इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के अहिन्दी (Non Hindi) के पाठ 21 (Chikitsa Ka Chakkar) “चिकित्सा का चक्कर” के व्याख्या को जानेंगे। इस पाठ के लेखक बेढब बनारसी है, जिसमें लेखक ने चिकित्सा पध्दति पर व्यंग किया है।
पाठ परिचय- बेढब बनारसी ने प्रस्तुत व्यंग्य के माध्यम से चिकित्सा पद्धतियों के विरोधाभाषों को सफलतापूर्वक उभारा है। चिकित्सकों की वेशभूषा, नुस्खे, औषधि निर्णय के तर्क जैसे अनेक प्रसंगों पर कटाक्षकरते हुए व्यंग्यकार ने विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के मर्म का वर्णन किया है। पाठ के अध्ययन के बाद आप हिन्दी साहित्य की बानगी को समझ पाएँगे।
पाठ का सारांश (Chikitsa Ka Chakkar)
प्रस्तुत व्यंग्य ‘चिकित्सा का चक्कर‘ बेढब बनारसी के द्वारा रचना किया गया है। इस पाठ के माध्यम से चिकित्सा पद्धतियों के विरोधाभाषों को सफलतापूर्वक उभारा है।
लेखक कहते हैं कि वह 35 वर्ष के हो गए हैं, लेकिन वह कभी बीमार नहीं पड़े थे। उन्हें बीमार होने की बड़ी इच्छा होती थी। वह कहते थे कि बीमार पड़ने पर सब कोई अच्छा से देखभाल करता है और हाल-चाल पूछता है।
एक दिन वह हॉकी खेलकर घर आए। भूख नहीं लगी थी, लेकिन श्रीमती के पूछने पर थोड़ा खा लिए। खाने के बाद उनको पता चला कि ‘प्रसाद‘ जी के यहाँ से रसगुल्ला आया है। उसमें से छः रसगुल्ले खा कर चरपाई पर सो गए।
अचानक तीन बजे रात को उनके पेट में दर्द शुरू हो गई। वह सुबह होते-होते एक शीशी दवा पीकर समाप्त कर दी, पर दर्द थोड़ा भी आराम नहीं हुआ।
प्रातःकाल डॉक्टर के यहाँ आदमी भेजना पड़ा। सरकारी डॉक्टर आये। उन्होने जीभ दिखाने को कहा। बनारसी कहते हैं कि प्रेमियों को जो मजा प्रेमिकाओं की आँख देखने में आता है वैसा ही डॉक्टर को मरीजों का जीभ देखने में आता है।
डॉक्टर ने कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है। दवा पीजिए, दो खुराक पीते-पीते आपका दर्द गायब हो जाएगा। तथा बोतल में पानी गर्म करके सेंकने को कहा।
सेंकते-सेंकते छाले पड़ गए, पर दर्द में कमी न हुई। शाम तक दर्द वैसी हीं रहा। लोग देखने के लिए आने लगे। लेखक के घर मेला लगने लगा।
तीन दिन बीत गए,दर्द में कमी न हुई। लोगों की सलाह से डॉक्टर चूहानाथ को बुलाया गया। उनकी फीस आठ रूपये थी और मोटर का एक रुपया अलग।
चूहानाथ ने दवा मँगाया, पानी गरम कराया तथा सुई दिया और लेखक को सांत्वाना देकर चले गए। बनारसी जी के पेट का दर्द बिल्कुल आराम हो गया। लेकिन दो सप्ताह लगे पूरा स्वस्थ्य होने में।
लेखक को एक दिन फिर अचानक सिर में दर्द हुई। डॉक्टर को फिर बुलाने के लिए भेजा गया, पर वह अनुपस्थित था।
अंत में मकान के बगल में रहने वाले वैद्यजी को बुलाया गया। वैद्यजी धोती पहने हुए थे और कंधे पर एक सफेद दुपट्टा डाले हुए थे। वह कुर्सी पर लेखक के सामने बैठ गए।
वैद्य जी ने औषधि दिया। दो दिन दवा की गई। कभी-कभी दर्द कुछ कम हो जाता था, पर पूरा दर्द न गया।
वैद्यजी से नहीं ठीक हुआ, तो हकीम साहब को बुलाया गया। हकीम ने नब्ज़ देखकर दवा दी। दर्द थोड़ा-बहुत आराम रहा, पर फिर ज्यां का त्यों हो गया।
लेखक के रिश्तेदार भी देखने के लिए आने लगे। उनकी नानी ने कहा कि कोई चुड़ैल तुम्हारे पिछे पड़ी है। किसी ओझा से दिखाओ।
एक डॉक्टर ने कहा कि पायरिया हो गया है जिससे दाँत का जहर पेट में जा रहा है। उसने दाँत उखड़वाने का सलाह दिया।
लेखक ने श्रीमति से पैसा माँगा तो श्रीमति ने कहा कि यह सब फ़िजूल है। खाना अच्छा से खाओ, ठीक हो जाओगे।
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