इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के पद्य भाग के पाठ 8 (Ek Vriksh Ki Hatya) “एक वृक्ष की हत्या” के व्याख्या को पढ़ेंगे, इस कविता के कवि कुँवर नारायण है |इन्होंने कविता लिखने की शुरुआत सन् 1950 ई॰ के आस-पास की।
8. एक वृक्ष की हत्या (Ek Vriksh Ki Hatya)
कवि परिचय
कवि- कुँवर नारायण
जन्म- 19 सितम्बर, 1927 ई॰, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
मृत्यु- 15 नवम्बर, 2017 ई॰
इन्होंने कविता लिखने की शुरुआत सन् 1950 ई॰ के आस-पास की।
प्रमुख रचनाएँ- चक्रव्यूह, परिवेश : हम तुम, अपने सामने, कोई दूसरा नहीं, इन दिनों ( काव्य संग्रह ), आत्मजयी, आकारों के आस-पास ( कहानी संग्रह ), आज और आज से पहले, मेरे साक्षात्कार आदि।
पुरस्कार एवं सम्मान- साहित्य अकादमी पुरस्कार, कुमारन आशान पुरस्कार, व्यास सम्मान, प्रेमचंद पुरस्कार, लोहिया सम्मान, कबीर सम्मान आदि।
कविता परिचय- प्रस्तुत कविता में कवि ने एक वृक्ष के बहाने पर्यावरण, मनुष्य और सभ्यता के विनाश की अन्तर्व्यथा पर मार्मिक विचार प्रकट किया है।
8. एक वृक्ष की हत्या (Ek Vriksh Ki Hatya)
अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था-
वहीं बूढ़ा चौकीदार वृक्ष
जो हमेशा मिलता था घर के दरवाजे पर तैनात।
कवि कहता है कि जब वह प्रदेश से घर लौटा तो अपने घर के सामने वाले पुराने पेड़ को न देखकर सोच में पड़ गया कि आखिर वह पेड़ गया कहाँ ? क्योंकि जब कभी घर आता था तो उस पेड़ को चौकीदार की तरह तैनात पाता था।
पुराने चमड़े का बना उसका शरीर
वही सख्त जान
झुर्रियांदार खुरदुरा तना मैलाकुचैला,
राइफिल-सी एक सूखी डाल,
एक पगड़ी फूलपत्तीदार,
पाँवों में फटापुराना जूता,
चरमराता लेकिन अक्खड़ बल-बूता
वह पेड़ अधिक दिनों के होने के कारण अपना हरापन खो चूका था। डालें सूख गई थीं, पत्ती झड़ गये थे। लेकिन पेड़ का उपरी भाग फूल-पत्ती से युक्त था जो पगड़ी के समान प्रतित हो रहा था। पेड़ पुराना होने के कारण उसका तना खुरदुरा था। हर विषम परिस्थितियों में वह पेड़ निर्भीक होकर बहादुर के समान वहाँ खड़ा रहता था।
धूप में बारिश में
गर्मी में सर्दी में
हमेशा चौकन्ना
अपनी खाकी वर्दी में
कवि कहता है कि वह बुढ़ा वृक्ष गर्मी, सर्दी तथा बरसात में हमेशा चौकीदार की तरह खाकी वर्दी में अर्थात् छाल नष्ट होने के कारण हल्के-पीले रंग का दिखाई पड़ता था।
दूर से ही ललकारता ‘‘ कौन ? ‘‘
मैं जवाब देता, ‘‘ दोस्त ! ‘‘
और पल भर को बैठ जाता
उसकी ठंढी छाँव में
दरअसल शुरू से ही था हमारे अन्देशों में
कहीं एक जानी दुश्मन
कवि कहता है कि जब वह पेड़ के समीप पहुँचता था कि दूर से ही वह चौकिदार के समान सावधान करता था। तात्पर्य यह कि जैसे चौकिदार आनेवालों से जानकारी लेने के लिए पूछता है, वैसे ही वह पेड़ कवि से जानना चाहता है तब कवि अपने को उसका दोस्त कहते हुए उस पेड़ की शीतल छाया में बैठकर सोचने लगता है कि कहीं संवेदनहीन मानव स्वार्थपूर्ति के लिए इसे काट न दें।
कि घर को बचाना है लुटेरों से
शहर को बचाना है नादिरों से
देश को बचाना है देश के दुश्मनों से
कवि कहता है कि घर को बचाना है लुटेरों से, शहर को बचाना होगा हत्यारा से तथा देश को बचाना होगा देश के दुश्मनों से अर्थात् घर, शहर तथा देश तभी सुरक्षित रहेंगें, जब वृक्षों की रक्षा होगी।
बचाना है –
नदियों को नाला हो जाने से
हवा को धुँआ हो जाने से
खाने को जहर हो जाने से :
बचाना है – जंगल को मरूस्थल हो जाने से,
बचाना है – मनुष्य को जंगल हो जाने से।
कवि आगे कहता है कि नदियों को नाला बनने से, हवा को धुँआ बनने से तथा खाने को जहर बनने से बचाना होगा। इतना हि नहीं जंगल को मरूस्थल तथा मनुष्य को जंगल हो जाने से बचाना होगा। तात्पर्य यह कि पेड़-पौधों की रक्षा नहीं किया जायेगा तो मानव-सभ्यता नहीं बचेगा। इसलिए हम सब किसी मिलकर पर्यावरण को बचाना होगा। (Ek Vriksh Ki Hatya)
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