से लेकर 7 तक कुल सात आवर्त हैं।

मोसले का आवर्त नियम-

   तत्‍वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उनकी परमाणु संख्याओं के आवर्तफलन होते हैं।

   मोसले ने आधुनिक आवर्त सारणी का निमार्ण परमाणु द्रव्यमान पर नहीं, बल्कि परमाणु संख्याओं के आधार पर किया।

    परमाणु संख्या के आधार पर तत्‍वों को सजाकर आवर्त सारणी को संशोधित रूप में प्रस्तुत किया जिसे आधुनिक आवर्त सारणी कहते हैं। इसे आवर्त सारणी का दीर्घ या वृहद रूप भी कहते हैं।

आधुनिक आवर्त सारणी का विवरण

1.आधुनिक आवर्त सारणी में तत्‍वों को उनकी बढ़ती हुई परमाणु संख्या के क्रम में सजाया गया है।

2 इसमें कुल सात आवर्त हैं।

  1. आधुनिक आवर्त सारणी में लैंथेनाइड्स एवं ऐक्टिनाइड्स को छोड़कर 18 उदग्र स्तंभ है। ये 1, 2, 3, 4, ….., 18 संख्याओं द्वारा व्यक्त किए गए हैं।
  2. इस आवर्त सारणी के नीचे दो कतारों में लैथेंनाइड्स और ऐक्टिनाइड्स हैं। ये वर्ग 3 के सदस्य हैं।

लैंथेनाइड्स : La(57), Ce (58) – Lu(71)

ऐक्टिनाइड्स : Ac (89), Th (90) – Lr (103)

    इस आवर्त सारणी को चार ब्लॉकों में बाँट दिया गया है। ये चार ब्लॉक हैं- s, p, d और f

आवर्त सारणी की विशेषताएँ-

  1. इलेक्ट्रॉनिक विन्यास- किसी वर्ग-विशेष के सभी तŸवों के बाह्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास समान होते हैं, अर्थात सभी तŸवों के परमाणुओं में संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होती है।
  2. संयोजकता- किसी वर्ग के सभी तŸवों की संयोजकता समान होती है।
  3. परमाणु का आकार या त्रिज्या- आवर्त सारणी के किसी वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर परमाणु का आकार बढ़ता जाता है।
  4. धातुई गुण- किसी वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर तŸव का धातुई गुण बढ़ने लगता है।
  5. भौतिक गुण- किसी वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर धातुई तŸवों के भौतिक गुण (द्रवनांक, क्वथनांक आदि) क्रमशः घटते जाते हैं, किंतु घनत्व में बढ़ने की प्रवृति होती है।

वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर अधातुओं के भौतिक गुण क्रमशः बढ़ते जाते हैं।

आधुनिक आवर्त सारणी के दोष-

   आधुनिक आवर्त सारणी में मेंडलीव की आवर्त सारणी के अधिकांश दोष दूर कर दिए गए हैं, फिर भी इसमें निम्नलिखित दोष रह गए हैं-

  1. हाइड्रोजन का स्थान- इस आवर्त सारणी में भी मेंडलीव की सारणी की भाँति हाइड्रोजन का स्थान अनिर्णित है।
  2. हीलियम का स्थान- इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के अनुसार हीलियम का स्थान वर्ग 2 में क्षारीय मृदा धातुओं के साथ होना चाहिए था, किंतु इसे उत्कृष्ट गैसों के साथ वर्ग 18 में रख दिया गया है।

    आवर्त सारणी के वर्ग 0 या वर्ग 18 वाले तŸव गैस है जिन्हें उत्कृष्ट गैसें कहते हैं। ये सभी तŸव रासायनिक दृष्टि से अक्रिय होते हैं।

    वर्ग 1 के तत्‍व क्षार धातु कहलाते हैं।

    वर्ग 2 के तत्‍व क्षारीय मृदा धातु कहलाते हैं।

    वर्ग 17 के तत्‍व हैलोजन्स कहलाते हैं।

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कार्बन एवं इसके यौगिक | Carbon and its compound in Science

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 10 विज्ञान के पाठ 4 कार्बन एवं इसके यौगिक (Carbon and its compound in Science) के सभी टॉपिकों के बारे में अध्‍ययन करेंगे।

Carbon and its compound in Hindi

Chapter 4 कार्बन एवं इसके यौगिक

   परिचय- कार्बन पृथ्वी पर 0.02% तथा वायु में कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में कार्बन 0.03% पाया जाता है। मक्त अवस्था में कार्बन हिरे, ग्रैफाइट तथा कोयला के रूप में पाया जाता है। संयोजित अवस्था में कार्बन मुख्य रूप से कार्बोनेट खनिजों में पाया जाता है।

   कार्बन सभी सजीवों के निर्माण में आवश्यक अवयव होता है।

कार्बनिक यौगिकों के महत्व

सुबह से शाम तक जिन वस्तुओं का हम इस्तेमाल करते हैं, वे सभी कार्बनिक यौगिकों के बने होते हैं। हमारे भोजन, कपड़ा, कागज, चमड़ा, साबुन, रंग, प्लास्टिक के वस्तुएँ, बच्चों के खिलौने इत्यादि।

सहसंयोजक बंधन जब दो परमाणु अपनी बाह्यतम कक्षा के इलेक्ट्रॉनों का आपस में साझा करके संयोग करते हैं तब उनके बीच निर्मित बंधन को सहसंयोजक बंधन कहते हैं। तथा इस प्रकार से निर्मित यौगिकों को सहसंयोजक यौगिक कहते हैं।

ऑक्सीजन परमाणु का बनना

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हाइड्रोजन परमाणु का बनना

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क्रियाशील समुह किसी कार्बनिक यौगिक में उपस्थित वह समुह जिस पर यौगिक का रासायनिक गुण निर्भर करता है, उस यौगिक का क्रियाशील समुह कहलाता है।

जैसे- मेथिल ऐल्कोहॉल या मेथेनॉल (CH3OH) में दो भाग होते हैं- मेथिल समूह (CH3 -) हाइड्रॉक्सिल समूह (-OH)

मेथिल ऐल्कोहॉल में -OH समुह क्रियाशील समूह है, क्योंकि मेथिल एल्कोहॉल के सभी रासायनिक गुण -OH समुह पर निर्भर करते हैं।

कोयले के निमार्ण की कहानी लाखों वर्ष पूर्व पृथ्वी के जंगलों में पेड़-पौधे भूकंप, ज्वालामुखी आदि के कारण जमीन के अंदर धँस गए और इनके ऊपर मिट्टी, बालू और जल की परतें बैठ गई। कालांतर में ये ऑक्सीजन के संपर्क से वंचित हो गए। फलतः इनका ऑक्सीकरण नहीं हो पाया। ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में धरती के अंदर के उच्च दाब और उच्च ताप तथा बैक्टीरिया के संयुक्त प्रभाव से इनका रूपांतरण कोयले में हो गया।

पेट्रोलियम के निर्माण की कहानी पेट्रोलियम की उत्पिŸा समुद्र में रहने वाले सूक्ष्मजीवों तथा छोटे-छोटे पौधों से होती है। इनकी मृत्यु होने पर ये बालू और मिट्टी से ढ़क जाते हैं। लाखों वर्ष तक ऊष्मा, दाब तथा बैक्टीरिया के प्रभाव के कारण ये अंततः हाइड्रोकार्बन में परिवर्तित हो जाते हैं। ये हाइड्रोकार्बन सछिद्र चट्टानों के जरिये ऊपर आने लगते हैं। इस क्रम में अगम्य चट्टानें इनका मार्ग अवरूद्ध कर देती हैं। इन चट्टानों के नीचे ये तेल के रूप में विद्यमान रहते हैं।

साबुन और अपमार्जक में अंतर

साबुन

    ये लंबी श्रृंखला वाले वसा अम्ल (कार्बोक्सिलिक अम्ल) के सोडियम लवण हैं।

    खारे जल में इनकी कार्य क्षमता घट जाती है, अर्थात खारे जल में ये आसानी से झाग नहीं बनाते हैं।

अपमार्जक-

    ये उच्च ऐल्कोहॉल के हाइड्रोजन सल्फेट व्युत्पन्न के साडियम लवण हैं।

    खारे जल में भी इनकी कार्य क्षमता कायम रहती है।

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धातु एवं अधातु | Metals and non-metals in Science

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 10 विज्ञान के पाठ 3 धातु एवं अधातु (Metals and non-metals in Science) के सभी टॉपिकों के बारे में अध्‍ययन करेंगे।

Metals and non-metals in Hindi

Chapter 3 धातु एवं अधातु

धातु वैसे तत्‍व जो विद्युतधनात्मक, आघातवर्धनीय, तन्य, उष्मा तथा विद्युत का सुचालक, चमकीला और कठोर होते हैं, उसे धातु कहते हैं। जैसे- सोडियम, मैग्नीशियम, जिंक, लेड, कॉपर, ताँबा, सोना, ऐलुमिनियम आदि।

अधातु वैसे तŸव जो विद्युतधनात्मक, आघातवर्धनीय, तन्य, उष्मा तथा विद्युत का सुचालक, चमकीला और कठोर नहीं होते हैं, उसे अधातु कहते हैं। जैसे- कार्बन, सल्फर, आयोडिन, क्लोरिन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन आदि।

धातुओं के भौतिक गुण

  1. धातुएँ विद्युत धनात्मक होती है।
  2. धातुएँ आघातवर्धनीय होती हैं।
  3. धातुएँ तन्य होती हैं।
  4. धातुओं के द्रवनांक एवं क्वथनांक उच्च होते हैं।
  5. धातुएँ विद्युत और ऊष्मा की सुचालक होती है।

6 धातुओं में एक विशेष प्रकार की चमक होती है।

  1. धातुएँ कठोर होती है।
  2. धातुआे को हथौड़े से पीटने पर एक विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है।
  3. धातुएँ कमरे के ताप पर सामान्यतः ठोस होती है।

धातुओं के रासायनिक गुण-1. सभी धातुएँ ऑक्सीजन के साथ संयोग करके ऑक्साइड बनाती है।

4Na + O2→2Na2 (सोडियम मोनोक्साइड)

2Mg + O2→2MgO (मैग्नीशियममोनोक्साइड)

  1. धातुएँ अम्लों के साथ अभिक्रिया करके प्रायःहाइड्रोजन गैस मुक्त करती है।

2Na + HCl→2NaCl + H2

अधातुओं के भौतिक गुण-1. अधातुएँ सामान्य ताप पर, ब्रोमीन को छोड़कर, ठोस एवं गैस के रूप में पाई जाती है।

  1. अधातुएँ प्रायः भंगुर होती है।
  2. अधातुओं में प्रायः कोई विशेष चमक नहीं होती है।
  3. अधातुएँ ऊष्मा और विद्युत की कुचालक होती है।
  4. अधातुएँ मुलायम होती है।
  5. हथौड़े से पीटने पर अधातुओं में कोई ध्वनि नहीं निकलती है।
  6. हाइड्रोजन को छोड़कर सभी धातुएँ विधुतऋणात्मक होती है।

अधातुओं के रासायनिक गुण 1.  अधातुएँ ऑक्सीजन के साथ संयोग करके अम्लीय ऑक्साइड बनाती है।

C + O2→CO2

S + O2→SO2

  1. अधातुएँ जल के साथ अभिक्रिया नहीं करती हैं।

भौतिक गुणों के आधार पर धातु और अधातु में अंतर

  1. धातुओं में एक विशेष प्रकार की चमक होती है जबकि अधातुओं में ऐसी कोई चमक नहीं होती है। अपवाद- आयोडिन और ग्रैफाइट में धातुई चमक होती है।
  2. धातुएँ प्रायः विद्युत धनात्मक होती है जबकि अधातुएँ प्रायः विद्युत ऋणात्मक होती है। सिर्फ हाइड्रोजन विद्युत धनात्मक होता है।
  3. धातुएँ प्रायः ऊष्मा एवं विद्युत की सुचालक होती है जबकि अधातुएँ प्रायः ऊष्मा एवं विद्युत की कुचालक होती है। सिर्फ हाइड्रोजन एवं ग्रैफाइट विद्युत की सुचालक होती है।
  4. साधारण ताप पर धातुएँ प्रायः ठोस होती है। सिर्फ मरकरी (पारा) ही ऐसी धातु है जो साधारण ताप पर द्रव होती है। जबकि अधातुएँ साधारण ताप पर ठोस या गैस होती है।सिर्फ ब्रोमीन साधारण ताप पर द्रव होती है।
  5. धातुएँ आघातवर्धनीय तथा तन्य होती है जबकि अधातुएँ आघातवर्धनीय तथा तन्य नहीं होती हैं। अपवाद- प्लास्टिक गंधक तन्य होता है।
  6. धातुओं के घनत्व उच्च होते हैं जबकि अधातुओं के घनत्व निम्न होते हैं।
  7. हथौड़े से पीटने पर धातुओं से एक विशेष प्रकार की ध्वनि निकलती है जबकि अधातुओं को हथौड़े से पीटने पर टूट कर चूर हो जाती हैं।

रासायनिक गुणों के आधार पर धातु और अधातु में अंतर

  1. धातुओं के परमाणु धनायन बनाते हैं, जैसे- K+ , Na+ , Ca2+ आदि। जबकि अधातुओं के परमाणु ऋणायन बनाते हैं। जैसे- Cl, Br, S2- आदि।
  2. धातुओं के ऑक्साइड भास्मिक होते हैं

CaO + H2O Ca (OH) 2

 जबकि अधातुओं के ऑक्साइड अम्लीय होते हैं। ये जल से अभिक्रिया करके अम्ल बनाते हैं।

CO2 + H2O H2CO3

रासायनिक बंधन वह रासायनिक बल जो किसी अणु में परमाणुओं को एकसाथ बाँधकर रखता है, रासायनिक बंधन कहलाता है।

रासायनिक बंधन के प्रकार

  1. वैद्युत संयोजक बंधन या आयनिक बंधन
  2. सहसंयोजक बंधन
  3. वैद्युत संयोजक बंधन या आयनिक बंधन दो परमाणुओं के बीच एक परमाणु से दूसरे परमाणु में एक या अधिक इलेक्ट्रॉनों के स्थानांतरण के फलस्वरूप बने रासायनिक बंधन को वैद्युत संयोजक बंधन या आयनिक बंधन कहते हैं। इसक ध्रुवीय बंधन भी कहते हैं।

जैसे- सोडियम क्लोराइड का बनना

Na+ + Cl→ Na+Cl

वैद्युत संयोजकता किसी तŸव के परमाणु के आयन में परिवर्तित होने के लिए त्यक्त या प्राप्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या उस तŸव की वैद्युत संयोजकता कहलाती है। जैसे- सोडियम क्लोराइड के बनने में सोडियम परमाणु एक इलेक्ट्रॉन का त्याग और क्लोरिन का परमाणु एक इलेक्ट्रॉन प्राप्त करता हैं। अतः सोडियम की वैद्युत संयोजकता +1 और क्लोरीन की वैद्युत संयोजकता -1 होती है। इसी प्रकार Mg,Caऔर O की संयोजकता +2 होती है।

  1. सहसंयोजक बंधन जब दो परमाणु आपस में इलेक्ट्रॉनों का साझा करके अपना अष्टक पूरा करते हैं तब उनके बीच बना हुआ रासायनिक बंधन सहसंयोजक बंधन कहलाता है।

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सहसंयोजक बंधन तीन प्रकार के होते हैं।

  1. एकल सहसंयोजक बंधन
  2. द्विक सहसंयोजक बंधन
  3. त्रिक सहसंयोजक बंधन

1.एकल सहसंयोजक बंधन जब दो परमाणुओं के बीच इलेक्ट्रॉनों के सिर्फ एक युग्म साझा होता है तब उनके बीच बने बंधन को एकल सहसंयोजक बंधन कहते हैं।

हाइड्रोजन अणु का बनना

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मेथेन अणु का बनना

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  1. द्विक सहसंयोजक बंधन जब संयोग करने वाले दोनों परमाणु दो-दो इलेक्ट्रॉनों का साझा करते हैं तब उनके बीच बने बंधन को द्विक सहसंयोजक बंधन कहते हैं।

कार्बन डाइऑक्साइड का बनना

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ऑक्सीजन का बनना

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त्रिक सहसंयोजक बंधन या त्रिबंधन जब संयोग करनेवाले दो परमाणु तीन-तीन इलेक्ट्रॉनों का साझा करते है तब उन परमाणुओं के बीच बने बंधन को त्रिक सहसंयोजक बंधन कहते हैं।

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खनिज पृथ्वी की परत में विद्यमान धातुयुक्त ठोस पदार्थ (तत्‍व या यौगिक) खनिज कहलाते हैं।

जैसे- प्रकृति में पाए जानेवाले सोडियम क्लोराइड(NaCl), कैल्सियम कार्बोनेट (CaCO3) आदि खनिज है।

अयस्क जिस खनिज में प्रचुर मात्रा में धातु विद्यमान हो तथा जिससे कम खर्च में ही एवं सरलता से धातु प्राप्त की जा सके, उसे अयस्क कहते हैं।

जैसे- बॉक्साइड (Al2O3 . 2H2O) और मिट्टी  (Al2O3 . 2SiO2 . 2H2O) दोनों ऐल्युमिनियम के खनिज हैं।

धातुकर्म अयस्कों से धातुओं के निष्कर्षण एवं उनके शोधन की प्रक्रिया धातुकर्म कहलाती है।

गैंग अयस्कों में उपस्थित अवांछनीय पदार्थ जैसे बालू, कंकड़ या मिट्टी के टुकड़े आदि को गैंग कहते हैं।

अयस्क का सान्द्रण अयस्क में विद्यमान अपद्रव्यों को दूर करना अयस्क का सांद्रण कहलाता है।

निस्तापन अयस्क को उच्च ताप पर वायु की अनुपस्थिति या अपर्याप्त आपूर्ति में उसके द्रवणांक से कम ताप पर धातु को ऑक्साइड में परिवर्तित करने की प्रक्रिया निस्तापन कहलाती है।

भर्जन सल्फाइड अयस्कों को वायु की पर्याप्त आपूर्ति की स्थिति में तीव्रता से गर्म करके धातु को ऑक्साइड में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को भर्जन कहते हैं।

गालक गालक वह पदार्थ है जिसे निस्तापित या भर्जित अयस्क एवं कोक के साथ मिश्रित कर मिश्रण को गर्म किया जाता है।

धातुमल द्रावक अयस्क में उपस्थित अद्रवणशील अपद्रव्यों के साथ संयोग करके उन्हें द्रवणशील पदार्थ में परिवर्तित कर देता है, जिसे धातुमल कहते हैं।

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प्रगलन धातु के ऑक्साइड को कोक के साथ गर्म करके उसे धातु में परिवर्तित करने की प्रक्रिया प्रगलन कहलाती है।

जस्ता या जिंक के प्रमुख अयस्क

  1. जिंक ब्लेंड (ZnS)
  2. कैलेमाइन (ZnCO3)
  3. जिंकाइट (ZnO)

पारा का प्रमुख अयस्क सिनेबार है।

ऐलुमिनियम के प्रमुख अयस्क हैं

  1. बॉक्साइट (Al2O3 . 2H2O)
  2. कोरंडम (Al2O3)
  3. क्रायोलाइट (Na3AlF6)

संक्षारण धातु की सतह पर वायु के ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, जलवाष्प, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड आदि की अभिक्रिया के फलस्वरूप धातु का क्षय धातु का संक्षारण कहलाता है।

संक्षारण रोकने का उपाय

    धातु की सतह पर लेप चढ़ाकर धातु की बाहरी सतह पर ग्रीज या वार्निश की एक पतली परत चढ़ा कर उसके संक्षारण को रोका जा सकता है।

    रंगाई करके धातु की सतह को किसी अम्ल अवरोधक रंग से रंगाई कर देने से धातुओं के संक्षारण को रोका जा सकता है।

    जस्तीकरण करके धातु की किसी पिघले हुए जस्ता में डुबा देने से वस्तु की सतह पर जस्ता की एक परत बैठ जाती है। जिससे जंग लगने से बचाया जा सकता है।

    विद्युतलेपन द्वारा वैद्युत अपघटन प्रक्रिया द्वारा किसी धातु पर किसी अन्य धातु का लेप चढ़ा कर संक्षारण से बचाया जा सकता है।

मिश्रधातु दो या अधिक धातुओं अथवा एक धातु एवं एक अधातु का समांग मिश्रण मिश्रधातु कहलाता है।

जैसे- पीतल, ताँबा एवं जस्ता का मिश्रधातु है।

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मिश्रधातु के गुण

    ये अपने अवयवों से अधिक कठोर होते हैं।

    ये संक्षारण-अवरोधक होते हैं।

    इनके द्रवनांक एवं इनकी विद्युत चालकता उनके अवयवों की अपेक्षा कम होते हैं। जैसे पीतल विद्युत का अच्छा चालक नहीं है, जबकि इसका अवयव ताँबा विद्युत का अच्छा चालक है।

    इनकी गुणवŸा इनके अवयवों की तुलना में बढ़ जाती है।

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अम्ल, क्षारक एवं लवण | Acid Base and salt in Science

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 10 विज्ञान के पाठ 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण (Acid Base and salt) के सभी टॉपिकों के बारे में अध्‍ययन करेंगे।

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Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण

अम्ल अम्ल वह पदार्थ है जिसका जलीय विलयन स्वाद में खट्टा होता है तथा धातु से अभिक्रिया कर हाइड्रोजन गैस मुक्त करता है।

भस्म भस्म वह पदार्थ है जिसका जलीय विलयन स्वाद में कड़वा होता है तथा अम्ल को उदासीन कर लवण बनाता है।

आर्हेनियस द्वारा अम्ल की परिभाषा अम्ल वह पदार्थ है जो जल में घुलकर हाइड्रोजन आयन देता है।

आर्हेनियस द्वारा भस्म की परिभाषा भस्म वह पदार्थ है जो जल में घुलकर हाइड्रॉक्साइड आयन देता है।

क्षार जल में विलेय भस्म को क्षार कहते हैं।

अम्ल के गुण

  1. अम्ल स्वाद में खट्टा होता है।
  2. प्रबल अम्ल विद्युत के सुचालक होते हैं।
  3. अम्ल धातु से क्रिया करके हाइड्रोजन गैस मुक्त करते हैं।
  4. भस्म क्षार से क्रिया करके लवण और जल बनाता है।
  5. अम्ल नीले लिटमस पत्र को लाल कर देता है।

भस्म के गुण

  1. क्षार स्वाद में तीखा या कड़वा होता है।
  2. क्षार छूने में साबुन जैसा चिकना होता है।
  3. प्रबल क्षार विद्युत का सुचालक होता है।
  4. अम्ल से प्रतिक्रिया करके लवण तथा जल देता है।
  5. क्षार लाल लिटमस को नीला को पीला कर देता है।

pH मानpH मान एक संख्या होती है जो पदार्थों की अम्लीयता और क्षारीयता को प्रदर्शित करती है। यह किसी विलयन के हाइड्रोजन आयनों की सान्द्रता के लघुगणक का ऋणात्मक मान है।

अम्लीय विलयन का pH मान 7 से कम, क्षारीय विलयन का pH मान 7 से अधिक और उदासीन विलयन का pH मान 7 के बराबर होता है।

दैनिक जीवन में चभ् का महत्व

  1. पेट की अम्लीयता (एसिडिटी) व गैस की समस्या को दूर करने के लिए क्षारीय प्रकृति वाले मिल्क ऑफ मैग्नीशिया का प्रयोग किया जाता है।
  2. अम्लीय वर्षा में जल का pH मान 5.6 से कम होता है। इस जल के फलस्वरुप नदियों का pH मान भी कम हो जाता है जो कि जलीय जीवों पर हानिकारक प्रभाव डालता है।
  3. दांत का इनामेल कैल्शियम सल्फेट का बना होता है। दांतों की सफाई नहीं करने पर बैक्टीरिया के सड़ने से अम्लों की उत्पत्ति होती है जिनसे मुंह की लार का पीएच 5.5 से कम चला जाता है और इनामेल को नुकसान पहुंचाता है। इसके उपाय हेतु टूथपेस्ट में क्षारीय पदार्थ प्रयुक्त किए जाते हैं।
  4. मधुमक्खी के डंक में मेथेनॉइक अम्ल होता है। इसके डंक से होने वाली जलन को शांत करने के लिए क्षारीय प्रकृति के बेकिंग सोडा का प्रयोग किया जाता है।
  5. उपजाऊ मिट्टी का पीएच मान भी एक निश्चित परास में होता है।
  6. अम्ल एवं क्षारक की अभिक्रिया वेफ परिणामस्वरूप लवण तथा जल प्राप्त होते हैं तथा इसे उदासीनीकरण अभिक्रिया कहते हैं। सामान्यतः उदासीनीकरण अभिक्रिया को इस प्रकार लिख सकते हैं।

Acid Base and salt in Hindi

क्षारक + अम्ल →लवण+जल

लवण अम्लों तथा भस्मों की अभिक्रिया से लवण तथा जल बनते हैं।

HCl+NaOH→NaCl+H2O

सोडियम हाइड्रॉक्साइड के उपयोग- 1. साबुन तथा अपमार्जक बनाने में

  1. कागज बनाने में
  2. प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में

हाइड्रोजन गैस का उपयोग

  1. वनस्पति तेल का हाइड्रोजनीकरण कर उन्हें वनस्पती घी में परिणत करने में
  2. हैबर विधि द्वारा अमोनिया बनाने में

क्लोरीन गैस का उपयोग

  1. कपड़ों एवं कागज को विरंजित करने में
  2. कीटाणुनाशक होने के कारण पेयजल को शुद्ध करने में
  3. विरंजक चूर्ण बनाने में

सोडियम बाइकार्बोनेट या सोडियम होइड्रोजनकार्बोनेट (खाने का सोडा, NaHCO3)

सोडियम बाइकार्बोनेट को अमोनिया-सोडा विधि या साल्वे विधि द्वारा तैयार किया जाता है।

सोडा विधि या साल्वे विधि

सिद्धांत अमोनिया गैस से संतृप्त सोडियम क्लोराइड के संतृप्त जलीय विलयन में कार्बन डाइऑक्साइड गैस प्रवाहित करने के फलस्वरूप सोडियम बाइकार्बोनेट प्राप्त होता है।

NaCl + H2O + CO2 + NH3→NH4 Cl + NaHCO3

गुण-1. सोडियम बाइकार्बोनेट का जलीय विलयन क्षारीय होता है तथा इस विलयन का pH मान 7 से अधिक होता है।

  1. NaHCO3 अम्लों को उदासीन करता है तथा अभिक्रिया के फलस्वरूप CO2 गैस निकलती है।

NaHCO3 + HCl→NaCl + CO2↑+ H2O

सोडियम बाइकार्बोनेट का उपयोग

  1. इसका उपयोग बेकिंग पाउडर बनाने में किया जाता है।
  2. पेट की अम्लीयता कम करने के लिए औषधि (ऐंटासिड) के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  3. इसका उपयोग अग्निशामक यंत्रों में भी किया जाता है।
  4. रसोईघर में, खाने के सोडा का उपयोग खस्ता व्यंजन बनाने के लिए किया जाता है। कभी-कभी इसका इस्तेमाल खाना जल्द पकाने के लिए भी किया जाता है।

Acid Base and salt in Hindi

सोडियम कार्बोनेट या धोने का सोडा(Na2CO3 . 10H2O)

    सोडियम कार्बोनेट या धोने का सोडा प्रायः अमोनिया-सोडा विधिया साल्वे विधि से तैयार किया जाता है।

अमोनिया सोडा विधि या साल्वे विधि

सिद्धांत- अमोनिया गैस से संतृप्त सोडियम क्लोराइड के संतृप्त जलीय विलयन में कार्बन डाइऑक्साइड गैस प्रवाहित करने पर सोडियम बाइकार्बोनेट प्राप्त होता है।

NaCl + H2O + CO2 + NH3 NH4Cl + NaHCO3

सोडियम बाइकार्बोनेट को गर्म करके सोडियम कार्बोनेट प्राप्त किया जाता है।

2NaHCO3→Na2CO3 + CO2 + H2O

सोडियम कार्बोनेट के रवाकरण से धोने का सोडा (Na2CO3 . 10H2O) प्राप्त होता है।

गुण- 1. Na2CO3 का जलीय विलयन क्षारीय होता है।

Na2COअम्लों को उदासीन बनाता है।

सोडियम कार्बोनेट के विलयन में CO2 गैस प्रवाहित करने पर सोडियम बाइकार्बोनेट बनता है।

Na2CO+ CO2  + H2O 2NaHCO3

धोने के सोडा का उपयोग

  1. कपड़ा आदि धोने में इसका उपयोग होता है।
  2. यह प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में व्यवहार किया जाता है।
  3. काँच, कागज, साबुन आदि के उत्पादन में इसका उपयोग किया जाता है।
  4. जल का स्थायी खारापन दूर करने में 〖छं〗ऋ2〖ब्व्〗ऋ3 का उपयोग होता है।

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विरंजक चूर्ण [Ca(OCl)Cl]

शुष्क बुझे हुए चूने  [Ca(OH)2] , को 40℃तकतप्तकरउसकेऊपरक्लोरिन गैस प्रवाहित करने पर विरंजक चूर्ण प्राप्त होता है।

Ca(OH)2 + Cl2Ca(OCl)Cl + H2O

गुण यह सफेद चूर्ण है जिससे क्लोरिन की गंध निकलती है।

उपयोग-1. कीटाणुनाशक के रूप में

  1. कागज एवं कपड़ों के विरंजन में
  2. क्लोरिन, क्लोरोफॉर्म आदि बनाने में

प्लास्टर ऑफ पेरिस (CaSo4)2 . H2O या कैल्सियम सल्फेट हेमिहाइड्रेट CaSo4 . 1/2 H2O

 जिप्सम (CaSo4 . 2H2O)को तीव्रता से गर्म करने पर यह पूर्ण रूप से निर्जलीय होकर कैल्सियम सल्फेट बनाता है।

CaSo4 . 2H2O CaSo4+ 2H2O

जिप्सम को 120℃तकसावधानीपूर्वकगर्मकरनेकेफलस्वरूपप्लास्टरऑफपेरिसबनताहै।

2(CaSo4 . 2H2O)(CaSo4)2 . H2O + 3H2O

उपयोग-1. प्लास्टर ऑफ पेरिस का उपयोग मूर्ति बनाने में किया जाता है।

  1. इसका उपयोग शल्य चिकित्सा में टूटी हुई हड्डियों को बैठाने और जोड़ने में पट्टियों के रूप में किया जाता है।

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रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण | Chemical Reaction and Equation in Science

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 10 विज्ञान के पाठ 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण(Chemical Reaction and Equation) के सभी टॉपिकों के बारे में अध्‍ययन करेंगे।

Chemical Reaction and Equation in Hindi

Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण

हमारे दैनिक जीवन में प्रत्येक क्षण कुछ-न-कुछ परिवर्तन होते रहते हैं। उदाहरण के लिए, दूध से दही बनना या दूध का फटना, चावल से भात का बनना, हमारे शरीर में भोजन का पचना आदि।

रासायनिक अभिक्रिया जब कोई पदार्थ अकेले ही या किसी अन्य पदार्थ से क्रिया करके भिन्न गुण वाले एक या अधिक नए पदार्थों का निर्माण करता है, तब वह प्रक्रिया रासायनिक अभिक्रिया कहलाती है।

अभिकारक जो पदार्थ रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेकर नए पदार्थ बनाते हैं उन्हें अभिकारक कहते हैं।

प्रतिफल रासायनिक अभिक्रिया के फलस्वरूप बने नए पदार्थ को प्रतिफल कहते हैं।

H2+Cl2=2HCl

रासायनि समीकरण किसी रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेनेवाले पदार्थों के संकेतों एवं सूत्रों की सहायता से उस अभिक्रिया का संक्षिप्त निरूपण रासायनिक समीकरण कहलाता है। जैसे- हाइड्रोजन और क्लोरिन के मिश्रण को सूर्य के प्रकाश में रखने पर हाइड्रोजन क्लोराइड बनता है। इस अभिक्रिया को रासायनिक समीकरण के द्वारा निम्नांकित प्रकार से निरूपित किया जाता है।

H2 + Cl2→2HCl

संतुलित रासायनिक समीकरण संतुलित रासायनिक समीकरण वह है जिसमें समीकरण के दोनों ओर प्रत्येक तŸव के परमाणुओं की संख्या समान होती है।

H2+Cl2→2HCl

उपर्युक्त समीकरण के दोनों ओर हाइड्रोजन और क्लोरिन के परमाणुओं की संख्याएँ समान हैं, अतः यह समीकरण संतुलित है।

असंतुलित रासायनिक समीकरण असंतुलित रासायनिक समीकरण वह है जिसमें समीकरण के दोनों ओर तŸवों के परमाणुओं की संख्याएँ समान नहीं होती हैं।

H2+ O2→H2O

संयोजन या संश्लेषण अभिक्रिया संयोजन या संश्लेषण अभिक्रिया वह है जिसमें दो या अधिक पदार्थ (तŸव या यौगिक) परस्पर संयोग करके एक नए पदार्थ का निर्माण करते है। नए पदार्थ के गुण मूल पदार्थ के गुण से बिल्कुल भिन्न होते हैं।

C + O2→CO2

2Mg + O2→2MgO

वियोजन या अपघटन अभिक्रिया वियोजन या अपघटन अभिक्रिया वह अभिक्रिया है, जिसमें किसी यौगिक के बड़े अणु के टुटने से दो या अधिक सरल यौगिक बनते हैं जिनके गुण मूल यौगिक के गुण से बिलकुल भिन्न होते हैं

CaCO3 → CaO + CO2

विस्थापन अभिक्रिया वह अभिक्रिया जिसमें किसी यौगिक में उपस्थित किसी परमाणु या परमाणुओं के समुह को किसी दूसरे परमाणु द्वारा विस्थापित किया जाता है, विस्थापन अभिक्रिया कहलाती है।

Fe(s) + CuSO4(aq)→FeSO4(aq) + Cu(s)

द्विविस्थापन अभिक्रियाएँ वे अभिक्रियाएँ जिनमें अभिकारकों के बीच आयनों का आदान-प्रदान होता है उन्हें द्विविस्थापन अभिक्रियाएँ कहते है।

Na2SO4(aq) + BaCl2(aq)→BaSO4(s) + 2NaCl(aq)

अभिक्रिया के समय जब किसी पदार्थ में ऑक्सीजन की वृद्धि होती है तो कहते हैं कि उसका उपचयन हुआ है। तथा जब अभिक्रिया में किसी पदार्थ में ऑक्सीजन का ह्रास होता है तो कहते हैं कि उसका अपचयन हुआ है।

MnO2 + 4HCl→MnCl2 + 2H2O + Cl

जब कोई धातु अपने आसपास अम्ल, आर्द्रता आदि के संपर्क में आती है तब ये संक्षारित होती हैं और इस प्रक्रिया को संक्षारण कहते हैं।

Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण

अम्ल अम्ल वह पदार्थ है जिसका जलीय विलयन स्वाद में खट्टा होता है तथा धातु से अभिक्रिया कर हाइड्रोजन गैस मुक्त करता है।

भस्म भस्म वह पदार्थ है जिसका जलीय विलयन स्वाद में कड़वा होता है तथा अम्ल को उदासीन कर लवण बनाता है।

आर्हेनियस द्वारा अम्ल की परिभाषा अम्ल वह पदार्थ है जो जल में घुलकर हाइड्रोजन आयन देता है।

आर्हेनियस द्वारा भस्म की परिभाषा भस्म वह पदार्थ है जो जल में घुलकर हाइड्रॉक्साइड आयन देता है।

क्षार जल में विलेय भस्म को क्षार कहते हैं।

Chemical Reaction and Equation in Science

अम्ल के गुण

  1. अम्ल स्वाद में खट्टा होता है।
  2. प्रबल अम्ल विद्युत के सुचालक होते हैं।
  3. अम्ल धातु से क्रिया करके हाइड्रोजन गैस मुक्त करते हैं।
  4. भस्म क्षार से क्रिया करके लवण और जल बनाता है।
  5. अम्ल नीले लिटमस पत्र को लाल कर देता है।

भस्म के गुण

  1. क्षार स्वाद में तीखा या कड़वा होता है।
  2. क्षार छूने में साबुन जैसा चिकना होता है।
  3. प्रबल क्षार विद्युत का सुचालक होता है।
  4. अम्ल से प्रतिक्रिया करके लवण तथा जल देता है।
  5. क्षार लाल लिटमस को नीला को पीला कर देता है।

pH मानpH मान एक संख्या होती है जो पदार्थों की अम्लीयता और क्षारीयता को प्रदर्शित करती है। यह किसी विलयन के हाइड्रोजन आयनों की सान्द्रता के लघुगणक का ऋणात्मक मान है।

अम्लीय विलयन का pH मान 7 से कम, क्षारीय विलयन का pH मान 7 से अधिक और उदासीन विलयन का pH मान 7 के बराबर होता है।

Chemical Reaction and Equation in Science

दैनिक जीवन में चभ् का महत्व

  1. पेट की अम्लीयता (एसिडिटी) व गैस की समस्या को दूर करने के लिए क्षारीय प्रकृति वाले मिल्क ऑफ मैग्नीशिया का प्रयोग किया जाता है।
  2. अम्लीय वर्षा में जल का pH मान 5.6 से कम होता है। इस जल के फलस्वरुप नदियों का pH मान भी कम हो जाता है जो कि जलीय जीवों पर हानिकारक प्रभाव डालता है।
  3. दांत का इनामेल कैल्शियम सल्फेट का बना होता है। दांतों की सफाई नहीं करने पर बैक्टीरिया के सड़ने से अम्लों की उत्पत्ति होती है जिनसे मुंह की लार का पीएच 5.5 से कम चला जाता है और इनामेल को नुकसान पहुंचाता है। इसके उपाय हेतु टूथपेस्ट में क्षारीय पदार्थ प्रयुक्त किए जाते हैं।
  4. मधुमक्खी के डंक में मेथेनॉइक अम्ल होता है। इसके डंक से होने वाली जलन को शांत करने के लिए क्षारीय प्रकृति के बेकिंग सोडा का प्रयोग किया जाता है।
  5. उपजाऊ मिट्टी का पीएच मान भी एक निश्चित परास में होता है।
  6. अम्ल एवं क्षारक की अभिक्रिया वेफ परिणामस्वरूप लवण तथा जल प्राप्त होते हैं तथा इसे उदासीनीकरण अभिक्रिया कहते हैं। सामान्यतः उदासीनीकरण अभिक्रिया को इस प्रकार लिख सकते हैं।

क्षारक + अम्ल →लवण+जल

लवण अम्लों तथा भस्मों की अभिक्रिया से लवण तथा जल बनते हैं।

HCl+NaOH→NaCl+H2O

सोडियम हाइड्रॉक्साइड के उपयोग- 1. साबुन तथा अपमार्जक बनाने में

  1. कागज बनाने में
  2. प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में

हाइड्रोजन गैस का उपयोग

  1. वनस्पति तेल का हाइड्रोजनीकरण कर उन्हें वनस्पती घी में परिणत करने में
  2. हैबर विधि द्वारा अमोनिया बनाने में

क्लोरीन गैस का उपयोग

  1. कपड़ों एवं कागज को विरंजित करने में
  2. कीटाणुनाशक होने के कारण पेयजल को शुद्ध करने में
  3. विरंजक चूर्ण बनाने में

सोडियम बाइकार्बोनेट या सोडियम होइड्रोजनकार्बोनेट (खाने का सोडा, NaHCO3)

सोडियम बाइकार्बोनेट को अमोनिया-सोडा विधि या साल्वे विधि द्वारा तैयार किया जाता है।

Chemical Reaction and Equation in Science

सोडा विधि या साल्वे विधि

सिद्धांत अमोनिया गैस से संतृप्त सोडियम क्लोराइड के संतृप्त जलीय विलयन में कार्बन डाइऑक्साइड गैस प्रवाहित करने के फलस्वरूप सोडियम बाइकार्बोनेट प्राप्त होता है।

NaCl + H2O + CO2 + NH3→NH4 Cl + NaHCO3

गुण-1. सोडियम बाइकार्बोनेट का जलीय विलयन क्षारीय होता है तथा इस विलयन का pH मान 7 से अधिक होता है।

  1. NaHCO3 अम्लों को उदासीन करता है तथा अभिक्रिया के फलस्वरूप CO2 गैस निकलती है।

NaHCO3 + HCl→NaCl + CO2↑+ H2O

सोडियम बाइकार्बोनेट का उपयोग

  1. इसका उपयोग बेकिंग पाउडर बनाने में किया जाता है।
  2. पेट की अम्लीयता कम करने के लिए औषधि (ऐंटासिड) के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  3. इसका उपयोग अग्निशामक यंत्रों में भी किया जाता है।
  4. रसोईघर में, खाने के सोडा का उपयोग खस्ता व्यंजन बनाने के लिए किया जाता है। कभी-कभी इसका इस्तेमाल खाना जल्द पकाने के लिए भी किया जाता है।

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सोडियम कार्बोनेट या धोने का सोडा(Na2CO3 . 10H2O)

सोडियम कार्बोनेट या धोने का सोडा प्रायः अमोनिया-सोडा विधिया साल्वे विधि से तैयार किया जाता है।

Chemical Reaction and Equation in Science

अमोनिया सोडा विधि या साल्वे विधि

सिद्धांत- अमोनिया गैस से संतृप्त सोडियम क्लोराइड के संतृप्त जलीय विलयन में कार्बन डाइऑक्साइड गैस प्रवाहित करने पर सोडियम बाइकार्बोनेट प्राप्त होता है।

NaCl + H2O + CO2 + NH3 NH4Cl + NaHCO3

सोडियम बाइकार्बोनेट को गर्म करके सोडियम कार्बोनेट प्राप्त किया जाता है।

2NaHCO3→Na2CO3 + CO2 + H2O

सोडियम कार्बोनेट के रवाकरण से धोने का सोडा (Na2CO3 . 10H2O) प्राप्त होता है।

गुण- 1. Na2CO3 का जलीय विलयन क्षारीय होता है।

Na2COअम्लों को उदासीन बनाता है।

सोडियम कार्बोनेट के विलयन में CO2 गैस प्रवाहित करने पर सोडियम बाइकार्बोनेट बनता है।

Na2CO+ CO2  + H2O 2NaHCO3

धोने के सोडा का उपयोग

  1. कपड़ा आदि धोने में इसका उपयोग होता है।
  2. यह प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में व्यवहार किया जाता है।
  3. काँच, कागज, साबुन आदि के उत्पादन में इसका उपयोग किया जाता है।
  4. जल का स्थायी खारापन दूर करने में 〖छं〗ऋ2〖ब्व्〗ऋ3 का उपयोग होता है।

विरंजक चूर्ण [Ca(OCl)Cl]

शुष्क बुझे हुए चूने  [Ca(OH)2] , को 40℃तकतप्तकरउसकेऊपरक्लोरिन गैस प्रवाहित करने पर विरंजक चूर्ण प्राप्त होता है।

Ca(OH)2 + Cl2Ca(OCl)Cl + H2O

गुण यह सफेद चूर्ण है जिससे क्लोरिन की गंध निकलती है।

उपयोग-1. कीटाणुनाशक के रूप में

  1. कागज एवं कपड़ों के विरंजन में
  2. क्लोरिन, क्लोरोफॉर्म आदि बनाने में

प्लास्टर ऑफ पेरिस (CaSo4)2 . H2O या कैल्सियम सल्फेट हेमिहाइड्रेट CaSo4 . 1/2 H2O

जिप्सम (CaSo4 . 2H2O)को तीव्रता से गर्म करने पर यह पूर्ण रूप से निर्जलीय होकर कैल्सियम सल्फेट बनाता है।

CaSo4 . 2H2O CaSo4+ 2H2O

जिप्सम को 120℃ तक सावधानीपूर्वक गर्म करने के फलस्वरूप प्लास्टरऑफ पेरिस बनताहै।

2(CaSo4 . 2H2O)(CaSo4)2 . H2O + 3H2O

उपयोग-1. प्लास्टर ऑफ पेरिस का उपयोग मूर्ति बनाने में किया जाता है।

  1. इसका उपयोग शल्य चिकित्सा में टूटी हुई हड्डियों को बैठाने और जोड़ने में पट्टियों के रूप में किया जाता है।

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