इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के अहिन्दी (Non Hindi) के पाठ 10 (Irshya Tu Na Gyi Mere Man Se) “ईर्ष्या : तु न गई मेरे मन से” के व्याख्या को जानेंगे। जिसके लेखक रामधारी सिंह ‘दिनकर‘ है।

पाठ परिचय- रामधारी सिंह ‘दिनकर‘ के इस रोचक निबंध में जीवन के राज़मर्रा के व्यवहारों पर टिप्पणी है और सही संतुलित-जीवन के प्रति सोचने-समझने का पहलु विकसित करने की सीख है। तनावों को कम करने में व्यक्ति की अपनी अंतरात्मा खास योगदान देती है। यह निबंध इस अंतर्निहित समझ को विकसित करता है। शीर्षक रोचक है और पहली नजर में पढ़ने का आमंत्रण देता है।
पाठ का सारांश (Irshya Tu Na Gyi Mere Man Se)
प्रस्तुत निबंध ‘ ईर्ष्या : तु न गई मेरे मन से‘ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर‘ के द्वारा लिखा गया है। इस पाठ में जीवन के राज़मर्रा के व्यवहारों पर टिप्पणी है और सही संतुलित-जीवन के प्रति सोचने-समझने का पहलु विकसित करने की सीख है।
इस निबंध में लेखक ईर्ष्या के बारे में कहते हैं कि जिस मनुष्य के अंदर ईर्ष्या घर बना लेती है, वह उन चीजों का आनन्द नहीं उठा पाता, जो उसके पास है; बल्कि उन वस्तुओं से दुःख पहुँचता है, जो दूसरों के पास है।
कवि कहते हैं कि ईर्ष्यालु व्यक्ति अपनी उन्नति के लिए उद्गम करना छोड़कर वह दूसरों को हानि पहुँचाने को ही अपना श्रेष्ठ कर्तव्य समझने लगता है।
लेखक एक उदाहरण देकर कहते हैं कि मेरे घर के बगल में एक वकील साहब का घर है। वह सब -कुछ में अच्छे हैं, मगर वे सुखी नहीं है क्योंकि उनके घर के बगल में एक बीमा एजेंट के पास उनसे ज्यादा धन है।
ईर्ष्या मनुष्य का चारित्रिक दोष नहीं है, बल्कि इससे मनुष्य के आनंद में भी बाधा पड़ती है। वह किसी भी चीज का आनंद नहीं ले पाता है।
लेखक कहते हैं कि ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने कहा है कि तुम्हारी निंदा वहीं व्यक्ति करेगा, जिसकी तुमने भलाई की है। इसलिए निंदा से घबराना नहीं चाहिए। वह कहते हैं कि जिनका चरित्र उन्नत है, उनका हृदय निर्मल और विशाल है। इन बेचारों की बातों से क्या चिढ़ना ? ये तो खुद ही छोटे हैं।
लेखक कहते हैं कि कुछ लोग दूसरों की निंदा इसलिए करते हैं कि इस प्रकार, दूसरे लोग जनता अथवा मित्रों की आँखों से गिर जाएँगे तब जो स्थान रिक्त होगा, उस पर अनायास मैं ही बिठा दिया जाऊँगा।
मगर, ऐसा नहीं होता है। किसी भी मनुष्य के पतन का कारण उसके भीतर सद्गुणों का ह्रास है। इसी प्रकार, कोई भी मनुष्य दूसरों की निंदा करने से अपनी उन्नति नहीं कर सकता। उन्नति तो उसकी तभी होगी, जब वह अपने चरित्र को निर्मल बनाए तथा अपने गुणों का विकास करें।
लेखक ने नीत्से के कथन के माध्यम से ईर्ष्या से बचने का उपाय बताते हैं कि जो लोग नए मुल्यों का निर्माण करते हैं वे सबसे दूर बसते हैं। भीड़-भाड़ से दूर एकान्त में वास करते हैं।
उन्हें शोहरत की चाह नहीं होती वे अपना ध्यान अपने कार्य पर केन्द्रित करते हैं निंदा बकवास पर वे ध्यान नहीं देते। भीड़ से दूर रहकर ही अपने काम को अंजाम देते हैं।
लेखक कहते हैं कि ईर्ष्या से बचने का उपाय मानसिक अनुशासन है। जो व्यक्ति ईर्ष्यालु स्वभाव का है, उसे फालतु बातों के बारे में सोचने की आदत छोड़ देनी चाहिए।
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