इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 9 के अंग्रेजी Part-1 के पाठ 3 ‘सन्त कबीर (Saint Kabir class 9 in Hind) के अर्थ को पढ़ेंगे।
3. SAINT KABIR
(सन्त कबीर)
“I and you are ofone blood and one life animates us both From one mother is the world bom What knowledge is this which makes us separate? All have come from the same country And have landed at one ghat; But the evil influence of this world
Has divided us into innumerable sects.”
The poem given above is the English translation of the poetic outpouring of Saint Kabir by a scholar. Kabir was against caste system and division of mankind on the basis of caste and sect. He is one of the great luminaries who occupy a very distinct position as a ruthless critic of the weaknesses and failings of religions during his period. His songs castigated casteism, ritualism and orthodoxy. He had to wage a relentless war against obscurantism, orthodox Brahminism and Islam. He lived during the period from 1448 A.D. to 1518 A.D. It is said that he was born of a Hindu mother and later on brought up by a Muslim weaver Niru and his wife Nima. They lived in Banaras now called Varanasi, which was a citadel of Hindu orthodoxy and culture. Kabir and his family lived in abject poverty and hostile environment. During this time Buddhism was waning and the Brahminism was on the ascendancy. Islam was having the royal patronage of Muslim rulers who were hostile to Hinduism. Both the orthodox Hindu priests and Maulavis hated Kabir and they complained against him to Emperor Sikander Lodi who banished him from Banaras itself later in his life.
वाक्यार्थ- “मेरे और तुम्हारे शरीर में एक ही प्रकार के रक्त हैं तथा दोनों चेतन ” हैं तथा हम सभी एक ही माँ की संतान हैं। तब वह कौन-सा ज्ञान है जो हमें एक-दूसरे
से अलग करता है। सभी एक ही देश के हैं। सभी एक ही घाट पर वास करते हैं लेकिन – संसार के दुष्ट प्रभाव ने हमें विभिन्न पंथ या सम्प्रदाय में बाँट दिया है।”
ऊपर लिखित पंक्ति कबीर की है जिसे किसी विद्वान छात्र द्वारा कविता को अंग्रेजी में उद्धृत किया गया है। कबीर जाति प्रथा के विरोधी थे तथा उनके द्वारा मानव का विभाजन जाति तथा पंथ के आधार पर उन्हें अमान्य था। वह एक महान ज्योतिर्मय पिंड के समान थे, जो अपने काल में अनेक आलोचनाओं के शिकार हुए। उनके गीत जातिवाद, धार्मिक पद्धति तथा सनातन पंथी को फटकारते थे। उन्होंने सनातनी ब्राह्मण तथा इसलाम के विरुद्ध लड़ने का साहस किया। उनका जीवनकाल 1448 ई. से 1518 ई. था। ऐसी मान्यता है कि उनकी माता हिन्दू थी लेकिन बाद में एक मुस्लिम जुलाहा नीरू तथा उसकी पत्नी नीमा द्वारा पाले गये । वे बनारस में रहते थे जिसे अब वाराणसी कहते हैं, जो हिन्दू सनातनियों की संस्कृति का दुर्ग कहलाता है। कबीर और उनका परिवार अत्यन्त गरीबी तथा विपरीत परिस्थिति में रहता था। यह काल बुद्ध धर्म के अन्त का काल था तथा ब्राह्मणों का प्रभुत्व पुनः स्थापित हो रहा था। इस्लाम धर्म के लोग मुस्लिम शासकों द्वारा शोषित हो रहे थे तथा हिन्दू धर्म पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था। वे दोनों हिन्दू.सनातनी पुजारी तथा मौलवी कबीर से घृणा करते थे तथा इसकी शिकायत उस समय के शासक सिकन्दर लोदी तक पहुँचा दी जिस कारण आगे के जीवन में उन्हें बनारस से निकलना पड़ा।
In his young age Kabir became a disciple of saint Ramananda, who was a Vaishnava ascetic propounding faith in a personal God. His message was that through personal devotion to one’s own God irrespective of one’s caste or creed or status in social life, one could attain bliss and salvation. Saint Ramananda had among his disciples Sena, the barber; Dhana, the Jat; Ravi Das, the cobbler; and Kabir, the Muslim weaver. Kabir was the foremost among his disciples. Ramananda tutored and moulded Kabir and made him a follower of his liberal, social outlook and concern for the low-caste people. In addition to this, Kabir had also the good fortune of coming into contact with Shaikh Taqgi, who was a Sufi saint. He had the knowledge and influence of both Hinduism and Islam which he utilised fully to face the challenges during his struggle against elitism and orthodoxy. With considerable fortitude and independence he attacked both Hinduism and Islam and pointed out their weaknesses. He rejected the authority of the traditional scriptures and the then prevailing superstitious beliefs and rituals of both the Hindus and the Muslims. He exposed their apparent contradictions in their conduct.
He was against idol worship. He was not in favour of the display of siddhis by yogis and condemned some of their practices. He rejected the varna and caste system with utmost contempt. He vehemently denounced untouchability and despised all those who were perpetuating these unjust and pernicious practices.
वाक्यार्थ-युवा काल में कबीर सन्त रामानन्द के शिष्य बने । सन्त रामानन्द वैष्णवयोगी थे जिनका ईश्वर पर विश्वास था। उनका संदेश था कि स्वयं निष्ठा एवं भक्ति पर बगैर किसी जाति, सम्प्रदाय तथा समाज से ईश्वर ऊपर है। सन्त रामानन्द के शिष्यों में सेना, हजाम, धना, जाट, रविदास तथा मोची और कबीर मुस्लिम जुलाहा थे। कबीर सबसे प्रिय शिष्य थे। रामानन्द ने कबीर को उदार तथा नीची जाति का हितैषी के रूप में ढाला। इसके अलावा कबीर शेख तकी के संपर्क में आये जो एक सूफी संत थे। उन्हें हिन्दुत्व तथा इस्लाम दोनों ही सम्प्रदाय का अच्छा ज्ञान था तथा इनके विरुद्ध लड़ने की वे क्षमता रखते थे। पूरे धैर्य और आजादी के साथ उन्होंने हिन्दुत्व एवं इस्लाम पर प्रहार किया तथा उनकी कमियों को उजागर किया। उन्होंने पारम्परिक धर्मग्रन्थ को नकारा तथा हिन्दुओं तथा इस्लाम में प्रचलित अंधविश्वास को उद्धृत किया। उन्होंने परस्पर विरोधी बातों को उजागर किया। वह मूर्तिपूजा के विरोधी थे। वह योगियों द्वारा सिद्धि का विरोध करते तथा उनके द्वारा किए गए कार्यों की आलोचना करते। उन्होंने वर्ण तथा जाति पद्धति का जमकर विरोध किया। उन्होंने स्पृश्यता का विरोध किया तथा उसको जो बढ़ावा देते थे, उनका भी इन्होंने विरोध किया।
While criticising the outward form and superstitions of both the Muslims and the Hindus, he was himself not in favour of creating a new system or propounding a new philosophy. He preached that institutional religions which thrive on sectarian and social differences had no use for him. He was bold and original. Kabir did not believe that only Pundits and Maulavis had the monopoly as guardians of religions and gods. He had no respect for booklore and pedantic platitudes. His approach to people was direct and simple. Kabir’s appeal was to the non-literate masses and not to the so-called intellectuals and the elite.
Through contacts with the people and personal experience Kabir was able to convey to them his message of love, compassion and brotherhood. He emphasised that before God there is no Hindu or Muslim. His fortitude and unwavering faith to rid the society of religious bigotry and superstitions was so intense that he announced thus.
वाक्यार्थ-हिन्दू तथा मुसलमानों में व्याप्त अन्धविश्वास की आलोचना के क्रम में कि वह संस्था जो समाज को पंथों तथा सामाजिक अलगाववाद में विभक्त करती है वह उनके लिए किसी महत्त्व की नहीं है। वह साहसी और सत्य थे। कबीर इस पर विश्वास नहीं करते थे कि केवल पंडित और मौलवी का ही धर्म पर एकाधिकार है। उनका विश्वास पारम्परिक ज्ञान तथा पाण्डित्य प्रदर्शन पर नहीं था। उनका लोगों से सीधा तथा सरल संबंध था। कबीर का अशिक्षित लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करते थे न कि उस युग के पढ़े-लिखे विद्वानों को । लोगों से मिलने के क्रम में कबीर प्रेम, भाईचारा तथा अनुकंपा का संदेश पहुँचाने में सफल थे। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि ईश्वर के निकट कोई हिन्दू या मुस्लिम नहीं है। उनकी मानसिक दृढ़ता इतनी प्रबल थी कि वह समाज में फैले अन्धविश्वास से समाज को छुटकारा दिलवाना चाहते थे । इस क्रम में उन्होंने कहा–
” Kabir is standing in a market place with a burning stick in his hand” This declaration by Kabir shows that he was a rebel. He was keen to wipe out the evils in society with a view to bringing about a new social order and authentic religion based on equality and brotherhood.
He preached tolerance. He said that one should give flowers in return to those who give pain and sorrow. It is said that after Kabir’s death both the Hindus and the Muslims claimed his body, the former wanting cremation and the latter burial. When the shroud was removed, there was nobody except bunches of flowers. These were shared by both the communities, each acting according to its desires. Thus in death as in life, Kabir symbolised brotherhood among the two major religious communities.
वाक्यार्थ- “कबीर चौराहे पर हाथ में जलती मशाल लेकर खड़ा है।
यह उद्घोषणा कबीर की विद्रोही प्रवृत्ति को दर्शाती है। वह समाज से बुराई का नाश करना चाहते थे तथा समाज में नये सामाजिक विश्वास तथा सच्चा धर्म समानता और भाई-चारा के आधार पर लाना चाहते थे । उसने सहनशीलता का प्रचार किया तथा उन्होंने दुख देनेवालों को पुष्पों का हार देने को कहा। ऐसा कहा जाता है कि कबीर के मृत्यु के बाद हिन्दु तथा मुस्लिम दोनों ही उनके मृतशरीर को लेना चाहते थे। लेकिन जब मृत शरीर पर से कफन हटाया गया तब मात्र पुष्पों का अम्बार मिला। यह दोनों समुदाय द्वारा बाँट लिया गया तथा उन्होंने इसे अपनी श्रद्धा के अनुसार इसका संस्कार किया। इस प्रकार मृत्यु के बाद भी कबीर ने दोनों महत्त्वपूर्ण धर्मों में भाई-चारे का संदेश दिया।
He was a great non-conformist in the tradition of Buddha and other saints in Indian civilization who registered their dissent and protest and sought to reform the Indian society. His teachings in brief are as follows:
- Total rejection of caste system, the practice of untouchability and all divisions based on caste, creed and religion,
- Denial of any special status or authority of the priests and mullas for religious functions or their being holy.
- Repudiation of the authority of the religious scriptures and blind beliefs.
- Mere booklore promoting pride and pedantry without any connection and communication with the common people serves no purpose.
- Disapproval of the discord and distinction between the Hindus and the Muslims.
- Nopreference for any religion.
- Condemnation of idolatory, mythology of divine incarnations, superstitious beliefs and ceremonies and all external ramifications in the name of religion and sectarianism.
Kabir earned his livelihood at the loom and continued to be a weaver all his life. But at the same time, he never departed from his path of virtue and reform.
वाक्यार्थ—वह बुद्ध तथा अन्य भारतीय सभ्यता के सन्त की परम्परा को नहीं मानते .थे तथा उनका मत भारतीय समाज को परिवर्तित करना था। उनके विचार इस प्रकार हैं : .
- जाति पद्धति का पूर्ण विरोध, जाति, धर्म तथा मजहब के नाम पर स्पृश्यता का विरोध ।
- किसी भी मुल्ला या पण्डित को एक विशेष स्थान नहीं देना ।
- धार्मिक मान्यताओं को नामंजूर करना ।
- केवल धार्मिक पुस्तकों का ज्ञान, जिसका आम लोगों से कोई संबंध नहीं, इसको महत्त्वहीन बताना ।
- हिन्दू तथा मुसलमान में विरोध को नकारना ।
- किसी धर्म को महत्त्व नहीं देना ।
- मूर्तिपूजन पर दोषारोपण, पौराणिक कथाएँ एवं दैविक शक्तियों पर अन्धविश्वास धर्म एवं सम्प्रदाय पर इसका विरोध करना ।
कबीर ने अपना जीवनयापन करघा चलाकर गुजारा तथा वे जीवन भर बनने का काम करते रहे। लेकिन साथ ही वे नैतिकता तथा बदलाव के रास्ते से विचलित नहीं हुए।
Kabir was a saint-poet for non-literate masses. And his songs are moving and sung by the common people even today in north India. He was a people’s poet. Through his positive approach emphasising unity of men, non-violence, love, compassion, tolerance, truth and belief in one God, he is still remembered and revered by vast masses of the people even after a lapse of about five centuries.
Although there is no evidence to show that Kabir formally organised any sector initiated any disciples, we have today what is called ‘Kabir Panth’. A Large number of sects trace their origin to the preachings of Kabir. Saint Guru Nanak, founder of the Sikh religion, was greatly influenced by Kabir. Adi Grantha, the sacred book of the Sikhs, contains a large number of verses of Kabir. Although there are other sects influenced by Kabir, the point to be remembered is that Kabir’s immortal message of equality, love, communal amity and brotherhood without distinctions on the basis of caste, creed and religion remains the beacon light for us. It should continue to inspire and guide us particularly in the present context when the country is passing through crisis resulting from communal violence, caste conflicts, atrocities on the scheduled caste and tribes and the weaker sections, and erosion of ethical and spiritual values in our society.
वाक्यार्थ- कबीर अशिक्षित लोगों के मध्य संत कवि थे। उनके गीत उत्तरी भारत में आमलोगों द्वारा आज भी गाये जाते हैं। वह जनता के कवि थे। पाँच सौ वर्ष बीत जाने के बाद भी उनके एकता, अहिंसा, प्रेम, अनुकंपा, सहनशीलता, सच्चाई तथा एक ईश्वर पर विश्वास लोगों के बीच याद किए जाते हैं।
जबकि, ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं मिलता है कि कबीर ने किसी पंथ या शिष्यों को इकट्ठा किया था लेकिन आजकल ‘कबीर पंथी’ लोग पाये जाते हैं। लोगों की एक अच्छी संख्या है जो कबीर के उपदेशों को लोगों तक पहुँचाते हैं। सिख धर्म के संस्थापक संत गुरुनानक कबीर से प्रभावित थे। गुरुग्रंथ साहब, जो सिखों की धार्मिक पुस्तक हैं, में कबीर के दोहे अंकित हैं। इसके अलावा और भी पंथ कबीर से प्रभावित थे। कबीर का समानता का उपदेश, प्रेम, साम्प्रदायिक सद्भावना तथा भाईचारा बिना किसी जाति, धर्म, पंथ के आधार पर आज भी हमारे लिए आकाशदीप के समान हैं। हमारे जीवन में सदा उनके विचार व्याप्त होने चाहिए, क्योंकि हमारे देश में साम्प्रदायिक हिंसा, जातिवाद, उपद्रव अनुसूचित जाति तथा दलित वर्गों के घृणा तथा नैतिक शिक्षा का अभाव है।
Read more- Click here
You Tube – Click here