इस पोस्ट में हम दसवीं वर्ग के संस्कृत पियूषम् भाग 2 के दूसरा पाठ (Patliputra Vaibhavam) “पाटलिपुत्रवैभवम् ( पाटलिपुत्र का वैभव )” के अर्थ सहित व्याख्या को जानेंगे।
2. पाटलिपुत्रवैभवम् ( पाटलिपुत्र का वैभव ) (Patliputra Vaibhavam)
पाठ परिचय- इसमें बिहार की राजधानी पटना के प्राचीन महत्व का निरूपण करने के साथ ऐतिहासिक परम्परा से आधुनिक राजधानी के प्रसिद्ध स्थलों का भी निरूपण किया गया है।
बिहारराज्यस्य राजधानीनगरं पाटलिपुत्रं सर्वेषु कालेषु महत्वमधारयत्। अस्येतिहासः सार्धसहस्रद्वयवर्षपरिमितः वर्तते। अत्र धार्मिकक्षेत्रं राजनीतिक्षेत्रम् उद्योगक्षेत्रं च विशेषेण ध्यानाकर्षकम्।
बिहार राज्य की राजधानी पटना शहर सभी समयों में महत्वशाली रहा है । इसका इतिहास 2500 वर्षों का है । यहाँ धार्मिक स्थान, राजनितिक स्थान और औद्योगिक स्थान विशेष रूप से आकर्षक है।
वैदेशिकाः यात्रिणः मेगास्थनीज-फाह्यान-हुयेनसांग-इत्सिंगप्रभृतयः पाटलीपुत्रस्य वर्णनं स्व-स्व संस्मरणग्रन्थेषु चक्रुः। पाठेऽस्मिन् पाटलिपुत्रवैभवस्य सामान्यः परिचयो वर्तते।
विदेशी यात्री मेगास्थनीज, फाह्यान, ह्वेनसांग तथा इत्सिंग आदि ने पटना का वर्णन अपने-अपने ग्रंथों में किया है ।
2. पाटलिपुत्रवैभवम् ( पाटलिपुत्र का वैभव ) (Patliputra Vaibhavam)
प्राचिनेषु भारतियेषु नगरेष्वन्यतमं पाटलिपुत्रमनुगङ्गं वसद्विचित्रं महानगरं बभूव । तद्विषये दामोदरगुप्तो नाम कविः कुट्टनीमताख्ये काव्य कथयति-
प्राचीन भारतीय नगरों में अग्रणी पटना गंगा किनारे बसा विचित्र महानगर है । इसके विषय में दामोदर गुप्त नामक कवि ने कुट्टनीमताख्य काव्य में कहा है कि-
अस्ति महीतलतिलकं सरस्वतीकुलगृहं महानगरम् ।
नाम्ना पाटलिपुत्रं परिभूतपुरन्दरस्थानम् ।।
पृथ्वी पर पाटलिपुत्र नामक नगर शिक्षा और वैभव की दृष्टि से अतिगौरवशाली इन्द्रलोक के समान है ।
इतिहासे श्रुयते यत् गंगायास्तीरे बुध्दकाले पाटलिग्रामः स्थितः आसीत् । यत्र च भगवान बुध्दः बहुकृत्वः समागतः । तेन कथितमासीत् यद् ग्रामोऽयं महानगरं भविष्यति किन्तु कलहस्य अग्निदाहस्य जलपूरस्य च भयात् सर्वदाक्रान्तं भविष्यति ।
इतिहास में सुना जाता है कि भगवान बुध्द के समय गंगा नदी के तट पर पाटलि नामक ग्राम अवस्थित था और भगवान बुद्ध कई बार आए थे । उनके द्वारा कहा गया था कि यह गाँव महानगर होगा । लेकिन लडाई-झगड़ा, अगलगी और बाढ़ के भय से हमेशा घिरा होगा ।
कालान्तरेण पाटलिग्रामः एव पाटलिपुत्रमिति कथितः । चन्द्रगुप्तमौर्यस्य काले अस्य नगरस्य शोभा रक्षाव्यवस्था च अत्युत्कृष्टासीदिति। यूनानराजदूतः मेगास्थनीजः स्वसंस्मरणेषु निरूपयति । अस्य नगरस्य वैभवं प्रियदर्शिनः अशोकस्य समये सुतरां समृध्दम् ।
बाद में यही पाटलि ग्राम पाटलिपुत्र नगर के रूप में प्रसिद्ध हुआ । चन्द्रगुप्तमौर्य के समय इस नगर की शोभा तथा रक्षा व्यवस्था अति उतम थी, जिसका वर्णन यूनानी राजदूत मेगास्थनीज ने अपनी आत्मकथा में लिखा है । इस नगर की सम्मपन्नता अशोक के समय में और अधिक थी ।
बहुकालं पाटलिपुत्रस्य प्राचीना सरस्वतीपरम्परा प्रावर्तत इति राजशेखरः स्वकाव्यमीमांसा-नामके कविशिक्षाप्रमुखे ग्रन्थे सादरं स्मरति ।
बहुत समय तक पाटलिपुत्र की प्राचीन शिक्षा-परंपरा चलती रही । यह राजशेखर नामक कवि ने अपनी काव्यमीमांसा नामक ग्रंथ में आदरपूर्वक वर्णन करता है ।
अत्रोपवर्षवर्षाविह पाणिनिपिङ्गलाविह व्याडिः ।
वररूचिपतंंजलि इह परीक्षिताः ख्यातिमुपजग्मुः ।।
यहाँ वर्ष-उपवर्ष पाणिनि, पिंगल, व्याडि, वररूचि, पतंजली, आदि लोगों ने ज्ञान का विस्तार किया और ख्याति पाई ।
कतिपयेषु प्राचीनसंस्कृतग्रन्थेषु पुराणादिषु पाटलिपुत्रस्य नातान्तरं पुष्पपुरं कुसुमपुरं वा प्राप्यते । अनेन ज्ञायते यत् नगरस्यास्य समीपे पुष्पाणां बहुमुत्पादनं भवति स्म ।
कुछ प्राचीन ग्रंथों तथा पुराणों में पाटलिपुत्र का दूसरा नाम पुष्पपुर या कुसुमपुर भी देखने को मिलता है । इससे पता चलता है कि नगर के समीप फूलों का उत्पादन अधिक होता था ।
पाटलिपुत्रमिति शब्दोपि पाटलपुष्पाणां पु पुत्तलिकारचनामाश्रित्य प्रचलितः शरतकाले नगरेस्मिन् कौमुदीमहोत्सवः इति महान् समारोहः गुप्तवंशशासनकाले अतीव प्रचलितः । तत्र सर्वे जनाः आनन्दमग्नाः अभूवन् । सम्प्रति दुर्गापूजावसरे तादृशः एव समारोहः दृश्यते ।
पाटलिपुत्र शब्द भी गुलाब फुलों के नाम का आश्रय लेकर रखा गया, ऐसा पुतलिका रचना में वर्णित है । गुप्तवंश के शासन काल में इस नगर में शरद् ऋतु में कौमुदी महोत्सव अति प्रचलित था । इस अवसर पर लोग अति प्रसन्न रहते थे । इस समय दुर्गापूजा के अवसर पर वैसा ही दृश्य देखने को मिलते है।
कालचक्रवशाद् यद्यपि मध्यकाले पाटलिपुत्रं वर्षसहस्रपरिमितं जीर्णत्रामन्वभूत् । तस्य संकेतः अनेकेषु साहित्यग्रन्थेषू मुद्राराक्षसादिषू लभ्यते । मुगलवंशकाले अस्य नगरस्य समुध्दारो जातः । आंग्लशासनकाले च पाटलिपुत्रस्य सुतरां विकासो जातः ।
समय परिवर्तन के कारण मध्यकाल में पाटलिपुत्र हजार वर्षों तक पिछड़ा रहा। इसकी जानकारी अनेक साहित्य ग्रंथों एवं मुद्राराक्षस नाटक में मिलती है। मुगल शासनकाल में इस नगर का विकास हुआ तथा अंग्रेज शासनकाल में इस नगर का काफी विकास हुआ।
नगरमिदं मध्यकाले एव पटनेति नाम्ना प्रसिध्दिमगात् । अयं च शब्दः पत्तनमिति शब्दात् निर्गतः । नगरस्य पालिका देवी पटनदेवीति अद्यापि पूज्यते ।
यह नगर मध्यकाल में ही पटना नाम से प्रसिद्ध हुआ और यह शब्द पत्तन शब्द से बना है । नगर का पालन और रक्षा करने वाली पटनदेवी आज भी पूजी जाती है ।
सम्प्रति पाटलिपुत्रम् (पटना नाम नगरम्) अति विशालं वर्तते बिहारस्य राजधानी चास्ति । अनुदिनं नगरस्य विस्तारः भवति । अस्योत्तरस्यां दिशि गंगा नदी प्रवहति । तस्या उपरि गाँधीसेतुर्नाम एशियामहादेशस्य दीर्घतमः सेतुः किञ्च रेलयानसेतुरपि निर्मीयमानो वर्तते ।
इस समय पाटलिपुत्र अर्थात् पटना नामक नगर अति विशाल बिहार राज्य की राजधानी है। आये दिन इसका विस्तार हो रहा है। इस नगर की उत्तर दिशा में गंगा नदी बहती है। इसके ऊपर एशिया महादेश का सबसे लम्बा पुल गाँधी सेतु बना हुआ है और रेलपुल का निमार्ण हो रहा है ।
नगरेस्मिन् उत्कृष्टः संग्रहालयः, उच्चन्यायालयः, सचिवालयः, गोलगृहम्, तारामण्डलम्, जैविकोद्यानम्, मौर्यकालिकः अवशेषः, महावीरमन्दिरम्-इत्येते दर्शनीयाः सन्ति । प्राचीनपटनानगरे सिखसम्प्रदायस्य पूजनीयं स्थलं दशमगुरोः गोविन्दसिंहस्य जन्मस्थानं गुरूद्वारेति नाम्ना प्रसिद्धं वर्तते । तत्र देशस्यास्य तीर्थयात्रिणः दर्शनार्थमायन्ति ।
इस नगर में उत्कृष्ट संग्रहालय, उच्च न्यायालय, सचिवालय, गोलघर, तारामण्डल, जैविक उद्यान, मौर्यकालिक अवशेष, महावीर मन्दिर आदि दर्शनीय स्थल है। प्राचीन पटना नगर में सिख सम्प्रदाय के पूजनीय स्थल गुरूद्वारा दसवें गुरू गोविंद सिंह का जन्म स्थान है । यहाँ देश के विभिन्न क्षेत्रों के तीर्थ यात्रा दर्शन के लिए आते हैं ।
एवं पाटलिपुत्रं प्राचीनकालात् अद्यावधि विभिन्नेषु क्षेत्रेषु वैभवं धारयति सर्वं च संकलितरूपेण संग्रहालये दर्शनीयमिति । पर्यटनमानचित्रे नरमिदं महत्त्वपूर्णम् ।
इस प्रकार पाटलिपुत्र प्राचीन काल से आजतक विभिन्न क्षेत्रों में वैभव धारण किया है और संग्रहालय के समान दर्शनीय है । पयर्टन की दृष्टि से यह नगर अति महत्वपुर्ण है।
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