इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्कृत के कहानी पाठ दो ‘ Sanghe shakti class 8 Sanskrit ( संघे शक्तिः)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।
द्वितीयः पाठः
संघे शक्तिः (एकता में ही बल है)
पाठ-परिचय–प्रस्तुत पाठ ‘संघे शक्तिः ‘ में एकता के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। किसी भी परिवार, समाज तथा देश का विकास एकता के बल पर निर्भर करता है। एकता के बिना व्यक्ति मूल्यहीन हो जाता है। एकता के अभाव में हमारा देश सदियों तक गुलाम रहा। जब हम संगठित हो गए, अंग्रेजों को भारत छोड़कर भागना पड़ा। इसलिए हमें अपनी एकता कायम रखनी चाहिए। एकता में महान शक्ति छिपी होती है। एकता का विरोध करनेवाला स्वतः धराशायी हो जाता है। प्रस्तुत पाठ में हमें मिलजुलकर रहने का संदेश दिया गया है।
अस्ति गङ्गायाः रमणीये तीरे पुष्कलनामको ग्रामः । तत्र बहुधनसम्पन्न: हरिहरो नाम कृषिकः । कृषिकर्मणा तेन प्रभूता सम्पत्तिरर्जिता । ग्रामे तत्परिसरे च तेन महती प्रतिष्ठा सम्प्राप्ता । तस्य चत्वारः पुत्राः अभवन्। पितुः कार्ये सहायतां नाकुर्वन्, प्रत्युत परस्परं नित्यं कलहायन्ते । एकः कथयति-त्वामेव पिता अधिकं मन्यते । त्वमेव तस्य विपुलां सम्पत्ति प्राप्यसि । अपरः वदति-त्वम् अतीव अलसः । कदापि किमपि हितकरम् उपयोगि कार्य न करोषि । तृतीयः तथैव विद्याध्ययनस्य निन्दा करोति, चतुर्थः विद्याध्ययनाय पितुः धनयाचना करोति तदा तृतीयः पितरं वारयति । एवमेव किमपि समाश्रित्य चतुर्ष भ्रातष कलहः प्रवर्तते स्म । अनेन ‘बुद्धिमान् पिता सततं चिन्तितस्तिष्ठति ।
अर्थ-गंगा के किनारे पुष्कल नाम का एक गाँव है। उस गाँव में हरिहर नाम का एक अति धनी किसान रहता है। खेती से उसने पर्याप्त धन कमाया। उस गाँव के आसपास उसकी काफी प्रतिष्ठा (आदर) थी। उन्हें चार पुत्र थे। (वे) पिता के काम में सहयोग नहीं करते थे, उल्टे आपस में चारों भाई लड़ते रहते थे। एक (पुत्र) कहता है. पिता तुम्हें अधिक मानते हैं। तुम्हीं उनका अधिक धन प्राप्त करोगे। दूसरा बोलता है—तुम बहुत आलसी हो। तुम कभी भी कोई अच्छा तथा उपयोगी काम नहीं करते हो। उसी प्रकार तीसरा पुत्र विद्याध्ययन की निंदा करता है। चौथा पिता से पढाई के लिये पैसे माँगता है तो तीसरा पिता को पैसे देने से मना करता है। ऐसे ही किसी भी बात को लेकर चारों भाई झड़ते रहते थे। इस कारण बुद्धिमान पिता हमेशा चिन्तित रहता है। Sanghe shakti class 8 Sanskrit
वृद्धः पिता स्वपुत्रान् कृषिकर्मणः संचालनाय भूयो भूयः प्रेरयति किन्तु सर्वेऽपि अलसा: न शृण्वन्ति । एकदा स वार्धक्यजनितेन रोगेण ग्रस्तः शय्यासीनो जातः। स कलहायमानेषु पुत्रेषु संघबद्धतायाः महत्त्वस्य बोधनाय उपायमचिन्तयत्। सर्वानपि पुत्रानाहूय स एकस्मै सुबद्धं दण्डचतुष्टयं दत्वा प्राह-त्वमेनं भञ्जय । स कथमपि भक्तुं नाशक्नोत् । तदा अपरः पुत्रः तथैव आदिष्टः ।
अर्थ-वृद्ध पिता अपने पुत्रों को बार-बार खेती का काम करने के लिए प्रेरित करता है, लेकिन वे आलसी पुत्र सुनते नहीं हैं। एकबार वह बुढ़ापे से उत्पन्न रोगों से ग्रस्त बिछावन पकड़ लिए। उसने परस्पर लड़ने-झगड़ने वाले पुत्रों को मिलकर रहने (एकता) के महत्व को समझाने का एक उपाय सोचा। सभी पुत्रों को बुलाकर वह उनमें से एक के हाथ में सुंदर ढंग से बंधे हुए चार डंडों को देते हुए कहा-तुम इसे तोड़ो। वह कभी भी नहीं तोड़ सका। तब दूसरे पुत्र को उसे तोड़ने का आदेश दिया।
सोपि तद् दण्डचतुष्टयं भक्तुं न समर्थो जातः। इयमेव दशा अपरयोरपि पुत्रयोरभवत् । तदा वृद्धः पिता दण्डचतुष्टयं निर्बध्य एकैकं. दण्डम् एकैकस्मै पुत्राय दत्तवान् । किञ्च तं दण्डं बोटयितुं पुन: आदिष्टवान् । सर्वे पुत्राः स्व-स्व हस्तस्थं दण्डं भक्तुं समर्थाः जाताः । तदा पिता कथितवान्-पुत्रा ! एवमेव बुध्यध्वम् । यदि यूयं पृथक्-पृथक् तिष्ठथ, तदा कश्चित् शत्रुः युष्मान् एकैकान् विनाशयिष्यति । यदि पुनः यूयं सर्वे मिलित्वा सुबद्धाः तिष्ठथ, तदा कोऽपि बाह्यजनः युष्मान् विनाशयितुं न समर्थः । अयमुपदेश:-संहतिः श्रेयसी पुंसाम् । तस्माद् दिवसात् प्रभृति सर्वेऽपि चत्वारः पुत्राः स्व-स्व दुष्टविचारन् त्यक्त्वा परस्पर मेलनेन गृहेऽवर्तन्त पितुश्च सेवया तम् अरोगं कृतवन्तः । Sanghe shakti class 8 Sanskrit
अर्थ-वह उन चारों डण्डों को तोड़ने में सफल नहीं हआ। इसी प्रकार दूसरे पुत्रों की भी दशा हुई। तब वृद्ध पिता ने चारो डण्डों को खोलकर एक-एक डण्डा सभी पुत्रा के हाथ में देकर तोड़ने को कहा। सभी अपने-अपने हाथ का डण्डा आसानी से तोड़ डाला । तब पिता ने पुत्रों को कहा—यदि तुम लोग अलग-अलग रहते हो तो कोई भी शत्रु एक-एक करके नष्ट कर देगा और यदि तुम मिलजुल रहते हो तो तुम्हारा कोई कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता है। ऐसा उपदेश है :
मनुष्यों की शक्ति एकता में ही निहित होती है।
इसलिए आज के बाद से तुमलोग अपने बुरे विचारों का त्याग करके मेल-मिलाप से रहो। चारों ने मिलकर पिता की सेवा करके उन्हें रोगरहित किया।
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