इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के अहिन्दी (Non Hindi) के पाठ 15 (Dinbandhu Nirala) “दीनबन्धु ‘निराला” के व्याख्या को जानेंगे। इस पाठ के लेखक आचार्य शिवपूजन सहाय हैं, जिसमें लेखक ने दीनबंधु निराला के व्यक्त्वि पर प्रकाश डाला है।
पाठ परिचय- प्रस्तुत पाठ आधुनिक काल के कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला‘ पर लिखी गई जीवनी है। इस पाठ में निराला के व्यक्तित्व और जीवन के अनेक अनछुए पहलुओं का उद्घाटन करना पाठ का उद्देश्य है।
15. दीनबन्धु ‘निराला‘
पाठ का सारांश (Dinbandhu Nirala)
प्रस्तुत पाठ के माध्यम से सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला‘ के जीवनी के बारे में बताया गया है।
समस्त हिंदी संसार में निराला जैसी लोकप्रियता और सम्मान किसी को नहीं मिला। दीनबन्धु भगवान को सन्तुष्ट करने का सबसे अच्छा उपाय निर्धनों को मदद करना मानते हैं। वह जीवन-भर दीन-दुखियों की सेवा-सहायता करते रहे।
कंगालों को खिलाने में उनकी गहरी लगन देखकर लोग मुग्ध रहते थे। अच्छी अंग्रेजी और बंगला बोलने के कारण ही वह समाज में पूर्णतः सम्मानित थे। लोग आग्रहपूर्वक उनसे कवीन्द्र रवीन्द्र के गीत गवाकर सुनते थे और संतुष्ट होते थे।
आकर्षक रूप, लम्बे-तगड़े डील-डौल का शरीर, व्यायाम के अभ्यास से सुगठित स्वास्थ्य, विलक्षण मेधाशक्ति, दयालु हृदय, शक्ति-सम्पन्न बुद्धि-सब कुछ भगवान ने उन्हें भरपूर दिया था।
वह एक पत्नीव्रत थे। उनके पास युवती छात्राएँ भी साहित्यिक उद्देश्य से आती थीं। छात्र भी आते थे। पर वे किसी छात्रा से बातचीत करते समय आँखें बराबर नहीं करते थे।
वह कभी भी धन की कामना नहीं किये। जो भी धन आता था, सब को गरीबों में बाँट देते थे।
वह फुटपाथ पर भिखारियों के सिवा बहुत सारे गरीब और कुली-कबाड़ी वाले को बीड़ी, मूढ़ी, भूजा, चना, मूँगफली आदि खरीदकर वितरण करते थे।
निराला शहरों या बाज़ारों और स्टेशनों के अलावा गाँव और पड़ोस के गरीबों को भी मदद करते थे। वह जीवन भर फकीर बन कर रहे। वह कलकत्ता छोड़ने के बाद लखनऊ और प्रयाग में रहे तो वहाँ भी मस्त-मौला फ़कीर की तरह जीवन यापन किये।
निराला खुद मामुली कपड़ों में गुजर करके ग़रीब को अपने नये कपड़े को ओढ़ा देते थे।
कवि शिवपूजन सहाय निराला जी के साथ बहुत दिनों तक रहे हुए हैं। वह कहते हैं कि उस तरह के आचरण के लोग साहित्य जगत में नहीं देखे गये।
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