इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्दी के कहानी पाठ बारह ‘ Janm Badha ( जन्म-बाधा )’ के सारांश को पढ़ेंगे।
12जन्म-बाधा
पाठ का सारांश-प्रस्तुत कहानी ‘जन्म-बाधा’ समस्या प्रधान कहानी है। इसमें लेखिका सुधा ने लिंग-भेद की समस्या के विषय में अपना विचार प्रकट करते हुए लिखा है कि किस प्रकार माता-पिता की उपेक्षा का शिकार बारह वर्षीया गुड्डी अपनी मुक्ति के लिए प्रधानमंत्री से गुहार करने को मजबूर होती है। गुड्डी बारह वर्षीया एक लड़की है । उससे छोटे तीन भाई-बबलू, गुड़, मुन्नू तथा तीन वहने रीता, मीता और छोटकी हैं । झाडू लगाते समय उसे एक लीड मिलती है जो अभी पूरी खत्म नहीं हुई थी। वह मन-ही-मन सोचती है कि ऐसी ही फिजूल खर्चियों | पर पापा नाराज होते हैं। परन्तु वह इसलिए चुप रह जाती है क्योंकि उसे अपनी मुक्ति के लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखना है। वह पापा के झोले से लिफाफे एवं कागज निकाल लेती है और पत्र लिखने का निश्चय करती है, क्योंकि माँ सो गई थी। पत्र लिखने से पूर्व उसके मन में प्रश्न उठता क्या लिखू ? कैसे शुरू करूँ? यदि गलत लिलूँगी तो मेरी बातों पर ध्यान देंगे या नहीं। लेकिन उसका अन्तर्मन विश्वास प्रकट करता है कि क्यों नहीं सुनी जाएगी मेरी बात, हिज्जे गलत हों, पर बातें तो सही हैं। इसी विश्वास के साथ जय गणेश जी, जय माता रानी आदि से निवेदन करती है, यह चिट्ठी लिखवा दो, भगवान! मेरी कोई मदद करनेवाला नहीं है. तथा पत्र लिखने लगी। Janm Badha class 7 Saransh
प्रधानमंत्रीजी, प्रणाम !
मैने सुना है, बंधुआ मजदूरों को उनके मालिकों से छुड़ाया जा रहा है। मुझे भी छुड़ा दीजिए। मेरे तीनों भाई स्कूल जाते हैं। मैं अपनी पढ़ाई के बारे में पूछती हूँ तो पापा । कहते हैं. बाद में देखा जाएगा। मैं दिन भर घर के कामों में लगी रहती हूँ। घर के सार बर्तनों तथा कपड़ों को धोना पड़ता है। रोटी बनानी पड़ती है। सब्जी माँ की तरह नहीं बना पाती हूँ. इसलिए नित्य डाँट सुननी पड़ती है। एक पल भी आराम का अवसर नहीं मिलता या फिर भी सब हमें धीमर (सुस्त) कहते हैं। मामाजी की जिद पर दो वर्ष पूर्व मेरा नाम स्कूल में लिखवाया था। एक महीने के बाद स्कूल जाना बंद हो गया, क्योंकि माँ को बच्चा होने के कारण घर का सारा काम मुझे करना पड़ता है। माँ से अपनी पढ़ाई के बारे में कहा तो पापा ने कहा, घर में जैसे ककहरा सीखा है, वैसे ही आगे भी कुछ पढ लेना। लेकिन न तो घर में कोई पढ़ाने वाला है और न ही मैं अपनी मर्जी से स्कूल जा सकती। ऐसी स्थिति में मुझे भी बंधुआ मजदूरों की भाँति मुक्त करा दीजिए।
आपकी बेटी गुड्डी।
फिर पापा के आने की आवाज सुनकर दरवाजा खोलने दौड़ पड़ती है क्योंकि देर होने पर डाँट सुननी पड़ती। माँ सोयी थी, इसलिए चाय बनाने का आदेश मिला । पत्र लिखने के बाद उसके मन में यह विश्वास जगा कि तब तक चाय बनानी होगी, जब तक मेरी मुक्ति की घोषणा नहीं हुई है। परतंत्रता के बंधन से मुक्ति का विश्वास उसमें – एक अजीब-सा परिवर्तन पैदा कर दिया। Janm Badha class 7 Saransh
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