इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 12 इतिहास का पाठ एक ईंट, मनकें और अस्थियाँ (iit manke tatha asthiyan) के सभी टॉपिकों के व्याख्या को पढ़ेंगें, जो परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इस पाठ को पढ़ने के बाद इस पाठ से संबंधित एक भी प्रश्न नहीं छूटेगा।
1. ईंट, मनकें और अस्थियाँ (Class 12th Chaper 1 Iit manke tatha asthiyan)
ऐसा माना जाता है कि मेसोपोटामिया की सभ्यता, मिश्र की सभ्यता तथा चीन की पीली नदी की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है।
विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता मेसोपोटामिया की सभ्यता है। जो एक ग्रामीण सभ्यता थी।
सिंधू सभ्यता
विश्व की प्रथम नगरीय सभ्यता सिंधू सभ्यता है जिसकी खोज 1920 के दशक में हुई। जिससे ज्ञात हुआ की हड़प्पा सभ्यता जैसा आज तक कोई सभ्यता कोई भी नगरीय सभ्यता नहीं थी।
इस सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है।
सिंधु सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता इसलिए कहा जात है कि इस सभ्यता की खुदाई सबसे पहले हड़प्पा नामक स्थल से हुई।
अर्थात सिंधू सभ्यता की पहली खुदाई हड़प्पा नामक स्थल से होने के कारण सिंधू सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से जाना जाता है।
जब अंग्रेजों के द्वारा पंजाब प्रांत से रेलवे लाईन बिछाई जा रही थी, तो उत्खनन कार्य के दौरान कुछ इंजीनियरों को हड़प्पा पुरास्थल मिला, फिर जब विस्तार से उसकी खुदाई की गई तो इससे पता चला कि यहाँ एक सभ्यता बसती थी।
हड़प्पा सभ्यता की जानकारी चार्ल्स मैसन ने दिया था।
इसका सर्वेक्षण कनिंघम ने किया तथा जॉर्न मार्शल के नेतृत्व में इस सभ्यता की खुदाई हुई।
इस सभ्यता की प्रमुख स्थल हड़पा, मोहनजोदड़ो, कालिबंगा, सुरकोटदा, लोथल, बनवाली, आलमगीरपूर, रंगपूर, रोपड़ आदि हैं।
सिंधू सभ्यता के लगभग 300 स्थल पाए गए।
यह सभ्यता 13 लाख वर्ग किमी में फैली हुई थी।
इस सभ्यता का नामकरण जॉन मार्शल ने किया था।
इस सभ्यता का आकार त्रिभुजाकार है।
सिंधू सभ्यता का काल 2600 ई.पू. से 1900 ई.पू. तक है।
इस सभ्यता को सिंधु नदी के किनारे बसे होने के कारण इसका नाम सिंधु सभ्यता या सिंधु घाटी सभ्यता पड़ा।
इस सभ्यता के अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि और व्यापार था।
गेहूँ, जौ, दाल, सफेद, तिल और बाजरे उगाने का साक्ष्य मिला है।
ये लोग भेड़, बकरी, भैंस तथा सुअर का पालन करते थे।
इस सभ्यता में मछली तथा हड्डीयों के साक्ष्य मिले हैं।
इससे यह अनुमान लगता है कि हड़प्पाई निवासी जानवरों का मांस खाते थे।
सिंधु सभ्यता के लोग गाय से परिचित नहीं थे।
इस सभ्यता के लोग युद्ध और तलवार से परिचित नहीं थे।
यहाँ माप-तौल का न्यूनतम बाट 16 किलोग्राम का था।
यहाँ की सड़कें तथा नालियाँ ग्रीड पद्धति से बनाए गए हैं, जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी।
इनका व्यापार विदेशों से होता था।
इनका समाज मातृसतात्मक थी।
ये लोग अपने पूर्वजों को उत्तर-दक्षिण दिशा में दफनाते थे।
ये अपने पूर्वजों को दफनाते समय घड़ा रख देते थे।
यहाँ कीमती रत्नों के साथ पूर्वजों को दफनाने की परम्परा नहीं थी।
यहाँ के निवासी जानवरों के मांस खाते थे।
यह कृषि में टेराकोटा (पक्की हुई मिट्टी) के हल का प्रयोग करते थे।
यहाँ के मुहर पर वृभष का चित्र तथा एक सिंग वाले जानवर का चित्र मिलता है।
इतिहासकारों का अनुमान है कि सिंधु सभ्यता के निवासी खेत जोतने में बैल का प्रयोग करते थे।
हरियाणा के एक स्थल बनवाली से टेराकोटा (मिट्टी) के बने हल का साक्ष्य मिला हुआ है।
तथा गुजरात के कालीबंगा से जुते हुए खेत का प्रमाण मिले हैं।
इस सभ्यता के लोहे से परिचित नहीं थे।
इस समय के हथियार पत्थर तथा कांस्य का होता था।
सिंधु सभ्यता के लोग सिंचाई के लिए कुआँ और जलाशयों का प्रयोग करते थे।
अफगानिस्तान में शोतुघई से नहरों के प्रमाण मिले हैं तथा गुजरात के धौलावीरा से जलाशय का प्रमाण मिले हैं।
सिंधु सभ्यता का पश्चिमी क्षोर- सुतकागैंडोर (पाकिस्तान), उत्तरी क्षोर- माण्डा (कश्मीर), पूर्वी क्षोर- आलमगीरपूर (उŸारप्रदेश) तथा दक्षिणी क्षाेेर- दैमाबाद (महाराष्ट्र) थी।
हड़प्पा सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी।
सबसे पहले खोजा गया स्थल हड़प्पा था।
लेकिन सबसे प्रसिद्ध स्थल मोहनजोदड़ो था।
पुरास्थल ऐसे स्थल को कहते हैं जिस स्थल पर पुराने औजार, बर्तन (मृदभांड), इमारत तथा इनके अवशेष मिलते हैं।
यह एक शहरी नियोजित शहरी केंद्र था।
यहां बस्ती दो भागों में विभाजित थी।
पहला दूर्ग और दूसरा निचला शहर
दुर्ग ऊँचाई पर स्थित था साथ ही छोटा था।
दुर्ग में अमीर और सम्पन्न लोग रहते थे।
निचला शहर कम ऊँचाई पर था तथा इसमें आम लोग रहते थे।
यह बड़े क्षेत्र में था।
हड़प्पा स्थल की खुदाई दयाराम साहनी ने 1921 में किया।
मोहनजोदड़ो की खुदाई राखलदास बनर्जी ने 1922 में किया।
हड़प्पा, कोटदीजी और मोहनजोदड़ो पाकिस्तान में है तथा सुरकोटदा, रंगपुर तथा लोथल गुजरात में है।
गुजरात का लोथल एक बंदरगाह था तथा व्यापारिक नगर भी था। यहाँ से फारस का व्यापार होता था।
राजस्थान के कालिबंगा से चुड़ी का साक्ष्य मिला है।
मोहनजोदड़ों का अर्थ- ‘मृतकों का टिला‘ होता है।
दुर्ग की विशेषता
दुर्ग को चारों तरफ से दीवार से घेरा गया था। यह दीवार निचले शहर को अलग करती थी।
अन्नागार में अनाज रखा जाता था।
हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा अन्नागार पुरास्थल मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुआ था।
विशाल स्नानागार- सबसे बड़ा विशाल स्नानागार का प्रमाण मोहनजोदड़ो से मिले हैं।
यह आँगन में बना एक आयताकार जलाशय होता था, जो चारों ओर से एक गलियारे से घिरा हुआ था।
जलाशय तक जाने के लिए इसमे सीढ़ियां बनी थी।
जलाशय का पानी एक बड़े नाले के द्वारा बाहर निकाल दिया जाता था।
संभवतः इसका उपयोग अनुष्ठान के स्नान के लिए किया जाता होगा।
निचला शहर की विशेषता
दुर्ग की तुलना में नीचला शहर कम ऊँचाई पर थे।
यहाँ आवासीय भवन थे।
निचले शहर दुर्ग के मुकाबले अधिक बड़े क्षेत्र में बसा था।
इसको भी दीवार से घेरा गया था।
यहां भी कई भवनों को ऊँचे चबुतरे पर बनाया गया था।
यह चबूतरे नींव का काम करते थे।
जल निकासी की व्यवस्था
हड़प्पा शहरों में नियोजन के साथ जल निकासी की व्यवस्था की गई थी।
सड़कों और गलियों को लगभग ग्रीड पद्धति से बनाया गया था।
यह एक दूसरे को समकोण पर काटती थी।
हाड़प्पाई भवनों को देखकर ऐसा पता लगा है।
कि पहले यहां नालियों के साथ गलियां बनाई गई।
उसके बाद गलियों के अगल-बगल मकान बनाए गए ।
प्रत्येक घर का गंदा पानी इन नालियों के जरिए बाहर चला जाता था।
यह नालियां बाहर जाकर बड़े नालों से मिल जाती थी।
जिससे सारा पानी नगर के बाहर चला जाता था
गृह स्थापत्य कला
मोहनजोदड़ो के निचले शहर में आवासीय भवन हैं ।
यहां के आवास में एक आंगन और उसके चारों और कमरे बने थे।
आंगन खाना बनाने और कताई करने के काम आता था।
यहां एकान्तता ( प्राइवेसी ) का ध्यान रखा जाता था।
भूमि तल ( ग्राउंड लेवल ) पर बनी दीवारों में।
खिड़कियां नहीं होती थीं मुख्य द्वार से कोई घर के अंदर या आंगन को नहीं देख सकता था।
हर घर में अपना एक स्नानघर होता था जिसमें ईटों का फर्श होता है।
स्नानघर का पानी नाली के जरिए सड़क वाली नाली पर बहा दिया जाता था कछ घरों में छत पर जाने के लिए सीढ़ियां बनाई जाती थी।
कई घरों में कुएं भी मिले हैं कुएं एक ऐसे कमरे में बनाए जाते थे।
जिससे बाहर से आने वाले लोग भी पानी पी सके।
आर्थिक और सामाजिक विभिन्नताएं
ऐसा अनुमान लगाया गया है। कि मोहनजोदड़ो में कुएं की संख्या लगभग 700 थी हड़़प्पाई समाज में भिन्नता का अवलोकन हर समाज में रहने वाले लोगों के बीच सामाजिक और आर्थिक भिन्नताएं होती हैं इन भिन्नताओं को जानने के लिए इतिहासकार कई तरीकों का प्रयोग करते है।
इन तरीकों में है एक है – शवाधान का अध्ययन हड़प्पा सभ्यता में लोग अंतिम संस्कार व्यक्ति को दफनाकर करते थे कई ऐसे साक्ष्य मिले हैं कि कई कब्र की बनावट एक दूसरे से भिन्न है।
कई कब्रों में ईंटों की चिनाई की गई थी।
कई कब्रों में मिट्टी के बर्तन तथा आभूषण भी दफना दिए जाते थे।
शायद यह लोग पुनर्जन्म में विश्वास करते हो या यह सोच कर दफनाते हैं की मृत्यु के बाद इन वस्तओं का उपयोग ) किया जाएगा।
पुरुष तथा महिला दोनों के कब्र से आभूषण मिले हैं |
कुछ कब्रों में तांबे के दर्पण , मनके से बने आभूषण आदि मिले है। मिस्र के विशाल पिरामिड हड़प्पा सभ्यता के समकालीन थे इनमें बड़ी मात्रा में धन-संपत्ति दफनाए जाती थी।
इसे देखकर ऐसा लगता है कि हड़प्पा के निवासी मृतकों के साथ बहुमूल्य वस्तु दफनाने में विश्वास नहीं करते थे।
इतिहासकारों द्वारा उत्पादन केंद्रों की पहचान
जिन स्थानों पर शिल्प उत्पादन कार्य होता था।
वहां कच्चा माल तथा त्यगि गई वस्तुओं का कूड़ा करकट मिला है इससे इतिहासकार अनुमान लगा लेते थे कि इन स्थानों में शिल्प उत्पादन कार्य होता था।
पुरातत्वविद सामान्यतः पत्थर के टुकड़े, शंख, तांबा अयस्क जैसे कच्चे माल, शिल्पकारी के औजार, अपूर्ण वस्तुएं, त्याग दिया गया माल, कूड़ा करकट ढूंढते हैं।
इनसे निर्माण स्थल तथा निर्माण कार्य की जानकारी प्राप्त होती है।
यदि वस्तुओं के निर्माण के लिए शंख तथा पत्थर को काटा जाता था तो इनके टुकड़े कूड़े के रूप में उत्पादन स्थल पर फेंक दिए जाते थे। कभी-कभी बेकार टुकड़ों को छोटे आकार की वस्तुएं बनाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता था।
हड़प्पाई लिपि
हड़प्पाई लिपि चित्रात्मक लिपि थी।
इस लिपि में चिहनों की संख्या लगभग 375 से 400 के बीच है।
यह लिपि दाएं से बाएं और लिखी जाती थी।
हड़प्पा लिपि एक रहस्यमई लिपि इसलिए कहलाती है। क्योंकि इसे आज तक पढ़ा नहीं जा सका।
बाट
इस सभ्यता का न्यूनतम् बाट 16 किलोग्राम का था।
बाट चटी नामक पत्थर से बनाए जाते थे।
छोटे बड़ों का प्रयोग आभूषण और मनको को तोलने के लिए किया जाता था।
धातु से बने तराजू के पलडे भी मिले हैं यह बाट देखने में बिल्कुल साधारण होते थे।
इनमें किसी प्रकार का कोई निशान नहीं बनाया जाता था।
हड़प्पाई शासक को लेकर पुरातत्वविदों में मतभेद
मोहनजोदड़ो से एक विशाल भवन मिला है।
जिसे प्रासाद की संज्ञा दी गई है।
लेकिन यहां से कोई भव्य वस्तु नहीं मिली एक पत्थर की मूर्ति को पुरोहित राजा का नाम दिया गया है। लेकिन इसके भी विश्वसनीय प्रमाण नहीं मिले हैं।
कुछ पुरातत्वविद कहते हैं कि हड़प्पा समाज में शासक नहीं थे सभी की स्थिति समान थी।
कुछ पुरातत्वविद कहते हैं की हड़प्पा सभ्यता में कोई एक शासक नहीं थे
बल्कि यहां एक से अधिक शासक थे।
जैसे – मोहनजोदड़ो , हड़प्पा आदि में अलग-अलग राजा होते थे
हड़प्पा सभ्यता का पतन (अंत)
हड़प्पा सभ्यता के अंत के कई कारण हैं जिसमें से प्रमुख कारण हैं-बाढ़ आना, सिंधु नदी का मार्ग बदलना, भूकंप के कारण, जलवायु परिवर्तन, आर्यों का आक्रमण, वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन आदि है।
Read more – Click here
Class 12th History – Click here
So interesting chapter 😊😊😊😊