इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिन्दी के पाठ सात ‘हिरोशिमा (Hiroshima VVI Subjective Questions)’ के महत्वपूर्ण विषयनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
लघु-उत्तरीय प्रश्न (20-30 शब्दों में)____दो अंक स्तरीय प्रश्न 1. कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज क्या है ? वह कैसे निकलता है? (Text Book) उत्तर- कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज आण्विक बम का प्रचण्ड गोला है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह क्षितिज से न निकलकर धरती फाड़कर निकलता है।
प्रश्न 2. मनुष्य की छायाएं कहाँ और क्यों पड़ी हुई है? (Text Book) उत्तर- मनुष्य की छायाएँ हिरोशिमा की धरती पर सब ओर दिशाहीन होकर पड़ी हुई हैं। जहाँ-तहाँ घर की दीवारों पर मनुष्य छायाएँ मिलती हैं। टूटी-फूटी सड़कों से लेकर पत्थरों पर छायाएँ प्राप्त होती हैं।
प्रश्न 3. हिरोशिमा में मनुष्य की साखी के रूप में क्या है? (Text Book ,2011C, 2012।) उत्तर- आज भी हिरोशिमा में साक्षी के रूप में अर्थात् प्रमाण के रूप में जहाँ-तहाँ जले हुए पत्थर, दीवारें पड़ी हुई हैं। यहाँ तक कि पत्थरों पर, टूटी-फूटी सडकों पर, घर की दीवारों पर लाश के निशान, छाया के रूप में साक्षी हैं।
प्रश्न 4. प्रज्वलित क्षण की दोपहरी से कवि का आशय क्या है? (पाठ्य पुस्तक) उत्तर- हिरोशिमा में जब बम का प्रहार हुआ तो प्रचण्ड गोलों से तेज प्रकाश निकला और वह चारों दिशाओं में फैल गया। इस अप्रत्याशित प्रहार से हिरोशिमा के लोग हतप्रभ रह गये। उन्हें ऐसा लगा कि धीरे-धीरे आनेवाला दोपहर आज एक क्षण में ही उपस्थित हो गया ।
प्रश्न 5. ’हिरोशिमा’ कविता से हमें क्या सीख मिलती है? (2018) उत्तर- हिरोशिमा कविता मानवीय संवेदना स्थापित करते हुए चेतावनी के रूप में प्रस्तुत है। इस कविता में आधुनिक सभ्यता की दुर्दांत मानवीय विभीषिका का चित्रण है जिससे हमें संदेश मिलता है कि हम विकास-क्रम में मानवता को नहीं भूलें एवं हिंसक प्रवृत्ति पर नियंत्रण करें अन्यथा मानव कल्याण की जगह विनाश लीला से धरती तिलमिला उठेगी।
प्रश्न 6. छायाएं दिशाहीन सब ओर क्यों पड़ती हैं? स्पष्ट करें। (Text Book ,2012C, 2015A) अथवा, छायाएं दिशाहीन सब ओर क्यों पड़ती है? ’हिरोशिमा’ शीर्षक कविता के आधार पर स्पष्ट करें। (2014A) उत्तर- सूर्य के उगने से जो भी छाया का निर्माण होता है वे सभी निश्चित दिशा में लेकिन बम-विस्फोट से निकले हुए प्रकाश से जो छायाएँ बनती हैं वे दिशाहीन होती हैं। क्योंकि, आण्विक शक्ति से निकले हुए प्रकाश सम्पूर्ण दिशाओं में पड़ता है। उसका कोई निश्चित दिशा नहीं है। बम के प्रहार से मरने वालों की क्षत-विक्षत लाशें विभिन्न दिशाओं में जहाँ-तहाँ पड़ी हुई हैं। ये लाशें छाया-स्वरूप हैं, परन्तु चारों ओर फैली होने के कारण दिशाहीन छाया कही गयी है।
इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिन्दी के पाठ आठ ‘एक वृक्ष की हत्या (Ek Vriksh Ki Hatya VVI Subjective Questions)’ के महत्वपूर्ण विषयनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
Ek Vriksh Ki Hatya VVI Subjective Questions हिन्दी पाठ 8 एक वृक्ष की हत्या कवि- कुँवर नारायण
लघु-उत्तरीय प्रश्न (20-30 शब्दों में)____दो अंक स्तरीय 1. ’एक वृक्ष की हत्या’ कविता में एक रूपक की रचना हई है। रूपक क्या है और यहाँ उसका क्या स्वरूप है? स्पष्ट कीजिए। (Text Book) उत्तर- रूपक भाव अभिव्यक्ति की एक विधा है। इसमें कवि की कल्पना मूर्तरूप में चित्रित होती है। यहाँ वृक्ष की महत्ता को मूर्त रूप देते हुए उसे एक प्रहरी के रूप में दिखाया गया है।
प्रश्न 2. ’एक वृक्ष की हत्या’ कविता विश्व की किस समस्या को उजागर करती है? (2018C) उत्तर- ‘एक वृक्ष की हत्या’ कविता संसार की पर्यावरण समस्या को उजागर कर रही है। वन-विनाश के कारण पर्यावरण दूषित हो रहा है, जो अन्ततः मनुष्य के विनाश का कारण बन सकता है।
प्रश्न 3. घर, शहर और देश के बाद कवि किन चीजों को बचाने की बात करता है और क्यों ? (Text Book) उत्तर- घर, शहर और देश के बाद, कवि नदियों, हवा, भोजन, जंगल एवं मनुष्य को बचाने की बात करता है क्योंकि नदियाँ, हवा, अन्न, फल, फूल जीवनदायक हैं। इनकी रक्षा नहीं होगी तो मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा नहीं हो सकती है।
प्रश्न 4. कवि को वृक्ष बूढ़ा चौकीदार क्यों लगता था?(Text Book 2012A, 2012C, 2017A) उत्तर- कवि एक वृक्ष के बहाने प्राचीन सभ्यता, संस्कति एवं पर्यावरण की रक्षा की चर्चा की है। वृक्ष मनुष्यता, पर्यावरण एवं सभ्यता की प्रहरी है। यह प्राचीनकाल से मानव के लिए वरदानस्वरूप है, इसका पोषक है, रक्षक है। इन्हीं बातों का चिंतन करते हुए कवि को वृक्ष बूढ़ा चौकीदार लगता था।
प्रश्न 5. कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए। अथवा, ’एक वृक्ष की हत्या’ शीर्षक कविता का भावार्थ लिखें।(Text Book, 2013C) उत्तर- प्रस्तुत कविता में कवि एक पुराने वृक्ष की चर्चा करते हैं। वृक्ष प्रहरी के रूप में कवि के घर के निकट था और वह एक दिन काट दिया जाता है। काम के चिंतन का मुख्य केन्द्र-बिन्दु कटा हुआ वृक्ष ही है। उसी को आधार मानव सभ्यता, मनुष्यता एवं पर्यावरण का क्षय होते हुए देखकर दुखी होते हैं।
प्रश्न 6. ’एक वृक्ष की हत्या’ कविता का समापन करते हुए कवि अपने किन अंदेशों का जिक्र करता है और क्यों? (Text Book, 2016A) उत्तर- कवि को अंदेशा है कि आज पर्यावरण, हमारी प्राचीन सभ्यता, मानवता तक के जानी दुश्मन समाज में तैयार हैं। अंदेशा इसलिए करता है क्योंकि आज लोगों की प्रवृत्ति वृक्षों की काटने की हो गई। सभ्यता के विपरीत कार्य करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, मानवता का ह्रास हो रहा है।
प्रश्न 7. वृक्ष और कवि में क्या संवाद होता था? (Text Book, 2015A, 2015C) उत्तर- कवि जब अपने घर कहीं बाहर से लौटता था तो सबसे पहले उसकी नजर घर के आगे स्थिर खड़ा एक पुराना वृक्ष पर पड़ती। कवि को आभास होता मानो वृक्ष उससे पूछ रहा है कि तुम कौन हो ? कवि इसका उत्तर देता-मैं तुम्हारा दोस्त हैं। इसी संवाद के साथ वह उसके निकट बैठकर भविष्य में आने वाले पर्यावरण संबंधी खतरों का अंदेशा करता है।
इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिन्दी के पाठ बारह हिन्दी कक्षा 10 मेरे बिना तुम प्रभु के महत्वपूर्ण विषयनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
Mere Bina Tum Prabhu VVI Subjective Questions – हिन्दी कक्षा 10 मेरे बिना तुम प्रभु
लघु-उत्तरीय प्रश्न (20-30 शब्दों में)—-दो अंक स्तरीय प्रश्न 1. शानदार लबादा किसका गिर जाएगा, और क्यों ?(2015A) उत्तर- कवि के अनुसार भगवत्-महिमा भक्त की आस्था में निहित होता है भक्त, भगवान का दृढ आधार होता है लेकिन जब भक्तरूपी आधार नहीं होगा। स्वाभाविक है कि भगवान की पहचान भी मिट जाएगी। भगवान का लबादा अथवा चोगा गिर जाएगा। Mere Bina Tum Prabhu VVI Subjective Questions – हिन्दी कक्षा 10 मेरे बिना तुम प्रभु
प्रश्न 2. कवि किसको कैसा सुख देता था ? (Text Book) उत्तर- कवि भगवान की कृपादृष्टि की शय्या है। कवि के नरम कपोलों जब भगवान की कृपादृष्टि विश्राम लेती है, तब भगवान को सुख मिलता है, आनंद मिलता है। अर्थात् भक्त भगवान का कृपापात्र होता है और भक्तरूपी पात्र से भगवान भी सुखी होते हैं।
प्रश्न 3. कवि रेनर मारिया रिल्के ने अपने आप को जलपात्र और मदिरा क्यों कहता है? (Text Book 2014A, 2017A) उत्तर- कवि अपने को भगवान का भक्त मानता है। भक्त की महत्ता को स्पष्ट करते हुए कवि ने भक्त को जलपात्र और मदिरा कहा है क्योंकि जलपात्र में संग्रहित होकर भगवान अपनी अस्मिता प्राप्त करता है । इसी तरह भक्ति-रस के निकट आकर भगवान इससे प्रसन्न हो जाते हैं।
Mere Bina Tum Prabhu VVI Subjective Questions Hindi Chapter 12 मेरे बिना तुम प्रभु
प्रश्न 4. कवि को किस बात की आशंका है ? स्पष्ट कीजिए। (Text Book 2016C) उत्तर- कवि को आशंका है कि जब ईश्वरीय सत्ता की अनुभूति करानेवाला प्रतीक आधार या भक्त नहीं होगा तब ईश्वर का पहचान किस रूप में होगा ? प्राकृतिक छवि, मानव की हदय का प्रेम, दया, भगवद् स्वरूप है। ये सब नहीं होगा, तब उस परमात्मा का आश्रय क्या होगा, मानव किस रूप में ईश्वर को जान सकेगा इस प्रश्न को लेकर कवि आशंकित है।Mere Bina Tum Prabhu VVI Subjective Questions Hindi Chapter 12 मेरे बिना तुम प्रभु
प्रश्न 5. कविता के आधार पर भक्त और भगवान के बीच के संबंध पर प्रकाश डालिए। (Text Book ,2012A) उत्तर- प्रस्तुत कविता में कहा गया है कि बिना भक्त के भगवान भी एकांकी और निरूपाय हैं। उनकी भगवता भी भक्त की सत्ता पर निर्भर करती है। व्यक्ति और विराट सत्य एक-दूसरे पर निर्भर है।
इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिन्दी के पाठ छ: ‘बहादुर (Bahadur VVI Subjective Questions)’ के महत्वपूर्ण विषयनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
Bahadur VVI Subjective Questions Hindi Chapter 6 बहादुर लेखक-अमरकांत
लघु-उत्तरीय प्रश्न (20-30 शब्दों में)____दो अंक स्तरीय प्रश्न 1. बहादुर के आने से लेखक के घर और परिवार के सदस्यों पर कैसा प्रभाव पड़ा? (Text Book, 2013C) उत्तर- बहादुर के आने से घर के सदस्यों को आराम मिल रहा था। घर खूब साफ और चिकना रहता। सभी कपड़े चमाचम सफेद दिखाई देते। निर्मला की तबीयत काफी सुधर गई।
प्रश्न 2. अपने शब्दों में पहली बार दिखे बहादुर का वर्णन कीजिए। (पाठ्य पुस्तक, 2011A) उत्तर- पहली बार दिखे बहादुर की उम्र बारह-तेरह वर्ष की थी। उसका रंग गोरा, मुँह चपटा एवं शरीर ठिगना चकैठ था । वह सफेद नेकर, आधी बाँह की सफेद कमीज और भूरे रंग का पुराना जूता पहने था।
प्रश्न 3. निर्मला को बहादुर के चले जाने पर किस बात का अफसोस हुआ? (पाठ्य पुस्तक, 2011A) उत्तर- जब रिश्तेदार की सच्चाई का आभास हुआ और यह बात समझ में आ गई कि बहादुर निर्दोष था तब निर्मला को अफसोस हुआ। वह यह सोचकर अफसोस कर रही थी कि वह बिना बताये क्यों चला गया।
प्रश्न 4. साले साहब से लेखक को कौन-सा किस्सा असाधारण विस्तार से सुनना पड़ा?(पाठ्य पुस्तक) उत्तर- लेखक को साले साहब से एक दुखी लड़का का किस्सा असाधारण विस्तार से सुनना पड़ा। किस्सा था कि बहादुर नेपाली था, उसका बाप युद्ध में मारा गया था और उसकी माँ सारे परिवार का भरण-पोषण करती थी।
प्रश्न 5. बहादुर पर ही चोरी का आरोप क्यों लगाया जाता है और उस पर इस आरोप का क्या असर पड़ता है? (Text Book, 2017A) उत्तर- रिश्तेदार ने सोचा कि नौकर पर आरोप लगाने से लोगों को लगेगा कि ऐसा हो सकता है। बहादुर इस आरोप से बहुत दुःखी होता है। उसके अंतरात्मा पर गहरी चोट लगती है। उस दिन से वह उदास रहने लगता है।
प्रश्न 6, बहादुर अपने घर से क्यों भाग गया था?(Text Book, 2017A)
उत्तर- एक बार बहादुर ने अपनी माँ की प्यारी भैंस को बहुत मारा। माँ ने भैंस की मार का काल्पनिक अनुमान करके एक डंडे से उसकी दुगुनी पिटाई की। लड़के का मन माँ से फट गया और वह चुपके से कुछ रुपया लिया और घर से भाग गया।
उत्तर- एक बार बहादुर ने अपनी माँ की प्यारी भैंस को बहुत मारा। माँ ने भैंस की मार का काल्पनिक अनुमान करके एक डंडे से उसकी दुगुनी पिटाई की। लड़के का मन माँ से फट गया और वह चुपके से कुछ रुपया लिया और घर से भाग गया।
प्रश्न 7. ’बहादुर’ का चरित-चित्रण करें। उत्तर- ’बहादुर’ कहानी का नायक है। उम्र तेरह-चौदह है। ठिगना कद, गोरा शरीर और चपटे मुंह वाला बहादुर अपनी माँ की उपेक्षा और प्रताड़ना का शिकार है। अपने काम में चुस्त-दुरुस्त और फुर्तीला है। मानवीय भावनाएँ हैं, सबसे बड़ी बात है कि वह स्वाभिमानी और ईमानदार है।
प्रश्न 8. किन कारणों से बहादुर ने एक दिन लेखक का घर छोड़ दिया?(Text Book, 2016C) उत्तर- लेखक के घर में प्रारंभ में बहादुर को अच्छा से रखा गया। कुछ समय पश्चात् पत्नी एवं पुत्र दोनों उसकी पिटाई बात-बात पर कर देते थे। एक रिश्तेदार के कारण लेखक ने भी बहादुर की पिराई कर दी। बार-बार प्रताड़ित होने से एवं मार खाने के कारण एक दिन अचानक बहादुर भाग गया।
प्रश्न 9. कहानीकार ’अमरकान्त’ को क्यों लगता है कि नौकर रखना बहुत जरूरी हो गया था? (Text Book, 2012C) उत्तर- लेखक की पत्नी निर्मला सबेरे से शाम तक खटती रहती थीं। सभी रिश्तेदारों के यहाँ नौकर देखकर लेखक को उनसे जलन भी हुई थी। नौकर नहीं होने के कारण लेखक और उसकी पत्नी लगभग अपने को अभागे समझने लगे थे। इन परिस्थितियों में नौकर रखना बहुत जरूरी हो गया था।
प्रश्न 10. लेखक को क्यों लगता है कि जैसे उस पर एक भारी दायित्व आ गया हो?(Text Book) उत्तर- लेखक के घर में ऐसा वातावरण उपस्थित हो गया था जिससे लगता था कि लेखक को नौकर रखना अब बहुत जरूरी है। लेकिन नौकर कैसा हो और कहाँ मिलेगा यही प्रश्न लेखक को एक भारी दायित्व के रूप में
प्रश्न 11. बहादुर के नाम से ’दिल’ शब्द क्यों उड़ा दिया गया ? विचार करें।(Text Book) उत्तर- प्रथम बार नाम पुछने में बहादुर ने अपना नाम दिलबहादुर बताया। यहाँ दिल शब्द का अभिप्राय भावात्मक परिवेश में है। बहादुर को उदारता से दूर कराकर मन और मस्तिष्क से केवल अपने घर के कार्यों में लीन रहने का उपदेश दिया गया । इस प्रकार से निर्मला द्वारा उसके नाम से दिल शब्द उड़ा दिया गया।
प्रश्न 12, घर आए रिश्तेदारों ने कैसा प्रपंच रचा और उसका क्या परिणाम निकला? (Text Book) उत्तर- लेखक के घर आए रिश्तेदारों ने अपनी झूठी प्रतिष्ठा कायम करने के लिए रुपया चोरी का प्रपंच रचा । उन्होंने बहादुर पर इस चोरी का दोषारोपण किया । इस आरोप से बहादुर को पिटाई लगी। रिश्तेदार के प्रपंच के चलते लेखक के घर का काम करने वाले बहादुर के जाने की घटना घटी और घर अस्त-व्यस्त हो गया।
प्रश्न 13. बहादुर के चले जाने पर सबका पछतावा क्यों होता है? (Text Book, 2011C, 2013C) उत्तर- बहादुर घर के सभी कार्य को कुशलतापूर्वक करता था। घर के सभी सदस्य को आराम मिलता था । किसी भी कार्य हेतु हर सदस्य बहादुर को पुकारते रहते थे। वह घर के कार्य से सभी को मुक्त रखता था। साथ रहते रहते सबसे हिलमिल गया था। डाट फटकार के बावजूद काम करते रहता था। यही सब कारणों से उसके चले जाने पर सबको पछतावा होता है।
प्रश्न 13. बहादुर के चले जाने पर सबका पछतावा क्यों होता है?(Text Book, 2011C, 2013C) उत्तर- बहादुर घर के सभी कार्य को कुशलतापूर्वक करता था। घर के सभी सदस्य को आराम मिलता था । किसी भी कार्य हेतु हर सदस्य बहादुर को पुकारते रहते थे। वह घर के कार्य से सभी को मुक्त रखता था। साथ रहते रहते सबसे हिलमिल गया था। डाट फटकार के बावजूद काम करते रहता था। यही सब कारणों से उसके चले जाने पर सबको पछतावा होता है।
इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिन्दी के पाठ दस ‘मछली (Machhli VVI Subjective Questions)’ के महत्वपूर्ण विषयनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
Machhli VVI Subjective Questions Hindi Chapter 10 मछली लेखक -विनोद कुमार शुक्ल
लघु-उत्तरीय प्रश्न (20-30 शब्दों में)____दो अंक स्तरीय प्रश्न 1. मछली को छूते हुए संतू क्यों हिचक रहा था? (Text Book 2015A) उत्तर- संतू मछलियों को छूते हुए हिचक रहा था, क्योंकि उसे डर था कि मछली काट लेगी। प्रश्न 2. संतू मछली लेकर क्यों भागा? (2018A) उत्तर- संतु मछली लेकर कुएँ में डालने के लिए भागा ताकि मछली जिन्दा होकर बड़ी हो जाए। प्रश्न 3. मछलियाँ लिए घर आने के बाद बच्चों ने क्या किया? (Text Book) उत्तर- मछलियों घर लाने के बाद बच्चों ने नहानघर में भरी हुई बाल्टी को आधी करके उसमें मछलियों को रख दिया। प्रश्न 4. मछलियों को लेकर बच्चों की अभिलाषा क्या थी ? (पाठ्य पुस्तक) उत्तर- मछलियों को लेकर बच्चों के मन में अभिलाषा थी कि एक मछली पिताजी से माँगकर उसे कुएँ में डालकर बहुत बड़ी करेंगे। प्रश्न 5. झोले में मछलियाँ लेकर बच्चे दौड़ते हुए पतली गली में क्यों घुस गए? (पाठ्य पुस्तक) उत्तर- झोले में मछलियाँ लेकर बच्चे दौड़ते हुए पतली गली में घुस गए, क्योंकि इस गली में घर नजदीक पड़ता था। दूसरे रास्तों में बहुत भीड़ थी। प्रश्न 6. दीदी कहाँ थी और क्या कर रही थी? (पाठ्य पुस्तक) उत्तर- दीदी घर के एक कमरे में थी । वह लेटी हुई थी और सिसक-सिसककर रो रही थी। वह बार-बार हिचकी ले रही थी जिससे उसका शरीर सिहर उठता था। प्रश्न 7, मछली के बारे में दीदी ने क्या जानकारी दी थी? बच्चों ने उसकी परख कैसे की? (पाठ्य पुस्तक) उत्तर- मछली के बारे में दीदी ने जानकारी दी थी कि मरी हुई मछली की आँख में अपनी परछाई नहीं दिखती है। बच्चों ने उसकी परख एक मृत मछली की आँख में झाँककर की। प्रश्न 8, संतू क्यों उदास हो गया ? (Text Book) उत्तर- संतू यह जानकर उदास हो गया था कि मछली कुछ देर बाद कट जायेगी। वह मछली को जीवित पालना चाहता था। मछली को विछुड़ते हुए जानकर वह दुःखी हो गया। प्रश्न 9. अरे-अरे कहता हुआ भग्गू किसके पीछे भागा और क्यों ? (Text Book) उत्तर- अरे अरे कहता हुआ भग्गू संतू के पीछे भागा क्योंकि संतू एक मछली को लेकर भाग रहा था। भग्गू को डर था कि संतु मछली को कुओं में डाल देगा जिसके चलते उसे डांट पड़ेगी। संतू से मछली लेने के लिए वह उसके पीछे भागा । प्रश्न 10. घर में मछली कौन खाता था और वह कैसे बनायी जाती थी? (Text Book) उत्तर- घर में मछली केवल पिताजी खाते थे। मछली को उस घर का नौकर काटता था। उसे काटने के लिए अलग पाया था। पहले मछली को पत्थर पर पटककर मार दिया जाता था, फिर राख से मलने के बाद पाटा पर रखकर चाकु से काटा जाता था। मछली बनाने का कार्य नहानघर में होता था। प्रश्न 11. मछली और दीदी में क्या समानता दिखलाई पड़ी? स्पष्ट करें। (Text Book 2013,C 2014A) उत्तर- आदमी के चंगुल में आकर मछली कटने को विवश थी। पानी के अभाव में अंगोछा में लिपटी मछली लहरा रही थी। दीदी कमरा में करवट लिए, पहनी हुई साड़ी को सर तक ओड़े, सिसक-सिसक कर रो रही थी। हिचकी लेते ही दीदी का पूरा शरीर सिहर उठता था। दीदी का सिहरना एवं मछली का लहराना दोनों में समानता दिखलाई पड़ी। प्रश्न 12. पिताजी किससे नाराज थे और क्यों? (Text Book 2013C) उत्तर- पिताजी नरेन से नाराज थे। क्योंकि, बच्चों मछलियों के चलते स्वयं परेशान रहे साथ ही भग्गू को भी परेशान किया। बच्चे मछली को पालना चाहते थे, कोमल मछली को कटते देख विह्वल हो उठा और बच्चा एक मछली को लेकर भाग गया। पीछे-पीछे भग्गू को भागना पड़ा। छीना-झपटी की स्थिति आई। पिताजी इन हरकतों के कारण नाराज हुए।
इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के पाठ 7 (Parampara Ka Mulyankan) “परंपरा के मूल्यांकन” के व्याख्या को पढ़ेंगे, जिसके लेखक रामबिलास शर्मा है | इस पाठ में साहित्य के परंपरा के बारे में बताया गया है |
7.परंपरा का मूल्यांकन (Parampara Ka Mulyankan) लेखक परिचय लेखक का नाम- रामविलास शर्मा जन्म- 10 अक्टूबर 1912 ई०, उन्नाव जिला के ऊँचा गाँव सानी में मृत्यु- 30 मई 2000 ई०
इन्होनें अंग्रजी विषय में लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में एम० ए० तथा पी० एच० डी० की उपाधि प्राप्त की। इन्होनें कुछ समय तक कन्हैया लाल, माणिकलाल मुंशी हिंदी विद्यापीठ, आगरा में निदेशक पद को सुशोभित किया।
रचनाएँ- निराला की साहित्यसाधना, भारतेन्दु हरिश्चंद्र, प्रेमचंद और उनका युग, भाषा और समाज, भारत में अंग्रेजी और मार्क्सवाद, इतिहास दर्शन, घर की बात आदि।
पाठ परिचय- प्रस्तुत पाठ ‘परम्परा का मूल्यांकन’ इसी नाम की पुस्तक से संकलित है। इसमें लेखक ने समाज, साहित्य तथा परंपरा से संबंधों की सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक मीमांसा पर विचार किया है। यह निबंध परंपरा के ज्ञान, समझ और मूल्यांकन का विवेक जगाता साहित्य की सामाजिक विकास में क्रांतिकारी भूमिका को भी स्पष्ट करता चलता है। अतः यह निबंध नई पीढ़ी में परंपरा और आधुनिकता को युग के अनुकूल नई समझ विकसित करने में सराहनीय सहयोग करता है।
पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ ‘परम्परा का मूल्यांकन’ ख्यातिप्राप्त आलोचक रामविलास शर्मा द्वारा लिखित है। इसमें लेखक ने प्रगतिशील रचनाकारों के विषय में अपना विचार प्रकट किया है।
लेखक का मानना है कि क्रांतिकारी साहित्य-रचना करनेवालों के लिए साहित्य की परम्परा का ज्ञान होना अति आवश्यक है क्योंकि साहित्यिक-परम्परा के ज्ञान से ही प्रगतिशील आलोचना का विकास होता है और साहित्य की धारा बदली जा सकती है। तथा नए प्रगतिशील साहित्य का निर्माण किया जा सकता है।
मनुष्य आर्थिक जीवन के अलावा एक प्राणि के रूप में भी जीवन व्यतीत करता है। साहित्य विचारधारा मात्र नहीं है। साहित्य में विकास प्रक्रिया चलती रहती है। जैसे-जैसे समाज का विकास होता है वैसे-वैसे साहित्य का भी। व्यवहार में देखा जाता है कि 19 वीं तथा 20 वीं सदी के कवि क्या भारत के, क्या यूरोप के, ये तमाम कवि अपने पूर्ववर्ती कवियों की रचनाओं का मनन करते हैं, उनसे सिखते हैं और नई परम्पराओं को जन्म देते हैं।
दूसरों को नकल करके लिखा गया साहित्य अधम कोटि का होता है और सांस्कृतिक असमर्थता का सूचक होता है। लेकिन उतम कोटि का साहित्य दूसरी भाषा में अनुवाद किए जाने पर अपना कलात्मक-सौन्दर्य खो देता है। तात्पर्य यह कि ऐसे साहित्य से कला की आवृति नहीं हो सकती। जैसे- अमेरिका अथवा रूस ने एटम बम बनाए, लेकिन शेक्सपियर के नाटकों जैसी चीज दुबारा लेखन इंगलैड में भी नहीं हुआ। 19वीं सदी में शेली तथा वायरन ने अपनी स्वाधीनता के लिए लड़ने वाले यूनानीयों को एकात्मकता की पहचान करने में सहयोग किया था।
भारतीयों ने भी अपनी स्वाधीनता संग्राम के दौरान इस एकात्मकता को पहचाना। मानव समाज बदलता है और अपनी अस्मिता कायम रखता है, क्योंकि जो तत्व मानव समुदाय को एक जाति के रूप में संगठित करता है। साहित्य पंरपरा के ज्ञान के कारण ही पूर्वी एवं पश्चिमी बंगाल के लोग सांस्कृतिक रूप से एक हैं। कोई भी देश बहुजातिय तथा बहुभाषी होने के बावजूद जब उस देश पर कोई मुसीबत आती है तो उस समय वह राष्ट्रीय अस्मिता समर्थ प्रेरक बनकर लोगों को मुसीबत से लड़ने में सहयोग करती है।
जैसे- हिटलर के आक्रमण के समय रूसी जाति ने बार-बार अपने साहित्य परंपरा का स्मरण किया। टॉल्स्टाय सोवियत समाज में पढ़े जाने वाले साहित्य के महान साहित्यकार हैं तो रूसी जाति के अस्मिता को सुदृढ़ एवं पुष्ट करने वाले साहित्यकार भी हैं।
1917 ई0 के रूसी क्रांति के पहले वहाँ रूसी तथा गैर-रूसी थे, किन्तु इस क्रांति के बाद रूसी तथा गैर रूसी जातियों के संबंधों में बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ। सभी जातियाँ एक हो गई। फिर भी जातियों का मिला-जुला इतिहास जैसा भारत का है, वैसा सोवियत संघ का नहीं है। यूरोप के लोग यूरोपियन संस्कृति की बात करते हैं, लेकिन यूरोप कभी राष्ट्र नहीं बना।
राष्ट्रीयता की दृष्टी से भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ राष्ट्रीय एक जाति द्वारा दूसरी जाति पर थोपी नहीं गई, बल्कि वह संस्कृति तथा इतिहास की देन है। इस संस्कृति के निर्माण में देश के कवियों का महान योगदान है। रामायण एवं महाभारत इस देश की संस्कृति की एक कड़ी है। जिसके बिना भारतीय साहित्य की एकता भंग हो जाएगी।
लेखक का तर्क है कि यदि जारशाही रूस समाजवादी व्यवस्था कायम होने पर नवीन राष्ट्र के रूप में पुनर्गठित हो सकता है तो भारत में समाजवादी व्यवस्था कायम होने पर यहाँ की राष्ट्रीय अस्मिता पहले से कितना पुष्ट होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। अतः समाजवाद हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है।
पूँजीवादी व्यवस्था में शक्ति का अपवाह होता है। देश के साधनों का समुचित उपयोग समाजवादी व्यवस्था में ही होता है। देश की निरक्षर निर्धन जनता जब साक्षर होगी तो वह रामायण तथा महाभारत का ही अध्ययन नहीं करेगी, अपितु उत्तर भारत के लोग दक्षिण
भारत की कविताएँ तथा दक्षिण भारत के लोग उत्तर भारत की कविताएँ बड़े चाव से पढ़ेंगे। दोनों में बड़े पैमाने पर सांस्कृतिक आदान-प्रदान होगा। तब अंग्रेजी भाषा प्रभुत्व जमाने की भाषा न होकर ज्ञानार्जन की भाषा होगी।
हम अंग्रेजी ही नहीं, यूरोप की अनेक भाषाओं का अध्ययन करेंगे। एशिया के भाषाओं के साहित्य से हमारा गहरा परिचय होगा, तब मानव संस्कृति की विशाल धारा में भारतीय साहित्य की गौरवशाली परम्परा का नवीन योगदान होगा।
इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड वर्ग 10 के हिन्दी के पाठ 6 (Bahadur class 10 Hindi) “बहादुर” के व्याख्या को पढेंगे, जिसके लेखक अमरकांत हैं।
6. बहादुर (Bahadur class 10 Hindi)
लेखक परिचय लेखक का नाम- अमरकान्त जन्म- 1 जुलाई 1925 ई0, बलिया जिले के नगरा गाँव में मृत्यु- 17 फरवरी 2014 ई0 (उम्र 89 वर्ष), इलाहाबाद
इन्होनें हाई स्कुल की शिक्षा बलिया में पाई। स्वाधीनता संग्राम में हाथ बटाने के कारण 1946 ई० में सतीशचन्द्र कॉलेज बलिया से इंटरमीडिएट किया। इसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी० ए० की परीक्षा पास करने के बाद आगरा के दैनिक पत्र ’सैनिक’ के संपादकीय विभागों से संबंध रहे।
रचनाएँ- जिन्दगी और जोंक, देश के लोग, मौत का नगर, मित्र-मिलन, कुहासा, सूखा पत्ता, आकाशपक्षी, कोले उजले दिन, सुखजीवी, बीच की दीवार, ग्राम सेविका। इन्होनं ’वानरसेना’ नामक एक बाल उपन्यास भी लिखा है।
पाठ परिचय- प्रस्तुत कहानी ’बहादुर’ में शहर के एक निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार में काम करने वाले एक नेपाली गँवई गोरखे बहादुर की कहानी वर्णित है। बहादुर एक नौकरी पेशा परिवार में आत्मीयता के साथ सेवाएँ देने के बाद परिवार के सदस्यों के दुर्व्यवहार के कारण अपने स्वच्छंद निश्छल स्वभाववश स्वच्छंदता के साथ नौकरी छोड़ देता है। उसकी आत्मीयता तथा त्याग परिवार के हर सदस्य में एक कसकती अन्तर्व्यथा पैदा कर देती है, क्योंकि घर के मुखिया के झूठी सान तथा क्रूर व्यवहार का पोल खुल जाता है।
पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ ’बहादुर’ अमरकान्त के द्वारा लिखा है। इसमें लेखक ने बहादुर नामक एक नेपाली लड़का के रूप-रंग, स्वभाव कर्मनिष्ठा, त्याग तथा स्वाभिमान का मार्मिक वर्णन किया है।
एक दिन लेखक ने बारह-तेरह वर्ष की उम्र के ठिगना चकइठ शरीर, गोरे रंग तथा चपटा मुँह वाले लड़के को देखा। वह सफेद नेकर, आधी बाँह की सफेद कमीज और भूरे रंग का पुराना जूता पहने था। उसके गले में स्काउटों की तरह एक रूमाल बँधा था। परिवार के सभी सदस्य उसे पैनी दृष्टि से देख रहे थे। लेखक को नौकर रखना अति आवश्यक हो गया था। क्योंकि उनके भाई तथा रिश्तेदारों के घर नौकर थे।
उनकी भाभियाँ रानी की तरह चारपाइयाँ तोड़ती थी, जबकि उनकी पत्नी निर्मला दिन से लेकर रात तक परेशान रहती थी। इसलिए लेखक के साले ने उनके घर नौकर के लिए लाया था। वह नेपाल तथा बिहार की सीमा पर रहता था। उसका बाप युद्ध में मारा गया था। माँ ही सारे परिवार का भरण-पोषण करती थी। वह गुस्सैल स्वभाव की थी। वह चाहती थी कि उसका बेटा घर के काम में हाथ बटाए, किंतु काम करने के नाम पर वह जंगलों में भाग जाता था, जिस कारण माँ उसे मारती थी।
एक दिन चराने ले गये पशुओं में से उस भैंस को उसने बहुत मारा, जिसको उसकी माँ उसे बहुत प्यार करती थी। मार खाकर भैंस भागीदृभागी उसकी माँ के पास पहुंच गई। भैंस के मार का काल्पनिक अनुमान करके माँ ने उसकी निर्दयता से पिटाई कर दी।
लड़के का मन माँ से फट गया। उसने माँ के रखे रूपयों में से दो रूपये निकाल लिये और वहाँ से भाग गया तथा छः मील दूर बस-स्टेशन पहुँच गया। वहाँ उसकी भेंट लेखक से होती है। लेखक ने उसका नाम पूछा। उसने अपना नाम दिलबहादुर बताया। लेखक तथा उसकी पत्नी ने उसे काम के ढंग के बारे में बताया, साथ ही, मीठे वचनों से उसका दिल भर दिया। निर्मला ने उसके नाम से ’दिल’ हटा दिया। वह अब दिल बहादुर से बहादुर बन गया।
बहादुर अति हँसमुख तथा मेहनती लड़का था। वह हर काम हँसते हुए कर लेता था। लेखक की पत्नी निर्मला भी उसका पूरा ख्याल रखती थी। उसकी वजह से घर का उत्साहपूर्ण वातावरण था।
निर्मला ऐसे नौकर पाकर अपने-आप के धन्य समझती थी। इसलिए वह आँगन में खड़ी होकर पड़ोसियों को सुनाते हुए कहती थी, बहादुर आकर नास्ता क्यों नहीं कर लेते ? मैं दूसरी औरतों की भाँति नहीं हुँ। मैं तो नौकर-चाकर को अपने बच्चों की तरह रखती हूँ।
बहादुर भी घर का सारा काम करने लगा, जैसे- सवेरे उठ कर नीम के पेड़ से दातुन तोड़ना, घर की सफाई करना, कमरों में पोंछा लगाना, चाय बनाना तथा पिलाना, दोपहर में कपड़े धोना, बर्तन मलना आदि।
बहादुर सिधा-साधा तथा रहमदिल बालक था। अपनी मालकिन की तबीयत ठीक नहीं रहने पर काम न करने का आग्रह करता था और दवा खाने का समय होने पर वह भालू की तरह दौड़ता हुआ कमरे में जाता और दवाई का डिब्बा निर्मला के सामने लाकर रख देता था।
वह कृतज्ञ बालक था। निर्मला के पूछने पर उसने कहा कि माँ बहुत मारती थी, इसलिए माँ की याद नहीं आती है, परन्तु माँ के पास पैसा भेजने के संबंध में उसका उत्तर था- माँ-बाप का कर्जा तो जन्म भर भरा जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि वह मस्त और नेक इन्सान था।
उसकी मस्ती का पता तब चलता था जब रात का काम समाप्त करने के बाद एक टूटी खाट पर बैठ जाता तथा नेपाली टोपी पहनकर आइना में बंदर की तरह मुँह देखता और कुछ देर तक खेलने के बाद वह धीमे स्वर में गुनगुनाने लगता था। उसके पहाड़ी गाने से घर में मीठी उदासी फैल जाती थी। उसकी गीत को सुनकर लेखक को लगता कि जैसे कोई पहाड़ की निर्जनता में अपने किसी बिछड़े हुए साथी को बुला रहा हो।
लेखक अपने को ऊँचा तथा मोहल्ले के लोगों को तुच्छ मानने लगे, क्योंकि उनके यहाँ नौकर था। बहादुर की वजह से घर के सभी लोग आलसी हो गए। मामूली काम के लिए बहादुर की पुकार होने लगी। जिससे बहादुर को घर में हमेशा नाचना पड़ता था। बड़ा लड़का किशोर ने अपना सारा काम बहादुर को सौंप दिए। वह नौकर को बड़े अनुशासन में रखना चाहता था। इसलिए काम में कोई गड़बड़ी होती तो उसको बुरी-बुरी गालियाँ देता और मारता भी था।
समय बीतने के साथ ही लेखक के मनोस्थिति भी बदल जाती है। अब बहादुर को नौकर की दृष्टि से देखा जाता है। उसे अपना भोजन स्वयं बनाने के लिए मजबूर किया जाता है। रोटी बनाने से इंकार करने पर निर्मला से मार खाता है।
इतना हि नहीं, कभी-कभी एक गलती के लिए निर्मला तथा किशोर दोनों मारते थे, जिस कारण बहादुर से अधिक गलतियाँ होने लगी। लेखक यह सोचकर चुप रहने लगे कि नौकर-चाकर के साथ मारपीट होना स्वभाविक है।
इसी बीच एक दूसरी घटना घट जाती है। लेखक के घर कोई रिश्तेदार आता है। उनके भोजन के लिए रोहु मछली और देहरादूनी चावल मंगाया जाता है। नास्ता- पानी के बाद बातों की जलेबी छनने लगती है। अचानक उस रिश्तेदार की पत्नी रूपये गुम होने की बात कहकर घर में भूचाल उत्पन्न कर देती है। बहादुर के सिर दोष मढ़ा जाता है।
लेखक को विश्वास नहीं होता, क्योंकी बहादुर ने जब इधर-उधर पैसे पड़ा देखता तो उठाकर निर्मला के हाथ में दे दिया करता था।
किंतु रिश्तेदार के यह कहने पर की नौकर-चाकर चोर होते हैं, लेखक ने उससे कड़े स्वर में पुछा- तुमने यहाँ से रूपये उठाये थे ? उसने निर्भीकतापूर्वक उत्तर दिया, ’नहीं बाबुजी’। बहादुर का मुँह काला पड़ गया, लेखक ने उसके गाल पर एक तमाचा जड़ दिया कि ऐसा करने से बता देगा। उसकी आँखों से आँसु गिरने लगे। इसी समय रिश्तेदार साहब ने बहादुर का हाथ पकड़कर दरवाजे की ओर घसीट कर ले गए, जैसे पुलिस को देने जा रहे हों। फिर भी उसने पैसे लेने की बात स्वीकार नहीं की तो निर्मला भी अपना रोब जमाने के लिए दो-चार तमाचे जड़ दिए।
इस घटना के बाद बहादुर काफी डाँट-मार खाने लगा। किशोर उसकी जान के पिछे पड़ गया था। एक दिन बहादुर वहाँ से भाग निकला।
लेखक जब दफ्तर से लौटा तो घर में उदासी छाई हुई थी। निर्मला चुपचाप आँगन में सिर पर हाथ रख कर बैठी थी। आँगन गंदा पड़ा था। बर्तन बिना मले रखे हुए थे। सारा घर अस्त-व्यस्त था। बहादुर के जाते ही सबके होश उड़ गये थे। निर्मला अपने बदकिस्मती का रोना रो रही थी।
लेखक बहादुर का त्याग देखकर भौंचक्का रह जाता है, क्योंकि उसने अपना तनख्वाह, वस्त्र, विस्तर तथा जुते सब कुछ वहीं छोड़ गया था, जिससे बहादुर के अंदर के दर्द का पता चलता है। वह गरीब होते हुए भी आत्म अभिमानी था। मार तथा गाली-गलौज के कारण ही वह माँ से दुखी था तथा उसने घर का त्याग किया था।
इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड वर्ग 10 के हिन्दी के पाठ पांच (Nagri Lipi) “नागरी लिपि” के व्याख्या को पढेंगे, जिसके लेखक गुणाकर मुले हैं।
लेखक परिचय लेखक का नाम- गुणाकर मुले जन्म- 3 जनवरी, 1935 ई0, महाराष्ट्र के अमरावती जिला में मृत्यु- 16 अक्टूबर, 2009 ई0
इन्होनें अपनी शिक्षा-दीक्षा ग्रामीण परिवेश और माराठी भाषा में पाई। मिडिल स्तर तक मराठी में पढ़ाई करने के बाद ये वर्धा चले गये और वहाँ उन्होनें दो वर्षों तक नौकरी की तथा हिन्दी और अंग्रेजी का अध्ययन किया। इसके बाद इलाहाबाद में गणित विषय से एम0 ए0 किया।
रचनाएँ- अक्षरों की कहानी, भारतः इतिहास और संस्कृति, प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक, सौर मंडल, सूर्य, नक्षत्र लोक, भारतीय लिपियों की कहानी, भारतीय विज्ञान की कहानी आदि।
पाठ परिचय- प्रस्तुत पाठ गुणाकर मुले की पुस्तक ’भारतीय लिपियों की कहानी’ से लिया गया है। इसमें हिन्दी की लिपि नागरी या देवनागरी के ऐतिहासिक रूपरेखा के बारे में बताया गया है।
पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ ’नागरी लिपि’ गुणाकर मुले के द्वारा लिखित है। इसमें लेखक ने देवनागरी लिपि की उत्पति, विकास एवं व्यवहार पर अपना विचार व्यक्त किया गया है। लेखक का कहना है कि जिस लिपि में यह पुस्तक छपी है, उसे नागरी या देवनागरी लिपि कहते हैं। इस लिपि की टाइप लगभग 250 वर्ष पहले बनी। इसके विकास से अक्षरों में स्थिरता आ गई।
हिन्दी तथा इसकी विविध बोलियाँ, संस्कृत एवं नेपाली आदि इसी लिपि में लिखी जाती है। देवनागरी के संबंध में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि विश्व में संस्कृत एवं प्राकृत की पुस्तकें प्रायः इसी लिपि में छपती है।
देश में बोली जाने वाली भिन्न-भिन्न भाषाएँ तथा बोलियाँ भी इसी लिपि में लिखी जाती है। तमिल, मलयालम, तेलुगु एवं कन्नड़ की लिपियों में भिन्नता दिखाई पड़ती है, लेकिन ये लिपियाँ भी नागरी की तरह ही प्राचीन ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई है।
लेखक का कहना है कि नागरी लिपि के आरंभिक लेख हमें दक्षिण भारत से ही मिले हैं। यह लिपि नंदिनागरी लिपि कहलाती थी। दक्षिण भारत में तमिल-मलयालम और तेलुगु-कन्नड़ लिपियों का स्वतंत्र विकास हो रहा है, फिर भी कई शासकों ने नागरी लिपि का प्रयोग किया है। जैसे- ग्यारहवीं सदी में राजराज और राजेन्द्र जैसे प्रतापी चोल राजाओं के सिक्कों पर नागरी अक्षर अंकित है तो बारहवीं सदी में केरल के शासकों के सिक्कों पर “विर केरलस्य’।
इसी प्रकार नौवीं सदी के वरगुण का पलियम ताम्रपत्र नागरी लिपि में है तो ग्यारहवीं सदी में इस्लामी शासन की नींव डालने वाले महमूद गजनवी के चाँदी के सिक्कों पर भी नागरी लिपि के शब्द मिलते हैं।
गजनवी के बाद मुहम्मद गोरी, अलाउदीन खिलजी, शेरशाह आदि शासकों ने भी सिक्कों पर नागरी शब्द खुदवाए। अकबर के सिक्कों पर तो नागरी लिपि में ’रामसीय’ शब्द अंकित है। तात्पर्य है कि नागरी लिपि का प्रचलन ईसा की आठवीं-नौवीं सदी से आरंभ हो गया था।
लेखक ने लिपि के पहचान में कहा है कि ब्राह्मी तथा सिद्धम् लिपि अक्षर तिकोन है जबकि नागरी लिपि के अक्षरों के सिरों पर लकिर की लम्बाई और चौड़ाई एक समान है।
प्राचीन नागरी लिपि के अक्षर आधुनिक नागरी लिपि से मिलते-जुलते हैं। इस प्रकार दक्षिण भारत में नागरी लिपि के लेख आठवीं सदी से तथा उत्तर भारत में नौवीं सदी से मिलने लग जाते हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि इस नई लिपि को नागरी, देवनागरी तथा नंदिनागरी क्यों कहते हैं ? —नागरी शब्द के उत्पति के संबंध में विद्वानों का मत एक नहीं है। कुछ विद्वानों का मत है कि गुजरात के नागर ब्राह्मण ने इस लिपि का सर्वप्रथम प्रयोग किया था, इसलिए इसका नाम नागरी पड़ा, किंतु कुछ विद्वानों के मत के अनुसार अन्य नगर तो मात्र नगर है, परन्तु काशी को देवनगरी माना जाता है, इसलिए इसका नाम देवनागरी पड़ा।
अल्बेरूनी के अनुसार 1000 ई0 के आसपास नागरी शब्द अस्तित्व में आया। इतना निश्चित है कि नागरी शब्द किसी नगर अथवा शहर से संबंधित है। दूसरी बात यह है कि उत्तर भारत की स्थापत्य-कला की विशेष शैली को ’नागर शैली’ कहा जाता था। यह नागर या नागरी उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता था। उस समय उत्तर भारत में प्राचीन पटना सबसे बड़ा नगर था। साथ ही गुप्त शासक चन्द्रगुप्त (द्वितीय) ’विक्रमादित्य’ का व्यक्तिगत नाम ’देव’ था, संभव है कि गुप्तों की राजधानी पटना को ’देवनगर कहा गया हो और देवनगर की लिपि होने के कारण देवनागरी नाम दिया गया हो।
अन्ततः लेखक इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि ईसा के आठवीं से ग्यारहवीं सदी तक यह लिपि सार्वदेशिक हो गई थी, इसलिए इसके नामकरण के विषय में कुछ कहना संभव नहीं लगता।
मिहिर भोज की ग्वालियर प्रशस्ति नागरी लिपि में है। धारा नगरी का परमार शासक भोज अपने विद्यानुराग के लिए इतिहास प्रसिद्ध है। 12 वीं सदी के बाद भारत के सभी हिंदू शासक तथा कुछ इस्लामी शासकों ने अपने सिक्कों पर नागरी लिपि अंकित किए हैं।
इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड वर्ग 10 के हिन्दी के पाठ 4 (Nakhun Kyon Badhte Hain) ‘ नाखून क्यों बढ़ते हैं‘ के सारांशको पढेंगे, जिसके लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी हैं।
4. नाखून क्यां बढ़ते हैं लेखक परिचय लेखक का नाम- हजारी प्रसाद द्विवेदी जन्म- 19 अगस्त 1907 ई0, उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के ‘आरत दूबे का छपरा‘ नामक गाँव मृत्यु- 19 मई 1979 ई0 पिता- श्री अनमोल द्विवेदी माता- श्रीमति ज्योतिष्मती
इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही संस्कृत के माध्यम से हुई। उच्च शिक्षा के लिए ये काशी हिन्दु विश्वविद्यालय गए। वहाँ से इन्होनें ज्योतिषाचार्य की उपाधि प्राप्त की। कबीर पर गहन अध्ययन करने करने के कारण 1949 ई0 में लखनऊ विश्वविद्यालय ने इन्हें पी० एच० डी० की मानक उपाधि से सम्मानित किया। 1957 ई0 में भारत सरकार के द्वारा इन्हें पद्मभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया।
साहित्यिक रचनाएँ- अशोक के फूल, कुटज, कल्पलता, वाणभट्ट की आत्म कथा, पुर्ननवा, चारुचन्द्रलेख, अनामदास का पोथा, हिन्दी साहित्य का उद्भव और विकाश, हिन्दी साहित्य की भूमिका आदि।
पाठ परिचय-प्रस्तुत निबंध ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं‘ में मनुष्य की मनुष्यता का साक्षात्कार कराया गया है। लेखक के अनुसार नाखुनों का बढ़ना मनुष्य की पाशवी वृति का प्रतिक है और उन्हें काटना या न बढ़ने देना उसमें निहित मानवता का। आज से कुछ ही लाख वर्ष पहले मनुष्य जब वनमानुष की तरह जंगली था, उस समय नख ही उसके अस्त्र थे। आधुनिक मनुष्य ने अनेक विनाशकारी अस्त्र-शस्त्रों का निमार्ण कर लिया है। अतः नाखून बढ़ते हैं तो कोई बात नहीं, पर उन्हें काटना मनुष्यता की निशानी है। हमें चाहिए कि हम अपने भीतर रह गए पशुता के चिन्हों को त्याग दें और उसके स्थान पर मनुष्यता को अपनाएँ।
Bihar board class 10th Hindi Nakhun Kyon Badhte Hain
पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं‘ हजारी प्रसाद द्विवेदी के द्वारा लिखा गया है। इसमें लेखक ने नाखूनों के माध्यम से मनुष्य के आदिम बर्बर प्रवृति का वर्णन करते हुए उसे बर्बरता त्यागकर मानवीय गुणों को अपनाने का संदेश दिया है। एक दिन लेखक की पुत्री ने प्रश्न पूछा कि नाखून क्यों बढ़ते हैं ? बालिका के इस प्रश्न से लेखक हतप्रभ हो गए। प्रतिक्रिया स्वरूप लेखक ने इस विषय पर मानव-सभ्यता के विकास पर अपना विचार प्रकट करते हुए आज से लाखों वर्ष पूर्व जब मनुष्य जंगली अवस्था में था, तब उसे अपनी रक्षा के लिए हथियारों की आवश्यकता थी। इसके लिए मनुष्य ने अपनी नाखूनों को हथियार स्वरूप प्रयोग करने के लिए बढ़ाना शुरू किया, क्योंकि अपने प्रतिद्वन्द्वियों से जूझने के लिए नाखून ही उसके अस्त्र थे। इसके बाद पत्थर, पेड़ की डाल आदि का व्यवहार होने लगा। इस प्रकार जैसे-जैसे मानव सभ्यता का विकास होता गया, मनुष्य अपने हथियारों में भी विकास करने लगा।
उसे इस बात पर हैरानी होती है कि आज मनुष्य नाखून न काटने पर अपने बच्चों को डाँटता है, किन्तु प्रकृति उसे फिर भी नाखून बढ़ाने को विवश करती है। मनुष्य को अब इससे कई गुना शक्तिशाली अस्त्र-शस्त्र मिल चूके हैं, इसी कारण मनुष्य अब नाखून नहीं चाहता है। लेखक सोचता है कि मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है ? मनुष्यता की ओर अथवा पशुता की ओर। अस्त्र-शस्त्र बढ़ाने की ओर अथवा अस्त्र-शस्त्र घटाने की ओर। आज के युग में नाखून पशुता के अवशेष हैं तथा अस्त्र-शस्त्र पशुता के निशानी है।
इसी प्रकार भाषा में विभिन्न शब्द विभिन्न रूपों के प्रतिक हैं। जैसे- इंडिपेंडेंस शब्द का अर्थ होता है अन-धीनता या किसी की अधीनता की अभाव, किंतु इसका अर्थ हमने स्वाधीनता, स्वतंत्रता तथा स्वराज ग्रहण किया है।
यह सच है कि आज परिस्थितियाँ बदल गई हैं। उपकरण नए हो गए हैं, उलझनों की मात्रा भी बढ़ गई है, परंतु मूल समस्याएँ बहुत अधिक नहीं बदली है। लेकिन पुराने के मोह के बंधन में रहना भी सब समय जरूरी नहीं होता। इसलिए हमें भी नएपन को अपनाना चाहिए। लेकिन इसके साथ हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि नये की खोज में हम अपना सर्वस्व न खो दें। क्योंकि कालिदास ने कहा है कि ‘सब पुराने अच्छे नहीं होते और सब नए खराब नहीं होते।‘ अतएव दोनों को जाँचकर जो हितकर हो उसे ही स्वीकार करना चाहिए।
मनुष्य किस बात में पशु से भिन्न है और किस बात में एक ? आहार-निद्रा आदि की दृष्टि से मनुष्य तथा पशु में समानता है, फिर भी मनुष्य पशु से भिन्न है। मनुष्य में संयम, श्रद्धा, त्याग, तपस्या तथा दूसरे के सुख-दुःख के प्रति संवेदना का भाव है जो पशु में नहीं है। मनुष्य लड़ाई-झगड़ा को अपना आर्दश नहीं मानता है। वह क्रोधी एवं अविवेकी को बुरा समझता है।
लेखक सोचता है कि ऐसी स्थिति में मनुष्य को कैसे सुख मिलेगा, क्योंकि देश के नेता वस्तुओं के कमी के कारण उत्पादन बढ़ाने की सलाह देता है लेकिन बूढे़ आत्मावलोकन की ओर ध्यान दिलातें है। उनका कहना है कि प्रेम बड़ी चीझ है, जो हमारे भीतर है। इस निबंध में लेखक ने मानवीता पर बल दिया है। महाविनाश से मुक्ति की ओर ध्यान खींचा है।
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इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड वर्ग 10 के हिन्दी के पाठ 2 (Bish ke Dant) विष के दाँत को पढेंगे, जिसके लेखक नलिन विलोचन शर्मा है।
हिंदी कक्षा 10 पाठ 2 विष के दाँत
लेखक परिचय
लेखक- नलिन विचोलन शर्मा जन्म- 18 फरवरी 1916 ई0 (पटना के बदरघाट) निधन- 12 सितम्बर 1961 ई0
वे विख्यात विद्वान पं0 रामावतार शर्मा के ज्येष्ठ पुत्र थे। माता का नाम रत्नावती शर्मा था। उन्होनें स्कुल की पढ़ाई पटना कॉलेजिएट से पूरी की तथा संस्कृत और हिन्दी में एम0 ए0 पटना विश्वविद्यालय से किया। प्रमुख रचनाएँ- दृष्टिकोण, साहित्य का इतिहास दर्शन, मानदंड, साहित्य तत्व और आलोचना, विष के दाँत तथा संत परम्परा और साहित्य पाठ परिचय- प्रस्तुत कहानी ‘विष के दाँत’ में मध्यमवर्गीय अन्तर्विरोधों को उजागर किया गया है। आर्थिक कारणों से मध्यवर्ग के भीतर ही एक ओर सेन साहब जैसे महत्वाकांक्षी तथा सफेदपोशी अपने भीतर लिंग-भेद जैसे कुसंस्कार छिपाए हुए हैं तो दूसरी ओर गिरधर जैसे नौकरी पेशा निम्न मध्यवर्गीय है जो अनेक तरह के थोपी गई बंदिशों के बीच भी अपने अस्तित्व को बहादुरी एवं साहस के साथ बचाए रखने के लिए संघर्षरत है। यह कहानी समाजिक भेदभाव, लिंग-भेद, आक्रामक स्वार्थ की छाया में पलते हुए प्यार दुलार के कुपरिणामों को उभरती हुई सामाजिक समानता एवं मानवाधिकार की महत्वपूर्ण नमूना पेश करती है।
Vish ke Dant पाठ का सारांश
सेन साहब एक अमीर आदमी थे। उनकी पाँच लड़कियाँ थी, एक लड़का था। लड़कियाँ क्या थी कठपुतलियाँ। वे किसी चीझ को ताड़ती-फोड़ती न थी। दौड़ती और खेलती भी थी, तो केवल शाम के वक्त। सेन साहब नयी मोटरकार ली थी- स्ट्रीमलैण्ड। काली चमकती हुई, खुबसूरत गाड़ी थी। सेन साहब को उस पर नाज था। एक धब्बा भी न लगने पाये- क्लिनर और शोफर को सेन साहब की सख्त ताकीद थी। चूँकि खोखा सबसे छोटा और सेन साहब के नाउम्मीद बुढ़ापे की आँखों का तारा था इसलिए मोटर को कोई खतरा था तो खोखा से ही।
एक दिन की बात है कि सेन साहब का शोफर एक औरत से उलझ पड़ा बात यह थी कि उसका पाँच-छः साल का बच्चा मदन गाड़ी को छुकर गंदा कर रहा था और शोफर ने जब मना किया तो वह उल्टे शोफर से ही उलझ पड़ी।
वह मामला अभी सिमटा ही था कि इस बीच खोखे ने मोटर की पिछली बती का लाल शीशा चकनाचुर कर दिया। लकिन सेन साहब ने इसका बुरा नहीं माना और अपने मित्राें से कहा- ‘देखा, आपलोगों ने ? बड़ा शरारती हो गया है काशु। मोटर के पिछे हरदम पड़ा रहता है। काशु ने मिस्टर सिंह साहब के अगले तथा पिछले पहीयां के हवा निकाल दी थी। जब मिस्टर सिंह विदा हो गये तो सेन साहब ने मदन के पिता गिरधर लाल को जो उनके फैक्ट्री में किरानी था। उसे सेन साहब ने खुब खरी-खोटी सुनाई और कहा कि बच्चों को सम्भाल कर रखो। उस रात गिरधारी लाल ने अपने बेटे मदन की खुब पिटाई की।
दूसरे दिन शाम को मदन, कुछ लड़कों के साथ लट्टू नचा रहा था। खोखा ने भी लट्टू नचाने के लिए, माँगा लेकिन मदन ने उसे फटकार दिया- ‘अबे, भाग जा यहाँ से ! बड़ा आया है लट्टू नचाने, जा अपने बाबा की मोटर पर बैठ।’
काशु को गुस्सा आ गया, वह इसी उम्र में अपनी बहनों पर, नौकरों पर हाथ चला देता था और क्या मजाल उसे कोई कुछ कह दे। उसने न आव देखा न ताव, मदन को एक घुस्सा कस दिया। मदन ने काशु पर टूट पड़ा। उसकी मरम्मत जमकर कर दी। काशु रोता हुआ घर चला गया।
लेकिन मदन घर नहीं लौटा। आठ-नौ बजे रात को मदन इधर-उधर घूमते हुए गली के दरवाजे से घर में घुसा। डर तो यही है कि आज अन्य दिनों की अपेक्षा मार अधिक लगेगी। रसोई घर में घुसा। भरपेट खाना खाया। फिर बगल वाले कमरे के दरवाजे पर जाकर अन्दर की बात सुनने लगा। उसे इस बात का ताज्जुब हो रहा था कि उसके पिता क्यों गरज-तरज नहीं रहे हैं, जबकि उसने काशु के दो-दो दाँत तोड़ डाले थे। इसका कारण यह था कि उसके पिता को नौकरी से हटा दिया गया था और मकान खाली करने का आदेश दिया जा चूका था। वह दबे पाँव बरामदे पर रखी चरपाई की तरफ सोने के लिए चला कि अँधेरे में उसका पैर लोटे पर लग गया, ठन्-ठन् की आवाज सुनकर गिरधर बाहर निकला और मदन की ओर बढ़ा, उसके चेहरे से नाराजगी के बादल छँट गए। उसने मदन को अपनी गोद में उठाकर बेपरवाही, उल्लास और गर्व के साथ बोल उठा, जो किसी के लिए भी नौकरी से निकाले जाने पर ही मुमकिन हो सकता है, शाबाश बेटा ! एक तेरा बाप है, और तु ने तो, खोखा के दो-दो दाँत तोड़ डाले। लेखक के कहने का तात्पर्य है कि कोई व्यक्ति स्वार्थवश ही किसी का अपमान सहन करता है, स्वार्थरहित ईंट का जवाब पत्थर से देता है। इसी मजबुरी के कारण गिरधर अपने पुत्र को निर्दोष होते हुए भी पीटता था, क्योंकि विष के दाँत लगे हुए थे, इसे टूटते ही दुत्कार प्यार में बदल जाता है।