इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के अहिन्दी (Non Hindi) के पाठ 14 (Pipal Kavita) “पीपल” के व्याख्या को जानेंगे। इस पाठ के लेखक गोपाल सिंह ‘नेपाली’ हैं, जिसके माध्यम से कवि ने प्रकृति के अलग-अलग रूपों का परिचय कराया है।
पाठ परिचय- प्रस्तुत कविता प्रकृति के विविध रूपों से हमारा आत्मीय परिचय कराती है। कविता के केन्द्र में प्राचीन पीपल के वृक्ष है जो अनेक बदलावों का साक्षी है।
14. पीपल
पाठ का सारांश (Pipal Kavita)
’पीपल’ नामक शीर्षक कविता में गोपाल सिंह नेपाली ने प्रकृति के विविध रूपों से हमारा आत्मीय परिचय कराया है। यह प्राचीन वृक्ष है जो अनेक बदलावों का साक्षी है। ऊपर नीला आसमान और नीचे नदी, झील, जामुन, तमाल और करील फैले हैं।
पानी से कमल के ढंडल ऊपर ऊठे हैं जिसमें लाल कमल के फूल खिले हैं। हंस क्रीड़ा कर रहे हैं। ऊंचे टीले झरने झर-झर कर गिर रहे हैं। पीपल के गोल-गोल पत्ते डोल-डोल कर कुछ कह रहे हैं।
जब वर्षा होती है पंछी की मधुर आवाज गुंजने लगती है। कोमल पŸो हिलने लगते हैं। पत्ते सर्सर, मर्मर की मधुर आवाज करने लगते हैं।
बुलबुल चह-चह कर गाती है और नदियों से बह-बह की मधुर आवाज निकलती है। सूर्य के अस्त होते ही चील, कोक आदि अपने पीपल के कोटर में आ जाते हैं।
पीपल के कोटर भर जाता है। प्राणी को नींद आ जाती है निंद्रा में ही रात कट जाती है।
इस धरती का यह जंगली, भाग अलग-थलग और शांत है। शाल, बाँस खड़े हैं, पशु नरम घास चरते हैं।
झरना और नदी के पास रात भर चकोर रोकर रात बिताते हैं। यहाँ मोर नाचते हैं। पथिकों को यहाँ प्यास बुझती है। यहाँ यूँ ही नींद आती है और इसका निवास यही है।
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