इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड के कक्षा 10 के अर्थशास्त्र के पाठ दो ‘राज्य एवं राष्ट्र की आय (Rajya Evam Rastra Ki Aay)‘ के सभी महत्वपूर्ण टॉपिक को पढ़ेंगें।
Bihar Board Class 10 Economics पाठ दो राज्य एवं राष्ट्र की आय – Rajya Evam Rastra Ki Aay
आयः- समाज का हर व्यक्ति अपने परिश्रम के द्वारा जो अर्जित करता है, वह अर्जित संपत्ति उसकी आय मानी जाती है। व्यक्ति को प्राप्त होनेवाला आय मौद्रिक के रूप में, अथवा वस्तुओं के रूप में भी हो सकता है।
अर्थात,
जब कोई व्यक्ति किसी प्रकार का शारीरीक अथवा मानसिक कार्य करता है और उस कार्यों के बदले में जो पारिश्रमिक मिलता है, उसे उस व्यक्ति की आय कहते हैं।
बिहार की आयः- सामान्यतः हम यह जानते हैं कि गरीबी गरीबी को जन्म देता है। इसी कथन को प्रसि़द्ध अर्थशास्त्री रैगनर नक्स ने गरीबी के कुचक्र के रूप में व्यक्त किया है।
भारत के सभी 28 राज्यों एवं 8 केन्द्र शासित प्रदेशों में सर्वाधिक प्रति व्यक्ति आय चडीगढ़ का है। गोवा में प्रति व्यक्ति आय 54,850 रूपये तथा दिल्ली में यह 50,565 रूपये बताई गई है और तीसरे स्थान पर इस बार हरियाणा ने पंजाब को पीछे छोड़ दिया है।
Bihar Board Class 10 Economics पाठ दो राज्य एवं राष्ट्र की आय – Rajya Evam Rastra Ki Aay
राष्ट्रीय आयः- राष्ट्रीय आय का मतलब किसी देश में एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के कुल मूल्य से लगाया जाता है। वर्ष भर में किसी देश में अर्जित आय की कुल मात्रा को राष्ट्रीय आय कहा जाता हैं।
राष्ट्रीय आय की धारणा को हम निम्नलिखित आयामों के द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
राष्ट्रीय आय की धारणा-
1.सकल घरेलू उत्पाद
2.कुल या सकल राष्ट्रीय उत्पादन
3.शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन
सकल घरेलू उत्पादः- एक देश की सीमा के अन्दर किसी भी दी गई समयावधि, प्रायः एक वर्ष में उत्पादित समस्त अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं का कूल बाजार या मौद्रिक मूल्य, उस देश का सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है।
2.कुल या सकल राष्ट्रीय उत्पादनः- किसी देश में एक साल के अर्न्तगत जितनी वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन होता है उनके मौद्रिक मूल्य को कुल राष्ट्रीय उत्पादन कहते हैं। कुल राष्ट्रीय उत्पादन तथा सकल घरंलू उत्पादन में अंतर हैं। कुल राष्ट्रीय उत्पादन का पता लगाने के लिए सकल घरेलू उत्पादन में देशवासियों द्वारा विदेशों में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मुल्य को जोड़ दिया जाता है तथा विदेशियों द्वारा देश में उत्पादित वस्तुओं के मूल्य को घटा दिया जाता है।
3.शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादनः- कुल राष्ट्रीय उत्पादन को प्राप्त करने के लिए हमें कुछ खर्चा करना पड़ता है। अतः कुल राष्ट्रीय उत्पादन में से इन खर्चों को घटा देने से जो शेष बचता है वह शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन कहलाता हैं। कुल राष्ट्रीय उत्पादन में से कच्चा माल की कीमत पूँजी की घिसावट एवं मरम्मत पर किए गए व्यय, कर एवं बीमा का व्यय घटा देने से जो बचता है, उसे शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन कहते हैं।
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भारत का राष्ट्रीय आय- ऐतिहासिक परिवेश
सबसे पहले भारत में 1868 ई0 में दादा भाई नौरोजी ने राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाया था। उस समय वे प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय 20 रूपया बताया था।
1948-49 के लिए देश की कुल राष्ट्रीय आय 8,650 करोड़ थी तथा प्रति व्यक्ति आय 246.9 रुपया थी।
1954 में राष्ट्रीय आंकड़ों का संकलन करने के लिए सरकार ने केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन की स्थापना की। यह संस्था नियमित रूप से राष्ट्रीय आय के आँकड़े प्रकाशित करती है।
प्रति-व्यक्ति आय
राष्ट्रीय आय में देश की कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है उसे प्रति-व्यक्ति आय कहते हैं।
प्रतिव्यक्ति आय = राष्ट्रीय आय/कुल जनसंख्या
भारत का राष्ट्रीय आय काफी कम है तथा प्रति-व्यक्ति आय का स्तर भी बहुत नीचा है। विश्व विकास रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2007 में भारत की प्रति-व्यक्ति आय 950 डॉलर था। भारत की प्रति-व्यक्ति आय अमेरिका के प्रति-व्यक्ति आय का लगभग 1/48 है।
अमेरिका का प्रतिव्यक्ति आय 46,040 डॉलर है।
इंगलैंड का प्रतिव्यक्ति आय 42,740 डॉलर है।
बंग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय 870 डॉलर है।
राष्ट्रीय आय की गणना में कठिनाइयाँ
1.आँकड़े को एकत्र करने में कठिनाई
2.दोहरी गणना की सम्भावना
3.मूल्य मापने में कठिनाई
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विकास में राष्ट्रीय एवं प्रति-व्यक्ति आय का योगदान
किसी भी राष्ट्र की सम्पन्नता अथवा विपन्नता वहाँ के लोगों की प्रति-व्यक्ति आय या संयुक्त रूप से सभी व्यक्तियों के आय के योग जिसे राष्ट्रीय आय कहते हैं के माध्यम से जाना जाता है। राष्ट्रीय आय और प्रति-व्यक्ति आय ही राष्ट्र के आर्थिक विकास का सही मापदंड है। बिना उत्पाद को बढ़ाए लोगों की आय में वृद्धि नहीं हो सकती है और न ही आर्थिक विकास हो सकता है।
राष्ट्रीय आय एवं प्रति-व्यक्ति आय में परिवर्तन होने से इसका प्रभाव लोगों के जीवन-स्तर पर पड़ता है।
जिस अनुपात में राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है, यदि उसी अनुपात में यदि जनसंख्या में वृद्धि हो रही हो तो समाज का आर्थिक विकास नहीं बढ़ सकता है।
यदि राष्ट्रीय आय एवं प्रति-व्यक्ति आय में वृद्धि होती है तो समाज के आर्थिक विकास में भी वृद्धि होगी तथा राष्ट्रीय आय एवं प्रति-व्यक्ति आय में कमी होने से समाज के आर्थिक विकास में भी कमी होगी।
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