इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के संस्कृत द्रुतपाठाय (Second Sanskrit) के पाठ 24 (Narasya) “नरस्य ( नर का )” के अर्थ सहित व्याख्या को जानेंगे।
मित्रम् – धर्मः
शत्रुः – दोषः (अवगुणः)
आभूषणम् – सद्वाणी
गुरुः – पितरौ
ज्ञानम् – तत्त्वार्थसम्बोधः
दया सर्वसुखैषित्वम्
धर्मः – कर्तव्यपरायणता
कार्यम् – सर्वजीवकल्याणम्
अमूल्यं वस्तु – समय:
पूजास्थलम् – स्वकर्मस्थलम्
रक्षकः – स्वकर्म
हन्ता – स्वकर्म
ध्रुवसत्यम् – मृत्युः
आलोचनम् – आत्मालोचनम्
पुस्तकम् – संसारः
उपलब्धिः – परहितरक्षा
व्याधिः – हृदयपरितापः
अर्थ (Narasya)- मित्र धर्म है।
शत्रु – दोष (अवगुण) है।
आभूषण – सुन्दर वाणी है।
गुरु – माता-पिता हैं।
ज्ञान – तत्वार्थ की जानकारी है।
दया – सभी को सुखी देखने की भावना है।
धर्म – अपने कर्तव्य में लगा रहना है।
कार्य – सभी जीव के कल्याण में लगे रहना है।
अमूल्य वस्तु – समय है।
पूजा स्थल – अपना कर्म-स्थल है।
रक्षक – अपना कर्म है।
हत्यारा – अपना कर्म है।
अचल सत्य – मृत्यु है।
आलोचना योग्य – अपनी आलोचना करने योग्य है।
पुस्तक – संसार है।
उपलब्धि – दूसरों की हित की रक्षा करना है।
रोग – हृदय का पश्चाताप है।
अभ्यास
प्रश्न: 1. नरस्य आभूषणं किम् अस्ति?
उत्तरम्-नरस्य आभूषणं सदवाणी अस्ति ।
प्रश्न: 2. नरस्य को धर्मः?.
उत्तरम् नरस्य मित्रम् धर्मः।
प्रश्न: 3. नरस्य किं कार्यम् ?
उत्तरम् नरस्य सर्वजीव कल्याणम कार्यम् ?
प्रश्न: 4. नरस्य की शत्रुः?
उत्तरम्-नरस्य अवगुणः शत्रुः।
प्रश्न: 5. अनेन पाठेन का प्रेरणा प्राप्यते ?
उत्तरम् अनेन पाठेन प्रेरणा प्राप्यते यत्-मानवस्य धर्मः एव मित्रम् अवगुणः एव शत्रुः सवाणी एव आभूषणं अस्ति इत्यादि।
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