Bihar Board Class 7 Social Science History Ch 6 शहर, व्‍यापार एवं कारीगर | Sahar Vyapari Evam Karigar Class 7th Solutions

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 7 सामाजिक विज्ञान इतिहास के पाठ 6. शहर, व्‍यापार एवं कारीगर (Sahar Vyapari Evam Karigar Class 7th Solutions)के सभी टॉपिकों के बारे में अध्‍ययन करेंगे। 

Sahar Vyapari Evam Karigar Class 7th Solutions

6. शहर, व्‍यापार एवं कारीगर

अभ्यास : प्रश्न तथा उनके उत्तर

फिर से याद करें

प्रश्न 1. शासक, व्यापारी एवं धनाढ्य लोग मंदिर क्यों बनवाते थे ?
उत्तर—शासक, व्यापारी एवं धनाढ्य लोग मंदिर इसलिये बनवाते थे ताकि उनकी धार्मिक आस्था का प्रकटीकरण हो सके । नाम कमाने के साथ पुण्य कमाने की इच्छा भी रहती होगी। अपने को शक्तिशाली और धनी होने की धाक जमाना भी कारण रहा होगा ।

प्रश्न 2. शहरों में कौन-कौन लोग रहते थे ?
उत्तर – शहरों में व्यापारी, दस्तकार, शिल्पी, आभूषण बनाने वाले, सब्जी बेचने वाले, जूता बनाने वाले, रंगरेज आदि रहते थे । व्यापारियों में अनाज बेचने वाले और कपड़ा बेचने वाले दोनों रहते थे। बड़े शहरों में थोक खरीद बिक्री भी होता था ।

प्रश्न 3. व्यापारिक वस्तुओं के यातायात के क्या साधन थे ?
उत्तर—व्यापारिक वस्तुओं के यातायात के लिये सड़क विकसित थे। सड़कों पर बैलगाड़ी, घोड़ा, खच्चर सामान ढोने के साधन थे । दूर-दराज का व्यापार नदी मार्गों से होता था । तटीय क्षेत्रों में समुद्री मार्ग का उपयोग भी होता था । बन्दरगाहों को अच्छी सड़कों द्वारा जोड़ा गया था । विदेश व्यापार समुद्री जहाजों द्वारा होता था । ऊँट भी सामान ढोने के अच्छे साधन थे ।

प्रश्न 4. सतरहवीं शताब्दी में किन यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों का भारत में आगमन हुआ ?
उत्तर- सतरहवीं शताब्दी में अंग्रेज, हॉलैंड (डच) और फ्रांस के यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों का आगमन हुआ । पुर्तगाली पन्द्रहवीं शताब्दी में ही आ चुके थे ।

प्रश्न 5. सुमेल करें :
(क) मंदिर नगर                      (i) दिल्ली
(ख) तीर्थ स्थल                       (ii) तिरुपति
(ग) प्रशासनिक नगर              (iii) गोआ
(घ) बन्दरगाह नगर                (iv) पटना
(ङ) वाणिज्यिक नगर             (v) पुष्कर

उत्तर : (क) मंदिर नगर            (ii) तिरुपति
(ख) तीर्थ स्थल                    (v) पुष्कर
(ग) प्रशासनिक नगर              (i) दिल्ली
(घ) बन्दरगाह नगर                 (iii) गोआ
(ङ) वाणिज्यिक नगर              (iv) पटना

आइए समझें :

प्रश्न 6. मध्यकालीन भारत में आयात-निर्यात की वस्तुओं की सूची बनाइए
उत्तर— मध्यकालीन भारत में आयात-निर्यात की वस्तुओं की सूची निम्न है

निर्यात की वस्तुएँ                    आयात की वस्तुएँ
मसाले                                       ऊनी वस्त्र
सूती कपड़े                                सोना
नील                                         चाँदी
जड़ी-बूटी                                हाथी दाँत
खाद्य सामग्री                           खजूर सूखे मेवे
सूती धागा                              रेशम (चीन से )

प्रश्न 7. भारत में यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के आगमन के कारणों को रेखांकित कीजिए ।
उत्तर—यूरोपीय व्यापारियों को भारतीय मसालों और बारीक मलमल की भनक लग गई थी। पहले तो भारतीय व्यापारी ये वस्तुएँ लेकर यूरोप जाते थे और वहाँ से सोना- चाँदी लादकर समुद्री जहाजों से भारत लाते थे। बाद में फारस के व्यापारी मध्यस्थ बन गए और वे भारत से माल लेकर यूरोप जाने लगे । यूरोपीय व्यापारी यह काम स्वयं करना चाहते थे । उन्हें किसी की मध्यस्थता स्वीकार नहीं था ।

सबसे पहले पुर्तगाल का एक नाविक 1498 में वहाँ की सरकार की मदद से भारत पहुँचने का निश्चय किया। उसने उत्तमाशा अंतरीप का मार्ग पकड़ा और भारतीय तट पर पहुँचने में सफलता पाई । यहाँ से उसने स्वयं व्यापार करना आरम्भ किया ।

इसके बाद इंग्लैंड, हॉलैंड और फ्रांस का ध्यान इस ओर गया। ये भी सत्रहवीं शताब्दी में भारत पहुँच गये और व्यापार करना आरम्भ किया । अंग्रेजों ने कपड़े खरीदने पर अधिक ध्यान दिया । इसके लिये ये दलालों के मार्फत करघा चालकों को अग्रिम रकम भी देने लगे। आगे चलकर विभिन्न स्थानों में इन विदेशियों ने अपनी-अपनी कोठियाँ बनाईं। यूरोपीय कम्पनियों के भारतीय दलाल ‘दादनी’ कहलाते थे ।

प्रश्न 8. आपके विचार से मंदिरों के आसपास नगर क्यों विकसित हुए?
उत्तर—हम सभी जानते हैं कि भारत एक धर्म प्रधान देश रहा है। देवी-देवताओं के प्रति यहाँ के लोगों के मन में अपार श्रद्धा रहती आई है । अतः जहाँ-जहाँ मंदिर बने वहाँ-वहाँ दर्शनार्थियों की भीड़ जुटने लगी । अधिक लोगों के आवागमन के कारण उनके उपयोग. की वस्तुओं की दुकानें खुलने लगीं। बाद में स्थानीय लोग भी इन उत्पादों को खरीदने लगे । इसी तरह क्रमशः मंदिरों के आसपास नगर विकसित हो गए ।

प्रश्न 9. लोगों के जीवन में मेले एवं हाटों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर—लोगों के जीवन में मेले एवं हाटों की भूमिका बड़े महत्व की थी । हाटों से वे नित्य उपयोग की वस्तुएँ खरीदते थे । जो अन्न या सब्जी वे नहीं उपजा पाते थे, उन्हें वे हाटों से खरीदते थे । मेलों का महत्व इस बात में था कि उत्कृष्ट वस्तुएँ मेलों में ही उपलब्ध होती थीं । देश भर के कलाकार और शिल्पी अपने उत्पाद लेकर मेलों में आते थे । वे ऐसी वस्तुएँ हुआ करती थीं जो सामान्यतः हाट-बाजारों में उपलब्ध नहीं होती थीं लोग मेलों का बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा करते थे । वहाँ मनोरंजन के साधन भी उपलब्ध हो जाते थे ।

आइए विचार करें :

प्रश्न 10. इस अध्याय में वर्णित शहरों की तुलना अपने जिले में स्थित शहरों से करें । क्या दोनों के बीच कोई समानता या असमानता है ?
उत्तर—इस अध्याय में वर्णित शहर चहारदीवारियों से घिरे होते थे लेकिन हमारे जिले का शहर चारों से खुला है । वर्णित शहर जैसे हमारे जिले में भी खास-खास वस्तुओं के खास-खास मुहल्ले हैं । यहाँ थोक और खुदरा — दोनों प्रकार के व्यापार हैं। जिलों में सरकारी अधिकारी भी रहते हैं । राज्य कर्मचारियों के अलावा व्यापारियों के कर्मचारी भी रहते हैं । हमारे जिले के शहर में सड़क और पानी की व्यवस्था के लिए नगरपालिका है जबकि वर्णित शहरों में इनका कोई उल्लेख नहीं है। रात में सड़कों पर रोशनी का प्रबंध है जबकि वर्णित शहरों में इनका कोई उल्लेख नहीं है ।

प्रश्न 11. धातुमूर्ति निर्माण के लुप्त मोम तकनीक के क्या लाभ हैं?
उत्तर- धातुमूर्ति निर्माण के लुप्त मोम तकनीक के अनेक लाभ थे । पहला लाभ यह था कि इस तकनीक से मनचाही आकृति की मूर्ति बनाई जाती थी। मोम बर्बाद नहीं तो होता था। पिघलाकर निकालने के बाद उसे पुनः ठोस रूप में प्राप्त कर लिया जाता था। इस तकनीक में कम ही समय में अधिक मूर्तियाँ बनाई जा सकती थीं ।

आइए करके देखें :

इसके तहत दोनों प्रश्न परियोजना कार्य हैं। छात्र इन्हें स्वयं करें ।

कुछ अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न तथा उनके उत्तर

प्रश्न 1. मंदिरों के निर्माण तथा उनके रख-रखाव के लिए शिल्पीजन कितने महत्वपूर्ण थे ?
उत्तर—मंदिरों के निर्माण तथा उनके रख-रखाव के लिए शिल्पीजन अत्यन्त महत्वपूर्ण थे। केवल पारिश्रमिक प्राप्त कर लेना भर उनका उद्देश्य नहीं था। असल थी उनके अन्दर की आस्था । बिना आस्था या विश्वास के इतने विशाल मंदिरों का निर्माण हो ही नहीं सकता था। बड़े-बड़े पत्थरों को काट कर जो मूर्तियाँ गढ़ी गई वे केवल धन के लालच में नहीं हो सकता था । शिल्पियों की आस्था ने ऐसे-ऐसे मंदिरों और मूर्तियों को गढ़ा जो आज भी देखने में नई लगती हैं। टूट-फूट की मरम्मत के लिए भी शिल्पीज़न महत्वपूर्ण थे ।

प्रश्न 2. जैसा कि आप समझ सकते हैं कि इस काल के दौरान लोगों तथा माल का आना-जाना लगा ही रहता था । आपके विचार से इस आवाजाही का नगरों तथा गाँवों के जनजीवन पर क्या प्रभाव पड़ा होगा ? नगरों में रहनेवाले कारीगरों की सूची बनाएँ ।
उत्तर – मेरे विचार से व्यापारी लोगों और व्यापारिक माल की आवाजाही से नगरों तथा गाँवों में गहमा-गहमी की स्थिति बन जाती होगी। गाँवों में जहाँ व्यापारी अपने माल के साथ पड़ाव डालते होंगे, उस गाँव से अपने नित्य उपयोग की वस्तु जैसे सब्जी, चावल, दाल, आटा, दूध, दही, घी आदि ख़रीदते होंगे । इससे गाँव वालों की आय में वृद्धि होती होगी । जिस नगर में वे पहुँचते होंगे, वहाँ अधिक दिनों तक ठहरकर अपना माल बेचते होंगे और अपने यहाँ बिक सकनेवाले माल खरीदते होंगे। इससे नगरों के व्यापार में वृद्धि होती होगी ।

नगरों में रहनेवाले शिल्पकारों की सूची निम्नलिखित थीं :

(क) सुनार, (ख) कसेरा, (ग) लोहार, (घ) राजमिस्त्री और (ङ) बढ़ई ।

प्रश्न 3. सौदागरों को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता था ? आपके विचार से क्या वैसी कुछ समस्याएँ आज भी बनी हुई हैं?
उत्तर – सौदागरों को अनेक राज्यों और जंगलों से होकर गुजरना पड़ता था । रास्ते में राज्य विशेष के द्वारा मनमानी कर वसूले जाने के भय से व्यापारी अपना संघ बनाते थे, जो राजाओं की मनमानी पर अंकुश लगाता था । जंगलों से होकर गुजरते समय लुटेरों द्वारा लूट लिए जाने का भय रहता था । इससे बचने के लिए व्यापारी काफिले में चलते थे । वे अपने सिपाही भी रखा करते थे

आज की स्थिति पहले की स्थिति से भी बुरी है । जहाँ तक रास्ते में कर की बात है, कोई ठीक नहीं कि कहाँ, कब और किस पुलिस के आदमी द्वारा आपके सामान को रोक लिया जाय और बातों में उलझा कर नाजायज वसूली कर ली जाय । व्यापारी अपने को अकेला पाता है। मजबूर होकर नाजायज धन उसे देना पड़ता है। जहाँ तक राहजनी की बात है वह भी पहले से बढ़ी है। उस समय तो काफिले में रहकर व्यापारी अपनी रक्षा कर लेते थे, लेकिन आज तो रेलगाड़ी और बस में सैकड़ों लोगों के बीच लूट की घटना को अंजाम दिया जाता है । स्थिति पहले से बदतर है, राजकीय कर्मचारियों से भी और लुटेरों से भी ।

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