इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 9 के अंग्रेजी Part-1 के पाठ 8 ‘भारतीपुरा (BHARATHIPURA Class 9 in Hind) के अर्थ को पढ़ेंगे।
8. BHARATHIPURA
(भारतीपुरा)
From the portico he stepped down to the courtyard and stood there. He suppressed a desire to look back. An uneasy feeling came to him of being watched from behind, by his aunt, the priest, the cook, and the cook’s children. He felt his aunt’s look whipping his back. He could have got rid of this suffering by looking her in the face, simply shattering her entreaty. He was frightened. To defy her thus would be a violence too much for him. The hand which gripped the casket was damp. Perhaps this saligram of Lord Narasimha had never crossed the threshold of the house before. It must have stunned his aunt’s whole being to see this happening now. With all the force of life in her cyes she must be drawing him back in her prayer. He did not know why he had come to a standstill. He looked up and saw before him the pariahs, dressed in white long clothes, standing like orphans at the far end of the courtyard. Their vacant eyes just looked on. They did not know of the impending blast. They did not want to know.
Slowly he began to move towards them. The red mass of the sun was sitting on the shoulder of a distant hill. The weak yellow light of retreating evening fell on the haystack. The last bus from Shimoga appeared on the curved road under the hill, raising dust. The cattle were returning to their sheds, bells jingling on their necks. At this time of the day Aunt should have been waiting for them near the shed. Kaveri crossed the courtyard, carrying a headload of firewood, her steps brisk under the weight, and her sari tucked up. These pariah folk, dressed in white shirts and clothes, must have looked funny to her. She tittered.
वाक्यार्थ—पोर्टिको से प्रांगण की ओर आकर खड़ा हुआ। उसने पाछे मुड़कर देखने की इच्छा को दबाया। एक असामान्य अहसास उसके मन में आया कि पीछे से उसकी चाची. पजारी. बावर्ची तथा बावर्ची के बच्चे उसे देख रहे हैं। उसे एहसास हआ कि यदि वह पीछे मुड़कर देखता है तो उसकी चाची उसे बुला लेगी। वह उन्हें देखकर उनके दर्द का अनुभव किया कि इसका मुकाबला करने के लिए उसमें हिम्मत होनी चाहिए। उसने जिस डब्बे को हाथ से पकड़ा भीग चुका था। क्योंकि भगवान नरसिम्हा का शालिग्राम ने कभी इस चौखट को पार नहीं किया था। यह सब देखकर उसकी चाची अब मुर्छित हो चुकी थी। उनके पास, उनकी आँखों में जो भी शक्ति थी वह उन्हें प्रार्थना के लिए प्रेरित कर रही थी ! वह यह निर्णय नहीं कर पा रहा था कि वह कैसे स्थिर खड़ा था। उसने देखा कि उसके सामने सादे वस्त्र में लिपटी, एक अनाथ, अछूत की तरह प्रांगण के दूसरे छोर पर खड़ी है। उसकी खाली आँखें उसे देख रही हैं। वह इस आसन्न मुद्रा को नहीं समझ सका। वह यह समझना नहीं चाहता था।
धीरे-धीरे वह उसके ओर बढ़ने लगा। सूर्य का लाल गोला पहाड़ी पर विराजमान मग रहा था। हल्की पीली रोशनी संध्याकाल में अस्त के क्रम में सूखी घास के ढेर पर पड् रही थी। अन्तिम बस शिमोगा से आनेवाली मुड़ी हुई सड़कों पर धूल उड़ाते नजर ..आया। पशु अपने गौशाला की ओर लौट रहे थे तथा उनके गर्दन की घंटी आवाज कर रही थी। इस बेला में गौशाला के पास चाची प्रतीक्षा में खड़ी थी। कावेरी प्रांगण की ओर सिर पर जलावन के साथ गुजरी। उसकी चाल तेज थी तथा उसकी साड़ी सिमटी हुई थी। वह दलित लोग, सादे वस्त्र धारण किए हुए निश्चित रूप से उसे अजीब लग रहे थे। उसने दबी हँसी से मुस्कुराया।
Jagannath thought what an absurd situation this was. For his part this saligram was just a pebble. Still, what an intense drama around it! He was turning the whole courtyard into a magnetic field with the pariahs in front of him and Aunt behind. How removed was his person that had concluded, by pure logical thinking, that there never was a God!
The absurdity of his action flashed in his mind. It was he who had made a saligram of this stone by taking it out to the pariahs to touch it. He stopped. With great effort he looked round. Aunt and the entire household were standing there. At one corner of the veranda he saw the servants. All were watching him. Aunt’s tongue must have dried up or she would have certainly called him back. She was standing there like a mother staring at the dead body of her son being taken away for cremation. None had ever dared to take this thousand-year-old saligram out of the house. Whatever she could be thinking of it had become part of Jagannath’s own mind. He felt the presence of her eyes within him and the black stone held tightly in his hand burned like cinder.
वाक्यार्थ—जगन्नाथ ने सोचा कि यह कैसी असंगत अवस्था है। उसके विचार में शालिग्राम मात्र एक चिकना पत्थर है। फिर भी यह प्रबल रूपरेखा का है। वह एक चम्बकत्व आकर्षण से प्रांगण के चारों ओर घूम रहा था जिसमें दलित, अनाथ उसके आगे तथा उसकी चाची उसके पीछे थी। यह कैसी अवस्था थी पूर्णरूपेण तार्किक, वहाँ कोई ईश्वर नहीं था।
ऐसे गलत विचार उसके मस्तिष्क में आये। यह वह था जिससे उस पत्थर के शालिग्राम को उस दलित को छूने के लिए लाया था। वह स्तब्ध हुआ। उसने बड़ी ताकत
से चारों ओर देखा। चाची और घर की सभी वस्तुएँ व्यवस्थित थीं। बरामदा के एक । कोने में उसने नौकर को देखा। सभी उसे घूर रहे थे। चाची की जीभ सुख चुकी थी
अन्यथा वह उसे पुकार लेती। वह इस मुद्रा में थी के मानो उसके पुत्र का शरीर अन्तिम संस्कार के लिए ले जाया जा रहा हो। किसी ने आजतक इस हजारों वर्ष पुराने शालीग्राम को बाहर ले जाने का साहस नहीं किया था। जो भी उसके मन में विचार आ रहा था मानो जगन्नाथ के मस्तिष्क की बातें हों। उसने उन्हें अपनी ओर घुरते हुए देखा तथा वह काला पत्थर जो उसके हाथ में था राख का ढेर हो चुका था।
Was he doing this for the sake of the pariahs or for his own sake? Was it to discard Brahminist? Discarding everything, was he now going to tread what Adiga would call the path of an avadhoot? It bewildered him to realise how at this very moment all his Marx and Russell were going up from him in vapours.
He tried to clear up his thoughts. The pariahs, who had never hoped for anything, are standing before me like impersonal ghosts. I cannot stop here for ever in a state of palpitation. The moment my resolve weakens I will be swept over and put down by Aunt’s eyes. But I am going forward with the saligram in my hand and at the same time backing out with misgivings. Why did this action get into my head at all? The pariahs should touch the family god before they touch the village god Manjunatha. Otherwise this resolve of mine will not be solid and real, the pariahs will not give up their past and accept a new life. If I am prepared for the violence necessary for this action, I will have learnt the first lesson of the violence of change. I should therefore go ahead, believing in my own thoughts. Otherwise Aunt will triumph. It was bitter but once again he looked round. There was a ghastly desolation about the house. It had rejected him, he felt, and had reduced him to a dry useless thing flung into the courtyard.
वाक्यार्थ—क्या वह दलितों के लिए यह करने जा रहा है या अपने लिए या या ब्राह्मणों के बहिष्कार के लिए ? सभों का तिरस्कार कर, वह अडिग, अवधूत के पथ पर चलना चाह रहा है ? वह इस बात से भौंचक्का हो रहा था कि इस क्षण इसके मस्तिष्क में मार्क्स तथा रसेल आ रहे थे। उसने अपने विचार को साफ करना चाहा। दलित, जिसने जीवन में कोई इच्छा की, वह मेरे समक्ष अव्यक्तिगत छाया के रूप में सामने खड़ी है। मैं अपना घड तरह उसे रोक नहीं सकता। उसी क्षण मेरा संकल्प कमजोर पड़ा, मेरी आँख चाचा आँखों से जा टकड़ाई। लेकिन मैं शालिग्राम को हाथों में लिए आगे बढ़ रहा था, उस विश्वास के साथ में पोछे हटा । यह विचार मेरे मस्तिष्क में इसलिए आया कि दालती को गाँव के भगवान मंजनाथ का दर्शन करने से पहले अपने पित भगवान को स्पश करना चाहिए। अन्यथा यह संकल्प मेरा सही और सच्चा नहीं होगा, दलित अपने पिछल कार्यकलापों को छोड़ेंगे नहीं और नया जीवन को स्वीकार नहीं करेंगे। यदि मैं इस कार्य में हिंसात्मक रूप अपनाता हैं तो सर्वप्रथम मुझे अपने में परिवर्तन लाना होगा। सर्वप्रथम मुझे अपने विचार पर विश्वास करना होगा। अन्यथा चाची की विजय होगी। यह कठिन था फिर भी दोबारा उसने मुड़कर देखा। इस भवन में भयंकर सूनापन व्याप्त था। यह उसे तिरस्कार कर दिया था; ऐसा उसने सोचा। आँगन में एक निरर्थक वस्तु के रूप में उसे देखा।
This moment of fear and anxiety must have perplexed the pariahs who had already been feeling guilty in their new clothes. If he did not go to them and offer them the stone in his hand they would be gone. He realised that he was in a situation where something had to be done urgently. He walked quickly towards them.
The important question is, he thought, why God has invaded me like this. What I wanted to show as stone has now become a saligram. Why is it so? Why are the bells ringing in me? At every step I have turned this stone into a saligram. Like the priest of some unique ritual act. All the time trying to shout out that this is not a saligram but a piece of hard stone. The eyes of the pariahs are on me; and are vacant like the eyes of cattle grazing in the field. They are not aware of a past or of any future. But those eyes at my back are compassionate and they tug at me. Shall I dodge now or shall I turn over and come to fulfillment in the minds of the pariahs?
वाक्यार्थ—यह क्षण दलितों को चिन्तित तथा व्याकुल कर दिया था। वह स्वयं को अपराधी नये कपड़ों में महसूस कर रही थी। उसने उस समय कुछ करना उचित समझा तथा उसकी ओर तेजी से बढ़ा।
महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि किस प्रकार भगवान ने उसके मन में यह बात डाली। मैं जो देखना चाहता था कि एक पत्थर अब शालिग्राम हो चुका था। ऐसा कैसे? क्यों मेरे मन में घंटा बज रहा है ? प्रत्येक क्षण मैने इस पत्थर का शालीग्राम पाया। एक पुजारी के समान एक विशेष विधि संबंधी कला के साथ । प्रत्येक समय यह कहना चाहा कि यह एक पत्थर का टुकड़ा है शालिग्राम नहीं । दलितों की आँखें मुझ पर टिकी हैं इस प्रकार मानो पशुओं की आँखें खेत में चर रही हों । वे लोग भूत या भविष्य से अवगत
नहीं हैं। लेकिन वे आँखें करुणाशील हैं तथा कसकर मुझे खींच रही हैं। क्या मैं चालाकी · से निकल जाऊँगा या दलितों की इच्छापूर्ति कर पाऊँगा ?
He went and stood near them. Seeing him so close they stepped back. Jagannath opened the lid of the casket. The entire action was nonsense. If a conch blow now and a pair of cymbals clanged, it would be a fair comment on it all. But the spell of giving to the pariahs the black naked stone in his palm overwhelmed him without his knowing it. The veins of his throat swelled. He said in a decp trembling note: “Touch This.’
वाक्यार्थ-वह उनके निकट जा कर खड़ा हुआ। उसे नजदीक पाकर वह पीने मुड़ा । जगन्नाथ ने बक्सा का मुँह खोला। यह सभी प्रतिक्रिया नकारात्मक थी। शंखनाद हुआ। लेकिन दलितों को उसकी हथेली पर वह काला पत्थर देना पूर्णतः पराजित हो जाना था। उसके गले की नस फूलने लगी। उसने भर्राए शब्द में कहा ‘इसे छूओ’।
He looked around. The sun was setting. Aunt and the priest were at the door, terror-stricken. Janardhana Shetty could be seen in a corner of the courtyard. The Okkaliga workers, with their sickles at their side, had huddled together in another corner. Kaveri was leaning against the parapet, wiping her face. In front of him the pariahs stood gaping like idiots. His body shook and his hair stood on end. He said again, coaxing them: “Touch this,’
Words stuck in his throat. This stone is nothing, but I have set my heart on it and I am reaching it for you: touch it; touch the vulnerable point of my mind; this is the time of evening prayer; touch; the nandadeepa is burning still. Those standing behind me are pulling me back by the many bonds of obligation. What are you waiting for? What have I brought? Perhaps it is like this: This has become a saligram because I have offered it as stone. If you touch it, then it would be a stone for them. Thus my importunity becomes a saligram. Because I have given it, because you have touched it, and because they have all witnessed this event, let this stone change into a saligram, in this darkening nightfall. And let this saligram change into a stone. You, Pilla, you are not afraid of a wild boar or a tiger; so, touch it. One step further and you are already inside the temple. Centuries will alter. Touch it now. Let you learn. Touch! How easy! Touch!
वाक्यार्थ—उसने चारों ओर देखा । सूर्य अस्त हो रहा था । चाची व पुजारी दरवाजे
जनार्दन सेठी प्रांगण के कोने में खड़े थे। काम करनेवाले हँसिए के साथ एक
खडे थे। कावेरी अपने चेहरा को ऊँची दीवार से छिपा रही थी। उसके आगे त खडा था। उसका शरीर डोल गया। उसने दोबार कहा, ‘इसे छुओ’।
शब्द उसके गर्दन में अटक गए । यह पत्थर कुछ नहीं है लेकिन मैंने अपने हृदय को इससे जोड़ा है। इसे छुओ, मेरे मस्तिष्क के मर्मस्थल को छुओ। यह शाम की पूजा का समय है, छुओ, नानादीप अभी भी जल रहे हैं। जो मेरे पीछे खड़े हैं वह मुझे मेरे कर्तव्य से पीछे हटने को कह रहे हैं। तुम किसकी प्रतीक्षा कर रहे हो? जो मैं लाया । हूँ शायद वह उसी जैसा है। यह शालिग्राम हो चुका है क्योंकि मैंने इसे पत्थर जैसा माना है। यदि तुम इसे छूते हो तो उनके लिए यह पत्थर हो जाएगा। यह शालिग्राम . बनाने का मेरा आग्रह है क्योंकि मैंने इसे दिया है क्योंकि तुमने इसे छुआ है तथा इसे सभी ने देखा है। इस प्रकार इस पत्थर को शालिग्राम बनने दो। तथा शालीग्राम को पत्थर । तुम पील्ला, जंगली सुअर अथवा बाघ से भयभीत नहीं हो; इसलिए, छुओ । एक कदम आगे अब तुम पूर्णरूप से मंदिर में हो। सदियाँ विकृत हो जाएँगी । अब इसे छुओ। अब तुम सीखो। छुओ। कितना आसान । छुओ !
His hands were sweating profusely. The pariahs moved back. All had turned him down – these pariahs and those people behind him. The evening had turned him down. He knew that the pariahs were afraid. They had seen how they caught thieves at the temple, by taking round a charmed coconut and asking the suspects to touch it. Crimson mantrakshata on a salver and a peeled coconut on it with its tuft turned to the front, sprinkled with kumkum. The coconut would have the appcarance of a human face. Everyone would have to touch it. But there would always be some person who gasped for breath when the salver came near him, his veins standing out. And he would fall unconscious. The pariahs had undergone all this. The oracle of Bhutharaya must have appeared to them now in this contingency, with a bunch of areca flowers in his hands, with kumkum on his body, quivering all over, and pronouncing their individual punishments.
Jagannath tried to soothe them. He said in his everyday tone of a teacher: This is mere stone. Touch it and you will see. If you don’t, you will remain foolish forever.’
वाक्यार्थ-उसका हाथ पसीने से भरा था। दलित पीछे मुड़ा। सभी ने उसे झुका दिया था वह दलित और पीछे खड़े लोग। संध्या उसे झुका चुकी थी। वह जानता था दलित डरे हुए हैं। उनलोगों ने देखा था कि किस प्रकार वे चोरों को पकड़ते थे तथा क आकर्षक नारियल के चारों ओर चलने को कहते थे । वह नारियल एक व्यक्ति के चेहरे के समान दिखता था और सभी को उसे छूना था पर हमेशा ऐसा होता था कि जब सजावटदार तस्तरी या थाल उसके सामने आता तो उसे साँस लेने में दिक्कत होती तथा उसकी नसें फूल जाती और वह बेहोश हो जाता। वे दलित इन सभी चीजों से गुजर चुके थे। अचानक ही उन्हें भूथरिया की याद आती जिसके हाथ में कुछ महकते फूल हुआ कहते थे और उसका पूरा शरीर कुमकुम से ढका हुआ रहता था, जो उनकी सजा को सुनाता था।
जगन्नाथ ने वास्तव में उन्हें शांत करने की कोशिश की। उसने अपने प्रतिदिन के शिक्षक वाली आवाज में कहा-यह मात्र एक पत्थर है। इसे छुओ और देखो। अगर तुम नहीं छूते हो तो तुम सदा मूर्ख रहोगे।
He did not know what had happened to them, but found the entire group recoiling suddenly. They winced under their wry faces, afraid to stand and afraid to run away. He had desired and languished for this auspicious moment – this moment of the pariahs touching the image of God. He spoke in a voice choking with great rage: ‘Yes, touch it!’
He advanced towards them. They shrank back. Some monstrous cruelty overtook the man in him. The pariahs looked like disgusting creatures crawling upon their bellies.
He bit his underlip and said in a firm low voice: ‘Pilla, touch it! Yes, touch it!!!
Pilla stood blinking. Jagannath felt spent and lost. Whatever he had been teaching them all these days had gone to waste, He rattled dreadfully: “Touch, touch, you TOUCH IT! It was like the sound of some infuriated animal and it came tearing through him. He was sheer violence itself; he was conscious of nothing else. The pariahs found him
more menacing than Bhutharaya. The air was rent with his screams: “Touch! Touch! Touch! The strain was too much for the pariahs. Mechanically they came forward, just touched what Jagannath was holding out to them, and immediately withdrew.
वाक्यार्थ- वह नहीं जानता था कि उन्हें क्या हआ? पर उसने पूरे समूह को अचानक चौंक कर पीछे हटते देखा। वह अपने घबड़ाए हुए चेहरे के पीछे चौंके हुए भी थे, उन्हें खड़े रहने तथा भागने, दोनों में डर लग रहा था। उसने इच्छा की थी और वह इस शुभ अवसर के लिए तड़पा भी था-वह क्षण जब दलित भगवान की मूर्ति को स्पर्श कर रहे हैं। उसने गुस्से के साथ दम घुटते हुए आवाज में कहा, हाँ, छुओ इसे ।
वह उनके ओर बढा। वे सिकड कर पीछे हटे। कोई भयंकर निर्दयता उसके अन्दर के मनुष्य पर हावी हो गया था। वे दलित बिना रुचि वाले जीव लग रहे थे जो कि अपने पैरों पर रेंग रहे हैं।
उसने अपने जीभ के निचले हिस्से को काटा और एक दृढ़ एवं धीरे आवाज में ___ कहा-“छुओ इसे” हाँ इसे छुओ।
पील्ला पलक मारते हुए खड़ा रहा । जगन्नाथ खोया-सा अकेला महसूस करने लगा। इतने दिनों तक उसने इन सभी लोगों को जो कुछ भी पढ़ाया था वह सभी व्यर्थ हो चुका था। वह भयभीत होकर लड़खड़ाने लगा। छुओ-छुओ, तुम छुओ इसे।” उसने इस प्रकार कहा कि मानो कोई गुस्से से भरा जानवर उसकी ओर दौड़ा चला आ रहा था। वह पूरी तरह हिंसा पर उतर गया । उसे और किसी बात का ध्यान नहीं था। उन दलितों ने उसे भुथारिया से भी अधिक भयभीत पाया। उसकी चिल्लाहट वातावरण को भेद रही थी : छुओ, छुओ, छुओ। दलितों में जबरदस्त तनाव था। यंत्र की तरह वे आगे आए, जगन्नाथ के हाथ में जो वस्तु थी सिर्फ उसे छुआ और पीछे हट गए।
Exhausted by violence and distress Jagannath pitched aside the saligram. A heaving anguish had come to a grotesque end. Aunt could be human even when she treated the pariahs as untouchables. He had lost his humanity for a moment. The pariahs had seemed to be meaningless things to him. He hung his head. He did not know when the pariahs had gone. Darkness had fallen when he came to know that he was all by himself. Disgusted with his own person he began to walk about. He asked himself: when they touched it, we lost our humanity- they and me; didn’t we? And we died. Where is the flaw of it all, in mc or in society? There was no answer. After a long walk he came home, feeling dazed.
वाक्यार्थ— हिंसा और दरिद्रता से थके हुए जगन्नाथ ने शालिग्राम को हटाया। एक भारी वेदना उसके अनन्त पर पहुँच चुकी थी। चाची तब भी इंसान हो सकती थी जब वह दलितों को स्पर्श करती। उसने अपनी मानवता थोड़ी देर के लिए खो दिया था। वे दलित उसके लिए बगैर किसी मतलब की वस्तु लग रहे थे। उसने अपना सिर हिलाया। उसे यह नहीं पता था कि दलित कब चले गए । अँधेरा घिर चुका था तब उसे पता चला कि वह अकेला खड़ा है। वह अपने आप से दुखी होकर इधर-उधर चलने लगा। उसने स्वयं से प्रश्न किया, जब उन्होंने उसे छुआ, हमने अपनी मानवता खो दी-उन्होंने और मैंने, क्या हमने नहीं खोई ? और मेरी मृत्यु हो गई। इन सभी बातों में खराबी कहाँ है, मुझमें या समाज में ? इसका कोई उत्तर नहीं था। कुछ देर चलने के उपरान्त वह घर लौटा और वह बहुत अचरज में था ।
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