इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के पाठ 10 ( Machhli) “ मछली ” के व्याख्या को पढ़ेंगे, इस पाठ के लेखक विनोद कुमार शुक्ल है | इस कहानी में एक छोटे शहर के निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के भीतर के वातावरण, जीवन यर्थाथ तथा संबंधों को आलोकित करती हुई लिंग-भेद को भी स्पर्श करती है।
(Machhali)
10. मछली (Machhali)
लेखक परिचय
लेखक का नाम- विनोद कुमार शुक्ल
जन्म- 1 जनवरी 1937 ई0 (83 वर्ष),
राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़
इन्होंने शिक्षा समाप्ति के बाद पेशा के रूप में प्राध्यापन को अपनाया। ये इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर थे। इन्हें 1990 ई० में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
रचनाएँ- जयहिंद, वह आदमी नया कोट पहनकर चला गया विचार की तरह, नौकर की कमीज, खिलेगा तो देखेंगे, दीवार में एक खिड़की रहती थी, पेड़ पर कमरा, महाविद्यालय आदि।
पाठ परिचय- प्रस्तुत पाठ ’मछली’ कहानी संकलन ’महाविद्यालय’ से ली गई है। इस कहानी में एक छोटे शहर के निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के भीतर के वातावरण, जीवन यर्थाथ तथा संबंधों को आलोकित करती हुई लिंग-भेद को भी स्पर्श करती है।
पाठ का सारांश (Machhli)
प्रस्तुत पाठ ’मछली’ संवेदना पूर्ण कहानी है। इसमें मछली के माध्यम से लोगों के मनोभाव को व्यक्त किया गया है।
बच्चे अपने पिता के साथ मछली खरीदने बाजार जाते हैं। तीन मछलीयाँ खरीदी जाती है, जिनमें एक खरीदने के वक्त ही मर गई थी। बच्चे झोले में मछलीयों को रखकर गली से होकर घर वापस लौटते हैं। बूंदे पड़ने के कारण बाजार में भीड़ घट रही थी। बच्चे भी इसलिए दौड़ रहे थे कि मछलीयाँ बिना पानी के झोले में ही न मर जाएँ। झोले में रखी तीन मछलीयों में से दो जीवित थी, उनकी तड़प के झटके बच्चे महसुस कर रहे थे।
अचानक जोरों से वर्षा होने लगी। बच्चे झोले के मुँह इसलिए फैला दिए कि मछलीयों में थोड़ा जान आ जाए, क्योंकि उनकी इच्छा थी की उनमें से एक मछली कुएँ मे पाली जाए और उसके साथ खेली जाए।
वर्षा में दोनों भाई भींगने से थर्र-थर कांपने लगे। स्नानघर का दरवाजा बंद करके तीनों मछलीयों को बाल्टी में डाल दिया। संतू ठंड से कांप रहा था। माँ की मार के भय से दोनों भाई कमीज एवं पेंट निचोड़कर बाल्टी के पास बैठ गये। संतु बड़े प्यार से मछली की ओर देख रहा था।
बड़े भाई ने कहा इसमें से जीवित एक मछली पिताजी से मांग लेंगे। संतू मछली को छूना चाहता था, किंतु काटने के डर से नहीं छूता था। तभी लेखक ने उसे छूने को कहा। उसने सहमते हुए एक मछली को छूआ, लेकिन डर कर अपना हाथ खींच लिया।
लेखक ने बाल्टी से मछली निकाली और पुनः बाल्टी में डाल दी। इस क्रम में मछली उछली तो पानी के छींटे उन पर पड़े। संतु चौककर पीछे हट गया।
लेखक मछली की आँखों में अपना छाया देखना चाहता था क्योंकि दीदी का कहना था कि मरी हुई मछली की आँखों में झाँकने से अपनी परछाई नहीं दिखती। इसलिए पहले संतु का झाँकने को कहा, किंतु उससे कोई जवाब नहीं मिला तो लेखक मछली को अपने चेहरे के समीप लाकर देखा तो उसे उसकी आँख में धुंधली-सी परछाई दिखी, लेकिन ये परछाई थी कि मछली के आँखों का रंग था, यह समझ नहीं पाया। इसके बाद दीदी को बुलाने को कहा, लेकिन दीदी के सोने की बात सुनकर वह आश्चर्य में पड़ गया। माँ को मसाला पीसते हुए देखकर दुःखी हो गया कि मछली आज ही कट जाएगी। संतु भी उदास हो गया।
वर्षा बंद हो गई तब लेखक ने आँगन में जहाँ मछली काटी जाती थी, वहाँ धुला हुआ लकड़ी का तख्ता देखा। पास में थोड़ी चूल्हे की राख थी। स्नानघर का दरवाजा खुला हुआ था। माँ को मछली बनाना अच्छा नहीं लगता था। घर में पिताजी ही केवल मछली खाते थे। भग्गु ही मछली काटता तथा बनाता था। स्नानघर से भग्गु का मछली लाते देखकर लेखक के मन में उदासी छा गई, क्योंकि कुएँ में मछली पालने का उत्साह बुझ-सा रहा था। दीदी ने हम दोनों भाईयों को कपड़े पहनाए, बाल संवारे।
लेखक ने दीदी से कहा- ’दीदी ! आज मछली आई है। तीन हैं। एक शायद मर गयी है। उन्हें अभी भग्गु काटेगा। पहले दीदी चुप रही, फिर कमरे का दरवाजा बन्द करने की बात कहकर सो गई। भग्गु ने मछली के पूरे शरीर में राख मलकर फिर उसकी गर्दन काट डाली। तभी संतु एक मछली लेकर सरपट बाहर भागा।
भग्गु भी संतु से मछली छीनने दौड़ पड़ा। संतु दोनों हाथों से मछली को अपने पेट में छिपाए हुए था और भग्गु उससे मछली छीनने की कोशिश कर रहा था। उसे डर का था कि संतु कहीं मछली कुएँ में न डाल दें। वह पिताजी के डाँट के भय से परेशान था।
एक तरफ घर के अंदर पिताजी जोर-जोर से चिल्ला रहे थे, दूसरी ओर दीदी की सिसकियाँ बढ़ गई थी। पिताजी दहाड़कर कह रहे थे- ’भग्गु! अगर नहान घर में घुसे तो साले के हाथ-पैर तोड़कर बाहर फेंक देना। बाद में जो होगा मैं भुगत लूँगा।
भग्गु चुपचाप सिर हिलाकर चला गया। संतु डर से सहमा हुआ था और उसके कपड़े कीचड़ से गंदे हो गये थे। स्नानघर में ही नहीं, पूरे घर में मछलीयों जैसी गंध आ रही थी।
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