इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के पद्य भाग के पाठ 9 (Humari Nind) “ हमारी नींद” के व्याख्या को पढ़ेंगे, इस कविता के कवि वीरेन डंगवाल है | इन्होंने मुजफ़्फरनगर, सहारनपुर, कानपुर, बरेली, नैनीताल में शुरुआती शिक्षा प्राप्त करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम० ए० किया।
9. हमारी नींद (Humari Nind)
लेखक परिचय
लेखक- वीरेन डंगवाल
जन्म- 5 अगस्त, 1947 ई०, टिहरी गढ़वाल जिला के कीर्तिनगर में (उŸारांचल)
मृत्यु- 28 सितम्बर, 2015 ई०
इन्होंने मुजफ़्फरनगर, सहारनपुर, कानपुर, बरेली, नैनीताल में शुरुआती शिक्षा प्राप्त करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम० ए० किया।
प्रमुख रचनाएँ- विरेन डंगवाल का पहला कविता संग्रह ‘इसी दुनिया में‘ प्रकाशित हुआ। इसके बाद ‘दुष्चक्र में स्रष्टा‘। इन्होंने विभिन्न कवियों की कविताओं तथा आदिवासी लोक कविताओं का विशाल मात्रा में अनुवाद किया है।
कविता परिचय- प्रस्तुत कविता ‘हमारी नींद‘ को वीरेन डंगवाल की काव्य संकलन ‘दुष्चक्र में स्रष्टा‘ से लिया गया है। इसमें सुविधा भोगी आराम पसंद जीवन अथवा हमारी बेपरवाहीयां के बाहर विपरित परिस्थितियों से लगातार लड़ते-बढ़ते जानेवाले जीवन का चित्रण करती है।
9. हमारी नींद (Humari Nind)
मेरी निंद के दौरान
कुछ इंच बढ़ गये पेड़
कुछ सुत पौधे
अंकुर ने अपने नाम मात्र
कोमल सिंगो सें
धकेलना शुरू की
बीज की फुली हुई
छत, भीतर से।
कवि कहते हैं कि मनुष्य सुविधा भोगी बनकर आराम की नींद सोता है लेकिन प्रकृति विकास क्रम को अनवरत जारी रखती है। हमारे नींद के दौरान कुछ इंच पेड़ तथा कुछ सुत पौधे बढ़ जाते हैं। बीज अंकुरित होकर अपनी कोपलों को धकेलना शुरू कर देता है।
एक मक्खी का जीवन-क्रम पुरा हुआ
कई शिशु पैदा हुए, और उनमें से
कई तो मारे गए
दंगे, आगजनी और बमबारी में ।
कवि एक मक्खी के माध्यम से दीन-हीन लोगों के जीवन के दशा के विषय में कहता है कि उसके बच्चे दीनता के कारण या तो मर गये अथवा अत्याचारियों के कोप के शिकार हो गये, जो दंगे आगजनी और बमबारी में मारे गये।
गरीब बस्तीयों में भी
धमाके से हुआ देवी जागरण
लाउडस्पीकर पर।
पुनः कवि कहते हैं कि जहाँ झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले गरीब लोग हैं जो केवल किसी तरह से अपने पेट की आग शांत करने के अपेक्षा कुछ नहीं जानते हैं वहाँ भी विलासी लोग देवी जागरण तथा अन्य ढ़ोंगी कार्यक्रम की आड़ में लाउडस्पीकर बजवाकर ठगने का कार्य करते हैं।
याने साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने
मगर जीवन हठिला फिर भी
बढ़ता ही जाता आगे
हमारी निंद के बावजूद
कवि कहते हैं कि अत्याचारी सूख-भोग के सारे साधन जमा करने के बावजूद अपने हठी स्वभाव के कारण अन्याय बंद करना नहीं चाहते। उनका जुल्म बढ़ता ही जा रहा है।
और लोग भी है, कई लोग हैं
अभी भी
जो भूले नहीं करना
साफ और मजबुत
इनकार।
कवि कहते हैं कि आज भी वैसे अनेक लोग हैं जो अपनी सुविधा का त्याग करना नहीं चाहते तो जनता अत्याचारियों के जुल्म का विरोध करने से इनकार करना नहीं भूलती।
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