इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 9 हिंदी पद्य भाग का पाठ ग्यारह ‘समुद्र (Samudra class 9th Hindi)’ को पढृेंंगें, इस पाठ में सीताकांत महापात्र ने समुद्र के चरित्र तथा मानव की उपभोक्तावादी प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला है।
समुद्र कवि सीताकांत महापात्र
समुद्र का कुछ भी नहीं होता ।
मानो अपनी अबूझ भाषा में
कहता रहता है
जो भी ले जाना हो ले जाओ
जितना चाहो ले जाओ
फिर भी रहेगी बची देने की अभिलाषा ।
क्या चाहते हो ले जाना, घोंघे ?
क्या बनाओगे ले जाकर ?
कमीज के बटन ?
नाड़ा काटने के औजार ?
टेबुल पर यादगार ?
किंतु मेरी रेत पर जिस तरह दिखते हैं
उस तरह कभी नहीं दिखेंगे ।
अर्थ—कवि समुद्र के चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहता है कि मनुष्य समुद्र से कितना भी लेता है, उसमें कोई कमी नहीं आती क्योंकि वह अक्षय है। वह मनुष्य की असीम आकांक्षा की ओर इंगित करते हुए कहता है कि मेरे द्वारा सबकुछ देने के बावजूद तुम्हें तृप्ति नहीं मिलेगी। कवि यहाँ मनुष्य की उपभोक्तावादी प्रवृत्ति को उजागर करता हुआ कहता है कि मनुष्य अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए सारे प्राकृतिक सौंदर्य को विद्रूप बना देता है । इसीलिए समुद्र मनुष्य को कहता है कि तुम अपने यादगार के लिए अथवा निजी उपयोग के लिए जिन वस्तुओं का उपयोग करते हो, उनका वास्तविक सौन्दर्य नष्ट हो जाता है।
व्याख्या—प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि सीताकांत महापात्र द्वारा लिखित कविता “समुद्र’ शीर्षक से ली गई हैं। इनमें कवि ने समुद्र के चरित्र तथा मानव की उपभोक्तावादी प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला है।
कवि का कहना है कि समुद्र अक्षय है। वह मनुष्य को सब कुछ देना चाहता है,ताकि मनुष्य संतुष्ट हो जाए । परन्तु मनुष्य अपनी उपभोक्तावादी प्रवृत्ति के कारण संतुष्ट नहीं हो पाता। वह इसी प्रवृत्ति के कारण प्राकृतिक सौंदर्य का विनाश करने पर तुला हुआ है। समुद्र खेद प्रकट करते हुए कहता है कि चाहे मनुष्य किसी वस्तु का निर्माण क्यों न कर ले,परन्तु समुद्र की रेत पर अर्थात् समाज के बीच मनुष्य जितना सौन्दर्य बिखेरता है अथवा सम्मान पाता है, उतना किसी निर्मित वस्तु के रूप में अथवा व्यक्तिगत संपन्नता में नहीं । तात्पर्य कि समाजरूपी समुद्र के बीच ही मनुष्य के चरित्र का विकास होता है, जैसे समुद्र की रेत पर घोंघे जिस तरह दिखते हैं, वैसे टेबुल पर यादगार के रूप में नहीं।
या खेलकूद में मस्त केंकड़े ?
यदि धर भी लिया उन्हें
तो उनकी आवश्यकतानुसार
नन्हे–नन्हे सहस्र गड्ढों के लिए
भला इतनी पृथ्वी पाओगे कहाँ ?
या चाहते हो फोटो ?
वह तो चाहे जितना खींच लो
तुम्हारे टीवी के बगल में
सोता रहूँगा छोटे–से फ्रेम में बँधा
गर्जन–तर्जन, मेरा नाच गीत, उद्वेलन
कुछ भी नहीं होगा ।
अर्थ—कवि मनुष्य को संबोधित करते हुए कहता है कि खेलकूद में मस्त केंकड़ों को यदि पकड़ लेता है तो उनकी आवश्यकतानुसार नन्हे-नन्हें हजारों गड्ढे बनाने के लिए समुद्र के किनारे के अतिरिक्त इतना विस्तृत क्षेत्र कहाँ उपलब्ध हो सकता है। तात्पर्य कि आनन्द प्राप्ति के लिए समाज से बढ़कर कोई दूसरा क्षेत्र नहीं है। समुद्र मनुष्य की उपभोक्तावादी प्रवृत्ति पर खेद प्रकट करते हुए कहता है कि वास्तविक सौन्दर्य का अनुभव प्रकृति के मूल रूप में ही निहित होता है, फोटो या तस्वीर में नहीं। क्योंकि इसमें समुद्र में उठती लहरें तथा गर्जन-तर्जन दृश्य देखने को नहीं मिलते।
व्याख्या– प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि सीताकांत महापात्र द्वारा विरचित कविता ‘समुद्र’ शीर्षक से ली गई हैं। इनमें कवि ने मनुष्य की उपभोक्तावादी संस्कृति की तीखी आलोचना की है।
कवि का कहना है कि आज मनुष्य अपनी उपभोक्तावादी प्रवृत्ति के कारण जीवन की सच्चाई से दूर होता जा रहा है। मनुष्य प्रकृति-प्रेम की उपेक्षा कर कृत्रिमता की ओर उन्मुख होता आ रहा है। कवि का कहना है कि जीवन का असली रस प्रकृति से मिलता है। उसमें वास्तविकता होती है। प्रकृति मनुष्य में भाव का संचार करती है, जिससे मनुष्य के अन्दर अनेक प्रकार की कल्पनाएँ स्फुरित होती और उपयुक्त वातावरण पाकर एक ऐसा रूप धारण कर लेती हैं कि मनुष्य को अक्षय बना देती हैं। परन्तु उपभोक्तावादी प्रवृत्ति के कारण समाज का स्वरूप बिगड़ता जा रहा है। फलतः कवि ने इस प्रवृत्ति का कटु आलोचना की है।
जो ले जाना हो ले जाओ, जी भर
कुछ भी खत्म नहीं होगा मेरा
चिर–तृषित सूर्य लगातार
पीते जा रहे हैं मेरी ही छाती से
फिर भी तो मैं नहीं सूखा ।
और जो दे जाओगे, दे जाओ खुशी–खुशी
पर दोगे भी क्या
सिवा अस्थिर पदचिह्नों के
एक–दो दिनों की रिहायश के बाद
सिवा आतुर वापसी के ?
अर्थ–समुद्र मनुष्य से कहता है कि तुम जितना चाहो, जी भर के ले जाओ क्योंकि वह अक्षय है। सूर्य की प्रचंड किरणें भी उसके जल को सूखा नहीं पातीं। वह खेद भरे शब्दों में कहता है कि मनुष्य अपने अस्थिर पदचिह्नों के सिवा दे भी क्या सकता है, क्योंकि मनुष्य को प्रकृति के प्रति कोई खास लगाव नहीं होता। वह तो अपने स्वार्थ कीभूति हात ही वापस लौटने के लिए व्यग्र हो उठता है। अतः कवि के कहने का भाव यह है कि समाज समुद्र के समान अक्षय होता है। समाज उसे हर कुछ देने को व्यग्र रहता है किन्तु स्वार्थी मानव अपनी अभिलाषा की पूर्ति होते ही समाज से अलग हो जाता है।
व्याख्या–प्रस्तुत पंक्तियाँ सीताकांत महापात्र द्वारा लिखित कविता ‘समुद्र’ से ली _ गई हैं। इनमें कवि ने मनुष्य की उपभोक्तावादी प्रवृत्ति की ओर ध्यान आकृष्ट किया है।
कवि समुद्र के माध्यम से सामाजिक चरित्र का उद्घाटन किया है। कवि का कहना है कि समाज समुद्र के समान महान् एवं अक्षय होता है। वह इतना उदार होता है कि व्यक्ति उससे लाभ लेते-लेते थक जाता है, फिर भी वह अक्षय ही रहता है। लेकिन मनुष्य अपनी स्वार्थी-प्रवृत्ति के कारण अपने अस्थिर पदचिह्नों के सिवा कुछ भी नहीं दे पाता। तात्पर्य कि वह अपनी अभिलाषा की पूर्ति होते ही सामाजिक मान्यताओं से अलग ऐसे वातावरण के निर्माण में लग जाता है जिसका समाज में कोई मूल्य नहीं होता। अर्थात् जिससे समाज का कोई कल्याण नहीं होता। अतः कवि के कहने का भाव है कि उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण सामाजिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त होती जा रही है और मनुष्य स्वार्थ के कारण अमानवीय होता जा रहा हैं।
उन पदचिह्नों को
लीप–पोंछकर मिटाना ही तो है काम मेरा तुम्हारी
आतुर वापसी को
अपने स्वभाव सुलभ
अस्थिर आलोड़न में
मिला लेना ही तो है काम मेरा ।
अर्थ–कवि उन उपभोक्तावादी लोगों को संदेश देता है कि कवि का काम तो सामाजिक बुराई को उजागर कर उसे दूर करना होता है । कवि की प्रबल इच्छा रहती है कि भटके हुए लोग सहजतापूर्वक स्वस्थ सामाजिक परंपरा से जुड़ जाएँ और कवि का काम भी तो टूटे हुए समाज को संगठित करना होता है, ताकि आदर्श समाज कायम रह सके।
व्याख्या– प्रस्तुत पंक्तियाँ मानवतावादी कवि सीताकांत महापात्र द्वारा विरचित कविता ‘समुद्र’ शीर्षक कविता से ली गई हैं। इनमें कवि ने उपभोक्तावादी मानव कीतीखी आलोचना करते हुए कहा है कि कवि का कर्म स्वस्थ समाज का निर्माण करना होता है ताकि भटके हुए मानव उस समाज या संस्कृति से जुड़े रहे।
कवि अपना आंतरिक अभिलाषा प्रकट करते हुए कहता है कि वह उन भटके हुए मानवों को समाज से जोड़ने के लिए प्रयत्नशील रहता है। कवि किसी वर्ग या समुदाय विशेष के लिए नहीं होता, वह समग्र समाज को आदर्श पथ पर अग्रसर होते देखना चाहता है, ताकि स्वस्थ परंपरा कायम रह सके। अतः कवि सामाजिक बगदयों को करने तथा मानवता की स्थापना के लिए होता है।
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