6. The Shehnai of Bismillah Khan class 10th English | बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 9 अंग्रेजी के पाठ छ: ‘The Shehnai of Bismillah Khan (बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई)’ के प्रत्‍येक पंक्ति के अर्थ को पढ़ेंगे।

The Shehnai of Bismillah Khan

THE SHEHNAI OF BISMILLAH KHAN
(बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई)

USTAD BISMILLAH KHAN, the great Shehnai maestro, and the receipient of the  highest civilian award the Bharat Ratna (2001), was born on 21 March 1916 in a well-known family of musicians in Bihar. In spite of having travelled all over the world, he was exceedingly fond of Benaras and Dumraon and they remained for him the most wonderful towns of the world. He passed away on 21 August 2006 at the age of ninety after a prolonged illness. He was given a state funeral and the Government of India declared one day of national mourning.
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ महान शहनाईवादक और भारतरत्न (2001) जैसे महान नागरिक पुरस्कार से पुरस्कृत, का जन्म बिहार में 21 मार्च 1916 को एक जाने-माने संगीतज्ञों के परिवार में हुआ था। पूरी दुनिया का सैर करने पर भी वे बनारस और डुमराँव को अत्यधिक चाहते थे और उन्होंने विश्व के सुंदर शहरों में रुकने से इंकार कर दिया। 21 अगस्त 2006 को नब्बे वर्ष की अवस्था में एक लम्बी बीमारी के उपरांत उनका इंतकाल हो गया। राष्ट्रीय सम्मान के साथ उनको दफन किया गया और भारत सरकार ने एक दिन का राजकीय शोक घोषित किया।

Class 9th English Chapter 6 The Shehnai of Bismillah Khan Notes

Bihar Board Class 10th Social Science

THE SHEHNAI OF BISMILLAH KHAN

1.Emperor Aurangzeb banned the playing of a musical instrument called pungi in the royal residence, for it had a shrill unpleasant sound. The pungi became the generic name for reeded noisemakers. Few had thought that it would one day bc revived. A barber of a family of professional musicians, who had access to the royal palace, decided to improve the tonal quality of the pungi. He chose a pipe with a natural hollow stem that was longer and broader than the pungi, and made seven holes on the body of the pipe. When he played on it, closing and opening some of these holes, soft and melodious sounds were produced. He played the instrument before royalty and everyone was impressed. The instrument so different from the pungi had to be given a new name. As the story goes, since it was first played in the Shah’s chambers and was Played by a nai (barbaer), the instrument was named the ‘shehnai’.
बादशाह औरंगजेब ने ‘पुंगी’ नामक वाद्ययत्र को राजघरानों है। बजाने पर प्रतिबंध लगा दिया, क्योंकि यह अप्रिय तीव्र ध्वनि उत्पन्न करती थी। पंगो सामान्यतया शोर करनेवाली सरकंडा के नाम से जाना जाने लगा। कुछ लोग सोचते थे कि यह एक दिन.दोहरायी जायेगी। पेशेवर संगीतज्ञों के परिवार का एक नाई, जिसकी महलों में पहुँच थी, पुंगी की ध्वनि विद्या को सुधारने का निर्णय लिया । उसने पुंगी से बड़ा
और चौड़ा प्राकृतिक छिद्र वाला तना लिया और पाइप पर सात छिद्र बनाया। जब वह । इन छिद्रों में से कुछ को खोलकर और बंद कर जब वह इसे बजाता था, मुलायम और । कर्णप्रिय ध्वनियाँ निकलती थीं। उसने इस वाद्ययंत्र को और महाराजाओं के कक्ष में बजाया।
और सब कोई प्रभावित हुए। वाद्ययंत्र जो पुंगी से अलग था एक नया नाम दिया गया। ऐसी कहानी कही जाती है कि यह पहली बार शहंशाह के कक्ष में बजायी गई और एक नाई (हज्जाम) के द्वारा बजायी गई, इसलिए इस यंत्र का नाम ‘शहनाई’ पड़ा।

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2.The sound of shehnai began to be considered auspicious. And for this reason it is still played in temples and is an indispensable component of any North Indian wedding. In the past, the shehnai was part of the naubat or traditional ensemble of nine instruments found at royal courts. Till recently it was used only in temples and weddings. The credit for bringing this instrument onto the classical stage goes to Ustad Bismillah Khan.
शहनाई की आवाज शुभ मानी जाने लगी। यही कारण है कि यह मंदिरों में बजायी जाती है और किसी उत्तर भारतीय की शादी में अतिआवश्यक सामग्री मानी जाती है। भूतकाल में, शहनाई शाही दरबारों के नौबत या नौ उपकरणों के परंपरागत यंत्र का एक हिस्सा था। कुछ दिन पहले तक यह केवल मंदिरो और शादी-विवाह में उपयोग में लाया गया था। इस यंत्र को शास्त्रीय पटल पर लाने का श्रेय उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ ” को जाता है।
3.As a five-year old boy, Bismillah Khan played gilli-danda near a pond in the ancient estate of Dumraon in Bihar. He would regularly go to the nearby Bihariji temple to sing the Bhojpuri Chaita’, at the end of which he would earn a big laddu weighing 1.25 kg, a prize given by the local Maharaja. This happened 80 years ago, and the little boy has travelled far to earn the highest civilian award in India – the Bharat Ratna.
पाँच साल का बालक, बिस्मिल्ला खाँ बिहार में डुमराँव के पुराने जमादार के तालाब के नजदीक गिल्ली-डंडा खेलता था। वह नियमित रूप से नजदीक के बिहारीजी के मंदिर में भोजपुरी ‘चैता’ सुनने जाता था, जिसके अंत में वहाँ के महाराजा के द्वारा 1.25 किलो वजन का लड्डू इनाम में दिया जाता था। यह 80 वर्ष पूर्व की घटना थी और नन्हा बालक ने भारतरत्न जैसे भारत के महान नागरिक पुरस्कार पाने के लिए लम्बी दूरी तय की।

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4.Born on 21 March 1916, Bismillah belongs to a well-known family of musicians from Bihar. His grandfather, Rasool Bux Khan, was the shehnai-nawaz of the Bhojpur king’s court. His father, Paigambar Bux, and other pater ancestors were also shehnai players.
21 मार्च, 1916 को जन्गे बिरिगल्ला खाँ बिहार के संगीतज्ञों के जाने-माने परिवार से आते हैं। उनके दादा रसूल बक्स खान भोजपुर के राजा के दरबार गे शहनाई नवाज थ। उनके पिता पैगम्बर बक्स और अन्य वंशज भी शहनाईवादन से जुड़े थे।
5.The young boy took to music early in life. At the age of three, when his mother took him to his maternal uncle’s house in Benaras (now Varanasi), Bismillah was fascinated watching his uncles practise the shehnai. Soon Bismillah started accompanying his uncle, Ali Bux, to the Vishnu temple of Benaras where Bux was employed to play the shehnai. Ali Bux would play the shehnai and Bismillah would sit captivated for hours. Slowly, he started getting lessons in playing the instrument and would sit practising throughout the day. For years to come the temple of Balaji and Mangala maiya and the banks of the Ganga became the young apprentice’s favourite haunts where he could practise in solitude. The flowing waters of the Ganga inspired him to improvise and invent ragas that were earlier considered to be beyond the range of the shehnai.
युवा बालक जीवन के पूर्व में ही संगीत सीखने लगा। तीन वर्ग की अवस्था म जब उनकी माँ ने उनके अपने चाचा के घर बनारस (अब वाराणसी) ले गई, बिस्मिल्ला अपने चाचा की शहनाई के रियाज को गौर से ध्यानपूर्वक निहरता था। शीघ ही बिस्मिल्ला अपन मामा अली बक्स के साथ, जो बनारस के विष्णु मंदिर में शहनाई बजाने के कर्मचारी थे, के साथ शहनाई का संगत शुरू कर दिया। अली बक्स शहनाई बजाते थे और बिस्मिल्ला घंटा बैठकर मोहित होता था। धीरे-धीर, इस यंत्र को बजाने का पाठ लेना शुरू कर दिया और दिन भर बैठकर अभ्यास करने लगा। अनेक वर्षों तक बालाजी और मंगला मईया के मंदिर और गंगा के तट पर आनेवाले नौजवान वादक का प्रतिदिन आगमन होने लगा जहाँ वह एकांत में अभ्यास कर सका । गंगा की बहती धारा ने उन्हें तत्काल कुछ नया राग आविष्कार करने की प्रेरणा दी जो अभी तक शहनाई के लिए स्वीकृत दायरा से अलग था।
6.Al the age of 14. Bismillah accompanied his uncle to the Allahabad Music Conference. At the end of his recital, Ustad Faiyaz Khan patted the young boy’s back and said, “Work hard and you shall make it.” With the opening of the All India Radio in Lucknow in 1938 came Bismillah’s big break. He soon became an often-heard shehnai player on the radio.
14 वर्ष की अवस्था में बिस्मिल्ला ने अपने मामा के साथ इलाहाबाद के संगीत सम्मेलन में हिस्सा लिया था संगत की। संगीत के कार्यक्रम के अंत । में, उस्ताद फैय्याज खाँ ने युवा बालक का पीठ थपथपाया और कहा : “कड़ा परिश्रम करो और तुम इसे प्राप्त करोगे। 1938 में लखनऊ में अखिल भारतीय रेडियो की शुरुआत ने बिस्मिल्ला को बड़ा ठहराव दिया। उनकी शहनाई अक्सरहाँ रेडियो पर सुनी। जाने लगी।
7.When India gained independence on 15 August 1947. Bismillah Khan became the first Indian to greet the nation with his shehnai. He poured his heart out into Ragg Kafi from the Red Fort to an audience which included Pandit Jawaharlal Nehru, who later gave his famous “Tryst with Destiny’speech.
जब 15 अगस्त, 1947 को भारत को आजादी मिली, बिस्मिल्ला खाँ प्रथम भारतीय बने जिन्होंने अपनी शहनाई से राष्ट्र का स्वागत किया। उन्होंने लाल किला से दर्शकों को जिसमें पंडित जवाहरलाल नेहरू भी थे, राग काफी की धारा दिल से बहायी। पंडित नेहरू ने भाषणवाद ‘भाग्य से भेंट का प्रबंध’ किया।

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8.Bismillah Khan has given many memorable performances both in India and abroad. His first trip abroad was to Afghanistan where King Zahir Shah was so taken in by the maestro that he gifted him priceless Persian carpets and other souvenirs. The King of Afghanistan was not the only one to be fascinated with Bismillah’s music. Film director Vijay Bhatt was so impressed after hearing Bismillah play at a festival that he named a film after the instrument called Gunj Uthi Shehnai. The film was a hit, and one of Bismillah Khan’s composition, “Dil ka Khilona hai toot gaya…,” turned out to be a nationwide chartbuster! Despite this huge success in the celluloid world, Bismillah Khan’s success in film music was limited to two: Vijay Bhatt’s Gunj Uthi Shehnai and Vikram Srinivas’s Kannada venture, Sanadhi Apanna, “I just can’t come to terms with the artificiality and glamour of the film world,” he says with emphasis.
बिस्मिल्ला खाँ ने अनेक यादगार उपलब्धियाँ देश में और देश के बाहर दी है। देश से बाहर की उनकी पहली यात्रा अफगानिस्तान की थी, जहाँ बादशाह जहीर खाँ उनकी मौसिकी से इतना प्रभावित हुआ कि उसने बेशकीमती परसियन गलीचे और स्मृति चिह्न उपहारस्वरूप प्रदान किया। अफगानिस्तान का बादशाह अकेला नहीं था, जो बिस्मिल्ला के संगीत से मोहित था। फिल्म डायरेक्टर विजय भट्ट एक कार्यक्रम में बिस्मिल्ला का शहनाई सुनकर इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने एक फिल्म का नाम इस यंत्र के नाम से गूंज उठी शहनाई’ रख दिया। फिल्म हिट हो गई और बिस्मिल्ला खाँ की एक रचना ‘दिल का खिलौना हाय टूट गया ने राष्ट्रव्यापी प्रसिद्धि पाई। चकाचौंध दुनिया में इतनी बड़ी सफलता के बावजूद, बिस्मिल्ला खाँ ने मात्र दो फिल्मों तक अपने को सीमित रखा। विजय भट्ट की ‘गूंज उठी शहनाई’ और विक्रम श्रीनिवास की कन्नड़ साहसिक कार्य सनाधि आपना। “मैं फिल्मी दुनिया की बनावटी और आकर्षक दुनिया में मैं नहीं आ सकता हूँ।” वे जोर देकर कहते हैं।
9.Awards and recognition came thick and fast. Bismillah Khan became the first Indian to be invited to perform at the prestigious Lincoln Centre Hall in the United States of America. He also took part in the World Exposition in Montreal, in the Cannes Art Festival and in the Osaka Trade Fair. So well known did he become internationally that an auditorium in Teheran was named after him-Tahar Mosiquee ustaad Bismillah Khan.
इनाम और पहचान तीव्र गति से आने लगे । बिस्मिल्ला खाँ प्रथम भारतीय बने जिन्हें अमेरिका के गौरवपूर्ण लिंकन सेन्ट्रल हॉल में कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंने केन्स आर्ट फेस्टिवल ओसाका ट्रेड के फेयर में वर्ल्ड एक्सपोजिशन इन मॉन्ट्रियल में हिस्सा लिया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने इतनी ख्याति पायी कि तेहरान में एक श्रोता कक्ष का नाम तेहरान मौसिकी उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ रखा गया।
10.National awards like the Padmashri, the Padma Bhushan and the Padma Vibhushan were conferred on him.
पदमश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे राष्ट्रीय पुरस्कार उन पर न्योछावर थे।
11.In 2001, Ustad Bismillah Khan was awarded India’s highest civilian award, the Bharat Ratna. With the coveted award resting on his chest and his eyes glinting with rare happiness, he said, “All I would like to say is: Teach your children music, this is Hindustan’s richest tradition; even the
West is now coming to learn our music.”
2001 में उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारतरल’ से नवाजे गए। इस उपहार ने उनके सीने में शांति पहुँचाई और आँखों में अनोखी खुशी से उन्होंने कहा, “मैं सबों को कहना चाहता हूँ कि : अपने बच्चों को संगीत सिखाइए यह हिन्दुस्तान की सबसे गौरवशाली परंपरा है, यहाँ तक कि पश्चिम के लोग भी आ इसे सीखने हमारे यहाँ आ रहे हैं।”

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12.In spite of having travelled all over the world Khansaab, as he is fondly called, is exceedingly fond of Benaras and Dumraon and they remain for him the most wonderful towns of the world. A student of his once wanted him to head a shehnai school in the U.S.A., and the student promised to recreate the atmosphere of Benaras by replicating the temples there. But Khansaab asked him if he would be able to transport River Ganga as well. Later he is remembered to have said, “That is why whenever I am in a foreign country, I think of only Benaras and the holy Ganga. And while in Benaras, I miss the unique mattha of Duraon.
पूरी दुनिया का सैर करने के बावजूद खाँ साहब, जैसा कि उन्हें प्यार से पुकारा जाता है, बनारस और डुमराँव को अत्यधिक चाहते थे और संसार के सुंदर शहरों में भी गए थे। एक विद्यार्थी, जो उन्हें चाहता था यू. एस. ए. में शहनाई का एक स्कूल खोलने के लिए उनसे आग्रह किया और विद्यार्थी ने यह वादा किया कि वह बनारस का वातावरण और मंदिरों का प्रतिरूप यहाँ स्थापित कर देगा। परन्तु खाँ साहब ने उससे पूछा कि क्या तुम गंगा नदी को भी यहाँ ला दोगे? इसलिए याद रखो, जो मैं कहता हूँ, “यही कारण है कि जब मैं विदेश में रहता हूँ तो केवल बनारस के और पवित्र गंगा के बारे में सोचता हूँ। और जब बनारस में होता हूँ तो मैं सबसे परे डुमराँव के मट्ठा को नहीं पकड़ पाता हूँ।”
13.Shekhar Gupta: When partition happened, didn’t you and your family think of moving to Pakistan?
शेखर गुप्ता: जब देश का बंटवारा हुआ, तुम और तुम्हारा परिवार पाकिस्तान जाने को सोचा तक नहीं ?
14.Bismillah Khan: God forbid! Me, Ieave Benaras? Never! I went to Pakistan once! Crossed the border just to say I have been to Pakistan. I was there is about an hour. I said namaskar to the Pakistanis and salaam alaikum to the Indians! I had a good laugh.
बिस्मिल्ला खाँ : मुझे बनारस छोड़ने के लिए ईश्वर ने अनुमति नहीं दी ! कभी नहीं ! मैं एक बार पाकिस्तान गया केवल यह कहने के लिए सीमा पार किया कि मैं पाकिस्तान में हूँ। मैं वहाँ करीब एक घंटा रहा था। मैं पाकिस्तानियों को नमस्कार और भारतीयों को सलाम वाल्लेकुम कहा। मैं खूब हँसता था।
15.Ustad Bismillah Khan’s life is a perfect example of the rich, cultural heritage of India, one that effortlessly accepts that a devout Muslim like him can very naturally play the shehnai every morning at the Kashi Vishwanath temple.
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का जीवन भारत के मानवीय शक्तियों के विकास वाले पैतृक संपत्ति के धनी का आदर्श उदाहरण है। वह जो निःसंकोच स्वीकार करता है कि उसके जैसा धार्मिक मुसलमान काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रत्येक दिन सुबह में बहुत आसानी से शहनाई बजा सकता है। Class 9th English Chapter 6 The Shehnai of Bismillah Khan Notes

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