इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्कृत के कहानी पाठ नौ ‘संकल्पवीरः दशरथ मांझी’ (Sankalpveer dasrath manjhi Sanskrit )’ के अर्थ को पढ़ेंगे।
9. नवमः पाठः
संकल्पवीरः दशरथ मांझी
पाठ-परिचय प्रस्तुत पाठ “संकल्पवीरः दशरथ माँझी’ में बिहार के एक ऐसे कर्मवीर कर्मठ भूमिहीन किसान के अथक प्रयास का वर्णन है जिसने बाईस वर्षों तक 360 फुट लंबी, 30 फुट चौड़ी तथा 25 फुट ऊँची पर्वत घाटी को काटकर चौड़ा किया और दो स्थानों की दूरी कमकर दी । दशरथ मांझी ने जैसा साहसपूर्ण एवं समाज कल्याण का कार्य किया, वह हर व्यक्ति के लिए अनुकरणीय है। सामाजिक कार्य बंधनमुक्त होता है। जिसमें कुछ करने की अभिलाषा होती है वही ऐसे कार्य के प्रति उन्मुख होता है।
जयन्ति कर्मवीरास्ते कृतभूरिपरिश्रमाः।
सर्वेषामुपकाराय येषां संकल्पसिद्धयः ॥
अर्थ-वे कर्मवीर, जो दूसरों के कल्याण के लिए दृढ़ संकल्प के साथ परिश्रमपूर्वक कार्य करते हैं, उनका जीवन धारण करना सफल हो जाता है। तात्पर्य यह कि कर्मवीर का जीवन दूसरों के उपकार के लिए होता है। वे तब तक परिश्रम करते हैं जबतक उनका उद्देश्य पूरा हो नहीं जाता।
दुर्बलकायः स्वदेमुख: रिक्तोदरः कौपीनवसनः कृषिकः ग्रामक्षेत्रेषु सर्वदा श्रमं करोति । ग्रामेषु प्रायेणार्थव्यवस्थायाः आधारः कृषिरेव वर्तते । किन्तु कृषिकाः आवश्यकवस्तूनि क्रेतुं निकटस्थान् अट्टान् आपणान् च. गच्छन्ति । बिहारप्रान्तस्य गयामण्डले उटजप्रधाने ग्रामे गहलौरनामके कश्चित् कृषिश्रमिकः न्यवसत् । तस्य नाम दशरथ माँझी इत्यासीत् । अतीव परिश्रमी संकल्पवान् चासीत् । सः तस्य ग्रामः राजगीर-पर्वतमालायाः एकभागे अवर्तत । तस्य ग्रामस्य आपणस्थानं वजीरगंजे आसीत् । उभयोः ।
अर्थ-दुर्बल शरीर वाला, पसीनायुक्त मुँह, खाली पेट, लँगोटी धारण किए किसान ग्रामीण इलाकों में हमेशा परिश्रम करते हैं। ग्रामीणों का प्रायः आजीविका का आधार कृषि ही होती है। लेकिन किसान आवश्यक वस्तुओं को खरीदने के लिए निकट के हाल तथा दुकानों को जाते हैं। बिहार प्रांत के गया जिले में झोपड़ी बहुल गहलौर नामक गाँव में कोई खेतिहर मजदूर रहता है। उसका नाम दशरथ माँझी था । वह अति परिश्रमी एवं दृढ विचार वाला व्यक्ति था। वह गाँव राजगीर पर्वत समूह के एक भाग में था। उस गाँव का बाजार वजीरगंज में था। दोनों स्थान वजीर गंज उसके गाँव के बीच में अति तंग रास्ता था। पैदल चलने वालों को भी बोझा के साथ उस मार्ग से चलना संभव नहीं था। Sankalpveer dasrath manjhi Sanskrit
अनेन संकल्पेन दशरथं प्रति ग्रामीणाः जनाः उपहासं कृतवन्तः । किन्तु निरक्षरोऽपि दशरथः दृढसंकल्पवान् जातः। यद्यपि स कुठारेण काष्ठानयनस्य कार्याणि कृत्वा क्षेत्राणां कर्षणं च कृत्वा जीवनं यापयति, तथापि तस्मात् दिवसात् प्रस्तरछेदनाय अपि उपकरणानि क्रीत्वा स स्वसंकल्पस्य पूरणे प्रवृत्तः । दिनानि व्यतीतानि वर्षानि च गतानि । शैनः-शनैः अस्य श्रमिकस्य परिश्रमः प्रत्यक्षो जातः । द्वाविंशतिवर्षेषु एकः विस्तीर्णः मार्ग: पर्वतमध्ये निर्मितः, नाव कस्यापि शारीरिकः सहयोगः प्राप्तः । प्रस्तरखण्डानि भग्नानि । गहलौरात् वजीरगंजस्य मार्ग: अल्पीभूतः । एतेषु वर्षेषु दशरथ माँझी बहून सम्मानान् लब्धवान् । पर्वतमार्गश्च तस्य नाम्ना अभिहितः । ग्रामे प्रशासनेन तदनु सामुदायिक भवनं निर्मितं चिकित्सालयश्च तस्य नाम्ना स्थापितः । राज्यप्रशासनं तस्मै ‘पर्वतपुरुष’ इति सम्मानोपाधिम् अयच्छत् । दशरथस्य उदाहरणेन स्पष्टं भवति यत् कोऽपि जनः दृढेन संकल्पेन कठिनं किञ्च असम्भवमपि कार्य कृत्वा यशो लभते एतादृशाः कर्मवीराः एव समाजस्य वास्तविकाः सेवकाः Sankalpveer dasrath manjhi Sanskrit
अर्थ- दशरथ मांझी के इस निश्चय पर ग्रामीण लोगों ने उसका मजाक उड़ाया। – लेकिन निरक्षर होते हुए भी दशरथ माँझी दृढ़ निश्चय वाला था। यद्यपि वह कल्हाडी से लकड़ी काटकर लाने तथा खेत की जुताई करके भरण-पोषण करता था. फिर भी उस दिन से पत्थर काटने के लिए भी औजार खरीदकर वह अपना संकल्प पूरा करने में लग गया। दिन बीतते वर्ष बीत गए। धीरे-धीरे इस मजदूर का परिश्रम सफल होता दिखाई दिया। बाइस वर्षों में एक चौड़ा मार्ग पहाड़ के बीच में तैयार हो गया। किसी का भी सहयोग नहीं मिला। चट्टानें टूट गईं। गहलौर से वजीरगंज की दूरी घट गई। इन वर्षों में दशरथ माँझी को बहुत सम्मान मिला । पहाड़ी रास्ते का नाम ‘दशरथ’ रखा गया। गाँव में प्रशासन के द्वारा सामुदायिक भवन और चिकित्सालय उनके नाम पर स्थापित हुआा राज्य प्रशासन उन्हें पर्वत पुरूष की उपाधि से सम्मानित किया । दशरथ के उदाहरण से स्पष्ट होता है कि कोई भी अपने दृढ निश्चय से कठिन और असंभव को संभव करके यश पाते हैं। इस प्रकार के क्रमवीर एवं सच्चा सेवक दशरथ मांझी थे।
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