इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के पद्य भाग के पाठ 5 (Dharti Kab Tak Ghumegi) “ धरती कब तक घूमेगी” के व्याख्या को पढ़ेंगे, इस पाठ के कवि साँवर दइया है |यह राजस्थानी भाषा के एक प्रमुख कहानीकार हैं। इस कथा का अनुवाद कथाकार ने खुद किया है।
5. धरती कब तक घूमेगी (Dharti Kab Tak Ghumegi)
लेखक- साँवर दइया
जन्म- बिकानेर (राजस्थान) ;10 अक्टुबर 1948 ई0द्ध
मृत्यु- 30 जूलाई 1992 ई0
हिन्दी अनुवाद- स्वयं
यह राजस्थानी भाषा के एक प्रमुख कहानीकार हैं। इस कथा का अनुवाद कथाकार ने खुद किया है।
पाठ परिचय
प्रस्तुत कहानी समस्या प्रधान कहानी है, जिसमें एक माँ की दुर्दशा का वर्णन है। पति के मरने के बाद माँ घर का बोझ बन जाती है। किसी तरह दोनों शाम रोटी मिल जाती है, जबकि परिवार भरा-पूरा है। जिस माँ ने सबका देखभाल किया उस माँ की देखभाल करने वाला आज कोई नहीं है।
एक माँ के पेट के कारण तीनों बेटों में बारी बाँध दिया जाता है। इस प्रकार माँ एक के बाद दूसरे, दूसरे के बाद तीसरे में लुढ़कने लगती है। माँ के भोजन के कारण तीनों भाईयों में हमेशा झगड़ा होता था। उसके बाद बड़ा बेटा कैलाश ने अपने दोनों छोटे भाईयों से कहा- ‘यह बात अच्छी नहीं लगती कि माँ हर महीने इधर-उधर लुढ़कती रहे, इसलिए हम तीनों ही माँ को हर महीने पचास-पचास रूपये दिया करें, वह स्वयं रोटी पकाएगी-खाएगी।’ यह फैसला लेने से पहले तीनों भाईयों में से किसी ने मांं से नहीं पूछा । जब तीनों भाईयों ने पचास-पचास रूपये देने का फैसला किया और कहा कि मां अलग खाना बनाकर खाएगी। तो मां ने सोचा कि सिर्फ एक पेट के लिए मेरे बेटों में झगड़ा हो रहा है। अर्थात् दो रोटी के लिए हमेशा घर में कलह लगा रहता है। मां को अपने ही घर में घूटन महसूस हो रही थी। जमीन छोटी हो रही थी। आसमान छोटा हो रहा था। मां ने सोचा कि जब दो रोटी ही खाना है, तो कहीं और जाकर खा लेंगें। ये लाेग भी फ्री में थोड़े ही खिलाते हैं। बदले में इनके बच्चों की देखभाल करनी पड़ती है। यह सोचकर मां अर्थात सीता ने अपना घर छोड़ दिया। जब वह घर छोड़ी तो आसमान साफ दिखाई दे रहा था। रास्ते चौड़ी हो गयी थी। पृथ्वी बड़ी हो गयी थी। उसे घूटन महसूस नहीं हो रहा था।
इस कहानी के माध्यम से कथाकार ने दर्शाया है कि एक मां अपने बच्चे को पालती है, लेकिन उसी मां को सभी बच्चे मिलकर नहीं पालते है। एक मां के पेट के लिए भाईयों में झगड़ा होता है।
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