इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड के कक्षा 10 के भूगोल के आपदा प्रबंधन के इकाई दो का पाठ ‘प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन : बाढ़ और सुखाड़’ (Prakritik Aapda evam Prabandhan Badh aur Sukhad) के महत्वपूर्ण टॉपिक को पढ़ेंगें।
इकाई : 2
प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन : बाढ़ और सुखाड़ (Prakritik Aapda evam Prabandhan Badh aur Sukhad)
बाढ़ और सुखाड़ ऐसी प्राकृतिक आपदा है, जिसका संबंध वर्षा से है।
बाढ़- जब मॉनसूनी वर्षा अधिक होती है, और नदियों के जलस्तर में उफान आ जाता है, तो ऐसी स्थिति को बाढ़ कहते हैं।
सुखाड़- जब वर्षा ऋतु में आसमान से बादल गायब हो जाता है, तेज धूप निकल आती है, कृषक खेत में काम नहीं कर पाते हैं और पीने की पानी की भी किल्लत हो जाती है, तो ऐसी स्थिति को सुखाड़ कहते हैं।
मॉनसून की अनिश्चितता के कारण भारत के किसी न किसी भाग में प्रतिवर्ष बाढ़ आते हैं। बाढ़ लाने के लिए कुछ नदीयाँ बदनाम हो चूकी है। जैसे, बिहार में कोसी नदी, पश्चिम बंगाल में दामोदर और तिस्ता नदी, असम में बह्मपुत्र, आंध्र प्रदेश में कृष्णा और गुजरात में नर्मदा नदी समय-समय पर कहर ला चूकी है।
बांग्लादेश : बाढ़ का देश
यहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ आते हैं और हजारों लोग इसकी चपेट में आते हैं। यहाँ के लोग मकानों का गिरना, महामारी फैलना और फसलों की बर्बादी से आदि हो चूके हैं। बाढ़ बर्बादी के अलावा लाभ भी देता है। यह मिट्टी को खनिज ह्यूमस और प्राकृतिक उर्वरक प्रदान करता है, जिससे यहाँ की मिट्टी विश्व की उपजाऊ मिट्टी में से एक है। यह दुनिया के सबसे घने देशों में से एक है। बाढ़ के जल उतरते ही किसान खुशी के गीत गाते है। बाढ़ की भूमि फसलों से लहलहा उठते हैं।
Prakritik Aapda evam Prabandhan Badh aur Sukhad
बाढ़ प्रबंधन : बाँध और तटबंध का निर्माण :
बाढ़ के विनाशलीला को रोकने के लिए बाँध और तटबंध का निर्माण किया जाता है।
बाढ़ रोकने के वैकल्पिक प्रबंधन
तटबंध टिकाउ प्रबंध नहीं है। इनके टूटने से और अधिक भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है। बाढ़ के लिए टिकाउ प्रबंध के लिए निम्नलिखित प्रयास करना चाहिए।
1.ऐसे भवनों का निर्माण करना चाहिए जिसकी लागत कम हो।
2.लोगों को मकान बनाने से पहले यह जानकारी देना चाहिए कि मकानों का निर्माण नदी के तट पर न हो।
3.मकानों की नींव तथा दीवार सीमेंट और कंक्रीट की होनी चाहिए।
4.स्तंभ आधारित मकान होनी चाहिए तथा स्तंभ की गहाई अधिक होनी चाहिए।
पूर्व सूचना का प्रबंधन :
1.बाढ़ ग्रसित क्षेत्रों में लोगों को तैरने का प्रशिक्षण देना चाहिए।
2.बाढ़ से महामारी फैल जाती है। इसलिए इससे बचने के लिए डी. डी. टी. का छिड़काव, ब्लींचिंग पाउडर का छिड़काव और मृत जानवरों को शीघ्र हटाने की व्यवस्था होनी चाहिए।
3.बाढ़ में एक दूसरे की मदद बिना किसी भेद-भाव के करना चाहिए।
बाढ़ एक ऐसी आपदा है, जिसे पूर्ण रूप से रोकना असंभव है। इसलिए बाढ़ की विभीषिका में भी हँस-खेल कर जीने की कला विकसित करना है। यही इसका सबसे बड़ा प्रबंधन है।
सुखाड़ और इसका प्रबंधन :
वर्षा की भारी कमी के कारण सुखाड़ की स्थिति उत्पन्न होती है। सुखाड़ से तीन बड़ी समस्या होती है-
1.फसल न लगने से खाद्यान्न में कमी, 2. पेयजल की कमी, 3. मवेशीयों के लिए चारे की कमी।
भारत में सुखाड़ के क्षेत्र :
भारत सरकार ने 77 जिलों की पहचान की है, जहाँ सुखाड सुखाड़ की संभावना प्रतिवर्ष रहती है। ये जिले मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, मघ्य-प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में स्थित है।
सुखाड़ प्रबंधन :
सुखाड़ से प्रबंधन के लिए दो प्रकार की योजनाऐं आवश्यक है- दीर्घकालीन और लघुकालीन योजनाऐं
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दीर्घकालीन योजना के अंतर्गत- नहर, तालाब, कुआँ के विकास की जरूरत है। पंजाब और हरियाणा में नहरों का जाल बिछाकर सुखाड़ की समस्या का समाधान किया गया है।
लघुकालीन योजना के अंतर्गत- बोरिंग और टयूववेल के माध्यम से सुखाड़ के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
भूमिगत जल क्या है ?
भूमि के अंदर स्थित जल को भूमिगत जल कहते हैं। कुँए और बोरिंग के माध्यम से तथा ऊर्जा चालित मशीनों की मदद से इस जल के दोहन में लगातार वृद्धि हो रही है।
इससे भूमिगत जल में गिरावट के साथ पारिस्थैतिक असंतुलन की समस्या उत्पन्न होने लगी है।
ड्रिप सिंचाई एवं छिड़काव सिंचाई के माध्यम से भूमिगत जल का उपयोग पारिस्थितिकी के अनुसार किया जा सकता है।
भूमिगत जल स्तर बढ़ाने के लिए वर्षा जल संग्रहण तथा वाटर शेड मैनेजमेंट एवं घास और वन लगाने जैसी कई योजना बनाई गयी है।
वर्षा जल संग्रहण :
वर्षा के जल को संग्रह करना ही वर्षा जल संग्रहण कहलाता है।
मकान के छत से वर्षा के जल को पाइप के द्वारा किसी टंकी में संग्रहित किया जाता है और फिर नल द्वारा मकान के लोग इसे पीते हैं। वर्षा के पानी से गार्डेन, बगीचे की सिंचाई भी संभव होती है। भारत के कई राज्यों में इसका संग्रह कुंड या तालाब बनाकर किया जाता है।
वर्षा जल संग्रहण से भूमिगत जल स्तर में बढ़ोतरी होती है तथा मवेशीयों और पौधों को भी जल मिलता है।
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