इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड के कक्षा 10 के भूगोल के इकाई चार ‘परिवहन, संचार एवं व्यापार’ (Parivahan Sanchar evam Vyapar) के महत्वपूर्ण टॉपिक को पढ़ेंगें।
इकाई-4
परिवहन, संचार एवं व्यापार (Parivahan Sanchar evam Vyapar )
परिवहन- वस्तुओं तथा यात्रियों को एक जगह से दूसरे जगह ले जाने की प्रक्रिया को परिवहन कहते हैं। किसी भी क्षेत्र या राष्ट्र के समुचित विकास में परिवहन एवं संचार के साधन आधार का काम करते हैं।
संचार- किसी भी सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने की प्रक्रिया को संचार कहते हैं।
व्यापार- एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सामानों के तबादला की प्रक्रिया को व्यापार कहते हैं।
परिवहन के प्रकार
दो स्थानों के बीच आने-जाने के लिए परिवहन साधनों की आवश्यकता पड़ती है। भारत में परिवहन के लिए सड़कमार्ग, रेलमार्ग, जलमार्ग, वायुमार्ग एवं पाईपलाईन की सुविधाएँ उपलब्ध है।
पहाड़ी क्षेत्रों में आने-जाने के लिए कई जगहों पर रज्जू मार्ग का विकास किया गया है। खास कर रज्जू मार्ग का विकास पर्यटन की दृष्टि से किया गया है।
1.सड़कमार्ग : सड़कमार्ग परिवहन का सबसे सामान्य, सुलभ एवं सुगम साधन है। इसका उपयोग एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में अवश्य करता है। भारत में लगभग 33 लाख किलोमीटर लंबी सड़क है। यह विश्व के सर्वाधिक सड़क जाल वाले देशों में स्थान रखता है। ग्रैंड ट्रंक रोड देश का सबसे पुरानी सड़क है। इस सड़क को शेरशाह सूरी द्वारा बनवाया गया था। यह कोलकाता से अमृतसर तक को जोड़ता है। आजकल इसे अमृतसर से दिल्ली तक राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-1 तथा दिल्ली से कोलकाता तक राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-2 के नाम से जाना जाता है।
भारत में सड़कों का विकास :
भारत में सड़कों के विकास का आरंभिक प्रमाण हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ों की सभ्यता में मिलते हैं।
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश में लगभग 2.42 लाख किलोमीटर कच्ची एवं 1.46 लाख किलोमीटर लंबी पक्की सड़कें थी।
देश में सड़कों की कुल लंबाई 1950-51 ई० में 4 लाख किलोमीटर थी जो 2006-07 में बढ़कर 33 लाख किलोमीटर हो गई।
पक्की सड़कों की लंबाई की दृष्टि से देश में पहला स्थान महाराष्ट्र का है। पक्की सड़कों की कम लंबाई वाला राज्य लक्षद्वीप है।
Parivahan Sanchar evam Vyapar
सड़कों का प्रकार :
हमारे देश में सड़कों को चार प्रकारों में बाँटा गया है।
1.राष्ट्रीय राजमार्ग 2. राज्य राजमार्ग 3. जिला की सड़कें 4. ग्रामीण सड़कें।
1.राष्ट्रीय राजमार्ग :
राष्ट्रीय राजमार्ग विभिन्न भागों, प्रांतों को आपस में जोड़ने का करता है। यह देश के एक छोर से दूसरे छोर तक फैला हुआ है। देश का सबसे लंबा राष्ट्रीय राजमार्ग-7 है। इसकी लंबाई 2369 किलोमीटर है। राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण एवं देखभाल का दायित्व केन्द्र सरकार को है। देश में कुल 228 राष्ट्रीय राजमार्ग है।
2.राज्य राजमार्ग
राज्य राजमार्ग राज्यों की राजधानियों को विभिन्न जिला मुख्यालयों से जोड़ने का काम करती है। इन सड़कों का निर्माण देखरेख की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है। देश में ऐसे सड़कों की लंबाई कुल सड़कों का मात्र 4 प्रतिशत है।
3.जिला सड़कें
जिला सड़कें राज्यों के विभिन्न जिला मुख्यालयों एवं शहरों को मिलाने का काम करती है। देश की कुल सड़कों का यह 14 प्रतिशत है। इन सड़कों का निर्माण देखरेख की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है।
4.ग्रामीण सड़कें :
ये सड़के विभिन्न गाँवों को जोड़ने का काम करती है। देश के कुल सड़कों का यह 80 प्रतिशत है।
5.सीमांत सड़के :
राजनीतिक एवं सामरिक दृष्टि से इस प्रकार के सड़कों का निर्माण सीमावर्त्ती क्षेत्रों में किया जाता है। इन सड़कों के रखरखाव सीमा सड़क संगठन करता है। युद्ध की स्थिति में इन सड़कों का उपयोग अधिक होता है। इन्हीं सड़कों के माध्यम से सीमा पर सैनिकों के लिए आवश्यक सामान भेजा जाता है।
रेलमार्ग :
भारत में रेल परिवहन का विकास 16 अप्रैल 1853 ई० से शुरू हुआ था। पहली बार रेलगाड़ी मुम्बई से थाणे के बीच 34 किलोमीटर की लंबाई में चली थी। इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने लाभ के उद्देश्य से रेलों का जाल बिछाने पर जोर दिया।
भारतीय रेलवे :
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में रेल परिवहन के विकास पर अधिक जोर दिया गया। भारतीय रेल परिवहन कई विशेषताओं से युक्त है। इनमें कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित है।
1.तीव्र गति से चलने वाली राजधानी एक्सप्रेस एवं शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेनों का परिचालन दो महानगरों के बीच किया जा रहा है।
2.छोटे शहरों को महानगरों एवं बड़े शहरों से जोड़ने के लिए जन-शताब्दी एक्सप्रेस गाड़ियाँ चलायी जा रही है।
3.1 अगस्त 1947 से रेल मंत्रालय ने रेल यात्री बीमा योजना शुरू की है।
4.कोलकाता और दिल्ली में मेट्रो रेल सेवा के तहत भूमिगत रेल सेवा दी जा रही है।
5.रेल संपत्तियों एवं रेल यात्रियों की सुरक्षा के लिए जी. आर. पी, एवं आर. पी. एफ की व्यवस्था की गई है।
6.पूर्वोतर राज्य में मेघालय एक ऐसा राज्य है जहाँ रेलमार्ग नहीं है।
7.भारतीय रेल प्रणाली एशिया की सबसे बड़ी तथा विश्व की तीसरी बड़ी रेल प्रणाली है।
8.विश्व की सबसे अधिक विद्युतीकृत रेलगाड़ीयाँ रूस के बाद भारत में ही चलती है।
भारतीय रेल प्रतिदिन लगभग 1.24 करोड़ यात्रियों को यातायात की सुविधा देती है।
पाइपलाइन मार्ग :
शहरों में घर-घर तक पानी को पहुँचाने के लिए पाइप का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रकार के मार्ग को पाइपलाइन मार्ग कहते हैं।
पाइपलाइन मार्ग का उपयोग तरल पदार्थों जैसे पेट्रोलियम के साथ ही गैस के परिवहन के लिए भी किया जाता है।
भारत में पाइपलाइन :
देश में कच्चे तेलों का उत्पादन क्षेत्रों से शोधनशालाओं तक तथा शोधन-शालाओं से तेल उत्पादों को बाजार तक पाइपलाइनों के माध्यम से भेजा जाता है।
शोधनशालाओं में कच्चे तेल से प्राप्त विभिन्न उत्पाद जैसे एल० पी० जी०, मोटर गैसोलीन, नेप्था, कैरोसीन वायुयान तेल, हाई स्पीड डीजल, लाइट डीजल, फरनेस तेल, ल्यूब ऑयल इत्यादि को पाइपलाइनों की सहायता से एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जाता है।
भारत में पाइपलाइन को मुख्य रूप से दो वर्गों में बाँटा गया है :-
1.तेल पाइपलाइन और
2.गैस पाइपलाइन
वायुमार्ग :
वायुमार्ग परिवहन का सबसे तीव्र, आधुनिक एवं महँगा साधन है। यह भारत में विभिन्न शहरों, मेगाशहरों, औद्योगिक एवं वाणिज्यिक केन्द्रों को एक-दूसरे से जोड़ने का काम करता है।
भारत में वायु परिवहन :
भारत में वायुपरिवहन का शुरूआत 1911 में इलाहाबाद से नैनी के बीच 10 किमी की छोटी-सी दूरी के उड़ान से हुआ था। यह उड़ान डाक ले जाने के लिए किया गया था।
1953 में वायु परिवहन का राष्ट्रीयकरण किया गया। भारत में लगभग 450 हवाई अड्डे हैं जिसमें 12 अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं।
वायु परिवहन एक ऐसा परिवहन है जिसके द्वारा जंगल, पहाड़, पठार, नदी, झील, सागर इत्यादि सभी को पार किया जा सकता है।
जलमार्ग :
जलमार्ग परिवहन का एक प्राचीन माध्यम रहा है। जलमार्ग दो प्रकार के होता है-
1.आंतरिक जलमार्ग और 2. अंतर्राष्ट्रीय जलमार्ग
1.आंतरिक जलमार्ग- आंतरिक जलमार्ग के अंतर्गत नदियों, नहरों तथा झीलों का उपयोग किया जाता है।
2.अंतर्राष्ट्रीय जलमार्ग- इसके माध्यम से विश्व के विभिन्न देशों से समुद्र के माध्यम से व्यापार किया जाता है। देश का 90 प्रतिशत व्यापार समुद्री मार्गों के माध्यम से होता है।
अंतर्राष्टीय व्यापार :
दो व्यक्तियों, राज्यों या देशों की बीच होने वाले सामानों एवं सेवाओं के क्रय विक्रय को ही ‘व्यापार‘ कहा जाता है।
आज के समय में विश्व के सभी देश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर निर्भर कर रहे हैं, इसका मुख्य कारण संसाधनों की क्षेत्रीय उपलब्धता या वितरण की असमानता का होना है, जबकि जरूरत सभी देशों को होती है।
भारत का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार :
भारत का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद 1950-51 में 1214 करोड़ रूपये का था, जो 1990-91 में 75751 करोड़ का तथा 2007-08 में बढ़कर 1605022 करोड़ रूपए का हो गया। (Parivahan Sanchar evam Vyapar )
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