इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड के कक्षा 10 के भूगोल के इकाई एक का पाठ ‘(ङ) शक्ति (ऊर्जा) संसाधन’ (Shakti Urja Sansadhan) के महत्वपूर्ण टॉपिक को पढ़ेंगें।
(ङ) शक्ति (ऊर्जा) संसाधन (Shakti Urja Sansadhan)
शक्ति एवं उर्जा विकास की पूँजी हैं।
शक्ति संसाधन के प्रकारः
शक्ति संसाधन के वर्गीकरण के विविध आधार हो सकते हैं। उपयोग स्तर के आधार पर शक्ति के दो प्रकार हैं-
सतत् शक्ति एवं समापनीय शक्ति।
सौर किरणें, भूमिगत उष्मा, पवन, प्रवाहित जल आदि सतत् शक्ति के स्रोत हैं जबकि कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस एवं विखण्डनीय तत्व समापनीय शक्ति स्रोत हैं।
उपयोगिता के आधार पर उर्जा के दो भागो में विभक्त किया जाता है। पहला प्राथमिक ऊर्जा, जैसे- कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि तथा दूसरा गौण ऊर्जा, जैसे- विद्युत, क्योंकि यह प्राथमिक ऊर्जा से प्राप्त किया जाता है।
स्रोत के स्थिति के आधार पर शक्ति को दो भागो में वर्गीकृत किया जाता है। पहला क्षयशिल शक्ति संसाधन जैसे- पेट्रोलियम, कोयला, प्राकृतिक गैस तथा आण्विक खनिज आदि तथा दूसरा अक्षयशिल शक्ति संसाधन, जैसे- प्रवाही जल, पवन, लहरें, सौर शक्ति आदि।
संरचनात्मक गुणों के आधार पर ऊर्जा के दो स्त्रोत हैं। जैविक ऊर्जा स्त्रोत और अजैविक ऊर्जा स्त्रोत। मानव एवं प्राणी जैविक तथा जल शक्ति, पवन-शक्ति, सौर शक्ति तथा इंधन शक्ति आदि अजैविक ऊर्जा स्त्रोत हैं।
समय के आधार पर ऊर्जा को पारम्परिक तथा गैर पारम्परिक स्त्रोतों में विभक्त किया गया है। कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस पारम्परिक तथा सूर्य, पवन, ज्वार, परमाणु ऊर्जा तथा गर्म झरने आदि गैर पारम्परिक शक्ति संसाधन के उदाहरण हैं।
पारम्परिक ऊर्जा स्रोतः- कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस जैसे खनिज ईंधन जो जीवाश्म ईंधन के नाम से भी जाने जाते हैं ये पारम्परिक शक्ति संसाधन हैं तथा ये समाप्य संसाधन है।
कोयलाः- कोयला शक्ति और ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत है। भूगर्भिक दृष्टि से भारत के समस्त कोयला भण्डार को दो मुख्य भागों में बांटा जा सकता हैः-
1.गोंडवाना समूहः- इस समूह में भारत के 96 प्रतिशत कोयले का भण्डार है तथा कुल उत्पादन का 99 प्रतिशत भाग प्राप्त होता है। गोंडवाना कोयला क्षेत्र मुख्यतः चार नही-घाटियों में पाये जाते हैं-
1.दामोदर घाटी, 2. सोन घाटी, 3. महानदी घाटी तथा 4. वार्घा-गोदावरी घाटी।
2.टर्शियरी समूहः- गोडवाना समूह के बाद टर्शियरी समूह के कोयला का निर्माण हुआ। यह 5.5 करोड़ वर्ष पुराना है। टर्शियरी कोयला मुख्यतः असम, अरूणाचल प्रदेश, मेघालय और नागालैण्ड में पाया जाता है।
कोयले का वर्गीकरणः- कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयला को चार वर्गों में रखा गया हैः
1.ऐंथासाइटः- यह सर्वोच्य कोटि का कोयला है जिसमें कार्बन की मात्रा 90% से अधिक होती है। जलने पर यह धुँआ नही देता है।
2.बिटुमिनसः- यह 70 से 90% कार्बन की मात्रा धारण किये हुए रहता है तथा इसे पारिष्कृत कर कोकिंग कोयला बनाया जा सकता है। भारत का अधिकतर कोयला इसी श्रेणी का है।
3.लिग्नाईटः- यह निम्न कोटि का कोयला माना जाता है जिसमें कार्बन की मात्रा 30 से 70% होता है। यह कम ऊष्मा तथा अधिक धुआँ देता है।
4.पीटः- इसमें कार्बन की मात्रा 30% से भी कम पाया जाता है। यह पूर्व के दलदली भागों में पाया जाता है।
गांडवाला समूह का कोयला क्षेत्रः-
झारखण्ड – कोयले के भण्डार एवं उत्पादन की दृष्टि से झारखण्ड का देश में पहला स्थान है। यहाँ देश का 30 प्रतिशत से भी अधिक कोयला का सुरक्षित भण्डार है। झरिया, बोकारो, गिरिडीह, कर्णपुरा, रामगढ़ इस राज्य के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं। पश्चिम बंगाल के रानीगंज कोयला क्षेत्र का कुछ भाग इसी राज्य में पड़ता है।
छत्तीसगढ़ः- सुरक्षित भण्डार की दृष्टि से इस राज्य का स्थान तीसरा किन्तु उत्पादन में यह भारत का दूसरा बड़ा राज्य है। यहाँ देश का 15 प्रतिशत सुरक्षित भण्डार है लेकिन उत्पादन 16 प्रतिशत होता है।
उड़िसाः- उड़िसा में एक चौथाई कोयले का भण्डार है पर उत्पादन मात्र 14.6 प्रतिशत ही होता है।
टर्शियरिय कोयला क्षेत्रः- टर्शियरी युग में बना कोयला नया एवं घटिया किस्म का होता है। यह कोयला मेघालय मे दारगिरी, चेरापूंजी, लेतरिंग्यू, माओलौंग और लांगरिन क्षेत्र से निकाला जाता है। ऊपरी असम में माकुम, जयपुर, नजिरा आदि कोयले के क्षेत्र हैं। अरूणाचल प्रदेश में नामचिक और नामरूक कोयला क्षेत्र है। जम्मू और कश्मिर में कालाकोट से कोयला निकाला जाता हैं।
लिग्नाइट कोयला क्षेत्र :
यह एक निम्न कोटि का कोयला होता है। इसमें नमी ज्यादा तथा कार्बन कम होता है। इसलिए यह अधिक धुँआ देता है। लिग्नाइट कोयले का भण्डार मुख्य रूप से तमिलनाडु के लिग्नाइट वेसिन में पाया जाता है। जहाँ देश का 94 प्रतिशत लिग्नाइट कोयले का सुरक्षित भंडार है।
पेट्रोलियम :
पेट्रोलियम शक्ति के समस्त साधनों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं व्यापक रूप से उपयोगी संसाधन है। पेट्रोलियम से विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ जैसे- गैसोलीन, डीजल, किरासन तेल, स्नेहक, कीटनाशक दवाएँ, दवाएँ, पेट्रोल, साबुन, कृत्रिम रेशा, प्लास्टिक आदि बनाए जाते हैं।
तेल क्षेत्रों का वितरण :
भारत में मुख्यतः पाँच तेल उत्पादक क्षेत्र हैं :
1.उत्तरी-पूर्वी प्रदेश : यह देश का सबसे पुराना तेल उत्पादक क्षेत्र है, जहाँ 1866 ई० में तेल के लिए खुदाई शुरू की गई थी। ऊपरी असम घाटी, अरूणाचल प्रदेश, नागालैण्ड आदि विशाल तेल उत्पादक क्षेत्र इसके अन्तर्गत आते हैं।
2.गुजरात क्षेत्र : यह क्षेत्र खम्भात के बेसिन तथा गुजरात के मैदान में विस्तृत है। यहाँ पहली बार 1958 में तेल का पता चला था। इसके मुख्य उत्पादक अंकलेश्वर, कलोल, नवगाँव, कोसांबा, मेहसाना आदि हैं।
3.मुम्बई हाई क्षेत्र : यह क्षेत्र मुम्बई तट से 176 किलोमीटर दूर उŸार-पश्चिम दिशा में अरब सागर में स्थित है। यहाँ 1975 में तेल खोजने का कार्य शुरू हुआ। यहाँ समुद्र में सागर सम्राट नामक मंच बनाया गया है जो जलयान है और पानी के भीतर तेल के कुँए खोदने का कार्य करता है।
4.पूर्वी तट प्रदेशः- यह कृष्ण-गोदावरी और कावेरी नदियों के बेसिल तथा मुहाने के समुद्री क्षेत्र में फैला हुआ है।
5.बारमेर बेसिनः- इस बेसिन के मंगला तेल क्षेत्र से सितम्बर 2009 से उत्पादन शुरू हो गया हैं। यहाँ प्रतिदिन 56000 बैरल तेल का उत्पादन हो रहा है। 2012 तक यह क्षेत्र भारत का 20 प्रतिशत पेट्रोलियम उत्पन्न करेगा।
तेल परिष्करणः- कुओं से निकाला गया कच्चा तेल अपरिष्कृत एवं अशुद्ध होता हैं। अतः उपयोग के पूर्व उसे तेल शोधक कारखानो में परिष्कृत किया जाना आवश्यक होता है। उसके बाद ही डिजल, किरासन तेल, स्नेहक पदार्थ तथा अन्य कई वस्तुएँ प्राप्त होती है।
प्राकृतिक गैसः- प्राकृतिक गैस हमारे वर्तमान जीवन में बड़ी तेजी से एक महत्वपूर्ण ईंधन बनता जा रहा है। इसका उपयोग विभिन्न उद्योगों में मशीन को चलाने में, विद्युत उत्पादन में, खाना पकाने में तथा मोटर गाड़ियाँ चलाने में किया जा रहा है।
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विधुत शक्तिः- विद्युत शक्ति उर्जा का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। वर्तमान विश्व में विद्युत के प्रति व्यक्ति उपभोग को विकास का एक सुचकांक माना जाता है। जब विद्युत के उत्पादन में कोयला, पेट्रोलियम या प्राकृतिक गैस से प्राप्त उष्मा का उपयोग किया जाता है तो उसे ताप विद्युत कहते हैं। इसके अतिरिक्त विद्युत का उत्पादन आण्विक खनिजों के विखण्डन से भी किया जाता है। जिसे परमाणु विद्युत कहते हैं।
जल विद्युतः- जल विद्युत उत्पादन के लिए सदावाहिनी नदी में प्रचुर जल की राशि, नदी मार्ग में ढ़ाल, जल का तीव्र वेग, प्राकृतिक जल प्रपात का होना अनुकूल भौतिक दशाएँ हैं जो पर्वतीय एवं हिमानीकृत क्षेत्रों में पाया जाता हैं। भारत में सन् 1897 ई0 में दार्जिलिंग में प्रथम जल विधुत संयंत्र की स्थापना हुई थी। इसके बाद कर्नाटक के शिवसमुद्रम् में काबेरी नदी के जलप्रपात पर दूसरे जल विद्युत संयंत्र की स्थापना हुई।
1947 तक भारत में 508 मेगावाट बिजली की उत्पादन की जाने लगी।
भारत के मुख्य बहुउद्देशीय परियोजनाएँ
बहुउद्देशीय परियोजना- ऐसी परियोजना जिससे एक साथ अनेक लाभ के प्राप्त की जा सके, उसे बहुउद्देशीय परियोजना कहते हैं।
अर्थात्
ऐसी परियोजना जिससे एक साथ कई उद्देश्य प्राप्त करने के लिए स्थापित किए जाते हैं, उसे बहुउद्देशीय परियोजना कहते हैं।
1.भाखड़ा-नंगल परियोजना- भाखड़ा नंगल बाँध विश्व की ऊँची बाँधों में से एक है, जो हिमालय क्षेत्र में सतलज नदी पर है। जिसकी ऊँचाई 225 मीटर है। यह भारत की सबसे बड़ी परियोजना है। इससे 7 लाख किलोवाट विद्युत उत्पन्न किया जाता है।
2.दामोदरघाटी परियोजना– यह परियोजना दामोदर नदी पर झारखंड और पश्चिम बंगाल को बाढ़ से बचाने के लिए किया गया है। इससे 1300 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जाता है।
3.कोशी परियोजना- नेपाल स्थित हनुमान नगर में कोशी नदी पर बाँध बनाकर इस परियोजना से 20000 किलोवाट बिजली उत्पन्न किया जाता है।
4.रिहन्द परियोजना- इस परियोजना को सोन की सहायक नदी रिहन्द पर उŸार प्रदेश में 934 मीटर लंबा बाँध बनाकर किया गया है। इससे 30 लाख किलोवाट बिजली उत्पादन किया जाता है।
5.हीराकुंड परियोजना- उड़ीसा के महानदी पर विश्व का सबसे लंबा बाँध बनाकर 2.7 लाख किलोवाट बिजली उत्पादन किया जाता है।
6.चंबल घाटी परियोजना- चंबल नदी पर राजस्थान में तीन बाँध गाँधी सागर, राणाप्रताप सागर और कोटा में स्थापित कर तीन शक्ति गृहों की स्थापना कर 2 लाख मेगावाट बिजली उत्पादन किया जाता है।
7.तुंगभद्रा परियोजना- यह दक्षिण भारत की सबसे बड़ी नदी-घाटी परियोजना है, जो कृष्णा नदी की सहायक नदी तुंगभद्रा नदी पर बनाई गई है।
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ताप शक्ति
तापीय विद्युत का उत्पादन करने के लिए ताप शक्ति संयंत्रों में कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस का उपयोग होता है। जल विद्युत की तरह यह प्रदुषण रहित नहीं है।
परमाणु शक्ति- जब उच्च अणुभार वाले परमाणु विखंडित होते हैं तो ऊर्जा का उत्सर्जन होता है। यूरेनियम परमाणु ऊर्जा का कच्चा माल है। भारत में यूरेनियम का विशाल भंडार झारखण्ड के जादूगोड़ा में है।
भारत में 1955 में प्रथम आण्विक रियेक्टर मुम्बई के निकट तारापुर में स्थापित किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य उद्योग एवं कृषि को बिजली प्रदान करना था।
देश में अब तक छः विद्युत परमाणु विद्युत गृह स्थापित किए गए हैं।
1.तारापुर परमाणु विद्युत गृह- यह एशिया का सबसे बड़ा परमाणु विद्युत गृह है।
2.राणाप्रताप सागर परमाणु विद्युत गृह- यह राजस्थान के कोटा में स्थापित है। यह चंबल नदी के किनारे है।
3.कलपक्कम परमाणु विद्युत गृह- यह तमिलनाडु में स्थित है।
4.नरौरा परमाणु विद्युत गृह- यह उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के पास स्थित है।
5.ककरापारा परमाणु विद्युत गृह- यह गुजरात राज्य में समुद्र के किनारे स्थित है।
6.कैगा परमाणु विद्युत गृह- यह कर्नाटक राज्य के जागवार जिला में स्थित है।
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गैर-पारम्परिक शक्ति के स्त्रोत
अधिक दिनों तक हम शक्ति के पारम्परिक स्त्रोतों पर निर्भर नहीं रह सकते हैं क्योंकि यह समाप्य संसाधन है। इसलिए गैर-पारम्परिक शक्ति संसाधनों से ऊर्जा के विकास बहुत ही अधिक आवश्यक है। ऊर्जा के गैर पारम्परिक स्त्रोतों में बायो गैस, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय एवं तरंग ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा एवं जैव ऊर्जा महत्वपूर्ण हैं।
सौर ऊर्जा- यह कम लागत वाला पर्यावरण के अनुकूल तथा निर्माण में आसान होने के कारण अन्य ऊर्जा स्त्रोतों की अपेक्षा ज्यादा लाभदायक है।
राजस्थान और गुजरात में सौर ऊर्जा की ज्यादा संभावनाएँ हैं।
पवन ऊर्जा- पवन चक्कियों से पवन ऊर्जा की प्राप्ति की जाती है। भारत विश्व का सबसे बड़ा पवन ऊर्जा उत्पादक देश है। देश में पवन ऊर्जा की संभावित उत्पादन क्षमता 50000 मेगावाट है। गुजरात के कच्छ में लाम्बा का पवन ऊर्जा संयंत्र एशिया का सबसे बड़ा संयंत्र है। दूसरा बड़ा संयंत्र तमिलनाडु के तूतीकोरिन में स्थित है।
ज्वारीय ऊर्जा तथा तरंग ऊर्जा- समुद्री ज्वार और तरंग के कारण गतिशील जल से ज्वारीय और तरंग ऊर्जा प्राप्त किया जाता है।
भूतापीय ऊर्जा- यह ऊर्जा पृथ्वी के उच्च ताप से प्राप्त किया जाता है।
बायो गैस एवं जैव ऊर्जा- ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि अपशिष्ट, पशुओं और मानव जनित्र अपशिष्ट के उपयोग से घरेलू उपयोग हेतु बायो गैस उपयोग की जाती है। जैविक पदार्थों के अपघटन से बायो गैस प्राप्त की जाती है।
जैविक पदार्थों से प्राप्त होनेवाली ऊर्जा को जैविक ऊर्जा कहते हैं। कृषि अवशेष, नगरपालिका, औद्योगिक एवं अन्य अपशिष्ट पदार्थ जैविक पदार्थों के उदाहरण है।
शक्ति संसाधनों का संरक्षण :
ऊर्जा संकट विश्व व्यापी संकट बन चूका है। इस परिस्थिति में समस्या के समाधान की दिशा में अनेक प्रयास किए जा रहे हैं।
1.ऊर्जा के प्रयोग में मितव्ययीता : ऊर्जा संकट से बचने के लिए ऊर्जा के उपयोग में मितव्ययीता जरूरी है। इसके लिए तकनीकी विकास आवश्यक है। ऐसे मोटर गाड़ीयों का निर्माण हो जो कम तेल में ज्यादा चलते हैं। अनावश्यक बिजली को रोककर हम ऊर्जा की बचत बड़े स्तर पर कर सकते हैं।
2.ऊर्जा के नवीन क्षेत्रों की खोज- ऊर्जा संकट समाधान के लिए परम्परागत ऊर्जा के नये क्षेत्रों का खोज किया जाए। वैसे जगहों का पता लगाया जाए जहाँ पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैसों का भंडार हो।
3.ऊर्जा के नवीन वैकल्पिक साधनों का उपयोग- वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोत में जल-विद्युत, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, जैव ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा आदि के विकास कर उपभोग कर शक्ति के संसाधन को संरक्षित किया जा सकता है।
4.अंतराष्ट्रीय सहयोग- ऊर्जा संकट से बचने के लिए सभी राष्ट्र को आपसी भेद-भाव को भुलकर ऊर्जा समाधान हेतु आम सहमति से नीति निर्धारण करना चाहिए। (Shakti Urja Sansadhan)
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